ई-वेस्ट क्या है?
जब हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को लम्बे समय तक प्रयोग करने के पश्चात उसको बदलने/खराब होने पर दूसरा नया उपकरण प्रयोग में लाते हैं तो इस निष्प्रयोज्य खराब उपकरण को ई-वेस्ट कहा जाता है। जैसे कम्प्यूटर, मोबाईल फोन, प्रिंटर्स, फोटोकॉपी मशीन, इन्वर्टर, यूपीएस, एलसीडी/टेलीविजन, रेडियो/ट्रांजिस्टर, डिजिटल कैमरा आदि। विश्व में लगभग 200 से 500 लाख मी. टन ई-वेस्ट जनित होता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली द्वारा किये गये एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2005 में भारत में जनित ई-वेस्ट की कुल मात्रा 1.47 लाख मी. टन थी। जो कि वर्ष 2012 में बढ़कर लगभग 8 लाख मी. टन हो गई है। जिससे विदित है कि भारत में जनित ई-वेस्ट की मात्रा विगत 6 वर्षों में लगभग 5 गुनी हो गई है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है।
भारत के दस बड़े शहरों में जनित होने वाले ई-वेस्ट (इलेक्ट्रॉनिक/इलेक्ट्रिकल वेस्ट) की मात्रा
शहर का नाम | जनित ई वेस्ट की मात्रा (टन/वर्ष) |
मुंबई | 11017.1 |
दिल्ली | 9730.3 |
बैंगलुरु | 4648.4 |
चैन्नई | 4132.2 |
कोलकाता | 4025.3 |
अहमदाबाद | 3287.5 |
हैदराबाद | 2833.5 |
पुणे | 2584.2 |
सूरत | 1836.5 |
नागपुर | 1768.9 |
इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को जलाने से कार्सेनोजेन्स- डाईबेंजो पैरा डायोक्सिन (टीसीडीडी) एवं न्यूरोटॉक्सिन्स जैसी विषैली गैसें उत्पन्न होती हैं। इन गैसों से मानव शरीर में प्रजनन क्षमता, शारीरिक विकास एवं प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है। साथ ही हार्मोनल असंतुलन व कैंसर होने की संभावनायें बढ़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, तथा क्लोरो-फ्लोरो कार्बन भी जनित होती है। जो वायुमण्डल व ओजोन परत के लिये हानिकारक है।
ई-वेस्ट में पाये जाने वाले विषाक्त पदार्थ एवं मानव पर पड़ने वाले कुप्रभाव –
क्रं.सं. | ई-वेस्ट का प्रकार | विषाक्त पदार्थ | मानव पर पड़ने वाला कुप्रभाव |
1. | प्रिंटेड सर्किट बोर्ड | लेड, कैडमियम | वृक्क, यकृत, तंत्रिका तंत्र, सिर दर्द। |
2. | मदर बोर्ड | बेरिलियम | फुफ्फुस, त्वचा व दीर्घकालिका रोग। |
3. | कैथोड ट्यूब | लेड ऑक्साइड, बैरियम, कैडमियम | हृदय, यकृत, मांसपेशियाँ, उदरशोथ। |
4. | स्विच, फ्लैट स्क्रीन मॉनिटर | मरकरी | मस्तिष्क, वृक्क, भ्रूण का अविकसित होना। |
5. | कम्प्यूटर बैटरी | कैडमियम | वृक्क, यकृत को प्रभावित करता है। |
6. | केबिल इन्सुलेशन कोटिंग | पॉली विनायल क्लोराइड | शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करता है। |
7. | प्लास्टिक हाउसिंग | ब्रोमीन | हार्मोनल तंत्र को प्रभावित करता है। |
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के डिस्कार्ड होने की औसत अवधि
इलेक्ट्रॉकि उपकरण | डिस्कार्ड होने की औसत अविध |
मोबाइल टेलीफोन्स | 1 से 3 वर्ष |
पर्सनल कम्प्यूटर्स | 2 से 3 वर्ष |
कैमरा | 3 से 5 वर्ष |
टेलीविजन/एलसीडी | 5 से 8 वर्ष |
रेफ्रीजेरेटर | 5 से 10 वर्ष |
वाशिंग मशीन | 5 से 10 वर्ष |
आईटी ऐसेसिरीज | बहुत जल्दी-जल्दी |
पर्यावरणीय दृष्टि से इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट के संबंध में प्रख्यापित नियम-पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार के अधिसूचना संख्या- एसओ 1035 (ई.) ई-वेस्ट (प्रबंधन एवं हथालन) नियम 2011 प्रख्यापित किया गया है जो 1 मई, 2012 से संपूर्ण भारत वर्ष में लागू है।ई-वेस्ट को अवैध रूप से अवैज्ञानिक तरीके से जलाये जाने से रोकने के संबंध में सुझाव-
दिल्ली, नोएड, गुड़गाँव, गाजियाबाद आदि से इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट लाने वाले ट्रकों का बाहर की सीमा में प्रवेश प्रतिबंधित किया जाये। यदि ट्रक ड्राइवर के पास इस आशय का कोई प्रमाण पत्र हो कि उसके ट्रक में लोड ई-वेस्ट वैज्ञानिक तरीके से रिकवरी हेतु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से प्राधिकार प्राप्त हुए प्लांट पर ही ले जाया जा रहा है तो उसे छोड़ा जा सकता है।
1. ई-वेस्ट ट्रांसपोर्ट करने वाले वाहन के प्रस्थान एवं गन्तव्य के बारे में ट्रक के ऊपर लेबल होना चाहिए, जिससे पता चल सके कि ट्रक को कहाँ से लाया जा रहा है एवं इसका गन्तव्य स्थान क्या है। शहर में ई-वेस्ट के प्रसंस्करण की इकाई की स्थापना की जाये। समस्त आयातित ई-वेस्ट मेटल रिकवरी प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से ही की जाये।
2. वाहन के प्रस्थान एवं गन्तव्य की संबंधित विभागों एवं पुलिस विभाग के द्वारा लगातार अनुश्रवण किया जाना चाहिए कि वाहन निश्चित गन्तव्य स्थान पर पहुँचा है अथवा नहीं, जिससे अवैध रूप से ई-वेस्ट को लाने ले जाने को रोका जा सकेगा।
3. स्थानीय पुलिस द्वारा सक्रिय होकर मुखबिर के माध्यम से सूचना प्राप्त कर ई-वेस्ट को यदि कहीं अवैध रूप से लाया जा रहा है तो इलेक्ट्रॉनिक कचरा लाने वाले वाहन स्वामी व भण्डारण करने वाले भवन स्वामी के विरुद्ध धारा 188 भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत कार्यवाही की जा सकती है।
4. ई-वेस्ट नियमों का क्रियान्वयन इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाले उद्योगों से कराया जाये।
5. थाने द्वारा ई-कचरा ट्रांसपोर्ट करने के विरुद्ध क्या कार्यवाही की गई। यदि किसी थाना क्षेत्र में ई-कचरा जलता पाया जाये तो संबंधित थानाध्यक्ष के विरुद्ध कार्यवाही की जाये।
6. मौजूदा प्रशासन द्वारा ई-वेस्ट के संबंध में की जा रही कार्यवाही एवं प्रयासों के बारे में मीडिया के माध्यम से लगातार प्रचार प्रसार किया जाए।
7. ई-वेस्ट के अवैज्ञानिक रूप से जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में जनजागरूकता अभियान चलाते रहना होगा।
8. यदि किसी परिवार के बच्चे ई-वेस्ट जलाते पाये जाते हैं तो उस परिवार के मुखिया के विरुद्ध दण्डात्मक कार्यवाही की जाये। श्रम विभाग को पृथक से निर्देशित किया जाये।
9. लोकल लीडर, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेताओं का पूर्ण सहयोग प्राप्त किया जाये, जिससे अवैध रूप से ई-वेस्ट को जलाने वालों को किसी तरह का उन्हें सहयोग प्राप्त न हो और वह अवैध रूप से कार्य करना बंद कर दें।
10. मुख्य सचिव यूपी शासन द्वारा उत्तर प्रदेश में ई-वेस्ट के अवैध रूप से हथालन और प्रबंधन को रोकने के संबंध में निर्देश शासनादेश संख्या-3714/55-पर्या./2013 दिनांक-10.09.2013 को जारी किये गये हैं, जिनका पालन किया जाये।
ई-वेस्ट का सुरक्षित उपचार एवं निसतारण की विधियाँ
ई-वेस्ट का सुरक्षित उपचार एवं निस्तारण मुख्यत: 5 प्रकार से किया जाता है।
1. सिक्योर्ड लैण्डफिलिंग (सुरक्षित विधि से भूमि में दबाना)
2. इन्सिनेरेशन (भस्मीकरण)
3. रिसाइकिलिंग (पुन: चक्रण)
4. एसिड के द्वारा मेटल की रिकवरी
5. री-यूज (पुन: उपयोग)
1. सिक्योर्ड लैण्डफिलिंग (सुरक्षित विधि से भूमि में दबाना)
- ई-वेस्ट को समतल जमीन में गडढ़ों का निर्माण कर उसमें ई-वेस्ट को डालकर मिट्टी से दबा दिया जाता है।- परंतु ई-वेस्ट के सुरक्षित निस्तारण हेतु गड्ढों को प्लास्टिक (एचडीपीई) की मोटी शीट से लाईनिग करके सतह को सुरक्षित रखते हुए दबाया जाना चाहिये।
2. इन्सिनेरेशन (भस्मीकरण)
- इस प्रक्रिया में ई-वेस्ट को 900 से 1000 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर इन्सिनेरेटर के अंदर पूर्णत: बंद चैम्बर में जलाया जाता है।
- जिससे ई-वेस्ट की मात्रा काफी कम हो जाती है तथा उसमें उपस्थित अर्गेनिक पदार्थ की विषाक्तता काफी कम हो जाती है।
- इन्सिनेरेटर में लगी हुई चिमनी से निकलने वाले धुएँ एवं गैस को वायु प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था (एपीसीएस) के माध्यम से गुजारा जाता है एवं धुएँ में उपस्थित विभिन्न प्रकार की धातुओं को रासायनिक क्रिया से पृथक कर लिया जाता है तथा गैसों को उपचारित किया जाता है।
3. रिसाइकिलिंग
- इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट जैसे मॉनिटर, पिक्चर ट्यूब, लैपटॉप, कीबोर्ड, टेलीफोन, हार्ड ड्राइव, सीडी ड्राइव, फैक्स मशीन, प्रिंटर, सीपीयू, मोडेम केबिल आदि उपकरणों का पुन: चक्रण किया जा सकता है।
- इस प्रक्रिया में विभिन्न धातुओं एवं प्लास्टिक को तोड़फोड़ कर अलग-अलग करके उसको पुन: उपयोग हेतु संरक्षित कर लिया जाता है।
4. एसिड के द्वारा मेटल की रिकवरी
- इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट से विभिन्न प्रकार के पार्टस जैसे फेरस व नॉन फेरस मेटल एवं प्रिंटेड सर्किट बोर्ड को पृथक-पृथक कर लेते हैं।
- इसमें से विभिन्न प्रकार के मेटल जैसे लेड, कॉपर, ऐल्युमिनियम, सिल्वर, गोल्ड, प्लेटिनम आदि धातुओं की रिकवरी के लिये सान्द्र एसिड का प्रयोग करके पृथक कर लेते हैं।
- अवशेष प्लास्टिक वेस्ट को पुन: प्रयोग करने हेतु रिसाइकिल कर लिया जाता है।
5. री-यूज (पुन: उपयोग)
- पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करके पुन: उपयोग हेतु बनाया जाता है।
- जैसे कम्प्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप, इंकजेट कार्टेज, इन्वर्टर, टेलीविजन/एलसीडी, यूपीएस, प्रिंटर आदि उपकरणों को ठीक कर पुन: उपयोग किया जा सकता है।
संदर्भ
1. ई-वेस्ट प्रबन्धन हेतु गाइड लाइन, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली।
2. उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, की वेब साइट www.uppcb.com
दीप्ति सिंह
रीडर एवं विभागाध्यक्ष, गणित विभाग, महिला विद्यालय डिग्री कालेज, लखनऊ-226013, यूपी, भारतDeeptisingh1967@gmail.com