जैतून की खेती करके पानी की बचत कर रहे हैं राजस्थान के किसान

Submitted by Editorial Team on Sat, 07/06/2019 - 13:58
Source
कृषि चौपाल, जून 2019 

जैतून के तेल उत्पादन के सूखे को दूर करेगी।जैतून के तेल उत्पादन के सूखे को दूर करेगी।

राजस्थान की मरुभूमि भारत में जैतून के तेल उत्पादन के सूखे को दूर करेगी। इस कहानी की भूमिका राजस्थान में जैतून के हरे-भरे पेड़ों की खेती लिख रही है। एक किसान पेड़ की शाखाओं पर लगे जैतून की तरफ इशारा करते हुए कहता है कि ‘उनकी तरफ देखो वे हरे हैं। धीरे-धीरे वे लाल हो जाएंगे और कुछ ही महीनों में जैतून की फसल तैयार हो जाएगी। उसके बाद तेल निकालने का काम शुरू हो जाएगा।

महत्वाकांक्षी परियोजना

भारत इस महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से जैतून तेल उत्पादन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अग्रणी देश बनना चाहता है। राजस्थान इसके उत्पादन से स्पेन, इटली और ग्रीस को चुनौती देने के लिए तैयार हो रहा है। राजस्थान सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त ऑलिव कल्टीवेशन लिमिटेड के योगेश वर्मा कहते हैं कि ‘एजेंसी इस प्रोजेक्ट को विस्तार देने के लिए काम कर रही है। 2008 से अब तक 1 लाख 44 हजार जैतून के पेड़ लगाए जा चुके हैं’। इसके पेड़ लगभग 260 हेक्टेयर में सरकारी और निजी भूमि पर लगाए गए हैं। राजस्थान की लंबी गर्मी और सर्दियों का छोटा मौसम जैतून के उत्पादन के अनुकूल माने जाते हैं। ऐसे मौसम में जैतून के पेड़ तेजी से विकसित होते हैं।

राजस्थान में जैतून की खेती के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। जो ग्रीस के कुल क्षेत्रफल से ढाई गुना ज्यादा है। ग्रीस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जैतून उत्पादक देश है। जैतून के तेल का उत्पादन करने के लिए इटली से एक रिफाइनरी लाई जा रही है। इससे भारत के घरेलू बाजारों में जैतून के तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। मैड्रिड के इंटरनेशनल ऑलिव काउंसलिंग के आंकड़ों के अनुसार स्पेन और इटली से जैतून के तेल का अधिकांश आयात होता है।

खेती के लिए सब्सिडी

योगेश बताते हैं कि 2007 में किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि यहां जैतून का उत्पादन हो सकता है लेकिन जैतून की खेती में होने वाली तूरी को देखा जा सकता है। ये तो बस शुरुआत है अगले तीन सालों में जैतून की खेती को 5,000 हेक्टेयर तक बढ़ाने की योजना है। बहुत सारे किसानों ने जैतून के बारे में पहले कभी सुना भी नहीं था। लेकिन अब वे भी इसकी खेती करने की सोच रहे हैं। किसानों को लुभाने के लिए राजस्थान सरकार किसानों को सब्सिडी दे रही है। जैतून के पेड़ की लागत है 130 रुपए है लेकिन इसके लिए किसानों को केवल 28 रुपए देने पड़ रहे हैं। इसकी खेती की 90 फीसदी लागत ड्रिप सिंचाई व्यवस्था करने में लगती है। यह प्रक्रिया काफी खर्चीली है, लेकिन इससे पानी का प्रभावशाली तरीके इस्तेमाल होता है। 

सिंचाई की समस्या

साहबराम शर्मा की उम्र 55 साल है। पाकिस्तान की सीमा पर स्थित गांव मदेरा में दशकों से वे गेहूं और कपास की खेती करते आ रहे हैं। इसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है। लेकिन अप्रैल में उन्होंने दस एकड़ क्षेत्रफल में जैतून के पेड़ लगाए। अब वे अगस्त महीने में जैतून की खेती के लिए पांच हेक्टेयर की वृद्धि करना चाहते हैं। वे कहते हैं कि राजस्थान में पानी की भारी कमी है, जो खेती के लिए पर्याप्त नहीं हैं। साबराम बताते हैं, ‘जैतून के के बारे काफी समय से जानता हूं इसलिए मैंने जैतून की खेती करने का फैसला किया। मैंने अभी शुरुआत की है, जैतून के पेड़ चार सालों में बड़े हो जाएंगे। मुझे पता है कि जैतून का तेल निकाला जाता है और मैं भी वही करूंगा’।

राजस्थान में जैतून की खेती के विस्तार की अपार संभावनाएं हैं। जो ग्रीस के कुल क्षेत्रफल से ढाई गुना ज्यादा है। ग्रीस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा जैतून उत्पादक देश है। जैतून के तेल का उत्पादन करने के लिए इटली से एक रिफाइनरी लाई जा रही है। इससे भारत के घरेलू बाजारों में जैतून के तेल की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। मैड्रिड के इंटरनेशनल ऑलिव काउंसलिंग के आंकड़ों के अनुसार स्पेन और इटली से जैतून के तेल का अधिकांश आयात होता है। यह अक्टूबर 2012 से फरवरी 2013 के बीच 48 प्रतिशत तक हो गया है।

हर साल 25 टन उत्पादन 

जैतून के तेल से होने वाले स्वास्थ्य पर संभावित सकारात्मक प्रभावों को लेकर भारत में जागरूकता बढ़ रही है। इससे उच्च-निम्न रक्तचाप, दिल की बीमारियों के खतरे और कैंसर के कुछ खास प्रकारों से बचाव होता है।राजस्थान ऑलिव कल्टीवेशन लिमिटेड में काम करने वाले इसराइली कृषि विशेषज्ञ गिड्योन पेग कहते हैं कि ‘जब मैं पहली बार यहां आया था तो एक भी बोतल जैतून का तेल खोजना कठिन था। इसकी छोटी बोतलें, त्वचा संबंधी उपयोग के लिए केवल फार्मेसी पर उपलब्ध है’। जैतून के तेल उत्पादन में लगे किसानों का कहना है कि पानी की कमी जैतून की खेती के विस्तार में प्रमुख बाधा है। योगेश वर्मा कहते हैं कि सितंबर से हर साल 25 टन जैतून के तेल का उत्पादन होने की उम्मीद है। जैतून का तेल अगले साल से भारतीय दुकानों में उपलब्ध हो जाएगा। नई दिल्ली के सुपर मार्केट में उच्च स्तर का जैतून तेल 750 रुपए में मिलता है। ऐसी उम्मीद है कि घरेलू स्तर पर उत्पादन के बाद कीमतें नीचें गिरेंगी और अधिकांश आबादी इसका उपयोग कर सकेगी। 

मार्केटिंग की रणनीति

पेग कहते हैं कि उत्पादन के बारे में उत्पादन के बाद की अगली चुनौती राजस्थानी जैतून के तेल के मार्केटिंग की होगी। स्पेन जैतून के तेल का सबसे बड़ा उत्पादक है। पिछले साल उसने दुनिया के 50 फीसद तेल का उत्पादन किया। जैतून के तेल को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ावा देने के लिए लाखों डाॅलर खर्च किए।  भारत को भी अपनी अंतरराष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उसी तरह की रणनीति अपनानी होगी। इंडियन ऑलिव एसोसिएशन के प्रमुख और लियोनार्दो ऑलिव ब्रांड के मालिक वीएम डालमिया का मानना है कि उपभोग की किसी भी वस्तु के लिए मार्केटिंग प्रोग्राम और सेल्स नेटवर्क की जरूरत होती है। राजस्थान के जैतून तेल को निम्न गुणवत्ता का समझे जाने की छवि से बाहर निकालना होगा।