पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 (The protection of plant varieties and farmers right act, 2001)

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(2001 का अधिनियम संख्यांक 53)


{30 अक्तूबर, 2001}


पौधा किस्म, कृषकों और पौधा संवर्धकों के अधिकारों के संरक्षण के लिये प्रभावी प्रणाली स्थापित करने और पौधों कीनई किस्मों के विकास को प्रोत्साहितकरने हेतु उपबन्ध करने के लिये अधिनियम

यह आवश्यक समझा जाता है कि कृषकों के, नई पौधा किस्मों के विकास के लिये पौधा आनुवंशिक साधनों के संरक्षण, सुधार और उनको उपलब्ध कराने में किसी भी समय किये गए उनके योगदान के सम्बन्ध में अधिकारों को मान्यता दी जाये और उनका संरक्षण किया जाये;

और देश में त्वरित कृषि विकास के लिये यह आवश्यक है कि नई पौधा किस्मों के विकास के लिये सार्वजनिक और निजी दोनों ही सेक्टरों में अनुसन्धान और विकास के लिये विनिधान को प्रोत्साहित करने हेतु पौधा संवर्धकों के अधिकारों का संरक्षण किया जाये;

और ऐसे संरक्षण से देश में बीज उद्योग की वृद्धि सुकर होगी जिससे कृषकों को उच्च क्वालिटी के बीज और पौधा रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित होगी;

और पूर्वोक्त उद्देश्यों को प्रभावी बनाने के लिये कृषकों और पौधा संवर्धकों के अधिकारों के संरक्षण के लिये उपाय करना आवश्यक है;

और भारत, जिसने बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार सम्बन्धी पहलुओं से सम्बन्धित करार का अनुसमर्थन कर दिया है, अन्य बातों के साथ-साथ, पौधा किस्मों के संरक्षण से सम्बन्धित उक्त करार के भाग 2 के अनुच्छेद 27 के उपपैरा (ख) को प्रभावी बनाने के लिये उपबन्ध करता है;

भारत गणराज्य के बावनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनयिमत हो:-

अध्याय 1


प्रारम्भिक


1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ


(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 2001 है।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है।
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे और इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिये भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और ऐसे किसी उपबन्ध में इस अधिनियम के प्रारम्भ के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह उस उपबन्ध के प्रवृत्त होने के प्रति निर्देश है।

2. परिभाषाएँ


इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(क) “प्राधिकरण” से धारा 3 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(ख) किसी किस्म के सम्बन्ध में, “फायदे में हिस्सा बटाना” से अभिप्रेत है फायदे का ऐसा अनुपात जो ऐसी किस्म के संवर्धक को प्रोद्भूत हुआ है जिसके लिये कोई दावेदार धारा 26 के अधीन प्राधिकरण द्वारा अवधारित रूप में हकदार होगा;

(ग) “प्रजनक” से ऐसा कोई व्यक्ति या व्यक्ति-समूह या कोई कृषक या कृषक-समूह या ऐसी कोई संस्था अभिप्रेत है जिसने किसी किस्म का प्रजनन, क्रम-विकास या विकास किया है;
(घ) “अध्यक्ष” से अधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ङ) “अध्यक्ष” से धारा 3 की उपधारा (5) के खण्ड (क) के अधीन नियुक्त प्राधिकरण का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(च) “अभिसमय देश” से ऐसा देश अभिप्रेत है जिसने पौधे की किस्मों के संरक्षण के लिये किसी अन्तरराष्ट्रीय अभिसमय को अंगीकार कर लिया है जिसे भारत ने भी अंगीकार किया है या ऐसा देश जिसमें पौधे की किस्मों के संरक्षण सम्बन्धी कोई विधि है जिसके आधार पर भारत ने दोनों देशों के नागरिकों को पौधा प्रजनक अधिकार प्रदान करने के लिये करार किया है;
(छ) किसी किस्म य उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के सम्बन्ध में “अभिधान” से, किसी भाषा में लिखित अक्षरों या अक्षरों और अंकों के समुच्चय द्वारा अभिव्यक्त, यथास्थिति, उसकी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री का अभिधान अभिप्रेत है;
(ज) “आवश्यक लक्षण” से किसी पौधा-किस्म की ऐसी वंशागत विशेषताएँ अभिप्रेत हैं जो ऐसे अन्य वंशागत अवधारकों के किसी एक या अधिक जीनों की अभिव्यंजना द्वारा अवधारित की जाती हैं, जो पौधे की किस्म के मुख्य लक्षणों, क्रिया या उपयोगिता में सहायक होते हैं;
(झ) किसी किस्म (प्रारम्भिक किस्म) के सम्बन्ध में, “अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म” ऐसी प्रारम्भिक किस्म से अनिवार्यतः व्युत्पन्न कही जाएगी जब वह-

(i) प्रधानतः ऐसी प्रारम्भिक किस्म से, या किसी ऐसी किस्म से व्युत्पन्न की जाती है जो प्रधानतः स्वयं, ऐसी प्रारम्भिक किस्म से, उन आवश्यक लक्षणों की अभिव्यंजना को बनाए रखते हुए, जो किसी ऐसी प्रारम्भिक किस्म की समजीनी या समजीनियों के संयोजन का परिणाम है, व्युत्पन्न की जाती है;

(ii) ऐसी प्रारम्भिक किस्म से स्पष्ट रूप से विभेद्य है; और
(iii) उन आवश्यक लक्षणों की अभिव्यंजना में ऐसी प्रारम्भिक किस्म के अनुरूप है (उन भिन्नताओं के सिवाय जो व्युत्पन्न के कार्य के परिणाम हैं) जो ऐसी प्रारम्भिक किस्म की समजीनी या समजीनियों के संयोजन का परिणाम है;

(ञ) “विद्यमान किस्म” से भारत में उपलब्ध ऐसी किस्म अभिप्रेत है, जो,-

(i) बीज अधिनियम, 1966 (1966 का 54) की धारा 5 के अधीन अधिसूचित है; या
(ii) कृषक किस्म है; या
(iii) ऐसी किस्म है जिसके बारे में सामान्य ज्ञान है; या
(iv) कोई अन्य किस्म है जो सार्वजिनक क्षेत्र में है;

(ट) “कृषक” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो,-

(i) स्वयं भूमि की जुताई करके फसलों की खेती करता है; या
(ii) किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से भूमि की जुताई का सीधे पर्यवेक्षण करते हुए फसलों की खेती करता है; या
(iii) जंगली जातियों या परम्परागत किस्मों का पृथक्त: या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्ततः संरक्षण और परिरक्षण करता है या ऐसी जंगली जातियों या परम्परागत किस्मों के मूल्य में, उनके लाभकारी गुणधर्मों के चयन और उनकी पहचान द्वारा वृद्धि करता है;
(ठ) “कृषक किस्म” से ऐसी किस्म अभिप्रेत है जो,-

(i) कृषकों द्वारा अपने खेतों में परम्परागत रूप से जोती जाती है और विकिसत की जाती है; या
(ii) जंगली जाति की है या किसी किस्म की भूमि प्रजाति है जिसके बारे में कृषक सामान्य ज्ञान रखता है;
(ड) “जीन निधि” से धारा 45 की उपधारा (1) के अधीन गठित राष्ट्रीय जीन निधि अभिप्रेत है;
(ढ) “न्यायिक सदस्य” से धारा 55 की उपधारा (1) के अधीन इस रूप में नियुक्त अधिकरण का कोई सदस्य अभिप्रेत है;
(ण) “सदस्य” से अधिकरण का न्यायिक सदस्य या तकनीकी सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत अध्यक्ष भी है;
(त) “सदस्य” से धारा 3 की उपधारा (5) के खण्ड (ख) के अधीन नियुक्त प्राधिकरण का सदस्य अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत सदस्य सचिव भी है;
(थ) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
(द) “प्रवर्धन सामग्री से कोई पौधा या उसका घटक या उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिसके अन्तर्गत ऐसा आशयित बीज या ऐसा बीज है जो पौधे के रूप में पुनरुत्पादन के लिये समार्थ या उपयुक्त है;
(ध) “रजिस्टर” से धारा 13 में निर्दिष्ट राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर अभिप्रेत है;
(न) “रजिस्ट्रार” से धारा 12 की उपधारा (4) के अधीन नियुक्त पौधा किस्म रजिस्ट्रार अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत महारजिस्ट्रार है;
(प) “महारजिस्ट्रार” से 12 की उपधारा (3) के अधीन नियुक्त पौधा किस्म महारजिस्ट्रार अभिप्रेत है;
(फ) “रजिस्ट्री’ से धारा 12 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट पौधा किस्म रजिस्ट्री अभिप्रेत है;
(ब) “विनियम” से इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण द्वारा बनाए गए विनियम अभिप्रेत हैं;
(भ) “बीज” से जीवित भ्रूण या प्रवर्ध्य की ऐसी कोई किस्म अभिप्रेत है जो पुनरुत्पादन में समर्थ हो और ऐसे पौधे को जन्म दे सके जो वस्तुतः उसी प्रकार का हो;
(म) “अधिकरण” से धारा 54 के अधीन स्थापित पौधा किस्म संरक्षण अपील अधिकरण अभिप्रेत है;
(य) “तकनीकी सदस्य” से अधिकरण का ऐसा सदस्य अभिप्रेत है जो न्यायिक सदस्य नहीं है;
(यक) “किस्म” से निम्नतम ज्ञात रैंक के एकल वनस्पतिक वर्ग के भीतर आने वाले सूक्ष्म जीवाणु के सिवाय पौधे का समूह अभिप्रेत है, जो-

(i) उन लक्षणों की अभिव्यंजना द्वारा परिभाषित किया जा सकता है जो उस पौधा समूह को दी गई समजीनी का परिणाम है;
(ii) उक्त मूल लक्षणों के कम-से-कम एक लक्षण की अभिव्यंजना द्वारा किसी अन्य पौधा समूह से विभक्त किया जा सकता है; और
(iii) प्रवर्धन करने के लिये, जो ऐसे प्रवर्धन के पश्चात अपरिवर्तित रहता है, उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में एक इकाई के रूप में माना जा सकता है, और इसके अन्तर्गत ऐसी किस्म विद्यमान किस्म, ट्रांसजीनी किस्म, कृषक किस्म, और अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म की प्रवर्धन सामग्री भी है।

अध्याय 2


पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण तथा रजिस्ट्रीपौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण

3. प्राधिकरण की स्थापना


(1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण के नाम से ज्ञात एक प्राधिकरण की स्थापना करेगी।

(2) प्राधिकरण पूर्वोक्त नाम का एक निगमित निकाय होगा जिसका शाश्वत उत्तराधिकार और सामान्य मुद्रा होगी और जिसे जंगम और स्थावर दोनों ही प्रकार की सम्पत्ति का अर्जन, धारण और व्ययन करने और संविदा करने की शक्ति होगी तथा वह उक्त नाम से वाद लाएगा और उस पर वाद लाया जाएगा।

(3) प्राधिकरण का प्रधान कार्यालय ऐसे स्थान पर होगा जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे और प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुमति से भारत में अन्य स्थानों पर शाखा कार्यालय स्थापित कर सकेगा।

(4) प्राधिकरण अध्यक्ष और पन्द्रह सदस्यों से मिलकर बनेगा।

(5) (क) अध्यक्ष, केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा जो, पौधा किस्म अनुसन्धान या कृषि विकास क्षेत्र में विशेष रूप से उस सरकार के समाधानप्रद रूप में उत्कृष्ट रूप से योग्य और विख्यात व्यक्ति तथा दीर्घ व्यावहारिक अनुभव वाला होगा।
(ख) प्राधिकरण के सदस्य, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्त किये जाएँगे, निम्न प्रकार होंगे, अर्थात-

(i) कृषि आयुक्त, भारत सरकार, कृषि और सहकारिता विभाग, नई दिल्ली, पदेन;
(ii) उपमहानिदेशक फसल विज्ञान भारसाधक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली, पदेन;
(iii) संयुक्त सचिव, बीज भारसाधक, भारत सरकार कृषि और सहकारिता विभाग, नई दिल्ली, पदेन;
(iv) उद्यान कृषि आयुक्त, भारत सरकार, कृषि और सहकारिता विभाग, नई दिल्ली, पदेन;
(v) निदेशक, राष्ट्रीय पौधा आनुवंशिक सम्पदा ब्यूरो, नई दिल्ली, पदेन;
(vi) भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, पदेन;
(vii) भारत सरकार के पर्यावरण और वन से सम्बन्धित मामलों के मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य, जो भारत सरकार के संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, पदेन;
(viii) भारत सरकार के विधि, न्याय और कम्पनी कार्य मंत्रालय का प्रतिनिधित्व करने के लिये एक सदस्य, जो संयुक्त सचिव की पंक्ति से नीचे का न हो, पदेन;
(ix) किसी राष्ट्रीय या राज्य स्तर के कृषक संगठन से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(x) किसी जनजातीय संगठन से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xi) बीज उद्योग से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xii) किसी कृषि विश्वविद्यालय से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xiii) कृषि क्रियाकलापों से सहयोजित किसी राष्ट्रीय या राज्य स्तर के महिला संगठनों से एक प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किया जाएगा;
(xiv) चक्रानुक्रम के आधार पर राज्य सरकार के दो प्रतिनिधि जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जाएँगे;

(ग) महारजिस्ट्रार, प्राधिकरण का पदेन सदस्य-सचिव होगा।

(6) अध्यक्ष की पदावधि और पद को भरने की रीति वह होगी जो विहित की जाये।

(7) अध्यक्ष, पाँच सदस्यों की एक स्थायी समिति नियुक्त करेगा जिनमें से एक सदस्य, ऐसा होगा जो कृषकों के अधिकारों सहित सभी मुद्दों पर प्राधिकरण को सलाह देने के लिये किसी कृषक संगठन का प्रतिनिधि होगा।

(8) अध्यक्ष ऐसे वेतन और भत्तों का हकदार होगा और छुट्टी, पेंशन, भविष्य निधि तथा अन्य विषयों से सम्बन्धित सेवा की ऐसी शर्तों के अधीन होगा जो विहित की जाएँ। प्राधिकरण के अधिवेशन में उपस्थित होने के लिये किन्हीं गैर-सरकारी सदस्यों के भत्ते वे होंगे जो विहित किये जाएँ।

(9) अध्यक्ष केन्द्रीय सरकार को लिखित रूप में त्यागपत्र की सूचना देकर अपना पद त्याग सकेगा और ऐसा त्यागपत्र स्वीकार किये जाने पर यह समझा जाएगा कि उसने पद रिक्त कर दिया है।

(10) अध्यक्ष द्वारा त्यागपत्र दिये जाने या किसी कारण से अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर, केन्द्रीय सरकार, सदस्यों में से किसी एक सदस्य को अध्यक्ष के रूप में, उपधारा (5) के खण्ड (क) के अनुसार नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति होने तक, कार्यवहन करने के लिये नियुक्त कर सकेगी।

4. प्राधिकरण के अधिवेशन


(1) प्राधिकरण ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन करेगा और अपने अधिवेशनों में {जिसके अन्तर्गत उसके अधिवेशनों में गणपूर्ति और धारा 3 की उपधारा (7) के अधीन नियुक्त उसकी स्थायी समिति के कारबार का संव्यवहार भी है} कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में प्रक्रिया के ऐसे नियमों का अनुपालन करेगा, जो विहित किये जाएँ।

(2) प्राधिकरण का अध्यक्ष, प्राधिकरण के अधिवेशनों की अध्यक्षता करेगा।

(3) यदि किसी कारण अध्यक्ष प्राधिकरण के किसी अधिवेशन में उपस्थित होने में असमर्थ हो तो प्राधिकरण का ऐसा कोई सदस्य, जो अधिवेशन में उपस्थित सदस्यों द्वारा चुना गया हो, अधिवेशन की अध्यक्षता करेगा।

(4) ऐसी सभी प्रश्नों का, जो अधिकरण के किसी अधिवेशन के समक्ष आते हैं, विनिश्चय अधिकरण के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत द्वारा किया जाएगा और मत बराबर होने की दशा में प्राधिकरण के अध्यक्ष का या उसकी अनुपस्थिति में, अध्यक्षता करने वाले व्यक्ति का दूसरा या निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।

(5) प्रत्येक सदस्य, जो किसी भी रूप में चाहे प्रत्यक्ष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से या वैयक्तिक रूप से किसी मामले में, जो अधिवेशन में विनिश्चित किया जाना है, सम्बद्ध है या हितबद्ध है, अपने सरोकर या हित की प्रकृति को प्रकट करेगा और ऐसे प्रकटीकरण के पश्चात सदस्य, जो सम्बद्ध या हितबद्ध है, उस अधिवेशन में हाजिर नहीं होगा।

(6) प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण से ही अविधिमान्य नहीं होगी कि-

(क) प्राधिकरण में कोई रिक्ति या उसके गठन में कोई त्रुटि है; या
(ख) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में कार्यरत किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है; या
(ग) प्राधिकरण की प्रक्रिया में ऐसी कोई अनियमितता है, जो मामले के गुणागुण को प्रभावित नहीं करती है।

5. प्राधिकरण की समितियाँ


(1) प्राधिकरण, ऐसी समितियाँ नियुक्त कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन उसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन और उसके कृत्यों के अनुपालन के लिये आवश्यक हों।

(2) उपधारा (1) के अधीन समिति के सदस्यों के रूप में नियुक्त व्यक्ति, समिति के अधिवेशनों में हाजिर होने के लिये ऐसे भत्ते और फीस प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नियत किये जाएँ।

6. प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी


ऐसे नियंत्रण और निर्बन्धन के अधीन रहते हुए जो विहित किये जाएँ प्राधिकरण ऐसे अन्य अधिकारी और अन्य कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा, जो उसके कृत्यों के दक्षतापूर्ण अनुपालन के लिये आवश्यक हों और प्राधिकरण के ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्ति की रीति, वेतन और भत्ते तथा सेवा की अन्य शर्तें ऐसी होंगी, जो विहित की जाएँ।

7. अध्यक्ष का मुख्य कार्यपालन होना


अध्यक्ष प्राधिकरण का मुख्य कार्यपालक होगा और वह ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा और ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो विहित किये जाएँ।

8. प्राधिकरण के साधारण कृत्य


(1) प्राधिकरण का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे अध्युपायों द्वारा, जिन्हें वह ठीक समझे, पौधों की नई किस्मों के प्रोत्साहन और विकास का सम्प्रवर्तन करे और पौधों की उन किस्मों के सम्बन्ध में कृषकों और प्रजनकों के अधिकारों का संरक्षण करे।

(2) विशिष्टत: और पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, उपधारा (1) में निर्दिष्ट अध्युपाय निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकेंगे-

(क) ऐसे निबन्धनों और शर्तों के अधीन रहते हुए और ऐसी रीति में जो विहित की जाये, पौधों की विद्यमान किस्मों का रजिस्ट्रीकरण;
(ख) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्मों का विकास, स्वरूप और प्रलेखीकरण;
(ग) कृषकों की किस्मों का प्रलेखीकरण, अनुक्रमणिका बनाना और सूचीकरण करना;
(घ) पौधों की सभी किस्मों के लिये अनिवार्य सूचीकरण सुविधाएँ;
(ङ) यह सुनिश्चित करना कि कृषकों को इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्मों के बीज उपलब्ध हों और यदि ऐसी किस्मों के संवर्धक या इस अधिनियम के अधीन ऐसी किस्म का उत्पादन करने का हकदार कोई अन्य व्यक्ति, बीजों के उत्पादन और विक्रय की व्यवस्था ऐसी रीति में, जो विहित की जाये, नहीं करता है तो ऐसी किस्मों के अनिवार्य अनुज्ञापन के लिये उपबन्ध करना;
(च) संकलन और प्रकाशन के लिये पौधा किस्मों के सम्बन्ध में, जिनके अन्तर्गत भारत में या किसी अन्य देश में किसी पौधा किस्म के क्रमिक विकास या परिवर्धन में किसी समय किसी व्यक्ति का योगदान भी है, आँकड़े एकत्रित करना;
(छ) रजिस्टर के अनुरक्षण को सुनिश्चित करना।

9. प्राधिकरण के आदेशों आदि का प्राधिकृत किया जाना


प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय, अध्यक्ष या इस निमित्तप्राधिकरण द्वारा प्राधिकृत किसी अन्य सदस्य के हस्ताक्षर द्वारा प्राधिकृत किये जाएँगे।

10. प्रत्यायोजन


प्राधिकरण, लिखित रूप से साधारण या विशेष आदेश द्वारा प्राधिकरण के अध्यक्ष, किसी सदस्य या अधिकारी को ऐसी शर्तों या परिसीमाओं के अधीन, यदि कोई हों, जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, इस अधिनियम के अधीन अपनी ऐसी शक्तियों और कृत्यों को (धारा 94 के अधीन विनियम बनाने की शक्ति के सिवाय) प्रत्योजित कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे।

11. प्राधिकरण की शक्ति


इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के समक्ष सभी कार्यवाहियों में,-

(क) यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार को साक्ष्य प्राप्त करने, शपथ दिलाने, साक्षियों को उपस्थित कराने,दस्तावेजों की तलाशी कराने और उन्हें प्रस्तुत कराने तथा साक्षियों की परीक्षा के लिये कमीशन निकालने के प्रयोजनों के लिये किसी सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी;
(ख) प्राधिकरण या रजिस्ट्रार, इस अधिनियम के अधीन इस निमित्त बनाए गए किसी नियम के अधीन रहते हुए लागत के बारे में ऐसे आदेश कर सकेगा जो वह युक्तियुक्त समझे और कोई ऐसा आदेश किसी सिविल न्यायालय की डिक्री केरूप में निष्पादनीय होगा।

रजिस्ट्री


12. रजिस्ट्री और उसके कार्यालय


(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये पौधा किस्म रजिस्ट्री के नाम से एक रजिस्ट्री स्थापित करेगी।

(2) पौधा किस्म रजिस्ट्री का प्रधान कार्यालय प्राधिकरण के प्रधान कार्यालय में अवस्थित होगा और पौधा किस्मों में रजिस्ट्रीकरण को सुकर बनाने के प्रयोजन के लिये, ऐसे स्थानों पर जिन्हें प्राधिकरण ठीक समझे, रजिस्ट्री के शाखा कार्यालय स्थापित किये जा सकेंगे।

(3) प्राधिकरण पौधा किस्मों का एक महारजिस्ट्रार नियुक्त करेगा जो ऐसे वेतन और भत्तों का हकदार होगा और छुट्टी, पेंशन, भविष्य निधि और ऐसे ही अन्य मामलों के सम्बन्ध में सेवा की ऐसी शर्तों के अधीन होगा, जो विहित की जाएँ।

(4) प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन महारजिस्ट्रार के अधीक्षण और निदेशन के अधीन पौधा किस्मों के रजिस्ट्रीकरण के लिये उतने रजिस्ट्रार नियुक्त कर सकेगा जो वह आवश्यक समझे और उनके कर्तव्यों और अधिकारिता के सम्बन्ध में विनियम बना सकेगा।

(5) रजिस्ट्रारों की पदावधि और सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जो विनियमों द्वारा उपबन्धित की जाएँ।

(6) प्राधिकरण, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उन राज्य क्षेत्रीय सीमाओं को परिभाषित कर सकेगा जिनके भीतर रजिस्ट्री का कोई शाखा कार्यालय अपने कृत्यों का प्रयोग कर सकेगा।

(7) पौधा किस्म रजिस्ट्री की एक मुद्रा होगी।

13. राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर


(1) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये, राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर के नाम से ज्ञात एक रजिस्टर रजिस्ट्री के प्रधान कार्यालय में रखा जाएगा जिसमें सभी रजिस्ट्रीकृत पौधा किस्मों के नाम उनके अपने-अपने प्रजनकों के नामों और पतों सहित, रजिस्ट्रीकृत किस्मों के सम्बन्ध में ऐसे संवर्धकों के अधिकार, प्रत्येक रजिस्ट्रीकरण किस्म के अभिधान की विशिष्टियाँ, उसके बीज या उसके प्रमुख लक्षण के विनिर्देश के साथ अन्य प्रवर्धन सामग्री और अन्य विषय जो विहित किये जाएँ, प्रविष्ट किये जाएँगे।

(2) केन्द्रीय सरकार के अधीक्षण और निदेशन के अधीन रजिस्टर, प्राधिकरण के नियंत्रण और प्रबन्ध के अधीन रखा जाएगा।

(3) रजिस्ट्री के प्रत्येक शाखा कार्यालय में रजिस्टर की एक प्रति और ऐसे अन्य दस्तावेज, जिनका केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निदेश दे, रखे जाएँगे।

अध्याय 3


पौधा किस्मों और अनिवार्य रूप से व्युत्पन्न किस्मों का रजिस्ट्रीकरण


रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन


14. रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन


धारा 16 में विनिर्दिष्ट कोई व्यक्ति किसी ऐसी किस्म के-

(क) जो ऐसे जीन और जातियों की हैं जो धारा 29 की उपधारा (2) के अधीन विनिर्दिष्ट हैं; या
(ख) जो कोई विद्यमान किस्म है; या
(ग) जो कृषक किस्म है,रजिस्ट्रीकरण के लिये रजिस्ट्रार को आवेदन कर सकेगा।

15. रजिस्ट्रीकरण योग्य किस्म


(1) इस अधिनियम के अधीन नई किस्म तभी रजिस्टर की जाएगी यदि वह विलक्षणता, सुभिन्नता, एकरूपता और स्थिरता की कसौटी के अनुरूप है।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई वर्तमान किस्म इस अधिनियम के अधीन विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर रजिस्टर नहीं की जाएगी यदि वह सुभिन्नता, एकरूपता और स्थिरता के ऐसे मानदण्ड के अनुरूप न हो जो विनियमों के अधीन विनिर्दिष्ट किये जाएँगे।

(3) यथास्थिति, उपधारा (1) और उपधारा (2) के प्रयोजनों के लिये नई किस्म,-

(क) विलक्षण सामग्री समझी यदि संरक्षण के लिये रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन फाइल करने की तारीख को ऐसी किस्म के उपयोग के प्रयोजनों के लिये उसके प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी द्वारा या उसकी सहमति से ऐसी किस्म की प्रवर्धन या फसल सामग्री का विक्रय या अन्यथा व्ययन-

(i) भारत में, एक वर्ष से पूर्व; या
(ii) भारत के बाहर वृक्षों या लताओं के मामले में छह वर्ष से पूर्व या किसी अन्य मामले में चार वर्ष से पूर्व,

ऐसा आवेदन फाइल करने की तारीख से पूर्व, नहीं किया गया है:

परन्तु ऐसी किसी नई किस्म का परीक्षण, जिसका विक्रय या अन्यथा व्ययन नहीं हुआ है, संरक्षण के अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा:

परन्तु यह और कि यह तथ्य कि रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन फाइल करने की तारीख को ऐसी किस्म की प्रवर्धन या फसल सामग्री, पूर्वोक्त रीति के माध्यम से भिन्न सामान्य ज्ञान की बात हो गई है, ऐसी किस्म के लिये विलक्षणता की कसौटी को प्रभावित नहीं करेगी;
(ख) सुभिन्न समझी जाएगी यदि वह किसी अन्य ऐसी किस्म से, जिसकी विद्यमानता आवेदन फाइल करने के समय किसी देश में सामान्य बात है, कम से कम एक आवश्यक लक्षण द्वारा स्पष्ट रूप से सुभेद्य है।

स्पष्टीकरण

शंकाओं के निराकरण के लिये, यह घोषित किया जाता है कि किसी नई किस्म के लिये प्रजनक के अधिकार को मंजूर करने के लिये या किसी अभिसमय देश में ऐसी किस्म को शासकीय रजिस्टर में प्रविष्ट करने के लिये किसी आवेदन का फाइल करना उस किस्म को आवेदन की तारीख से सामान्य ज्ञान की बात होना समझा जाएगा यदि आवेदन से, यथास्थिति, संवर्धक का अधिकार मंजूर हो जाता है या ऐसी किस्म को ऐसे शासकीय रजिस्टर में प्रविष्ट कर दिया जाता है;
(ग) एकरूप समझी जाएगी यदि वह ऐसे फेरफार के अधीन रहते हुए जिसकी उसके प्रवर्धन के विशिष्ट लक्षणों से प्रत्याशा की जाती है अपने आवश्यक लक्षणों में पर्याप्त रूप से एकरूप है;
(घ) स्थिर समझी जाएगी यदि उसके आवश्यक लक्षण बार-बार के प्रवर्धन के पश्चात या प्रवर्धन के विशिष्ट चक्र के मामले में ऐसे प्रत्येक चक्र के अन्त में, अपरिवर्तित रहते हैं।

(4) कोई नई किस्म इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर नहीं होगी यदि ऐसी किस्म को दिया गया अभिधान-

(i) ऐसी किस्म की पहचान कराने में समर्थ नहीं है; या
(ii) मात्र आँकड़े समाविष्ट करता है; या
(iii) ऐसी किस्म के लक्षणों, मूल्य पहचान या ऐसी किस्म के प्रजनक की पहचान के सम्बन्ध में भुलावा देने वाला या भ्रम पैदा करने वाला है; या
(iv) ऐसे किसी भी अभिधान से भिन्न नहीं है जो इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत वैसी ही वनस्पति जातियों या घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित जातियों की किसी किस्म को अभिहित करता है; या
(v) ऐसी किस्म की पहचान के सम्बन्ध में जनता में प्रवंचना या भ्रम पैदा होने की सम्भावना है; या
(vi) भारत के नागरिकों के क्रमशः किसी वर्ग या प्रवर्ग की धार्मिक भावनाओं को क्षति पहुँचने की सम्भावना है; या
(vii) सम्प्रतीक और नाम (अनुसूचित प्रयोग निवारण) अधिनियम, 1950 (1950 का 12) की धारा 3 में वर्णित प्रयोजनों में से किसी के लिये कोई नाम या सम्प्रतीक के रूप में उपयोग के लिये प्रतिषिद्ध है; या
(viii) पूर्णतः या भागतः कोई भौगोलिक नाम है:

परन्तु रजिस्ट्रार ऐसी किस्म को रजिस्टर कर सकेगा जिसके अभिधान में पूणर्तः या भागतः भौगोलिक नाम समाविष्ट है यदि वह ऐसी किस्म के सम्बन्ध में ऐसे अभिधान के उपयोग का, उस मामले की परिस्थितियों में, सद्भावी उपयोग समझता है।

16. व्यक्ति जो आवेदन कर सकते हैं


(1) धारा 14 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये कोई आवेदन निम्नलिखित द्वारा किया जाएगा-

(क) किस्म का प्रजनक होने का दावा करने वाला व्यक्ति; या
(ख) किस्म के प्रजनक का कोई उत्तराधिकारी; या
(ग) ऐसा व्यक्ति जो ऐसा आवेदन करने के अधिकार के सम्बन्ध में किस्म के प्रजनक का समनुदेशिती है; या
(घ) किस्म के संवर्धक के रूप में दावा करने वाला कोई कृषक या कृषकों का समूह या कृषकों का समुदाय;
(ङ) कोई व्यक्ति जो खण्ड (क) से खण्ड (घ) में विनिर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा उसकी ओर से आवेदन करने के लिये, विहित रीति में, प्राधिकृत किया गया है;
(च) कोई विश्वविद्यालय या सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित कृषि संस्था जो उस किस्म का प्रजनक होने का दावा कर रही है।

(2) उपधारा (1) के अधीन कोई आवेदन उसमें निर्दिष्ट व्यक्तियों में से किसी के द्वारा वैयक्तिक रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप से किया जा सकेगा।

17. अनिवार्य किस्म अभिधान


(1) प्रत्येक आवेदक ऐसी किसी किस्म को, जिसके सम्बन्ध में वह इस अधिनियम के अधीन विनियमों के अनुसार रजिस्ट्रीकरण की वांछा करता है, एक या भिन्न अभिधान समनुदेशित करेगा।

(2) प्राधिकरण, किसी ऐसे अन्तरराष्ट्रीय अभिसमय या सन्धि के, जिसमें भारत एक पक्षकार बन गया है, उपबन्धों पर विचार करके किसी पौधा किस्म को अभिधान के समनुदेशन को शासित करने के लिये विनियम बनाएगी।

(3) जहाँ किस्म का समनुदेशित अभिधान, विनियमों में विनिर्दिष्ट अपेक्षाओं को पूरा नहीं करता है वहाँ रजिस्ट्रार आवेदक से, ऐसे समय के भीतर जो ऐसे विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये, कोई दूसरा अभिधान प्रस्तावित करने की अपेक्षा कर सकेगा।

(4) व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 (1999 का 47) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, किसी किस्म को समनुदेशित अभिधान उस अधिनियम के अधीन व्यापार चिह्न के रूप में रजिस्टर नहीं किया जाएगा।

18. आवेदन का प्रारूप


(1) धारा 14 के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये प्रत्येक आवेदन-

(क) किसी किस्म के सम्बन्ध में होगा;
(ख) आवेदक द्वारा ऐसी किस्म को समनुदेशित अभिधान का कथन करेगा;
(ग) आवेदक के इस शपथ पत्र के साथ होगा कि ऐसी किस्म में, कोई जीन या जीन अनुक्रम जिसमें समापक प्रौद्योगिकी है, अन्तर्विष्ट नहीं है;
(घ) ऐसे प्रारूप में होगा जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये;
(ङ) उस मूल उद्गम का होगा जिससे ऐसी किस्म व्युत्पन्न की गई है और भारत में भौगोलिक अवस्थान का, जहाँ से आनुवंशिक सामग्री ली गई है सम्पूर्ण पासपोर्ट डाटा और उस किस्म के प्रजनन, क्रम विकास या विकास करने में किसी कृषक, ग्राम समुदाय, संस्था या संगठन का योगदान, यदि कोई है, से सम्बन्धित सभी ऐसी जानकारी, अन्तर्विष्ट करेगा;
(च) विवरण के साथ होगा जिसमें ऐसी किस्म का संक्षिप्त ब्यौरा होगा जिससे उसकी विलक्षणता, सुभिन्नता, एकरूपता और स्थिरता सम्बन्धी अभिलक्षण जो रजिस्ट्रीकरण के लिये अपेक्षित हैं, प्रकट हों;
(छ) ऐसी फीस के साथ होगा जो विहित की जाये;
(ज) ऐसी घोषणा के साथ होगा कि किस्म का संवर्धन, क्रम विकास या विकास करने के लिये अर्जित आनुवंशिक सामग्री या मूल सामग्री विधिपूर्वक अर्जित की गई है; और
(झ) ऐसी अन्य विशिष्टियों सहित होगा, जो विहित की जाएँ;

परन्तु उस दशा में, जिसमें आवेदन कृषक की किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये है खण्ड (ख) से खण्ड (झ) में अन्तर्विष्ट कोई बात आवदेन की बाबत लागू नहीं होगी और आवेदन ऐसे प्रारूप में होगा, जो विहित किया जाये।

(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक आवेदन रजिस्ट्रार के कार्यालय में फाइल किया जाएगा।

(3) जहाँ ऐसा आवेदन रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करने के अधिकार के उत्तराधिकार या समनुदेशन के आधार पर किया गया है वहाँ आवेदन करने के समय या आवेदन करने के पश्चात ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाये, आवेदन करने के अधिकार का सबूत प्रस्तुत किया जाएगा।

19. किये जाने वाले परीक्षण


(1) प्रत्येक आवेदक, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन के साथ रजिस्ट्रार को ऐसी किस्म के, जिसके रजिस्ट्रीकरण के लिये ऐसा आवेदन किया गया है, बीज की ऐसी मात्रा, यह मूल्यांकन करने का परीक्षण करने के प्रयोजन के लिये, उपलब्ध कराएगा कि ऐसी किस्म मूल सामग्री के साथ उन मानकों के अनुरूप है जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ:

परन्तु रजिस्ट्रार या कोई व्यक्ति या परीक्षण केन्द्र जिसे ऐसा बीज परीक्षण के लिये भेजा गया है, ऐसे बीज को अपने कब्जे के दौरान ऐसी रीति और ऐसी दशा में रखेगा जिससे उसकी जीवन क्षमता और क्वालिटी अपरिवर्तित बनी रहे।

(2) आवेदक उपधारा (1) में निर्दिष्ट परीक्षण करने के लिये ऐसी फीस जमा करेगा जो विहित की जाये।

(3) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट परीक्षण ऐसी रीति से और ऐसे ढंग से किया जाएगा जो विहित किया जाये।

20. आवेदन या उसके संशोधन की स्वीकृति


(1) धारा 14 के अधीन किसी आवेदन की प्राप्ति पर, रजिस्ट्रार ऐसे आवेदन में अन्तर्विष्ट विशिष्टियों के सम्बन्ध में ऐसी जाँच करने के पश्चात जिसे वह उचित समझता है आवेदन को पूर्ण रूप से या ऐसी शर्तों या परिसीमाओं के अधीन जो वह उचित समझता है, स्वीकार कर सकेगा।

(2) जहाँ रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाता है कि आवेदन इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों या विनियमों की अपेक्षाओं का अनुपालन नहीं करता है वहाँ वह-

(क) आवेदक से अपने समाधानप्रद रूप में आवेदन को संशोधित करने की अपेक्षा कर सकेगा; या
(ख) आवेदन को नामंजूर कर सकेगा:

परन्तु कोई आवेदन तब तक नामंजूर नहीं किया जाएगा जब तक कि आवेदक को अपना मामला प्रस्तुत करने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

21. आवेदन का विज्ञापन


(1) जब किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये कोई आवेदन, धारा 20 की उपधारा (1) के अधीन पूर्ण रूप से या शर्तों अथवा परिसीमाओं के अधीन स्वीकार कर लिया गया है तब रजिस्ट्रार उसकी स्वीकृति के पश्चात यथाशीघ्र ऐसे आवेदन को ऐसी शर्तों अथवा परिसीमाओं के साथ, यदि कोई हों, जिनके अधीन वह स्वीकार किया गया है और उस किस्म के विनिर्देश, जिसके रजिस्ट्रीकरण के लिये ऐसा आवेदन किया गया है, उसके फोटोचित्र या रेखाचित्र सहित उस मामले में हितबद्ध व्यक्तियों से आक्षेप आमंत्रित करते हुए, विहित रीति में विज्ञाप्ति कराएगा।

(2) कोई व्यक्ति, रजिस्ट्रीकरण के आवेदन के विज्ञापन की तारीख से तीन मास के भीतर विहित फीस का सन्दाय करके विहित रीति से लिखित रूप में रजिस्ट्रीकरण के लिये अपने विरोध की सूचना रजिस्ट्रार को दे सकेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकरण का विरोध निम्नलिखित आधारों में से किसी एक आधार पर किया जा सकेगा, अर्थात यह कि:-

(क) आवेदन का विरोध करने वाला व्यक्ति आवेदक के मुकाबले प्रजनक के अधिकार का हकदार है;
(ख) किस्म इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर किये जाने योग्य नहीं है; या
(ग) रजिस्ट्रीकरण के लिये प्रमाणपत्र प्रदान किया जाना लोकहित में नहीं होगा; या
(घ) किस्म का पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

(4) रजिस्ट्रार विरोध की सूचना की एक प्रति को रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदक पर तामील करेगा और आवेदक द्वारा विरोध की सूचना की ऐसी प्रति की प्राप्ति से दो मास के भीतर आवेदक, रजिस्ट्रार को विहित रीति में उन आधारों का एक प्रतिकथन भेजेगा जिन पर वह अपने आवेदन के लिये निर्भर करता है और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यह समझा जाएगा कि उसने अपने आवेदन का परित्याग कर दिया है।

(5) यदि आवेदक ऐसा प्रतिकथन भेजता है तो रजिस्ट्रार उसकी एक प्रति की विरोध की सूचना देने वाले व्यक्ति पर तामील करेगा।

(6) ऐसा कोई साक्ष्य जिस पर विरोधकर्ता और आवेदक निर्भर है रजिस्ट्रार को विहित रीति में और विहित समय के भीतर पेश किया जाएगा और रजिस्ट्रार, यदि वह ऐसा चाहता है तो, उन्हें सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा।

(7) रजिस्ट्रार पक्षकारों को सुनने के पश्चात, यदि ऐसी अपेक्षा हो और साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात यह विनिश्चत करेगा कि क्या और किन शर्तों और परिसीमाओं के, यदि कोई हों, अधीन रजिस्ट्रीकरण अनुज्ञात किया जाये और आक्षेप के आधार पर विचार कर सकेगा, चाहे विरोधकर्ता उस पर निर्भर है या नहीं।

(8) जहाँ विरोध की सूचना देने वाला कोई व्यक्ति या ऐसी सूचना की प्रति की प्राप्ति के पश्चात प्रतिकथन भेजने वाला कोई आवेदक न तो भारत में निवास करता है और न ही कारबार करता है, वहाँ रजिस्ट्रार उसके समक्ष की कार्यवाहियों के खर्च के लिये उससे प्रतिभूति देने की अपेक्षा कर सकेगा और ऐसी प्रतिभूति के सम्यक रूप से दिये जाने में व्यतिक्रम होने पर उसे, यथास्थिति, विरोध या आवेदन के परित्याग किये जाने के रूप में मान सकेगा।

(9) रजिस्ट्रार, निवेदन किये जाने पर ऐसे निबन्धनों पर जिन्हें वह ठीक समझता है, विरोध की सूचना या प्रतिकथन में किसी त्रुटि के सुधार या किसी संशोधन को अनुज्ञात कर सकेगा।

22. रजिस्ट्रार का विरोध के आधारों पर विचार करना


रजिस्ट्रार, ऐसे सभी आधारों पर विचार करेगा जिन पर आवेदन का विरोध किया गया है और अपने विनिश्चय के कारण देने के पश्चात आदेश द्वारा विरोध को मान्य ठहराएगा या नामंजूर करेगा।

अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म का रजिस्ट्रीकरण


23. अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म का रजिस्ट्रीकरण


(1) धारा 29 की उपधारा (2) के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट जीनस या जातियों की अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन, रजिस्ट्रार को धारा 14 में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी ओर से और धारा 18 में विनिर्दिष्ट रीति में इस प्रकार किया जाएगा मानो उसमें “किस्म” शब्द के स्थान पर “अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म” शब्द रखे गए हैं और उसके साथ ऐसे दस्तावेज और फीस होगी जो विहित किये जाएँ।

(2) जब रजिस्ट्रार का यह समाधान हो जाता है कि उपधारा (1) की अपेक्षाओं का पालन उसके समाधानप्रद रूप में हो गया है तो वह आवेदन को, अपनी रिपोर्ट और सभी सुसंगत दस्तावेजों के साथ, प्राधिकरण को अग्रेषित करेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन ऐसे आवेदन की प्राप्ति पर, प्राधिकरण ऐसी अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म की यह अवधारित करने के लिये परीक्षा करवाएगा कि क्या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म ऐसी किस्म है जो मूल किस्म से, ऐसा परीक्षण करके और ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करके, जो विहित की जाये, व्युत्पन्न किस्म है।

(4) जब प्राधिकरण का उपधारा (3) में निर्दिष्ट परीक्षण रिपोर्ट से वह समाधान हो जाता है कि अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म मूल किस्म से व्युत्पन्न की गई है तो वह रजिस्ट्रार को ऐसी अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म को रजिस्टर करने का निदेश दे सकेगा और रजिस्ट्रार अधिकरण के निदेश का पालन करेगा।

(5) जहाँ अधिकरण का उपधारा (3) में निर्दिष्ट परीक्षण रिपोर्ट पर यह समाधान नहीं होता है कि अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म मूल किस्म से व्युत्पन्न की गई है तो वह आवेदन को नामंजूर कर देगा।

(6) धारा 28 में अन्तर्विष्ट किसी किस्म के प्रजनक के अधिकार, अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के प्रजनक को लागू होंगे:

परन्तु मूल किस्म के प्रजनक द्वारा धारा 28 की उपधारा (2) के अधीन अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के प्रजनक को प्राधिकार ऐसे निबन्धनों और शर्तों के अधीन होगा जिन पर दोनों पक्षकार आपस में सहमत हों।

(7) अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म इस धारा के अधीन तब तक रजिस्टर नहीं की जाएगी जब तक कि धारा 15 की अपेक्षाओं का समाधान इस प्रकार नहीं हो जाता कि मानो उसमें “किस्म” शब्द के स्थान पर “अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म” शब्द रखे गए हैं।

(8) जब कोई अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म उपधारा (4) के अधीन प्राधिकरण के निदेश के अनुपालन में रजिस्ट्रार द्वारा रजिस्टर कर ली गई है तब रजिस्ट्रार आवेदक को विहित प्रारूप में रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा और रजिस्ट्री की मुद्रा से मुद्रांकित करेगा और उसकी एक प्रति प्राधिकरण और ऐसे अन्य प्राधिकारी को, जो विहित किये जाएँ, सूचना के लिये भेजेगा।

अध्याय 4


रजिस्ट्रीकरण की अवधि और प्रभाव और फायदे में हिस्सा बटाना


24. रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का जारी किया जाना


(1) जब किसी किस्म (अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म से भिन्न) के रजिस्ट्रीकरण के लिये कोई आवेदन स्वीकार कर लिया गया है और-

(क) आवेदन का विरोध नहीं किया गया है और विरोध की सूचना के लिये समय समाप्त हो गया है; या
(ख) आवेदन का विरोध किया गया है और विरोध नांमजूर कर दिया गया है,तब रजिस्ट्रार किस्म को रजिस्टर करेगा।

(2) किस्म (अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म से भिन्न) का रजिस्ट्रीकरण हो जाने पर, रजिस्ट्रार आवेदक को विहित प्रारूप में और रजिस्ट्री की मुद्रा से मुद्रांकित रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा और एक प्रति फायदे का हिस्सा बटाने का अवधारण करने के लिये प्राधिकरण को और ऐसे अन्य प्राधिकारी को जानकारी के लिये भेजेगा, जो विहित किया जाये। किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन फाइल करने की तारीख से रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करने के लिये रजिस्ट्रार द्वारा अपेक्षित अधिकतम समय वह होगा जो विहित किया जाये।

(3) जहाँ किसी किस्म (अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म से भिन्न) का रजिस्ट्रीकरण आवेदक की ओर से किसी व्यतिक्रम के कारण आवेदन की तारीख से बारह मास के भीतर पूरा नहीं होता है वहाँ रजिस्ट्रार आवेदक को विहित रीति से सूचना देने के पश्चात यह मान सकेगा कि आवेदन का परित्याग कर दिया गया है जब तक कि उसे सूचना में उस निमित्त विनिर्दिष्ट समय के भीतर पूरा नहीं कर दिया जाता है।

(4) रजिस्ट्रार किसी लेखन गलती या स्पष्ट भूल का सुधार करने के प्रयोजन के लिये रजिस्टर या रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में संशोधन कर सकेगा।

(5) रजिस्ट्रार को ऐसे निदेश जारी करने की शक्ति होगी जो रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन फाइल करने और ऐसे आवेदन पर प्राधिकरण द्वारा किये गए विनिश्चय की अवधि के दौरान किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किये गए किसी अनुचित कार्य के विरुद्ध प्रजनक के हित का संरक्षण करने के लिये हों।

(6) इस धारा या धारा 23 की उपधारा (8) के अधीन जारी किया गया रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र वृक्षों और लताओं की दशा में नौ वर्षों के लिये और अन्य फसलों की दशा में छह वर्षों के लिये विधिमान्य होगा और शेष अवधि के लिये ऐसी फीस के सन्दाय पर, जो इस निमित्त बनाए गए नियमों द्वारा नियत की जाये, इस शर्त के अधीन पुनरीक्षित या नवीकृत किया जा सकेगा, कि विधिमान्यता की कुल अवधि-

(i) वृक्षों और लताओं की दशा में, किस्म के रजिस्ट्रीकरण की तारीख से अट्ठारह वर्ष से अधिक नहीं होगी;
(ii) विद्यमान किस्म की दशा में, केन्द्रीय सरकार द्वारा बीज अधिनियम, 1966 (1966 का 54) की धारा 5 के अधीन उस किस्म की अधिसूचना की तारीख से पन्द्रह वर्ष से अधिक नहीं होगी; और
(iii) अन्य दशाओं में किस्म के रजिस्ट्रीकरण की तारीख से पन्द्रह वर्ष से अधिक नहीं होगी।

25. किस्मों की सूची का प्रकाशन


प्राधिकरण, ऐसे अन्तरालों के भीतर जिन्हें वह समुचित समझे, उन किस्मों की जो उस अन्तराल के दौरान रजिस्टर की गई हैं, सूची प्रकाशित करेगा।

26. प्राधिकरण द्वारा फायदे का हिस्सा बटाने का अवधारण


(1) धारा 23 की उपधारा (8) या धारा 24 की उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र की प्रति की प्राप्ति पर, प्राधिकरण प्रमाणपत्र की ऐसी अन्तर्वस्तु को प्रकाशित करेगा और ऐसी किस्म में, जो ऐसे प्रमाणपत्र में रजिस्ट्रीकृत है, ऐसी रीति से जो विहित की जाये, फायदे का हिस्सा बटाने के दावों को आमंत्रित करेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन दावों के आमंत्रण पर, कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह या फर्म या सरकारी या गैर-सरकारी संगठन, ऐसी किस्म में फायदे का हिस्सा बटाने के अपने दावे को विहित प्रारूप में ऐसे समय के भीतर और ऐसी फीस के साथ जो विहित की जाये, प्रस्तुत करेगा:

परन्तु ऐसा दावा निम्नलिखित के द्वारा ही प्रस्तुत किया जाएगा,-

(i) व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह, यदि ऐसा व्यक्ति या ऐसे समूह का गठन करने वाला प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागिरक है; या
(ii) फर्म या सरकारी गैर सरकारी संगठन, यदि ऐसी फर्म या कोई ऐसा संगठन भारत में बनाया या स्थापित किया गया है।
(3) उपधारा (2) के अधीन किसी दावे की प्राप्ति पर, प्राधिकरण ऐसे दावों की एक प्रति, ऐसे प्रमाणपत्र के अधीन रजिस्ट्रीकृत ऐसी किस्म के प्रजनक को भेजेगा और प्रजनक, ऐसी प्रति की प्राप्ति पर ऐसे दावे पर अपना विरोध ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति से, जो विहित की जाये, प्रस्तुत कर सकेगा।

(4) प्राधिकरण पक्षकारों को सुनवाई का अवसर दिये जाने के पश्चात उपधारा (2) के अधीन प्राप्त दावों का निपटारा करेगा।

(5) उपधारा (4) के अधीन दावे का निपटारा करते समय, प्राधिकरण अपने आदेश में स्पष्ट रूप से फायदे का हिस्सा बटाने की रकम, यदि कोई हो, जिसके लिये दावेदार हकदार होगा, उपदर्शित करेगा, और निम्नलिखित विषयों पर विचार करेगा, अर्थात-

(क) उस किस्म के, जिसके सम्बन्ध में फायदे में हिस्सा बटाने का दावा किया गया है, विकास में दावेदार की आनुवंशिकी सामग्री के उपयोग का परिमाण और प्रकृति;
(ख) उस किस्म की जिसके सम्बन्ध में फायदे का हिस्सा बटाने का दावा किया गया है, बाजार में वाणिज्यिक उपयोगिता और माँग।
(6) इस धारा के अधीन अवधारित किसी किस्म में फायदे का हिस्सा बटाने की रकम ऐसी किस्म के प्रजनक द्वारा धारा 45 की उपधारा (1) के खण्ड (क) में निर्दिष्ट रीति से राष्ट्रीय जीन निधि में जमा की जाएगी।

(7) इस धारा के अधीन अवधारित फायदे का हिस्सा बटाने की रकम, प्राधिकरण द्वारा विहित रीति से किये गए निर्देश पर ऐसे जिला मजिस्ट्रेट द्वारा, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमा के भीतर हिस्सा बटाने के लिये दायी संवधर्क निवास करता है, भू-राजस्व की बकाया के रूप में वसूल की जाएगी।

27. प्रजनक द्वारा बीज या प्रवर्धन सामग्री का जमा किया जाना


(1) प्रजनक से अपेक्षित होगा कि वह बीज या प्रवर्धन सामग्री की ऐसी मात्रा, जिसके अन्तर्गत ऐसे राष्ट्रीय जीन बैंक में रजिस्ट्रीकृत किस्म के मूल पंक्ति के बीज हैं, जो विनियमों में विनिर्दिष्ट किये जाएँ, प्रजनक के व्यय पर ऐसे समय के भीतर जो उस विनियम में विनिर्दिष्ट किया जाये, पुनरुत्पादन के प्रयोजनों के लिये जमा करने का निदेश दे सकेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन निक्षिप्त किये जाने वाले बीज या प्रवर्धक सामग्री या मूल पंक्ति के बीज प्राधिकरण द्वारा विनिर्दिष्ट राष्ट्रीय जीन बैंक में निक्षप्त किये जाएँगे।

28. अधिकार प्रदान करने का रजिस्ट्रीकरण


(1) इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के अधीन जारी की गई किसी किस्म के लिये रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र, प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी, उसके अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी को ऐसी किस्म का उत्पादन, विक्रय, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात करने का अनन्य अधिकार प्रदान करेगा:

परन्तु विद्यमान किस्म की दशा में जब तक कि प्रजनक या उसका उत्तराधिकारी अपना अधिकार सिद्ध न करे, केन्द्रीय सरकार को और उस दशा में, जिसमें ऐसी विद्यमान किस्म बीज अधिनियम, 1966 (1966 का 54) की धारा 5 के अधीन किसी राज्य या उसके किसी क्षेत्र के लिये अधिसूचित है, राज्य सरकार को ऐसे अधिकार का स्वामी समझा जाएगा।

(2) प्रजनक किसी व्यक्ति को विनियमों में विनिर्दिष्ट, परिसीमाओं और शर्तों के अधीन रहते हुए इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्म का उत्पादन, विक्रय, विपणन या उसके साथ अन्यथा व्यवहार करने के लिये प्राधिकृत कर सकेगा।

(3) इस धारा के अधीन प्रत्येक प्राधिकार ऐसे प्रारूप में होगा जो विनियमों में विनिर्दिष्ट किया जाये।

(4) जहाँ उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी किसी किस्म का उत्पादन, विक्रय, विपणन, वितरण, आयात या निर्यात करने का हकदार हो जाता है वहाँ वह विहित रीति से और विहित फीस के साथ रजिस्ट्रार को अपना हक रजिस्टर करने के लिये आवेदन करेगा और रजिस्ट्रार, आवेदन की प्राप्ति पर और अपने समाधानप्रद रूप में हक का सबूत होने पर उसे ऐसी किस्म के सम्बन्ध में, जिसके लिये वह ऐसे अधिकार का हकदार है, यथास्थिति, अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी के रूप में रजिस्टर करेगा और ऐसी हकदारी की विशिष्टियाँ और शर्तें या निर्बन्धन, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए ऐसी हकदारी दी गई है, रजिस्टर में प्रविष्ट कराएगा:

परन्तु जब पक्षकारों के बीच ऐसी हकदारी की विधिमान्यता पर विवाद हो तब रजिस्ट्रार हकदारी को रजिस्टर करने से इनकार कर सकेगा और विहित रीति से मामले को प्राधिकरण को निर्दिष्ट कर सकेगा तथा जब तक प्राधिकरण द्वारा इस प्रकार निर्दिष्ट विवाद में पक्षकारों के अधिकार का अवधारण नहीं कर दिया जाता तब तक ऐसी हकदारी का रजिस्ट्रीकरण रोक सकेगा।

(5) रजिस्ट्रार उपधारा (4) के अधीन आवेदक को ऐसे रजिस्ट्रीकरण के पश्चात रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा और प्रमाणपत्र में हकदारी की संक्षिप्त शर्तें, यदि कोई हों, विहित रीति में प्रविष्ट करेगा और ऐसा प्रमाणपत्र ऐसी हकदारी और उसकी शर्तों या निर्बन्धनों का, यदि कोई हो, निश्चायक सबूत होगा।

(6) पक्षकारों के बीच विद्यमान किसी करार के अधीन रहते हुए, उपधारा (4) के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म पर अधिकार रखने वाला अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी, प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी से उसके अतिलंघन को रोकने की कार्यवाही करने के लिये अपेक्षा करने का हकदार होगा और यदि प्रजनक या उसका उत्तराधिकारी ऐसी अपेक्षा किये जाने के पश्चात तीन मास के भीतर ऐसा करने से इनकार करता है या उपेक्षा करता है तो ऐसा रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी को प्रतिवादी बनाते हुए अपने नाम से अतिलंघन के लिये कार्यवाही उसी प्रकार संस्थित कर सकेगा मानो वह प्रजनक हो।

(7) किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, प्रतिवादी के रूप में इस प्रकार जोड़ा गया कोई प्रजनक या उसका उत्तराधिकारी किसी खर्च के लिये तब तक दायी नहीं होगा जब तक कि वह कार्यवाहियों में उपस्थित नहीं होता है और भाग नहीं लेता है।

(8) इस धारा की कोई बात किसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी को ऐसे अधिकार को, उसके और आगे अन्तरित करने का कोई अधिकार प्रदत्त नहीं करती है।

(9) उपधारा (4) के अधीन रजिस्ट्रीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, रजिस्ट्रीकरण के निबन्धन-

(क) रजिस्ट्रार द्वारा ऐसी किस्म के सम्बन्ध में जिससे वे सम्बन्धित हैं या किसी ऐसी शर्त या निबन्धन के सम्बन्ध में जिसके अधीन वे प्रभाव रखते हैं ऐसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी के विहित रीति से आवेदन की प्राप्ति पर परिवर्तित किये जा सकेंगे;
(ख) रजिस्ट्रार द्वारा, ऐसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी के या, ऐसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी के विहित रीति से आवेदन की प्राप्ति पर रद्द किये जा सकेंगे;
(ग) रजिस्ट्रार द्वारा प्रजनक, उसके उत्तराधिकारी, रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी से भिन्न किसी व्यक्ति के विहित रीति से आवेदन पर निम्नलिखित आधारों में से किसी पर रद्द किये जा सकेंगे, अर्थात-

(i) किसी किस्म के प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी या ऐसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी ने उपधारा (4) के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन से तात्त्विक, कुछ ऐसे तथ्यों का दुर्व्यपदेशन किया है या उन्हें प्रकट करने में असफल रहा है, जिन्हें यदि ठीक-ठीक व्यपदिष्ट या प्रकट किया गया होता तो वे रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन के अस्वीकृत करने को न्यायोचित ठहराते;
(ii) रजिस्ट्रीकरण, किसी ऐसी संविदा के आधार पर, जिसके अनुपालन में वह हितबद्ध है, आवेदक में निहित अधिकार को ध्यान में रखते हुए प्रभावी नहीं किया जाना चाहिए;
(घ) रजिस्ट्रार द्वारा, किसी रजिस्ट्रीकृत किस्म के प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी के विहित रीति में आवेदन करने पर इस आधार पर रद्द किये जा सकेंगे कि, यथास्थिति, रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी के और किसी ऐसी किस्म के सम्बन्ध में, जिसके लिये ऐसा अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी रजिस्ट्रीकृत है, ऐसे प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी के बीच करार के किसी अनुबन्ध को प्रवर्तित नहीं किया जा रहा है या उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है;

(ङ) रजिस्ट्रार द्वारा किसी व्यक्ति के विहित रीति से आवेदन पर इस आधार पर रद्द किये जा सकेंगे कि रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित किस्म अब विद्यमान नहीं है।

(10) रजिस्ट्रार इस धारा के अधीन प्रत्येक आवेदन पर किसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत प्रजनक या उसके उत्तराधिकारी और ऐसी किस्म के प्रत्येक रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी (जो आवेदक नहीं है) को विहित रीति से सूचना जारी करेगा।

(11) रजिस्ट्रार, उपधारा (9) के अधीन कोई आदेश करने से पूर्व, उस निमित्त किये गए आवेदन को, किसी पक्षकार द्वारा उपधारा (10) के अधीन सूचना के पश्चात प्राप्त किसी आक्षेप के साथ प्राधिकरण को विचार के लिये अग्रेषित करेगा और प्राधिकरण, ऐसी जाँच के पश्चात जो वह उचित समझे, रजिस्ट्रार को ऐसे निदेश जारी करेगा जो वह उचित समझे और रजिस्ट्रार ऐसे निदेशों के अनुसार आवेदन का निपटारा करेगा।

29. कतिपय किस्मों का अपवर्जन


(1) इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन किसी किस्म का रजिस्ट्रीकरण उन दशाओं में नहीं किया जाएगा जिनमें ऐसी किस्म के वाणिज्यिक शोषण का निवारण लोक व्यवस्था या लोक नैतिकता या मानव, पशु तथा पौधे के जीवन और स्वास्थ्य का संरक्षण करने के लिये या पर्यावरण पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से बचाने के लिये आवश्यक है।

(2) केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के अधीन विद्यमान किस्मों और कृषक की किस्मों से भिन्न किस्मों के रजिस्ट्रीकरण के प्रयोजनों के लिये जीन्स या जातियों को विनिर्दिष्ट करेगी।

(3) उपधारा (2) और धारा 15 की उपधारा (1) और उपधारा (2) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, ऐसी किसी जीन्स या जातियों की, जिनमें ऐसी प्रौद्योगिकी अन्तर्वलित है, जो मानव, पशुओं या पौधों के जीवन या स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, किसी किस्म का इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण नहीं किया जाएगा।

स्पष्टीकरण


इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये, “किसी प्रौद्योगिकी” पद के अन्तर्गत आनुवंशिकी उपयोग निर्बन्धन प्रौद्योगिकी और समापक प्रौद्योगिकी हैं।

(4) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (2) के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट जीन्स या जातियों की सूची में से किसी जीन्स या जातियों को लोकहित के सिवाय नहीं हटाएगी।

(5) कोई ऐसी किस्म, जो उपधारा (4) के अधीन अपवर्जित जीन्स या जातियों की है, इस अधिनियम के अधीन किसी संरक्षण की पात्र नहीं होगी।

30. अनुसन्धानकर्ता के अधिकार


इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट कोई बात निम्नलिखित का निवारण नहीं करेगी-

(क) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म का, ऐसी किस्म का प्रयोग या अनुसन्धान करने के लिये उपयोग करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा उपयोग, और
(ख) अन्य किस्मों का सृजन करने के प्रयोजनार्थ किस्मों के प्रारम्भिक स्रोत के रूप में किसी व्यक्ति द्वारा, किसी किस्म का उपयोग:

परन्तु यह कि उस दशा में किसी रजिस्ट्रीकृत किस्म के प्रजनक का प्राधिकार अपेक्षित होगा जहाँ वैसी अन्य नव-विकसित किस्म के वाणिज्यिक उत्पादन के लिये ऐसी किस्म की जनकीय लाइन का आवर्ती उपयोग आवश्यक हो।

31. अभिसमय देशों के नागरिकों से रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदनों से सम्बन्धित विशेष उपबन्ध


(1) भारत से बाहर के किसी देश से किसी ऐसी सन्धि, अभिसमय या ठहराव को पूर्ण करने की दृष्टि से जिसके द्वारा भारत के नागरिकों को वैसे ही विशेषाधिकार, अनुदत्त किये जाएँ जो उसके अपने नागरिकों के हों, केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, ऐसे देश को इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ एक अभिसमय देश घोषित करेगी।

(2) जहाँ किसी व्यक्ति ने किसी किस्म के प्रति प्रजनक के अधिकार के अनुदान के लिये या ऐसी किस्म को किसी अभिसमय देश में किस्मों के शासकीय रजिस्टर में प्रविष्ट कराने के लिये आवेदन किया है और धारा 14 या धारा 23 के अधीन उसकी ओर से आवेदन करने का हकदार कोई व्यक्ति उस तारीख के पश्चात, जिसको आवेदन अभिसमय देश में किया गया है, बारह मास के भीतर भारत में ऐसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करता है तो उसे, यदि वह इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत है तो उस तारीख को रजिस्ट्रीकृत किया जाएगा जिसको आवेदन अभिसमय देश में किया गया था और वह तारीख इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये रजिस्ट्रीकरण की तारीख समझी जाएगी।

(3) जहाँ किसी किस्म के लिये प्रजनक के अधिकार के अनुदान के लिये अथवा ऐसी किस्म को दो या अधिक अभिसमय देशों में किस्मों के शासकीय रजिस्टर में प्रविष्ट करने के लिये आवेदन किये गए हैं वहाँ उपधारा (2) में निर्दिष्ट बारह मास की अवधि उस तारीख से संगणित की जाएगी जिसको उनमें से पूर्वतर या पूर्वतम आवेदन किया गया है।

(4) इस अधिनियम की कोई बात किसी रजिस्ट्रीकृत किस्म के प्रजनक को, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण के आवेदन की तारीख से पूर्व होने वाले इस अधिनियम के अधीन संरक्षित से भिन्न अधिकारों के किसी अतिलंघन के लिये हकदार नहीं बनाएगी।

32. व्यतिकारिता के लिये उपबन्ध


जहाँ केन्द्रीय सरकार द्वारा धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस निमित्त घोषित कोई देश, किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण के सम्बन्ध में भारत के नागरिकों को वही अधिकार नहीं देता जो वह अपने राष्ट्रिकों को देता है तो ऐसे देश का कोई राष्ट्रिक एकल रूप से या किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रूप से, इस अधिनियम के अधीन किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करने अथवा किसी किस्म का रजिस्ट्रीकरण करवाने का हकदार नहीं होगा।

अध्याय 5


प्रमाणपत्र का अभ्यर्पण और प्रतिसंहरण तथा रजिस्टर परिशोधन और शुद्धि


33. रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का अभ्यर्पण


(1) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म का प्रजनक, रजिस्ट्रार को विहित रीति से सूचना देने के पश्चात किसी भी समय अपने रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को अभ्यर्पित करने की प्रस्थापना कर सकता है।

(2) जहाँ ऐसी कोई प्रस्थापना की जाये, वहाँ रजिस्ट्रार विहित रीति से ऐसे प्रमाणपत्र से सम्बन्धित प्रत्येक रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी को अधिसूचित करेगा।

(3) ऐसा कोई अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी, ऐसी अधिसूचना के पश्चात विहित अवधि के भीतर, अभ्यर्पण के प्रति अपने विरोध की सूचना रजिस्ट्रार को दे सकता है और जहाँ ऐसी कोई सूचना दी जाती है, वहाँ रजिस्ट्रार ऐसी किस्म के प्रजनक को ऐसी सूचना की अन्तर्वस्तु प्रज्ञापित करेगा।

(4) यदि आवेदक और सभी विरोधियों की, यदि वे सुनवाई के लिये इच्छुक हों सुनवाई के पश्चात, रजिस्ट्रार का समाधान हो जाता है कि वह रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र उचित रूप से अभ्यर्पित किया जा सकता है तो वह उस प्रस्थापना को स्वीकार कर सकता है और आदेश द्वारा रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का प्रतिसंहरण कर सकता है।

34. कतिपय आधारों पर संरक्षण का प्रतिसंहरण


इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी किस्म के सम्बन्ध में प्रजनक को अनुदत्त संरक्षण, हितबद्ध किसी व्यक्ति द्वारा विहित रीति से आवेदन किये जाने पर प्राधिकरण द्वारा निम्नलिखित में से किसी आधार पर प्रतिसंहृत किया जा सकता है, अर्थात-

(क) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का अनुदान आवेदक द्वारा दी गई गलत जानकारी पर आधारित हैं;
(ख) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र ऐसे व्यक्ति को अनुदत्त किया गया है जो इस अधिनियम के अधीन संरक्षण का पात्र नहीं है;
(ग) प्रजनक ने, रजिस्ट्रार को इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये यथा अपेक्षित जानकारी, दस्तावेज या सामग्री उपलब्ध नहीं कराई थी;
(घ) जहाँ रजिस्ट्रार को उपलब्ध कराई गई किसी किस्म का पूर्ववर्ती अभिधान इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये अनुज्ञेय नहीं है वहाँ प्रजनक, रजिस्ट्रार को उस किस्म का, जो रजिस्ट्रीकरण की विषय-वस्तु है, आनुकल्पिक अभिधान उपलब्ध कराने में असफल रहा है;
(ङ) प्रजनक ने उस व्यक्ति को, जिसे उक्त किस्म के सम्बन्ध में धारा 47 के अधीन अनिवार्य अनुज्ञप्ति जारी की गई है, जिसके सम्बन्ध में उस प्रजनक को रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी किया गया है आवश्यक बीज या प्रवर्धन सामग्री उपलब्ध नहीं कराई थी;
(च) प्रजनक ने इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों या विनियमों का पालन नहीं किया है;
(छ) प्रजनक, इस अधिनियम के अधीन जारी किये गए प्राधिकरण के निदेशों का पालन करने में असफल रहा है;
(ज) रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का अनुदान लोकहित में नहीं है:

परन्तु यह कि ऐसा संरक्षण तब तक प्रतिसंहृत नहीं किया जाएगा जब तक प्रजनक को आक्षेप दाखिल करने और उस विषय में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दिया गया हो।

35. वार्षिक फीस का सन्दाय और उसके व्यतिक्रम पर रजिस्ट्रीकरण का समपहरण


(1) प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के प्रत्येक प्रजनक, अभिकर्ता और उसके अनुज्ञप्तिधारी द्वारा प्रतिवर्ष सन्दत्त की जाने वाली ऐसी फीस अधिरोपित कर सकेगा जो इस अधिनियम के अधीन उनके रजिस्ट्रीकरण के प्रतिधारण के लिये, किस्म के सम्बन्ध में, यथास्थिति, ऐसे प्रजनक, अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी द्वारा प्राप्त फायदे या स्वामित्व के आधार पर अवधारित की जाये।

(2) यदि कोई प्रजनक, अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी उपधारा (1) में निर्दिष्ट उक्त उपधारा के अधीन उस पर अधिरोपित फीस का निक्षेप विहित रीति से दो वर्ष तक लगातार करने में असफल रहता है तो प्राधिकरण, ऐसे प्रजनक, अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी को सूचना जारी करेगा और ऐसी सूचना की तामील होने पर यदि वह उक्त सूचना के निदेश का पालन करने में असफल रहता है तो प्राधिकरण ऐसे प्रजनक या अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी को जारी किये गए रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के अधीन अनुज्ञेय सभी संरक्षण समपहृत घोषित कर देगा।

(3) उपधारा (1) के अधीन अधिरोपित फीस के बकाया को भू-राजस्व का बकाया समझा जाएगा और तद्नुसार उसकी वसूली की जाएगी।

36. रजिस्ट्रीकरण को रद्द या परिवर्तित करने तथा रजिस्टर के परिशोधन की शक्ति


(1) किसी व्यथित व्यक्ति द्वारा, रजिस्ट्रार को विहित रीति से किये गए आवेदन पर, रजिस्ट्रार, इस अधिनियम के उपबन्धों के किसी उल्लंघन के आधार पर या ऐसी किसी शर्त का पालन करने में असफल रहने पर जिसके अधीन रहते हुए रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी किया गया था, इस अधिनियम के अधीन जारी किये गए किसी के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र को रद्द करने या परिवर्तित करने का ऐसा आदेश कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

(2) कोई व्यक्ति जो रजिस्टर में किसी प्रविष्टि की अनुपस्थिति या लोप या पर्याप्त कारण के बिना रजिस्टर में की गई किसी प्रविष्टि द्वारा या किसी प्रविष्टि के रजिस्टर में गलत रूप से बने रहने के कारण व्यथित है, रजिस्ट्रार को विहित रीति में आवेदन कर सकेगा और रजिस्ट्रार उक्त प्रविष्टि के किये जाने, निकालने या परिवर्तित किये जाने के लिये ऐसा आदेश करेगा जो वह ठीक समझे।

(3) रजिस्ट्रार इस धारा के अधीन किसी कार्यवाही में ऐसे किसी प्रश्न का विनिश्चय कर सकेगा जो रजिस्टर के परिशोधन के सम्बन्ध में आवश्यक या समीचीन हो।

(4) रजिस्ट्रार, स्वप्रेरणा से, सम्बन्धित पक्षकारों को विहित रीति में सूचना देने के पश्चात और उन्हें सुनवाई का अवसर देने के पश्चात, उपधारा (1) या उपधारा (2) में निर्दिष्ट आदेश कर सकेगा।

37. रजिस्टर का संशोधन


(1) रजिस्ट्रार, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के प्रजनक द्वारा विहित रीति में किये गए किसी आवेदन पर,-

(क) रजिस्टर में, ऐसे प्रजनक के नाम, पते या वर्णन से सम्बन्धित किसी त्रुटि का या, उस किस्म से सम्बन्धित किसी अन्य प्रविष्टि में संशोधन कर सकेगा;
(ख) रजिस्टर में ऐसे प्रजनक के नाम, पते या वर्णन में किसी परिवर्तन की प्रविष्टि करेगा;
(ग) रजिस्टर में उस किस्म की उस प्रविष्टि को रद्द कर सकेगा जिसके सम्बन्ध में ऐसा आवेदन किया गया है, और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में पारिणामिक संशोधन या परिवर्तन कर सकेगा और इस प्रयोजनार्थ रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के उसके समक्ष प्रस्तुत किये जाने की अपेक्षा कर सकेगा।

(2) रजिस्ट्रार, उक्त किस्म के किसी रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी द्वारा विहित रीति में किये गए आवेदन पर और ऐसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत प्रजनक को सूचना देने के पश्चात , यथास्थिति, इस अधिनियम के अधीन जारी किये गए रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र में या रजिस्टर में ऐसे रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी के नाम, पते या वर्णन में किसी त्रुटि का संशोधन कर सकेगा अथवा कोई परिवर्तन प्रविष्ट कर सकेगा।

38. किसी रजिस्ट्रीकृत किस्म के अभिधान में परिवर्तन


(1) अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म का प्रजनक रजिस्ट्रार को विहित रीति में आवेदन कर सकेगा कि वह ऐसी किस्म के अभिधान के किसी भाग में लोप या पिरवर्धन या परिवर्तन ऐसी रीति से करे जिससे उसकी पहचान पर सारभूत प्रभाव न पड़े और रजिस्ट्रार ऐसी इजाजत से इनकार कर सकता है या ऐसे निबन्धनों पर और ऐसी परिसीमाओं के अधीन रहते हुए उसे अनुदत्त कर सकता है, जो वह ठीक समझे जिससे कि इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्मों के अन्य प्रजनकों के अधिकारों के साथ किसी विरोध को बचाया जा सके।

(2) रजिस्ट्रार इस धारा के अधीन किसी आवेदन का किसी ऐसी दशा में, जहाँ उसे ऐसा करना समीचीन प्रतीत हो, विहित रीति में विज्ञापन करवा सकता है और जहाँ वह ऐसा करता है, यदि विज्ञापन की तारीख से विहित समय के भीतर कोई व्यक्ति रजिस्ट्रार को विहित रीति में आवेदन के विरोध की सूचना देता है तो रजिस्ट्रार यदि अपेक्षित हो, पक्षकारों की सनुवाई के पश्चात मामले का विनिश्चय कर सकेगा।

(3) जहाँ इस धारा के अधीन इजाजत अनुदत्त की जाती है वहाँ उक्त किस्म के यथापरिवर्तित अभिधान का, यदि आवेदन का उपधारा (2) के अधीन पहले ही विज्ञापन नहीं दिया गया हो तो विहित रीति में विज्ञापन देगा।

अध्याय 6


कृषक अधिकार


39. कृषक अधिकार


(1) इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,-

(i) ऐसा कृषक जिसने नई किस्म का प्रजनन या विकास किया है, इस अधिनियम के अधीन उस किस्म के प्रजनक के रूप में उसी तरह रजिस्ट्रीकरण और अन्य संरक्षण का हकदार होगा,
(ii) कृषक की किस्म रजिस्ट्रीकरण की हकदार होगी यदि आवेदन में धारा 18 की उपधारा (1) के खण्ड (ज) में विनिर्दिष्ट रूप में घोषणा अन्तर्विष्ट है,
(iii) ऐसा कृषक जो भू-प्रजातियों के आनुवंशिक स्रोतों और आर्थिक पौधों के जंगली अन्योन्याप्रयी के संरक्षण में और चयन के माध्यम से उनके सुधार और परिरक्षण में लगा हुआ है, मान्यता के लिये विहित रीति में राष्ट्रीय जीव निधि से प्रतिफल का हकदार होगा:

परन्तु यह तब जब कि इस प्रकार चयन की गई और परिरक्षित सामग्री का इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर किये जाने योग्य किस्मों में जीन के दाता के रूप में उपयोग किया गया हो,
(iv) कोई कृषक अपने फार्म उत्पाद जिसके अन्तर्गत इस अधिनियम के अधीन संरक्षित किस्म का बीज भी है, को सुरक्षित रखने, उसका उपयोग, रोपने पुनः रोपने, विनमय करने, बाँटने, विक्रय करने का उसी रीति में हकदार होगा जिसमें वह इस अधिनियम के प्रवर्तन में आने से पूर्व हकदार था:

परन्तु इस अधिनियम के अधीन संरक्षित ब्रांडयुक्त बीज के विक्रय करने का हकदार नहीं होगा।

स्पष्टीकरण


खण्ड (iv) के प्रयोजनों के लिये “ब्रांड युक्त बीज” से ऐसा कोई बीज अभिप्रेत है जो ऐसी रीति से किसी पैकेज या किसी अन्य आधान में रखा गया है और उस पर ऐसा लेबल लगा है जिससे यह उपदर्शित होता हो कि इस अधिनियम के अधीन संरक्षित किस्म का बीज है।

(2) जहाँ, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्म की प्रवर्धक सामग्री का कृषक या कृषकों के समूह या कृषकों के किसी संगठन को विक्रय किया गया है वहाँ ऐसी किस्म का प्रजनक, यथास्थिति, उक्त कृषक या कृषकों के समूह या कृषकों के संगठन को, दी गई शर्तों के अधीन प्रत्याशित निष्पादन का प्रकटन करेगा और यदि ऐसी प्रवर्धक सामग्री विनिर्दिष्ट शर्तों के अधीन ऐसा निष्पादन करने में असफल रहती है तो, यथास्थिति, उक्त किसान या किसानों का समूह या किसानों का संगठन, प्राधिकरण के समक्ष विहित रीति में प्रतिकार का दावा कर सकेगा और प्राधिकरण, उक्त किस्म के प्रजनक को सूचना देने के पश्चात और विहित रीति में, विरोध फाइल करने का उसे अवसर प्रदान करने के पश्चात तथा पक्षकारों को सुनने के पश्चात उक्त किस्म के प्रजनक को, यथास्थिति, कृषक या कृषकों के समूह या कृषकों के संगठन को ऐसे प्रतिकर का जिसे वह ठीक समझे, सन्दाय करने का निदेश दे सकेगा।

40. रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन के लिये कतिपय सूचना का दिया जाना


(1) अध्याय 3 के अधीन किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करने वाला प्रजनक या अन्य व्यक्ति आवेदन में ऐसी किस्म के प्रजनन या विकास में लगे किसी जनजाति या ग्रामीण कुटुम्बों द्वारा संरक्षित आनुवंशिक सामग्री के उपयोग के सम्बन्ध में सूचनाओं का प्रकटन करेगा।

(2) यदि प्रजनक या अन्य व्यक्ति उपधारा (1) के अधीन कोई सूचना प्रकट करने में असफल रहता है, तो रजिस्ट्रार, यह समाधान हो जाने पर कि ऐसे प्रजनक या अन्य व्यक्ति ने स्वैच्छया और जानते हुए ऐसी सूचना छिपाई है, रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन को खारिज कर सकेगा।

41. समुदायों के अधिकार


(1) कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह (चाहे वह सक्रिय रूप से कृषि कार्य मे लगा हो या नहीं) या कोई सरकारी या गैर सरकारी संगठन, भारत में किसी गाँव या किसी स्थानीय समुदाय की ओर से, प्राधिकरण द्वारा केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से राजपत्र में अधिसूचित किसी केन्द्र में ऐसे गाँव या स्थानीय समुदाय की ओर से दावा करने के प्रयोजन हेतु ऐसा दावा फाइल कर सकेगा जो, यथास्थिति, उस गाँव या स्थानीय समुदाय के व्यक्तियों का किसी किस्म के विकास में योगदान माना जा सकता है।

(2) जहाँ, उपधारा (1) के अधीन कोई दावा किया जाता है, वहाँ उस उपधारा के अधीन अधिसूचित केन्द्र ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या ऐसे सरकारी या गैर-सरकारी संगठन द्वारा किये गए दावे को ऐसी रीति से जिसे वह ठीक समझे, सत्यापित कर सकेगा और यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि ऐसे गाँव या स्थानीय समुदाय ने इस अधिनियम के अधीन रजिस्टर की गई किस्म के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है तो वह अपने निष्कर्षों की रिपोर्ट प्राधिकरण को करेगा।

(3) जहाँ, प्राधिकरण का, उपधारा (2) के अधीन रिपोर्ट पर ऐसी जाँच के पश्चात जिसे वह ठीक समझे, समाधान हो जाता है कि वह किस्म जिससे रिपोर्ट सम्बन्धित है, इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रजिस्टर की गई है, वहाँ वह उस किस्म के प्रजनक को विहित रीति में सूचना जारी कर सकेगा और ऐसे प्रजनक को विहित रीति में आक्षेप फाइल करने और सुनवाई का अवसर प्रदान करने के पश्चात वह केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किसी सीमा के अधीन रहते हुए, आदेश द्वारा, उक्त व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या सरकारी या गैर-सरकारी संगठन को जिसने उपधारा (1) के अधीन दावा किया है, प्रतिकर की ऐसी रकम, जिसे वह ठीक समझे, अनुदत्त कर सकेगा।

(4) उपधारा (3) के अधीन अनुदत्त कोई प्रतिकर उक्त किस्म के प्रजनक द्वारा जीन निधि में निक्षिप्त किया जाएगा।

(5) उपधारा (3) के अधीन अनुदत्त प्रतिकर भू-राजस्व के बकाया के रूप में समझा जाएगा और तद्नुसार प्राधिकरण द्वारा वसूल किया जाएगा।

42. निर्दोषता अतिलंघन का संरक्षण


(1) इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी-

(i) इस अधिनियम के अधीन स्थापित अधिकार को कृषक द्वारा अतिलंघन के रूप में नहीं समझा जाएगा यदि वह ऐसे अतिलंघन के समय ऐसे अधिकार की विद्यमानता की जानकारी नहीं रखता था; और

(ii) कोई अनुतोष, जिसे कोई न्यायालय धारा 65 में निर्दिष्ट अतिलंघन के लिये किसी वाद में अनुदत्त कर सकता है, ऐसे न्यायालय द्वारा अनुदत्त नहीं किया जाएगा और न ही ऐसे उल्लंघन के लिये इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का संज्ञान किया जाएगा जो किसी ऐसे कृषक के विरुद्ध हो, जो न्यायालय के समक्ष यह साबित कर देता है कि अतिलंघन के समय वह इस प्रकार अतिलंघन किये गए अधिकार की विद्यमानता के बारे में अवगत नहीं था।

43. कृषकों की किस्म का प्राधिकार


(1) धारा 23 की उपधारा (6) और धारा 28 में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ अनिवार्यतः व्युत्पन्न कोई किस्म कृषकों की किसी किस्म से व्युत्पन्न हुई है, वहाँ धारा 28 की उपधारा (1) के अधीन प्राधिकार, ऐसे कृषकों की किस्म के प्रजनकों द्वारा, ऐसे कृषकों या कृषकों के समूह अथवा कृषक समुदाय की सहमति के बिना, जिन्होंने ऐसी किस्म के संरक्षण और विकास में योगदान दिया है, नहीं दिया जाएगा।

44. फीस से छूट


कोई कृषक या कृषकों का समूह अथवा ग्रामीण समुदाय इस अधिनियम और तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन प्राधिकरण या रजिस्ट्रार या अधिकरण या उच्च न्यायालय के समक्ष किसी कार्रवाई में कोई फीस सन्दाय करने का दायी नहीं होगा।

स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजनों के लिये किसी “कार्रवाई के लिये फीस” में इस अधिनियम के अधीन या तद्धीन बनाए गए नियमों के अधीन किसी दस्तावेज का निरीक्षण करने या किसी विनिश्चय या आदेश अथवा दस्तावेज की प्रति अभिप्राप्त करने के लिये सन्देय कोई फीस सम्मिलित है।

45. जीन निधि


(1) केन्द्रीय सरकार, राष्ट्रीय जीन निधि नामक एक निधि का गठन करेगी और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के प्रजनक से अथवा, यथास्थिति, ऐसी किस्म या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म की प्रवर्धन सामग्री से विहित रीति में प्राप्त फायदे का हिस्सा;
(ख) धारा 35 की उपधारा (1) के अधीन स्वामिस्व के रूप में प्राधिकरण को सन्देय वार्षिक फीस;
(ग) धारा 41 की उपधारा (4) के अधीन जीन निधि में निक्षिप्त प्रतिकर;
(घ) राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय संगठन और अन्य स्रोतों से अंशदान।

(2) जीन निधि का उपयोग निम्नलिखित के लिये विहित रीति से किया जाएगा-

(क) धारा 26 उपधारा (5) के अधीन फायदे में हिस्से के रूप में सन्दाय की जाने वाली कोई रकम;
(ख) धारा 41 की उपधारा (3) के अधीन सन्देय प्रतिकर;
(ग) स्व स्थाने और बाह्य स्थाने संग्रहणों सहित जीन संसाधनों का संरक्षण, और सम्पोषणीय उपयोग करने के लिये व्यय और पंचायतों की ऐसे संरक्षण और सम्पोषणीय उपयोग को कार्यान्वित करने में क्षमता को मजबूत करना;

(घ) धारा 46 के अधीन विरचित फायदों के हिस्से से सम्बन्धित ऐसी स्कीमों के व्यय।

46. स्कीम आदि का बनाना


(1) केन्द्रीय सरकार धारा 41 और धारा 45 की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के प्रयोजनों के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक या एक से अधिक स्कीमें बनाएगी।

(2) विशिष्टतया और उपधारा (1) के उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, स्कीम में निम्नलिखित सभी या किसी विषय के सम्बन्ध में उपबन्ध हो सकेंगे, अर्थात-

(क) धारा 41 के प्रयोजनों के लिये स्कीम के अधीन दावों का रजिस्ट्रीकरण और ऐसे रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित सभी विषय;
(ख) प्रवर्तन सुरक्षित करने के लिये दावों का प्रसंस्करण और उससे सम्बन्धित विषय;
(ग) ऐसे दावों से सम्बन्धित अभिलेखों और रजिस्टरों का अनुरक्षण;
(घ) ऐसे दावों के समाधान में प्राप्त किसी रकम का संवितरण (इसमें प्रभाजन भी है) द्वारा या अन्यथा उपयोग;
(ङ) ऐसे दावों से सम्बन्धित विवाद की दशा में प्राधिकारी द्वारा संवितरण या प्रभाजन के लिये प्रक्रिया;
(च) किस्मों के संवर्धन, खोज या विकास से सम्बन्धित प्रयोजनों के लिये फायदे में हिस्सा बटाने का उपयोग;
(छ) खण्ड (घ) में निर्दिष्ट रकमों की बाबत लेखाओं का अनुरक्षण और सम्परीक्षा।

अध्याय 7


अनिवार्य अनुज्ञप्ति


47. कतिपय परिस्थितियों में अनिवार्य अनुज्ञप्ति का आदेश करने की प्राधिकारी की शक्ति


(1) किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के जारी किये जाने की तारीख से तीन वर्ष की समाप्ति के पश्चात किसी समय, कोई हितबद्ध व्यक्ति यह अभिकथित करते हुए प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा कि बीजों या उस किस्म की अन्य प्रवर्धन सामग्री के लिये जनता की युक्तियुक्त अपेक्षाओं का समाधान नहीं किया गया है अथवा यह कि बीज या अन्य प्रवर्धन सामग्री जनता को युक्तियुक्त कीमत पर उपलब्ध नहीं है और यह प्रार्थना कर सकेगा कि उक्त बीज या उस किस्म की अन्य प्रवर्धन सामग्री का उत्पादन, वितरण या विक्रय करने के लिये अनिवार्य अनुज्ञप्ति का अनुदान किया जाये।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रत्येक आवेदन में आवेदक के हित की प्रकृति के कथन के साथ विहित की जाने वाली विशिष्टियाँ और वे तथ्य जिन पर आवेदन आधारित हैं अन्तर्विष्ट होंगे।

(3) प्राधिकरण केन्द्रीय सरकार से परामर्श के पश्चात और उक्त किस्म के प्रजनक को विरोध दाखिल करने का अवसर देने के पश्चात यदि इस विषय पर इसका समाधान हो जाये कि उस किस्म के बारे में जनता की युक्तियुक्त अपेक्षाओं का समाधान नहीं हुआ है या वह किस्म या उसकी प्रवर्धक सामग्री युक्तियुक्त कीमत पर जनता को उपलब्ध नहीं है तो वह उक्त प्रजनक को, आवेदक को ऐसे निबन्धनों और शर्तों पर जो वह उचित समझे, अनुज्ञप्ति अनुदत्त करने का आदेश कर सकेगा और ऐसे आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार को धारा 28 की उपधारा (4) के अधीन अनुज्ञप्तिधारी के रूप में उस आवेदक की हकदारी को उक्त उपधारा में यथा निर्दिष्ट आवेदक द्वारा सन्देय फीस पर रजिस्ट्रीकरण करने के लिये भेज सकेगा।

48. जनता की अपेक्षा का समाधान न होना कब समझा जाएगा


(1) धारा 47 की उपधारा (1) या उपधारा (3) में निर्दिष्ट किसी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के बीजों के लिये जनता की युक्तियुक्त अपेक्षाओं का समाधान हुआ है या नहीं के प्रश्न के अवधारण के समय, प्राधिकरण निम्नलिखित को संगणना में लेगा-

(i) उस किस्म की प्रकृति, उक्त किस्म के रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र के अनुदान के पश्चात कितना समय व्यतीत हुआ है उक्त किस्म के बीच की कीमत, उक्त किस्म की जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये प्रजनक या किसी रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी द्वारा किये गए उपाय; और
(ii) आवेदक द्वारा जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये उक्त किस्म का उत्पादन और विपणन करने की आवेदक की सामर्थ्य, योग्यता और तकनीकी क्षमता।

49. अनिवार्य अनुज्ञप्ति के अनुदान के लिये आवेदन का स्थगन


(1) यदि इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी ऐसी किस्म, जिसके सम्बन्ध में प्राधिकरण के समक्ष कोई आवेदन धारा 47 के अधीन लम्बित है, प्रजनक प्राधिकरण को लिखित निवेदन इस आधार पर करता है कि किसी युक्तियुक्त कारक के कारण ऐसा प्रजनक बीज या उस किस्म की प्रवर्धन सामग्री का, ऐसे निवेदन करने की तारीख तक, वाणिज्यिक स्तर पर पर्याप्त सीमा तक उत्पादन करने में असमर्थ रहा है तो प्राधिकरण अपना यह समाधान होने पर कि उक्त उधार युक्तियुक्त है ऐसे आवेदन की सुनवाई की कुल मिलाकर बारह मास से अनधिक की उतनी अवधि के लिये स्थगित कर सकता है जितनी वह उस प्रजनक द्वारा, यथास्थिति, उक्त बीज या ऐसी किस्म की प्रवर्धन सामग्री के अधिकतम उत्पादन के लिये पर्याप्त समझे।

(2) उपधारा (1) के अधीन आवेदन का कोई स्थगन तब तक अनुदत्त नहीं किया जाएगा जब तक कि प्राधिकरण का समाधान न हो जाये कि उस किस्म के, जो इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत है और जिसके सम्बन्ध में यह आवेदन किया गया है, प्रजनक ने बीजों या उस किस्म की अन्य प्रवर्धन सामग्री के लिये जनता की युक्तियुक्त अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये अव्यवहित उपाय किये हैं।

50. अनिवार्य अनुज्ञप्ति की अवधि


(1) प्राधिकरण इस अध्याय के अधीन अनुदत्त अनिवार्य अनुज्ञप्ति की अवधि का अवधारण करेगा और यह अवधि विभिन्न मामलों में, गर्भावधि तथा अन्य सुसंगत कारकों को ध्यान में रखते हुए भिन्न-भिन्न होगी किन्तु किसी भी मामले में उस किस्म के संरक्षण की कुल शेष अवधि से अधिक नहीं होगी और जब कोई अनिवार्य अनुज्ञप्ति अनुदत्त की जाती है तो विहित प्राधिकारी, ऐसी अनिवार्य अनुज्ञप्ति के अनुज्ञप्तिधारी को अनिवार्य अनुज्ञप्ति से सम्बन्धित और राष्ट्रीय जीन बैंक या किसी अन्य केन्द्र में भण्डारित उक्त किस्म की पुनरुत्पादन सामग्री विहित रीति से उपलब्ध कराएगा।

51. प्राधिकरण द्वारा अनुज्ञप्ति के निबन्धनों और शर्तों का परिनिर्धारण


(1) प्राधिकरण इस अध्याय के उपबन्धों के अधीन अनिवार्य अनुज्ञप्ति के निबन्धनों और शर्तों का अवधारण करते समय, निम्नलिखित को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा:-

(i) उस किस्म की प्रकृति, ऐसे प्रजनक द्वारा उक्त किस्म के प्रजनन या उसके विकास में उपगत व्यय और अन्य सुसंगत कारकों को, ध्यान में रखते हुए अनिवार्य अनुज्ञप्ति से सम्बन्धित, उक्त किस्म के प्रजनक के लिये युक्तियुक्त प्रतिकर;
(ii) उक्त किस्म का अनिवार्य अनुज्ञप्तिधारी, ऐसी किस्म के बीज या अन्य प्रवर्धन सामग्री को कृषकों को समय पर और युक्तियुक्त बाजार कीमत पर उपलब्ध कराने के पर्याप्त साधन रखता है।

(2) प्राधिकरण द्वारा अनुदत्त कोई अनिवार्य अनुज्ञप्ति अनुज्ञप्तिधारी को उक्त अनुज्ञप्ति से सम्बन्धित उक्त किस्म या अन्य प्रवर्धन सामग्री या किसी बीज को विदेश से आयात करने के लिये प्राधिकृत नहीं करेगी जहाँ ऐसे आयात से उक्त किस्म के प्रजनक के अधिकारों का अतिलंघन होगा।

52. अनिवार्य अनुज्ञप्ति का प्रतिसंहरण


(1) प्राधिकरण, स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति द्वारा विहित प्रारूप में किये गए आवेदन पर यदि उसका समाधान हो जाये कि इस अध्याय के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी अनिवार्य अनुज्ञप्तिधारी ने अपनी अनुज्ञप्ति के निबन्धनों और शर्तों का अतिक्रमण किया है अथवा लोकहित में ऐसी अनुज्ञप्ति को और बनाए रखना समीचीन नहीं है तो वह उक्त अनुज्ञप्तिधारी को अपना विरोध दाखिल करने और सुनवाई का अवसर देने के पश्चात ऐसी अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहरण का आदेश कर सकता है।

(2) जहाँ प्राधिकरण के आदेश द्वारा उपधारा (1) के अधीन कोई अनुज्ञप्ति प्रतिसंहृत की जाती है वहाँ प्राधिकरण ऐसे आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार को प्रविष्टि के परिशोधन या ऐसे प्रतिसंहरण के सम्बन्ध में रजिस्टर का संशोधन करने के लिये भेजेगा और रजिस्ट्रार प्रविष्टि का परिशोधन या तद्नुसार रजिस्टर का परिशोधन करेगा।

53. अनिवार्य अनुज्ञप्ति का उपांतरण


प्राधिकरण, स्वप्रेरणा से या अनिवार्य अनुज्ञप्ति के अनुज्ञप्तिधारी से आवेदन पर, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत और उक्त अनिवार्य अनुज्ञप्ति से सम्बन्धित उक्त किस्म के प्रजनक को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात यदि लोकहित में ऐसा करना उचित समझता है तो उक्त निबन्धनों और शर्तों को आदेश द्वारा जैसा वह उचित समझे, उपांतिरत करेगा और उक्त आदेश की एक प्रति रजिस्ट्रार को, प्रविष्टियों के संशोधन और ऐसे उपांतरणों के अनुसार रजिस्ट्रीकरण का संशोधन करने के लिये भेजेगा तथा रजिस्ट्रार यह सुनिश्चित करेगा कि तद्नुसार ऐसे संशोधन किये जाएँ।

अध्याय 8


पौधा किस्म संरक्षण अपील अधिकरण


54. अधिकरण


केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसे प्रदत्त अधिकारिता, शक्तियों और प्राधिकार का प्रयोग करने के लिये एक अधिकरण की स्थापना करेगा जिसे पौधा किस्म संरक्षण अपील अधिकरण कहा जाएगा।

55. अधिकरण की संरचना


(1) अधिकरण एक अध्यक्ष और उतने न्यायिक सदस्यों तथा तकनीकी सदस्यों से मिलकर बनेगा जितने केन्द्रीय सरकार नियुक्त करना ठीक समझे।

(2) न्यायिक सदस्य ऐसा व्यक्ति होगा जो भारत के राज्य क्षेत्र में कम-से-कम दस वर्ष तक कोई न्यायिक पद धारण कर चुका है या जो भारतीय विधि सेवा का सदस्य रहा है और जिसने उस सेवा की श्रेणी-2 में कोई पद या कोई समतुल्य या उच्चतर पद कम-से-कम तीन वर्ष तक धारण किया है या जो कम-से-कम बारह वर्ष तक अधिवक्ता रहा है।

स्पष्टीकरण


इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये-

(i) उस अवधि की संगणना करने में, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत के राज्य क्षेत्र में न्यायिक पद धारण किया है, कोई न्यायिक पद उसके द्वारा धारित करने के पश्चात की ऐसी कोई अवधि सम्मिलित होगी जिसके दौरान व्यक्ति अधिवक्ता रहा है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद अथवा संघ या किसी राज्य के अधीन विधि के विशेष ज्ञान की अपेक्षा करने वाला कोई पद धारित किया है;
(ii) उस अवधि की संगणना करने में, जिसके दौरान व्यक्ति अधिवक्ता रहा है, ऐसी कोई अवधि सम्मिलित होगी जिसके दौरान उस व्यक्ति ने न्यायिक पद या किसी अधिकरण के सदस्य का पद अथवा उसके अधिवक्ता बन जाने के पश्चात संघ या किसी राज्य के अधीन विधि के विशेष ज्ञान की अपेक्षा करने वाला कोई पद धारित किया है।

(3) तकनीकी सदस्य ऐसा व्यक्ति होगा जो पौधा प्रजनन और आनुवंशिकी के क्षेत्र में विख्यात कृषि विज्ञानी है और उसके पास कम-से-कम बीस वर्ष का पौधा किस्म या बीज विकास क्रियाकलाप के सम्बन्ध में कार्रवाई करने का अनुभव है या जिसने केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार में भारत सरकार के संयुक्त सचिव के समतुल्य पौधा किस्म या बीज विकास के सम्बन्ध में कार्रवाई करने वाला पद कम-से-कम तीन वर्ष तक धारण किया है और उसके पास पौधा प्रजनन और आनुवंशिकी के क्षेत्र में विशेष ज्ञान है।

(4) केन्द्रीय सरकार अधिकरण के किसी न्यायिक सदस्य को उसका अध्यक्ष नियुक्त करेगी।

(5) केन्द्रीय सरकार अधिकरण के किसी सदस्य को उसका ज्येष्ठ सदस्य नियुक्त कर सकेगी।

(6) ज्येष्ठ सदस्य या कोई सदस्य अध्यक्ष की ऐसी शक्तियों का प्रयोग और उसके ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो अध्यक्ष द्वारा, साधारण या विशेष लिखित आदेश द्वारा उसे प्रत्यायोजित किये जाएँ।

56. अधिकरण को अपीलें


(1) अपील, विहित अवधि के भीतर-

(क) किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के आदेश या विनिश्चय; या
(ख) किसी किस्म के अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी के रूप में रजिस्ट्रीकरण के सम्बन्ध में रजिस्ट्रार का आदेश या विनिश्चय; या
(ग) फायदे में हिस्सा बँटाने के दावे के सम्बन्ध में प्राधिकरण का आदेश या विनिश्चय; या
(घ) अनिवार्य अनुज्ञप्ति के प्रतिसंहरण या अनिवार्य अनुज्ञप्ति के उपांतरण के सम्बन्ध में प्राधिकरण के आदेश या विनिश्चय; या
(ङ) इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए नियमों के अधीन प्रतिकर के सन्दाय के सम्बन्ध में प्राधिकरण के आदेश या विनिश्चय के विरुद्ध अधिकरण को की जाएगी।

(2) प्रत्येक ऐसी अपील लिखित रूप में अर्जी द्वारा की जाएगी और वह ऐसे प्रारूप में होगी और उसमें ऐसी विशिष्टियाँ अन्तवर्णित होंगी जो विहित की जाएँ।

(3) इस धारा के अधीन अपील का निपटारा करने में अधिकरण को कोई भी ऐसा आदेश करने की शक्ति होगी जो प्राधिकरण या रजिस्ट्रार इस अधिनियम के अधीन कर सकता है।

57. अधिकरण के आदेश


(1) अधिकरण, अपील के दोनों पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात उस पर ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जो वह ठीक समझे।

(2) अधिकरण आदेश की तारीख के तीस दिन के भीतर किसी भी समय, अभिलेख में प्रकट भूल का परिशोधन करने की दृष्टि से उपधारा (1) के अधीन अपने द्वारा पारित किसी आदेश का संशोधन कर सकेगा और यदि भूल को अपीलार्थी या विरोधी पक्षकार द्वारा उसकी जानकारी में लाया जाता है तो ऐसा संशोधन कर सकेगा।

(3) प्रत्येक अपील में, अधिकरण, जहाँ यह सम्भव हो, ऐसी अपील की, अपील फाइल करने की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर सुनवाई करेगा और उसका विनिश्चय करेगा।

(4) अधिकरण इस धारा के अधीन पारित किन्हीं आदेशों की एक प्रति रजिस्ट्रार को भेजेगा।

(5) इस अधिनियम के अधीन अधिकरण के आदेश सिविल न्यायालय की डिक्री के रूप में निष्पादनीय होंगे।

58. अधिकरण की प्रक्रिया


(1) अधिकरण की शक्तियों का प्रयोग और कृत्यों का निर्वहन, अधिकरण के अध्यक्ष द्वारा उसके सदस्यों में से गठित न्यायपीठों द्वारा किया जा सकेगा।

(2) न्यायपीठ एक न्यायिक सदस्य और एक तकनीकी सदस्य से मिलकर बनेगी।

(3) यदि न्यायपीठ के सदस्यों में किसी मुद्दे पर मतभेद हो तो वे उस मुद्दे या मुद्दों का कथन करेंगे जिन पर उनका मतभेद है और मामले को एक या अधिक अन्य सदस्यों द्वारा ऐसे मुद्दे या मुद्दों पर सुनवाई के लिये अध्यक्ष को निर्दिष्ट किया जाएगा और ऐसे मुद्दे या मुद्दों का विनिश्चय ऐसे सदस्यों की, जिन्होंने उस मामले की सुनवाई की है, जिसके अन्तर्गत वे भी हैं जिन्होंने प्रथमतः उसकी सुनवाई की थी, बहुसंख्या की राय के अनुसार किया जाएगा।

(4) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, अधिकरण को उसकी शक्तियों के प्रयोग या उसके कृत्यों के निर्वहन से उद्भूत सभी विषयों में, जिसके अन्तर्गत वे स्थान भी हैं जहाँ न्यायपीठें अपनी बैठकें करेंगी स्वयं अपनी प्रक्रिया और उसकी न्यायपीठों की प्रक्रिया का विनियमन करने की शक्ति होगी।

(5) अधिकरण को अपने कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिये वे सभी शक्तियाँ होंगी जो धारा 11 के अधीन रजिस्ट्रार में निहित हैं और अधिकरण के समक्ष कार्यवाही, भारतीय दंड संहिता (1860 का 45) की धारा 193 और धारा 228 के अर्थ में और धारा 196 के प्रयोजनों के लिये न्यायिक कार्यवाही समझी जाएगी और अधिकरण दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के सभी प्रयोजनों के लिये सिविल न्यायालय समझा जाएगा।

(6) इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के किन्हीं अन्य उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी, कोई भी अन्तरिम आदेश (चाहे व्यादेश या रोकादेश के रूप में हो या किसी अन्य रीति में हो) किसी अपील में या उससे सम्बन्धित किसी कार्यवाही में तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि-

(क) ऐसी अपील और ऐसे अन्तरिम आदेश की दलील के समर्थन में सभी दस्तावेजों की प्रतियाँ उस पक्षकार को नहीं दे दी जाती हैं जिसके विरुद्ध ऐसी अपील की गई है या किये जाने के लिये प्रस्तावित है;
(ख) ऐसे पक्षकार को उस मामले में सुने जाने का अवसर नहीं दे दिया जाता है।

59. संक्रमणकालीन उपबन्ध


इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, धारा 54 के अधीन अधिकरण की स्थापना होने तक, व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 (1999 का 47) की धारा 83 के अधीन स्थापित बौद्धिक सम्पदा अपील बोर्ड इस अधिनियम के अधीन अधिकरण को प्रदत्त अधिकारिता, शक्तियों और प्राधिकार का इस उपांतरण के अधीन रहते हुए प्रयोग करेगा कि इस धारा के प्रयोजनों के लिये गठित बौद्धिक सम्पदा अपील बोर्ड की किसी पीठ में, व्यापार चिन्ह अधिनियम, 1999 की धारा 84 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट तकनीकी सदस्य के लिये, तकनीकी सदस्य इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किया जाएगा और उसे इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये धारा 84 की उपधारा (2) के अधीन पीठ का गठन करने के लिये तकनीकी सदस्य समझा जाएगा।

अध्याय 9


वित्त, लेखा और सम्परीक्षा


60. केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुदान


केन्द्रीय सरकार, संसद द्वारा इस निमित्त विधि द्वारा किये गए सम्यक विनियोग के पश्चात, प्राधिकरण को अनुदानों और ऋणों के रूप में ऐसी धनराशियों का सन्दाय करेगी, जो केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये उपयोग किये जाने के लिये ठीक समझे।

61. प्राधिकरण निधि


(1) पौधा किस्म संरक्षण प्राधिकरण लेखा नामक एक निधि गठित की जाएगी और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-

(क) धारा 60 के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकरण को दिये गए सभी अनुदान और ऋण;
(ख) प्राधिकरण और रजिस्ट्रार द्वारा प्राप्त सभी फीसें जिनमें धारा 35 की उपधारा (1) के अधीन फायदे या स्वामित्व के आधार पर अवधारित वार्षिक फीस नहीं है;
(ग) प्राधिकरण द्वारा केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किये जाने वाले अन्य स्रोतों से प्राप्त सभी राशियाँ।

(2) पौधा किस्म संरक्षण प्राधिकरण लेखा का उपयोग निम्नलिखित के लिये किया जाएगा-

(क) प्राधिकरण के अध्यक्ष, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य पारिश्रमिक और सदस्यों को सन्देय भत्ते, यदि कोई हों;
(ख) इस अधिनियम के प्रयोजनार्थ और अपने कृत्यों के निर्वहन के सम्बन्ध में प्राधिकरण के अन्य व्यय।

62. बजट, लेखा और सम्परीक्षा


(1) प्राधिकरण बजट बनाएगा, उचित लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख (इसमें जीन निधि के लेखे और अन्य सुसंगत लेखे भी हैं) रखेगा और लेखाओं का वार्षिक विवरण, ऐसे प्रारूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक से परामर्श करके विहित करे।

(2) प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ और ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उपगत कोई व्यय, प्राधिकरण द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सन्देय होगा।

(3) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के और प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के, उस सम्परीक्षा के सम्बन्ध में वही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे जो भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के साधारणतया सरकारी लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में होते हैं और विशिष्टितया उसे बहियों, लेखाओं, सम्बन्धित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों और कागज-पत्रों के पेश किये जाने की माँग करने और प्राधिकरण के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।

(4) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा या इस निमित्त उसके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रमाणित प्राधिकरण के लेखे उस पर सम्परीक्षा रिपोर्ट सहित केन्द्रीय सरकार को प्रति वर्ष भेजे जाएँगे और वह सरकार उन्हें संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।

63. अध्यक्ष की वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियाँ


अध्यक्ष प्राधिकरण के कृत्यों पर ऐसी वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों का प्रयोग करेगा जो विहित की जाएँ:

परन्तु अध्यक्ष को अपनी ऐसी वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों को जो वह ठीक समझे, प्राधिकरण के किसी सदस्य या किसी अन्य अधिकारी को प्रत्यायोजित करने का अधिकार होगा किन्तु यह इस शर्त के अधीन रहते हुए होगा कि ऐसा सदस्य या अधिकारी ऐसी प्रत्यायोजित शक्तियों का प्रयोग करते समय अध्यक्ष के निदेशन, नियंत्रण और पर्यवेक्षण के अधीन रहेगा।

अध्याय 10


अतिलंघन, अपराध, शास्तियाँ और प्रक्रिया


अतिलंघन


64. अतिलंघन


इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम के अधीन स्थापित किसी अधिकार का निम्नलिखित व्यक्ति द्वारा अतिलंघन होगा:-

(क) जो इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म का प्रजनक या उक्त किस्म का रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी नहीं है और उक्त किस्म का, उसके प्रजनक की अनुज्ञा के बिना अथवा, यथास्थिति, उक्त रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी या रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता की अनुज्ञा के बिना रजिस्ट्रीकृत या अनुज्ञप्ति या रजिस्ट्रीकृत अभिकरण के विस्तार के भीतर विक्रय करता है, निर्यात करता है, आयात करता है या उत्पादन करता है;
(ख) जो किसी अन्य किस्म का उस किस्म को इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्म के सदृश अभिधान या उस अभिधान के इतना समरूप अभिधान, जिससे धोखा हो जाये, देते हुए ऐसी रीति से जिससे कि साधारण जनता के मन में इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत उक्त किस्म को पहचानने में भ्रम हो जाये, उपयोग, विक्रय, निर्यात, आयात या उत्पादन करता है।

65. अतिलंघन, आदि के लिये वाद


(1) कोई वाद,- (क) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के अतिलंघन के लिये; या
(ख) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म में किसी अधिकार के सम्बन्ध में, वाद का विचारण करने की अधिकारिता रखने वाले जिला न्यायालय से निम्नतर किसी न्यायालय में संस्थित नहीं किया जाएगा।

(2) उपधारा (1) के खण्ड (क) और खण्ड (ख) के प्रयोजनों के लिये, “अधिकारिता रखने वाला जिला न्यायालय” से ऐसा जिला न्यायालय अभिप्रेत है जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वाद हेतुक उद्भूत होता है।

66. अतिलंघन के वादों में राहत


(1) धारा 65 में निर्दिष्ट अतिलंघन के किसी वाद में किसी न्यायालय द्वारा अनुदत्त किये जाने वाली राहत में व्यादेश और वादी के विकल्प पर नुकसान या लाभ का एक अंश सम्मिलित है।

(2) उपधारा (1) के अधीन व्यादेश के आदेश में निम्नलिखित विषयों में से किसी में एकपक्षीय व्यादेश या कोई अन्तरवर्ती आदेश भी है, अर्थात-

(क) दस्तावेजों की खोज;
(ख) अतिलंघनकारी किस्म या वाद की विषय-वस्तु से सम्बन्धित दस्तावेज या अन्य साक्ष्य के परिरक्षण;
(ग) प्रतिवादी की ऐसी सम्पत्ति की कुर्की जिसे न्यायालय ऐसी नुकसानी, खर्चों या अन्य धनीय उपचारों को वसूल करने के लिये आवश्यक समझे, जो वादी को अन्तिम रूप में अधिनिर्णीत किये जा सकेंगे।

67. वैज्ञानिक सलाहकार की राय


(1) जहाँ न्यायालय को किसी तथ्य के प्रश्न पर या किसी वैज्ञानिक विषय पर, अपनी राय बनानी है वहाँ वह न्यायालय, वांछित राय बनाने में उसे समर्थ बनाने के लिये, सुझाव देने के लिये या उस विषय में जाँच करने और अपनी रिपोर्ट देने के लिये एक स्वतंत्र वैज्ञानिक सलाहकार को नियुक्त कर सकेगा।

(2) उस वैज्ञानिक सलाहकार को ऐसा पारिश्रमिक या व्ययों का सन्दाय किया जा सकेगा जो न्यायालय नियत करे।

अपराध, शास्तियाँ और प्रक्रिया


68. किसी रजिस्ट्रीकृत किस्म के अभिधान के उपयोजन का प्रतिषेध


(1) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के प्रजनक या उसके रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी या रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता से भिन्न कोई व्यक्ति उस किस्म के अभिधान का यथाविहित रीति से उपयोग नहीं करेगा।

(2) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के अभिधान का किसी व्यक्ति द्वारा उपयोजन किया गया समझा जाएगा, जो,-

(क) उक्त किस्म के लिये ही उसका उपयोजन करता है; या
(ख) ऐसे किसी पैकेज पर उपयोजन करता है जिसमें या जिसके साथ उक्त किस्म का विक्रय किया जाता है या विक्रय के लिये प्रदर्शन किया जाता है अथवा विक्रय के लिये व्यापार अथवा उत्पादन के किसी प्रयोजन के लिये ऐसा पैकेज कब्जे में रखता है; या
(ग) ऐसी किस्म को, जिसका विक्रय किया जाता है या विक्रय के लिये प्रदर्शन किया जाता है या जो विक्रय अथवा व्यापार या उत्पादन के किसी प्रयोजन के लिये उसके कब्जे में है, किसी ऐसे पैकेज या अन्य वस्तु में या उसके साथ रखता है, संलग्न करता है या उपाबद्ध करता है, जिसे इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत ऐसी किस्म का अभिधान उपयोजित किया गया है; या
(घ) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत उक्त किस्म के अभिधान का ऐसी रीति से उपयोग करता है जिसके द्वारा युक्तियुक्त रूप से ऐसा विश्वास किये जाने की सम्भावना हो कि, उक्त किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री जिसके सम्बन्ध में उसका उपयोग किया गया है, को उक्त अभिधान से अभिहित या वर्णित किया गया है; या
(ङ) उक्त किस्म के सम्बन्ध में उक्त अभिधान का किसी विज्ञापन, बीजक, सूचीपत्र, कारोबारी पत्र, कारोबारी कागज, मूल्य सूची या अन्य वाणिज्यिक दस्तावेज में उपयोग करता है और ऐसी किस्म इस प्रकार उपयोग किये गए अभिधान के प्रति निर्देश से किये गए किसी अनुरोध या आदेश के अनुसरण में किसी व्यक्ति को परिदत्त की जाती है।

(3) कोई अभिधान, किसी किस्म पर उपयोजित किया गया समझा जाएगा, यदि वह ऐसी किस्म या किसी पैकेज या अन्य वस्तु में चाहे बुना हुआ है, या उस पर मुद्रांकित है या उसमें किसी अन्य रूप में खुदा हुआ है या संलग्न है या चिपकाया हुआ है।

69. किसी रजिस्ट्रीकृत किस्म के अभिधान के मिथ्या उपयोजन का अर्थ


(1) कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के अभिधान का मिथ्या उपयोजन करने वाला समझा जाएगा जो ऐसी किस्म के प्रजनक की सहमति के बिना,-

(क) किसी किस्म या ऐसे किसी पैकेज पर, जिसमें उक्त किस्म है, उस अभिधान या उसके इतने समरूप, अभिधान का जिससे धोखा हो जाये, उपयोजन करता है;
(ख) ऐसे पैकेज का, जिस पर ऐसा अभिधान है जो इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के अभिधान के समरूप या इतने समरूप है कि जिससे धोखा हो जाये, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म से भिन्न किस्म को उसमें पैक करने, भरने या लपेटने के प्रयोजन के लिये उपयोग करता है।

(2) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्म के किसी अभिधान का उपधारा (1) में वर्णित रूप में मिथ्या उपयोग इस अधिनियम में निर्दिष्ट मिथ्या अभिधान समझा जाएगा।

(3) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के अभिधान के मिथ्या उपयोजन के लिये किसी अभियोजन में, उक्त किस्म के प्रजनक की सहमति साबित करने का भार अभियुक्त पर होगा।

70. मिथ्या अभिधान, आदि के उपयोजन के लिये शास्ति


(1) कोई व्यक्ति जो-

(क) किसी किस्म पर मिथ्या अभिधान का उपयोजन करेगा; या
(ख) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के देश या स्थान अथवा प्रजनक का मिथ्या नाम और पता ऐसी किस्म के व्यापार के दौरान उपदर्शित करेगा,

जब तक कि यह साबित न करे कि उसने धोखा देने के आशय के बिना कार्य किया था, ऐसे कारावास से जिसकी अवधि तीन मास से कम नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी; या ऐसे जुर्माने से जो पचास हजार रुपए से कम नहीं होगा किन्तु पाँच लाख रुपए तक हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।

71. ऐसी किस्मों के विक्रय के लिये शास्ति जिन पर मिथ्या अभिधान का उपयोजन, आदि किया गया हो


कोई व्यक्ति जो ऐसी किस्म का, जिस पर मिथ्या अभिधान का उपयोजन किया गया है या जिस पर उस देश या स्थान का उपदर्शन किया गया है जहाँ वह किस्म बनी या उत्पादित की गई है या इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत उक्त किस्म के प्रजनक का नाम और पता मिथ्या लिखा गया है, विक्रय करता है या विक्रय के लिये प्रदर्शित करता है अथवा जो विक्रय या व्यापार या उत्पादन के प्रयोजनार्थ उसके कब्जे में है, जब तक वह यह साबित न कर दे कि-

(क) इस धारा में वर्णित अपराध के किये जाने के विरुद्ध सभी युक्तियुक्त पूर्वावधानियाँ बरतने पर, अधिकथित अपराध किये जाने के समय उसके पास, ऐसी किस्म के अभिधान की असलियत पर सन्देह करने का कोई कारण नहीं था अथवा इस बारे में कि उस देश या स्थान के उपदर्शन के सम्बन्ध में, जिसमें इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत उक्त किस्म बनाई या उत्पादित की गई है अथवा ऐसी किस्म के प्रजनक के नाम और पते के उपदर्शन के सम्बन्ध में कोई अपराध किया गया है;

(ख) अभियोजक द्वारा या उसकी ओर से माँग किये जाने पर उसने, उस व्यक्ति के सम्बन्ध में जानकारी जो उसके पास थी, दे दी है जिससे उसने उक्त किस्म अभिप्राप्त की थी; या
(ग) अन्यथा उसने निर्दोषतः कार्य किया था,

कारावास से जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो दो वर्ष तक की हो सकेगी; या जुर्माने से जो पचास हजार रुपए से कम नहीं होगा किन्तु पाँच लाख रुपए तक हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।

72. किसी किस्म को रजिस्ट्रीकृत रूप में, मिथ्या रूप से व्यपदिष्ट करने के लिये शास्ति


जो कोई ऐसी किसी किस्म के या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री जो इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री नहीं है, अभिधान के सम्बन्ध में इस आशय का कोई व्यपदेशन करेगा कि वह इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई किस्म है, अथवा इस अधिनियम के अधीन अरजिस्ट्रीकृत किसी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के सम्बन्ध में इस आशय का व्यपदेशन करेगा कि वह इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत है, कारावास से जिसकी अवधि छह मास से कम नहीं होगी किन्तु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी; जुर्माने से जो एक लाख रुपए से कम नहीं होगा किन्तु पाँच लाख रुपए तक हो सकेगा; या दोनों से, दण्डनीय होगा।

73. पश्चातवर्ती अपराध के लिये शास्ति


जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिये पहले दोषसिद्ध किया जा चुका है, उक्त अपराध के लिये पुनः दोषसिद्ध किया जाता है, वह दूसरे और प्रत्येक पश्चातवर्ती अपराध के लिये कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो तीन वर्ष तक की हो सकेगी; या जुर्माने से जो दो लाख रुपए से कम नहीं होगा किन्तु बीस लाख रुपए तक हो सकेगा; या दोनों से, दण्डनीय होगा।

74. कतिपय मामलों में कोई अपराध न होना


अपराधों से सम्बन्धित इस अधिनियम के उपबन्ध इस अधिनियम द्वारा यथा मान्यता प्राप्त सृजित अधिकार के अधीन रहते हुए होंगे और कोई कार्य या लोप इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन अपराध नहीं समझा जाएगा यदि ऐसा कार्य या लोप इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञेय है।

75. कारबार के साधारण अनुक्रम में नियोजित कतिपय व्यक्तियों को छूट


जहाँ इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का अभियुक्त कोई व्यक्ति यह साबित कर देता है कि अपने नियोजन के साधारण अनुक्रम में, उसने अपराध करने के किसी आशय के बिना कार्य किया है और आरोपित अपराध करने के विरुद्ध सभी युक्तियुक्त पूर्वावधानियाँ उसने की थी और अधिकथित अपराध के किये जाने के समय, अपराध के रूप में आरोपित कार्य को असलियत पर सन्देह करने का उसके पास कोई कारण नहीं था तथा अभियोजक द्वारा या उसकी ओर से माँग किये जाने पर उसने उन व्यक्तियों के सम्बन्ध में जिनके निमित्त वह अपराध किया गया था अपने पास की सभी सूचना उसने दी थी, तो उसे दोषमुक्त कर दिया जाएगा।

76. अभियुक्त द्वारा रजिस्ट्रीकरण की अविधिमान्यता का अभिवचन करने पर प्रक्रिया


(1) जहाँ इस अधिनियम के अधीन आरोपित अपराध, इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री अथवा अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री से सम्बन्धित है और अभियुक्त यह अभिवचन करता है कि, यथास्थिति, उक्त किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री की या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री का रजिस्ट्रीकरण अविधिमान्य है और न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उक्त अपराध प्रथम दृष्टया मान्य नहीं है तो वह उस आरोप के सम्बन्ध में आगे कार्यवाही नहीं करेगा और कार्यवाहियों को उस तारीख से जिसको अभियुक्त का अभिवचन लेखबद्ध किया जाता है तीन मास के लिये स्थगित कर देगा जिससे कि अभियुक्त इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रार के समक्ष इस आधार पर कि रजिस्ट्रीकरण अविधिमान्य है, रजिस्टर के परिशोधन के लिये आवेदन फाइल करने में समर्थ हो सके।

(2) यदि अभियुक्त न्यायालय में यह प्रमाणित कर देता है कि उसने परिसीमित समय के भीतर अथवा उतने और समय के भीतर जो न्यायालय पर्याप्त कारणवश अनुज्ञात करे, आवेदन किया था तो अभियोजन की कार्यवाहियाँ परिशोधन के ऐसे आवेदन के निपटान तक स्थगित हो जाएगी।

(3) यदि अभियुक्त तीन मास की अवधि के भीतर अथवा उतने और समय के भीतर जो न्यायालय द्वारा अनुज्ञात किया जाये रजिस्ट्रार के पास रजिस्टर के परिशोधन के लिये आवेदन करने में असफल रहता है तो न्यायालय उक्त मामले में इस प्रकार कार्यवाही करेगा जैसे कि रजिस्ट्रीकरण विधिमान्य हो।

(4) जहाँ उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी अपराध के परिवाद के संस्थापन से पूर्व, यथास्थिति, प्रश्नगत किस्म के या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के रजिस्ट्रीकरण की अविधिमान्यता के आधार पर रजिस्टर के परिशोधन के लिये आवेदन पहले ही उचित तौर पर किया जा चुका है और रजिस्ट्रार के समक्ष लम्बित है, तो न्यायालय पूर्वोक्त आवेदन के निपटान के लम्बित रहने तक आगे कार्यवाहियाँ रोक देगा और परिशोधन के आवेदन के परिणाम के अनुरूप अभियुक्त के विरुद्ध आरोप का अवधारण करेगा।

77. कम्पनियों द्वारा अपराध


(1) यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कोई कम्पनी है, तो कम्पनी और ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध किये जाने के समय उसके कारबार के संचालन के लिये भारसाधक है या कम्पनी के प्रति उत्तरदायी है, अपराध का दोषी समझा जाएगा और अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने के लिये तथा तद्नुसार दण्डित किये जाने के लिये दायी होगा:

परन्तु इस उपधारा में अन्तर्विष्ट कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को किसी दण्ड के लिये दायी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर देता है कि वह अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने उक्त अपराध के किये जाने को निवारित करने के लिये सभी सम्यक तत्परता बरती थी।

(2) उपधारा (1) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया हो और यह साबित हो जाता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति से या मौनानुकूलता से किया गया हो अथवा उनकी किसी उपेक्षा के कारण हुआ माना जा सकता हो तो ऐसे निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी को भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और वे अपने विरुद्ध कार्रवाई किये जाने और तद्नुसार दण्डित किये जाने के लिये दायी होंगे।

स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजनों के लिये-

(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और उसमें कोई फर्म या व्यक्तियों का अन्य संगम भी है; और
(ख) फर्म के सम्बन्ध में “निदेशक” से अभिप्रेत है किसी फर्म का भागीदार।

अध्याय 11


प्रकीर्ण


78. भारत की सुरक्षा का संरक्षण


इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार-

(क) इस अधिनियम के अधीन किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण या किसी किस्म के रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित किसी आवेदन से सम्बन्धित किसी ऐसी जानकारी को प्रकट नहीं करेगा जिसे वह भारत की सुरक्षा के हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली समझता है; और
(ख) इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत ऐसी किस्मों के रजिस्ट्रीकरण के रद्दकरण से सम्बन्धित कोई कार्रवाई करेगा जिन्हें केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, भारत की सुरक्षा के हित में, विनिर्दिष्ट करे।

स्पष्टीकरण


इस धारा के प्रयोजन के लिये, “भारत की सुरक्षा” पद से अभिप्रेत है भारत की सुरक्षा के लिये आवश्यक ऐसी कोई कार्रवाई, जो प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः युद्ध या सैनिक स्थापन के प्रयोजनों के लिये या अन्तरराष्ट्रीय सम्बन्धों में युद्ध या अन्य आपात प्रयोजनों के लिये इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म के किसी उत्पादन के उपयोग से सम्बन्धित है।

79. रजिस्ट्रीकृत किस्म के विक्रय पर विवक्षित वारंटी, आदि


जहाँ इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत, किसी किस्म के या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न सामग्री या उसकी प्रवर्धन सामग्री के अभिधान को, यथास्थिति, विक्रय पर या किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न सामग्री या उसकी प्रवर्धन सामग्री को अथवा किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न सामग्री या उसकी प्रवर्धन सामग्री के विक्रय की संविदा को लागू किया गया हो तो विक्रेता द्वारा यह वारंटी दी गई समझी जाएगी कि अभिधान असली अभिधान है न कि मिथ्या के रूप से लागू किया गया है, जब तक कि वे विक्रेता द्वारा या उसकी ओर से उसके प्रतिकूल कुछ लिखित में अभिव्यक्त न किया गया हो और, यथास्थिति, उक्त किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्य रूप से व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के विक्रय के समय क्रेता को संविदा पर परिदत्त न किया गया हो और क्रेता द्वारा स्वीकार न किया गया हो।

80. कार्यवाही के पक्षकार की मृत्यु


यदि किसी व्यक्ति की, जो इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही (जो किसी न्यायालय में कार्यवाही नहीं है) का पक्षकार है, कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो, यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार, निवेदन किये जाने पर और ऐसे प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के समाधानप्रद रूप में पर्माणित किये जाने पर कि मृतक व्यक्ति के हित का पारेषण हो गया है, कार्यवाहियों में उसके स्थान पर उसके हित में उत्तराधिकारी को प्रतिस्थापित कर देगा अथवा यदि प्राधिकरण या रजिस्ट्रार का यह मत हो कि मृतक व्यक्ति के हित का उत्तरजीवी पक्षकार द्वारा पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व हो रहा है तो वह उसके हित में उत्तराधिकारी के प्रतिस्थापन के बिना कार्यवाहियों को जारी रखे जाने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा।

81. रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता और रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी का वाद संस्थित करने का अधिकार


इस अधिनियम के अधीन रजिस्ट्रीकृत किसी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री का रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी, यथास्थिति, ऐसी किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म या उसकी प्रवर्धन सामग्री के प्रजनक की ओर से, यदि ऐसे अभिकर्ता या अनुज्ञप्तिधारी को ऐसे प्रजनक द्वारा ऐसा करने के लिये विहित रीति से प्राधिकृत किया गया हो तो, इस अधिनियम के अधीन न्यायालय में समुचित कार्यवाहियाँ संस्थित कर सकेगा।

82. रजिस्टर की प्रविष्टि आदि और प्राधिकरण तथा रजिस्ट्रार द्वारा की गई किसी बात का साक्ष्य


(1) रजिस्टर में किसी प्रविष्टि या इस अधिनियम के अधीन जारी किये गए किसी दस्तावेज की प्रति जो प्राधिकरण या रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाणित तात्पर्यित हो और, यथास्थिति, उस पर उक्त प्राधिकरण या रजिस्ट्रार की मुद्रा अंकित हो, सभी न्यायालयों में और सभी कार्यवाहियों में किसी अन्य प्रमाण के बिना या मूल पेश किये जाने के बिना साक्ष्य में ग्राह्य होगी।

(2) किसी प्रविष्टि, विषय या बात के सम्बन्ध में, यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के हस्ताक्षर से जारी तात्पर्यित प्रमाणपत्र कि उक्त प्राधिकरण या रजिस्ट्रार इस अधिनियम या नियमों द्वारा ऐसा करने के लिये प्राधिकृत है, इस बात का प्रथम दृष्टया साक्ष्य होगा कि वह प्रविष्टि और उसकी अन्तर्वस्तु या वह विषय या बात की गई है या नहीं की गई है।

83. प्राधिकरण, रजिस्ट्रार तथा अन्य अधिकारी रजिस्टर, आदि पेश करने के लिये बाध्य न होंगे


प्राधिकरण या रजिस्ट्रार या, यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के अधीन कार्य करने वाला कोई अधिकारी किन्हीं विधिक कार्यवाहियों में अपनी अभिरक्षा में के किसी रजिस्टर या किसी अन्य दस्तावेज, जिसकी अन्तर्वस्तु इस अधिनियम के अधीन विहित रीति से जारी की गई किसी प्रमाणित प्रति को पेश करके साबित की जा सकती हो, को पेश करने के लिये अथवा उसमें अभिलिखत किसी विषय को प्रमाणित करने के लिये साक्षी के रूप में हाजिर होने के लिये बाध्य नहीं होंगे जब तक कि किसी विशेष मामले में न्यायालय द्वारा वैसा आदेश न किया गया हो।

84. लोक निरीक्षण के लिये खुला दस्तावेज


कोई व्यक्ति, यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार को आवेदन करके और ऐसी फीस के सन्दाय पर जो विहित की जाये, रजिस्टर की किसी प्रविष्टि अथवा ऐसे प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के समक्ष लम्बित इस अधिनियम के अधीन किसी कार्यवाही के किसी दस्तावेज की प्रमाणित प्रति अभिप्राप्त कर सकता है या ऐसी प्रविष्टि अथवा दस्तावेज का निरीक्षण कर सकता है।

85. प्राधिकरण की रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना


केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण के कार्य से सम्बन्धित रिपोर्ट को प्रति वर्ष संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखवाएगी।

86. सरकार का बाध्य होना


इस अधिनियम के उपबन्ध सरकार के लिये आबद्ध कर होंगे।

87. प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के समक्ष कार्यवाहियाँ


इस अधिनियम के अधीन, यथास्थिति, किसी किस्म या अनिवार्यतः व्युत्पन्न किस्म के रजिस्ट्रीकरण, अभिकर्ता के रजिस्ट्रीकरण या अनिवार्य अनुज्ञापन के रजिस्ट्रीकरण से सम्बन्धित, यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के समक्ष सभी कार्यवाहियाँ धारा 193 और धारा 228 के अर्थान्तर्गत और भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 196 के प्रयोजनार्थ न्यायिक कार्यवाहियाँ समझी जाएँगी और, यथास्थिति, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 195 और अध्याय 26 के प्रयोजनार्थ सिविल न्यायालय समझा जाएगा।

88. सद्भावपूर्वक की गई कार्रवाई के लिये संरक्षण


केन्द्रीय सरकार या अध्यक्ष या सदस्य या रजिस्ट्रार या इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन ऐसी सरकार, प्राधिकरण या रजिस्ट्रार के अधीन कार्य करने वाले किसी व्यक्ति के विरुद्ध इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम, विनियम, स्कीम या किये गए किसी आदेश के अनुसरण में सद्भावपूर्वक की गई या किये जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाहियाँ नहीं लाई जाएँगी।

89. अधिकारिता का वर्जन


ऐसे किसी विषय की बाबत जिसका प्राधिकरण या रजिस्ट्रार या अधिकरण इस अधिनियम या इसके अधीन अवधारण करने के लिये सशक्त है, किसी सिविल न्यायालय को अधिकारिता नहीं होगी।

90. प्राधिकरण, आदि के सदस्यों और कर्मचारीवृन्द का लोक सेवक होना-


प्राधिकरण का अध्यक्ष, सदस्य, अधिकारी और अन्य कर्मचारी तथा महारजिस्ट्रार और उसके अधीन कार्य करने वाले अन्य अधिकारी और कर्मचारी भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थान्तर्गत लोक सेवक समझे जाएँगे।

91. धन और आय पर कर से छूट


धन कर अधिनियम, 1957 (1957 का 27), आय-कर अधिनियम, 1961 (1961 का 43) या धन, आय, लाभ या अभिलाभ से सम्बन्धित तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियमिति में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी प्राधिकरण, अपने धन, आय, व्युत्पन्न लाभ या अभिलाभ पर धन कर, आयकर या कोई अन्य कर देने के लिये दायी नहीं होगा।

92. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव होना


इस अधिनियम के उपबन्धों का, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि अथवा इस अधिनियम से भिन्न किसी विधि के कारण प्रभावी किसी अन्य लिखत में अन्तर्विष्ट उससे असंगत किसी बात के होते हुए भी, प्रभावी होगा।

93. निदेश देने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति


केन्द्रीय सरकार प्राधिकरण को ऐसे निदेश दे सकेगी जो वह इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए नियमों और विनियमों के किन्हीं उपबन्धों के अधीन प्राधिकरण के सभी या किसी कृत्य के निष्पादन के लिये लोकहित में आवश्यक समझे।

94. कठिनाइयाँ दूर करने की शक्ति


(1) यदि इस अधिनियम के उपबन्धों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, ऐसे उपबन्ध कर सकेगी जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत न हो, और कठिनाई को दूर करने के लिये आवश्यक प्रतीत हो:

परन्तु इस धारा के अधीन कोई आदेश, इस अधिनियम के प्रारम्भ की तारीख से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात नहीं किया जाएगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन किया गया प्रत्येक आदेश, किये जाने के पश्चात , यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।

95. विनियम बनाने की शक्ति


(1) प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों से संगत विनियम बना सकेगा।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित सभी या उनमें से किसी विषय के बारे में उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात-

(क) धारा 12 की उपधारा (4) के अधीन रजिस्ट्रारों के कर्तव्य और उनकी अधिकारिता;
(ख) धारा 12 की उपधारा (5) के अधीन रजिस्ट्रारों की पदावधि और सेवा की शर्तें;
(ग) धारा 15 की उपधारा (2) के अधीन विद्यमान किस्म के रजिस्ट्रीकरण के लिये सुभिन्नता, एकरुपता और साियित्व का मापमान;
(घ) वह रीति जिसमें धारा 17 की उपधारा (1) के अधीन आवेदक द्वारा किसी किस्म के एकल और सुभिन्न अभिधान समनुदेशित किये जाएँगे;
(ङ) धारा 17 की उपधारा (2) के अधीन किसी किस्म के अभिधान का समनुदेशन करने वाले विषय;
(च) वह समय जिसके भीतर रजिस्ट्रार धारा 17 की उपधारा (3) के अधीन आवेदक से कोई अन्य अभिधान प्रस्तावित करने की अपेक्षा कर सकेगा;
(छ) धारा 18 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) के अधीन आवेदन का प्रारूप;
(ज) धारा 19 की उपधारा (1) के अधीन परीक्षणों के दौरान बीजों के मूल्यांकन के लिये मानक;
(झ) प्रजनक द्वारा निक्षेप किये जाने वाले मूल बीजों सहित बीजों की मात्रा या अन्य प्रवर्धन सामग्री और वह समय, जो धारा 27 की उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट किया जाएगा;
(ञ) वे परिसीमाएँ और शर्तें जिनके अधीन रहते हुए प्रजनक धारा 28 की उपधारा (2) के अधीन किसी व्यक्ति को किस्मों का उत्पादन, विक्रय, विपणन या अन्यथा संव्यवहार करने के लिये प्राधिकृत कर सकेगा;
(ट) धारा 28 की उपधारा (3) के अधीन प्राधिकार का प्रारूप।

96. नियम बनाने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति


(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा बना सकेगी।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित सभी या किसी विषय के बारे में उपबन्ध किया जा सकेगा, अर्थात-

(i) धारा 3 की उपधारा (6) के अधीन अध्यक्ष की पदावधि और उक्त पद को भरे जाने की रीति;
(ii) धारा 3 की उपधारा (8) के अधीन अध्यक्ष का वेतन और भत्ते तथा छुट्टी, पेंशन, भविष्य निधि और अन्य विषयों की बाबत सेवा की शर्तें और अधिवेशनों में उपस्थित होने के लिये गैर सरकारी सदस्यों के भत्ते;
(iii) प्राधिकरण के अधिवेशनों का समय और स्थान तथा उसके अधिवेशनों में कारबार के संव्यवहार के सम्बन्ध में धारा 4 की उपधारा (1) के अधीन प्रक्रिया के नियम {इसमें उसके अधिवेशनों में गणपूर्ति और धारा 3 की उपधारा (7) के अधीन नियुक्त स्थायी समिति के कारबार का संव्यवहार भी है,;
(iv) धारा 6 के अधीन प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति से सम्बन्धित नियंत्रण और निर्बन्धन और ऐसी नियुक्ति की रीति, वेतन और भत्ते तथा सेवा की अन्य शर्तें;
(v) धारा 7 के अधीन अध्यक्ष की शक्तियाँ और कर्तव्य;
(vi) वे निबन्धन और शर्तें जिनके अधीन रहते हुए तथा वह रीति जिसमें धारा 8 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट उपाय, उस धारा की उपधारा (2) के खण्ड (क) के अधीन विद्यमान नई किस्मों के रजिस्ट्रीकरण के लिये उपबन्ध कर सकेंगे;
(vii) धारा 8 की उपधारा (2) के खण्ड (ङ) के अधीन बीजों के उत्पादन और विक्रय की व्यवस्था की रीति;
(viii) धारा 11 के खण्ड (ख) के अधीन प्राधिकरण या रजिस्ट्रार द्वारा लागत के बारे में आदेश;
(ix) पौधा किस्म के महारजिस्ट्रार का वेतन और भत्ते तथा धारा 12 की उपधारा (3) के अधीन उसकी छुट्टी, पेंशन, भविष्य निधि और अन्य विषयों के सम्बन्ध में सेवा की शर्तें;
(x) धारा 13 की उपधारा (1) के अधीन राष्ट्रीय पौधा किस्म रजिस्टर में सम्मिलित किये जाने वाले विषय;
(xi) धारा 16 की उपधारा (1) के खण्ड (ङ) के अधीन किसी व्यक्ति को प्राधिकृत करने की रीति;
(xii) धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन जिसके साथ खण्ड (छ) के अधीन फीस और खण्ड (झ) के अधीन अन्य विशिष्टयाँ होंगी;
(xiii) धारा 18 की उपधारा (1) के परन्तुक के अधीन आवेदन का प्रारूप;
(xiv) वह अवधि जिसके भीतर धारा 18 की उपधारा (3) के अधीन आवेदन करने के पश्चात अधिकार का सबूत पेश किया जाएगा;
(xv) धारा 19 की उपधारा (2) के अधीन आवेदक द्वारा निक्षिप्त की जाने वाली फीस;
(xvi) धारा 19 की उपधारा (3) के अधीन परीक्षण करने की रीति और ढंग;
(xvii) धारा 21 की उपधारा (1) के अधीन रजिस्ट्रीकरण के लिये किस्म के आवेदन, शर्तों या परिसीमाओं और विनिर्देशों को विज्ञप्ति करने की रीति जिसके अन्तर्गत फोटोग्राफ या आरेखन भी हैं;
(xviii) धारा 21 की उपधारा (2) के अधीन सूचना देने की रीति और उसके लिये सन्देय फीस;
(xix) धारा 21 की उपधारा (4) के अधीन प्रतिकथन भेजने की रीति;
(xx) धारा 21 की उपधारा (6) के अधीन साक्ष्य प्रस्तुत करने की रीति और वह समय जिसके भीतर ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत किया जा सकेगा;
(xxi) धारा 23 की उपधारा (1) के अधीन दस्तावेज और फीस तथा उपधारा (3) के अधीन किये जाने वाले परीक्षण और अपनाई जाने वाली प्रक्रिया;
(xxii) धारा 23 की उपधारा (8) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का प्रारूप और अन्य प्राधिकारी जिसको उसकी प्रति भेजी जाएगी;
(xxiii) धारा 24 की उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र का प्रारूप और अन्य प्राधिकारी जिसको उसकी प्रति भेजी जाएगी और रजिस्ट्रीकरण प्रमाणपत्र जारी किये जाने के लिये अधिकतम समय;
(xxiv) धारा 24 की उपधारा (3) के अधीन आवेदक को सूचना देने की रीति;
(xxv) धारा 24 की उपधारा (6) के अधीन पुनर्विलोकन और नवीकरण के लिये फीस;
(xxvi) धारा 26 की उपधारा (1) के अधीन प्रमाणपत्र की अन्तर्वस्तु और ऐसी अन्तर्वस्तु के प्रकाशन रीति तथा फायदों में हिस्सा बटाने के दावे आमंत्रित करने की रीति;
(xxvii) धारा 26 की उपधारा (2) के अधीन फायदे में हिस्सा बटाने के लिये दावा प्रस्तुत करने का प्रारूप और उसके साथ सन्देय फीस;
(xxviii) वह रीति और समय जिसके भीतर धारा 26 की उपधारा (3) के अधीन दावों का विरोध प्रस्तुत किया जाएगा;
(xxix) धारा 26 की उपधारा (7) के अधीन निर्देश करने की रीति;
(xxx) धारा 28 की उपधारा (4) के अधीन हक के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करने की रीति और उसके साथ सन्देय फीस;
(xxxi) धारा 28 की उपधारा (4) के परन्तुक के अधीन हक के रजिस्ट्रीकरण के सम्बन्ध में विवादों को निर्दिष्ट करने की रीति;
(xxxii) धारा 28 की उपधारा (5) के अधीन हक की संक्षिप्त शर्तों को प्रमाणपत्र में प्रविष्ट करने की रीति;
(xxxiii) धारा 28 की उपधारा (9) के खण्ड (क) के अधीन रजिस्ट्रीकरण के निबन्धनों में परिवर्तन के लिये आवेदन करने की रीति;
(xxxiv) धारा 28 की उपधारा (9) के खण्ड (ख) के अधीन रजिस्ट्रीकृत प्रजनक और कतिपय अन्य द्वारा रजिस्ट्रीकरण के निबन्धनों के रद्दकरण के लिये आवेदन करने की रीति;
(xxxv) धारा 28 की उपधारा (9) के खण्ड (ग) के अधीन प्रजनक, उसके उत्तराधिकारी, रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा रजिस्ट्रीकरण के निबन्धनों के रद्दकरण के लिये आवेदन करने की रीति;
(xxxvi) धारा 28 की उपधारा (9) के खण्ड (घ) के अधीन रजिस्ट्रीकरण के निबन्धनों के रद्दकरण के लिये आवेदन करने की रीति;
(xxxvii) धारा 28 की उपधारा (9) के खण्ड (ङ) के अधीन रजिस्ट्रीकरण के निबन्धनों के रद्दकरण के लिये आवेदन करने की रीति;
(xxxviii) धारा 28 की उपधारा (10) के अधीन किसी किस्म के रजिस्ट्रीकृत संवर्धक या उसके उत्तराधिकारी या ऐसे प्रत्येक रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी को (जो आवेदक न हो) सूचना जारी करने की रीति;
(xxxix) धारा 33 की उपधारा (1) के अधीन रजिस्ट्रार को सूचना देने की रीति;
(xl) धारा 33 की उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी को अधिसूचित करने की रीति;
(xli) वह अवधि जिसके भीतर धारा 33 की उपधारा (3) के अधीन विरोध की सूचना दी जा सकेगी;
(xlii) धारा 34 के अधीन आवेदन करने की रीति;
(xliii) धारा 35 की उपधारा (2) के अधीन फीस निक्षेप करने की रीति;
(xliv) धारा 36 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने की रीति;
(xlv) धारा 36 की उपधारा (2) के अधीन रजिस्ट्रार को आवेदन करने की रीति;
(xlvi) धारा 36 की उपधारा (4) के अधीन सूचना देने की रीति;
(xlvii) धारा 37 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन की रीति;
(xlviii) धारा 37 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन करने की रीति;
(xlix) धारा 38 की उपधारा (1) के अधीन रजिस्ट्रार को आवेदन करने की रीति;
(l) धारा 38 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन को विज्ञापित करने और रजिस्ट्रार को सूचना देने की रीति तथा विज्ञापन की तारीख से वह समय जिसके भीतर कोई व्यक्ति ऐसी सूचना दे सकेगा;
(li) धारा 38 की उपधारा (3) के अधीन किस्म के अभिधान के विज्ञापन की रीति;
(lii) धारा 39 की उपधारा (1) के खण्ड (iii) के अधीन जीन निधि की मान्यता और उससे प्रतिफल देने की रीति;
(liii) धारा 39 की उपधारा (2) के अधीन प्रतिकर का दावा करने और विरोध दाखिल करने की रीति;
(liv) धारा 41 की उपधारा (3) के अधीन सूचना जारी करने और आक्षेप फाइल करने की रीति;
(lv) धारा 45 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन फायदे में हिस्सा प्राप्त करने की रीति;
(lvi) धारा 45 की उपधारा (2) के अधीन जीन निधि का उपयोजन करने की रीति;
(lvii) धारा 47 की उपधारा (2) के अधीन आवेदन में अन्तर्विष्ट की जाने वाली विशिष्टियाँ;
(lviii) प्राधिकरण और वह रीति जिसमें ऐसा प्राधिकरण धारा 50 के अधीन अनिवार्य अनुज्ञप्तिधारी को किस्म की पुनरोत्पादन सामग्री उपलब्ध कराएगा;
(lix) धारा 52 की उपधारा (1) के अधीन आवेदन करने का प्रारूप;
(lx) वह अवधि जिसके भीतर धारा 56 की उपधारा (1) के अधीन अपील की जाएगी;
(lxi) अर्जी का प्रारूप और वे विशिष्टियाँ जो धारा 56 की उपधारा (2) के अधीन ऐसी अर्जी में अन्तर्विष्ट होगी;
(lxii) धारा 62 की उपधारा (1) के अधीन लेखाओं का वार्षिक विवरण तैयार करने का प्रारूप;
(lxiii) धारा 63 के अधीन अध्यक्ष द्वारा प्रयोग की जाने वाली वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियाँ;
(lxiv) धारा 68 की उपधारा (1) के अधीन किस्म के अभिधान का उपयोग करने की रीति;
(lxv) धारा 81 के अधीन रजिस्ट्रीकृत अभिकर्ता या रजिस्ट्रीकृत अनुज्ञप्तिधारी को प्राधिकृत करने की रीति;
(lxvi) धारा 83 के अधीन रजिस्टर या किसी अन्य दस्तावेज की अन्तर्वस्तु की प्रमाणित प्रति जारी करने की रीति;
(lxvii) धारा 84 के अधीन रजिस्टर या किसी अन्य दस्तावेज में किसी प्रविष्टि की प्रमाणित प्रति अभिप्राप्त करने या निरीक्षण करने के लिये सन्देय फीस;
(lxviii) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना हो या विहित किया जाये अथवा जिसके सम्बन्ध में इस अधिनियम में कोई उपबन्ध नहीं किया गया है या अपर्याप्त उपबन्ध किया गया है और केन्द्रीय सरकार की राय के उक्त उपबन्ध इस अधिनियम के उचित कार्यान्वयन के लिये आवश्यक हैं।

97. नियमों, विनियमों और स्कीमों का संसद के समक्ष रखा जाना


इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम और विनियम और स्कीम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिये रखी जाएगी। वह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम या विनियम या स्कीम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगी। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम या विनियम या स्कीम नहीं बनाई जानी चाहिए तो तत्पश्चात वह निष्प्रभाव हो जाएगी। किन्तु नियम या विनियम या स्कीम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।


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