जैवविविधता अधिनियम, 2002 (Biological Diversity Act, 2002)

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(2003 का अधिनियम संख्यांक 18)


(5 फरवरी, 2003)


जैवविविधता के संरक्षण, इसके अवयवों के सतत उपयोग और जैव संसाधनों, ज्ञान के उपयोग से उद्भूत फायदों से उचित और साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने और उससे सम्बन्धित या उसके आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

भारत जैवविविधता और उससे सम्बन्धित सहबद्ध पारम्परिक और समसामयिक ज्ञान पद्धति में समृद्ध है:

और भारत 5 जून, 1992 को रियो डी जेनेरो में हस्ताक्षर किये गए जैवविविधता से सम्बन्धित संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन मे एक पक्षकार हैः

और उक्त कन्वेशन 29 दिसम्बर, 1993 को प्रवृत्त हुआः

और उक्त कन्वेशन में राज्यों के अपने जैव संसाधनों पर सम्प्रभु अधिकारों की पुनः अभिपुष्टि की गई हैःऔर उक्त कन्वेशन का मुख्य उद्देश्य जैवविविधता का संरक्षण, इसके अवयवों का सतत उपयोग और आनुवंशिक संसाधनों के उपयोग से उद्भूत फायदों में उचित और साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाना हैः

और आनुवांषिक संसाधनों के संरक्षण, सतत उपयोग और उनके उपयोग से उद्भूत फायदे में साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने और उक्त कन्वेशन को प्रभावी करने के लिये भी उपबन्ध करना आवश्यक समझा गया हैः

भारत गणराज्य के तिरपनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखत रूप में यह अधिनियमित हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम जैवविविधता अधिनियम, 2002 है।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

परन्तु इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिये भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवर्तन में आने के प्रति निर्देश है।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “फायदे के दावेदार” से जैव संसाधनों, उनके उपोत्पादों के संरक्षक, ऐसे जैव संसाधनों के उपयोग, ऐसे उपयोग और उपयोजन से सहबद्ध नवपरिवर्तनों तथा व्यवहारों से सम्बन्धित ज्ञान और जानकारी के सर्जक और धारक अभिप्रेत हैः
(ख) “जैवविविधता” से सभी संसाधनों से सप्राण जीवों के बीच परिवर्तनशीलता और पारिस्थितिक जटिलताएँ जिनके वे भाग हैं अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत प्रजातियों में या प्रजातियों और पारिस्थितिक प्रणालियों के बीच विविधता भी है:
(ग) “जैव संसाधनों” से पौधे, जीव-जन्तु और सूक्ष्म जीव या उनके भाग, वास्तविक या सम्भावित उपयोग या मूल्य सहित उनके आनुवंशिक पदार्थ और उपोत्पाद (मूल्य वर्धित उत्पादों को छोड़कर) अभिप्रेत है किन्तु इसके अन्तर्गत मानव आनुवंशिक पदार्थ नही हैः
(घ) “जैव सर्वेक्षण और जैविक उपयोग” से किसी प्रयोजन के लिये जैव संसाधनों की प्रजातियों, उपप्रजातियों, जीन, अवयवों और सत्व का सर्वेक्षण या संग्रहण अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अभिलक्षण, वर्णन आविष्करण और जैव आमापन भी है:
(ङ) “अध्यक्ष” से, यथास्थिति, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड का अध्यक्ष अभिप्रेत हैः
(च) “वाणिज्यिक उपयोग” से वाणिज्यिक उपयोग जैसे आनुवंशिक व्यवधान के माध्यम से फसल और पशुधन में सुधार के लिये प्रयुक्त औषधि, औद्योगिक किण्वक, खाद्य सुगन्ध, सुवास, प्रसाधन, पायसीकारक, तैलराल, रंग, सत्त और जीन के लिये जैव संसाधनों का अन्तिम उपयोग अभिप्रेत है किन्तु इसके अन्तर्गत किसी कृषि, बागवानी, कुक्कुट पालन, दुग्ध उद्योग, पशुपालन या मधुमक्खी पालन में उपयोग में आने वाला पारम्परिक प्रजनन या परम्परागत पद्धतियाँ नहीं हैः
(छ) “उचित और साम्यापूर्ण फायदों में हिस्सा बँटाना” से धारा 21 के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा अवधारित फायदों में हिस्सा बँटाना अभिप्रेत हैः
(ज) “स्थाानीय निकायों” से संविधान के अनुच्छेद 243ख के खण्ड (1) और अनुच्छेद 243थ के खण्ड (1) के अर्थान्तर्गत पंचायतें और नगरपालिकाएँ, चाहे उनका कोई नाम हो, और पंचायतों या नगरपालिकाओं के अभाव में संविधान के किसी अन्य उपबन्ध या किसी केन्द्रीय अधिनियम या राज्य अधिनियम के अधीन गठित स्वशासी संस्थाएँ अभिप्रेत हैः
(झ) “सदस्य” से राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अध्यक्ष भी हैः
(ञ) “राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण” से धारा 8 के अधीन स्थापित राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण अभिप्रेत हैः
(ट) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत हैः
(ठ) “विनियम” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैः
(ड) “अनुसन्धान” से किसी जैव संसाधन का अध्ययन या क्रमबद्ध अन्वेषण या उसका प्रौद्योगिकीय उपयोजन अभिप्रेत है जो किसी उपयोग के लिये उत्पादों को बनाने या उपान्तरित करने या प्रक्रियाएँ करने के लिये जैव प्रणालियों सप्राण जीवों या उनके व्युत्पन्नों का उपयोग करता हैः
(ढ) “राज्य जैवविविधता बोर्ड” से धारा 22 के अधीन स्थापित राज्य जैवविविधता बोर्ड अभिप्रेत है;
(ण) “सतत उपयोग” से जैवविविधता के अवयवों का ऐसी रीति में और ऐसी दर से उपयोग अभिप्रेत है जिससे जैवविविधता का दीर्घकालिक ह्रास न होता हो, जिससे वर्तमान और भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को पूरा करने की इसकी सम्भाव्यता को बनाए रखा जा सके;
(त) “मूल्यवर्धित उत्पादों” से ऐसे उत्पाद अभिप्रेत है जिनमे पौधों और पशुओं के अमान्यकरणीय और वस्तुतः अपृथक्करणीय रूप मे भाग या उनके तत्व अन्तर्विष्ट हो सकते हैं।

अध्याय 2


जैवविविधता तक पहुँच का विनियमन


3. कतिपय व्यक्तियों द्वारा राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अनुमोदन के बिना जैवविविधता से सम्बन्धित क्रियाकलापों का न किया जाना


(1) उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई भी व्यक्ति, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन के बिना अनुसन्धान के लिये या वाणिज्यिक उपयोग के लिये अथवा जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग के लिये भारत में पाये जाने वाले किसी जैव संसाधन या उससे सहबद्ध जानकारी अभिप्राप्त नही करेगा।

(2) वे व्यक्ति जिनको, उपधारा (1) के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का अनुमोदन लेना अपेक्षित होगा, निम्नलिखित है, अर्थातः-

(क) वह व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है;
(ख) भारत का ऐसा नागरिक जो आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 2 के खण्ड (30) में यथा परिभाषित अनिवासी है;
(ग) ऐसा निगमित निकाय या संगम या संगठन जो-

(i) भारत में निगमित या रजिस्ट्रीकृत नहीं है; या
(ii) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन भारत में निगमित या रजिस्ट्रीकृत है जिसकी शेयर पूँजी या प्रबन्ध में कोई गैर भारतीय भागीदारी है।

4. अनुसन्धान के परिणाम राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अनुमोदन के बिना कतिपय व्यक्तियों को अन्तरित नहीं किये जाएँगे


कोई भी व्यक्ति, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन के बिना, भारत में पाये जाने वाले या भारत से अभिप्राप्त किन्हीं जैव संसाधनों से सम्बन्धित किसी अनुसन्धान के परिणामों को किसी ऐसे व्यक्ति को, जो भारत का नागरिक नहीं है या भारत का ऐसा नागरिक है जो आयकर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) की धारा 2 के खण्ड (30) मे यथा परिभाषित अनिवासी है; या ऐसेनिगमित निकाय या संगठन को जो भारत मे रजिस्ट्रीकृत या निगमित नहीं है, अथवा जिसकी शेयर पूँजी या प्रबन्ध में कोई गैर भारतीय भागीदारी है, धनीय प्रतिफल के लिये या अन्यथा अन्तरित नहीं करेगा।

स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजनों के लिये “अन्तरण” के अन्तर्गत अनुसन्धान, कागज-पत्रों का प्रकाशन या किसी सेमिनार या कार्यशाला मेें किसी ज्ञान का प्रसारण नही है यदि ऐसा प्रकाशन केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किये गए मागदर्शक सिद्धान्तों के अनुसार है।

5. धारा 3 और धारा 4 का कतिपय सहयोगी अनुसन्धान परियोजनाओं को लागू न होना


(1) धारा 3 और धारा 4 के उपबन्ध ऐसी सहयोगी परियोजनाओं को लागू नही होंगे जो जैव संसाधनों या उससे सम्बन्धित सूचना के संस्थाओं के बीच जिसके अन्तर्गत सरकार द्वारा प्रायोजित भारतीय संस्थाएँ भी हैं, और अन्य देशों में ऐसी संस्थाओं के बीच अन्तरण या विनिमय में लगी हुई हैं, यदि ऐसी सहयोगी अनुसन्धान परियोजनाएँ उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट शर्तों को पूरा करती हैं।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट सहयोगी अनुसन्धान परियोजनाओं से भिन्न सभी सहयोगी अनुसन्धान परियोजनाएँ जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किये गए करारों पर आधारित हैं और प्रवृत्त हैं, उस सीमा तक जहाँ तक करार के उपबन्ध इस अधिनियम के उपबन्धों या उपधारा (3) के खण्ड (क) के अधीन जारी किये गए मागदर्शक सिद्धान्तों से असंगत है, शून्य होगी।

(3) उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिये सहयोगी अनुसन्धान परियोजनाएँ,-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त जारी किये गए नीति सम्बन्धी मागदर्शक सिद्धान्तों के अनुरूप होगी;
(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुमोदित की जाएँगी।

6. बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के लिये आवेदन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अनुमोदन के बिना नहीं किया जाएगा


(1) कोई भी व्यक्ति भारत में या भारत के बाहर किसी ऐसे आविष्कार के लिये जो भारत से अभिप्राप्त किसी जैव संसाधन सम्बन्धी किसी अनुसन्धान या जानकारी पर आधारित हो, किसी बौद्धिक सम्पदा अधिकार के लिये, चाहे उसका कोई भी नाम हो, आवेदन करने से पूर्व राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का पूर्व अनुमोदन अभिप्राप्त किये बिना आवेदन नहीं करेगा;

परन्तु यदि और कोई व्यक्ति पेटेन्ट के लिये आवेदन करता है तो राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की अनुज्ञा पेटेन्ट के स्वीकार कर लिये जाने के पश्चात किन्तु सम्बद्ध पेटेन्ट प्राधिकरण द्वारा पेटेन्ट पर मुद्रा लगाने से पूर्व अभिप्राप्त की जा सकेगी:

परन्तु यह और कि राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण उसका अनुज्ञा के लिये किये गए आवेदन का निपटारा आवेदन की प्राप्ति की तारीख से नब्बे दिन की अवधि के भीतर करेगा।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, इस धारा के अधीन अनुमोदन अनुदत्त करते समय, फायदे में हिस्सा बँटाने की फीस या रॉयल्टी अथवा दोनों अधिरोपित कर सकेगा या ऐसी शर्त अधिरोपित कर सकेगा जिसके अन्तर्गत अधिकारों के वाणिज्यिक उपयोग से उद्भूत वित्तीय फायदों का हिस्सा बँटाना भी है।

(3) इस धारा के उपबन्ध ऐसे व्यक्ति को लागू नही होंगे जो संसद द्वारा अधिनियमित पौधा किस्म के संरक्षण से सम्बन्धित किसी विधि के अधीन किसी अधिकार के लिये आवेदन कर रहा है।

(4) जहाँ कोई अधिकार उपधारा (3) में निर्दिष्ट विधि के अधीन अनुदत्त किया जाता है वहाँ सम्बद्ध प्राधिकारी ऐसा अधिकार अनुदत्त करते समय अधिकार अनुदत्त करने वाले ऐसे दस्तावेज की प्रति राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को पृष्ठांकित करेगा।

7. कतिपय प्रयोजनों के लिये जैव संसाधन अभिप्राप्त करने के लिये राज्य जैवविविधता बोर्ड को पूर्व इत्तिला


ऐसा कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है या ऐसा निगमित निकाय, संगम या संगठन है जो भारत मे रजिस्ट्रीकृत है, वाणिज्यिक उपयोग के लिये कोई जैव संसाधन या वाणिज्यिक उपयोग के लिये जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग सम्बद्ध राज्य जैवविविधता बोर्ड को पूर्व इत्तिला देने के पश्चात ही अभिप्राप्त करेगा, अन्यथा नही;

परन्तु इस धारा के उपबन्ध उस क्षेत्रों के स्थानीय व्यक्ति या समुदायों को लागू नहीं होंगे जिनके अन्तर्गत जैवविविधता के उगाने वाले और कृषक, और ऐसा वैद्य और हकीम है जो देशी औषधियों का व्यवसाय कर रहे हैं।

अध्याय 3


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण


8. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की स्थापना


(1) ऐसी तारीख से जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के नाम से ज्ञात एक निकाय की स्थापना की जाएगी।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण पूर्वोक्त नाम का शाष्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा रखने वाला निगमित निकाय होगा जिसे जंगम और स्थावर दोनों ही प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने की और संविदा करने की शक्ति होगी तथा उक्त नाम से वाद लाएगा या उस पर वाद लाया जाएगा।

(3) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का प्रधान कार्यालय चेन्नई में होगा और राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से भारत में अन्य स्थानों पर कार्यालय स्थापित कर सकेगा।

(4) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण निम्नलिखित सदस्य से मिलकर बनेगा, अर्थात:-

(क) अध्यक्ष, जो जैवविविधता के संरक्षण, उसके सतत उपयोग तथा फायदों में साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने से सम्बन्धित विषयों में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव रखने वाला ख्यातिप्राप्त व्यक्ति होगा जिसे केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा;
(ख) तीन पदेन सदस्य जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत किये जाएँगे, जिनमें से एक सदस्य जनजाति कार्यों से सम्बन्धित मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये और दो पर्यावरण और वन से सम्बन्धित मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये होंगे जिसमें से एक वन अपर महानिदेशक या वन महानदेशक होगा;
(ग) निम्नलिखित से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के सम्बद्ध मंत्रालयों का प्रतिनिधित्व करने के लिये केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाने वाले सात पदेन सदस्य-

(i) कृषि अनुसन्धान और शिक्षा;
(ii) जैव प्रौद्योगिकी;
(iii) समुद्र विकास;
(iv) कृषि और सहकारिता;
(v) भारतीय आयुर्विज्ञान और होम्योपैथी पद्धतियाँ;
(vi) विज्ञान और प्रौद्योगिकी;
(vii) वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान;

(घ) ऐसे पाँच गैर शासकीय सदस्य जो ऐसे विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों में से नियुक्त किये जाएँगे जिनके पास जैवविविधता के संरक्षण, जैव संसाधनों के सतत उपयोग और जैव संसाधनों के उपयोग के उद्भूत फायदों में साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने से सम्बन्धित विषयों में ज्ञान और अनुभव हो और जो उद्योग के प्रतिनिधि, जैव संसाधनों के संरक्षक, सर्जक और जानकारी धारण करने वाले हों।

9. अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा-शर्तें


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अध्यक्ष और पदेन सदस्यों से भिन्न अन्य सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्तें वे होंगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाएँ।

10. अध्यक्ष राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का मुख्य कार्यपालक होगा


अध्यक्ष, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का मुख्य कार्यपालक होगा और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ।

11. सदस्यों का हटाया जाना


केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के किसी ऐसे सदस्य को पद से हटा सकेगी, जो उसकी राय में,-

(क) उसे दिवालिया न्याय निर्णित किया गया है; या
(ख) उसे किसी ऐसे अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराया गया है जिसमें नैतिक अधमता अन्तर्वलित है; या
(ग) वह सदस्य के रूप में कार्य करने में शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ हो गया है; या
(घ) उसने अपने पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि जिससे उसके पद पर बने रहने से लोकहित पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा; या
(ङ) उसने ऐसा वित्तीय या अन्य हित अर्जित किया है कि जिससे सदस्य के रूप में उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है।

12. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अधिवेशन


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन करेगा और अपने अधिवेशनों में (जिसके अन्तर्गत ऐसे अधिवेशनों में गणपूर्ति भी है) कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का पालन करेगा, जो विहित किये जाएँ।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का अध्यक्ष, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अधिवेशनों की अध्यक्षता करेगा।

(3) यदि अध्यक्ष किसी कारण से राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ है तो उस अधिवेशन में उपस्थित राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के सदस्यों द्वारा अपने में से चुना गया कोई सदस्य, अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा।

(4) ऐसे सभी प्रश्नों का जो राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के किसी अधिवेशन के समक्ष विनिश्चय उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में, अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का, द्वितीय या निर्णायक मत होगा।

(5) प्रत्येक ऐसे सदस्य, जो किसी भी प्रकार से, चाहे प्रत्यक्ष; अप्रत्यक्ष; या व्यक्तिगत रूप से, अधिवेशन में विनिश्चित किये जाने वाले विषय से सम्बद्ध या हितबद्ध है, अपने सम्बन्ध या हित की प्रकृति को प्रकट करेगा और ऐसे प्रकटन के पश्चात सम्बद्ध या हितबद्ध सदस्य उस अधिवेशन में भाग नही लेगा।

(6) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अविधिमान्य नही होगी कि-

(क) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या
(ख) किसी सदस्य के रूप में किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है; या
(ग) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की प्रक्रिया में ऐसी अनियमितता है जिससे मामले के गुणागुण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

13. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की समितियाँ


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, कृषि जैवविविधता से व्यवहार करने के लिये एक समिति का गठन कर सकेगा।

स्पष्टीकरण


इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये “कृषि जैवविविधता” से, कृषि सम्बन्धी प्रजातियों और उनकी जंगली प्रजातियों से सम्बन्धित जैवविविधता अभिप्रेत है।

(2) उपधारा (1) के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपने कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन और कृत्यों के अनुपालन के लिये उतनी संख्या में समितियों का गठन कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

(3) इस धारा के अधीन गठित समिति में, ऐसे व्यक्ति जो राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के सदस्य नही हैं, उतनी संख्या में सहयोजित किये जा सकेंगे जो वह ठीक समझे और इस प्रकार सहयोजित व्यक्तियों को समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने और इसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा किन्तु उसमें मत देने का अधिकार नही होगा।

(4) उपधारा (2) के अधीन गठित समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त व्यक्ति, समिति के अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिये ऐसे भत्ते या फीस प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत की जाये।

14. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, उतने अधिकारियों और ऐसे अन्य कर्मचारियों को नियुक्त कर सकेगा जो वह इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिये आवश्यक समझे।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के ऐसे अधिकारियों अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें ऐसी होंगी जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाएँ।

15. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के आदेशों और विनिश्चयों का अधिप्रमाणन


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय अध्यक्ष के या इस निमित्त राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी सदस्य के हस्ताक्षर से अधिप्रमाणित किये जाएँगे और राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा निष्पादित सभी अन्य लिखतें इस निमित्त राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत अधिकारी के हस्ताक्षर से अधिप्रमाणित की जाएँगी।

16. शक्तियों का प्रत्यायोजन


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, लिखित, साधारण या विशेष आदेश द्वारा राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के किसी सदस्य या अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (धारा 50 के अधीन अपील करने और धारा 64 के अधीन विनियम बनाने की शक्तियों को छोड़कर), जो वह आवश्यक समझे, प्रत्यायोजित कर सकेगा।

17. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के व्यय का भारत की संचित निधि में से चुकाया जाना


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के सदस्यों को सन्देय वेतन और भत्ते तथा प्रशासनिक व्यय, जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को सन्देय या उनके सम्बन्ध में सन्देय वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, भारत की संचित निधि में से चुकाए जाएँगे।

अध्याय 4


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के कृत्य और शक्तियाँ


18. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के कृत्य


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का, धारा 3, धारा 4 और धारा 6 में निर्दिष्ट क्रियाकलापों को विनियमित करने और विनियमों द्वारा जैव संसाधनों तक पहुँच और फायदों में साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने के लिये मार्गदशक सिद्धान्त जारी करने का कर्तव्य होगा।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, धारा 3, धारा 4 और धारा 6 में निर्दिष्ट क्रियाकलाप करने के लिये अनुमोदन अनुदत्त कर सकेगा।

(3) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण,-

(क) केन्द्रीय सरकार को, जैवविविधता संरक्षण, उसके अवयवों के सतत उपयोग और जैवविविधता संसाधनों के उपयोग से उद्भूत फायदों के साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने के सम्बन्ध में सलाह दे सकेगा;
(ख) राज्य सरकारों को, जैवविविधता के महत्त्व के क्षेत्रों के चयन में, जो धारा 37 की उपधारा (1) के अधीन विरासत स्थल के रूप में अधिसूचित किये जाने हैं तथा ऐसे विरासत स्थलों के प्रबन्ध के उपाय के चयन में सलाह दे सकेगा;
(ग) ऐसे अन्य कृत्यों को कर सकेगा जो इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक समझे जाएँ।

(4) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार की ओर से भारत से अभिप्राप्त किसी जैव संसाधन या ऐसे जैव संसाधन से जो भारत से व्युत्पन्न हुआ है, सहयोजित जानकारी के सम्बन्ध में भारत के बाहर किसी देश में बौद्धिक सम्पदा अधिकारों को मंजूर करने का विरोध करने के लिये आवश्यक उपाय कर सकेगा।

अध्याय 5


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा अनुमोदन


19. कतिपय क्रियाकलाप करने के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा अनुमोदन


(1) धारा 3 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई व्यक्ति, जो भारत में पाये जाने वाले किसी जैव संसाधन को या उससे सहयोजित ज्ञान को, अनुसन्धान या वाणिज्यिक उपयोग या जैव सर्वेक्षण और जैव उपयोग के लिये अथवा भारत में पाये जाने वाले या भारत से अभिप्राप्त जैव संसाधन से सम्बन्धित किसी अनुसन्धान के परिणामों के अन्तरण को प्राप्त करने के लिये आशयित है, ऐसे प्रारूप में और ऐसी फीस का सन्दाय करने पर, जो विहित की जाये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को आवेदन करेगा।

(2) कोई व्यक्ति, जो भारत में या भारत के बाहर धारा 6 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी पेटेन्ट के लिये या बौद्धिक सम्पदा संरक्षण के किसी अन्य प्रकार के लिये आवेदन करना चाहता है तो वह ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति में, जो विहित की जाये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को आवेदन कर सकेगा।

(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन की प्राप्ति पर, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण ऐसी जाँच करने के पश्चात जो वह ठीक समझे और यदि आवश्यक हो तो इस प्रयोजन के लिये गठित किसी विशेषज्ञ समिति से परामर्श करने के पश्चात, आदेश द्वारा इस निमित्त बनाए गए किन्हीं विनियमों के अधीन रहते हुए और ऐसी शर्तों और निबन्धनों के अधीन रहते हुए जो वह ठीक समझे, जिनके अन्तर्गत रॉयल्टी के रूप में प्रभारों का अधिरोपण भी है अनुमोदन अनुदत्त कर सकेगा या आवेदन को लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से नामंजूर कर सकेगा;

परन्तु यह कि नामंजूरी का ऐसा कोई आदेश प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिये बिना नहीं किया जाएगा।

(4) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, इस धारा के अधीन दिये गए प्रत्येक अनुमोदन की सार्वजनिक सूचना देगा।

20. जैव संसाधन या ज्ञान का अन्तरण


(1) कोई भी व्यक्ति, जिसे धारा 19 के अधीन अनुमोदन अनुदत्त किया गया है किसी ऐसे जैव संसाधन या उससे सहबद्ध ज्ञान को, जो उक्त अनुमोदन की विषयवस्तु है, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की अनुज्ञा के बिना अन्तरित नहीं करेगा।

(2) कोई व्यक्ति जो उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी जैव संसाधन या उससे सहबद्ध ज्ञान को अन्तरित करना चाहता है, ऐसे प्रारूप में और ऐसी रीति में जो विहित की जाये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को आवेदन करेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन किसी आवेदन की प्राप्ति पर, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, ऐसी जाँच करने के पश्चात जो वह ठीक समझे और यदि आवश्यक हो तो इस प्रयोजन के लिये गठित किसी विशेषज्ञ समिति से परामर्श करने पश्चात आदेश द्वारा, ऐसी शर्तों और निबन्धनों के अधीन रहते हुए जो वह ठीक समझे, जिनके अन्तर्गत रॉयल्टी के रूप में प्रभारों का अधिरोपण भी है अनुमोदन अनुदत्त कर सकेगा या लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से आवेदन को नामंजूर कर सकेगा;

परन्तु यह कि नामंजूरी का ऐसा कोई आदेश प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिये बिना नहीं किया जाएगा।

(4) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, इस धारा के अधीन दिये गए प्रत्येक अनुमोदन की सार्वजनिक सूचना देगा।

21. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा साम्यापूर्ण फायदे में हिस्सा बँटाने का अवधारण


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, धारा 19 या धारा 20 के अधीन अनुमोदन प्रदान करते समय यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसे निबन्धन और शर्तें, जिनके अधीन रहते हुए अनुमोदन अनुदत्त किया गया है, उपलब्ध जैव संसाधनों से उपयोग से उद्भूत फायदों, उनके उपोत्पादों, उनके उपयोग से सहबद्ध नवपरिवर्तनों तथा व्यवहारों और उनसे सम्बन्धित उपयोजनों तथा ज्ञान का, ऐसे अनुमोदन के लिये आवेदन करने वाले व्यक्ति, सम्बन्धित स्थानीय निकाय और फायदे के दावेदारों के बीच पारम्परिक रूप से करार किये गए निबन्धनों और शर्तों के अनुसार साम्यापूर्ण फायदे में हिस्सा बँटाना सुनिश्चित करती है।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, इस निमित्त बनाए गए किन्हीं विनियमों के अधीन रहते हुए फायदे में हिस्सा बँटाने का अवधारण करेगा, जिसे निम्नलिखित सभी या किसी रीति से प्रभावी किया जाएगा, अर्थातः-

(क) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या जहाँ फायदे के दावेदारों को, ऐसे फायदे के दावेदारों के रूप में पहचाना जाता है, वहाँ फायदे के ऐसे दावेदारों को बौद्धिक सम्पदा अधिकारों का संयुक्त स्वामित्व देना;
(ख) प्रौद्योगिकी का अन्तरण करना;
(ग) ऐसे क्षेत्रों में उत्पादन, अनुसन्धान और विकास एककों का अवस्थान जो फायदे के दावेदारों के बेहतर जीवन स्तर को सुकर बनाते हैं;
(घ) भारतीय वैज्ञानिकों, फायदों का दावा करने वाले व्यक्तियों और स्थानीय जनता का जैव संसाधन और जैव सर्वेक्षण तथा जैव उपयोग के अनुसन्धान और विकास में सहयोजन करना;
(ङ) फायदे का दावा करने वालों के हेतुक की सहायता के लिये जोखिम पूँजीनिधि की स्थापना करना;
(च) फायदे का दावा करने वालों को धनीय प्रतिकर और अन्य ऐसे गैर धनीय फायदों का सन्दाय करना जो राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा आवश्यक समझे जाएँ।

(3) जहाँ धन की किसी राशि का हिस्सा बँटाने का आदेश दिया जाता है, वहाँ राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण ऐसी राशि को राष्ट्रीय जैवविविधता निधि में जमा करने का निर्देश दे सकेगा;

परन्तु यह कि जहाँ जैव संसाधन या ज्ञान किसी विनिर्दिष्ट व्यष्टिक या व्यष्टिक समूह या संगठन से अभिगम के परिणामस्वरूप हुआ था वहाँ राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण यह निर्देश दे सकेगा कि राशि का किसी करार के निबन्धनों के अनुसार और ऐसी रीति में जो वह ठीक समझे, ऐसे विशिष्ट व्यष्टि या व्यष्टि समूह या संगठन को सीधे सन्दाय किया जाएगा।

(4) इस धारा के प्रयोजनों के लिये राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण केन्द्रीय सरकार के परामर्श से, विनियमों द्वारा मार्गदर्शक सिद्धान्त बनाएगी।

अध्याय 6


राज्य जैवविविधता बोर्ड


22. राज्य जैवविविधता बोर्ड की स्थापना


(1) उस तारीख से जो राज्य सरकार, इस निमित्त राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे, इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये उस सरकार द्वारा राज्य के लिये- (राज्य का नाम) जैवविविधता बोर्ड के नाम से ज्ञात एक बोर्ड स्थापित किया जाएगा।

(2) इस धारा में किसी बात के होते हुए भी, किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिये कोई राज्य जैवविविधता बोर्ड गठित नहीं किया जाएगा और ऐसे संघ राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण उस संघ राज्य क्षेत्र के किसी राज्य जैवविविधता बोर्ड की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का पालन करेगा;

परन्तु यह कि किसी संघ राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, इस उपधारा के अधीन अपनी सभी या किसी शक्ति अथवा कृत्यों को ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को, जो केन्द्रीय सरकार विनिर्दिष्ट करे, प्रत्यायोजित कर सकेगा।

(3) बोर्ड पूर्वोक्त नाम का जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा रखने वाला निगमित निकाय होगा जिसे स्थावर और जंगम दोनों ही प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने और संविदा करने की शक्ति होगी और वह उक्त नाम से वाद लाएगा तथा उस पर वाद लाया जाएगा।

(4) बोर्ड निम्नलिखित सदस्यों में मिलकर बनेगा, अर्थातः-

(क) अध्यक्ष, जैवविविधता संरक्षण, उसके सतत उपयोग तथा फायदों का साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने से सम्बन्धित विषयों में पर्याप्त ज्ञान और अनुभव रखने वाला ख्यातिप्राप्त व्यक्ति होगा, जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा;

(ख) पाँच से अनधिक पदेन सदस्य जो राज्य सरकार के सम्बन्द्ध विभागों का प्रतिनिधित्व करने के लिये राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे;
(ग) पाँच से अनधिक सदस्य जो जैवविविधता के संरक्षण, जैव संसाधनों के सतत उपयोग तथा जैव संसाधनों के उपयोग से उद्भूत फायदों में साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने से सम्बन्धित विषयों के विशेषज्ञों में से नियुक्त किये जाएँगे।

(5) राज्य जैवविविधता बोर्ड का मुख्य कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा राजपत्र में अधिसूचित किया जाये।

23. राज्य जैवविविधता बोर्ड के कृत्य


राज्य जैवविविधता बोर्ड के निम्नलिखित कृत्य होंगे:-

(क) केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी किये गए किन्हीं मागदर्शक सिद्धान्तों के अधीन रहते हुए, जो जैवविविधता के संरक्षण, उसके अवयवों के सतत उपयोग तथा जैव संसाधनों के उपयोग से उद्भूत फायदों के साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने से सम्बन्धित विषयों पर राज्य सरकार को सलाह देना;
(ख) भारतीयों द्वारा वाणिज्यिक उपयोग या जैव सर्वेक्षण और किसी जैवविविधता संसाधन के जैव उपयोग के लिये अनुमोदन या अन्यथा अनुरोधों को मंजूर करके, विनियमित करना;
(ग) ऐसे अन्य कृत्यों को करना जो इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यान्वयन के लिये आवश्यक हों या जो राज्य सरकार द्वारा विहित किये जाएँ।

24. संरक्षण आदि के उद्देश्यों का उल्लंघन करने वाले कतिपय क्रियाकलापों को निर्बन्धित करने की राज्य जैवविविधता बोर्ड की शक्ति


(1) भारत का कोई नागरिक या भारत में रजिस्ट्रीकृत निगमित निकाय, संगठन या संगम, जो धारा 7 में निर्दिष्ट किसी कार्यकलाप को करना चाहता है, राज्य जैवविविधता बोर्ड को इसकी पूर्वसूचना ऐसे प्रारूप में देगा, जो राज्य सरकार द्वारा विहित किया जाये।

(2) उपधारा (1) के अधीन किसी सूचना की प्राप्ति पर, राज्य जैवविविधता बोर्ड, सम्बन्धित निगमित निकाय से परामर्श करके और ऐसी जाँच करने के पश्चात, जो वह ठीक समझे, आदेश द्वारा ऐसे किसी क्रियाकलाप को प्रतिषिद्ध या निर्बन्धित कर सकेगा यदि उसकी राय में ऐसा क्रियाकलाप, जैवविविधता के संरक्षण और सतत उपयोग या ऐसे क्रियाकलाप से उद्भूत फायदों में साम्यापूर्ण हिस्सा बँटाने के उद्देश्यों के प्रतिकूल या विरुद्ध हो;

परन्तु यह कि ऐसा कोई आदेश प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर दिये बिना नहीं किया जाएगा।

(3) पूर्वसूचना के लिये उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रारूप में दी गई कोई सूचना गुप्त रखी जाएगी और किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसका उससे कोई सम्बन्ध नहीं है, साशय या बिना आशय के प्रकट नहीं की जाएगी।

25. धारा 9 से धारा 17 तक के उपबन्धों का राज्य जैवविविधता बोर्ड को उपान्तरणों सहित लागू होना


धारा 9 से धारा 17 तक के उपबन्ध, किसी राज्य जैवविविधता बोर्ड को लागू होंगे और निम्नलिखित उपान्तरणों के अधीन रहते हुए प्रभावी होंगे, अर्थातः-

(क) केन्द्रीय सरकार के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राज्य सरकार के प्रति निर्देश हैं;
(ख) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राज्य जैवविविधता बोर्ड के प्रति निर्देश हैं;
(ग) भारत की संचित निधि के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह राज्य की संचित निधि के प्रति निर्देश हैं।

अध्याय 7


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का वित्त, लेखा और लेखापरीक्षा


26. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान या ऋण


केन्द्रीय सरकार इस निमित्त संसद द्वारा विधि द्वारा सम्यक रूप से किये गए विनियोग के पश्चात, ऐसे अनुदान ऋणों के द्वारा, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को ऐसी राशियों का सन्दाय कर सकेगी, जो केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये उपयोग किये जाने के लिये, आवश्यक समझे।

27. राष्ट्रीय जैवविविधता निधि का गठन


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता निधि के नाम से एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) धारा 26 के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को दिये गए कोई अनुदान या ऋण;
(ख) इस अधिनियम के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा प्राप्त किये गए सभी प्रभार और स्वामिस्व, और
(ग) ऐसे अन्य स्रोतों से जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किये जाएँ राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा प्राप्त सभी रकम।

(2) निधि का निम्नलिखित के लिये उपयोग किया जाएगा:-

(क) फायदे का दावा करने वालों को फायदों का दिया जाना;
(ख) जैव संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन तथा उन क्षेत्रों का विकास जहाँ से ऐसे जैव संसाधन या उससे सहबद्ध ज्ञान उपलब्ध हुआ है;
(ग) खण्ड (ख) में निर्दिष्ट क्षेत्रों का स्थानीय निकायों के परामर्श से सामाजिक-आर्थिक विकास।

28. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, ऐसे प्रारूप में और प्रत्येक वित्तीय वर्ष में ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का पूरा विवरण दिया जाएगा तथा ऐसी तारीख से पूर्व, जो विहित की जाये, उस पर सम्परीक्षकों की रिपोर्ट और लेखाओं की एक सम्परीक्षित प्रति के साथ उसे केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा।

29. बजट, लेखा और लेखापरीक्षा


(1) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण बजट तैयार करेगा, समुचित लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख (जिसमें राष्ट्रीय जैवविविधता निधि के लेखा और अन्य सुसंगत अभिलेख सम्मिलित हैं) रखेगा और लेखाओं का एक वार्षिक विवरण ऐसे प्रारूप में जैसा केन्द्रीय सरकार भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के परामर्श से विहित करे, तैयार करेगा।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जैसा उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये और ऐसी सम्परीक्षा के सबन्ध में किया गया कोई व्यय राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सन्देय होगा।

(3) भारत का नियंत्रक-महालेखा परीक्षक तथा राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के, उस सम्परीक्षा के सम्बन्ध में वैसे ही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो सामान्यतया नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के सरकारी लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में होते हैं और उसे विशिष्ट रूप से बहियों, लेखा सम्बन्धित वाउचर और अन्य दस्तावेज तथा कागज-पत्र प्रस्तुत करने की माँग करने और राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के किसी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथा प्रमाणित लेखे, उनकी सम्परीक्षा रिपोर्ट के साथ वार्षिक रूप से केन्द्रीय सरकार को अग्रेषित किये जाएँगे।

30. वार्षिक रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना


केन्द्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट और सम्परीक्षकों की रिपोर्ट को, उनके प्राप्त होने के पश्चात यथासम्भव शीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।

अध्याय 8


राज्य जैवविविधता बोर्ड का वित्त, लेखा और लेखापरीक्षा


31. राज्य जैवविविधता बोर्ड को राज्य सरकार द्वारा धन का अनुदान


राज्य सरकार, इस निमित्त राज्य विधानसभा द्वारा विधि द्वारा सम्यक रूप से किये गए विनियोग के पश्चात, ऐसे अनुदान या ऋणों के द्वारा, राज्य जैवविविधता बोर्ड को ऐसी राशियों का सन्दाय कर सकेगी, जो राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये उपयोग किये जाने के लिये, आवश्यक समझे।

32. राज्य जैवविविधता निधि का गठन


(1) राज्य जैवविविधता निधि के नाम से एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) धारा 31 के अधीन राज्य जैवविविधता बोर्ड को दिये गए कोई अनुदान और ऋण;
(ख) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा दिया गया कोई अनुदान या ऋण;
(ग) ऐसे अन्य स्रोतों से, जो राज्य सरकार द्वारा विनिश्चित किये जाएँ,

राज्य जैवविविधता बोर्ड द्वारा प्राप्त सभी रकम।

(2) राज्य जैवविविधता निधि का निम्नलिखित के लिये उपयोग किया जाएगा,-

(क) विरासतीय स्थलों का प्रबन्ध और संरक्षण करना;
(ख) धारा 37 की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना द्वारा आर्थिक रूप से प्रभावित व्यक्तियों के किसी वर्ग को प्रतिकर देना या उनका पुनर्वासन;
(ग) जैव संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन करना;
(घ) ऐसे क्षेत्रों का, जहाँ से ऐसे जैवविविधता संसाधन या उससे सहबद्ध जानकारी प्राप्त हुई है, धारा 24 के अधीन किये गए आदेश के अधीन रहते हुए, सम्बन्धित स्थानीय निकायों के परामर्श से, सामाजिक-आर्थिक विकास;
(ङ) इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत प्रयोजनों के लिये उपगत व्यय की पूर्ति।

33. राज्य जैवविविधता बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट


राज्य जैवविविधता बोर्ड, ऐसे प्रारूप में और प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का पूरा विवरण देते हुए अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा तथा उसकी एक प्रति राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा।

34. राज्य जैवविविधता बोर्ड के लेखाओं की सम्परीक्षा


राज्य जैवविविधता बोर्ड के लेखा, राज्य के महालेखाकार के परामर्श से ऐसी रीति में, जो विहित की जाये, तैयार किये जाएँगे और सम्परीक्षित किये जाएँगे तथा राज्य जैवविविधता बोर्ड, राज्य सरकार को, ऐसी तारीख से पूर्व, जो विहित की जाये, अपनी सम्परीक्षित लेखा की प्रति उस पर लेखापरीक्षकों की रिपोर्ट सहित, प्रस्तुत करेगा।

35. राज्य जैवविविधता बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट का राज्य विधानमण्डल के समक्ष रखा जाना


राज्य सरकार, वार्षिक रिपोर्ट और लेखापरीक्षकों की रिपोर्ट को, उनके प्राप्त होने के पश्चात यथासम्भव शीघ्र राज्य विधानमण्डल के सदन के समक्ष रखवाएगी।

अध्याय 9


केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों के कर्तव्य


36. जैवविविधता के संरक्षण आदि के लिये केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय कूटनीतियों, योजनाओं आदि का विकसित किया जाना


(1) केन्द्रीय सरकार, जैवविविधता के संरक्षण और संवर्धन और सतत उपयोग के लिये जिसके अन्तर्गत ऐसे क्षेत्रों की जो जैव संसाधनों से समृद्ध है, पहचान करने के और उनको मॉनीटर करने के उपाय भी हैं के प्राकृतिक, आन्तरिक और बाह्य संरक्षण जैवविविधता के सम्बन्ध में जानकारी बढ़ाने के लिये अनुसन्धान, प्रशिक्षण और लोक शिक्षा के प्रोत्साहन के लिये राष्ट्रीय नीतियों, कार्यक्रमों को विकसित करेगा।

(2) जहाँ केन्द्रीय सरकार के पास यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे किसी क्षेत्र को, जो जैवविविधता, जैव संसाधनों और उनके प्राकृतिक वास से समृद्ध है उनके अधिक उपयोग, दुरुपयोग या उनकी उपेक्षा द्वारा उन्हें खतरा पैदा होता जा रहा है वहाँ वह सम्बद्ध राज्य सरकार को कोई तकनीकी या अन्य सहायता प्रदान करते हुए जिनको उपलब्ध कराना सम्भव हो या जो जरूरी हों ऐसी राज्य सरकार को निर्देश जारी करेगी कि वह तत्काल सुधारक उपाय करे।

(3) केन्द्रीय सरकार, यथासाध्य जब कभी यह समुचित समझे, जैवविविधता के संरक्षण, संवर्धन और सतत उपयोग को, सुसंगत क्षेत्रीय या प्रतिक्षेत्रीय योजनाओं, कार्यक्रमों और नीतियों में एकीकृत करेगी।

(4) केन्द्रीय सरकार,-

(i) जहाँ कहीं आवश्यक हो उस परियोजना के,जिससे जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, वातावरणीय प्रभाव का, ऐसे प्रभाव का निराकरण करने या उसको कम करने के विचार से निर्धारण के लिये और जहाँ समुचित हो, वहाँ ऐसे निधार्रण में जनता की भागीदारी के लिये व्यवस्था करने के लिये;

(ii) जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप जीवित रूपान्तरित जीवों के, जिनसे जैवविविधता के संरक्षण और सतत उपयोग तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है, उपयोग और निर्मुक्ति से सम्बद्ध जोखिम का विनियमन, प्रबन्ध या नियंत्रण करने के लिये उपाय करेगी।

(5) केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर जैवविविधता से सम्बन्धित स्थानीय जनता के ज्ञान पर विचार करने और उसे संरक्षित करने का ऐसे उपायों के माध्यम से प्रयास करेगी जिसमें स्थानीय, राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे ज्ञान के रजिस्ट्रीकरण और विशिष्ट प्रणाली सहित संरक्षण के अन्य उपाय सम्मिलित हो सकते हैं।

स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजनों के लिये,-

(क) “प्राकृतिक बाह्य संरक्षण” से उनके प्राकृतिक वासों से बाहर के जैवविविधता के अवयवों का संरक्षण अभिप्रेत है;
(ख) “आन्तरिक प्राकृतिक संरक्षण” से पारिस्थितिक प्रणाली और प्राकृतिक वासों का संरक्षण और उनकी प्राकृतिक वातावरण में प्रजातियों के घरेलूकृत या संवर्धन की दशा में ऐसे वातावरण में जिसमें उन्होंने अपने विभिन्न गुण विकिसत किये हैं, जातियों की परिवर्तनीय संख्या को बनाए रखना और उन्हें प्राप्त करना अभिप्रेत है।

37. जैवविविधता विरासतीय स्थल


(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, राज्य सरकार, समय-समय पर स्थानीय निकायों के परामर्श से राजपत्र में, इस अधिनियम के अधीन जैवविविधता के महत्त्व के क्षेत्रों को जैवविविधता विरासतीय स्थलों के रूप में अधिसूिचत करेगी।

(2) राज्य सरकार, केन्द्रीय सरकार के परामर्श से सभी विरासतीय स्थलों के प्रबन्ध और संरक्षण के लिये नियम बना सकेगी।

(3) राज्य सरकार ऐसी अधिसूचना द्वारा आर्थिक रूप से प्रभावित किसी व्यक्ति या जनता के वर्ग के प्रतिकर या पुनर्स्थापन के लिये स्कीमें बनाएगी।

38. विलुप्त हो रही प्रजातियों को अधिसूचित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति


तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, केन्द्रीय सरकार सम्बद्ध राज्य सरकार से परामर्श करने के पश्चात समय-समय पर ऐसी प्रजातियों को जो विलुप्त होने के कगार पर हैं या जिनके निकट भविष्य में विलुप्त होने की सम्भावना है, जातियों को विलुप्त हो रही जातियों के रूप में अधिसूचित कर सकेगी तथा किसी भी प्रयोजन के लिये उनके संग्रहण प्रतिषिद्धि या विनियमित कर सकेगी और प्रजातियों के पुनर्स्थापन और परीरक्षण के लिये समुचित कदम उठा सकेगी।

39. संग्रहालयों को अभिहित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के परामर्श से, विभिन्न प्रवर्गों के जैवविविधता संसाधनों के लिये इस अधिनियम के अधीन संग्रहालयों के रूप संस्थाओं को अभिहित कर सकेगी।

(2) संग्रहालय जैव सामग्री को जिसके अन्तर्गत उनमें जमा किये गए वाउचर नमूने भी हैं, सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा।

(3) किसी व्यक्ति द्वारा आविष्कार किये गए किसी नए वर्गक को संग्रहालय में या इस प्रयोजन के लिये अभिहित की गई किसी संस्था को अधिसूिचत किया जाएगा और उसके द्वारा वाउचर नमूने को ऐसे संग्रहालय या संस्था में जमा किया जाएगा।

40. केन्द्रीय सरकार की कतिपय जैव संसाधनों को छूट देने की शक्ति


इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के परामर्श से राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह घोषणा कर सकेगी कि इस अधिनियम के उपबन्ध किन्हीं मदों को जिसके अन्तर्गत वाणिज्या के रूप में साधारणतया व्यापार के जैव संसाधन सम्मिलित हैं लागू नहीं होंगे।

अध्याय 10


जैवविविधता प्रबन्ध समितियाँ


41. जैवविविधता प्रबन्ध समितियों का गठन


(1) प्रत्येक स्थानीय निकाय संरक्षण के संवर्धन, जैवविविधता के, जिसके अन्तर्गत प्राकृतिक वासा का परिरक्षण भी है, सतत उपयोग और प्रलेखीकरण, भूमि प्रजातियों, लोककिस्मों और कृषिजोपजातियों, पशुओं और पशुओं तथा सूक्ष्म जीवों के घरेलूकृत स्टाक और प्रजनन संरक्षण और जैवविविधता से सम्बन्धित ज्ञान को शृंखलाबद्ध करने के प्रयोजन के लिये अपने क्षेत्र के भीतर जैवविविधता प्रबन्ध समिति का गठन करेगा।

स्पष्टीकरण


इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये,-

(क) “कृषिजोपजाति” से पौधे की ऐसी किस्म अभिप्रेत है जो खेती-बाड़ी से पैदा होती है और बढ़ती रहती है या खेतीबाड़ी के प्रयोजनों के लिये विनिर्दिष्ट रूप से उगाई गई थी;
(ख) “लोककिस्म” से पौधे की पैदा की गई वह किस्म अभिप्रेत है जो कृषकों के बीच अनौपचािरक रूप से विकसित, उगाई और विनिमय की गई थी;
(ग) “भूमि प्रजाति” से पुरातन कृषिजोपजाति अभिप्रेत है जो प्राचीन कृषकों और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा उगाई जाती थी।

(2) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण और राज्य जैवविविधता बोर्ड जैव संसाधनों और ऐसे संसाधनों से सहबद्ध ज्ञान के उपयोग के सम्बन्ध में जो जैवविविधता प्रबन्ध समितियों की क्षेत्रीय अधिकारिता के भीतर आते हैं, कोई विनिश्चय लेते समय जैवविविधता समितियों से परामर्श करेंगे।

(3) जैवविविधता प्रबन्ध समिति, अपनी क्षेत्रीय अधिकारिता के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों से वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिये किसी जैव संसाधन की पहुँच या संग्रहण के लिये किसी व्यक्ति से फीस के संग्रहण के रूप में प्रभार उद्गृहीत कर सकेगी।

अध्याय 11


स्थानीय जैवविविधता निधि


42. जैवविविधता निधि को अनुदान


राज्य सरकार, इस निमित्त राज्य विधानमण्डल द्वारा विधि द्वारा किये गए सम्यक विनियोग के पश्चात स्थानीय जैवविविधता निधियों को ऐसी धनराशि का अनुदान या ऋण दे सकेगी जो वह इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये उपयोग किये जाने के लिये ठीक समझे।

43. स्थानीय जैवविविधता निधि का गठन


(1) राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित प्रत्येक क्षेत्रों में जहाँ कोई संस्था स्वशासी सरकार के रूप में कार्य कर रही हो स्थानीय जैवविविधता निधि के नाम से ज्ञात निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) धारा 42 के अधीन दिया गया कोई अनुदान और ऋण;
(ख) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण द्वारा दिये गए कोई अनुदान या ऋण;
(ग) राज्य जैवविविधता बोर्ड द्वारा दिये गए कोई अनुदान या ऋण;(घ) धारा 41 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट जैवविविधता प्रबन्ध समितियों द्वारा प्राप्त फीस;
(ङ) ऐसे अन्य संसाधनों से स्थानीय जैवविविधता निधि द्वारा प्राप्त सभी राशियाँ जो राज्य सरकार द्वारा विनिश्चित की जाएँ।

44. स्थानीय जैवविविधता निधि का उपयोजन


(1) उपधारा (2) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, स्थानीय जैवविविधता निधि के प्रबन्ध और उसकी अभिरक्षा की ऐसी रीति तथा प्रयोजन जिनके लिये ऐसी निधि का उपयोग किया जाएगा, ऐसे होंगे जो राज्य सरकार द्वारा विहित किये जाएँ।

(2) निधि का उपयोग, सम्बन्धित स्थानीय निकाय की अधिकारिता के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों में जैवविविधता में संरक्षण और संवर्धनके लिये और सामुदायिक फायदे के लिये, जहाँ तक ऐसा उपयोग जैवविविधता के संरक्षण से संगत है, किया जाएगा।

45. जैवविविधता प्रबन्ध समिति की वार्षिक रिपोर्ट


स्थानीय जैवविविधता निधि की अभिरक्षा करने वाला व्यक्ति, ऐसे प्रारूप में और प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान ऐसे समय पर जो विहित किया जाये, अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान अपने क्रियाकलापों का पूरा विवरण देते हुए उसकी एक प्रति सम्बद्ध स्थानीय निकाय को प्रस्तुत करेगा।

46. जैवविविधता प्रबन्ध समिति के लेखाओं की लेखापरीक्षा


स्थानीय जैवविविधता निधि के लेखा, राज्य के महालेखाकार के परामर्श से ऐसी रीति में रखे और सम्परीक्षित किये जाएँगे जो विहित की जाये और स्थानीय जैवविविधता निधि की अभिरक्षा करने वाला व्यक्ति, सम्बद्ध स्थानीय निकाय को ऐसी तारीख से पूर्व जो विहित की जाये उस पर सम्परीक्षकों की रिपोर्ट सहित लेखाओं की एक सम्परीक्षित प्रति देगा।

47. जैवविविधता प्रबन्ध समितियों की वार्षिक रिपोर्ट, आदि का जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत किया जाना


धारा 41 की उपधारा (1) के अधीन जैवविविधता प्रबन्ध समिति का गठन करने वाला प्रत्येक स्थानीय निकाय क्रमशः धारा 45 और धारा 46 में निर्दिष्ट और ऐसी समिति से सम्बन्धित वार्षिक रिपोर्ट और उस पर सम्परीक्षक की रिपोर्ट के साथ लेखाओं की सम्परीक्षित प्रति उस जिला मजिस्ट्रेट को, जिसकी उक्त स्थानीय निकाय पर अधिकारित हो, प्रस्तुत कराएगा।

अध्याय 12


प्रकीर्ण


48. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण का, केन्द्रीय सरकार द्वारा दिये गए निदेशों से आबद्ध होना


(1) इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों और कर्तव्यों का निर्वहन करते समय निति के प्रश्नों पर ऐसे निदेशों द्वारा आबद्ध होगा जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर उसे लिखित रूप में दे;

परन्तु यह कि राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को इस उपधारा के अधीन कोई निदेश देने से पूर्व, यथासाध्य अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा।

(2) इस सम्बन्ध में कि कोई प्रश्न नीति का है या नहीं, केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।

49. राज्य सरकार की निदेश देने की शक्ति


(1) इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना राज्य जैवविविधता बोर्ड, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों और कर्तव्यों का निर्वहन करते समय नीति के प्रश्नों पर ऐसे निर्देशों द्वारा आबद्ध होगा जो राज्य सरकार समय-समय पर उसे लिखित रूप में दे;

परन्तु यह कि राज्य जैवविविधता बोर्ड को इस उपधारा के अधीन कोई निदेश देने से पूर्व यथासाध्य अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा।

(2) इस सम्बन्ध में कि कोई प्रश्न नीति का है या नहीं राज्य सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।

50. राज्य विविधता बोर्डों के बीच विवादों का निपटान


(1) यदि राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण और राज्य जैवविविधता बोर्ड के बीच कोई विवाद उत्पन्न होता है तो, यथास्थिति, उक्त प्राधिकरण या बोर्ड ऐसे समय के भीतर जो विहित किया जाये, केन्द्रीय सरकार को अपील कर सकेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन की गई प्रत्येक अपील ऐसे प्रारूप में होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाये।

(3) किसी अपील के निपटान की प्रक्रिया ऐसी होगी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाये;

परन्तु यह कि किसी अपील के निपटान से पूर्व पक्षकारों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा।

(4) यदि कोई विवाद राज्य जैवविविधता बोर्डों के बीच उत्पन्न होता है तो केन्द्रीय सरकार उसे राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को निर्देशित करेगी।

(5) उपधारा (4) के अधीन किसी विवाद का न्यायनिर्णयन करते समय राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों द्वारा मार्गदर्शित होगा और ऐसी प्रक्रिया का पालन करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित की जाये।

(6) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को, इस धारा के अधीन अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिये, निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में, वही शक्तियाँ होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित है, अर्थातः-

(क) किसी साक्षी को समन करना और हाजिर कराना तथा उसकी शपथ पर परीक्षा करना;
(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और उन्हें पेश करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिये कमीशन निकालना;
(ङ) अपने विनिश्चयों का पुनर्विलोकन करना;
(च) किसी आवेदन को त्रुटि के लिये खारिज करना या उसका एकपक्षीय रूप से विनिश्चय करना;
(छ) किसी आवेदन को त्रुटि के लिये खारिज करने के किसी आदेश या उसके द्वारा एकपक्षीय रूप से पारित किसी आदेश को अपास्त करना;
(ज) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाये।

(7) राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण के समक्ष प्रत्येक कार्यवाही, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थान्तर्गत और धारा 196 के प्रयोजन के लिये न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी तथा राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनों के लिये सिविल न्यायालय समझा जाएगा।

51. राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण और राज्य जैवविविधता बोर्ड के सदस्यों, अधिकारियों आदि का लोक सेवक समझा जाना


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के सभी सदस्य, अधिकारी और अन्य कर्मचारी, जब वे इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के अनुसरण में कायर्रत हैं या कार्यरत तात्पर्यित हों, भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझे जाएँगे।

52. अपील


इस अधिनियम के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के, फायदे में हिस्सा बँटाने के किसी अवधारण या आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, यथास्थिति, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के अवधारण या आदेश की उसे संसूचना की तारीख से तीस दिन के भीतर उच्च न्यायालय को अपील कर सकेगा;

परन्तु यदि उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी उक्त अवधि के भीतर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित रहा है तो वह उक्त अपील साठ दिन से अनधिक की और अविध के भीतर फाइल किये जाने को अनुज्ञात कर सकेगा;

1(परन्तु यह और कि इस धारा की कोई बात राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के प्रारम्भ से ही लागू नहीं होगी;

परन्तु यह भी कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के प्रारम्भ से पूर्व उच्च न्यायालय के समक्ष लम्बित कोई अपील, उच्च न्यायालय द्वारा उसी प्रकार सुनी जाएगी और उसका निपटान किया जाएगा, मानो राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 3 के अधीन राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना नहीं की गई हो।)

1(52 क. राष्ट्रीय हरित अधिकरण को अपील


कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के प्रारम्भ होने पर या उसके पश्चात राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के किसी लाभ में हिस्सा बँटाने के अवधारण या आदेश से व्यथित है, वह राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 की धारा 3 के अधीन स्थापित राष्ट्रीय हरित अधिकरण को, उस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार अपील फाइल कर सकेगा।)

53. अवधारण या आदेश का निष्पादन


इस अधिनियम के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड द्वारा किया गया फायदे में हिस्सा बँटाने का प्रत्येक अवधारण या आदेश अथवा राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के किसी अवधारण या आदेश के विरुद्ध किसी अपील में उच्च न्यायालय द्वारा किया गया कोई आदेश, यथास्थिति, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के किसी अधिकारी या उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार द्वारा जारी प्रमाणपत्र पर, सिविल न्यायालय की डिक्री समझा जाएगा और उसी रीति में निष्पादनीय होगा जिसमें उस न्यायालय की डिक्री होती है।

स्पष्टीकरण


इस धारा और धारा 52 के प्रयोजनों के लिये, “राज्य जैवविविधता बोर्ड” पद के अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह भी है जिसे धारा 22 की उपधारा (2) के अधीन की शक्तियाँ या कृत्य उस उपधारा के परन्तुक के अधीन प्रत्यायोजित किये गए हैं और इस धारा के अधीन ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से सम्बन्धित प्रमाणपत्र, यथास्थिति, ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा जारी किया जाएगा।

54. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण


इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए नियमों या विनियमों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के किसी अधिकारी या राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड के किसी सदस्य, अधिकारी या कर्मचारी के विरुद्ध नहीं होगी।

55. शास्तियाँ


(1) जो कोई धारा 3 या धारा 4 या धारा 6 के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा या उल्लंघन करने का प्रयास करेगा या उल्लंघन करने का दुष्प्रेरण करेगा वह कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दस लाख रुपए तक का हो सकेगा और जहाँ कारित नुकसान दस लाख रुपए से अधिक हो, वहाँ जुर्माना कारित नुकसान के अनुरूप हो सकेगा अथवा दोनों से दण्डनीय होगा।

(2) जो कोई धारा 7 के उपबन्धों का या धारा 24 की उपधारा (2) के अधीन किये गए किसी आदेश का उल्लंघन करेगा या उल्लंघन करने का प्रयास करेगा या उल्लंघन करने का दुष्प्रेरण करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो पाँच लाख रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।

56. केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण और राज्य जैवविविधता बोर्डों के निदेशों या आदेशों के उल्लंघन के लिये शास्ति


यदि कोई व्यक्ति केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार, राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण या राज्य जैवविविधता बोर्ड द्वारा दिये गए किसी निदेश या किये गए किसी आदेश का उल्लंघन करेगा, जिसके लिये इस अधिनियम के अधीन पृथक्क रूप से किसी दण्ड का उपबन्ध नहीं किया गया है, तो वह जुर्माने से जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा और किसी दूसरे या पश्चातवर्ती अपराध के लिये ऐसे जुर्माने से जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा तथा उल्लंघन जारी रहने की दशा में अतिरिक्त जुर्माने से जो व्यतिक्रम जारी रहने के दौरान प्रत्येक दिन के लिये दो लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।

57. कम्पनियों द्वारा अपराध


(1) जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध या उल्लंघन किसी कम्पनी द्वारा किया गया है, वहाँ ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध या उल्लंघन किये जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये कम्पनी का भारसाधक था और उसके प्रति उत्तरदायी था साथ ही वह कम्पनी भी, ऐसे अपराध या उल्लंघन के दोषी समझे जाएँगे और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने के लिये दायी होंगे;

परन्तु इस उपधारा की कोई बात, किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबन्धित किसी दण्ड के लिये दायी नहीं बनाएगी, यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध या उल्लंघन उसकी जानकारी के बिना किया गया था या यह कि उसने ऐसे अपराध या उल्लंघन के किये जाने को निवारित करने के लिये सभी सम्यक तत्परता बरती थी।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध या उल्लंघन किसी कम्पनी द्वारा किया गया है और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध या उल्लंघन कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध या उल्लंघन का किया जाना उसकी अपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी अपराध या उल्लंघन का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने के लिये और दण्डित किये जाने के लिये दायी होगा।

स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजनों के लिये-

(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; और
(ख) फर्म से सम्बन्ध में “निदेशक” से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है।

58. अपराधों का संज्ञेय और अजमानतीय होना


इस अधिनियम के अधीन अपराध संज्ञेय और अजमानतीय होंगे।

59. अधिनियम का प्रभाव अन्य अधिनियमों के अतिरिक्त होगा


इस अधिनियम के उपबन्ध, वन और वन्य जीव से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त होंगे और न कि उनके अल्पीकरण में।

60. राज्य सरकार को निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति


केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या विनियम या किये गए आदेश के किन्हीं उपबन्धों के किसी राज्य में निष्पादित करने के लिये किसी राज्य सरकार को निदेश दे सकेगी।

61. अपराधों का संज्ञान


कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का संज्ञान-

(क) केन्द्रीय सरकार या उस सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी प्राधिकारी या अधिकारी द्वारा; या
(ख) ऐसे किसी फायदे के दावेदार द्वारा जिसने ऐसे अपराध की और कोई परिवाद किये जाने के अपने आशय की केन्द्रीय सरकार या पूर्वोक्त रूप में प्राधिकृत प्राधिकारी या अधिकारी को विहित रीति में तीस दिन से अन्यून की सूचना दे दी है,

किये गए परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहीं।

62. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये नियम राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किसी विषय के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थातः-

(क) धारा 9 के अधीन अध्यक्ष और सदस्य की सेवा के निबन्धन और शर्तें;
(ख) धारा 10 के अधीन अध्यक्ष की शक्तियाँ और कर्तव्य;
(ग) अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में धारा 12 की उपधारा (1) के अधीन प्रक्रिया;
(घ) धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन कतिपय क्रियाकलाप करने के लिये आवेदन का प्रारूप और उसके लिये फीस का सन्दाय;
(ङ) धारा 19 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन करने का प्रारूप और रीति;
(च) धारा 20 की उपधारा (2) के अधीन जैव संसाधन या ज्ञान के अन्तरण के लिये आवेदन का प्रारूप और रीति;
(छ) वह प्रारूप जिसमें और प्रत्येक वित्तीय वर्ष का वह समय जिस पर धारा 28 के अधीन राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाएगी और वह तारीख जिससे पूर्व उस पर सम्परीक्षक की रिपोर्ट के साथ लेखाओं की सम्परीक्षित प्रति दी जाएगी;
(ज) वह प्रारूप जिसमें धारा 29 के अधीन वार्षिक लेखा-विवरण तैयार किया जाना है;
(झ) वह समय जिसके भीतर और वह प्रारूप जिसमें अपील की जा सकेगी, और अपील का निपटान करने के लिये प्रक्रिया तथा धारा 50 के अधीन न्यायनिर्णयन के लिये प्रक्रिया;
(ञ) वह अतिरिक्त विषय जिसमें राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण धारा 50 की उपधारा (6) के खण्ड (ज) के अधीन सिविल न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा;
(ट) धारा 61 के खण्ड (ख) के अधीन सूचना देने की रीति;
(ठ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाएगा अथवा जिसकी बाबत नियमों द्वारा उपबन्ध किया जाना है।

(3) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक विनियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिये सत्र में हो, जो एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकती है, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ या दोनों सदन इस बात से सहमत हो जाएँ कि वह नियम या विनियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसा नियम या विनियम, यथास्थित, तत्पश्चात केवल ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा, तथापि केवल ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पहले उस नियम या विनियम के अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

63. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति


(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा,नियम बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों से निम्नलिखित सभी या किसी विषय के लिये उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थातः-

(क) धारा 23 के खण्ड (ग) के अधीन राज्य जैवविविधता बोर्ड द्वारा निर्वहन किये जाने वाले अन्य कृत्य;
(ख) वह प्रारूप जिसमें धारा 24 की उपधारा (1) के अधीन पूर्वसूचना दी जाएगी;
(ग) वह प्रारूप जिसमें और प्रत्येक वित्तीय वर्ष का वह समय जिस पर धारा 33 के अधीन वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाएगी;
(घ) राज्य जैवविविधता बोर्ड के लेखा रखने और उनकी सम्परीक्षा करने की रीति तथा वह तारीख जिससे पूर्वधारा 34 के अधीन उन पर सम्परीक्षक की रिपोर्ट के साथ लेखाओं की सम्परीक्षित प्रति दी जाएगी;
(ङ) धारा 37 के अधीन राष्ट्रीय विरासत स्थलों का प्रबन्ध और संरक्षण;
(च) धारा 44 की उपधारा (1) के अधीन स्थानीय जैवविविधता निधि के प्रबन्ध और अभिरक्षा की रीति तथा वह प्रयोजन जिनके लिये ऐसी निधि का उपयोग किया जाएगा;
(छ) धारा 45 के अधीन वार्षिक रिपोर्ट का प्रारूप और वह समय जिस पर प्रत्येक वित्तीय वर्ष के दौरान ऐसी रिपोर्ट तैयार की जाएगी;
(ज) धारा 46 के अधीन स्थानीय जैवविविधता निधि के लेखा रखने और उनकी सम्परीक्षा करने की रीति तथा वह तारीख जिससे पूर्व उन पर सम्परीक्षा की रिपोर्ट के साथ उसके लेखाओं की सम्परीक्षित प्रति दी जाएगी;
(झ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है या किया जाये।

(3) इस धारा के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात, यथाशीघ्र, राज्य विधानमण्डल के प्रत्येक सदन के समक्ष, जहाँ इसके दो सदन हैं या जहाँ ऐसे विधानमण्डल का एक सदन है, उस सदन के समक्ष रखा जाएगा।

64. विनियम बनाने की शक्ति


राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये विनियम बना सकेगा।

65. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति


(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, ऐसे आदेश द्वारा, जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हो, उस कठिनाई को दूर कर सकेगी;

परन्तु ऐसा कोई आदेश, इस अधिनियम के प्रारम्भ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा।

(2) इस धारा के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश किये जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।

सन्दर्भ


1. 2010 की अधिनियम सं 19 की धारा 36 और अनुसूची 3 द्वारा अन्तःस्थापित।


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