यदि हमारी खेती प्रमाणिक तौर पर 100 फीसदी जैविक हो जाये, तो क्या हो? यह सोचते ही मेरे मन में सबसे पहले जो कोलाज उभरता है, उसमें स्वाद भी है, गन्ध भी, सुगन्ध भी तथा इंसान, जानवर और खुद खेती की बेहतर होती सेहत भी। इस चित्र के लिये एक टैगलाइन भी लिखी है - “अब खेती और किसान पर कोई तोहमत न लगाए कि मिट्टी, भूजल और नदी को प्रदूषित करने में उनका भी योगदान है।’’
अभी यह सिर्फ एक कागजी कोलाज है। जमीन पर पूरी तरह कब उतरेगा, पता नहीं। किन्तु यह सम्भव है। सिक्किम ने इस बात का भरोसा दिला दिया है। उसने पहल कर दी है। जब भारत का कोई राज्य अपने किसी एक मण्डल को सौ फीसदी जैविक कृषि क्षेत्र घोषित करने की स्थिति में नहीं है, ऐसे में कोई राज्य 100 फीसदी जैविक कृषि राज्य होने का दावा करे; यह बात हजम नहीं होती। लेकिन दावा प्रमाणिक है, तो शक करने का कोई विशेष कारण भी नहीं बनता।
100 फीसदी जैविक कृषि राज्य सिक्किम
हालांकि सिक्किम के किसान सिंथेटिक उर्वरकों पर पहले भी पूरी तरह निर्भर नहीं थे, लेकिन रासायनिक उर्वरकों का उपयोग तो करते ही थे। सिक्किम, अब प्रमाणिक तौर पर भारत का पहला 100 फीसदी जैविक राज्य बन गया है। सिक्किम ने अपनी 75 हजार हेक्टेयर की कुल टिकाऊ कृषि भूमि को प्रमाणिक तौर पर जैविक कृषि क्षेत्र में तब्दील कर दिया है। सिक्किम ने यह सचमुच एक बड़ा करतब कर दिखाया है। 18 जनवरी, 2016 को ‘गंगटोक एग्री समिट’ के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी बाकायदा औपचारिक घोषणा की थी। उन्होंने शाबाशी दी थी - “सिक्किम ने कृषि का मतलब बदल दिया है।’’ प्रधानमंत्री की दी शाबाशी और सिक्किम की उपलब्धि एक वर्ष पुरानी जरूर है, लेकिन इसकी सीख आज भी प्रासंगिक है और अनुकरणीय भी।
सिक्किम, रेल और व्यावसायिक हवाई जहाज से जुड़ाव के मामले में कमजोर राज्य है। सिक्किम की आबादी भी मात्र साढ़े छह लाख है। सिक्किम राज्य में दर्ज 889:1000 महिला-पुरुष लिंग अनुपात काफी असन्तुलित है। सिक्किम की पहचान किसी खास उत्पाद के औद्योगिक राज्य की भी नहीं है। लेकिन 80 प्रतिशत आबादी के ग्रामीण होने के कारण सिक्किम ने जैविक खेती को इतनी अधिक तरजीह दी कि आज वह एक नजीर बन गया है। जैविक अदरक, हल्दी, इलायची, फूल, किवी, मक्का, बेबी काॅर्न तथा गैर मौसमी सब्जियाँ सिक्किम की खासियत हैं। आप चाहें तो दिल्ली के ग्रेटर कैलाश स्थित सिक्किम आर्गेनिक रिटेल आउटलेट पर इसकी प्रमाणिकता जाँच सकते हैं। आज भारत के कुल प्रमाणित जैविक कृषि उत्पादन (135 लाख टन) में छोटे से सिक्किम का बड़ा योगदान है। ऐसा करने में सिक्किम 13 वर्ष लगे। ‘राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम’ में सभी राज्य शामिल हैं, किन्तु सिर्फ सिक्किम ही ऐसा क्यों कर पाया? आइए, जानते हैं।
राजनीतिक संकल्प पर खड़ी बुनियाद
सिक्किम ऐसा इसलिये कर पाया, चूँकि उसने एक दूरदृष्टि सपना लिया और ईमानदार कोशिश की। मुख्यमंत्री श्री पवन चामलिंग के नेतृत्व वाली सरकार ने वर्ष 2003 में ऐसा करना तय किया था। विधानसभा में घोषणा की। कार्ययोजना बनाई। पहले कदम के रूप में कृत्रिम रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की बिक्री पर भी प्रतिबन्ध घोषित किया। कृषि में इनके प्रयोग पर पूरी रोक का कानून बनाया। उल्लंघनकर्ता पर एक लाख रुपए जुर्माना और अथवा तीन माह की कैद दोनों का प्रावधान किया। सिक्किम सरकार ने सिर्फ कानून ही नहीं बनाया, उसे लागू करने का संकल्प भी दिखाया।
सधे कदमों ने साधा लक्ष्य
सरकार ने सिक्किम राज्य जैविक बोर्ड का गठन किया। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, चाय बोर्ड, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, मसाला बोर्ड, नाबार्ड, सिक्किम सहकारी, पुष्प बूटी के राष्ट्रीय शोध केन्द्र, स्विटजरलैण्ड के जैविक अनुसन्धान संस्थान ‘फिबिल’ के अलावा कई अन्य से राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय साझेदारियाँ कीं। सिक्किम आर्गेनिक मिशन बनाया। आर्गेनिक फार्म स्कूल बनाए। घर-घर में केंचुआ खाद इकाई, पोषण प्रबन्धन, ईएम तकनीक, एकीकृत कीट प्रबन्धन, मृदा परीक्षण प्रयोगशाला, अम्लीय भूमि उपचार, जैविक पैकिंग से लेकर प्रमाणीकरण तक सभी पहलुओं की उपलब्धता तथा इनके प्रति जागृति सुनिश्चित की।
शुरुआत में 400 गाँवों को गोद लिया। इन्हें ‘बायो विलेज’ की श्रेणी में लाने का लक्ष्य रखा। वर्ष 2006-2007 आते-आते केन्द्र सरकार से मिलने वाला रायानिक उर्वरक का कोटा उठाना बन्द कर दिया। बदले में बडे़ स्तर पर जैविक खाद किसानों को मुहैया करानी शुरू की। जैविक बीज उत्पादन हेतु नर्सरियाँ लगाईं। स्वयं किसानों को जैविक बीज-खाद उत्पादन हेतु प्रेरित किया। सरकार के संकल्प के चलते किसान जैविक खेती के लिये मजबूर भी हुए औैर प्रेरित भी। वर्ष 2009 तक चार जिलों के 14000 किसान परिवार अपनी 14 हजार एकड़ कृषि भूमि की उपज के लिये जैविक प्रमाणपत्र हासिल करने में सफल रहे। फिर 2010-11 से 2012-13 तक प्रति वर्ष क्रमश 18 हजार, 18 हजार और 14 हजार किसान परिवारों की खेती को प्रमाणित करने का लक्ष्य बनाया। 2010 में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी। निगरानी और समन्वय के काम को गति देने के लिये सिक्किम सरकार ने नोडल एजेंसी के रूप में ‘सिक्किम आॅर्गेनिक मिशन’ का गठन भी किया।
महत्त्वपूर्ण दर्जा - सम्मानित नेतृत्व
निस्सन्देह, जैविक गाँव, बीज-खाद-कीटनाशक, तकनीक, प्रशिक्षण, जरूरी ढाँचे, जरूरी कार्यबल, वानिकी, प्रमाणीकरण, बिक्री व्यवस्था तथा सरकार व समाज के आपसी विश्वास, साझेदारी व कुशल प्रबन्धन के कारण ही सिक्किम को मिला प्रथम जैविक राज्य का दर्जा हासिल कर सका है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते दुष्प्रभाव, भारत में बढ़ते बंजर क्षेत्र, कृषि में कृत्रिम रसायनों के इस्तेमाल के कारण जीव, मृदा, जल व अन्य वनस्पतियों की बर्बाद होती सेहत के इस दौर में इस दर्जे का सचमुच एक विशेष महत्त्व है। इस दर्जे को हासिल करने की शासकीय कोशिशों के लिये सिक्किम के मुख्यमंत्री श्री पवन चामलिंग को ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट लीडरशिप अवार्ड’ से सम्मानित भी किया गया।
गौर कीजिए कि आप भले ही जैविक खेती करते हों। किन्तु इसे जैविक सिद्ध करने के लिये एक प्रमाणपत्र लेना होता है। प्रमाणीकरण का काम राज्य, राष्ट्र तथा अन्तरराष्ट्रीय तीनों स्तर पर होता है। भारत में जैविक प्रमाणपत्र जारी करने के लिये मात्र 30 एजेंसियों को मान्यता दी जा सकी है। उत्पाद को निर्यात करना हो, तो जैविक प्रमाणपत्र देने का काम ‘एग्रीकल्चरल फुड प्रोसेस्ड फुड्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथाॅरिटी ‘एपीडा’ करती है। एपीडा, भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अन्तर्गत गठित एक प्राधिकरण है।
क्यों जरूरी जैविक प्रमाणीकरण?
जैविक प्रमाणपत्र लेने की एक प्रक्रिया है। इसके लिये आवेदन करना होता है; फीस देनी होती है। प्रमाणपत्र लेने से पूर्व मिट्टी, खाद, बीज, बोआई, सिंचाई, कीटनाशक, कटाई, पैकिंग, भण्डारण समेत हर कदम का जैविक सामग्री और पद्धति से निर्वाह किया जाना अनिवार्य है। यह साबित करने के लिये हर कदम और उपयोग की गई सामग्री का रिकाॅर्ड रखना भी अनिवार्य होता है। इस रिकाॅर्ड की प्रमाणिकता की बाकायदा जाँच होती है। उसके बाद ही खेत व उपज को जैविक होने का प्रमाणपत्र मिलता है। इस प्रमाणपत्र को हासिल करने के बाद ही किसी उत्पाद को ‘जैविक उत्पाद’ की औपचारिक घोषणा के साथ बेचा जा सकता है। इस औपचारिक घोषणा के साथ बेचे जाने वाले जैविक उत्पाद अन्य की तुलना में ज्यादा बिकते हैं।
प्रेरित राज्य
वर्ष 2015-16 के आँकड़ों के मुतािबक भारत की 57.1 लाख हेक्टेयर भूमि पर होने वाले उत्पादों को प्रमाणिक तौर पर जैविक घोषित किया जा चुका है। इसमें से 42.2 लाख हेक्टेयर तो वनभूमि है। जैविक खेती क्षेत्र के रूप में प्रमाणिक भूमि 14.9 लाख हेक्टेयर है। हालांकि प्रमाणिक जैविक खेती का सबसे अधिक रकबा मध्य प्रदेश में है। रकबे की दृष्टि से हिमाचल और राजस्थान का नम्बर क्रमशः दूसरा और तीसरा है। उड़ीसा और आन्ध्र प्रदेश ने भी इस दिशा में तेजी से कदम आगे बढ़ा दिये हैं। सिक्क्मि की सफलता से प्रेरित हो केरल, मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश भी पूर्ण जैविक खेती प्रदेश होने की दौड़ में आगे निकलते दिखाई दे रहे हैं। जैविक उत्पादों का भारतीय बाजार अभी भले ही बहुत न हो, लेकिन जैविक उत्पादों की निर्यात की सम्भावनाएँ बराबर बढ़ती जा रही हैं।
बढ़ता बाजार
सुखद है कि दुनिया में अब जैविक उत्पादों की माँग बढ़ रही है। 2015 के एक आकलन के अनुसार, जैविक खाद्य पदार्थ और पेय का अन्तरराष्ट्रीय बाजार करीब 32 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का है। अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस इसके बड़े माँग क्षेत्र हैं। यूरोप और चीन का नम्बर इनके बाद है। प्रति व्यक्ति खपत के लिहाज से स्विटजरलैण्ड, डेनमार्क और लक्समबर्ग अग्रणी हैं। इसकी पूर्ति के लिये आज दुनिया के 170 देशों की करीब 431 लाख हेक्टेयर भूमि को प्रमाणिक जैविक कृषि क्षेत्र में बदला जा चुका है। हालांकि यह रकबा कृषि उपयोग में आ रही कुल वैश्विक भूमि का मात्र एक फीसदी है। इस रकबे में ओसिनिया, यूरोप और लेटिन अमेरिका के बाद क्रमशः एशिया, उत्तरी अमेरिका तथा अफ्रीका का योगदान सबसे ज्यादा है। आॅस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और अमेरिका ने अपनी-अपनी भूमि को जैविक रूप में ज्यादा बचाकर रखा है। निश्चित तौर पर इसमें खेती के अलावा जंगल का रकबा भी शामिल है। यह भले ही बाजार का एजेंडा हो। लेकिन यह सेहत और पर्यावरण के संरक्षण के लिये हितकर एजेंडा भी है। देशी खेती और खेतिहर को ताकत देने में भी इससे मदद मिलेगी, बशर्ते बाजार का घोड़ा ढाई घर चलने की बजाय, बेलगाम वजीर की तरह न चलने लग जाये।