छोटी नदियां बड़ी नदियों के प्रवाह में अहम भूमिका निभाती हैं। जब छोटी नदियां सूखने लगती हैं तो इसका मतलब है कि बड़ी नदी का अस्तित्व संकट में है। इस समय तो वैसे भी भारत जल संकट के सबसे बुरे वक्त से गुजर रहे हैं। आज से 20-30 साल पहले नदियां भी थीं और उनमें पानी भी था। आज तो नदियों में पानी न के बराबर दिख रहा है, कई नदियां तो नाले का रूप ले चुकी हैं। ऐसी ही एक नदी है, कालीसिंध। प्रशासन और लोगों की अपेक्षा की वजह से ये नदी अस्तित्व से गायब हो चली थी। लेकिन जनता ने इस नदी को बचाने का बीड़ा उठाया और आज सदानीरा कालीसिंध फिर से जीवित हो गई है।
नाले में तब्दील हो गई थी- कालीसिंध
कालीसिंध नदी चंबल नदी की सहायक नदी है। कालीसिंध का उद्गम स्थल मध्य प्रदेश के देवास जिले के बागली गांव में है। बागली से निकलर कालीसिंध शाजापुर और राजगढ़ जिले से प्रवाहित होकर राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान के झालावाड़ और कोटा से बहती हुई नौनेरा नामक जगह पर चंबल नदी में मिल जाती है।कालीसिंध मध्य प्रदेश के देवास की प्रमुख नदी है लेकिन देश की सभी नदियों की तरह इसको भी लोगों ने गंदे नाले में तब्दील कर दिया था। बढ़ती आधुनिकता और जनसंख्या ने संवेदनशीलता खो दी है और उसकी जगह स्वार्थ ने ले ली है। न तो प्रशासन ने इस पर ज्यादा ध्यान दिया और न ही लोगों ने। जिसका नतीजा ये हुआ कि कभी स्वच्छ रहने वाली कालीसिंध ने नाले का रूप ले लिया।
लोगों के सहयोग से नदी से 2,000 ट्राॅली गाद निकाली गई। करीब एक किलोमीटर तक नदी को 20 मीटर चौड़ा और 8 फीट गहरा किया गया। इस काम में पैसे भी खर्च हुआ, उसके लिए भी लोगों ने हाथ नहीं सिकोड़े। मातृ शक्ति समूह की महिलाओं ने घर-घर जाकर इस काम के लिए चंदा जमा किया। दो लाख रुपए जोडे और समिति में जमा कर दिए गये। इन रुपयों से नदी का बंधान किया जाएगा। इसके लिए रणजीत बांध पर गेट लगाने की जुगत में हैं जिससे बारिश के समय पानी को रोका जा सके। इस बार जब पहली बारिश हुई तो नदी की रंगत ही बदल गई है।
अमोदिया गांव के लोगों ने कालीसिंध को बचाने के लिए शासन-प्रशासन से कई बार गुहार भी लगाई। लेकिन जब सरकार नहीं मानी तो बागली के दस नौजवानों ने खुद ही इसे बचाने का बीड़ा उठा लिया। बीते सालों में कालीसिंध की दुर्दशा हुई है। कभी ये नदी इस इलाके की पहचान हुआ करती थी, गरमियों के दिनों में भी नदी जल से लबालब रहती थी। लेकिन कुछ सालों में स्थिति ऐसी हो गई थी कि बरसात में कालीसिंध लबालब रहती है और सदियां आते-आते पूरी तरह से सूख जाती थी। जिस वजह से इलाके के लोगों को एक बड़े जल संकट से जूझना पड़ता था। इस बार जल संकट से बचने के लिए इलाके के दस युवाओं ने तैयारी की।
दिसंबर में उन्होंने एक अभियान चलाया। उन युवाओं ने नदी के उदगम स्थल अमोदिया में सफाई करनी शुरू कर दी। इन युवाओं ने नदी के उद्गम स्थल में उगी झांड़ियां और कचरे को साफ करके एक रास्ता बना दिया। युवाओं की इस पहल को देखकर प्रशासन भी हरकत में आ गया, उसने वहीं पर जेसीबी से सफाई कर डाली। उस सफाई अभियान से उद्गम स्थल साफ तो हुआ ही, गहरा भी हो गया। ये तो बस अभियान की शुरूआत भर ही थे, इसके बाद तो पूरे इलाके में गहरीकरण होने लगा। बागली के पास ही रणजीत बांध है लोगों ने वहां से नदी क्षेत्र को गहरा करने की जिम्मा अपने सर पर ले लिया।
लोगों ने साफ करने का उठाया बीड़ा
लोगों के सहयोग से नदी से 2,000 ट्राॅली गाद निकाली गई। करीब एक किलोमीटर तक नदी को 20 मीटर चौड़ा और 8 फीट गहरा किया गया। इस काम में पैसे भी खर्च हुआ, उसके लिए भी लोगों ने हाथ नहीं सिकोड़े। मातृ शक्ति समूह की महिलाओं ने घर-घर जाकर इस काम के लिए चंदा जमा किया। दो लाख रुपए जोडे और समिति में जमा कर दिए गये। इन रुपयों से नदी का बंधान किया जाएगा। इसके लिए रणजीत बांध पर गेट लगाने की जुगत में हैं जिससे बारिश के समय पानी को रोका जा सके। इस बार जब पहली बारिश हुई तो नदी की रंगत ही बदल गई है। अभी तो मानसून भी पूरी तरह से आया नहीं है। पिछले 20 सालों में प्रशासन की अनदेखी की वजह से मध्य प्रदेश के इस इलाके में जल संकट बढ़ता ही जा रहा था।
लोगों को अपनी इस सफलता पर कहना है कि हमने प्रशासन से खूब गुहार लगाई लेकिन उन्होंने हमारी एक नहीं सुनी। अब हम सरकार के भरोसे नहीं बैठेंगे, खुद के खर्चे से गेट लगाकर जल संग्रहण भी कर लेंगे। अब तक लोगों की मदद से एक किलोमीटर के दायरे तक गहरा किया जा चुका है। इस बार अनुमान लगाया जा रहा कि इस बार कालीसिंध नदी में बरसात के बाद चार महीने से भी ज्यादा तक पानी भरा रह सकता है। वहीं रणजीत बांध में 50 लाख लीटर पानी जमा हो सकेगा। जो कालीसिंध के सूखने पर तो काम आएगा ही साथ में इलाके के कुंओं और तालाबों केे जलस्तर को बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
नदी अब पहले की तरह सदानीरा हो गई है, लोगों को विश्वास है कि वे अपनी मेहनत से इसको ऐसे ही बनाए रखेंगे। नदी के पुनर्जीवित होने और अपनी सफलता के लिए लोग उत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं। कालीसिंध नदी के क्षेत्र को हरा-भरा करने के लिए नदी के किनारे पौधे लगाये जाएंगे। नदी में पानी होने से अब सुबह-शाम यहां लोगों की चहलकदमी देखी जा सकती है। सूख चुकी नदी को फिर से लबालब देखकर लोग बहुत खुश हैं, उनके लिए ये दृश्य बहुत खास है।