जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

Submitted by Hindi on Thu, 04/12/2018 - 18:09
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सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन


जलवायु परिवर्तन

जलवायु परिवर्तनजलवायु परिवर्तन ऐसे दो शब्द हैं, जिनके बारे में आप इन दिनों अक्सर सुन रहे होंगे। आखिर इस विषय पर इतनी चर्चा क्यों हो रही है? यह कुछ ऐसा विषय नहीं है जिसके लिये मौसम वैज्ञानिकों को चिन्ता करनी चाहिए? यह किस प्रकार से हमारे और आपके लिये चिन्ता का विषय है? हाँ! इसी बारे में हम मिलकर पता लगाएगे। यह पुस्तिका इसमें हमारी सहायता करेगी। आइए हम इनमें से प्रत्येक शब्द को समझते हुए आरम्भ करते हैं।

जलवायु क्या है?

एक कहावत के अनुसार जलवायु वह है जिसकी आप उम्मीद करते हैं; मौसम वह है जो कि हमें मिलता है। हम प्रायः ‘जलवायु’ एवं ‘मौसम’ शब्द में अन्तर नहीं कर पाते हैं। मौसम वह है जो रोज रात को टीवी पर दर्शाया जाता है जैसे विभिन्न स्थानों पर अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान, बादलों एवं वायु की स्थिति, वर्षा का पूर्वानुमान, आर्द्रता आदि। निर्धारित समय पर किसी स्थान पर बाह्य वातावरणीय परिस्थितियों में होने वाला परिवर्तन, मौसम कहलाता है।

जलवायु शब्द किसी स्थान पर पिछले कई वर्षों के अन्तराल में वहाँ की मौसम की स्थिति को बताता है।
जलवायु वैज्ञानिक, किसी स्थान विशेष की जलवायु का पता लगाने के लिये कम-से-कम 30 वर्षों के मौसम की जानकारी को आवश्यक मानते हैं। जलवायु से हमें कोई स्थान कैसा है यह पता चलता है। उदाहरण के लिये, अहमदाबाद एवं दिल्ली की जलवायु सामान्यतः शुष्क है; इसके विपरीत मुम्बई एवं विशाखापत्तनम में जलवायु आर्द्र है; बंगलुरु एवं पुणे की जलवायु सुहावनी है, जबकि कोच्चि में मुख्यतः वर्षायुक्त जलवायुवीय परिस्थितियाँ हैं।

 

 

 

 

 

निम्न बिन्दुओं में क्या समानता है?

1. न्यूजीलैंड के वातानुकूलित सुपर बाजार से आयातित सेबों को खरीदना

2. जुलाई 2005 में मुम्बई शहर में 24 घंटे में 944 मिमी. वर्षा का होना।

3. महंगे उत्पादों का आकर्षक प्रचार-प्रसार।

4. वर्ष 2005 की गर्मियों में यूरोप में चली लू के कारण 20,000 से भी अधिक लोगों की मृत्यु।

5. ज्यादा-से-ज्यादा लोगों का मलेरिया या डेंगू जैसी बीमारियों से प्रभावित होना।

 

ये सभी बिन्दु किसी न किसी तरह से जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित हैं।

 

क्या है परिवर्तन?
जलवायु का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक अभी भी इस तर्क-वितर्क में उलझे हैं कि पृथ्वी किस दर से गर्म हो रही है तथा यह कितनी अधिक गर्म होगी। परन्तु वे इस बात से सहमत हैं कि वास्तव में पृथ्वी गर्म हो रही है।

उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि आज विश्व पिछले 2000 वर्षों के किसी भी समय की अपेक्षा ज्यादा गर्म है। 20वीं शताब्दी के दौरान वैश्विक तापमान लगभग 0.60C तक बढ़ा है।

मौसम में परिवर्तन थोड़े समय में ही हो सकते हैं। एक घंटे के लिये बरसात हो सकती है और इसके बाद तेज धूप भी निकल सकती है। जलवायु में भी परिवर्तन हो सकता है। जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक है एवं पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन होता रहा है। अतीत के हिमयुग इस जलवायु परिवर्तन का ही एक उदाहरण हैं। अतीत में ऐसे परिवर्तन होने में बहुत लम्बा समय लगा, परन्तु वर्तमान में परिवर्तनों का दर काफी तेज है और इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप पृथ्वी तेजी से गर्म हो रही है।

क्या मानव जलवायु में परिवर्तन ला सकते हैं?
एक समय में सभी जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक हुआ करते थे। लगभग 220 वर्षों पहले औद्योगिक क्रान्ति आई जिसके फलस्वरूप मशीनों द्वारा भारी मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा। मशीनों को चलाने के लिये ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसके लिये ज्यादातर ऊर्जा कोयले एवं तेल जैसे ईंधनों से प्राप्त होती है जिन्हें ‘जीवाश्म ईंधन’ कहते हैं। जब इन जीवाश्म ईंधनों को जलाया जाता है तब कार्बन डाइऑक्साइड वायु उत्सर्जित होती है। औद्योगिकीकरण के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, ओजोन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी वायुओं का उत्सर्जन भी बढ़ा है। इन वायुओं को ‘ग्रीनहाउस वायु’ (गैस) कहते हैं। पिछले 200 वर्षों के दौरान हमारी गतिविधियों के कारण वायुमण्डल में ग्रीनहाउस वायुओं की विशाल मात्रा उत्सर्जित हुई है। अब यह सुस्पष्ट है कि आज के समय में मानव ही जलवायु परिवर्तन के लिये उत्तरदायी है।

ग्रीनहाउस गैसों एवं जलवायु परिवर्तन में क्या सम्बन्ध है?
जैसे कि हम जानते हैं, पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन सम्भव है। पृथ्वी की सतह पर अनुकूल तापमान का होना ही जीवन की उपस्थिति का एक महत्त्वपूर्ण कारक हैं पृथ्वी का औसत सतही तापमान 14.40C है। शुक्र ग्रह का औसत सतही तापमान 4490C तथा मंगल ग्रह का -550C है। ये हमारे सबसे नजदीकी पड़ोसी ग्रह हैं।वायुमण्डल में ग्रीनहाउस वायुओं की उपस्थिति के कारण ही पृथ्वी का तापमान जीवन के लिये अनुकूल है। ये वायु सूर्य के प्रकाश से निकली कुछ ऊष्मा को अवशोषित करती हैं एवं इन्हें पृथ्वी की सतह के करीब रोक कर रखती हैं। यह प्राकृतिक प्रक्रिया ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ कहलाती हैं। ग्रीनहाउस वायुओं के बिना पृथ्वी पर, दिन झुलसा देने वाले गर्म व रातें जमा देने वाली सर्द होतीं।

परन्तु ग्रीन हाउस वायुओं की बहुत अधिक मात्रा भी समस्या पैदा कर सकती है। जैसे-जैसे इनकी मात्रा बढ़ने लगती है, पृथ्वी की सतह पर ऊष्मा की मात्रा में भी वृद्धि होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप ‘ग्लोबल वार्मिंग’ होती है। पृथ्वी के इस प्रकार गर्म होने के कारण जलवायु में परिवर्तन होता है।

उदाहरण के लिये, वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि हम इसी दर से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करते रहे तो इस वायु का स्तर औद्योगिक क्रान्ति से पहले की अपेक्षा दोगुना हो जाएगा। इसके फलस्वरूप वर्ष 2050 तक पृथ्वी का औसत तापमान 5.80C तक बढ़ जाएगा। हालांकि यह वृद्धि सुनने में कम लग सकती है, परन्तु इसके परिणाम विश्वव्यापी होंगे।

 

 

हिमनद या बर्फ की चादरें लाखों वर्षों के हिमपात के बिना पिघले लगातार एकत्र होने से बनीं, जिनमें जलवायु से जुड़े कई संकेत छिपे हैं। पुरातात्विक जलवायु वैज्ञानिक (अतीत की जलवायु का अध्ययन करने वाले) इन हिमनदों में कैद हुए वायु के बुलबुलों एवं धूल के कणों का विश्लेषण करके अतीत की जलवायु प्रक्रियाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

जीवाश्म ईंधनों के जलने, मानवों एवं जीव-जन्तुओं द्वारा साँस लेने तथा पेड़-पौधों के अपघटन के परिणामस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड वायु उत्पन्न होती है। लकड़ी जलाने से भी वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड वायु का उत्सर्जन होता है।

 

 

 

 

 

 

 

तपती कारें!

 

छात्रों से पूछें कि क्या उन्होंने कभी सोचा है कि चिलचिलाती दोपहर में खुले स्थान पर कार को पार्क करने पर उसके अन्दर असहनीय गर्मी क्यों बढ़ जाती है? सूर्य की किरणें कार की बन्द खिड़की में लगे शीशे से पार होते हुए अन्दर की वायु को गर्म करती है। कार के शीशे की खिड़कियाँ सूर्य की किरणों को तो आने देती हैं परन्तु ऊष्मा को बाहर जाने से रोकती हैं। यही कारण है कि कार के अन्दर का तापमान बढ़ जाता है जो कि बाहर के तापमान की अपेक्षा ज्यादा होता है।

 

पृथ्वी पर सबसे अधिक पाये जाने वाले तत्वों में से कार्बन चौथे क्रम पर है। यह मानव शरीर के साथ-साथ समस्त जीवों में पाया जाता है। जहाँ भी जीवन है, कार्बन उसका रासायनिक आधार है।

 

 

गर्म, बहुत गर्म!

 

सामग्रीः बेल जार (Bell Jar) थर्मामीटर।

 

छात्रों से धूप वाले खुले स्थान पर पेपर कप को उल्टा करके रखने के लिये कहें। फिर इसके ऊपर एक थर्मामीटर रखें। उन्हें 20 मिनट के पश्चात थर्मामीटर के तापमान को नोट करने के लिये कहें।

 

अब उन्हें कप के ऊपर बेल जार रखने के लिये कहें। इसके बाद उन्हें फिर से 20 मिनट के पश्चात बेल जार के नीचे रखे थर्मामीटर के तापमान को नोट करने के लिये कहें।

 

बेल जार में रिकार्ड किया गया तापमान बढ़ गया है। तापमान में हुए इस परिवर्तन का मुख्य कारण बेल जार में कैद हुई ऊष्मा है। बेल जार के कांच ने ऊष्मा को रोक लिया। ग्रीनहाउस में यही होता है।

 

पृथ्वी के चारों ओर ऊष्मा को कैद करने के लिये शीशे की ऐसी कोई चादर नहीं होती है, परन्तु वायुमण्डलीय गैसों में उपस्थित ग्रीनहाउस गैसें ऊष्मा को अवशोषित करती हैं तथा बेल जार के शीशेे की ही भाँति पृथ्वी की सतह पर ऊष्मा को रोक लेती हैं। अतः इस प्रकार से उत्पन्न हुई गर्मी को ही ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ कहते हैं।

 

कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) एवं जलवायु परिवर्तन
CO2 एक प्रदूषक एवं वायुमण्डल का प्राकृतिक भाग दोनों ही है। वर्तमान में वायु में प्रति लाख अणुओं में से 380 अणु CO2 के हैं (380 ppm)। इसके उत्सर्जन की मात्रा प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की दर से बढ़ रही है। औद्योगिक क्रान्ति से पहले CO2 की मात्रा 270-280 पीपीएम थी।

वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग के लिये मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों में से 55 प्रतिशत से भी अधिक के लिये CO2 उत्तरदायी है। CO2 के अणुओं का जीवनकाल लम्बा होता है एवं ये वायुमण्डल में लगभग 200 वर्षों तक रहते हैं।

 

 

वायुमण्डल में ग्रीनहाउस गैसों के एकत्र होने से पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना ‘ग्लोबल वार्मिंग’ कहलाता है। ‘जलवायु परिवर्तन’ एक विस्तृत शब्द है जो कि जलवायु में लम्बे समय के लिये होने वाले परिवर्तनों को इंगित करता है। इसके अन्तर्गत औसत तापमान एवं वर्षा भी सम्मिलित है। 20वीं सदी में 1990 का दशक सबसे अधिक गर्म था। 1998 सबसे ज्यादा गर्म वर्ष था। 2002 दूसरा सर्वाधिक गर्म वर्ष था।

वह हिमनद, जहाँ से एडमण्ड हिलेरी एवं तेनजिंग नॉर्गे ने 1953 में माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई आरम्भ की थी, पिछले 50 वर्षों के दौरान 4.8 किमी. तक पिघल चुका है।

‘गर्म’ कितना गर्म है?
प्रत्येक गर्मियों में हम सभी ने कुछ ‘बहुत गर्म’ दिनों का अनुभव किया होगा। यह किसी को 2-3 दिनों के लिये बुखार होने जैसा ही है। परन्तु यदि यह बुखार कम न हो रहा हो और बहुत दिनों या हफ्तों तक लगातार बना रहे तो यह चिन्ता का विषय है। ठीक इसी प्रकार से यदि काफी लम्बे समय तक पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता रहे, चाहे वह सूक्ष्म मात्रा में ही क्यों न हो, तो उसका प्रभाव हमें महसूस होगा।

विश्व में बढ़ती गर्मी का क्या प्रभाव होगा?
तापमान में एक छोटे से परिवर्तन से भी बड़ा प्रभाव हो सकता है। जलवायु परिवर्तन, पृथ्वी की जलवायु में परिवर्तन लाने से कहीं अधिक परिवर्तन लाएगा। पृथ्वी पर जीवन के प्रत्येक पहलू पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इसका प्रभाव पड़ेगा।

1. प्रतिकूल मौसम
चक्रवात, तूफान एवं बाढ़ की समस्याएँ बढ़ जाएँगी। अधिकतर स्थान बहुत गर्म; कुछ स्थान सूखाग्रस्त; जबकि अन्य अत्यधिक वर्षा से प्रभावित हो जाएँगे। हम सभी काफी उग्र मौसमीय घटनाओं का अनुभव करेंगे जैसे कि लू, सूखा, बाढ़ (अधिक वर्षा एवं हिमनदों के पिघलने के कारण) एवं तीव्र तूफानी हवाएँ इत्यादि।

2. घटते हिमनद, पिघलती समुद्री बर्फ
हिमनद एवं बर्फीली चोटियाँ जलवायु परिवर्तन के संवेदनशील सूचक हैं। पर्वतीय हिमनद पहले से ही सिकुड़ रहे हैं। आर्कटिक की समुद्री बर्फ, विशेष रूप से पिछली कुछ गर्मियों से, काफी पतली होती जा रही है। अगस्त 2000 में उत्तरी ध्रुव पर बिलकुल बर्फ नहीं थी बल्कि सिर्फ पानी-ही-पानी था।

 

 

 

 

 

 

 

पिघलती बर्फ का प्रभाव क्या एक जैसा है?

 

ग्लोबल वार्मिंग के विभिन्न प्रभावों में से एक, ध्रुवीय बर्फ एवं पर्वतों के हिमनदों का पिघलना है। क्या होगा जब बर्फ पिघलेगी? क्या होगा जब पानी पर तैरती बर्फ पिघलेगी?

 

 

पिघलती बर्फ

 

क्या पिघलती बर्फ का प्रभाव सभी स्थानों पर एक समान होगा?

 

सामग्रीः बर्फ के टुकड़े, गिलास, पानी, स्याही या नील।

 

छात्रों से एक गिलास लेने के लिये कहें। इसे एक सूखे समतल स्थान पर रखें। इसमें बर्फ के टुकड़े तब तक डालें जब तक कि गिलास ऊपर तक न भर जाये। गिलास को रंगीन पानी से (स्याही या नील की बूँदों से) पूर्णतया भर दें। यह ध्यान रखें कि पानी बाहर न गिरे।

 

आपके अनुसार कुछ समय के पश्चात क्या होगा? क्या बर्फ के टुकड़े पिघल जाएँगे और पानी गिलास से छलक जाएगा?

 

पूरी बर्फ पिघलने तक गिलास का निरीक्षण करें। गिलास के बाहर कुछ मात्रा में संघनित जल अवश्य दिखाई देता है परन्तु गिलास से रंगीन पानी बाहर नहीं गिरता है।

 

बर्फ पिघल कर गिलास में ही रहती है। एक पहले से भरे हुए गिलास में पिघली हुई बर्फ कैसे समा गई? जल का एक अनोखा गुण यह है कि जब वह घन अवस्था (बर्फ) से द्रव अवस्था (जल) में परिवर्तित होती है तब वह सिकुड़ती है इसलिये द्रव अवस्था में जल कम स्थान घेरता है। यही कारण है कि जब पानी जमता है तो वह फैलता है व अधिक स्थान ग्रहण करता है।

 

उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) में पानी पर बर्फ तैरती है इसलिये जब यह बर्फ पिघलती है तब वह समुद्र स्तर में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं करती है (जैसे कि गिलास में रखे हुए बर्फ के टुकड़े)।

 

दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिक महाद्वीप पर स्थित है जहाँ पर केवल बर्फ है यदि यहाँ पर बर्फ पिघलती है तो इससे समुद्री जलस्तर में वृद्धि होगी।

 

 

क्या बर्फ पिघलने के परिणाम सभी स्थानों पर समान होंगे?

 

ऐसा हमेशा नहीं होता है। यह इस पर निर्भर करता है कि बर्फ किस स्थान पर है। उदाहरण के लिये उत्तरी ध्रुव जो कि आर्कटिक महासागर के मध्य में स्थित है। वहाँ पर वर्ष भर समुद्री बर्फ की बड़ी मात्रा रहती हैै। उत्तरी ध्रुव के ही निकट बर्फ की एक अन्य विशाल मात्रा पाई जाती है जिसे हम ग्रीनलैण्ड द्वीप कहते हैं। यहाँ पर पाई जाने वाली बर्फ का विस्तार 1.3 मीलियन वर्ग किमी तक है तथा इनकी औसत ऊँचाई 2 किमी होती है। उत्तरी ध्रुव क्षेत्र में काफी मात्रा में बर्फ पाई जाती है - समुद्री बर्फ एवं जमीन पर की बर्फ।

 

आर्कटिक बर्फ के पिघलने से समुद्री जलस्तर में वृद्धि नहीं होगी इसके विपरीत ग्रीनलैंड द्वीप की बर्फ के पिघलने से समुद्री जलस्तर में बढ़ोत्तरी अवश्य होगी। यदि ग्रीनलैंड की समस्त बर्फ पिघल जाये तो समुद्री जलस्तर में 7 किमी. की विनाशकाकरी बढ़ोत्तरी होगी।

 

हालांकि आर्कटिक बर्फ के पिघलने से कुछ अन्य प्रभाव होंगे। स्थायी बर्फयुक्त भूमियाँ पिघलेंगी जिससे मानव बस्तियाँ भी प्रभावित होगीं। समुद्री बर्फ के पतले होने एवं पिघलने के कारण ध्रुवीय भालुओं का असतित्व खतरे में हैं क्योंकि ये दोनों ही उनके शिकार करने की क्षमता को कम कर देती हैं। दक्षिणी ध्रुव पर, अंटार्कटिका महाद्वीप पर स्थित बर्फ के पिघलने से समुद्री जलस्तर में वृद्धि होगी।

 

3. समुद्री जलस्तर में वृद्धि
हिमनदों एवं ध्रुवीय बर्फीली चोटियों के पिघलने से समुद्र में जल की मात्रा बढ़ेगी। इसके अलावा तापमान बढ़ने से भी समुद्री जल में फैलाव होगा जिससे समुद्री जलस्तर में वृद्धि होगी। इन सबके परिणामस्वरूप छोटे द्वीप एवं समुद्रतटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाएँगे। उदाहरण के लिये मालदीव एवं तुवालु ऐसे दो द्वीप राष्ट्र हैं, जो कि समुद्री जलस्तर के बढ़ने से प्रभावित होंगे।

नदियों का डेल्टा क्षेत्र भी उच्च संकटग्रस्त क्षेत्रों में से एक है। इनमें से अधिकतर क्षेत्र तो पहले से ही बाढ़ की आशंका से प्रभावित हैं, जिससे इन उपजाऊ कृषि क्षेत्रों पर निर्भर रहने वाले हजारों लोग भी प्रभावित होंगे। समुद्र स्तर में एक मीटर की वृद्धि भी विभिन्न तटीय शहरों एवं अत्यधिक जनसंख्या वाले डेल्टा क्षेत्रों, जैसे- मिश्र, बांग्लादेश, भारत एवं चीन, में बाढ़ ला सकती है जहाँ विश्व की सबसे अधिक चावल की खेती होती है।

4. पारितंत्र एवं जैवविविधता का ह्रास
पेड़-पौधों एवं जीव-जन्तुओं को जलवायु परिवर्तन के साथ तालमेल बनाए रखने हेतु प्रवासन करने के लिये बाध्य होना होगा। जो प्रवासन नहीं कर सकते हैं वे निकट भविष्य में गायब हो जाएँगे। जो ठंडी जलवायु के अनुकूल हैं, वे लुप्त हो जाएगे क्योंकि उनका र्प्यावास भी विलुप्त हो जाएगा। राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों, प्रवाल भित्तियों के लिये क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन गम्भीर खतरा पैदा कर सकता है एवं इसके कारण वहाँ की सम्पन्न जैवविविधता भी प्रभावित होगी।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व में शेष बचे 22 हजार ध्रुवीय भालुओं के लिये जलवायु परिवर्तन ही एक मात्र सबसे बड़ा खतरा है। आर्कटिक में रहने वाले ध्रुवीय भालुओं को अपने प्रमुख शिकार सील को पकड़ने के लिये समुद्री बर्फ की आवश्यकता होती है। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री बर्फ बसन्त के प्रारम्भ में ही पिघल जाती है जिससे ध्रुवीय भालू अत्यधिक वसा संचित करने हेतु लम्बे समय तक शिकार नहीं कर सकेंगे और ग्रीष्मकाल के अन्त तक वे काफी दुर्बल हो जाएँगे तथा अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ होंगे।

5. कृषि उत्पादन
विश्व के वे क्षेत्र जो अभी चावल, गेहूँ एवं अनाजों का उत्पादन कर रहे हैं, वे ग्लोबल वार्मिंग के कारण उतनी मात्रा में उत्पादन करने में असमर्थ हो सकते हैं। इससे खाद्यान्न की उपलब्धता भी प्रभावित होगी।

कुछ क्षेत्रों में वाष्पीकरण में वृद्धि एवं मृदा के शुष्क हो जाने से लम्बे समय तक सूखे जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी। शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता भी बढ़ेगी। गर्म क्षेत्रों में फसलों के कीटग्रस्त व रोगग्रस्त होने तथा खरपतवार के उगने से, कृषि प्रभावित होगी।

समुद्र स्तर में बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप समुद्रतटीय क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जिससे कृषि योग्य भूमि भी नष्ट हो जाएगी। इसके अतिरिक्त समुद्रतटीय एक्वीफर (Aquifer) में खारे पानी के प्रवेश से कृषि उत्पादन भी प्रभावित होगा।

6. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव
आने वाले कुछ वर्षों में लू एवं अन्य उग्र जलवायुवीय परिस्थितियों के कारण होने वाली मौतें कुछ प्रत्यक्ष परिणाम हैं जिनका सामना हम कर सकते हैं। उष्णकटिबन्धीय रोग जैसे मलेरिया, मस्तिष्क ज्वर, पीत ज्वर व डेंगू जैसी बीमारियाँ वर्तमान के शीतोष्ण क्षेत्रों में भी फैलेंगी।

यहाँ यह भी स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को तत्काल रोका या बदला नहीं जा सकता है। ऐसा अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव आने वाले 100 वर्षों तक निरन्तर जारी रहेंगे। ग्रीनहाउस गैसें जो वायुमण्डल में पहले ही उत्सर्जित हो चुकी हैं वे इतनी जल्दी समाप्त नहीं होंगी। ये सभी गैसें दीर्घकाल तक वायुमण्डल में रहेंगी। जैसे मीथेन दशकों तक, कार्बन डाइऑक्साइड कुछ शताब्दियों तक, अन्य गैसें जैसे परफ्लोरो कार्बन हजारों सालों तक वायुमण्डल में रहेंगी।

यहाँ तक कि यदि हम कल ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोक दें तब भी जलवायु निरन्तर परिवर्तित होती रहेगी और साथ-ही-साथ हमारे ग्रह का जीवन भी प्रभावित होता रहेगा।

 

 

 

 

 

ग्रीन हाउस गैसें वायुमण्डल में कब उत्सर्जित होती हैं?

जब हम

1. टी.वी. देखते हैं।

2. वीडियो गेम खेलते हैं।

3 लाइट जलाते हैं।

4. म्यूजिक सिस्टम चलाते हैं।

5. वॉशिंग मशीन का प्रयोग करते हैं।

6. माइक्रोवेव अवन का प्रयोग करते हैं।

7. एयरकंडीशनर का उपयोग करते हैं।

 

हमें इन सभी उपकरणों को चलाने के लिये बिजली की आवश्यकता होती है। विद्युत संयंत्रों से विद्युत का निर्माण होता है। अधिकतर शक्ति संयंत्र विद्युत निर्माण हेतु कोयले एवं तेल का प्रयोग करते हैं। कोयले एवं तेल के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है जो कि एक ग्रीनहाउस गैस है।

 

क्या कोई चिन्तित है?
कुछ लोग अभी भी ऐसा मानते हैं कि ये बातें केवल कुछ समय के लिये चर्चा में रहेंगी। उन्हें लगता है कि जलवायु परिवर्तन एक अस्थायी प्रक्रिया है कि कुछ समय पश्चात स्वतः खत्म हो जाएगी। अन्य को विश्वास है कि मानव अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर भविष्य में कुछ ऐसी तकनीकों का विकास करने में सक्षम हो जाएँगे जिससे इन सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

परन्तु बहुत से लोग हैं जो इसे गम्भीरता से ले रहे हैं। वैज्ञानिक समूह, सरकारें एवं हमारे जैसे लोग इससे चिन्तित हैं।

क्या किया जाना चाहिए?
जीवाश्म ईंधनों के दहन से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है और यह जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दे रही है। इन ईंधनों का दहन ऊर्जा के लिये किया जाता है और हम भी ऊर्जा का प्रयोग करते हैं। आधुनिक जीवनशैली पूर्णतया ऊर्जा पर निर्भर है। प्रत्येक व्यक्ति ऊर्जा के उपयोग में कमी लाकर ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में सहायता कर सकता है। हालांकि यह कहने में जितना आसान है, करना उतना ही चुनौती भरा है।

आज वैश्विक स्तर पर यह माँग की जा रही है कि कार्बन उत्सर्जन को कम किया जाये। हम सभी जागरूक हों व ऐसी वस्तुओं के उपयोग को कम करके, कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने में सहायक हो सकते हैं।

Box ग्लोबल वार्मिंग के लिये उत्तरदायी विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों में से CO2 एक प्रमुख गैस है। कोयला, पेट्रोल, डीजल, हवाई जहाज कर ईंधन, प्राकृतिक गैस, एल.पी.जी. आदि का CO2 गैस के उत्सर्जन को बढ़ाने में बड़ा योगदान है। इन ईंधनों अथवा इन्हें प्रयुक्त कर तैयार होने वाले उत्पादों का प्रयोग करके हम कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देते हैं।

यहाँ कुछ क्रियाकलापों की सूची दी गई है। छात्रों से इन्हें निम्न प्रकार से चिन्हित करने के लिये कहेंः

✓कार्बन नियंत्रकः ऐसी गतिविधियाँ जो कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में सहायक होती हैं।

✖️ कार्बन वर्धकः ऐसी गतिविधियाँ जो कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि के लिये उत्तरदायी होती हैं।
1. साइकिल चलाना।
2. वृक्षों की कटाई।
3. इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली वस्तुओं का अत्यधिक प्रयोग।
4. कम दूरी के लिये व्यक्तिगत वाहनों का प्रयोग।
5. पेड़ लगाना
6. जब भी औ जहाँ भी सम्भव हो बिजली के उपयोग में कमी लाना
7. सार्वजनिक यातायात साधनों का प्रयोग।
8. दिन के समय प्राकृतिक रोशनी का प्रयोग।
9. जब भी सम्भव हो पैदल चलना।
10. वर्षाजल का संचयन।
11. रोशनी के लिये सीएफएल बल्बों का प्रयोग करना।
12. रोशनी के लिये साधारण बल्बों का प्रयोग करना।
13. आवश्यकता न होने पर विद्युत उपकरणों जैसे कम्प्यूटर एवं म्यूजिक उपकरणों को ‘ऑन’ अथवा ‘स्टैंडबाय मोड’ पर रखना।
14. मौसमी एवं स्थानीय खाद्य पदार्थों का प्रयोग।
15. कूड़े को जलाना।
16. हमेशा कपड़े के थैले का प्रयोग करना।

 

 

 

इंटरगवर्नमेन्टल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेन्ज (IPCC)

 

वर्ष 1988 में विश्व के विभिन्न देशों ने, जलवायु परिवर्तन के सम्बन्ध में सूचना एवं सुझाव प्राप्त करने के लिये, वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों के एक अन्तरराष्ट्रीय निकाय का गठन किया। इस विषय का सन्दर्भ लेने हेतु इस निकाय की रिपोर्ट एक मानक कार्य के रूप में मानी जाती है। आईपीसीसी के प्रमुख श्री आर.के. पचौरी और श्री अल गोर को जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित जागरुकता के प्रचार-प्रसार में किये गए प्रयासों के लिये संयुक्त रूप से वर्ष 2007 के नोबल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

 

लगभग 130 देशों के 2000 से भी अधिक वैज्ञानिकों के प्रयासों के आधार पर आईपीसीसी ने यह घोषणा की कि पिछले 50 वर्षों के दौरान दर्ज की गई पृथ्वी के तापमान में वृद्धि विभिन्न मानवीय गतिविधियों का ही परिणाम है। विश्व की सरकारों ने जलवायु परिवर्तन से जुड़े खतरों के प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। वैज्ञानिकों के समूह ने युनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाईमेट चेन्ज (UNFCCC) का विकास किया। इस कन्वेन्शन का उद्देश्य विश्व के लिये वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सान्द्रता को उस स्तर तक स्थिर करना था जो कि जलवायु में मानवीय हस्तक्षेप के खतरों को कम कर सके।

 

वर्ष 1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन के दौरान सभी सरकारों ने UNFCCC को अपनाया। फ्रेेमवर्क कन्वेन्शन के विभिन्न उद्देश्यों को क्रियान्वित करने के लिये क्योटो प्रोटोकॉल का निर्माण किया गया। IPCC ने इस प्रोटोकॉल के लिये एक वैज्ञानिक सलाहकार निकाय की भूमिका अदा की। इसे प्रथम कानूनी संधिपत्र के रूप में तैयार किया गया था जिसका लक्ष्य प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना है। वर्ष 1997 में 150 से भी अधिक देशों ने इस मूलपत्र पर हस्ताक्षर किये।

 

 

आपका पदचिन्ह कितना बड़ा है?

 

जलवायु परिवर्तन का नजदीकी सम्बन्ध ‘उपभोग’ से है। उपभोग के अन्तर्गत, वस्तुओं और ऊर्जा का अत्यधिक इस्तेमाल शामिल है। यह हमारी जीवनशैली से सम्बन्धित हैः हम क्या खरीदते हैं, हम अपने संसाधनों का कैसे इस्तेमाल करते हैं तथा हम कैसा जीवन जीते हैं? हम कैसे जान सकते हैं कि हम अपनी जीवनशैली के लिये कितनी वस्तुओं तथा ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं?

 

इसकी गणना करने के लिये ‘इको पदचिन्ह कैलकूलेटर’ का प्रयोग किया जाता है। पारिस्थितिकीय पदचिन्ह, पृथ्वी के उपजाऊ भूभाग व जल की मात्रा का वह अनुमान है जो एक व्यक्ति अथवा समूह के लिये आवश्यक संसाधनों की आपूर्ति तथा व्यक्ति अथवा समूह द्वारा उत्सर्जित व्यर्थ पदार्थों को अवशोषित करने में इस्तेमाल होता है। प्रत्येक व्यक्ति का पारिस्थितिकीय पदचिन्ह अवश्य होता है।

 

आपकी जीवनशैली ही निर्धारित करती है कि आपका पारिस्थितिकीय पदचिन्ह कितना छोटा या बड़ा है...अपने इको पदचिन्ह की गणना करने के लिये निम्नलिखित वेबसाइट पर लॉग ऑन करेंः

http://www.earthday.net

http://www.ecologicalfootprint.com

http://www.footprintnetwork.org

http://www.myfootprint.org

 

आपकी जीवनशैली के लिये कितनी पृथ्वियों की आवश्यकता होती है?

 

पृथ्वी पर लगभग 8 अरब हेक्टेयर उपजाऊ भूमि उपलब्ध है। यदि इसे 6 अरब से अधिक लोगों के मध्य बाँटा जाये तब हममें से प्रत्येक को लगभग 1.5 हेक्टेयर से भी कम हिस्सा मिलेगा तथा 0.6 हेक्टेयर का उपजाऊ जल क्षेत्र प्राप्त होगा।

 

सही चुने!
अपने हस्तचिन्ह को बढ़ाएँ!अपने पदचिन्ह को घटाएँ!
विश्व आज पारिस्थितिकीय पदचिन्हों को कम करने की आवश्यकता को स्वीकार रहा है। सकारात्मक कार्य ही वर्तमान समय की आश्यकता है। हस्तचिन्ह (हैण्ड प्रिंट), एक व्यक्ति द्वारा किये गए उन कार्यों की गणना का साधन है जो टिकाऊ विकास के लिये आदतों में परिवर्तन को अपनाने के लिये प्रेरित करता है।

व्यक्तियों के प्रतिदिन के कार्य मिलकर वैश्विक प्रभाव डालते हैं, चाहे वह सकारात्मक हों या नकारात्मक। सकारात्मक कार्य टिकाऊपन के तीन पहलुओं पर प्रभाव डालते हैंः पर्यावरण, समाज व अर्थव्यवस्था, तथा वर्तमान समय एवं भविष्य में हमारे ग्रह पर जीवन के लिये आवश्यक परिस्थितियों में सुधार।

हस्तचिन्ह का विकास एक ऐसे साधन के रूप में किया गया है जो व्यक्ति विशेष के सकारात्मक कार्यों के प्रभावों का आकलन करने के लिये उपयोगी है।

हम क्या कर सकते हैं?
जलवायु परिवर्तन वास्तव में हो रहा है जिस पर हम सभी को ध्यान देने की आवश्यकता है। हम बदलाव लाने के लिये कुछ छोटे-छोटे कार्य कर सकते हैं। कार या बिजली का इस्तेमाल करना गलत नहीं है! ऊर्जा को लापरवाही से इस्तेमाल करना या बर्बाद करना गलत है। हममें से प्रत्येक को अपने चुनावों और जीवनशैली के चयन के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार होना होगा।

बिजली बचाएँ
हम जब कभी भी बिजली का उपयोग करते हैं, तब ग्रीनहाउस गैसों को हवा में उत्सर्जित करते हैं। रोशनी के उपकरण, टीवी, कम्प्यूटर आदि जब प्रयोग में न हों, तब उनको बन्द करके हम काफी हद तक इस उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं। यह निश्चित रूप से ऊर्जा और पैसों की बचत में मदद करेगा।

बस व साइकिल का प्रयोग करें तथा पैदल चलें।
सड़क पर जितनी अधिक कारें होंगी, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन उतना ही अधिक होगा। कोशिश करें कि एक ही गंतव्य स्थान तक जाने के लिये दो या अधिक लोग एक ही कार का प्रयोग करें। जहाँ भी सम्भव हो बस या ट्रेन से सफर करें। कम दूरी की यात्रा के लिये पैदल चलें अथवा साइकिल का प्रयोग करें।

बदलाव लाएँ।
अपने माता-पिता से अनुरोध करें कि वे अपने वाहन चलाने की आदत में परिवर्तन लाएँ। वाहन को आराम से और निर्धारित गति सीमा में चलाएँ तथा अपने वाहनों की नियमित रूप से जाँच करवाएँ। जब कभी भी नया वाहन खरीदने की योजना बना रहे हों तो पर्यावरण हितैषी एवं ईंधन की कम खपत वाले वाहन के लिये बाजार का सर्वेक्षण करें।

संसाधन मितव्ययी बनें!
अपने घर एवं विद्यालयों में ऊर्जा को संरक्षित करें।
जल बचाएँ, कागज बचाएँ।
कचरे में कमी लाएँ- जहाँ तक सम्भव हो वस्तुओं का पुनःचक्रण व पुनः प्रयोग करें तथा जो जरूरी न हो (जैसे प्लास्टिक के थैले, अतिरिक्त पैकेजिंग वाले उत्पाद) उसे अस्वीकार करें।कचरे को कभी न जलाएँ। कम्पोस्ट खाद बनाएँ।

अपने बिजली के उपकरणों को अच्छी दशा में रखें- एसी के एयरफिल्टर को स्वच्छ रखें, फ्रिज के क्वायल व ट्यूबलाइट के ऊपर धूल न जमने दें। गर्म और ठंडा रखने के लिये कृत्रिम साधनों का प्रयोग कम-से-कम करें। जहाँ तक सम्भव हो घरों में प्राकृतिक रोशनी व वायु संचार की व्यवस्था करें।

स्थानीय उत्पादों को खरीदें।
स्थानीय बाजार से ताजा खाद्य पदार्थों को खरीदें। पैक किये हुए, संरक्षित और आयातित वस्तुओं के प्रयोग से बचें। दूरस्थ स्थानों से ट्रकों व हवाई जहाजों द्वारा लाये गए उत्पादों, चाहे वे देश से ही हों अथवा देश के बाहर से, के परिवहन में अत्यधिक ईंधन एवं भण्डारण के लिये ज्यादा मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

एक जिम्मेदार उपभोक्ता बनें!
ऐसे उत्पादों तथा ऐसी सेवाओं का चयन करें जो पर्यावरण हितैषी तथा ऊर्जा मितव्ययी तरीकों द्वारा निर्मित हो। क्यों न हम सौन ऊर्जा पर आधारित वाटर हीटर, कूकर जैसे उपकरणों को अपनाएँ। इसमें न तो जीवाश्म ईंधन चाहिए और न ही किसी गैस का उत्सर्जन होगा। सिर्फ सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होगी।

वृक्ष लगाएँ, वृक्ष बचाएँ।
वायु से कार्बन डाइआक्साइड को अवशोषित करने में वृक्षों की बड़ी भूमिका है। आप जो भी वृक्ष कटने से बचाते या लगाते हैं और उसकी सेवा करते हैं वह वृक्ष जीवन भर कार्बन डाइआक्साइड सोखने का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त वह प्राकृतिक सौन्दर्य, छाया, आवास तथा भोजन प्रदान करता है, साथ ही मिट्टी को बाँधकर स्वस्थ बनाए रखता है।

जलवायु परिवर्तन के बारे में सीखें!
इस पुस्तिका से शुरुआत कर, और अधिक जानकारी एकत्रित करें। आपने जो कुछ भी सीखा और जाना है उससे परिवार और मित्रों को भी अवगत कराएँ। छात्रों को प्रोत्साहित करें कि वे अपनी जानकारियों को अपने परिवार के साथ अवश्य बाँटें।

एचएसबीसी (HSBC) और टिकाऊ विकास
भारत में HSBC द्वारा टिकाऊ विकास के लिये प्रदान सेवाओं में आर्थिक एवं पर्यावरण सम्बन्धी प्रवृत्तियाँ शामिल हैं। हमारी वित्तीय मदद में सुविधा से वंचित बच्चों को शिक्षा सम्बन्धी सहायता, सुविधाहीन युवा वर्ग को जीवन-कौशल प्रशिक्षण देना, अधिकारहीन ग्रामीण समुदायों की महिलाओं में आर्थिक साक्षरता और उद्यमिता का विकास करना समाविष्ट हैं। HSBC के पर्यावरणीय पहल के अन्तर्गत जल संग्रह, जैवविविधता व पर्यावास का रक्षण तथा जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरुकता बढ़ाना, शामिल हैं।

HSBC ने विश्व भर में जलवायु परिवर्तन सम्बन्धित पहल की हैं, जिनमें शामिल हैंः HSBC जलवायु साझेदारी, HSBC जलवायु विश्वास मॉनिटर, HSBC वैश्विक पर्यावरणीय क्षमता कार्यक्रम, HSBC वैश्विक जलवायु परिवर्तन आधारित अनुक्रम और HSBC जलवायु परिवर्तन कोष। HSBC जलवायु साझेदारी भारत में जनवरी 2008 में शुरू की गई जो अर्थवॉच, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ, क्लाइमेट ग्रुप और स्मिथसोनियन ट्रॉपिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट का समर्थन करती है। यह संशोधन संस्थाओं, व्यापारिक संस्थाओं और व्यक्तियों के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के असरों को कम करने का कार्य कर रही है।

अप्रैल 2008 में HSBC ने भारत में ‘अर्थ साइंस फोरम’ प्रारम्भ किया। यह HSBC तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय और मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेस, भारत सरकार के बीच की गई प्रथम सार्वजनिक- निजी भागीदारी थी, जो जलवायु परिवर्तन के सुसंगत हल ढूँढने के लिये स्थापित की गई। इस संगठन का मुख्य कार्य अनुकूलन और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम करने की रणनीति बनाना, नीति में बदलाव की सिफारिश करना, प्रगतिशील खोज का प्रदर्शन करना और उद्योगों के बीच योग्य तालमेल बिठाना तथा संचार माध्यम के फैलाव के द्वारा जलवायु परिवर्तन के उपाय ढूँढना है।

संस्था परिचय
2008 सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन
सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एजुकेशन (सी.ई.ई.) पर्यावरण एवं वन, मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समर्थित पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत, एक उत्कृष्ट राष्ट्रीय संस्था है, जो नेहरू फाउंडेशन फॉर डेवलपमेंट से सम्बद्ध है। सी.ई.ई. का मुख्य उद्देश्य बच्चों, युवाओं, निर्णयकर्ताओं एवं सामान्य जन समुदाय को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है। सी.ई.ई. द्वारा ऐसे नवीन कार्यक्रमों, सामग्रियों तथा मॉडलों का विकास किया जाता है जो स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप अपनाये जा सकते हों।

अधिक जानकारी के लिये
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HSBC Corporate Sustainability Team in India
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