परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 (Atomic energy rules in India in Hindi)

Submitted by Editorial Team on Thu, 08/24/2017 - 15:07

(1962 का अधिनियम संख्यांक 33)


{15 सितम्बर, 1962}

भारत की जनता के कल्याण के लिये और अन्य शान्तिपूर्ण प्रयोजनों के लिये परमाणु ऊर्जा के विकास, नियंत्रण और उपयोग के लिये और उससे सम्बद्ध बातों के निमित्त उपबन्ध करने के लिये अधिनियमभारत गणराज्य के तेरहवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ -


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 है।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख1 को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।

2. परिभाषाएँ और निवर्चन


(1) इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो -

(क) ‘परमाणु ऊर्जा’ से परमाणु केन्द्रक द्वारा विखण्डन और संलयन की प्रक्रियाओं सहित किसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप निकली ऊर्जा अभिप्रेत है;
(ख) विखंड्य सामग्री से अभिप्रेत है यूरेनियम 233, यूरेनियम 235, प्लूटोनियम या कोई अन्य सामग्री जिसमें ये पदार्थ हैं या कोई ऐसी अन्य सामग्री है जिसे केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस रूप में घोषित करे;
2[(खख) “सरकारी कम्पनी” से ऐसी कम्पनी अभिप्रेत है, जिसमें -

(i) केन्द्रीय सरकार द्वारा इक्यावन प्रतिशत से अन्यून समादत्त शेयर पूँजीधारित की जाती है; या

(ii) सम्पूर्ण समादत्त शेयर पूँजी, उपखण्ड (i) में विनिर्दिष्ट एक या अधिक कम्पनियों द्वारा धारित की जाती है और इसके संगम अनुच्छेदों द्वारा केन्द्रीय सरकार को इसके निदेशक बोर्ड को गठित और पुनर्गठित करने के लिये सशक्त करती है;}

(ग) “खनिज” के अन्तर्गत ऐसे सभी पदार्थ हैं जो मृदा से (जिसके अन्तर्गत जलोढ़ या चट्टानें हैं) भूमिगत या सतह पर कार्यकरण द्वारा प्राप्त किये गए हैं या प्राप्त किये जा सकते हैं;

(घ) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;

(ङ) ‘संयंत्र’ के अन्तर्गत मशीनरी, उपस्कर या साधित्र हैं चाहे वे भूमि से बद्ध हों या नहीं;

(च) ‘विहित उपस्कर” से ऐसी सम्पत्ति अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, विहित करे और जो उसकी राय में ऐसी सम्पत्ति है जो किसी विहित पदार्थ के उत्पादन या उपयोजन के लिये, या परमाणु ऊर्जा, रेडियोऐक्टिव पदार्थ या विकिरण के उत्पादन या उपयोजन के लिये विशेषतया प्रकल्पित या अनुकूलित है या उपयोग की जाती है या उपयोग किये जाने के लिये आशयित है, किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसे खनन, पेषण, प्रयोगशाला सम्बन्धी और अन्य उपस्कर नहीं हैं जो इस प्रकार विशेषतः प्रकल्पित या अनुकूलित नहीं हैं और जो पूर्वोक्त प्रयोजनों में से किसी के लिये उपयोग किये जाने वाले या उपयोग के लिये आशयित किसी उपस्कर में समाविष्ट नहीं हैं;

(छ) विहित पदार्थ’ से केन्द्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विहित किसी खनिज सहित, ऐसा पदार्थ अभिप्रेत है, जो उसकी राय में, परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग या उससे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान के लिये उपयोग किया जाता है या किया जा सकता है, और इसके अन्तगर्त यूरेनियम, प्लूटोनियम, थोरियम, बैरिलियम, ड्यूटेरियम या उनके कोई व्युुत्पन्न या यौगिक या अन्य ऐसी सामग्री है जिसमें उपर्युक्त पदार्थों में से कोई पदार्थ अन्तर्विष्ट है;

(ज) विकिरण” से गामा किरण, एक्स-रे और अल्फाकण, बीटाकण, न्यूट्रॉन, प्रोटान और अन्य केन्द्रक और उप परमाणु कण वाली किरणें अभिप्रेत हैं ; किन्तु ध्वनि या रेडियो तरंगें, या दृश्य, अवरक्त या पराबैंगनी प्रकाश नहीं हैं;

(झ) “रेडियोएक्टिव पदार्थ’ या ‘रेडियोएक्टिव सामग्री’ से ऐसा पदार्थ या सामग्री अभिप्रेत है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विहित स्तरों से अधिक विकिरण स्वतः उत्सर्जित करती है।

(2) इस अधिनियम में खनिज निकालने के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत खनिजों के खनन करने, प्राप्त करने, उन्हें बाहर लाने, उनका परिवहन करने, उन्हें छाँटने, उनके निष्कर्षण या उनकी अन्यथा अभिक्रिया के प्रति निर्देश है।

(3) इस अधिनियम में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अन्तर्गत ऐसे उत्पादन या उपयोग की प्रारम्भिक या अनुषंगी प्रक्रिया करने के प्रति निर्देश है।

3. केन्द्रीय सरकार की साधारण शक्तियाँ


इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए केन्द्रीय सरकार को निम्नलिखित शक्ति होंगी -

(क) “परमाणु ऊर्जा का 1[या तो स्वयं या अपने द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या किसी सरकारी कम्पनी के माध्यम से] उत्पादन, विकास, उपयोग और व्ययन करना और उससे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान करना;2 [(ख) किसी विहित या रेडियोऐक्टिव पदार्थ और ऐसी वस्तु का, जो उसकी राय में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, विकास या उपयोग के लिये, यथापूर्वोक्त अनुसन्धान के लिये या उसके सम्बन्ध में अपेक्षित है या जिसके अपेक्षित होने की सम्भाव्यता है, विनिर्माण करना या अन्यथा उत्पादन करना और ऐसे विनिर्मित या अन्यथा उत्पादित किसी विहित या रेडियोएक्टिव पदार्थ या वस्तु का व्ययन करना;

(खख) या तो स्वयं या अपने द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या किसी सरकारी कम्पनी के माध्यम से-

(i) किसी विहित या रेडियोएक्टिव पदार्थ और ऐसी वस्तु का, जो उसकी राय में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन विकास या उपयोग के लिये या उसके सम्बन्ध में, अपेक्षित है, या जिसके अपेक्षित होने की सम्भाव्यता है, क्रय करना या अन्यथा अर्जित या भाण्डागारित या परिवहनित करना; और

(ii) अपने द्वारा क्रय किये गए या अन्यथा, अर्जित ऐसे विहित या रेडियोएक्टिव पदार्थ या वस्तु का व्ययन करना,}

(ग) निम्नलिखित से सम्बन्धित किसी जानकारी को जो अब तक प्रकाशित न हो या अन्यथा जनता की जानकारी में न आई हो ‘निर्बन्धित जानकारी’ घोषित करना-

(i) विहित पदार्थों का अवस्थान, क्वालिटी और मात्रा और उनके अर्जन के, चाहे वह क्रय द्वारा हो या अन्यथा, या उनके व्ययन के, चाहे वह विक्रय द्वारा हो या अन्यथा, संव्यवहार;

(ii) विहित पदार्थों का प्रसंस्करण और उनसे विखंड्य सामग्री का निष्कर्षण या उत्पादन;

(iii) विहित पदार्थों में से किसी की अभिक्रिया और उत्पादन के लिये और समस्थानिकों के पृथक्करण के लिये संयंत्र के सिद्धान्त, डिजाइन, निर्माण और प्रचालन;

(iv) परमाणु भट्टी का सिद्धान्त, डिजाइन, निर्माण और प्रचालन;
(v) मद (i) से मद (iv) तक सम्मिलित या उनसे उद्भूत सामग्री और प्रक्रियाओं के बारे में अनुसन्धान और प्रौद्योगिक कार्य;

(घ) किसी क्षेत्र या परिसर को, जहाँ परमाणु ऊर्जा या किसी विहित पदार्थ के उत्पादन, अभिक्रिया, उपयोग, प्रयोग या व्ययन की बाबत अनुसन्धान, डिजाइन या विकास सहित कोई काम किया जाता है, ‘प्रतिषिद्ध क्षेत्र’ घोषित करना;

(ङ) रेडियोएक्टिव पदार्थों का विकिरण उत्पादन संयंत्र पर -

(i) विकिरण संकट का निवारण करने के लिये;
(ii) सार्वजनिक सुरक्षा और रेडियोएक्टिव पदार्थों या विकिरण उत्पादन संयंत्रों को हथालने वाले व्यक्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये; और

(iii) रेडियोएक्टिव अपशिष्ट के निरापद व्ययन को सुनिश्चित करने के लिये नियंत्रण का उपबन्ध करना;

(च) परमाणु ऊर्जा से विद्युत के उत्पादन और प्रदाय के लिये और ऐसे उत्पादन और प्रदाय के साधक उपाय करने के लिये और उससे आनुषंगिक सभी मामलों के लिये1 [या तो स्वयं या अपने द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या किसी सरकारी कम्पनी के माध्यम से] उपबन्ध करना; और

(छ) ऐसी सभी बातें करना (जिसके अन्तर्गत भवनों का निर्माण और संकर्मों का निष्पादन और खनिजों का निकालना भी है), जो केन्द्रीय सरकार पूर्वगामी शक्तियों के प्रयोग के लिये आवश्यक या समीचीन समझे।

4. यूरेनियम या थोरियम की खोज की सूचना


(1) प्रत्येक व्यक्ति जिसने, चाहे इस अधिनियम के प्रारम्भ के पहले या पश्चात यह खोज की है या जो यह खोज करता है कि यूरेनियम या थोरियम भारत में किसी स्थान पर पाया जाता है, इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से या खोज की तारीख से तीन मास के अन्दर, इनमें से जो भी बाद में पड़े, खोज की रिपोर्ट लिखित रूप में केन्द्रीय सरकार को या इस निमित्त केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को देगा।

(2) प्रत्येक व्यक्ति जिसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि यूरेनियम या थोरियम भारत में किसी स्थान पर पाया जाता है, बिना विलम्ब के, ऐसे विश्वास और उसके कारणों की सूचना केन्द्रीय सरकार को या पूर्वोक्त व्यक्ति या प्राधिकारी को देगा।

5. यूरेनियम वाले पदार्थों के खनन अथवा सांद्रीकरण पर नियंत्रण


(1) यदि केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि कोई व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ का खनन कर रहा है या करने वाला है जिससे, केन्द्रीय सरकार की राय में यूरेनियम विलग या निष्कर्षित किया जा सकता है या युक्तियुक्त रूप से ऐसा किये जाने की प्रत्याशा की जा सकती है या किसी ऐसे पदार्थ की जिससे केन्द्रीय सरकार की राय में, यूरेनियम विलग या निष्कर्षित किया जा सकता है या युक्तियुक्त रूप से ऐसा करने की प्रत्याशा की जा सकती है किसी भौतिक, रासायनिक या धातुकर्म सम्बन्धी प्रक्रिया से अभिक्रिया या सांद्रण करने में लगा है या करने वाला है तो, केन्द्रीय सरकार उस व्यक्ति को लिखित सूचना द्वारा या तो -(क) उपर्युक्त पदार्थ की खनन संक्रियाओं के संचालन में या उसकी अभिक्रिया या सांद्रण करने में उससे ऐसी शर्तों और निबन्धनों का पालन करने की और ऐसी प्रक्रियाओं को अपनाने की अपेक्षा कर सकती है जो केन्द्रीय सरकार, उस सूचना में या उसके पश्चात समय-समय पर, विनिर्दिष्ट करना ठीक समझे, या

(ख) उपर्युक्त पदार्थ की खनन संक्रियाओं के संचालन से या अभिक्रिया या सांद्रण करने से पूणर्तः प्रतिषिद्ध कर सकती है।

(2) जहाँ उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन किसी पदार्थ की खनन संक्रियाएं संचालित करने वाले या अभिक्रिया या सांद्रण करने वाले किसी व्यक्ति पर कोई शर्तें और निबन्धन अधिरोपित किये जाते हैं वहाँ, केन्द्रीय सरकार, शर्तों और निबन्धनों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, यह विनिश्चय कर सकती है कि उस व्यक्ति को कोई प्रतिकर न दिया जाएगा या नहीं और केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा:

परन्तु जहाँ केन्द्रीय सरकार कोई प्रतिकर न देने का विनिश्चय करती है वहाँ वह ऐसे विनिश्चय के कारण देते हुए एक संक्षिप्त कथन लेखबद्ध करेगी।

(3) जहाँ केन्द्रीय सरकार उपधारा (2) के अधीन कोई प्रतिकर देने का विनिश्चय करती है वहाँ उसकी रकम धारा 21 के अनुसार अवधारित की जाएगी किन्तु संदेय प्रतिकर की संगणना करने में उपधारा (1) में निर्दिष्ट पदार्थ में अन्तर्विष्ट यूरेनियम के मूल्य को लेखे में नहीं लिया जाएगा।

(4) जहाँ उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन किसी पदार्थ की खनन संंक्रिया या अभिक्रिया या सांद्रण की कोई प्रक्रिया प्रतिषिद्ध है वहाँ, केन्द्रीय सरकार खनन संक्रिया का संचालन करने वाले या अभिक्रिया या सांद्रण की प्रक्रिया का उपयोग करने वाले व्यक्ति को प्रतिकर देगी और ऐसे प्रतिकर की रकम धारा 21 के अनुसार अवधारित की जाएगी किन्तु संदेय प्रतिकर की संगणना करने में, उस पदार्थ में अन्तर्विष्ट यूरेनियम के मूल्य को लेखे में नहीं लिया जाएगा।

6. यूरेनियम का व्ययन


(1) किसी खनिज, सांद्र अन्य सामग्री का, जिसमें यूरेनियम अपनी प्राकृतिक अवस्था में ऐसे अनुपात से अधिक है, जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा विहित करे, केन्द्रीय सरकार की लिखित पूर्व-अनुज्ञा के बिना व्ययन नहीं किया जाएगा और उनका ऐसी शर्तों और निबन्धनों के अनुसार ही व्ययन किया जाएगा जो केन्द्रीय सरकार अधिरोपित करे।

(2) केन्द्रीय सरकार किसी ऐसे व्यक्ति पर, जिसने उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई खनिज, सांद्र या अन्य सामग्री का उत्पादन किया है, यह सूचना तामील कर सकती है कि केन्द्रीय सरकार 1 [उसे अनिवार्य रूप से अर्जित करने की प्रस्थापना करती है और सूचना की तामील होने पर, और धारा 21 के अनुसार प्रतिकर के संदाय पर, खनिज, सांद्रण या अन्य सामग्री केन्द्रीय सरकार की सम्पत्ति हो जाएगी और केन्द्रीय सरकार को या जिसे वह निदेश करे उसे परिदत्त कर दी जाएगी:

3{(3) उपधारा (2) के अधीन अर्जन की बाबत प्रतिकर का संदाय धारा 21 के अनुसार किया जाएगा और ऐसे प्रतिकर के अवधारण में ऐसे खनिज, सांद्र या अन्य सामग्री के उत्पादन की लागत को तथा ऐसी अन्य बातों को, जो सुसंगत हों, ध्यान में रखा जाएगा, किन्तु उसमें उसकी प्राकृतिक अवस्था में अन्तर्विष्ट यूरेनियम के मूल्य को हिसाब में नहीं लिया जाएगा।]

7. सामग्री, संयंत्र या प्रक्रियाओं के बारे में सूचना प्राप्त करने की शक्ति


केन्द्रीय सरकार, किसी व्यक्ति पर लिखित सूचना तामील करके, उससे ऐसे समय पर और ऐसी विशिष्टियाँ अन्तर्विष्ट करते हुए और ऐसे रेखांक, रेखाचित्रों और अन्य दस्तावेजों के साथ, जो सूचना में विनिर्दिष्ट की जाएँ, ऐसी नियत कालिक और अन्य विवरिणयों या कथनों की अपेक्षा कर सकती है जो निम्नलिखित के सम्बन्ध में विनिर्दिष्ट की जाएँ:-

(क) उसके कब्जे में, या उसके नियंत्रण के अधीन, स्वामित्व या अधिभोग की किसी भूमि पर या, खान में या जो केन्द्रीय सरकार की राय में विहित पदार्थों में से किसी का स्रोत है या हो सकती है, पाया जाने वाला तथा सूचना में विनिर्दिष्ट कोई विहित पदार्थ और इसके अन्तर्गत ऐसी भूमि या खान की बाबत विवरणियाँ भी हैं;

(ख) उसके कब्जे में या उसके नियंत्रण के अधीन, ऐसे विनिर्दिष्ट खनिजों के खनन या प्रसंस्करण के लिये डिजाइन किया गया, या परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग या उनसे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान के लिये अनुकूलित, कोई संयंत्र;

(ग) ऐसे विनिर्दिष्ट खनिजों के पूर्वेक्षण या खनन या परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग या उनसे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान के सम्बन्ध में उसके द्वारा की गई कोई संंविदा या उसके द्वारा या उसको अनुदत्त कोई अनुज्ञप्ति;

(घ) इस प्रकार विनिर्दिष्ट सामग्री के पूर्वेक्षण या खनन या परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग के या उनसे सम्बद्ध किसी विषय में अनुसन्धान के सम्बन्ध में उसके द्वारा या उसकी ओर से या उसके निदेशों के अधीन किये जाने वाले किसी काम से सम्बन्धित कोई अन्य जानकारी जो उसके पास है।

8. प्रवेश और निरीक्षण की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई व्यक्ति, अपना प्राधिकार प्रदर्शित करने वाली सम्यक्तः अनुप्रमाणित दस्तावेज को पेश करके, यदि ऐसी अपेक्षा की जाती है तो, किसी ऐसी खान में या परिसर या भूमि पर प्रवेश कर सकता है जहाँ-

(क) उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि किन्हीं विहित पदार्थों या ऐसे पदार्थों के, जिनसे कोई विहित पदार्थ प्राप्त किया जा सकता है, उत्पादन और प्रसंस्करण के या परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, विकास या उपयोग के या उनसे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान के प्रयोजन के लिये या उनके सम्बन्ध में कोई काम किया जा रहा है, या

(ख) धारा 7 के खण्ड (ख) में उल्लिखित कोई संयंत्र स्थित है,और उस खान, परिसर या भूमि और उसमें अन्तर्विष्ट वस्तुओं का निरीक्षण कर सकता है।

(2) निरीक्षण करने वाला व्यक्ति उस खान, परिसर या भूमि पर पाये गए किसी रेखाचित्र रेखांक या अन्य दस्तावेज की प्रतियाँ बना सकता है या उनसे उद्धरण ले सकता है और ऐसी प्रतियाँ बनाने या उद्धरण लेने के प्रयोजन के लिये, ऐसे रेखाचित्र, रेखांक या अन्य दस्तावेज को उसके लिये सम्यक्तः हस्ताक्षरित रसीद देकर हटा सकता है और सात दिन से अनधिक कालावधि के लिये उसे कब्जे में ले सकता है।

9. खनिजों की खोज के लिये काम करने की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार, इस धारा के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी भूमि की सतह पर, उसके ऊपर या नीचे ऐसा काम कर सकती है जो वह यह खोज करने के प्रयोजन के लिये आवश्यक समझे कि क्या उस भूमि में या उस पर, प्राकृतिक अवस्था में, या भूमिगत या सतह पर काम होने से प्राप्त अपशिष्ट सामग्री के निक्षेप के रूप में, कोई ऐसा पदार्थ मौजूद है जिससे उसकी राय में कोई विहित पदार्थ प्राप्त किये जा सकते हैं और यह कि इस प्रकार वहाँ ऐसा पदार्थ कितनी मात्रा में मौजूद है।

(2) किसी भूमि के सम्बन्ध में उपधारा (1) के अधीन किन्हीं शक्तियों का प्रयोग किये जाने के पहले, केन्द्रीय सरकार उस भूमि के प्रत्येक स्वामी, पट्टेदार और अधिभोगी पर एक लिखित सूचना की तामील करेगी जिसमें प्रस्थापित संकर्म की प्रकृति और प्रभावित भूमि का विस्तार और वह समय, जो अट्ठाइस दिन से कम नहीं होगा, जिसके अन्दर और वह रीति जिससे उस पर आक्षेप किये जा सकते हैं, विर्निदष्ट होंगे और ऐसी शक्तियों का प्रयोग, बिना सूचना का अनुसरण किये या आक्षेप करने के लिये उसमें विनिर्दिष्ट समय के अवसान के पूर्व नहीं किया जाएगा।

(3) केन्द्रीय सरकार, आक्षेप करने वाले व्यक्ति को केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिये नियुक्त व्यक्ति के समक्ष उपस्थित होने और उसके द्वारा सुने जाने का अवसर देने के पश्चात और ऐसे आक्षेप पर और इस प्रकार नियुक्त व्यक्ति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात ऐसे आदेश दे सकती है जो वह उचित समझे किन्तु आदेश से प्रभावित भूमि की सीमा में वृद्धि नहीं की जाएगी।

(4) इस धारा के अधीन शक्तियों के प्रयोग के परिणामस्वरूप किसी भूमि या उस पर स्थित सम्पत्ति के मूल्य में कमी होने की बाबत प्रतिकर धारा 21 के अनुसार अवधारित और संदत्त किया जाएगा।

10. खनिज निकालने के अधिकारों का अनिवार्य अर्जन -


(1) जहाँ केन्द्रीय सरकार को यह प्रतीत होता है कि कोई खनिज, जिससे उसकी राय में कोई विहित पदार्थ प्राप्त किये जा सकते हैं, किसी भूमि में या उस पर प्राकृतिक अवस्था में, या भूमिगत या सतह पर काम होने से प्राप्त अपशिष्ट सामग्री के निक्षेप के रूप में मौजूद है वहाँ वह आदेश द्वारा इस बात की व्यवस्था कर सकती है कि जब तक आदेश प्रवृत्त रहें तब तक उन खनिजों को और किन्हीं अन्य खनिजों को, जो केन्द्रीय सरकार को उन खनिजों के साथ निकालने के लिये आवश्यक प्रतीत हों, निकालने के अनन्य अधिकार केन्द्रीय सरकार में अनिवार्यतः निहित हों और उस आदेश द्वारा या किसी पश्चात्वर्ती आदेश द्वारा यह व्यवस्था भी कर सकती है कि केन्द्रीय सरकार में अन्य अनुषंगी अधिकार, जो केन्द्रीय सरकार को पूर्वोक्त खनिजों को निकालने के लिये आवश्यक प्रतीत हों, अनिवार्यतः निहित हों और इन अधिकारों के अन्तगर्त (पूवर्गामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना) निम्नलिखित होंगे:

(क) टेक हटा लेने के अधिकार;

(ख) पूर्वोक्त खनिजों तक पहुँच के या उनके पारेषण या खदान के संवातन या जल निकास के प्रयोजन के लिये आवश्यक अधिकार;

(ग) कोई आवश्यक भवन निर्माण करने और पूर्वोक्त खनिजों के निकालने से सम्बन्धित कोई आवश्यक संयंत्र प्रतिष्ठापित करने के प्रयोजन के लिये किसी भूमि की सतह का उपयोग और अधिभोग करने के अधिकार;

(घ) पूर्वोक्त खनिजों के निकालने के प्रयोजन के लिये किसी विमान खान या खुली खान के भागरूप या उसके सम्बन्ध में उपयोग की जाने वाली किसी भूमि का उपयोग और अधिभोग करने के और किसी ऐसी खान या खुली खान के सम्बन्ध में उपयोग किये जाने वाले किसी संयंत्र का उपयोग या अर्जन करने के अधिकार; और

(ङ) पूर्वोक्त खनिजों के निकालने से सम्बद्ध प्रयोजनों के लिये जल-प्रदाय प्राप्त करने के या ऐसे खनिजों के निकालने के परिणामस्वरूप प्राप्त जल या अन्य द्रव पदार्थ व्ययन करने के अधिकार।

(2) इस धारा के अधीन किये जाने के लिये प्रस्थापित किसी आदेश की सूचना की तामील केन्द्रीय सरकार द्वारा निम्निलिखत व्यक्तियों पर की जाएगी।

(क) उन सभी व्यक्तियों पर, जो यदि यह आदेश न होता तो, प्रभावित खनिज निकालने के हकदार होते; और

(ख) ऐसी भूमि के प्रत्येक स्वामी, पट्टेदार और अधिभोगी पर (एक मास या एक मास से कम के अभिधारी को छोड़कर) जिसकी बाबत आदेश के अधीन अधिकारों को अर्जित करने की प्रस्थापना है।

(3) इस धारा के अधीन अर्जित किसी अधिकार की बाबत प्रतिकर धारा 21 के अनुसार संदत्त किया जाएगा, किन्तु संदेय प्रतिकर की संगणना करने में, आदेश द्वारा प्रभावित भूमि में या उस पर पाये जाने वाले किन्हीं ऐसे खनिजों के मूल्य को लेखे में नहीं लिया जाएगा जो आदेश में उन खनिजों के रूप में विनिर्दिष्ट हैं जिनसे केन्द्रीय सरकार की राय में यूरेनियम या यूरेनियम का कोई सांद्र या व्युत्पन्न प्राप्त किया जा सकता है।

11. विहित पदार्थ, खनिजों और संयंत्रों का अनिवार्य अर्जन


(1) इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, केन्द्रीय सरकार इस धारा के उपबन्धों के अनुसार निम्नलिखित को अनिवार्यतः अर्जित कर सकती है, अर्थात -

(क) कोई विहित्त पदार्थ;

(ख) ऐसे खिनिज जिनसे केन्द्रीय सरकार की राय में विहित पदार्थों में से कोई भी प्राप्त किये जा सकते हैं;

(ग) कोई विहित उपस्कर;
(घ) कोई संयंत्र जो खण्ड (ख) में निर्दिष्ट किसी खनिज या उससे प्राप्त पदार्थों के खनन या प्रसंस्करण के लिये या किसी विहित पदार्थ या रेडियोएक्टिव पदार्थ के उत्पादन या उपयोग के लिये या ऐसी वस्तुओं के उत्पादन, उपयोग या व्ययन के लिये, जो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, उपयोग या व्ययन के लिये या के सम्बन्ध में या उनसे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान के लिये अपेक्षित हैं या जिनके अपेक्षित होने की सम्भाव्यता है, डिजाइन किया गया है या अनुकूलित है।

(2) जहाँ केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के खण्ड (घ) में निर्दिष्ट कोई संयंत्र अर्जित करती है वहाँ उसे ऐसे संयंत्र के काम आने वाले भवन, रेल साइडिंग, ट्रामवे लाइन या आकाशी रज्जु मार्ग अर्जित करने का अधिकार भी होगा।

(3) जहाँ केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन किसी सम्पत्ति को अर्जित करने की प्रस्थापना करती है वहाँ वह उसका स्वामी प्रतीत होने वाले व्यक्ति पर एक लिखित सूचना की तामील करेगी जिसमें अर्जित की जाने वाली सम्पत्ति विनिर्दिष्ट होगी और उस व्यक्ति से यह अपेक्षा होगी कि वह केन्द्रीय सरकार को सूचना में विनिर्दिष्ट समय के अन्दर एक लिखित घोषणा करे कि जिसमें ऐसी सम्पत्ति के स्वामित्व के बारे में और ऐसे करार या भार के बारे में जिसके आधार पर किसी अन्य व्यक्ति का ऐसी सम्पत्ति में कोई हित है, ऐसी विशिष्टियाँ होंगी जो इस प्रकार विनिर्दिष्ट की जाएँ।

(4) उपधारा (3) के अधीन सूचना की तामील पर किसी सम्पत्ति का जिसके सम्बन्ध में सूचना है केन्द्रीय सरकार की लिखित पूर्व अनुज्ञा के बिना व्ययन नहीं किया जाएगा।

(5) यदि उपधारा (3) के अनुसरण में केन्द्रीय सरकार को दी गई किसी लिखित घोषणा के परिणामस्वरूप उसे यह प्रतीत होता है कि उपधारा (3) के अधीन जिस व्यक्ति पर सूचना की तामील की गई थी उससे भिन्न कोई व्यक्ति उस सम्पत्ति का, जिसके सम्बन्ध में सूचना है, स्वामी है या उसमें कोई हित रखता है तो, केन्द्रीय सरकार उस अन्य व्यक्ति पर सूचना की एक प्रति तामील करेगी।

(6) उपधारा (3) के अधीन तामील की गई सूचना में इस आशय का कथन होगा कि उस पर ऐसे समय के अन्दर और ऐसी रीति से आक्षेप किया जा सकता है जो विनिर्दिष्ट किया जाये और यदि ऐसा कोई आक्षेप सम्यक्तः किया जाता है और वापस नहीं लिया जाता है तो, केन्द्रीय सरकार आक्षेप करने वाले व्यक्ति को केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिये नियुक्त व्यक्ति के समक्ष उपस्थित होने और उसके द्वारा सुने जाने का अवसर देगी।

(7) ऐसे आक्षेप पर, और उपधारा (6) के अधीन उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात केन्द्रीय सरकार उन व्यक्तियों पर, जिन पर उपधारा (3) के अधीन सूचना या उसकी प्रति की तामील की गई थी, उस सम्पत्ति की बाबत जिसके सम्बन्ध में वह है या उस सम्पत्ति के ऐसे भाग की बाबत जो विनिर्दिष्ट किया जाये या तो अर्जन की सूचना वापस लेने की या उक्त सूचना की पुष्टि करते हुए एक और लिखित सूचना तामील कर सकती है।

(8) कोई सम्पत्ति, जिसकी बाबत इस धारा के अधीन अर्जन की सूचना तामील की गई है -

(क) यदि सूचना पर कोई आक्षेप सम्यक्तः नहीं किया जाता है तो, ऐसा आक्षेप करने की अवधि समाप्त होने पर केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएगी;

(ख) यदि ऐसा आक्षेप सम्यक्तः किया जाता है और उपधारा (7) के अधीन तामील की गई सूचना ऐसी समस्त सम्पत्ति या उसके किसी भाग की बाबत सूचना की पुष्टि की जाती है तो, अन्त में उल्लिखित सूचना की तामील पर केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएगी,

और दोनों दशाओं में सभी विल्लंगमों से मुक्त होकर निहित होगी।

(9) इस धारा के अधीन अर्जन की बाबत प्रतिकर धारा 21 के अनुसार संदत्त किया जाएगा।

1{11क. शंकाओं को दूर किया जाना - शंकाओं को दूर करने के लिये यह घोषित किया जाता है कि धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन किसी खनिज, सांद्र या अन्य सामग्री के या धारा 11 की उपधारा (1) के अधीन किसी पदार्थ, खनिज, उपस्कर या संयंत्र के अनिवार्य अर्जन को, किसी प्रयोजन के लिये, वह चाहे जो हो, विक्रय नहीं समझा जाएगा।}

12. खान के अनिवार्य अर्जन की दशा में प्रतिकर


जहाँ केन्द्रीय सरकार, किसी विधि के अनुसार, कोई खान या खान का भाग, जिससे केन्द्रीय सरकार की राय में विहित पदार्थों में से कोई अभिप्राप्त किया जा सकता है, अर्जन करती है वहाँ ऐसे अर्जन की बाबत प्रतिकर धारा 21 के अनुसार संदत्त किया जाएगा:

परन्तु ऐसे प्रतिकर की रकम का अवधारण करने में ऐसी खान या खान के भाग से प्राप्त किये जा सकने वाले यूरेनियम का मूल्य लेखे में नहीं लिया जाएगा।

13. कुछ संंविदाओं का नवीयन


(1) केन्द्रीय सरकार किसी ऐसे पदार्थ के जिससे विहित पदार्थ में से कोई प्राप्त किया जा सकता है, पूर्वेक्षण या खनन के या परमाणु ऊर्जा के उत्पादन या उपयोग के या उससे सम्बद्ध विषय में अनुसन्धान के सम्बन्ध में संविदा के, जो व्यक्तिगत सेवाएँ अर्पित करने की संविदा नहीं है, पक्षकारों पर यह कथन करते हुए एक लिखित सूचना तामील कर सकती है कि ऐसी तारीख को, जो सूचना में विनिर्दिष्ट की जाये, सूचना में विनिर्दिष्ट संविदा के किसी भी पक्षकार (जिसे इसमें इसके पश्चात विनिर्दिष्ट पक्षकार कहा गया है) के अधिकार और दायित्व हैं केन्द्रीय सरकार को अन्तरित हो जाएँगे, और तब इस धारा के निम्नलिखित उपबन्धों के अधीन सूचना के वापस लिये जाने के अधीन रहते हुए संविदा, उक्त तारीख को या उसके पश्चात प्रयोग किये जा सकने वाले किन्हीं अधिकारों या उपगत दायित्व के बारे में, इस प्रकार प्रभावी होगी मानो विनिर्दिष्ट पक्षकार के स्थान पर केन्द्रीय सरकार संविदा की पक्षकार है और मानो संविदा में विनिर्दिष्ट पक्षकार के प्रति निर्देश के स्थान पर केन्द्रीय सरकार के प्रति निर्देश प्रतिस्थापित किया गया है।

(2) उपधारा (1) के अधीन तामील की गई सूचना में इस आशय का कथन होगा कि ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति से जो विनिर्दिष्ट की जाये उस पर आक्षेप किया जा सकता है और यदि ऐसा आक्षेप सम्यक्तः किया जाता है और वापस नहीं लिया जाता है तो, केन्द्रीय सरकार आक्षेप करने वाले व्यक्ति को केन्द्रीय सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिये नियुक्त व्यक्ति के समक्ष उपस्थित होने और उसके द्वारा सुने जाने का अवसर देगी।

(3) ऐसे आक्षेप पर और उपधारा (2) के अधीन उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात केन्द्रीय सरकार ऐसा आदेश कर सकती है जो वह ठीक समझे।

(4) जहाँ संविदा के किसी पक्षकार के अधिकार और दायित्व केन्द्रीय सरकार को इस धारा के अधीन अन्तरित किये जाते हैं, वहाँ, उस पक्षकार को उसे हुई हानि की बाबत ऐसा प्रतिकर, जिस पर केन्द्रीय सरकार और उसके बीच सहमति हो जाये और ऐसी सहमति न होने पर जो प्रतिकर माध्यस्थम द्वारा अवधारित किया जाये, दिया जाएगा।

14. परमाणु ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग पर नियंत्रण


(1) केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए जाने वाले नियमों के अधीन रहते हुए, निम्नलिखित को, उसके द्वारा की गई अनुज्ञप्ति के बिना प्रतिषिद्ध कर सकती है -

(i) आदेश में विनिर्दिष्ट खान की खुदाई या खनिजों को निकालना, जो खान या खनिज ऐसे हैं, जिनसे केन्द्रीय सरकार की राय में विहित पदार्थ में से कोई प्राप्त किया जा सकता है;

(ii) (क) विहित पदार्थों में से किसी का ; या

(ख) नियमों में विनिर्दिष्ट किसी खनिज या अन्य पदार्थों का, जिससे केन्द्रीय सरकार की राय में विहित पदार्थों में से कोई प्राप्त किया जा सकता है ; या

(ग) परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, विकास और उपयोग के लिये या उससे सम्बद्ध विषयों में अनुसन्धान के लिये डिजाइन किये गए या अनुकूलित या विनिर्मित किसी संयंत्र का ; या

(घ) किसी विहित उपस्कर का,अर्जन, उत्पादन, कब्जे में रखना, उपयोग, व्ययन, निर्यात या आयात।

1{(1क) उपधारा (1) के खण्ड (ii) के उपखण्ड (ग) के अधीन कोई अनुज्ञप्ति केन्द्रीय सरकार के किसी विभाग या केन्द्रीय सरकार द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण या किसी संस्था या किसी निगम या किसी सरकारी कम्पनी से भिन्न किसी व्यक्ति को प्रदान नहीं की जाएगी।

(1ख) उपधारा (1) के अधीन किसी सरकारी कम्पनी को प्रदत्त कोई भी अनुज्ञप्ति उस दशा में रद्द हो जाएगी जब अनुज्ञप्तिधारी कोई सरकारी कम्पनी नहीं रह जाती तथा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, उसकी सभी आस्तियाँ किसी भी दायित्व से मुक्त केन्द्रीय सरकार में निहित होंगी और केन्द्रीय सरकार संयंत्र के सुरक्षित प्रचालन के सभी उपाय करेगा तथा उसमें इस प्रकार निहित नाभिकीय सामग्री के निपटान के लिये ऐसे उपाय करेगी जो वह धारा 3 के उपबन्धों के अनुसार आवश्यक समझे}

(2) इस धारा की कोई बात इस धारा के प्रयोजन के लिये कोई अनुज्ञप्ति देने से इनकार करने के, या किसी अनुज्ञप्ति में ऐसी शर्तों को, जो केन्द्रीय सरकार ठीक समझे सम्मिलित करने के या अनुज्ञप्ति को वापस लेने के, केन्द्रीय सरकार के प्राधिकार को प्रभावित नहीं करेगी और केन्द्रीय सरकार पूर्वोक्त कोई कार्रवाई कर सकती है।

(3) पूवर्गामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इस धारा में निर्दिष्ट नियम निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकते हैं:-

(क) इस धारा के प्रयोजनों के लिये अनुज्ञप्ति प्राप्त व्यक्ति के पास की या उसको उपलभ्य जानकारी, किस सीमा तक निर्बन्धित जानकारी समझी जाये;

(ख) इस धारा के प्रयोजनों के लिये अनुज्ञप्ति प्राप्त व्यक्ति के नियंत्रण के अधीन क्षेत्र या परिसर किस सीमा तक प्रतिषिद्ध क्षेत्र समझे जाएँ;

(ग) किसी ऐसे प्रतिष्ठापन के अवस्थान या किसी संयंत्र के प्रचालन की शर्तें और सिद्धान्त जिसकी बाबत कोई अनुज्ञप्ति इस धारा के प्रयोजनों के लिये, जिनके अन्तर्गत वे प्रयोजन भी हैं जो विकिरण के संरक्षण के लिये और अपहानिकर उपोत्पादों या अपशिष्टों के निरापद व्ययन के लिये आवश्यक हैं, दे दी गई है या जिसका दिया जाना आशयित है;

(घ) आयनकारी विकिरण या किसी रेडियोएक्टिव संदूषण द्वारा या तो अनुज्ञप्ति के अधीन संयंत्र पर या उसके आसपास के क्षेत्र में किसी व्यक्ति को हुई उपहति या सम्पत्ति को हुए नुकसान की बाबत अनुज्ञप्तिधारी के दायित्व की सीमा;

(ङ) अनुज्ञप्तिधारी द्वारा, या तो बीमा द्वारा या तो ऐसे अन्य साधनों से, जो केन्द्रीय सरकार अनुमोदित करे, अनुज्ञप्ति के अधीन अवस्थान या संयंत्र के उपयोग से सम्बद्ध किन्हीं दावों का, जो अनुज्ञप्ति के अधीन संयंत्र में उत्सर्जित आयनकारी विकिरणों द्वारा या रेडियोएक्टिव संदूषण द्वारा या तो अनुज्ञप्ति के अधीन संयंत्र पर या उसके आसपास के क्षेत्र में किसी व्यक्ति को हुई उपहति की या किसी सम्पत्ति को हुए नुकसान की बाबत अनुज्ञप्ति धारी के विरुद्ध सम्यक्तः साबित किये गए हैं या साबित किये जाएँ, निपटारा सुनिश्चित करने के लिये सभी समय उपलब्ध पर्याप्त निधियों का उपबन्ध;

(च) नियोजित व्यक्तियों की अनिवार्य अर्हताएँ, प्रतिभूति-निबार्धन, नियोजन का समय, न्यूनतम छुट्टी और नियतकालिक चिकित्सीय परीक्षा; और नियोजक, नियोजित व्यक्तियों और अन्य व्यक्तियों से कोई अन्य अध्यपेक्षा या उन पर कोई निर्बन्धन या प्रतिषेध; और

(छ) निरीक्षण के लिये और परिसर के सीलबन्द करने और किसी वस्तु के, जिसकी बाबत यह सन्देह करने के लिये युक्तियुक्त आधार है कि नियमों का उल्लंघन किया गया है, अभिग्रहण, प्रतिधारण और व्ययन करने विषयक उपबन्धों सहित, ऐसे अन्य अनुषंगी और अनुपूरक उपबन्ध जो केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे।

(4) केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञप्तियों के जारी करने के लिये संदेय फीस भी विहित कर सकती है।

15. यूरेनियम या प्लूटोनियम के निष्कर्षण के लिये किसी पदार्थ का अपेक्षित किया जाना


(1) केन्द्रीय सरकार को यह अपेक्षा करने का अधिकार होगा कि कोई पदार्थ, जिसमें, केन्द्रीय सरकार की राय में, यूरेनियम, प्लूटोनियम या उनका कोई आइसोटोप है, उसे परिदत्त किया जाये और केन्द्रीय सरकार उस पदार्थ से उसमें अन्तर्विष्ट यूरेनियम, प्लूटोनियम या उनका कोई आइसोटोप निष्कर्षित कर सकती है और उस पदार्थ को सम्बद्ध व्यक्ति को प्रतिकर के संदाय पर, जो धारा 21 के अनुसार अवधारित किया जाएगा, वापस कर सकती है:

परन्तु ऐसा प्रतिकर किसी दशा में, उस पदार्थ के उत्पादन, खनन या किरणन में उस व्यक्ति द्वारा उपगत लागत से अधिक नहीं होगा और उसका अवधारण करने में उस पदार्थ से निष्कर्षित यूरेनियम, प्लूटोनियम या उनके किसी आइसोटोप के मूल्य को लेखे में नहीं लिया जाएगा।

(2) इस धारा की कोई बात केन्द्रीय सरकार को ऐसी शर्तों के अधीन, जो वह अधिरोपित करना ठीक समझे, परीक्षा, परीक्षण या विश्लेषण के प्रयोजन के लिये अल्प मात्रा में प्राकृतिक यूरेनियम के उपयोग को अनुज्ञात करने से निवारित नहीं करेगी।

16. रेडियोएक्टिव पदार्थ पर नियंत्रण


केन्द्रीय सरकार अपनी लिखित सहमति के बिना किसी भी रेडियोएक्टिव पदार्थ के विनिर्माण, कब्जे, उपयोग, विक्रय द्वारा या अन्यथा अन्तरण, निर्यात और आयात और आपात स्थिति में, परिवहन और व्ययन का प्रतिषेध कर सकती है।

17. सुरक्षा के बारे में विशेष उपबन्ध


(1) केन्द्रीय सरकार किसी वर्ग या वर्णन के परिसरों या स्थानों के बारे में, जो ऐसे परिसर या स्थान हैं जिनमें रेडियोएक्टिव पदार्थ विनिर्मित, उत्पादित, खनित, अभिक्रियाकृत, भाण्डागारित किये जाते या उपयोग में लाये जाते हैं या किसी विकिरण उत्पादन संयंत्र उपस्कर या साधित्र का उपयोग किया जाता है, नियमों द्वारा ऐसे उपबन्ध कर सकती है जो केन्द्रीय सरकार को निम्नलिखत के लिये आवश्यक प्रतीत हों:-

(क) ऐसे परिसरों या स्थानों पर नियोजित व्यक्तियों के या अन्य व्यक्तियों के स्वास्थ्य को या तो विकिरण द्वारा या किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के अन्तर्ग्रहण द्वारा होने वाली क्षति को निवारित करने के लिये;

(ख) पूर्वोक्त विनिर्माण, उत्पादन, खनन, अभिक्रिया, भाण्डागारण या उपयोग के परिणामस्वरूप होने वाले रेडियोएक्टिव अपशिष्ट उत्पादों का निरापद व्ययन सुनिश्चित करने के लिये;

(ग) ऐसे परिसरों या स्थानों पर नियोजन के लिये व्यक्तियों की अर्हताएँ विहित करने के लिये और उनमें नियोजन का समय, न्यूनतम छुट्टी और नियतकालिक चिकित्सीय परीक्षा को विनियमित करने के लिये,और विशिष्टतया और इस उपधारा की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ये नियम, भवनों के निर्माण या संरचना मे परिवर्तन या संकर्मों के क्रियान्वयन के बारे में अध्यपेक्षाएँ अधिरोपित करने के लिये उपबन्ध कर सकते हैं।

(2) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन जारी किये गए किसी आदेश द्वारा स्वास्थ्य के लिये खतरनाक विनिर्दिष्ट, रेडियोएक्टिव पदार्थ या किसी विहित पदार्थ के परिवहन की बाबत ऐसे नियम बना सकती है जो ऐसे परिवहन द्वारा उसमें लगे हुए व्यक्तियों के और अन्य व्यक्तियों के स्वास्थ्य को होने वाली क्षति को रोकने के लिये आवश्यक प्रतीत हों।

(3) इस धारा के अधीन बनाए गए नियम नियोजकों, नियोजित व्यक्तियों और अन्य व्यक्तियों पर अध्यपेक्षाएँ, प्रतिषेध और निर्बन्धन अधिरोपित करने के लिये उपबन्ध कर सकते हैं।

(4) इस धारा के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई व्यक्ति, अपेक्षा की जाने पर, अपना प्राधिकार प्रदर्शित करने वाला सम्यक्तः अनुप्रमााणित दस्तावेज पेश करके, सभी उचित समय पर, यह अभिनिश्चित करने के प्रयोजन के लिये कि क्या किसी परिसर, यान, जलयान या वायुयान में या उसके सम्बन्ध में इस धारा के अधीन बनाए गए नियमों का उल्लंघन हुआ है या किया जा रहा है, उस परिसर या यान, जलयान या वायुयान पर प्रवेश कर सकता है।

(5) इस धारा के अधीन बनाए गए नियमों के किसी उल्लंघन की दशा में केन्द्रीय सरकार को ऐसे उपाय करने का अधिकार होगा जो वह विकिरण या रेडियोएक्टिव पदार्थ द्वारा संदूषण से व्यक्तियों को होने वाली क्षति या सम्पत्ति को होने वाले नुकसान को रोकने के लिये आवश्यक समझे और इनके अन्तर्गत, पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर, और धारा 24 के अधीन शास्तियों के प्रवर्तन के लिये और कार्रवाई करने के अधिकार पर, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, परिसर, यान, जलयान या वायुयान को सीलबन्द करना और रेडियोएक्टिव पदार्थ और संदूषित उपस्कर को अभिग्रहण करना है।

18. जानकारी के प्रकटीकरण पर निर्बन्धन


(1) केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा जानकारी के प्रकटीकरण को निर्बन्धित कर सकती है, चाहे वह जानकारी किसी दस्तावेज में अन्तर्विष्ट हो या रेखाचित्र फोटोचित्र, रेखांक, प्रतिमान में या किसी अन्य रूप में, जो निम्नलिखित से सम्बन्धित है या उनका निरूपण या चित्रण करती है:-

(क) कोई विद्यमान या प्रस्थापित संयंत्र जो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, विकास या प्रयोग के लिये उपयोग में लाया जाता है या जिसके उपयोग में लाये जाने की प्रस्थापना है, या

(ख) किसी ऐसे विद्यमान या प्रस्थापित संयंत्र के प्रचालन का प्रयोजन या पद्धति, या

(ग) किसी ऐसे विद्यमान या प्रस्थापित संयंत्र में की जाने वाली या किये जाने के लिये प्रस्थापित कोई प्रक्रिया।

(2) कोई व्यक्ति:-
(क) उपधारा (1) के अधीन निर्बन्धित किसी जानकारी को प्रकट नहीं करेगा, या प्राप्त नहीं करेगा, या प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं करेगा, या

(ख) केन्द्रीय सरकार के प्राधिकार के बिना, इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के निवर्हन में या अपने पदीय कर्तव्यों के पालन में प्राप्त किसी जानकारी को प्रकट नहीं करेगा।

(3) इस धारा की कोई बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी:-

(i) ऐसे किसी प्रकार के संयंत्र की बाबत, जो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, विकास या प्रयोग से भिन्न प्रयोजनों के लिये उपयोग में लाया जाता है, जानकारी के प्रकटीकरण को, जब तक कि जानकारी यह प्रकट न करती हो कि उस प्रकार का संयंत्र परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, विकास या उपयोग या उससे सम्बद्ध किन्हीं विषयों में अनुसन्धान के लिये उपयोग में लाया जाता है या उसके उपयोग में लाये जाने की प्रस्थापना है ; या

(ii) जहाँ कोई जानकारी जनसाधारण को इस धारा का उल्लंघन न करते हुए उपलब्ध की गई है वहाँ उस जानकारी के किसी पश्चात्वर्ती प्रकटीकरण को।

19. प्रतिषिद्ध क्षेत्र में प्रवेश का रोका जाना


केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा निम्नलिखित को प्रतिषिद्ध कर सकती है:-

(क) अनुज्ञा प्राप्त किये बिना प्रतिषिद्ध क्षेत्र में किसी व्यक्ति के प्रवेश को, और

(ख) अनुज्ञा के बिना किसी व्यक्ति द्वारा किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र से किसी फोटोचित्र, रेखाकृति, चित्र, मानचित्र या अन्य दस्तावेज लेने को और यदि उन बातों को करने के लिये कोई अनुज्ञा दी गई है तो वह ऐसे अनुबन्धों के अधीन हो सकती है जो केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे।

20. आविष्कारों के बारे में विशेष उपबन्ध


(1) इस अधिनियम के प्रारम्भ से, उन आविष्कारों के बारे में कोई पेटेंट नहीं दिये जाएँगे जो केन्द्रीय सरकार की राय में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, नियंत्रण, उपयोग या व्ययन के लिये उपयोगी हों या उसके सम्बन्ध में हैं या किसी विहित पदार्थ या रेडियोएक्टिव पदार्थ के पूर्वेक्षण, खनन, निष्कर्षण, उत्पादन, उस पर भौतिक या रासायनिक अभिक्रिया करने, उसे बनाने, समृद्ध करने, उसे डिब्बा बन्द करने या उसके उपयोग के या परमाणु ऊर्जा संचालन की निरापद सुनिश्चित करने के लिये उपयोगी हैं या उसके सम्बन्ध में हैं।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रतिषेध उस उपधारा में विनिर्दिष्ट प्रकृति के किसी आविष्कार को भी लागू होगा जिसके बारे में भारतीय पेटेंट और डिजाइन अधिनियम, 1911 (1911 का 2) के अधीन नियुक्त पेटेंट और डिजाइन के नियंत्रण को पेटेंट देने के लिये आवेदन, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व किया गया है और ऐसे प्रारम्भ के समय उसके समक्ष लम्बित है।

(3) केन्द्रीय सरकार को किसी लम्बित पेटेंट आवेदन और विनिर्देश का उसके स्वीकार किये जाने के पहले किसी भी समय निरीक्षण करने की शक्ति होगी और यदि वह समझती है कि आविष्कार परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है तो उसे पेटेंट और डिजाइन के नियंत्रण को उस आधार पर आवेदन अस्वीकार करने का निदेश जारी करने की शक्ति होगी।

(4) कोई व्यक्ति, जिसने ऐसा आविष्कार किया है जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने का कारण है कि वह परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है, केन्द्रीय सरकार को उस आविष्कार की प्रकृति और वर्णन संसूचित करेगा।

(5) ऐसे आविष्कार के लिये, जो परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है या जिसके बारे में उसे यह विश्वास करने का कारण है कि वह परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है, विदेश में पेटेंट के लिये आवेदन करने की वांछा करने वाला व्यक्ति विदेश में आवेदन करने के पहले या विदेश में किसी व्यक्ति को आविष्कार की संसूचना देने के पहले केन्द्रीय सरकार से पूर्वानुज्ञा प्राप्त करेगा, उस दशा के सिवाय जहाँ केन्द्रीय सरकार को अनुज्ञा के लिये उसके अनुरोध करने से तीन मास का समय व्यतीत हो गया है और उसे कोई उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है।

(6) पेटेंट और डिजाइन के नियंत्रण को इस निदेश के लिये कि क्या वह आविष्कार परमाणु ऊर्जा से सम्बन्धित है, कोई आवेदन केन्द्रीय सरकार को निर्दिष्ट करने की शक्ति होगी और केन्द्रीय सरकार द्वारा दिया गया निदेश अन्तिम होगा।

(7) परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में किसी आविष्कार के बारे में, चाहे वह केन्द्रीय सरकार द्वारा नियंत्रित स्थापनों में या केन्द्रीय सरकार के साथ की गई संंविदा, उपसंंविदा, करार या केन्द्रीय सरकार के अन्य सम्बन्ध के अधीन कल्पित है, इस बात को विचार में लाये बिना कि ऐसी संविदा, उपसंविदा, करार या अन्य सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार का वित्तीय रूप से भाग लेना या उसकी सहायता सम्मिलित है, यह समझा जाएगा कि वह केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया या कल्पित है।

(8) भारतीय पेटेंट और डिजाइन अधिनियम, 1911 (1911 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, इस धारा के सम्बन्ध में या उससे उद्भूत होने वाली बातों पर केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।

21. प्रतिकर के संदाय के सम्बन्ध में सिद्धान्त


(1) इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, जहाँ इस अधिनियम के अधीन किन्हीं शक्तियों के प्रयोग के कारण कोई प्रतिकर संदेय है वहाँ, ऐसे प्रतिकर की रकम इसमें इसके पश्चात दी गई रीति और सिद्धान्तों के अनुसार अवधारित की जाएगी, अर्थात:-

(क) जहाँ प्रतिकर की रकम करार द्वारा नियत की गई है वहाँ वह ऐसे करार के अनुसार दी जाएगी;

(ख) जहाँ ऐसा कोई करार नहीं हुआ है वहाँ, केन्द्रीय सरकार प्रभावित अधिकार की प्रकृति के बारे में विनिर्दिष्ट ज्ञान रखने वाले व्यक्ति को मध्यस्थ के रूप में नियुक्त करेगी जो संदेय प्रतिकर की रकम अवधारित करेगा।

(2) अधिनिर्णय करने में, उपधारा (1) के अधीन नियुक्त मध्यस्थ निम्नलिखित को ध्यान में रखेगा:-

(क) धारा 9 के अधीन संदेय प्रतिकर की दशा में:-

(i) किये गए काम की प्रकृति;
(ii) उस धारा के अधीन शक्तियों के प्रयोग की रीति, विस्तार और अवधि;

(iii) भूमि और उस पर अवस्थित सम्पत्ति के भाटक में उतनी कमी, जितनी कमी की किसी कालावधि में उचित रूप में प्रत्याशा की जा सकती है, या भूमि और सम्पत्ति के बाजार मूल्य में उस तारीख को होने वाली कमी जब शक्तियों का प्रयोग समाप्त हो जाएगा; और

(iv) भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) की धारा 23 की उपधारा (1) के उपबन्ध, जहाँ तक ऐसे उपबन्ध धारा 9 के अधीन शक्तियों के प्रयोग को लागू हो सकते हैं; और

(ख) धारा 11 या धारा 12 के अधीन संदेय किसी प्रतिकर की दशा में, वह कीमत, जो अर्जन की तारीख के ठीक पहले स्वामी द्वारा सम्पत्ति का विक्रय करने पर उसे मिल जाने की उचित रूप से प्रत्याशा हो सकती थी।

(3) उन दशाओं के सिवाय जहाँ उसकी दावाकृत रकम केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त विहित रकम से अधिक नहीं है, मध्यस्थ के अधिनिर्णय के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील हो सकेगी।

(4) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के अधीन माध्यस्थमों में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया को और मध्यस्थ के समक्ष और अपील में कार्यवाहियों के खर्च का प्रभाजन करने में अनुसरण किये जाने वाले सिद्धान्तों को विहित करते हुए नियम बना सकती है।

(5) इस अधिनियम में जैसा उपबन्धित है उसके सिवाय, माध्यस्थम से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में कोई बात इस अधिनियम के अधीन माध्यस्थमों को लागू नहीं होगी।

22. विद्युत के बारे में विशेष उपबन्ध


(1) विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) में किसी बात के होते हुए भी केन्द्रीय सरकार को निम्नलिखित का प्राधिकार होगा:-

(क) परमाणु शक्ति के बारे में सुदृढ़ और पर्याप्त राष्ट्रीय नीति विकसित करना, उपरोक्त अधिनियम की क्रमशः धारा 3 और धारा 5 के अधीन गठित केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण और राज्य विद्युत बोर्डों और इसी प्रकार के अन्य समरूप कानूनी निगमों के साथ, जो अन्य पावर स्रोतों के नियंत्रण और उपयोग से सम्बद्ध हैं, ऐसी नीति का समन्वय करना, ऐसी नीति के अनुसरण में विद्युत के उत्पादन की स्कीमों को लागू करना और सम्पृक्त बोर्डों या निगमों के, जिनसे वह इस प्रकार उत्पादित विद्युत के प्रदाय के बारे में करार करे, परामर्श से अपने द्वारा अवधारित रीति से परमाणु शक्ति स्टेशनों का 1{या तो स्वयं या अपने द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या किसी सरकारी कम्पनी के माध्य से} संचालन करना;

(ख) केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण 2{ के परामर्श से, या तो स्वयं या अपने द्वारा स्थापित किसी प्राधिकरण या निगम या किसी सरकारी कम्पनी के माध्यम से, परमाणु शक्ति स्टेशनों से विद्युत-प्रदाय के लिये दरें नियत करना और विद्युत-प्रदाय को विनियमित करना;

(ग) उस राज्य के विद्युत बोर्ड से, जिसमें परमाणु शक्ति स्टेशन अवस्थित है, किसी अन्य राज्य को विद्युत के पारेषण के लिये 1{ या तो स्वयं या अपने द्वारा स्थापित किसी अन्य प्राधिकरण या निगम या किसी सरकारी कम्पनी के माध्यम से, करार करना:

परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार 1{या ऐसे प्राधिकरण या निगम या सरकारी कम्पनी} और राज्य विद्युत बोर्ड में आवश्यक पारेषण लाइन के निर्माण के बारे में मतभेद है तो वह मामला केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण को निर्दिष्ट किया जाएगा और उसका विनिश्चय सम्पृक्त पक्षकार पर आबद्धकर होगा।

(2) भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9) या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या ऐसी विधि या नियम के आधार पर प्रभावी किसी लिखित के किसी उपबन्ध का, जहाँ तक वह इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी से असंगत है, कोई प्रभाव नहीं होगा।

(3) इस अधिनियम में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, इस अधिनियम के उपबन्ध भारतीय विद्युत अधिनियम, 1910 (1910 का 9) और विद्युत (प्रदाय) अधिनियम, 1948 (1948 का 54) के अतिरिक्त होंगे न कि उनके अल्पीकरण में।

23. कारखाना अधिनियम, 1948 का प्रशासन


कारखाना अधिनियम, 1948 (1948 का 63) में किसी बात के होते हुए भी, उक्त अधिनियम को प्रशासित करने का और उसके उपबन्धों को प्रवर्तित करने के लिये सभी बातें करने का, जिसके अन्तर्गत निरीक्षण कर्मचारिवृन्द की नियुक्ति और उसके अधीन नियमों का बनाना है, प्राधिकार केन्द्रीय सरकार के 1{या उसके द्वारा स्थापित किसी प्रधिकरण या निगम या सरकारी कम्पनी के स्वामित्व के किसी ऐसे कारखाने के सम्बन्ध में, जो इस अधिनियम के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने में लगा हुआ है, केन्द्रीय सरकार में निहित होगा।

24. अपराध और शास्तियाँ


(1) जो कोई, -
(क) धारा 14 के अधीन दिये गए किसी आदेश या किसी शर्त का जिसके अधीन रहते हुए उस धारा के अधीन कोई अनुज्ञप्ति दी गई है, उल्लंघन करेगा ; या(ख) धारा 17 के अधीन बनाए गए किसी नियम या किसी ऐसे नियम के अधीन अधिरोपित किसी अध्यपेक्षा, प्रतिषेध या निर्बन्धन का, उल्लंघन करेगा; या

(ग) धारा 17 की उपधारा (4) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति को उस उपधारा के अधीन शक्तियों के प्रयोग में बाधा पहुँचाएगा; या

(घ) धारा 18 की उपधारा (2) का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि पाँच वर्ष तक की हो सकेगी, या जुमाने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा।

(2) जो कोई, -
(क) धारा 5 के अधीन उस पर तामील की गई किसी सूचना या उस धारा के अधीन उस पर अधिरोपित किन्ही निबन्धनों और शर्तों का अनुपालन करने में असफल रहेगा; या

(ख) धारा 7 के अधीन उस पर तामील की गई किसी सूचना का अनुपालन करने में असफल रहेगा या उस सूचना के अनुसरण में किसी विवरणी या कथन में कोई असत्य कथन जानबूझकर करेगा; या

(ग) किसी व्यक्ति या प्राधिकारी को धारा 8 या 9 के अधीन शक्तियों के प्रयोग में बाधा पहुँचाएगा; या

(घ) इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध का या उसके अधीन बनाए गए किसी आदेश का उल्लंघन करेगा, वह कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा।

25. कम्पनियों द्वारा अपराध


(1) जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है वहाँ प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किये जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी ऐसे अपराध के दोषी समझे जाएँगे तथा तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने के भागी होंगे:

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के किये जाने के निवारण करने के लिये सब सम्यक तत्परता बरती थी।

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है तथा यह साबित होता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तद्नुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा।

स्पष्टीकरण
- इस धारा के प्रयोजनों के लिये -

(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तगर्त फर्म और व्यष्टियों का अन्य संगम भी है ; तथा

(ख) फर्म के सम्बन्ध में निदेशक” से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है।

26. अपराधों का संज्ञान


(1) इस अधिनियम के अधीन सभी अपराध दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के अधीन संज्ञेय होंगे किन्तु इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिये किसी व्यक्ति की बाबत कोई कार्रवाई -

(क) धारा 8, 14 या 17 या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उल्लंघन की बाबत, प्रवेश और निरीक्षण की शक्तियों का प्रयोग करने के लिये प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा,

(ख) किसी अन्य उल्लंघन की बाबत, केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे परिवाद करने के लिये सम्यक्तः प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा, लिखित परिवाद के आधार पर ही की जाएगी अन्यथा नहीं।

(2) धारा 18 के उल्लंघन की बाबत कार्यवाहियाँ भारत के महान्यायवादी की सहमति के बिना संस्थित नहीं की जाएँगी।

27. शक्तियों का प्रत्यायोजन


केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा, यह निदेश दे सकती है कि इस अधिनियम द्वारा उसे प्रदत्त किसी शक्ति का प्रयोग या उस पर अधिरोपित किसी कर्तव्य का निवर्हन, ऐसी परिस्थितियों में और ऐसी शर्तों के अधीन, जो निदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, निम्नलिखित के द्वारा भी किया जा सकेगा, -

(क) केन्द्रीय सरकार के अधीनस्थ ऐसा अधिकारी या प्राधिकारी, या

(ख) ऐसी राज्य सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीनस्थ ऐसा अधिकारी या प्राधिकारी,जो निदेश में विनिर्दिष्ट किया जाये।

28. अन्य विधियों का प्रभाव


इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियमिति में या इस अधिनियम से भिन्न किसी अधिनियिमिति के आधार पर प्रभावी किसी अन्य लिखत में किसी असंगत बात के होते हुए भी इस अधिनियम के उपबन्ध प्रभावी होंगे।

29. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण


इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही सरकार के या किसी व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध न होगी।

30. नियम बनाने की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिये नियम, अधिसूचना द्वारा बना सकती है।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकते हैं:-

(क) किसी जानकारी को जो अब तक प्रकाशित न हो या जनता की जानकारी में न आई हो को निर्बन्धित जानकारी घोषित करना और उसके अप्राधिकृत प्रसार या उपयोग को रोकने के लिये उपाय विहित करना;

(ख) किसी क्षेत्र या परिसर को प्रतिषिद्ध क्षेत्र घोषित करना और ऐसे प्रतिषिद्ध क्षेत्र में अप्राधिकृत प्रवेश या वहाँ से प्रस्थान को रोकने के लिये उपबन्ध करने के लिये उपाय विहित करना;

(ग) यूरेनियम, थोरियम और अन्य विहित पदार्थों की खोज के बारे में जानकारी की रिपोर्ट देना और ऐसी खोजों के लिये इनाम देना;

(घ) यूरेनियम वाले पदार्थ के खनन या उनके सांद्रण पर नियंत्रण;

(ङ) अन्य विहित पदार्थ की न्यूनतम कीमत और प्रत्याभूति, खनन और पूर्वेक्षण का अनुज्ञप्ति द्वारा विनियमन और रियायतें देकर, जिनके अन्तगर्त इनाम भी हैं, प्रोत्साहन देना;

(च) विहित पदार्थ, खनिज और संयंत्रों का अनिवार्य अर्जन;

(छ) विहित पदार्थों के और ऐसी अन्य वस्तुओं के, जो केन्द्रीय सरकार की राय में परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, उपयोग या उपयोजन के लिये उपयोग में लाई जा सकती है या परिणामस्वरूप प्राप्त हो सकती है, उत्पादन, आयात, निर्यात, अन्तरण, शोधन, कब्जे, स्वामित्व, विक्रय, उपयोग या व्ययन का विनियमन;

(ज) विहित उपस्कर के उपयोग का विनियमन;

(झ) रेडियोएक्टिव पदार्थ के विनिमार्ण, अभिरक्षा, परिवहन, अन्तरण, विक्रय, निर्यात, आयात, उपयोग या व्ययन का विनयमन,

(ञ) ऐसे विहित पदार्थों के परिवहन का विनियमन जो धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन स्वास्थ्य के लिये खतरनाक घोषित किये गए हैं;

(ट) परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, उपयोजन और उपयोग का विकास, नियंत्रण, अधीक्षण और अनुज्ञापन;

(ठ) इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञप्तियाँ जारी करने के लिये फीस;

(ड) इस अधिनियम के अधीन सूचनाओं की तामील करने की रीति;

(ढ) परमाणु ऊर्जा के उत्पादन, उपयोग, उपयोजन और उस क्षेत्र में अनुसन्धान और अन्वेषण में व्यक्तियों, संस्थाओं और देशों के बीच सहयोग की साधारणतः अभिवृद्धि करना।

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियम यह उपबन्ध कर सकते हैं कि नियमों का उल्लंघन, इस अधिनियम में जैसा अन्यथा अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित है उसके सिवाय, जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।

1{ (4) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।

31. अधिनियम का सरकार पर आबद्धकर होना


इस अधिनियम के उपबन्ध सरकार पर आबद्धकर होंगे।

सन्दर्भ


1. 1 21 सितम्बर, 1962; देखिए अधिसूचना सं० सा० का० नि० 1254, तारीख 18-9-1962, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3(i), पृ० 481
2. 2 2016 के अधिनियम सं० 5 की धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित।
3. 1 1987 के अधिनियम सं. 29 की धारा 3 द्वारा अन्तः स्थापित।
4. 2 1987 के अधिनियम सं. 29 की धारा 3 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
5. 11986 के अधिनियम सं. 59 की धारा 2 द्वारा (21-9-1962 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6. 21986 के अधिनियम सं. 59 की धारा 2 द्वारा (21-9-1962 से) परन्तु का लोप किया गया।
7. 3 1986 के अधिनियम सं. 59 की धारा 2 द्वारा (21-9-1962 से) अन्तःस्थापित।
8. 11986 के अधिनियम 59 की धारा 3 द्वारा (21-9-1986 से) अन्तःस्थापित।
9. 12016 के अधिनियम सं. 5 की धारा 3 द्वारा अन्तःस्थापित।
10. 11987 के अधिनियम सं. 29 की धारा 4 द्वारा अन्तःस्थापित।
11. 21987 के अधिनियम सं. 29 की धारा 4 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
12. 1 1987 के अधिनियम सं० 29 की धारा 5 द्वारा अन्त: स्थापित।
13. 11986 के अधिनियम सं. 4 की धारा 2 तथा अनुसूची द्वारा (15-5-1986 से) प्रतिस्थापित।
14. 21974 के अधिनियम सं. 56 की धारा 2 और पहली अनुसूची द्वारा निरसित।


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