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नेशनल दुनिया, 28 जनवरी 2013
शौचालयों के वेस्ट पानी से नगर निगम अब बाग़वानी करने की योजना पर विचार कर रहा है। साउथ एमसीडी स्कूलों में ऐसे टॉयलेट स्थापित करने जा रही है जो कि ईको फ्रेंडली होने के साथ-साथ मैन लैस भी होंगे। दक्षिणी निगम ई-टॉयलेट परियोजना को बालिका विद्यालयों से शुरू करेगी। साउथ एमसीडी में आने वाले 179 बालिका विद्यालयों में से कुछ एक स्कूलों में पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर इस परियोजना की शुरूआत की जाएगी। प्रोजेक्ट के सफल होने पर सभी कन्या विद्यालयों में ई-टॉयलेट बनाएंगे जाएंगे।
केरल की इस विशेष ई-टॉयलेट परियोजना को पहली बार साउथ एमसीडी अपनाने जा रही है। साउथ एमसीडी में शिक्षा समिति के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने बताया कि केरल की ई-टॉयलेट परियोजना ना केवल मैन लैस है बल्कि ईको फ्रेंडली भी है। उपाध्याय ने जानकारी देते हुए बताया कि ई-टॉयलेट वर्तमान में उपोयग हो रहे टॉयलेटों से कई गुणा बेहतर और सुविधाजनक है। इस टॉयलेट के माध्यम से वेस्ट होने वाले पानी को प्यूरीफाई कर बाग़वानी के लिए यूज किया जा सकेगा। जिससे ना केवल पानी की बचत होगी, बल्कि यमुना को मैला होने से भी बचाया जा सकेगा। उपाध्याय का कहना है कि साउथ एमसीडी की इस योजना से लाखों गैलन पानी की बचत की जा सकेगी। राजधानी पानी की किल्लत से जूझ रही है, इस योजना के सभी स्कूलों में लागू होने से इस समस्या पर कहीं हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा।
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि ई-टॉयलेट मैन लैस होने के साथ-साथ मल-मूत्र को भी स्वच्छ पानी में बदलेगा। जिससे सफाई कर्मचारियों को मैला उठाने से भी निजात मिल सकेगी। इस टॉयलेट की खास बात यह है कि टॉयलेट में उपयोग होने वाले नेपकिन को भी नहीं उठाना पड़ेगा। नेपकिन स्वतः ही बर्न हो जाएगी। एक ई-टॉयलेट को स्थापित करने में करीब 2 से 3 लाख रुपए का ख़र्चा आएगा।
केरल की इस विशेष ई-टॉयलेट परियोजना को पहली बार साउथ एमसीडी अपनाने जा रही है। साउथ एमसीडी में शिक्षा समिति के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने बताया कि केरल की ई-टॉयलेट परियोजना ना केवल मैन लैस है बल्कि ईको फ्रेंडली भी है। उपाध्याय ने जानकारी देते हुए बताया कि ई-टॉयलेट वर्तमान में उपोयग हो रहे टॉयलेटों से कई गुणा बेहतर और सुविधाजनक है। इस टॉयलेट के माध्यम से वेस्ट होने वाले पानी को प्यूरीफाई कर बाग़वानी के लिए यूज किया जा सकेगा। जिससे ना केवल पानी की बचत होगी, बल्कि यमुना को मैला होने से भी बचाया जा सकेगा। उपाध्याय का कहना है कि साउथ एमसीडी की इस योजना से लाखों गैलन पानी की बचत की जा सकेगी। राजधानी पानी की किल्लत से जूझ रही है, इस योजना के सभी स्कूलों में लागू होने से इस समस्या पर कहीं हद तक अंकुश लगाया जा सकेगा।
उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि ई-टॉयलेट मैन लैस होने के साथ-साथ मल-मूत्र को भी स्वच्छ पानी में बदलेगा। जिससे सफाई कर्मचारियों को मैला उठाने से भी निजात मिल सकेगी। इस टॉयलेट की खास बात यह है कि टॉयलेट में उपयोग होने वाले नेपकिन को भी नहीं उठाना पड़ेगा। नेपकिन स्वतः ही बर्न हो जाएगी। एक ई-टॉयलेट को स्थापित करने में करीब 2 से 3 लाख रुपए का ख़र्चा आएगा।