(1972 का अधिनियम संख्यांक 53)
{9 सितम्बर, 1972}
1{देश की पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, वन्य प्राणियों, पक्षियों और पादपों के संरक्षण के लिये तथा उनसे सम्बन्धित या प्रासंगिक या आनुषंगिक विषयों का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम}
अतः भारत गणराज्य के तेईसवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो:-
अध्याय 1
प्रारम्भिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 है।
3{(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है।}
(3) यह किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र में, जिस पर इसका विस्तार है4*** ऐसी तारीख को प्रवृत्त होगा जो केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, नियत करे तथा इस अधिनियम के विभिन्न उपबन्धों के लिये और विभिन्न राज्यों या संघ राज्य क्षेत्रों के लिये विभिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी।
2. परिभाषाएँ
इस अधिनियम में, जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
5{(1) “प्राणी” के अन्तर्गत स्तनी, पक्षी, सरीसृप, जलस्थल चर, मत्स्य, अन्य रज्जुकी तथा अकशेरूकी हैं और इनमें उनके बच्चे तथा अंडे भी सम्मिलित हैं;}
(2) “प्राणी वस्तु” से ऐसी वस्तु अभिप्रेत है जो पीड़कजन्तु से भिन्न किसी बन्दी या वन्य प्राणी से बनी है और इसके अन्तर्गत ऐसी कोई वस्तु या पदार्थ है, जिसमें ऐसे पूरे प्राणी या उसके किसी भाग का 6{उपयोग किया गया है और भारत में आयातित हाथी दाँत तथा उससे बनी वस्तुएँ;}
5{(4) “बोर्ड” से धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन गठित राज्य वन्य जीव बोर्ड अभिप्रेत है;}
(5) “बन्दी प्राणी” से अनुसूची 1, अनुसूची 2, अनुसूची 3, या अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट ऐसा कोई प्राणी अभिप्रेत है जो पकड़ा गया या बन्दी हालत में रखा गया है अथवा बन्दी हालत में प्रजनित हुआ है;
(7) “मुख्य वन्य जीव संरक्षक” से धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन उस रूप में नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है;
8{(7क) “सर्कस” से ऐसा स्थापन अभिप्रेत है, चाहे वह स्थायी हो या चल, जहाँ पूर्णतया या मुख्यतया करतब या कलाबाजियाँ दिखाने के प्रयोजन के लिये प्राणी रखे या प्रयोग किये जाते हैं;}
1{(9) “कलक्टर” से किसी जिले के राजस्व प्रशासन का मुख्य भारसाधक अधिकारी या ऐसा कोई अन्य अधिकारी जो उप-कलक्टर की पंक्ति से नीचे का न हो, जिसे इस निमित्त धारा 18ख के अधीन राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाये, अभिप्रेत है;}
(10) इस अधिनियम के “प्रारम्भ” से-
(क) किसी राज्य के सम्बन्ध में, उस राज्य में इस अधिनियम का प्रारम्भ अभिप्रेत है;
(ख) इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के सम्बन्ध में सम्बद्ध राज्य में उस उपबन्ध का प्रारम्भ अभिप्रेत है;
2{(11) “व्यापारी” से किसी बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधिक ट्राफी, मांस या विनिर्दिष्ट पादपों के सम्बन्ध में, ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो ऐसे किसी प्राणी या वस्तु के क्रय या विक्रय का कारबार करता है और इसके अन्तर्गत ऐसा व्यक्ति भी है जो किसी एकल संव्यवहार में कारबार करता है;}
(12) “निदेशक” से धारा 3 की उपधारा (1) खण्ड (क) के अधीन वन्य जीव परिरक्षण निदेशक के रूप से नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है;
2{(12क) “वन अधिकारी” से भारतीय वन अधिनियम, 1927 (1927 का 16) की धारा 2 के खण्ड (2) के अधीन या किसी राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियम के अधीन नियुक्त किया गया वन अधिकारी अभिप्रेत है;
(12ख) “वन उत्पाद” पद का वही अर्थ है जो भारतीय वन अधिनियम, 1927 (1927 का 16) की धारा 2 के खण्ड (4) के उपखण्ड (ख) में है;}
(14) “सरकारी सम्पत्ति” से धारा 39 4{या धारा 17ज} में निर्दिष्ट कोई सम्पत्ति अभिप्रेत है;
(15) “आवास” के अन्तर्गत ऐसी भूमि, जल और वनस्पति है जो किसी वन्य प्राणी का प्राकृतिक गृह है;
(16) व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित “आखेटन” के अन्तर्गत है:-
2{(क) किसी वन्य प्राणी या बन्दी प्राणी को मारना या उसे विष देना और ऐसा करने का प्रत्येक प्रयत्न;
(ख) किसी वन्य प्राणी या बन्दी प्राणी को पकड़ना, शिकार करना, फंदे में पकड़ना, जाला में फाँसना, हाँका लगाना या चारा डालकर फँसाना तथा ऐसा करने का प्रत्येक प्रयत्न;}
(ग) किसी ऐसे प्राणी के शरीर के किसी भाग को क्षतिग्रस्त करना; या नष्ट करना या लेना अथवा वन्य पक्षियों या सरीसृपों की दशा में, ऐसे पक्षियों या सरीसृपों के अंडों को नुकसान पहुँचाना अथवा ऐसे पक्षियों या सरीसृपों के अंडों या घोसलों को गड़बड़ाना;
(17) “भूमि” के अन्तर्गत हैं नहरें, संकरी खाड़ियाँ और अन्य जल सरणियाँ, जलाशय; नदियाँ, सरिताएँ और झीलें, चाहे वे कृत्रिम हों या प्राकृतिक, 5{दलदल और आर्द्र भूमि, तथा इसके अन्तर्गत बोल्डर और चट्टाने भी हैं;}
(18) “अनुज्ञप्ति” से इस अधिनियम के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति अभिप्रेत है;
2{(18क) “पशुधन” से, कृषि में काम आने वाले प्राणी अभिप्रेत हैं और इसके अन्तर्गत भैंस, सांड, बैल, ऊँट, गाय, गधा, बकरा, भेड़, घोड़ा, खच्चर, याक, सूअर, बत्तख, हंस, कुक्कुट और उनके बच्चे आते हैं किन्तु इसमें अनुसूची 1 से अनुसूची 5 तक में विनिर्दिष्ट कोई प्राणी सम्मिलित नहीं है;}
2{(19) “विनिर्माता” से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो, यथास्थिति, अनुसूची 1 से अनुसूची 5 और अनुसूची 6 में विनिर्दिष्ट, किसी प्राणी या पादप से, वस्तुओं का विनिर्माण करता है;
(20) “मांस” के अन्तर्गत है, पीड़क जन्तु से भिन्न, किसी वन्य प्राणी या बन्दी प्राणी का रक्त, उसकी हड्डियाँ, स्नायु, अंडे, कवच या पृष्ठ वर्म, चर्बी और गोश्त, खाल के साथ या उसके बिना, चाहे वे कच्चे हों या पकाए हुए हों;
(20क) “राष्ट्रीय बोर्ड” से धारा 5क के अधीन गठित राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड अभिप्रेत है;}
(21) “राष्ट्रीय उपवन” से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो धारा 35 या धारा 38 के अधीन राष्ट्रीय उपवन के रूप में घोषित किया गया है और जो धारा 66 की उपधारा (3) के अधीन राष्ट्रीय उपवन घोषित किया गया समझा जाता है;
(22) “अधिसूचना” से राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना अभिप्रेत है;
(23) “अनुज्ञापत्र” से इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के अधीन दिया गया अनुज्ञापत्र अभिप्रेत है;
(24) “व्यक्ति” के अन्तर्गत फर्म है;
1{(24क) “संरक्षित क्षेत्र” से अधिनियम की धारा 18, धारा 35, धारा 36क और धारा 36ग के अधीन अधिसूचित कोई राष्ट्रीय उपवन, अभयारण्य, संरक्षण आरक्षिति या सामुदायिक आरक्षिति अभिप्रेत है;}
(25) “विहित” से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
2{(25क) “मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर” से धारा 38ज के अधीन मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर अभिप्रेत है;
3{(25ख) “आरक्षिति वन” से राज्य सरकार द्वारा भारतीय वन अधिनियम, 1927 (1927 का 16) की धारा 20 के अधीन आरक्षिति करने के लिये घोषित या किसी अन्य राज्य अधिनियम के अधीन उक्त रूप में घोषित वन अभिप्रेत है;}
(26) “अभयारण्य” से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अध्याय 4 के उपबन्धों के अधीन अधिसूचना द्वारा अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया है और इसके अन्तर्गत धारा 66 की उपधारा (4) के अधीन अभयारण्य समझा गया क्षेत्र भी है;}
4{(27) “विनिर्दिष्ट पादप” से अनुसूची 6 में विनिर्दिष्ट कोई पादप अभिप्रेत है;}
(29) संघ राज्य क्षेत्र के सम्बन्ध में “राज्य सरकार” से उस संघ राज्य क्षेत्र का प्रशासक अभिप्रेत है जो राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त किया गया है;
3{(30) व्याकरणिक रूपभेदों और सजातीय पदों सहित, “चर्मप्रसाधन” से ट्राफियों का संसाधन, उनको तैयार करना या उनका परिरक्षण या आरोपण अभिप्रेत है;}
2{(30क) “राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड” का वही अर्थ है जो राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आर्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्र अधिनियम, 1976 (1976 का 80) की धारा 3 में है;}
(31) “ट्राफी” से पीड़कजन्तु से भिन्न कोई पूरा बन्दी प्राणी या वन्य प्राणी या उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिसे किन्हीं साधनों द्वारा चाहे वे कृत्रिम हों या प्राकृतिक, रखा या परिरक्षित किया गया है और इसके अन्तर्गत है:-
(क) ऐसे प्राणी के चर्म, त्वचा और नमूने जो चर्म प्रसाधन की प्रक्रिया द्वारा पूर्णतः या भागतः मढ़े गए हैं; और
6{(ख) हिरण का सींग, हड्डी, पृष्ठ वर्म, कवच, सींग, गैंडे का सिंग, बाल, पंख, नाखून, दाँत, हाथी दाँत, कस्तूरी, अंडे, घोंसले और मधुमक्खी छत्ता;
(32) “असंसाधित ट्राफी” से पीड़क जन्तु से भिन्न कोई पूरा बन्दी प्राणी या वन्य प्राणी या उसका कोई भाग अभिप्रेत है जिस पर चर्म प्रसाधन की प्रक्रिया नहीं हुई है और 7{उसके अन्तर्गत ताजा मारा गया वन्य प्राणी, कच्चा अंबर, कस्तूरी और अन्य प्राणी उत्पाद है;}
(33) “यान” से भूमि, जल या वायु में संचलन के लिये प्रयुक्त सवारी अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत भैंस, सांड, बैल, ऊँट, गधा, घोड़ा और खच्चर हैं;
(34) “पीड़कजन्तु” से अनुसूची 5 में विनिर्दिष्ट कोई वन्य प्राणी अभिप्रेत है;
(35) “आयुध” के अन्तर्गत गोला बारूद, धनुष और बाण; विस्फोटक, अग्न्यायुध, काँटे, चाकू, जाल, विष, फंदे और फाँसे तथा कोई ऐसा उपकरण या साधित्र है जिससे किसी प्राणी को संवेदनाहृत किया जा सकता है, धोखे से पकड़ा जा सकता है, नष्ट किया जा सकता है, क्षतिग्रस्त किया जा सकता है या मारा जा सकता है;
1{(36) “वन्य प्राणी” से ऐसा प्राणी अभिप्रेत है जो अनुसूची 1 से अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट है और प्रकृति से ही वन्य है;}
1{(37) “वन्य जीव” के अन्तर्गत जलीय या भूवनस्पतिक ऐसा कोई प्राणी है जो किसी प्राकृतिक वास का भाग है;}
(38) “वन्य जीव संरक्षक” से धारा 4 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन उस रूप में नियुक्त व्यक्ति अभिप्रेत है;
2{(39) “चिड़ियाघर” से ऐसा स्थापन अभिप्रेत है, चाहे वह स्थायी हो या चल, जहाँ बन्दी प्राणी सर्वसाधारण के प्रदर्शन के लिये रखे जाते हैं 3{और इसके अन्तर्गत सर्कस और बचाव केन्द्र हैं किन्तु अनुज्ञप्त व्यौहारी का कोई स्थापन नहीं है।}}
अध्याय 2
इस अधिनियम के अधीन नियुक्त या गठित किये जाने वाली प्राधिकारी
3. निदेशक और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये,-
(क) एक वन्य जीव परिरक्षण निदेशक;
(ख) ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी, जो आवश्यक हों,नियुक्त कर सकेगी।
(2) निदेशक इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अपने कर्तव्यों का पालन करने में और अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में ऐसे साधारण या विशेष निदेशों के अधीन होगा, जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर दे।
5{(3) इस धारा के अधीन नियुक्त किये गए अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों से निदेशक की सहायता करने की अपेक्षा की जाएगी।}
4. मुख्य वन्य जीव संरक्षक और अन्य अधिकारियों की नियुक्ति
(1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजन के लिये,-
(क) एक मुख्य वन्य जीव संरक्षक;
(ख) वन्य जीव संरक्षक6***
7{(खख) अवैतनिक वन्य जीव संरक्षक;}
(ग) ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी, जो आवश्यक हों,नियुक्त कर सकेगी।
(2) मुख्य वन्य जीव संरक्षक, इस अधिनियम द्वारा या इसके अधीन अपने कर्तव्यों का पालन करने में और अपनी शक्तियों का प्रयोग करने में ऐसे साधारण या विशेष निदेशों के अधीन होगा, जो केन्द्रीय सरकार समय-समय पर दे।
(3) इस धारा के अधीन नियुक्त 8{वन्य जीव संरक्षक, अवैतनिक वन्य जीव संरक्षक, और अन्य अधिकारी और कर्मचारी मुख्य वन्य जीव संरक्षक के अधीनस्थ होंगे।
5. प्रत्यायोजन करने की शक्ति
(1) निदेशक, केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से, लिखित आदेश द्वारा, इस अधिनियम के अधीन अपनी समस्त या कुछ शक्तियों और कर्तव्यों को अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को, ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, प्रत्यायोजित कर सकेगा।
(2) मुख्य वन्य जीव संरक्षक, राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से, लिखित आदेश द्वारा धारा 11 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन शक्तियों और कर्तव्यों के सिवाय इस अधिनियम के अधीन अपनी समस्त या कुछ शक्तियों और कर्तव्यों को अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को ऐसी शर्तों के, यदि कोई हों, अधीन रहते हुए जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाएँ, प्रत्यायोजित कर सकेगा।
(3) निदेशक या मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा दिये गए किसी साधारण या विशेष निदेश के या उसके द्वारा अधिरोपित किसी शर्त के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति, जो किन्हीं शक्तियों का प्रयोग करने के लिये निदेशक या मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा प्राधिकृत हैं, उन शक्तियों का प्रयोग उसी रीति से और वैसे ही प्रभाव के साथ करेगा मानो वे उस व्यक्ति को प्रत्यायोजन द्वारा नहीं अपितु इस अधिनियम द्वारा सीधे प्रदत्त की गई हों।
1{5क. वन्य जीव के लिये राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड का गठन (1) केन्द्रीय सरकार, वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ से तीन मास के भीतर राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड का गठन करेगी, जो निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात:-
(क) अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री;
(ख) उपाध्यक्ष के रूप में वन और वन्य जीव का भारसाधक मंत्री;
(ग) संसद के तीन सदस्य, जिनमें से दो लोकसभा से तथा एक राज्यसभा से होगा;
(घ) सदस्य, योजना आयोग में वन और वन्य जीव का भारसाधक;
(ङ) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच व्यक्ति;
(च) केन्द्रीय सरकार द्वारा सुविख्यात संरक्षण विज्ञानियों, परिस्थितिकीय विज्ञानियों तथा पर्यावरण विज्ञानियों में से नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले दस व्यक्ति;
(छ) वन और वन्य जीव से सम्बन्धित भारत सरकार में केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का भारसाधक सचिव;
(ज) थल सेना अध्यक्ष;
(झ) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का भारसाधक सचिव;
(ञ) भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय का भारसाधक सचिव;
(ट) भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग का भारसाधक सचिव;
(ठ) भारत सरकार के जनजाति कल्याण मंत्रालय का सचिव;
(ड) वन और वन्य जीव से सम्बन्धित केन्द्रीय सरकार के मंत्रालय या विभाग का वन महानिदेशक;
(ढ) पर्यटन महानिदेशक, भारत सरकार;
(ण) महानिदेशक, भारतीय वन अनुसन्धान और शिक्षा परिषद, देहरादून;
(त) निदेशक, भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून;
(थ) निदेशक, भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण;
(द) निदेशक, भारतीय वनस्पति विज्ञान सर्वेक्षण;
(ध) निदेशक, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान;
(न) सदस्य-सचिव, केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण;
(प) निदेशक, राष्ट्रीय महासागर विज्ञान संस्थान;
(फ) दस राज्यों और संघ राज्यक्षेत्रों से प्रत्येक में से चक्रानुक्रम के आधार पर केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला एक-एक प्रतिनिधि;
(ब) निदेशक, वन्य जीव परिरक्षण जो राष्ट्रीय बोर्ड का सदस्य-सचिव होगा।
(2) उन सदस्यों से, भिन्न सदस्यों की पदावधि, जो पदेन सदस्य हैं, उपधारा (1) के खण्ड (ङ), खण्ड (च) और खण्ड (फ) में निर्दिष्ट रिक्तियों को भरने की रीति और राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्यों द्वारा उनके कृत्यों के निर्वहन में अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ऐसी होगी जो विहित की जाये।
(3) सदस्य (पदेन सदस्यों के सिवाय) अपने कर्तव्यों के पालन में उपगत व्ययों के सम्बन्ध में ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे, जो विहित किये जाएँ।
(4) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्य का पद लाभ का पद नहीं समझा जाएगा।
5ख. राष्ट्रीय बोर्ड की स्थायी समिति- (1) राष्ट्रीय बोर्ड, अपने विवेकानुसार, ऐसी शक्तियों का प्रयोग करने और ऐसे कर्तव्यों का अनुपालन करने के प्रयोजन के लिये, जो राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा समिति को प्रत्यायोजित किये जाएँ, एक स्थायी समिति गठित कर सकेगा।
(2) स्थायी समिति उपाध्यक्ष, सदस्य-सचिव तथा राष्ट्रीय बोर्ड के सदस्यों में से उपाध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले दस से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी।
(3) राष्ट्रीय बोर्ड उसको सौंपे गए कृत्यों के उचित निर्वहन के लिये समय-समय पर समितियाँ, उप-समितियाँ या अध्ययन समूह, जो भी आवश्यक हों, गठित कर सकेगा।
5ग. राष्ट्रीय बोर्ड के कृत्य-(1) राष्ट्रीय बोर्ड का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे उपायों द्वारा, जो वह ठीक समझे, वन्य जीव और वनों के संरक्षण और विकास का संवर्धन करे।
(2) पूर्वगामी उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इसमें निर्दिष्ट अध्युपाय निम्नलिखित के लिये उपबन्ध कर सकेंगे,-
(क) नीतियाँ बनाना और वन्य जीव संरक्षण का संवर्धन करने तथा वन्य जीव और उसके उत्पादों की चोरी और उसके अवैध व्यापार पर प्रभावी रूप से नियंत्रण करने के लिये उपायों और साधनों पर केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को सलाह देना;
(ख) राष्ट्रीय उपवनों, अभयारण्यों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और प्रबन्ध पर तथा उन क्षेत्रों में क्रियाकलापों के निर्बन्धन से सम्बन्धित विषयों पर सिफारिशें करना;
(ग) वन्य जीव या उनके आवासों से सम्बन्धित विभिन्न परियोजनाओं और क्रियाकलापों का प्रभाव निर्धारण करना या करवाना;
(घ) देश में वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में हुई प्रगति का समय-समय पर पुनर्विलोकन करना और उसके सुधार के लिये उपाय सुझाना; और
(ङ) देश में वन्य जीवन पर दो वर्ष में कम-से-कम एक बार प्रास्थिति रिपोर्ट तैयार करना और उसे प्रकाशित करवाना।
1{6. राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन-(1) राज्य सरकार वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ की तारीख से छह मास की अवधि के भीतर एक राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन करेगी, जो निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, अर्थात:-
(क) राज्य का मुख्यमंत्री और संघ राज्य क्षेत्र की दशा में, यथास्थिति, मुख्यमंत्री या प्रशासक-अध्यक्ष;
(ख) वन और वन्य जीव का भारसाधक मंत्री-उपाध्यक्ष;
(ग) राज्य विधानमंडल के तीन सदस्य या विधानमंडल वाले संघ राज्य क्षेत्र की दशा में, उस संघ राज्यक्षेत्र की विधानसभा के दो सदस्य;
(घ) राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले वन्य जीव से सम्बन्धित गैर-सरकारी संगठनों का प्रतिनिधित्व करने के लिये तीन व्यक्ति;
(ङ) राज्य सरकार द्वारा सुविख्यात संरक्षण विज्ञानियों, पारिस्थितिकी विज्ञानियों और पर्यावरण विज्ञानियों, में से जिनके अन्तर्गत अनुसूचित जनजाति के कम-से-कम दो प्रतिनिधि होंगे नामनिर्दिष्ट किये जाने वाले दस व्यक्ति;
(च) यथास्थिति, राज्य सरकार या संघ राज्य क्षेत्र सरकार का सचिव जो वन और वन्य जीव का भारसाधक हो;
(छ) राज्य वन विभाग का भारसाधक अधिकारी;
(ज) राज्य सरकार के जनजाति कल्याण विभाग का सचिव;
(झ) प्रबन्ध निदेशक, राज्य पर्यटन विकास निगम;
(ञ) राज्य के पुलिस विभाग का एक अधिकारी जो महानिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो;
(ट) केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला सशस्त्र बलों का एक प्रतिनिधि जो ब्रिगेडियर की पंक्ति से नीचे का न हो;
(ठ) निदेशक, राज्य पशुपालन विभाग;
(ड) निदेशक, राज्य मत्स्य विभाग;
(ढ) निदेशक, वन्य जीव परिरक्षण द्वारा नामनिर्दिष्ट किया जाने वाला एक अधिकारी;
(ण) भारतीय वन्य संस्थान, देहरादून का एक प्रतिनिधि;
(त) भारतीय वनस्पति विज्ञान सर्वेक्षण का एक प्रतिनिधि;
(थ) भारतीय प्राणीविज्ञान सर्वेक्षण का एक प्रतिनिधि;
(द) मुख्य वन्य जीव संरक्षक, जो सदस्य-सचिव होगा।
(2) पदेन सदस्य से भिन्न सदस्यों की पदावधि और उपधारा (1) के खण्ड (घ) और खण्ड (ङ) में निर्दिष्ट रिक्तियों को भरने की रीति तथा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया ऐसी होगी जो विहित की जाये।
(3) सदस्य (पदेन सदस्यों के सिवाय) अपने कर्तव्यों के पालन में उपगत व्ययों के सम्बन्धों में ऐसे भत्ते प्राप्त करने के हकदार होंगे जो विहित किये जाएँगे।
7. बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया
(1) बोर्ड का अधिवेशन वर्ष में कम-से-कम दो बार ऐसे स्थान पर होगा जो राज्य सरकार निदेश दे।
(2) बोर्ड अपनी प्रक्रिया (जिसके अन्तर्गत गणपूर्ति है) स्वयं विनियमित करेगा।
(3) बोर्ड का कोई भी कार्य या कार्यवाही केवल उसमें किसी रिक्ति के विद्यमान होने या उसके गठन में किसी त्रुटि या बोर्ड की प्रक्रिया में किसी अनियमितता के कारण जिससे मामले के गुणागुण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अविधिमान्य नहीं होगी।
8. 1{राज्य वन्य जीव बोर्ड, के कर्तव्य-1{राज्य वन्य जीव बोर्ड} का कर्तव्य राज्य सरकार को-
2{(क) उन क्षेत्रों के चयन और प्रबन्ध के बारे में जिन्हें संरक्षित क्षेत्र घोषित किया जाता है;}
3{(ख) वन्य जीव और विनिर्दिष्ट पादपों के परिरक्षण और संरक्षण के लिये नीति-निर्धारित करने में;}
(ग) किसी अनुसूची के संशोधन से सम्बद्ध किसी विषय के बारे में,4***
5{(गग) जनजातियों और अन्य वनवासियों की आवश्यकताओं तथा वन्य जीव के परिरक्षण और संरक्षण के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिये किये जाने वाले उपायों के सम्बन्ध में; और}
(घ) वन्य जीव के संरक्षण से सम्बन्धित किसी अन्य विषय के बारे में जो उसे राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाये, सलाह देना होगा।
अध्याय 3
वन्य प्राणियों का आखेट करना
6{9. शिकार का प्रतिषेध कोई भी व्यक्ति अनुसूची 1, अनुसूची 2, अनुसूची 3, और अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट किसी वन्य प्राणी का, धारा 11 और धारा 12 के अधीन यथा उपबन्धित के सिवाय, शिकार नहीं करेगा।}
11. कुछ परिस्थितियों में वन्य प्राणियों के आखेट की अनुज्ञा का दिया जाना-
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी और अध्याय 4 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए-
(क) यदि मुख्य वन्य जीव संरक्षक का यह समाधान हो जाता है कि अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट कोई वन्य प्राणी मानव जीवन के लिये खतरनाक हो गया है या ऐसा निःशक्त या रोगी है कि ठीक नहीं हो सकता है, तो वह लिखित आदेश द्वारा और उसके लिये कारण कथित करते हुए किसी व्यक्ति को ऐसे प्राणी का आखेट करने की या उसका आखेट करवाने की अनुज्ञा दे सकेगा:
8{परन्तु किसी वन्य प्राणी को मारने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा प्राणी पकड़ा नहीं जा सकता, प्रशान्त नहीं किया जा सकता या स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता:
परन्तु यह और कि ऐसे पकड़े गए किसी भी प्राणी को तब तक बन्दी बनाकर नहीं रखा जाएगा जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसे प्राणी को वन में पुनर्वासित नहीं किया जा सकता और उसके लिये कारण अभिलिखित नहीं कर दिये जाते हैं।
स्पष्टीकरण
खण्ड (क) के प्रयोजनों के लिये ऐसे प्राणी के, यथास्थिति, पकड़ने या स्थानान्तरण करने की प्रक्रिया, ऐसी रीति से की जाएगी जिससे कि उस प्राणी को न्यूनतम अभिघात कारित हो;}
(ख) यदि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि अनुसूची 2, अनुसूची 3 या अनुसूची 4 में विनिर्दिष्ट कोई वन्य प्राणी मानव जीवन के लिये या सम्पत्ति (जिसके अन्तर्गत किसी भूमि पर खड़ी फसलें हैं) के लिये खतरनाक हो गया है या ऐसा निःशक्त या रोगी है कि ठीक नहीं हो सकता है तो यह लिखित आदेश द्वारा और उसके लिये कारण कथित करते हुए किसी व्यक्ति को 1{किसी विनिर्दिष्ट क्षेत्र में ऐसे प्राणी या प्राणियों के समूह का आखेट करने या उस विनिर्दिष्ट क्षेत्र में ऐसे प्राणी या प्राणियों के समूह का आखेट करवाने की, अनुज्ञा दे सकेगा।
(2) अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिरक्षा में किसी वन्य प्राणी को सद्भावपूर्वक मारना या घायल करना अपराध नहीं होगाः
परन्तु इस उपधारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को विमुक्त नहीं करेगी, जो उस समय जब ऐसी प्रतिरक्षा आवश्यक हो गई है, इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किसी उपबन्ध के उल्लंघन में कोई कार्य कर रहा था।
(3) किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा में मारा गया या घायल किया गया कोई वन्य प्राणी सरकारी सम्पत्ति होगा।
12. विशेष प्रयोजनों के लिये अनुज्ञापत्र देना
इस अधिनियम में अन्यत्र किसी बात के होते हुए भी, मुख्य वन्य जीव संरक्षक के लिये यह विधिपूर्ण होगा कि वह2*** पूर्ण लिखित आदेश द्वारा, उसके लिये कारण कथित करते हुए, किसी व्यक्ति को ऐसी फीस का सन्दाय करने पर जो विहित की जाये, अनुज्ञापत्र दे, जो ऐसी अनुज्ञप्ति के धारक को, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ ऐसे अनुज्ञापत्र में विनिर्दिष्ट किसी वन्य प्राणी का, निम्नलिखित प्रयोजनों में से किसी प्रयोजन के लिये आखेट करने के लिये हकदार बनाएगा, अर्थात:-
(क) शिक्षा;
3{(ख) वैज्ञानिक अनुसन्धान;
(खख) वैज्ञानिक प्रबन्ध।
स्पष्टीकरण
खण्ड (खख) के प्रयोजनों के लिये “वैज्ञानिक प्रबन्ध” पद से अभिप्रेत है-
(1) किसी वन्य पशु का किसी अन्य आनुकल्पिक समुचित प्राकृतिक वास के लिये स्थानान्तरण; या
(2) किसी वन्यु पशु का वध किये बिना, या उसे विष दिये बिना या नष्ट किये बिना वन्य जीव संख्या प्रबन्ध;}
4{(ग) निम्नलिखित के लिये नमूनों का संग्रहण,-
(i) धारा 38झ के अधीन अनुज्ञा के अधीन रहते हुए, मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर; या
(2) संग्रहालय और तत्समान संस्थाएँ:
5{परन्तु ऐसा कोई अनुज्ञापत्र-
(क) अनुसूची 1 में विनिर्दिष्ट किसी वन्य पशु की बाबत केन्द्रीय सरकार की पूर्व अनुज्ञा से; और
(ख) किसी अन्य वन्य पशु की बाबत राज्य सरकार की पूर्व अनुज्ञा से,ही दिया जाएगा, अन्यथा नहीं।}
(घ) प्राणरक्षक औषधियों के विनिर्माण के लिये सर्प विष निकालना, संग्रह करना या तैयार करना:}
1अध्याय 3क
विनिर्दिष्ट पादपों का संरक्षण
17क. विनिर्दिष्ट पादपों के तोड़ने, उखाड़ने, आदि का प्रतिषेध
इस अध्याय में जैसा अन्यथा उपबन्धित है उसके सिवाय, कोई व्यक्ति-
(क) किसी विनिर्दिष्ट पादप को किसी वन भूमि से और केन्द्रीय सरकार द्वारा, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट किसी क्षेत्र से जान बूझकर नहीं तोड़ेगा, नहीं उखाड़ेगा, नुकसान नहीं पहुँचाएगा, नष्ट नहीं करेगा, अर्जित या उसका संग्रह नहीं करेगा;
(ख) किसी विनिर्दिष्ट पादप को, चाहे जीवित या मृत, या उसके भाग या व्युत्पन्नी को, कब्जे में नहीं रखेगा, विक्रय नहीं करेगा, विक्रय के लिये प्रस्थापित नहीं करेगा, या दान के रूप में अथवा अन्यथा अन्तरित नहीं करेगा, या उसका परिवहन नहीं करेगा:
परन्तु इस धारा की कोई बात जनजाति के किसी सदस्य को, अध्याय 4 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उस जिले में, जिसमें वह निवास करता है, किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को अपने सद्भावित व्यक्तिगत प्रयोग के लिये तोड़ने, संग्रह करने या कब्जे में रखने से निवारित नहीं करेगी।
17ख. विशेष प्रयोजनों के लिये अनुज्ञापत्र देना
मुख्य वन्य जीव संरक्षक, राज्य सरकार की पूर्व अनुज्ञा से, किसी व्यक्ति को किसी विनिर्दिष्ट पादप को-
(क) शिक्षा;
(ख) वैज्ञानिक अनुसन्धान;
(ग) किसी वैज्ञानिक संस्था के जड़ी-उद्यान में संग्रहण, परिरक्षण और प्रदर्शन; या
(घ) केन्द्रीय सरकार द्वारा इस बाबत अनुमोदित किसी व्यक्ति, या संस्था द्वारा संवर्धन, के प्रयोजन के लिये किसी वन भूमि या धारा 17क के अधीन विनिर्दिष्ट क्षेत्र से तोड़ने, उखाड़ने, अर्जित करने, संग्रह करने या उसका परिवहन करने के लिये अनुज्ञापत्र ऐसी शर्तों के अधीन जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएँ, दे सकेगा।
17ग. अनुज्ञप्ति के बिना विनिर्दिष्ट पादपों की खेती का प्रतिषेध
(1) कोई भी व्यक्ति, मुख्य वन जीव संरक्षक द्वारा या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन और उसके अनुसार के सिवाय, किसी विनिर्दिष्ट पादप की खेती नहीं करेगा:परन्तु इस धारा की कोई बात ऐसी किसी व्यक्ति को, जो वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ के ठीक पूर्व, किसी विनिर्दिष्ट पादप की खेती कर रहा था, ऐसे प्रारम्भ से छह मास की अवधि के लिये, या जहाँ उसने उस अवधि के भीतर अपने लिये अनुज्ञप्ति दिये जाने का आवेदन किया है वहाँ तब तक जब तक उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जाती है या लिखित में उसे यह जानकारी नहीं दी जाती है कि उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जा सकती है, ऐसे खेती करते रहने से निवारित नहीं करेगी।
(2) इस धारा के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति में वह क्षेत्र जिसमें और वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए, अनुज्ञप्तिधारी किसी विनिर्दिष्ट पादप की खेती करेगा, विनिर्दिष्ट की जाएँगी।
17घ. अनुज्ञप्ति के बिना विनिर्दिष्ट पादपों में व्यवहार करने का प्रतिषेध
कोई भी व्यक्ति, मुख्य जीव संरक्षक द्वारा या राज्य सरकार द्वारा इस निमित प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन और उसके अनुसार के सिवाय, विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी में व्यौहारी के रूप में कारबार या उपजीविका आरम्भ नहीं करेगा या नहीं चलाएगा:
परन्तु इस धारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को, जो वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ के ठीक पूर्व, ऐसा कारबार या उपजीविका चला रहा था, ऐसे प्रारम्भ से साठ दिन की अवधि के लिये, या जहाँ उसने उस अवधि के भीतर अपने लिये अनुज्ञप्ति दिये जाने का आवेदन किया है, वहाँ तब तक जब तक उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जाती है या लिखित में उसे यह जानकारी नहीं दी जाती है कि उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जा सकती है, ऐसा कारबार या उपजीविका करते रहने से निवारित नहीं करेगी।
(2) इस धारा के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति में वह परिसर जिसमें और वे शर्तें, यदि कोई हों, जिनके अधीन रहते हुए, अनुज्ञप्तिधारी अपना कारबार चलाएगा, विनिर्दिष्ट की जाएँगी।
17ङ. स्टाक की घोषणा
(1) प्रत्येक व्यक्ति, जो विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी की खेती या उसमें व्यवहार करता है, वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ से तीस दिन के भीतर मुख्य वन जीव संरक्षक या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी के समक्ष, यथास्थिति, ऐसे पादपों और उनके भाग या व्युत्पन्नी के, ऐसे प्रारम्भ की तारीख को, अपने स्टाक की घोषणा करेगा।
(2) धारा 44 की उपधारा (3) से उपधारा (8) तक (जिसमें ये दोनों उपधाराएँ भी हैं), धारा 45, धारा 46 और धारा 47 के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, धारा 17ग और धारा 17घ में निर्दिष्ट किसी आवेदन और अनुज्ञप्ति के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे प्राणी या प्राणी-वस्तुओं की अनुज्ञप्ति और कारबार को लागू होते हैं।
17च. अनुज्ञप्तिधारी द्वारा पादपों का कब्जा, आदि
इस अध्याय के अधीन कोई अनुज्ञप्तिधारी,-
(क) निम्नलिखित को अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में नहीं रखेगा, अर्थात:-
(i) कोई विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जिसके सम्बन्ध में धारा 17ङ के उपबन्धों के अधीन घोषणा की जाती है किन्तु की नहीं गई है;
(ii) कोई विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जो इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबन्धों के अधीन विधिपूर्वक अर्जित नहीं की गई है।
(ख) निम्नलिखित में से कोई कार्य, उन शर्तों के, जिनके अधीन रहते हुए अनुज्ञप्ति दी गई है और ऐसे नियमों के, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएँ, अनुसार ही करेगा, अन्यथा नहीं, अर्थात:-
(i) किसी विनिर्दिष्ट पादप को तोड़ना, उखाड़ना या उसका संग्रह या अर्जन करना; या
(ii) किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को अर्जित करना, प्राप्त करना, अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में रखना या विक्रय करना, विक्रय के लिये प्रस्थापित करना या परिवहन करना;
17छ. विनिर्दिष्ट पादपों का क्रय, आदि
कोई भी व्यक्ति किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को किसी अनुज्ञप्त व्यौहारी से ही क्रय करेगा, प्राप्त या अर्जित करेगा, अन्यथा नहीं:परन्तु इस धारा की कोई बात धारा 17ख में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को लागू नहीं होगी।
17ज. पादपों का सरकारी सम्पत्ति होना
(1) प्रत्येक विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जिसके सम्बन्ध में इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के विरुद्ध कोई अपराध किया गया है, राज्य सरकार की सम्पत्ति होगी और जहाँ ऐसा पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी सरकार द्वारा घोषित किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन से संगृहीत या अर्जित की गई है वहाँ ऐसा पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी केन्द्रीय सरकार की सम्पत्ति होगी।
(2) धारा 39 की उपधारा (2) और उपधारा (3) के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे वे उस धारा की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट वन्य प्राणियों और वस्तुओं के सम्बन्ध में लागू होते हैं।}
अध्याय 4
1{संरक्षित क्षेत्र}
अभयारण्य
18. अभयारण्य की घोषणा
2{(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी आरक्षिति वन में समाविष्ट किसी क्षेत्र से भिन्न किसी क्षेत्र या राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड को अभयारण्य गठित करने के अपने आशय की घोषणा कर सकेगी, यदि वह यह समझती है कि ऐसा क्षेत्र, वन्य जीव या उसके पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन या विकास के प्रयोजन के लिये पर्याप्त रूप से पारिस्थितिक, प्राणी-जात, वनस्पति-जात, भू-आकृति विज्ञान-जात, प्रकृति या प्राणी विज्ञान-जात महत्त्व का है।}
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिसूचना में, यथासम्भव निकटतम रूप से, ऐसे क्षेत्र की स्थिति और सीमाएँ विनिर्दिष्ट की जाएँगी।
स्पष्टीकरण
इस धारा में प्रयोजनों के लिये क्षेत्र की सड़कों, नदियों, टीलों या अन्य सुज्ञात या सरलता से बोध गम्य सीमाओं से वर्गित करना पर्याप्त होगा।
3{18क. अभयारण्यों की सुरक्षा
(1) जब राज्य सरकार धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन किसी ऐसे क्षेत्र को, जो उस उपधारा के अधीन किसी आरक्षिति वन या राज्य क्षेत्रीय सागर खण्ड में समाविष्ट नहीं है, अभयारण्य के रूप में गठित करने के अपने आशय की घोषणा करती है, तो धारा 27 से धारा 33क तक के (जिनके अन्तर्गत दोनों धाराएँ हैं) उपबन्ध तत्काल प्रभावी होंगे।
(2) जब तक धारा 19 से धारा 24 (जिसमें दोनों धाराएँ सम्मिलित हैं) के अधीन प्रभावित व्यक्तियों के अधिकारों का अन्तिम रूप से निपटारा नहीं किया जाता, तब तक राज्य सरकार, सरकारी अभिलेखों के अनुसार प्रभावित व्यक्तियों के लिये उनके अधिकारों के अनुसार ईंधन, चारा और अन्य वन उत्पाद उपलब्ध कराने के लिये अपेक्षित वैकल्पिक व्यवस्था करेगी।
18ख. कलक्टर की नियुक्ति
वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रवृत्त होने से नब्बे दिन के भीतर या धारा 18 के अधीन अधिसूचना जारी करने के तीस दिन के भीतर राज्य सरकार, अभयारण्य की सीमाओं के भीतर आने वाली ऐसी भूमि में या, उस पर, जो धारा 18 की उपधारा (1) के अधीन अधिसूचित की जा सकेगी, किसी व्यक्ति के अधिकारों के अस्तित्व, प्रकृति और विस्तार की जाँच करने और उन्हें अवधारित करने के लिये अधिनियम के अधीन कलक्टर के रूप में कार्य करने के लिये एक अधिकारी की नियुक्ति करेगी।}
19. कलक्टर द्वारा अधिकारों का अवधारण किया जाना
1{जब धारा 18 के अधीन कोई अधिसूचना जारी की गई हो,} तब कलक्टर उस अभयारण्य की सीमाओं के भीतर आने वाली भूमि में या उसके सम्बन्ध में किसी व्यक्ति के अधिकारों के अस्तित्व, प्रकृति और विस्तार के बारे में जाँच करेगा और उन्हें अवधारित करेगा।
20. अधिकारों के प्रोद्भवन का वर्जन
धारा 18 के अधीन अधिसूचना निकाले जाने के पश्चात, ऐसी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट क्षेत्र की सीमाओं में आने वाली भूमि में, उस पर या उसके सम्बन्ध में कोई अधिकार, वसीयती या निर्वसीयती, उत्तराधिकारी के सिवाय अर्जित नहीं किया जाएगा।
21. कलक्टर द्वारा उद्घोषणा
जब धारा 18 के अधीन कोई अधिसूचना निकाली जा चुकी है, तब कलक्टर 1{साठ दिन की अवधि के भीतर, उसके आस-पास के प्रत्येक नगर और ग्राम में या उसमें आने वाले क्षेत्र के आसपास प्रादेशिक भाषा में एक उद्घोषणा प्रकाशित करेगा जिसमें:-
(क) प्रस्थापित अभयारण्य की, यथासम्भव निकटतम रूप से स्थिति और सीमाएँ विनिर्दिष्ट होंगी; और
(ख) धारा 19 में वर्णित किसी अधिकार का दावा करने वाले किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाएगी कि ऐसी उद्घोषणा की तारीख से दो मास के भीतर वह विहित प्रारूप में लिखित रूप में दावा करे जिसमें ऐसे अधिकार की आवश्यक ब्यौरों के साथ प्रकृति और विस्तार और उसके बारे में दावाकृत प्रतिकर, यदि कोई हो और उसकी रकम और विशिष्टियाँ विनिर्दिष्ट होंगी।
22. कलक्टर द्वारा जाँच
कलक्टर दावेदार पर विहित सूचना की तामील करने के पश्चात-
(क) धारा 21 के खण्ड (ख) के अधीन उसके समक्ष किये गए दावे के बारे में, और
(ख) उस अधिकार के अस्तित्व के बारे में, जो धारा 19 में वर्णित है और धारा 21 के खण्ड (ख) के अधीन दावाकृत नहीं है,
शीघ्रता के साथ वहाँ तक जाँच करेगा जहाँ तक कि वह राज्य सरकार के अभिलेखों और उससे परिचित किसी व्यक्ति के साक्ष्य से अभिनिश्चित किया जा सकता है।
23. कलक्टर की शक्तियाँ
ऐसी जाँच के प्रयोजन के लिये कलक्टर निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा, अर्थात:-
(क) किसी भूमि में या उस पर प्रवेश करने और उसका सर्वेक्षण करने, सीमांकन करने तथा उसका नक्शा तैयार करने या ऐसा करने के लिये किसी अन्य अधिकारी को प्राधिकृत करने की शक्ति;
(ख) वही शक्तियाँ, जो वादों के विचारण के लिये किसी सिविल न्यायालय में निहित होती हैं।
24. अधिकारों का अर्जन
(1) धारा 19 में निर्दिष्ट किसी भूमि में या उसके बारे में, किसी दावे की दशा में, कलक्टर उसको पूर्णतः या भागतः स्वीकार करते हुए या नामंजूर करते हुए एक आदेश पारित करेगा।
(2) यदि ऐसा दावा पूर्णतः या भागतः स्वीकार कर लिया जाता है तो कलक्टर,-
(क) प्रस्थापित अभयारण्य की सीमाओं से ऐसी भूमि का अपवर्जन कर सकेगा, या
(ख) ऐसी भूमि को या ऐसी भूमि में या उसके बारे में अधिकार, सिवाय वहाँ के जहाँ कि ऐसी भूमि के स्वामी या ऐसे अधिकारों के धारक और सरकार के बीच किसी करार द्वारा वह स्वामी या ऐसे अधिकारों का धारक अपने अधिकार सरकार को अभ्यर्पित करने के लिये सहमत हो गया है और ऐसा प्रतिकर, जैसा की भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) में उपबन्धित है, सन्दत्त करके, अर्जित करने के लिये कार्यवाही कर सकेगा या
2{(ग) मुख्य वन्य जीव संरक्षक के परामर्श से अभयारण्य की सीमाओं के भीतर किसी भूमि में या उस पर किसी व्यक्ति के किसी अधिकार का जारी रहना अनुज्ञात कर सकेगा।}
25. अर्जन कार्यवाहियाँ
(1) ऐसी भूमि या ऐसी भूमि में या उसके बारे में अधिकारों के अर्जन के प्रयोजन के लिये,-
(क) कलक्टर, ऐसा कलक्टर समझा जाएगा, जो भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) के अधीन कार्यवाही कर रहा है;
(ख) दावेदार को ऐसा व्यक्ति समझा जाएगा जो हितबद्ध है और उस अधिनियम की धारा 9 के अधीन दी गई सूचना के अनुसरण में उसके समक्ष उपस्थित हो रहा है;
(ग) उस अधिनियम की धारा 9 से पूर्ववर्ती धाराओं के उपबन्धों के बारे में यह समझा जाएगा कि उनका अनुपालन हो गया है;
(घ) जहाँ दावेदार प्रतिकर के सम्बन्ध में अपने पक्ष में दिये गए अधिनिर्णय को स्वीकार नहीं करता है वहाँ उसकी बाबत यह समझा जाएगा कि वह उस अधिनियम की धारा 18 के अर्थ में ऐसा हितबद्ध व्यक्ति है, जिसने अधिनिर्णय को स्वीकार नहीं किया है, और वह उस अधिनियम के भाग 3 के उपबन्धों के अधीन उस अधिनिर्णय के विरुद्ध अनुतोष का दावा करने के लिये कार्यवाही करने का हकदार होगा;
(ङ) कलक्टर, दावेदार की सहमति से या न्यायालय दोनों पक्षकारों की सहमति से, प्रतिकर, भूमि के या धन के रूप में या भागतः भूमि के रूप में और भागतः धन के रूप में दे सकेगा; और
(च) किसी लोक-मार्ग या सामान्य चरागाह के रोके जाने की दशा में, कलक्टर, राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से, यावत्साध्य या सुविधानुसार किसी आनुकल्पिक लोक-मार्ग या सामान्य चरागाह के लिये उपबन्ध कर सकेगा।
(2) इस अधिनियम के अधीन किसी भूमि के या उसमें किसी हित के अर्जन के बारे में यह समझा जाएगा कि वह लोक प्रयोजन के लिये अर्जन है।
1{25क. अर्जन कार्यवाहियों के पूरा होने के लिये समय-सीमा
(1) कलक्टर, धारा 18 के अधीन अभयारण्य की घोषणा की अधिसूचना की तारीख से दो वर्ष की अवधि के भीतर धारा 19 से धारा 25 (जिसमें ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित हैं) के अधीन यथासम्भव कार्यवाहियों को पूरा करेगा।
(2) यदि किसी कारण से कार्यवाहियाँ दो वर्ष की अवधि के भीतर पूरी नहीं हो पाती हैं, तो अधिसूचना व्यपगत नहीं होगी।}
26. कलक्टर की शक्तियों का प्रत्यायोजन
राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा निदेश दे सकेगी कि कलक्टर द्वारा धारा 19 से धारा 25 (जिसमें ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित हैं) के अधीन प्रयोक्तव्य शक्तियाँ या किये जाने वाले कृत्य, ऐसे अधिकारी द्वारा, जो आदेश में विनिर्दिष्ट किया जाये, प्रयुक्त की जा सकेंगी और किये जा सकेंगे।
2{26क. क्षेत्र की अभयारण्य के रूप में घोषणा-
(1) यदि,-
(क) धारा 18 के अधीन कोई अधिसूचना जारी कर दी गई है और दावे करने की अवधि समाप्त हो गई है और अभयारण्य के रूप में घोषित किये जाने के लिये आशयित किसी क्षेत्र में किसी भूमि के सम्बन्ध में सभी दावे, यदि कोई हों, राज्य सरकार द्वारा निपटा दिये गए हैं; या
(ख) किसी आरक्षिति वन के भीतर समाविष्ट कोई क्षेत्र या राज्यक्षेत्रीय सागरखण्ड का कोई भाग, जिसे राज्य सरकार द्वारा वन्य जीव या उसके पर्यावरण के संरक्षण, संवर्द्धन या विकास के प्रयोजन के लिये पर्याप्त रूप से पारिस्थितिक, प्राणी-जात, वनस्पति जात, भू-आकृति विज्ञान-जात, प्राकृतिक या प्राणी विज्ञान-जात महत्त्व का समझा जाता है, किसी अभयारण्य में सम्मिलित किया जाना है, तो राज्य सरकार उस क्षेत्र की सीमाएँ विनिर्दिष्ट करते हुए, जो अभयारण्य में समाविष्ट किया जाएगा, अधिसूचना जारी करेगी और यह घोषित करेगी कि उक्त क्षेत्र उस तारीख से ही, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाये, अभयारण्य होगा:
परन्तु जहाँ राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड का कोई भाग इस प्रकार सम्मिलित किया जाना है वहाँ राज्य सरकार केन्द्रीय सरकार की पूर्व सहमति अभिप्राप्त करेगी:
परन्तु यह और कि अभयारण्य में सम्मिलित किये जाने वाले राज्यक्षेत्रीय सागरखण्ड के क्षेत्र की सीमाएँ, केन्द्रीय सरकार के मुख्य नौ जलराशि-सर्वेक्षक के परामर्श से और स्थानीय मछुआरों के वृत्तिक हितों की रक्षा के लिये पर्याप्त उपाय करने के पश्चात अवधारित की जाएँगी।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, उपधारा (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना से राज्यक्षेत्रीय सागरखण्ड से किसी जलयान या नौका के निर्दोष आवागमन का अधिकार प्रभावित नहीं होगा।
3{(3) राष्ट्रीय बोर्ड की सिफारिश के सिवाय राज्य सरकार द्वारा अभयारण्य की सीमाओं में कोई परिवर्तन नहीं किया जाएगा।}
27. अभयारण्य में प्रवेश पर निर्बन्धन
(1) (क) किसी कर्तव्यरत लोक सेवक से भिन्न;
(ख) ऐसे व्यक्ति से, जो मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी द्वारा अभयारण्य की सीमाओं के अन्दर निवास करने के लिये अनुज्ञात है, भिन्न;
(ग) ऐसे व्यक्ति से, जिसका अभयारण्य की सीमाओं के भीतर स्थावर सम्पत्ति पर कोई अधिकार है, भिन्न;
(घ) ऐसे व्यक्ति से जो लोक राजमार्ग के साथ-साथ अभयारण्य में से होकर जाता है; भिन्न; और
(ङ) खण्ड (क), खण्ड (ख) या खण्ड (ग) में निर्दिष्ट व्यक्ति के आश्रितों से भिन्न, कोई भी व्यक्ति धारा 28 के अधीन दिये गए अनुज्ञापत्र के अधीन और उसकी शर्तों के अनुसरण में ही अभयारण्य में प्रवेश करेगा या निवास करेगा अन्यथा नहीं।
(2) प्रत्येक व्यक्ति, जब तक वह अभयारण्य में निवास करता है,-
(क) अभयारण्य में इस अधिनियम के विरुद्ध किसी अपराध के किये जाने का निवारण करने के लिये;
(ख) जहाँ यह विश्वास करने का कारण है कि ऐसे अभयारण्य में इस अधिनियम के विरुद्ध ऐसा कोई अपराध किया गया है, वहाँ अपराधी का पता चलाने और उसे गिरफ्तार करने में सहायता करने के लिये;
(ग) किसी वन्य प्राणी की मृत्यु की रिपोर्ट करने और उसके अवशेषों की तब तक सुरक्षा करने के लिये जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या कोई प्राधिकृत अधिकारी उसका भार ग्रहण नहीं कर लेता है;
(घ) ऐसे अभयारण्य में ऐसी किसी आग को बुझाने के लिये जिसके बारे में उसे ज्ञान या जानकारी है और ऐसे अभयारण्य के सामीप्य में किसी आग को, जिसके बारे में उसे ज्ञान या जानकारी है, फैलने से, विधिपूर्ण साधनों से जो कि उसकी शक्ति में हैं, रोकने के लिये; और
(ङ) किसी वन अधिकारी मुख्य वन्य जीव संरक्षक, वन्य जीव संरक्षक या पुलिस अधिकारी को, जो इस अधिनियम के विरुद्ध किसी अपराध को रोकने के लिये या ऐसे अपराध का अन्वेषण करने के लिये उसकी सहायता माँग रहा हो, सहायता करने के लिये, आबद्ध होगा।
1{(3) कोई भी व्यक्ति किसी अभयारण्य के किसी सीमा चिन्ह को नुकसान पहुँचाने या भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) में यथा परिभाषित सदोष लाभ कारित करने के आशय से ऐसे सीमा चिन्ह में न तो फेरफार करेगा न उसे नष्ट करेगा, न हटाएगा या विरूपित करेगा।
(4) कोई भी व्यक्ति किसी वन्य प्राणी को तंग या उत्पीड़ित नहीं करेगा या अभयारण्य की भूमि को अव्यवस्थित नहीं करेगा।}
28. अनुज्ञापत्र का दिया जाना
(1) मुख्य वन्य जीव संरक्षक आवेदन किये जाने पर किसी व्यक्ति को निम्नलिखित प्रयोजनों में से किसी के लिये अभयारण्य में प्रवेश करने या निवास करने के लिये अनुज्ञापत्र दे सकेगा, अर्थात:-
(क) वन्य जीव के अन्वेषण या अध्ययन और उसके प्रासंगिक या आनुषंगिक प्रयोजन;
(ख) फोटोचित्रण;
(ग) वैज्ञानिक अनुसन्धान;
(घ) पर्यटन;
(ङ) अभयारण्य में निवास कर रहे किसी व्यक्ति के साथ विधिपूर्ण कारबार करना।
(2) किसी अभयारण्य में प्रवेश या निवास करने के लिये अनुज्ञापत्र ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए और ऐसी फीस के सन्दाय पर, जो विहित की जाये, जारी किया जाएगा।
2{29. अनुज्ञापत्र के बिना अभयारण्य में नाशकरण आदि पर प्रतिषेध
कोई भी व्यक्ति मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा दी गई किसी अनुज्ञा के अधीन और उसके अनुसार के सिवाय, किसी कार्य द्वारा वह चाहे जो भी हो, किसी अभयारण्य में वनोत्पाद सहित किसी वन्य जीवन को नष्ट नहीं करेगा, उसका विदोहन नहीं करेगा या उसको नहीं हटाएगा अथवा अभयारण्य में या उसके बाहर जल के प्रवाह का अपवर्तन नहीं करेगा, उसे रोकेगा नहीं अथवा उसमें वृद्धि नहीं करेगा और कोई ऐसी अनुज्ञा तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि राज्य सरकार, बोर्ड के परामर्श से, यह समाधान हो जाने पर कि अभयारण्य से किसी वन्य जीव को इस प्रकार हटाया जाना या अभयारण्य में या उसके बाहर जल के प्रवाह में ऐसा परिवर्तन वहाँ के वन्य जीवन के सुधार और अधिक अच्छे परिवर्तन के लिये आवश्यक है, ऐसे अनुज्ञापत्र का जारी किया जाना प्राधिकृत नहीं करती है:
परन्तु जहाँ किसी अभयारण्य से वनोत्पाद को हटाया जाना है, वहाँ उसका उपयोग, अभयारण्य में अथवा उसके आस-पास रहने वाले लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया जा सकेगा और किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये उसका उपयोग नहीं किया जाएगा।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये, धारा 33 के खण्ड (घ) के अधीन अनुज्ञात पशुधन की चराई या संचलन इस धारा के अधीन प्रतिषिद्ध कार्य नहीं समझा जाएगा।}
30. आग लगाने के बारे में प्रतिषेध
कोई भी व्यक्ति किसी अभयारण्य में, ऐसी रीति से जिससे ऐसा अभयारण्य खतरे में पड़ जाये, न तो आग लगाएगा, न आग प्रज्वलित करेगा और न किसी आग को जलते हुए छोड़ेगा।
31. अभयारण्य में आयुध सहित प्रवेश का प्रतिषिद्ध होना
कोई भी व्यक्ति मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी की लिखित पूर्व अनुज्ञा से ही किसी आयुध सहित किसी अभयारण्य में प्रवेश करेगा अन्यथा नहीं।
32. क्षतिकर पदार्थ के प्रयोग पर रोक
कोई भी व्यक्ति किसी अभयारण्य में रसायनों, विस्फोटकों या किन्हीं अन्य पदार्थों का, जो ऐसे अभयारण्य के किसी वन्य जीव को क्षति पहुँचा सकें, या खतरे में डाल सकें, प्रयोग नहीं करेगा।
33. अभयारण्यों का नियंत्रण
मुख्य वन्य जीव संरक्षक ऐसा प्राधिकारी होगा जो सभी अभयारण्यों का नियंत्रण करेगा, उनका प्रबन्ध करेगा और उन्हें बनाए रखेगा और उस प्रयोजन के लिये वह किसी अभयारण्य की सीमाओं के भीतर,-
(क) ऐसी सड़कें, पुल, भवन, बाड़ या रोक फाटक सन्निर्मित कर सकेगा, तथा ऐसे अन्य संकर्मों को जो वह ऐसे अभयारण्य के प्रयोजनों के लिये आवश्यक समझे विनिर्मित कर सकेगा;
1{परन्तु किसी अभयारण्य के भीतर वाणिज्यिक पर्यटक लॉज, होटलों, चिड़ियाघरों और सफारी उपवनों का सन्निर्माण राष्ट्रीय बोर्ड के पूर्व अनुमोदन के सिवाय नहीं किया जाएगा;}
(ख) ऐसे कदम उठाएगा, जो अभयारण्य में वन्य प्राणियों की सुरक्षा तथा अभयारण्य और उसमें वन्य प्राणियों का परिरक्षण सुनिश्चित करे;
(ग) वन्य जीवों के हित मे ऐसे उपाय कर सकेगा जो वह किसी आवास के सुधार के लिये आवश्यक समझे;
(घ) वन्य जीवों के हित के अनुकूल 2{पशुधन} के चरने या संचलन को विनियमित, नियंत्रित या प्रतिषिद्ध कर सकेगा;
4{33क. पशुधन का असंक्रमीकरण-
(1) मुख्य वन्य जीव संरक्षक अभयारण्य या उससे पाँच किलोमीटर के भीतर रखे गए पशुधन में संचारी रोगों के असंक्रमीकरण के लिये, ऐसी रीति में ऐसे उपाय, जो विहित किये जाएँ, करेगा।
(2) कोई भी व्यक्ति असंक्रमित कराए बिना किसी पशुधन को किसी अभयारण्य में न तो ले जाएगा, न ले जाने देगा, न चराएगा।}
5{33ख. सलाहकार समिति
(1) राज्य सरकार, एक सलाहकार समिति का गठन करेगी जिसका अध्यक्ष मुख्य वन्य जीव संरक्षक अथवा उसके द्वारा नाम निर्दिष्ट व्यक्ति जो वनपाल से नीचे की पंक्ति का न हो, होगा तथा उसमें उस राज्य विधान-मण्डल का सदस्य, जिसके निर्वाचन-क्षेत्र में वह अभयारण्य स्थित है, पंचायतीराज संस्थाओं के तीन प्रतिनिधि, गैर-सरकारी संगठनों के दो प्रतिनिधि, वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय तीन व्यक्ति, गृह और पशुपालन मामलों से सम्बद्ध विभागों के एक-एक प्रतिनिधि, अवैतनिक वन्य जीव संरक्षक, यदि कोई हो, तथा अभयारण्य का भारसाधक अधिकारी सदस्य-सचिव के रूप में सम्मिलित होंगे।
(2) समिति, अभयारण्य के भीतर और उसके आस-पास रहने वाले लोगों की भागीदारी सहित अभयारण्य के बेहतर संरक्षण और प्रबन्ध के लिये किये जाने वाले उपायों के सम्बन्ध में सलाह देगी।
(3) यह समिति अपनी स्वयं की प्रक्रिया को, जिसके अन्तर्गत गणपूर्ति भी है, विनियमित करेगी।}
34. आयुध रखने वाले कतिपय व्यक्तियों का रजिस्ट्रीकरण
(1) किसी भी क्षेत्र के अभयारण्य के रूप में घोषित किये जाने के तीन मास के भीतर, प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो ऐसे किसी अभयारण्य के दस किलोमीटर के भीतर निवास कर रहा है और आयुध रखने के लिये आयुध अधिनियम, 1959 (1959 का 54) के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति धारण करता है या जो उस अधिनियम के उपबन्धों से छूट प्राप्त है और उसके पास आयुध है, ऐसे प्रारूप में और ऐसी फीस का सन्दाय करके तथा ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाये, मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को अपने नाम के रजिस्ट्रीकरण के लिये आवेदन करेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर मुख्य वन्य जीव संरक्षक या अधिकारी आवेदक का नाम ऐसी रीति में रजिस्ट्रीकृत करेगा जो विहित की जाये।
6{(3) आयुध अधिनियम, 1959 के अधीन कोई नई अनुज्ञप्ति, अभयारण्य की दस किलोमीटर की परिधि के भीतर, मुख्य वन्य जीव संरक्षक की पूर्व सहमति के बिना, नहीं दी जाएगी।}
7{34क. अतिक्रमण को हटाने की शक्ति
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, कोई अधिकारी जो सहायक वनपाल से नीचे की पंक्ति का न हो-
(क) इस अधिनियम के उपबन्धों के उल्लंघन में अप्राधिकृत रूप से सरकारी भूमि पर कब्जा करने वाले किसी भी व्यक्ति को अभयारण्य अथवा राष्ट्रीय उपवन से बेदखल कर सकेगा;
(ख) किसी अभयारण्य अथवा राष्ट्रीय उपवन के भीतर किसी सरकारी भूमि पर परिनिर्मित किसी अप्राधिकृत संरचना, भवन अथवा सन्निर्माण को हटा सकेगा और उस व्यक्ति की सभी वस्तुएँ, औजार और चीजबस्त को, ऐसे किसी अधिकारी के आदेश द्वारा, जो उप वनपाल की पंक्ति से नीचे का न हो, समपहृत कर लिया जाएगा:
परन्तु ऐसा कोई आदेश तब तक पारित नहीं किया जाएगा जब तक प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर प्रदान नहीं कर दिया जाता है।
(2) इस धारा के उपबन्ध किसी अन्य शास्ति के होते हुए भी, जो इस अधिनियम के किसी अन्य उपबन्ध के अतिक्रमण के लिये अधिरोपित की जा सकेगी, लागू होंगे।}
राष्ट्रीय उपवन
35. राष्ट्रीय उपवनों की घोषणा
(1) जब कभी राज्य सरकार को यह प्रतीत होता है कि कोई क्षेत्र जो किसी अभयारण्य के भीतर है या नहीं, अपने पारिस्थितिक, प्राणी-जात, वनस्पति-जात, भू-आकृति विज्ञान जात या प्राणी विज्ञान-जात महत्त्व के कारण उसमें वन्य जीवों के और उसके पर्यावरण के संरक्षण, संवर्धन या विकास के प्रयोजन के लिये राष्ट्रीय उपवन के रूप में गठित किया जाना आवश्यक है, तो वह अधिसूचना द्वारा ऐसे क्षेत्र को राष्ट्रीय उपवन के रूप में गठित करने के अपने आशय की घोषणा कर सकेगी:
1{परन्तु जहाँ राज्य क्षेत्रीय सागरखण्ड के किसी भाग को ऐसे राष्ट्रीय उपवन में सम्मिलित करना प्रस्थापित है वहाँ धारा 26क के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, राष्ट्रीय उपवन की घोषणा के सम्बन्ध में उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे किसी अभयारण्य की घोषणा के सम्बन्ध में लागू होते हैं।}
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट अधिसूचना में उस क्षेत्र की सीमाएँ परिनिश्चित की जाएँगी जिसे राष्ट्रीय उपवन के रूप में घोषित करने का आशय है।
(3) जहाँ किसी क्षेत्र को राष्ट्रीय उपवन के रूप में घोषित करने का आशय है वहाँ 2{धारा 19 से धारा 26क के (जिसमें धारा 24 की उपधारा (2) के खण्ड (ग) के सिवाय ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित हैं)} उपबन्ध यथाशक्य ऐसे क्षेत्र में किसी भूमि के सम्बन्ध में दावों के अन्वेषण और अवधारण को तथा अधिकारों के निर्वापन को वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अभयारण्य में किसी भूमि के सम्बन्ध में उक्त बातों के बारे में लागू होते हैं।
(4) जब निम्नलिखित घटनाएँ घटित हो गई है, अर्थात:-
(क) दावे करने की अवधि बीत चुकी है और राष्ट्रीय उपवन के रूप में घोषित किये जाने के लिये आशयित किसी क्षेत्र में किसी भूमि के सम्बन्ध में किये गए दावे, यदि कोई हों, राज्य सरकार द्वारा निपटा दिये गए हैं, और
(ख) राष्ट्रीय उपवन में सम्मिलित किये जाने के लिये प्रस्थापित भूमि के बारे में सभी अधिकार राज्य सरकार में निहित हो गए हैं, तब राज्य सरकार अधिसूचना प्रकाशित करेगी जिसमें क्षेत्र की वे सीमाएँ विनिर्दिष्ट की जाएँगी जो राष्ट्रीय उपवन में समाविष्ट होंगी और यह घोषित करेगी कि उक्त क्षेत्र ऐसी तारीख को और से, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाये, राष्ट्रीय उपवन होगा।
3{(5) राज्य सरकार द्वारा किसी राष्ट्रीय उपवन की सीमाओं में कोई परिवर्तन राष्ट्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही किया जाएगा अन्यथा नहीं।
(6) कोई भी व्यक्ति मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा दी गई किसी अनुज्ञा के अधीन और उसके अनुसार के सिवाय, किसी कार्य द्वारा वह चाहे जो भी हो, किसी राष्ट्रीय पार्क में वनोत्पाद सहित किसी वन्य जीवन को नष्ट नहीं करेगा, उसका विदोहन नहीं करेगा या उसको नहीं हटाएगा अथवा राष्ट्रीय पार्क में या उसके बाहर जल के प्रवाह का अपवर्तन नहीं करेगा, उसे रोकेगा नहीं अथवा उसमें वृद्धि नहीं करेगा और कोई ऐसी अनुज्ञा तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि राज्य सरकार, बोर्ड के परामर्श से, यह समाधान हो जाने पर कि राष्ट्रीय पार्क से किसी वन्य जीव को इस प्रकार हटाया जाना या राष्ट्रीय पार्क में या उसके बाहर जल के प्रवाह में ऐसा परिवर्तन वहाँ के वन्य जीवन के सुधार और अधिक अच्छे परिवर्तन के लिये आवश्यक है, ऐसे अनुज्ञापत्र का जारी किया जाना प्राधिकृत नहीं करती है:
परन्तु जहाँ किसी राष्ट्रीय उपवन से वनोत्पाद को हटाया जाता है, वहाँ उसका उपयोग राष्ट्रीय उपवन में अथवा उसके आस-पास रहने वाले लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किया जा सकेगा और किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिये उसका उपयोग नहीं किया जाएगा।}
(7) किसी 1{पशुधन, को सिवाय उस दशा के जिसमें कि ऐसे 1{पशुधन} का, ऐसे राष्ट्रीय उपवन में प्रवेश करने के लिये प्राधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा यान के रूप में उपयोग किया जाता है, किसी राष्ट्रीय उपवन में चरने नहीं दिया जाएगा और किसी (पशुधन) को उसमें प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा।
(8) धारा 27 और धारा 28, धारा 30 से धारा 32 (जिसमें ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित हैं) और 2{धारा 33, धारा 33क, के खण्ड (क), खण्ड (ख) और खण्ड (ग) तथा धारा 34 के उपबन्ध किसी राष्ट्रीय उपवन के सम्बन्ध में यावत्शक्य वैसे ही लागू होंगे जैसे वे अभयारण्य के सम्बन्ध में लागू होते हैं।
3{स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये, किसी ऐसे क्षेत्र की दशा में, चाहे वह अभयारण्य में हो या न हो, जहाँ अधिकारों को निर्वापित कर दिया गया है और भूमि किसी विधि के अधीन या अन्यथा राज्य सरकार में निहित हो गई है, वहाँ उसके द्वारा ऐसे क्षेत्र को अधिसूचना द्वारा, राष्ट्रीय उपवन अधिसूचित किया जा सकेगा और धारा 19 से धारा 26 तक (दोनों धाराओं को सम्मिलित करते हुए) के अधीन कार्यवाहियाँ तथा इस धारा की उपधारा (3 ) और उपधारा (4) के उपबन्ध लागू नहीं होंगे।}
36. वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1991 की धारा 24 द्वारा (2-10-1991 से) निरसित।
4{36क. संरक्षण आरक्षिति की घोषणा और प्रबन्धन
(1) राज्य सरकार, स्थानीय समुदायों के साथ परामर्श करने के पश्चात, सरकार के स्वामित्वाधीन किसी क्षेत्र को, विशिष्टतः ऐसे क्षेत्रों को, जो राष्ट्रीय उपवनों और अभयारण्यों के पार्श्वस्थ हैं और ऐसे क्षेत्रों को जो एक संरक्षित क्षेत्र को दूसरे संरक्षित क्षेत्र से जोड़ते हैं, भू-परिदृश्यों, समुद्री परिदृश्यों, वनस्पतियों तथा प्राणियों और उनके आवास की सुरक्षा करने के लिये संरक्षण आरक्षिति के रूप में घोषित कर सकेगी:
परन्तु जहाँ संरक्षण आरक्षिति में ऐसी कोई भूमि सम्मिलित है, जो केन्द्रीय सरकार के स्वामित्वाधीन हो तो ऐसी घोषणा करने के पूर्व केन्द्रीय सरकार की अनुमति प्राप्त की जाएगी।
(2) धारा 18 की उपधारा (2), धारा 27 की उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), धारा 30, धारा 32 तथा धारा 33 के खण्ड (ख) और खण्ड (ग) के उपबन्ध किसी संरक्षण आरक्षिति के सम्बन्ध में, यावत्शक्य वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अभयारण्य के सम्बन्ध में लागू होते हैं।
36ख. संरक्षण आरक्षिति प्रबन्ध समिति
(1) राज्य सरकार, संरक्षण आरक्षिति के सरंक्षण, प्रबन्धन और उसके रख-रखाव में मुख्य वन्य जीव संरक्षक को सलाह देने के लिये एक संरक्षण आरक्षिति प्रबन्ध समिति का गठन करेगी।
(2) समिति में वन अथवा वन्य जीव विभाग का एक प्रतिनिधि, जो समिति का सदस्य-सचिव होगा, उस प्रत्येक ग्राम पंचायत का, जिसकी अधिकारिता में आरक्षिति अवस्थित है, एक प्रतिनिधि, वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में कार्यरत गैर-सरकारी संगठनों के तीन प्रतिनिधि तथा कृषि और पशुपालन विभागों के एक-एक प्रतिनिधि होंगे।
(3) समिति अपनी स्वयं की प्रक्रिया जिसमें गणपूर्ति भी है, विनियमित करेगी।
36ग. सामुदायिक आरक्षिति की घोषणा और प्रबन्ध
(1) राज्य सरकार, जहाँ किसी समुदाय अथवा किसी व्यष्टि ने वन्य जीवों और उनके आवासों के संरक्षण के लिये स्वेच्छा प्रकट की है, किसी प्राइवेट अथवा सामुदायिक भूमि को, जो राष्ट्रीय उपवन, अभयारण्य अथवा किसी संरक्षण आरक्षिति में समाविष्ट हो, प्राणी, वनस्पति और परम्परागत या सांस्कृतिक संरक्षण मूल्यों और प्रथाओं की संरक्षा करने के लिये सामुदायिक आरक्षिति के रूप में घोषित कर सकेगी।
(2) धारा 18 की उपधारा (2), धारा 27 की उपधारा (2), उपधारा (3), उपधारा (4), धारा 30, धारा 32 और धारा 33 के खण्ड (ख) और खण्ड (ग) के उपबन्ध को किसी सामुदायिक आरक्षिति के सम्बन्ध में, यावत्शक्य वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अभयारण्य के सम्बन्ध में लागू होते हैं।
(3) उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना जारी होने के पश्चात, प्रबन्ध समिति द्वारा पारित संकल्प और राज्य सरकार द्वारा उसे अनुमोदित किये गए अनुसार ही सामुदायिक आरक्षिति के भीतर भूमि प्रयोग पैटर्न में कोई परिवर्तन किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
36घ. सामुदायिक आरक्षिति प्रबन्ध समिति
(1) राज्य सरकार, एक सामुदायिक आरक्षिति प्रबन्ध समिति का गठन करेगी जो सामुदायिक आरक्षिति का संरक्षण, रख-रखाव तथा प्रबन्ध करने के लिये जिम्मेदार प्राधिकारी, होगी।
(2) समिति, ग्राम पंचायत द्वारा अथवा जहाँ ऐसी पंचायत नहीं है वहाँ ग्रामसभा के सदस्यों द्वारा नामनिर्दिष्ट पाँच प्रतिनिधियों और राज्य वन विभाग अथवा उस वन्य जीव विभाग के, जिसकी अधिकारिता के अधीन सामुदायिक आरक्षिति अवस्थित है, एक प्रतिनिधि से मिलकर बनेगी।
(3) समिति, समुदाय आरक्षिति के लिये प्रबन्ध योजना तैयार करने और उसे क्रियान्वित करने तथा आरक्षिति में वन्य जीवों और उनके आवासों की संरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने के लिये सक्षम प्राधिकारी होगी।
(4) समिति, एक अध्यक्ष का चयन करेगी जो सामुदायिक आरक्षिति का अवैतनिक वन्य जीव संरक्षक भी होगा।
(5) समिति अपनी स्वयं की प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत गणपूर्ति भी है, विनियमित करेगी।}
निषिद्ध क्षेत्र
केन्द्रीय सरकार द्वारा घोषित अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन
38. क्षेत्रों की अभयारण्य और राष्ट्रीय उपवन घोषित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-
(1) जहाँ राज्य सरकार अपने नियंत्रणाधीन कोई क्षेत्र, जो किसी अभयारण्य के भीतर का क्षेत्र नहीं है केन्द्रीय सरकार को पट्टे पर दे देती है या अन्यथा अन्तरित कर देती है वहाँ यदि केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि धारा 18 में विनिर्दिष्ट शर्तें उसे इस प्रकार अन्तरित किये गए क्षेत्र के बारे में पूरी कर दी गई हैं तो वह अधिसूचना द्वारा ऐसे क्षेत्र को अभयारण्य घोषित कर सकेगी और 1{धारा 18 से धारा 35, (जिसमें ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित हैं), धारा 54 और धारा 55 के उपबन्ध ऐसे अभयारण्य के बारे में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे राज्य सरकार द्वारा घोषित किसी अभयारण्य के बारे में लागू होते हैं।
(2) यदि केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि धारा 35 में विनिर्दिष्ट शर्तें उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किसी क्षेत्र के बारे में, चाहे ऐसा क्षेत्र केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा अभयारण्य घोषित किया गया है या नहीं, पूरी हो गई हैं तो वह अधिसूचना द्वारा ऐसे क्षेत्र को राष्ट्रीय उपवन घोषित कर सकेगी और धारा 35, धारा 54 और धारा 55 के उपबन्ध ऐसे राष्ट्रीय उपवन के बारे में वैसे ही लागू होंगे, जैसे वे राज्य सरकार द्वारा घोषित किसी राष्ट्रीय उपवन के बारे में लागू होते हैं।
(3) केन्द्रीय सरकार द्वारा घोषित किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन के बारे में उपधारा (1) और उपधारा (2) में निर्दिष्ट धाराओं के अधीन मुख्य वन्य जीव संरक्षक की शक्तियों और कर्तव्यों का प्रयोग और निर्वहन निदेशक द्वारा या ऐसे अन्य अधिकारी द्वारा जो निदेशक द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किया जाये, किया जाएगा, तथा पूर्वोक्त धाराओं में राज्य सरकार के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे केन्द्रीय सरकार के प्रति निर्देश हैं तथा उनमें राज्य के विधान-मण्डल के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह संसद के प्रति निर्देश हैं।
2{अध्याय 4 क}
केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और चिड़ियाघरों को मान्यता
38क. केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण का गठन
(1) केन्द्रीय सरकार, एक निकाय, जिसे केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण कहा जाएगा (जिसे इस अध्याय में इसके पश्चात प्राधिकरण कहा गया है) इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और सौंपे गए कृत्यों का पालन करने के लिये गठित करेगी।
(2) प्राधिकरण में-
(क) अध्यक्ष;
(ख) दस से अनधिक सदस्य; और
(ग) सदस्य-सचिव, होंगे, जिनकी नियुक्ति केन्द्रीय सरकार द्वारा की जाएगी।}
38ख. अध्यक्ष और सदस्यों आदि की पदावधि और सेवा की शर्तें, आदि
(1) अध्यक्ष और 3{सदस्य-सचिव से भिन्न प्रत्येक सदस्य, तीन वर्ष से अनधिक ऐसी अवधि के लिये पद धारण करेगा जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त विनिर्दिष्ट करे।
(2) अध्यक्ष या कोई सदस्य, केन्द्रीय सरकार को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य का पद त्याग सकेगा।
(3) केन्द्रीय सरकार, किसी व्यक्ति को उपधारा (2) में निर्दिष्ट अध्यक्ष या किसी सदस्य के पद से हटा देगी यदि वह व्यक्ति-
(क) अनुन्मोचित दिवालिया हो जाता है;
(ख) ऐसे किसी अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराया जाता है और कारावास से दण्डादिष्ट किया जाता है जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में, नैतिक अधमता अन्तर्ग्रस्त है;
(ग) विकृतचित्त हो जाता है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित कर दिया जाता है;
(घ) कार्य करने से इनकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है;
(ङ) प्राधिकरण से अनुपस्थित रहने की इजाजत लिये बिना प्राधिकरण के लगातार तीन अधिवेशनों में अनुपस्थित रहता है; या
(च) केन्द्रीय सरकार की राय में उसने अध्यक्ष या सदस्य के पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि उस व्यक्ति का पद पर बने रहना लोक हित के लिये अहितकर है:
परन्तु इस खण्ड के अधीन किसी व्यक्ति को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति को इस विषय में सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया गया है।
(4) उपधारा (2) के अधीन या अन्यथा होने वाली रिक्ति नए सिरे से नियुक्ति करके भरी जाएगी।
(5) प्राधिकरण के अध्यक्ष, सदस्यों और सदस्य-सचिव के वेतन और भत्ते तथा उनकी नियुक्ति की अन्य शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।
(6) प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से, ऐसे अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को नियोजित करेगा, जो वह प्राधिकरण के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिये, आवश्यक समझे।
(7) प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।
(8) प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी या अविधिमान्य नहीं होगी कि प्राधिकरण के गठन में कोई रिक्ति या त्रुटि है।
38ग. प्राधिकरण के कृत्य
प्राधिकरण निम्नलिखित कृत्यों का पालन करेगा, अर्थात:-
(क) किसी चिड़ियाघर में रखे गए प्राणियों के आवास, अनुरक्षण और चिकित्सीय देखभाल के लिये न्यूनतम मानक विनिर्दिष्ट करना;
(ख) ऐसे मानकों या मापदण्डों की बाबत जो विहित किये जाएँ, चिड़ियाघरों के कार्यकरण का मूल्यांकन और निर्धारण करनाः
(ग) चिड़ियाघरों को मान्यता देना या उनकी मान्यता वापस लेना;
(घ) बन्दी रूप में प्रजनन के प्रयोजनों के लिये वन्य प्राणियों की संकटापन्न जातियों का पता लगाना और इस सम्बन्ध में किसी चिड़ियाघर को उत्तरदायित्व सौंपना;
(ङ) प्रजनन के प्रयोजनों के लिये प्राणियों के अर्जन, आदान-प्रदान और उधार पर लेने-देने का समन्वय करना;
(च) बन्दी रूप में प्रजनित वन्य प्राणी की संकटापन्न जातियों की अध्ययन पुस्तिकाओं को बनाए रखना सुनिश्चित करना;
(छ) किसी चिड़ियाघर में बन्दी प्राणियों के प्रदर्शन की बाबत पूर्विकताओं और विषयवस्तुओं का पता लगाना;
(ज) भारत में और भारत के बाहर चिड़ियाघर के कार्मिकों के प्रशिक्षण का समन्वय करना;
(झ) चिड़ियाघरों के प्रयोजनों के लिये बन्दी रूप में प्रजनन के सम्बन्ध में अनुसन्धान और शैक्षिक कार्यक्रमों का समन्वय करना;
(ञ) चिड़ियाघरों के वैज्ञानिक आधार पर उचित प्रबन्ध और विकास के लिये, उन्हें तकनीकी और अन्य सहायता प्रदान करना;
(ट) ऐसे अन्य कृत्यों का पालन करना जो चिड़ियाघरों के सम्बन्ध में इस अधिनियम के प्रयोजनों को क्रियान्वित करने के लिये आवश्यक हों।
38घ. प्रक्रिया का प्राधिकरण द्वारा विनियमित किया जाना
(1) प्राधिकरण का, जब कभी आवश्यक हो, अधिवेशन होगा और अधिवेशन ऐसे समय तथा स्थान पर होगा जो अध्यक्ष ठीक समझे।
(2) प्राधिकरण अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा।
(3) प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्यक रूप से प्राधिकृत प्राधिकरण के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किये जाएँगे।
38ङ. प्राधिकरण को अनुदान और उधार तथा निधि का गठन
(1) केन्द्रीय सरकार, इस निमित्त संसद द्वारा विधि द्वारा किये गए सम्यक विनियोग के पश्चात प्राधिकरण को अनुदान और ऋण की उतनी धनराशि दे सकेगी जो वह सरकार आवश्यक समझे।
(2) केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण निधि के नाम से ज्ञात एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें केन्द्रीय सरकार द्वारा प्राधिकरण को दिये गए किन्हीं अनुदानों और ऋणों, प्राधिकरण द्वारा इस अधिनियम के अधीन प्राप्त सभी फीसों और प्रभारों तथा प्राधिकरण द्वारा ऐसे अन्य स्रोतों से, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किये जाएँ, प्राप्त सभी राशियों को जमा किया जाएगा।
(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट निधि का उपयोजन प्राधिकरण के सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्तों तथा अन्य पारिश्रमिक को चुकाने और इस अध्याय के अधीन प्राधिकरण के कृत्यों के निर्वहन में उसके खर्चों और इस अधिनियम द्वारा प्राधिकृत उद्देश्यों और प्रयोजनों के खर्चों को पूरा करने के लिये किया जाएगा।
(4) प्राधिकरण उचित लेखे अन्य सुसंगत अभिलेख बनाए रखेगा तथा लेखाओं का एक वार्षिक विवरण ऐसे प्रारूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के परामर्श से विहित किया जाये।
(5) प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ और ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उपगत कोई व्यय प्राधिकरण द्वारा नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सन्देय होगा।
(6) नियंत्रक-महालेखा परीक्षक और उसके द्वारा इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में नियुक्त किसी व्यक्ति को ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में वही अधिकार तथा विशेषाधिकार और प्राधिकार होंगे जो नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को साधारणतया सरकारी लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में हैं और विशिष्टतया उसे बहियों, लेखाओं, सम्बन्धित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों और कागज-पत्रों के पेश किये जाने की माँग करने और प्राधिकरण के किसी भी कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।
(7) नियंत्रक-महालेखा परीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित प्राधिकरण के लेखे, उनकी सम्परीक्षा रिपोर्ट के साथ प्राधिकरण द्वारा प्रतिवर्ष केन्द्रीय सरकार को भेजे जाएँगे।
38च. वार्षिक रिपोर्ट
प्राधिकरण प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये ऐसे प्रारूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का पूर्ण विवरण होगा तथा उसकी एक प्रति केन्द्रीय सरकार को भेजेगा।
38छ. वार्षिक रिपोर्ट और सम्परीक्षा रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना
केन्द्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट को और उसके साथ उसमें अन्तर्विष्ट ऐसी सिफारिशों पर, जहाँ तक वे केन्द्रीय सरकार से सम्बन्धित हैं, की गई कार्रवाई और ऐसी किन्हीं सिफारिशों के स्वीकार न किये जाने के कारणों के, यदि कोई हों, ज्ञापन को और सम्परीक्षा रिपोर्ट को, ऐसी रिपोर्टों के प्राप्त होने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।
38ज. चिड़ियाघरों को मान्यता
(1) कोई भी चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा मान्यता दिये बिना संचालित नहीं किया जाएगा:
परन्तु वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ की तारीख के ठीक पूर्व संचालित किया जा रहा कोई भी चिड़ियाघर 1{ऐसे प्रारम्भ की तारीख से अठारह मास, की अवधि के लिये मान्यता प्राप्त किये बिना संचालित किया जा सकेगा और यदि मान्यता प्राप्त करने के लिये आवेदन उस अवधि के भीतर किया जाता है तो उस चिड़ियाघर को उक्त आवेदन के अन्तिम रूप से विनिश्चित किये जाने या वापस लिये जाने तक संचालित किया जा सकेगा और नामंजूर किये जाने की दशा में ऐसे नामंजूर किये जाने की तारीख से छह मास की और अवधि के लिये संचालित किया जा सकेगा।
2{(1क) वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ और उसके पश्चात कोई चिड़ियाघर, प्राधिकरण पूर्व अनुमोदन प्राप्त किये बिना, स्थापित नहीं किया जाएगा।}
(2) किसी चिड़ियाघर की मान्यता के लिये प्रत्येक आवेदन प्राधिकरण को ऐसे प्रारूप में और ऐसी फीस के सन्दाय पर किया जाएगा जो विहित की जाये।
(3) प्रत्येक मान्यता में, ऐसी शर्तें, यदि कोई हों, विनिर्दिष्ट होंगी जिनके अधीन आवेदक चिड़ियाघर संचालित करेगा।
(4) किसी चिड़ियाघर को मान्यता तब तक नहीं दी जाएगी जब तक प्राधिकरण का, वन्य जीव के परिरक्षण और संरक्षण के हितों का और ऐसे मानकों, मापदण्डों तथा अन्य बातों का, जो विहित की जाएँ, सम्यक ध्यान रखते हुए यह समाधान नहीं हो जाता है कि मान्यता दी जानी चाहिए।
(5) किसी चिड़ियाघर की मान्यता के लिये आवेदन तब तक नामंजूर नहीं किया जाएगा जब तक आवेदन को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया गया हो।
(6) प्राधिकरण, ऐसे कारणों से जो उसके द्वारा लेखबद्ध किये जाएँगे, उपधारा (4) के अधीन अनुदत्त किसी मान्यता को निलम्बित या रद्द कर सकेगा:
परन्तु कोई ऐसा निलम्बन या रद्दकरण तब तक नहीं किया जाएगा जब तक चिड़ियाघर संचालित करने वाले व्यक्ति को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दे दिया गया हो।
(7) उपधारा (5) के अधीन किसी चिड़ियाघर को मान्यता देना नामंजूर करने वाले किसी आदेश या उपधारा (6) के अधीन किसी मान्यता को निलम्बित या रद्द करने वाले किसी आदेश के विरुद्ध अपील केन्द्रीय सरकार को होगी।
(8) उपधारा (7) के अधीन अपील, आवेदक को उस आदेश की, जिसके विरुद्ध अपील की जाएगी, संसूचना की तारीख से तीस दिन के भीतर की जाएगी:
परन्तु केन्द्रीय सरकार पूर्वोक्त की समाप्ति के पश्चात की गई कोई अपील ग्रहण कर सकेगी यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि आवेदक के पास समय पर अपील न करने के लिये पर्याप्त हेतुक था।
1{38झ. किसी चिड़ियाघर द्वारा प्राणियों का अर्जन
(1) इस अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई भी चिड़ियाघर अनुसूची 1 और अनुसूची 2 में विनिर्दिष्ट किसी वन्य जीव अथवा बन्दी प्राणी का अर्जन, विक्रय या अन्तरण प्राधिकरण की पूर्व अनुज्ञा से ही करेगा, अन्यथा नहीं।
(2) कोई भी चिड़ियाघर, वन्य प्राणियों अथवा बन्दी प्राणियों का अर्जन, विक्रय या अन्तरण किसी मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर से या को ही करेगा, अन्यथा नहीं।}
38ञ. किसी चिड़ियाघर में तंग करने आदि का प्रतिषेध
कोई भी व्यक्ति किसी चिड़ियाघर में किसी प्राणी को तंग, उत्पीड़ित नहीं करेगा, उसे क्षति नहीं पहुँचाएगा, न ही उसे खिलाएगा अथवा शोर करके या अन्यथा प्राणियों को विक्षुब्ध नहीं करेगा या भूमि को अव्यवस्थित नहीं करेगा।}
2{अध्याय 4ख}
राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण
38ट. परिभाषाएँ
इस अध्याय में,-
(क) “राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण” से धारा 38ठ के अधीन गठित व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(ख) “संचालन समिति” से धारा 38प के अधीन गठित समिति अभिप्रेत है;
(ग) “व्याघ्र संरक्षण प्रतिष्ठान” से धारा 38भ के अधीन स्थापित प्रतिष्ठान अभिप्रेत है;
(घ) “व्याघ्र आरक्षिति राज्य” से ऐसा कोई राज्य अभिप्रेत है जिसमें व्याघ्र आरक्षिति है;
(ङ) “व्याघ्र आरक्षिति” से धारा 38फ के अधीन अधिसूचित क्षेत्र अभिप्रेत है ।
38ठ. राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण का गठन
(1) केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के नाम से ज्ञात एक निकाय (जिसे इस अध्याय में इसके पश्चात व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण कहा गया है), का गठन करेगी जो इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग और सौंपे गए कृत्यों का पालन करेगा।
(2) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचित किये जाएँ, अर्थात:-
(क) पर्यावरण और वन मंत्रालय का भारसाधक मंत्री-अध्यक्ष;
(ख) पर्यावरण और वन मंत्रालय में राज्यमंत्री-उपाध्यक्ष;
(ग) तीन संसद सदस्य, जिनमें से दो लोकसभा द्वारा और एक राज्यसभा द्वारा निर्वाचित किये जाएँगे;
(घ) आठ विशेषज्ञ या वृत्तिक जिनके पास वन्य जीव संरक्षण और व्याघ्र आरक्षिति में निवास कर रहे व्यक्तियों के कल्याण में विहित अर्हताएँ और अनुभव हैं; जिनमें से कम-से-कम दो जनजातीय विकास के क्षेत्र से होंगे;
(ङ) सचिव, पर्यावरण और वन मंत्रालय;
(च) वन महानिदेशक और विशेष सचिव, पर्यावरण और वन मंत्रालय;
(छ) निदेशक, वन्य जीव परिरक्षण, पर्यावरण और वन मंत्रालय;
(ज) व्याघ्र आरक्षिति राज्यों से चक्रानुक्रम से तीन वर्ष के लिये छह मुख्य वन्य जीव संरक्षक;
(झ) विधि और न्याय मंत्रालय से कोई अधिकारी जो संयुक्त सचिव और विधायी परामर्श की पंक्ति से नीचे का न हो;
(ञ) सचिव, जनजाति मामले मंत्रालय;
(ट) सचिव, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय;
(ठ) अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग;
(ड) अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग;
(ढ) सचिव, पंचायती राज मंत्रालय;
(ण) वन महानिरीक्षक या समतुल्य पंक्ति का कोई अधिकारी जिसके पास व्याघ्र आरक्षिति या वन्य प्राणी प्रबन्धन में कम-से-कम दस वर्ष का अनुभव हो, जो सदस्य-सचिव होगा।
(3) यह घोषणा की जाती है कि व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के सदस्य का पद उसके धारक को संसद के किसी भी सदन का सदस्य चुने जाने से या होने से निरर्हित नहीं करेगा।
38ङ. सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्तें
(1) धारा 38ठ की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के अधीन नाम निर्देशित सदस्य तीन वर्ष से अनधिक की अवधि के लिये पद धारण करेगा:
परन्तु कोई सदस्य केन्द्रीय सरकार को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने पद का त्याग कर सकेगा।
(2) केन्द्रीय सरकार धारा 38ठ की उपधारा (2) के खण्ड (घ) में निर्दिष्ट किसी सदस्य को उसके पद से हटा देगी यदि वह-
(क) न्यायनिर्णित दिवालिया है या किसी समय रहा है;
(ख) ऐसे किसी अपराध के लिये सिद्धदोष ठहरा दिया गया है, जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है;
(ग) विकृतचित्त है और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित कर दिया गया है;
(घ) कार्य करने से इनकार करता है या कार्य करने में असमर्थ हो जाता है;
(ङ) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण से अनुपस्थित रहने की इजाजत लिये बिना उक्त प्राधिकरण के लगातार तीन अधिवेशनों में अनुपस्थित रहता है; या
(च) केन्द्रीय सरकार की राय में उसने अपने पद का इस प्रकार दुरुपयोग किया है कि उसका उस पद पर बने रहना लोकहित के लिये अहितकर है:
परन्तु इस उपधारा के अधीन किसी सदस्य को तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक कि उसको उस विषय में सुनवाई का उचित अवसर न दे दिया गया हो।
(3) किसी सदस्य के पद की कोई रिक्ति नए सिरे से नियुक्ति करके भरी जाएगी और ऐसा सदस्य उस सदस्य की शेष अवधि के लिये पद धारण करेगा जिसके स्थान पर उसे नियुक्त किया गया है।
(4) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा नियुक्ति की अन्य शर्तें वे होंगी, जो विहित की जाएँ।
(5) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी या अविधिमान्य नहीं होगी कि व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है।
38ढ. व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के अधिकारी और कर्मचारी
(1) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण, केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से इस अधिनियम के अधीन उसके कृत्यों का दक्षतापूर्ण निर्वहन करने के लिये ऐसे अन्य अधिकारी और कर्मचारी नियुक्त कर सकेगा, जिन्हें वह आवश्यक समझे:
परन्तु व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के गठन के ठीक पूर्व व्याघ्र परियोजना निदेशालय के अधीन पद धारण करने वाले और व्याघ्र परियोजना से सम्बन्धित अधिकारी और कर्मचारी उस तारीख से उक्त प्राधिकरण में उसी अवधि तक या छह मास की अवधि के समाप्त होने तक और उन्हीं निबन्धनों और शर्तों पर पद धारण करते रहेंगे यदि ऐसे कर्मचारी उस प्राधिकरण का कर्मचारी न होने का विकल्प देते हैं।
(2) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।
38ण. व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की शक्तियाँ और कृत्य
(1) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी और निम्नलिखित कृत्यों का निर्वहन करेगा, अर्थात:-
(क) इस अधिनियम की धारा 38फ की उपधारा (3) के अधीन राज्य सरकार द्वारा तैयार की गई व्याघ्र संरक्षण योजना का अनुमोदन करना;
(ख) रक्षणीय पारिस्थितिकी के विभिन्न पहलुओं का मूल्यांकन और निर्धारण तथा व्याघ्र आरक्षिति में पारिस्थितिकी की भूमि के अरक्षणीय उपयोग जैसे खनन उद्योग और अन्य परियोजनाओं को अननुज्ञात करना;
(ग) व्याघ्र आरक्षिति के मध्यवर्ती और आन्तरिक क्षेत्र में व्याघ्र संरक्षण के लिये समय-समय पर पर्यटन क्रियाकलाप के लिये प्रमाणिक मानक और व्याघ्र परियोजना के लिये मार्गदर्शक सिद्धान्त अधिकथित करना और उनका सम्यक अनुपालन सुनिश्चित करना;
(घ) राष्ट्रीय उपवन, अभयारण्य या व्याघ्र आरक्षिति के बाहर व्याघ्र वाले वन क्षेत्रों में मनुष्य और वन्य प्राणियों में टकराव और सह-अस्तित्व पर बल देने के लिये कार्यकरण योजना संहिता में प्रबन्ध के मुख्य क्षेत्र और उपायों का उपबन्ध करना;
(ङ) संरक्षण उपायों, जिनके अन्तर्गत भविष्य संरक्षण योजना, व्याघ्र और उसकी प्राकृतिक भक्ष्य प्रजातियों के जीवों की संख्या का प्राक्कलन, आवासियों की प्रास्थिति रोग निगरानी, मृत्यु-दर सर्वेक्षण, चौकसी करना, अनपेक्षित घटनाओं के सम्बन्ध में रिपोर्टों और ऐसे अन्य प्रबन्ध पहलुओं, जो आवश्यक प्रतीत हों, जिनके अन्तर्गत भविष्य योजना संरक्षण भी है, के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध कराना;
(च) व्याघ्र, सहप्रजातियों, भक्ष्य, आवास, सम्बन्धित पारिस्थितिकीय और सामाजिक आर्थिक मानदण्डों का अनुमोदन करना, उनके सम्बन्ध में अनुसन्धान का समन्वय करना और उनकी मानीटरी करना तथा उनका मूल्यांकन करना;
(छ) यह सुनिश्चित करना कि व्याघ्र आरक्षितियों और एक संरक्षित क्षेत्र या व्याघ्र आरक्षिति को, अन्य संरक्षित क्षेत्र या व्याघ्र आरक्षिति से जोड़ने वाले क्षेत्रों के पारिस्थितिकीय अरक्षणीय उपयोगों के लिये लोकहित और व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की सलाह पर राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड के अनुमोदन के सिवाय विचलित नहीं किया गया है;
(ज) केन्द्रीय और राज्य विधियों से सुसंगत निकटस्थ क्षेत्रों में पूर्व अनुमोदित प्रबन्ध योजनाओं के अनुसार राज्य में जैवविविधता संरक्षण पहलुओं के लिये पारिस्थितिकी के विकास और जनता की भागीदारी के माध्यम से व्याघ्र आरक्षिति प्रबन्धन को सुकर बनाना और उसका समर्थन करना;
(झ) व्याघ्र संरक्षण योजना के बेहतर कार्यान्वयन के लिये संकटकालीन सहायता जिसके अन्तर्गत वैज्ञानिक, सूचना प्रौद्योगिकी और विधिक सहायता भी है, सुनिश्चित करना;
(ञ) व्याघ्र आरक्षिति के अधिकारियों और कर्मचारीवृन्द की कुशलता के विकास के लिये चलाए जा रहे क्षमता निर्माण के कार्यक्रम को सुकर बनाना; और
(ट) इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिये ऐसेे अन्य कृत्यों का निर्वहन करना जो व्याघ्रों के संरक्षण और उनके आवास के सम्बन्ध में आवश्यक हों।
(2) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण इस अध्याय के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए और अपने कृत्यों का निर्वहन करते हुए, व्याघ्र आरक्षितियों में व्याघ्र संरक्षण के लिये किसी व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकारी को लिखित में निदेश दे सकेगा और ऐसा व्यक्ति, अधिकारी या प्राधिकारी निदेशों का अनुपालन करने के लिये आबद्ध होगा:
परन्तु ऐसा कोई निदेश स्थानीय लोगों, विशेषकर अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों में विघ्न नहीं डालेगा या उनको प्रभावित नहीं करेगा।
38त. व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा विनियमित की जाने वाली प्रक्रिया
(1) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण ऐसे समय तथा स्थान पर अधिवेशन करेगा, जो अध्यक्ष ठीक समझे।
(2) अध्यक्ष या उसकी अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के अधिवेशनों की अध्यक्षता करेगा।
(3) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा।
(4) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के सभी आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्यक रूप से प्राधिकृत उक्त प्राधिकरण के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किये जाएँगे।
38थ. व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण को अनुदान और उधार तथा निधि का गठन
(1) केन्द्रीय सरकार, इस निमित्त संसद द्वारा, विधि द्वारा किये गए सम्यक विनियोग के पश्चात व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण को उतनी धनराशि का अनुदान और उधार दे सकेगी जो वह सरकार आवश्यक समझे।
(2) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण निधि के नाम से एक निधि का गठन किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित जमा किया जाएगा-
(i) केन्द्रीय सरकार द्वारा व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण को दिये गए अनुदान और उधार;
(ii) इस अधिनियम के अधीन व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्राप्त की गई सभी फीसें और प्रभार; और
(iii) प्राधिकरण द्वारा ऐसे अन्य स्रोतों से जो, केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिश्चित किये जाएँ, प्राप्त सभी राशियाँ।
(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट निधि का उपयोजन, व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के सदस्यों, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के वेतन, भत्तों तथा अन्य पारिश्रमिक और इस अध्याय के अधीन व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के कृत्यों के निर्वहन में उपगत खर्चों को पूरा करने के लिये किया जाएगा।
38द. व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के लेखे और सम्परीक्षा
(1) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण उचित लेखे और अन्य सुसंगत अभिलेख रखेगा तथा लेखाओं का एक वार्षिक विवरण ऐसे प्रारूप में तैयार करेगा जो केन्द्रीय सरकार द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के परामर्श से विहित किया जाये।
(2) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक द्वारा ऐसे अन्तरालों पर की जाएगी जो उसके द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ और ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में उपगत कोई व्यय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को सन्देय होगा।
(3) भारत का नियंत्रक-महालेखा परीक्षक और उसके द्वारा व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी सम्परीक्षा के सम्बन्ध में वही अधिकार और विशेषाधिकार तथा प्राधिकार होंगे, जो नियंत्रक-महालेखा परीक्षक को साधारणतया सरकारी लेखाओं की सम्परीक्षा के सम्बन्ध में हैं और विशिष्टतया उसे बहियों, लेखाओं, सम्बन्धित वाउचरों तथा अन्य दस्तावेजों और कागजपत्रों के पेश किये जाने की माँग करने और प्राधिकरण के कार्यालय का निरीक्षण करने का अधिकार होगा।
(4) भारत के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति द्वारा यथाप्रमाणित व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के लेखे, उनकी सम्परीक्षा रिपोर्ट के साथ, व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रतिवर्ष केन्द्रीय सरकार को भेजे जाएँगे।
38ध. व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट
व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये ऐसे प्रारूप में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, अपनी वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा जिसमें पूर्ववर्ती वित्त वर्ष के दौरान उसके क्रियाकलापों का पूर्ण विवरण होगा तथा उसकी एक प्रति केन्द्रीय सरकार को भेजेगा।
38न. वार्षिक रिपोर्ट और सम्परीक्षा रिपोर्ट का संसद के समक्ष रखा जाना
केन्द्रीय सरकार, वार्षिक रिपोर्ट को और उसके साथ उसमें अन्तर्विष्ट ऐसी सिफारिशों पर जहाँ तक वे केन्द्रीय सरकार से सम्बन्धित हैं, की गई कार्रवाई ज्ञापन और ऐसी किन्हीं सिफारिशों के स्वीकार न किये जाने के कारणों को, यदि कोई हों और सम्परीक्षा रिपोर्ट को, ऐसी रिपोर्टों के प्राप्त होने के पश्चात यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगी।
38प. संचालन समिति का गठन
(1) राज्य सरकार, व्याघ्र रेंज राज्यों के भीतर व्याघ्र, सह परभक्षी और भक्ष्य पशुओं के समन्वय, मानिटरी, संरक्षा और संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये संचालन समिति का गठन कर सकेगी।
(2) संचालन समिति निम्नलिखित से मिलकर बनेगी जो राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचित किये जाएँ-
(क) मुख्यमंत्री-अध्यक्ष;
(ख) वन्य जीव का भारसाधक मंत्री-उपाध्यक्ष;
(ग) उतने सरकारी सदस्य जो पाँच से अधकि न हों, जिनके अन्तर्गत व्याघ्र आरक्षिति के दो क्षेत्र निदेशक या राष्ट्रीय उद्यान का निदेशक भी हैं, और उनमें से एक राज्य सरकारों के जनजातीय मामलों से सम्बन्धित विभागों से होगा;
(घ) तीन विशेषज्ञ या वृत्तिक जिनके पास वन्य जीव संरक्षण में अर्हताएँ और अनुभव हैं, जिनमें से कम-से-कम एक जनजाति विकास क्षेत्र से होगा;
(ङ) राज्य जनजाति सलाहकार परिषद से दो सदस्य;
(च) पंचायती राज तथा सामाजिक न्याय और अधिकारिता से सम्बन्धित राज्य सरकार के विभागों से प्रत्येक से एक प्रतिनिधि;
(छ) राज्य का मुख्य वन्य जीव संरक्षक पदेन सदस्य-सचिव होगा।
38फ. व्याघ्र संरक्षण योजना-
(1) राज्य सरकार, व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की सिफारिश पर किसी क्षेत्र को व्याघ्र आरक्षिति के रूप में अधिसूचित करेगी।
(2) इस अधिनियम की धारा 18 की उपधारा (2), धारा 27 की उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4), धारा 30, धारा 32 तथा धारा 33 के खण्ड (ख) और खण्ड (ग) के उपबन्ध यथाशक्य व्याघ्र आरक्षिति के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे किसी अभयारण्य को लागू होते हैं।
(3) राज्य सरकार, उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक क्षेत्र के समुचित प्रारूप के लिये व्याघ्र संरक्षण योजना जिसके अन्तर्गत कर्मचारीवृन्द विकास और अभिनियोजन योजना भी है, तैयार करेगी जिससे कि निम्नलिखित सुनिश्चित की जा सके-
(क) व्याघ्र आरक्षिति का संरक्षण और आवास में प्राकृतिक भक्ष्य-परभक्षी पारिस्थितिकी चक्र को विकृत किये बिना व्याघ्रो, सह परभक्षियों और भक्ष्य प्राणियों की व्यवहार्य संख्या के लिये विशिष्ट स्थल आवास निदेश उपलब्ध कराना;
(ख) स्थानीय व्यक्तियों की जीविका सम्बन्धी चिन्ताओं को हल करने के लिये व्याघ्र आरक्षितियों और एक संरक्षित क्षेत्र या व्याघ्र आरक्षिति को एक दूसरे से जोड़ने वाले क्षेत्र में पारिस्थितिकी उपयुक्त भूमि उपयोग जिससे कि व्याघ्र आरक्षितियों के अभिहित आन्तरिक क्षेत्रों से या अन्य संरक्षित क्षेत्रों के भीतर व्याघ्र जनन आवासों से वन्य प्राणियों की विस्थापित हो रही संख्या के लिये फैले हुए आवास और गलियारा उपलब्ध कराया जा सके;
(ग) नियमित वन मण्डलों और व्याघ्र आरक्षितियों के उन लगे हुए स्थानों की जो व्याघ्र संरक्षण की आवश्यकता से असंगत नही हैं, वन सम्बन्धी क्रियाएँ।
(4) इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य सरकार, व्याघ्र संरक्षण योजना तैयार करते समय व्याघ्र वाले वनों या किसी व्याघ्र आरक्षिति में निवास कर रहे व्यक्तियों के लिये कृषि, आजीविका, विकास सम्बन्धी और अन्य हितों को सुनिश्चित करेगी।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये “व्याघ्र आरक्षिति” के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं-
(i) उन राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के आन्तरिक या संकटमय व्याघ्र आवास क्षेत्रों को जहाँ वैज्ञानिक और विषयपरक मानदण्डों के आधार पर यह स्थापित किया गया है कि ऐसे क्षेत्र व्याघ्र संरक्षणों के प्रयोजनों के लिये अनुसूचित जनजाति या ऐसे अन्य वन निवासियों के अधिकारों पर प्रभाव डाले बिना अक्षत रखा जाना अपेक्षित है और राज्य सरकार द्वारा इस प्रयोजन के लिये गठित विशेषज्ञ समिति के परामर्श से उस रूप में अधिसूचित किया गया है;
(ii) मध्यवर्ती क्षेत्र या उपान्तीय क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जो ऊपर स्पष्टीकरण (i) में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अनुसार पहचान किये गए और स्थापित किये गए संकटमय व्याघ्र आवास के उपान्तीय या मध्यवर्ती क्षेत्र हैं और ऐसे क्षेत्र जहाँ संकटमय व्याघ्र आवास की समग्रता और व्याघ्र प्रजातियों के लिये पर्याप्त विचरण को सुनिश्चित करने के लिये निवासियों की सुरक्षा की अपेक्षाकृत कम आवश्यकता है और जिसका उद्देश्य वन्य जीव और मानव क्रियाकलाप के बीच स्थानीय व्यक्तियों के जीविकोपार्जन, विकास, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सम्यक मान्यता के साथ सह अस्तित्व का संवर्धन करना है जिनमें ऐसे क्षेत्रों की सीमाएँ सम्बद्ध ग्रामसभा और इस प्रयोजन के लिये गठित किसी विशेषज्ञ समिति के परामर्श से वैज्ञानिक और विषयपरक मानदण्ड के आधार पर अवधारित की जाती हैं।
(5) पारस्परिक रूप के करार किये गए निबन्धनों और शर्तों पर, परन्तु ऐसे निबन्धन और शर्तें इस उपधारा में अधिकथित अपेक्षाओं को पूरा करती हो, स्वैच्छिक पुनर्स्थापन के लिये उपबन्धित के सिवाय, व्याघ्र संरक्षण के लिये अनअतिक्रमणीय क्षेत्रों के सृजन के प्रयोजन के लिये ऐसी जनजातियों या वनवासियों को, तब तक पुनर्वासित नहीं किया जाएगा या उसके अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक कि,-
(i) अनुसूचित जनजातियों और ऐसे अन्य वनवासियों के भूमि या वन अधिकारों की मान्यता और अधिकारों का अवधारण तथा भूमि या वन अधिकारों के अर्जन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है;
(ii) राज्य सरकार के सम्बद्ध अभिकरण, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, उस क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों और ऐसे वनवासियों की सहमति से और उस क्षेत्र से परिचित पारिस्थितिकीय और सामाजिक विज्ञानी के परामर्श से यह घोषित नहीं कर देते हैं कि अनुसूचित जनजातियों और अन्य वनवासियों के क्रियाकलापों या वहाँ पर उनकी उपस्थिति से वन्य जीवों पर अपरिवर्तनीय क्षति कारित करने के लिये पर्याप्त हैं और व्याघ्रों और उनके आवासों की विद्यमानता के लिये खतरा पैदा करेगा;
(iii) राज्य सरकार, अनुसूचित जातियों और उस क्षेत्र में रह रहे अन्य वनवासियों की सहमति अभिप्राप्त करने के पश्चात तथा किसी स्वतंत्र पारिस्थितिकीय और सामाजिक विज्ञानी के, जो उस क्षेत्र से परिचित हो, परामर्श से, इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँची है कि सह-अस्तित्व के अन्य युक्तियुक्त विकल्प उपलब्ध नहीं हैं;
(iv) प्रभावित व्यष्टियों और समुदायी के जीवनयापन के उपबन्ध करने वाले पुनर्वास या आनुकल्पिक पैकेज तैयार नहीं किये गए हैं और राष्ट्रीय राहत और पुनर्वास नीति में दी गई अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया गया है;
(v) पुनर्वास कार्यक्रमों के प्रति सम्बद्ध ग्रामसभाओं और प्रभावित व्यक्तियों की अनुप्रमाणित सहमति अभिप्रात नहीं कर ली गई है और
(vi) उक्त कार्यक्रम के अधीन पुनर्वास स्थल पर सुविधाएँ और भूमि आबंटन उपलब्ध नहीं करा दिये गए हों अन्यथा उनके विद्यमान अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।
38ब. व्याघ्र आरक्षितियों का परिवर्तन और उन्हें अधिसूचना से निकालना
(1) व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की सिफारिश और राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड के अनुमोदन के सिवाय व्याघ्र आरक्षिति की सीमाएँ परिवर्तित नहीं की जाएँगी।
(2) कोई राज्य सरकार, लोक हित में व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण और राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड के अनुमोदन के सिवाय किसी वन आरक्षिति को अधिसूचना से नहीं निकालेगी।
38भ. व्याघ्र संरक्षण प्रतिष्ठान की स्थापना
(1) राज्य सरकार, राज्य के भीतर व्याघ्र आरक्षिति के लिये व्याघ्र और जैवविविधता के संरक्षण के लिये उनके प्रबन्ध को सुकर बनाने और सहायता करने के लिये और ऐसी विकास प्रक्रिया में व्यक्तियों को सम्मिलित करके आर्थिक विकास में पहल करने के लिये व्याघ्र आरक्षिति के लिये व्याघ्र संरक्षण प्रतिष्ठान की स्थापना करेगी।
(2) व्याघ्र संरक्षण प्रतिष्ठान के, अन्य बातों के साथ, निम्नलिखित उद्देश्य होंगे-
(क) व्याघ्र आरक्षितियों में पारिस्थितिकी, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास सुकर बनाना;
(ख) स्थानीय पणधारी समुदायों को सम्मिलित करके पारिस्थितिकी पर्यटन का संवर्धन करना और व्याघ्र आरक्षितियों में प्राकृतिक पर्यावरण को सुरिक्षत करने के लिये सहायता देना;
(ग) ऐसी आस्तियों का सृजन और/या उनके अनुरक्षण को सुकर बनाना जो उक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिये आवश्यक हों;
(घ) उक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये प्रतिष्ठान के क्रियाकलापों के लिये अपेक्षित तकनीकी, वित्तीय, सामाजिक, विधिक और अन्य सहायता प्राप्त करना;
(ङ) पणधारी विकास और पारिस्थितिकी पर्यटन के प्रोत्साहन के लिये वित्तीय संसाधनों में वृद्धि करना और उन्हें जुटाना जिनके अन्तर्गत किसी व्याघ्र आरक्षिति में प्रवेश का पुनःचक्रण और प्राप्त की गई अन्य फीस भी हैं;
(च) उपर्युक्त सम्बन्धित क्षेत्रों में अनुसन्धान पर्यावरणीय शिक्षा और प्रशिक्षण में सहायता देना।
अध्याय 4ग
व्याघ्र और अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो
38म. व्याघ्र और अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो का गठन
केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा , वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो के नाम से ज्ञात एक व्याघ्र और अन्य संकटापन्न प्रजाति अपराध नियंत्रण ब्यूरो का गठन करेगी जो निम्नलिखित से मिलकर बनेगा-
(क) वन्य जीव संरक्षण निदेशक - पदेन निदेशक;
(ख) पुलिस महानिरीक्षक - अपर निदेशक;
(ग) पुलिस उप महानिरीक्षक - संयुक्त निदेशक;
(घ) वन उप महानिदेशक - संयुक्त निदेशक;
(ङ) अपर आयुक्त (सीमाशुल्क और उत्पाद-शुल्क) - संयुक्त निदेशक; और
(च) ऐसे अन्य अधिकारी जो इस अधिनियम की धारा 3 और धारा 4 के अधीन आने वाले अधिकारियों में से नियुक्त किये जाएँ।
38य. वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की शक्तियाँ और कृत्य
(1) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो निम्नलिखित की बाबत उपाय करेगा-
(i) संगठित वन्यजीव अपराध क्रियाकलापों से सम्बन्धित आसूचना संगृहीत करना और सम्पादन करना तथा उसे तुरन्त कार्रवाई के लिये राज्य और अन्य प्रवर्तत अभिकरणों को प्रसारित करना जिससे अपराधियों को पकड़ा जा सके और केन्द्रीयकृत वन्य जीव अपराध आँकड़ा बैंक स्थापित किया जा सके;
(ii) इस अधिनियम के उपबन्धों के प्रवर्तन के सम्बन्ध में विभिन्न अधिकारियों, राज्य सरकारों और अन्य प्राधिकारियों द्वारा सीधे ही या ब्यूरो द्वारा स्थापित प्रादेशिक और सीमा यूनिटों के माध्यम से की गई कार्रवाईयों का समन्वय करना;
(iii) विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय अभिसमयों और प्रोटोकालों की जो इस समय प्रवृत्त हैं या जो भविष्य में भारत द्वारा अनुसमर्थित या स्वीकार की जा सकेंगी, बाध्यताओं का कार्यान्वयन करना;
(iv) वन्य जीव अपराध नियंत्रण के लिये विदेशों में सम्बद्ध प्राधिकारियों और सम्बद्ध अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के समन्वय और सर्वव्यापी कार्रवाई को सुकर बनाने के लिये सहायता करना;
(v) वन्य जीव अपराध में वैज्ञानिक और वृत्तिक अन्वेषण के लिये अवसंरचना और क्षमता निर्माण में विकास करना और वन्य जीव अपराधों से सम्बन्धित अभियोजनों में सफलता सुनिश्चित करने के लिये राज्य सरकारों की सहायता करना;
(vi) राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय प्रशासन रखने वाले वन्य जीव अपराधों से सम्बन्धित मुद्दों पर भारत सरकार को सलाह देना तथा समय-समय पर सुसंगत नीति और विधियों में अपेक्षित परिवर्तनों का सुझाव देना।
(2) वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो-
(i) ऐसी शक्तियों का जो उसे इस अधिनियम की धारा 5 की उपधारा (1), धारा 50 की उपधारा (1) और उपधारा (8) तथा धारा 55 के अधीन प्रत्यायोजित की जाएँ; और
(ii) ऐसी अन्य शक्तियों का, जो विहित की जाएँ, प्रयोग करेगा ।}
अध्याय 5
वन्य प्राणियों, प्राणी-वस्तुओं तथा ट्राफियों का व्यापार या वाणिज्य
39. वन्य प्राणियों आदि का सरकार की सम्पत्ति होना
(1) (क) पीड़क जन्तु से भिन्न प्रत्येक वन्य प्राणी जिसका धारा 11 या धारा 29 की उपधारा (1) या धारा 35 की उपधारा (6) के अधीन आखेट किया जाता है या जो इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किन्हीं उपबन्धों के उल्लंघन में 1{बन्दी स्थिति में रखा जाता है या पैदा होता है या उसका शिकार किया जाता है, अथवा जिसे मृत पाया जाता है या जिसका 2*** भूल से वध कर दिया जाता है; और
(ख) खण्ड (क) में निर्दिष्ट किसी वन्य प्राणी से, जिसके सम्बन्ध में कोई अपराध इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के विरुद्ध किया गया है, व्युत्पन्न प्रत्येक प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी या मांस;
3{(ग) भारत में आयातित हाथी दाँत और ऐसे हाथी दाँत से बनी कोई वस्तु जिसकी बाबत इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए किसी नियम या किये गए किसी आदेश के विरुद्ध कोई अपराध किया गया है;
(घ) यान, जलयान, आयुध, फाँसा या औजार जिसका प्रयोग अपराध करने के लिये किया गया है और जिसका इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन अभिग्रहण किया गया है,}
राज्य सरकार की सम्पत्ति होगा और जहाँ ऐसे प्राणी का, केन्द्रीय सरकार द्वारा घोषित किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन में आखेट किया जाता है वहाँ ऐसा प्राणी या ऐसे प्राणी से व्युत्पन्न कोई प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधित ट्राफी या मांस 3{या ऐसे आखेट में प्रयुक्त कोई यान, जलयान, आयुध, फाँसा या औजार} केन्द्रीय सरकार की सम्पत्ति होगा।
(2) कोई व्यक्ति जो किसी भी प्रकार से सरकारी सम्पत्ति का कब्जा अभिप्राप्त करता है, ऐसा कब्जा अभिप्राप्त करने से अड़तालीस घंटों के भीतर ऐसे कब्जे की रिपोर्ट निकटतम थाने या प्राधिकृत अधिकारी को देगा और, यदि उससे ऐसी अपेक्षा की जाये तो ऐसी सम्पत्ति, यथास्थिति, ऐसे थाने के भारसाधक अधिकारी या ऐसे प्राधिकृत अधिकारी के हवाले कर देगा।
(3) कोई भी व्यक्ति मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना ऐसी सरकारी सम्पत्ति,-
(क) अर्जित नहीं करेगा, अपने कब्जे, अभिरक्षा या नियंत्रण में नहीं रखेगा;
(ख) किसी व्यक्ति को दान के तौर पर, विक्रय द्वारा या अन्यथा अन्तरित नहीं करेगा; या
(ग) नष्ट नहीं करेगा या उसे नुकसान नहीं पहुँचाएगा।
40. घोषणाएँ
(1) प्रत्येक व्यक्ति जिसके नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में इस अधिनियम के प्रारम्भ पर अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट कोई बन्दी प्राणी या ऐसे प्राणी से व्युत्पन्न 4{कोई प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी, या ऐसे प्राणी की नमक लगाई गई या सुखाई गई खालें का कस्तूरी मृग कस्तूरी या गैंडे के सींग हैं, वह इस अधिनियम के प्रारम्भ से तीस दिन के भीतर प्राणी या ऊपर बताई गई प्रकार की वस्तु की, जो उसके नियंत्रण, अभिरक्षा का कब्जे में हैं, संख्या और वर्णन तथा वह स्थान जहाँ ऐसा प्राणी या वस्तु रखी गई है, मुख्य वन्य जीव संरक्षण या प्राधिकृत अधिकारी को घोषित करेगा।
(2) कोई भी व्यक्ति इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट किसी प्राणी को या ऐसे प्राणी से व्युत्पन्न किसी असंसाधित ट्राफी या मांस को या ऐसे प्राणी की नमक लगाई गई या सुखाई गई खालों को या कस्तूरी मृग की कस्तूरी को या गैंडे के सींग को, मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी की लिखित पूर्व अनुज्ञा से ही अर्जित करेगा, प्राप्त करेगा, अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में रखेगा, उसका विक्रय करेगा, उसे विक्रय के लिये प्रस्थापित करेगा या उसका अन्यथा अन्तरण करेगा या उसे परिवहित करेगा अन्यथा नहीं।
1{(2क) ऐसे व्यक्ति से, जिसके पास स्वामित्व प्रमाणपत्र है, भिन्न कोई व्यक्ति, वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ के पश्चात, अनुसूची 1 अथवा अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट किसी बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी को, उत्तराधिकार के रूप के सिवाय अर्जित नहीं करेगा, प्राप्त नहीं करेगा, अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में नहीं रखेगा।
(2ख) उपधारा (2क) के अधीन किसी बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी अथवा असंसाधित ट्राफी को उत्तराधिकार में प्राप्त करने वाला प्रत्येक व्यक्ति, ऐसे उत्तराधिकार के नब्बे दिन के भीतर मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी के पास घोषणा करेगा और धारा 41 तथा धारा 42 के उपबन्ध ऐसे लागू होंगे मानो घोषणा धारा 40 की उपधारा (1) के अधीन की गई हो:परन्तु उपधारा (2क) और उपधारा (2ख) की कोई बात जीवित हाथी को लागू नहीं होगी।}
2{(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) की कोई बात, धारा 38झ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, किसी मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर को या किसी लोक संग्रहालय को लागू नहीं होगी।}
(4) राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में निर्दिष्ट किसी प्राणी से व्युत्पन्न (कस्तूरी मृग की कस्तूरी या गैंडे के सींग से भिन्न) 3{किसी प्राणी या प्राणी-वस्तु, या ट्राफी या नमक लगाई गई या सुखाई गई खालों को जो उसके नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में है ऐसे प्रारूप में, ऐसी रीति से और ऐसे समय के भीतर, जो विहित किया जाये, मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को घोषित करे।
4{40क. कतिपय दशाओं में उन्मुक्ति
(1) इस अधिनियम की धारा 40 की उपधारा (2) और उपधारा (4) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट किसी बन्दी प्राणी, प्राणियों से व्युत्पन्न प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी को जो उसके नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में है जिसके सम्बन्ध में धारा 40 की उपधारा (1) या उपधारा (4) के अधीन कोई घोषणा नहीं की गई थी, ऐसे प्रारूप में, ऐसी रीति से और ऐसे समय के भीतर मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को, जो विहित किया जाये, घोषित करे।
(2) वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 के प्रारम्भ से पूर्व किसी भी समय, इस अधिनियम की धारा 40 के अतिक्रमण के लिये की गई या की जाने के लिये तात्पर्यित किसी बात के लिये कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी और सभी लम्बित कार्यवाहियों का उपशमन हो जाएगा।
(3) उपधारा (1) के अधीन घोषित किसी बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी, या असंसाधित ट्राफी के सम्बन्ध में ऐसी रीति में और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, जो विहित की जाएँ, कार्रवाई की जाएगी।}
41. जाँच और तालिकाएँ तैयार करना
(1) धारा 40 के अधीन की गई घोषणा के प्राप्त होने पर मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी ऐसी सूचना, ऐसी रीति में और ऐसे समय पर, जो विहित किया जाये, देने के पश्चात-
(क) धारा 40 में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति के परिसर में प्रवेश कर सकेगा;
(ख) प्राणी-वस्तुओं, ट्राफियों, असंसाधित ट्राफियों, नमक लगाई गई और सुखाई गई खालों और अनुसूची 1 और अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट और उन परिसरों में पाये गए बन्दी प्राणियों की जाँच कर सकेगा तथा उनकी तालिकाएँ तैयार कर सकेगा, और
(ग) प्राणियों, प्राणी-वस्तुओं, ट्राफियों या असंसाधित ट्राफियों पर पहचान चिन्ह ऐसी रीति से लगा सकेगा जो विहित की जाये।
(2) कोई भी व्यक्ति इस अध्याय में निर्दिष्ट किसी पहचान चिन्ह को न तो मिटाएगा और न उसका कूटकरण करेगा।
42. स्वामित्व का प्रमाणपत्र
मुख्य वन्य जीव संरक्षण, धारा 40 के प्रयोजनों के लिये, ऐसे किसी व्यक्ति को, जो उसकी राय में किसी वन्य प्राणी या किसी प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधित ट्राफी का विधिपूर्ण कब्जा रखता है ऐसी रीति से, जो विहित की जाये, स्वामित्व का प्रमाणपत्र जारी कर सकेगा और जहाँ सम्भव हो ऐसी प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी को उसकी पहचान के प्रयोजनार्थ विहित रीति से चिन्हित कर सकेगा:
5{परन्तु किसी बन्दी प्राणी के सम्बन्ध में स्वामित्व का प्रमाणपत्र जारी करने से पूर्व, मुख्य वन्य जीव संरक्षक यह सुनिश्चित करेगा कि आवेदक के पास उस प्राणी के आवासन, उसका रखरखाव करने तथा उसकी देखभाल करने की पर्याप्त सुख-सुविधाएँ हैं।}
1{43. प्राणी, आदि के अन्तरण का विनियमन
(1) कोई भी व्यक्ति, जिसके कब्जे में ऐसा बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी है, जिसके सम्बन्ध में उसके पास स्वामित्व प्रमाणपत्र है, ऐसे किसी प्राणी या प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी का, विक्रय या विक्रय ही प्रस्थापना के रूप में या वाणिज्यिक प्रकृति के प्रतिफल के किसी अन्य ढंग से, कोई अन्तरण नहीं करेगा।
(2) जहाँ कोई व्यक्ति, ऐसे किसी प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी का, जिसके सम्बन्ध में उसके पास स्वामित्व का प्रमाणपत्र है, उस राज्य में जिसमें वह निवास करता है, अन्य राज्य को अन्तरण द्वारा परिवहन या उसे राज्य के बाहर से अन्तरण द्वारा परिवहन करता है, वहाँ वह ऐसे अन्तरण या परिवहन के तीस दिन के भीतर उस अन्तरण या परिवहन की रिपोर्ट मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को देगा, जिसकी अधिकारिता के भीतर वह अन्तरण या परिवहन किया जाता है।
(3) इस धारा की कोई बात,-
(क) मोर के पूँछ वाले पंख और उससे बनी प्राणी-वस्तु या ट्राफियों-
(ख) धारा 38झ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, बन्दी प्राणियों के मान्यता प्राप्त चिड़ियाघरों के बीच अन्तरण और चिड़ियाघरों और लोक संग्रहालयों के बीच अन्तरण को,लागू नहीं होगी}
44. अनुज्ञप्ति के बिना ट्राफी और प्राणी वस्तुओं में व्यवहार का प्रतिषिद्ध होना
2{अध्याय 5क के उपबन्धों के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति, उपधारा (4) के अधीन दी गई अनुज्ञप्ति के अधीन और उसके अनुसरण में ही}
(क) निम्नलिखित रूप में कारबार प्रारम्भ करेगा या चलाएगा,-
(i) किसी प्राणी-वस्तु का विनिर्माता या उसका व्यौहारी; या
(ii) चर्म पूरक; या
(iii) ट्राफी या असंसाधित ट्राफी का व्यौहारी; या
(iv) बन्दी प्राणियों का व्यौहारी; या
(v) मांस का व्यौहारी; या
(ख) किसी भोजनालय में मांस पकाएगा या परोसेगा, अन्यथा नहीं:
4{(ग) सर्प विष व्युत्पन्न करेगा, उसका संग्रहण करेगा या उसे तैयार करेगा अथवा उसका व्यवहार करेगा:}
परन्तु इस धारा की कोई भी बात किसी व्यक्ति को, जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पहले इस उपधारा में वर्णित कारबार या उपजीविका चला रहा था, ऐसे प्रारम्भ से तीस दिन की अवधि तक जहाँ उसने अपने को अनुज्ञप्ति दिये जाने के लिये उस अवधि के भीतर आवेदन कर दिया है, वहाँ उस समय तक जब तक कि उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जाती है या उसे लिखित रूप में यह सूचित नहीं कर दिया जाता है कि उसे अनुज्ञप्ति नहीं दी जा सकती, ऐसा कारबार या उपजीविका चलाने से निवारित नहीं करेगी:
5
{परन्तु यह और कि इस उपधारा की कोई बात मोर के पूँछ वाले पंखों और उससे बनी वस्तुओं के व्यौहारियों तथा ऐसी वस्तुओं के विनिर्माताओं को लागू नहीं होगी।}
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये “भोजनालय” के अन्तर्गत होटल, रेस्तरां या अन्य ऐसा स्थान है जहाँ कि कोई खाद्य वस्तु सन्दाय करने पर परोसी जाती है, चाहे ऐसा सन्दाय ऐसी खाद्य वस्तु के लिये अलग से किया गया है या वह भोजन और आवास के लिये प्रभारित राशि में सम्मिलित है।
(2) प्राणी-वस्तुओं का प्रत्येक विनिर्माता या व्यौहारी, या बन्दी प्राणियों, ट्राफियों या असंसाधित ट्राफियों का व्यौहारी, या प्रत्येक चर्म पूरक इस अधिनियम के प्रारम्भ से पन्द्रह दिन के भीतर, यथास्थिति, प्राणी वस्तुओं, बन्दी प्राणियों, ट्राफियों और असंसाधित ट्राफियों के अपने वे स्टाक मुख्य वन्य जीव संरक्षक को घोषित करेगा जो ऐसी घोषणा की तारीख को हों और मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी, यथास्थिति, प्रत्येक प्राणी-वस्तु, बन्दी प्राणी, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी पर पहचान चिन्ह लगा सकेगा।
(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक व्यक्ति जिसका आशय अनुज्ञप्ति अभिप्राप्त करना है, अनुज्ञप्ति दिये जाने के लिये 1*** मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को आवेदन करेगा।
(4) (क) उपधारा (3) में निर्दिष्ट प्रत्येक आवेदन मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को ऐसे प्रारूप और ऐसी फीस का सन्दाय करके किया जाएगा जो विहित की जाये।
2{(ख) उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई भी अनुज्ञप्ति तब तक नहीं दी जाएगी जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी का, आवेदक के पूर्ववृत्तों और पूर्व अनुभव को, उन विवक्षाओं को, जो ऐसी, अनुज्ञप्ति के दिये जाने से वन्य जीव की प्रास्थिति पर होंगी और ऐसे अन्य विषयों को, जो इस निमित्त विहित किये जाएँ, ध्यान में रखते हुए और उन विषयों की बाबत ऐसी जाँच, करने के पश्चात, जो वह ठीक समझे, यह समाधान नहीं हो जाता है कि अनुज्ञप्ति दी जानी चाहिए।}
(5) इस धारा के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति में वे परिसर जिनमें और वे शर्तें, यदि कोई हों, जिसके अधीन रहते हुए अनुज्ञप्तिधारी अपना कारबार करेगा, विनिर्दिष्ट होंगी।
(6) इस धारा के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति-
(क) उसके दिये जाने की तारीख से एक वर्ष के लिये विधिमान्य होगी;
(ख) अन्तरणीय नहीं होगी; और
(ग) एक समय में एक वर्ष से अनधिक की अवधि के लिये नवीकरणीय नहीं होगी।
(7) अनुज्ञप्ति के नवीकरण के लिये कोई आवेदन तब तक नामंजूर नहीं किया जाएगा जब तक कि ऐसी अनुज्ञप्ति के धारक को अपना मामला प्रस्तुत करने का युक्तियुक्त अवसर नहीं दे दिया गया है और जब तक कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि-
(i) ऐसे नवीकरण के लिये आवेदन उसके लिये विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति के पश्चात किया गया है, या
(ii) अनुज्ञप्ति के दिये जाने या नवीकरण के समय आवेदक द्वारा किया गया कोई कथन गलत था या उसका महत्त्वपूर्ण अंश मिथ्या था, या
(iii) आवेदक ने अनुज्ञप्ति के किसी निबन्धन या शर्त का या इस अधिनियम या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम के उपबन्ध का उल्लंघन किया है, या
(iv) आवेदक विहित शर्तों को पूरा नहीं करता है।
(8) अनुज्ञप्ति के लिये जाने या नवीकरण के आवेदन को मंजूर या खारिज करने वाला प्रत्येक आदेश लिखित रूप में किया जाएगा।
(9) पूर्वोक्त उपधाराओं की कोई भी बात पीड़कजन्तु के सम्बन्ध में लागू नहीं होगी।
45. अनुज्ञप्तियों का निलम्बित या रद्द किया जाना
राज्य सरकार के किसी साधारण या विशेष आदेश के अधीन रहते हुए, मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी धारा 44 के अधीन दी गई या नवींकृत किसी अनुज्ञप्ति को, ऐसे कारणों से, जिन्हें वह लेखबद्ध करेगा, निलम्बित या रद्द कर सकेगा:
परन्तु अनुज्ञप्ति के धारक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिये बिना ऐसा कोई निलम्बन या रद्दकरण नहीं किया जाएगा।
46. अपील
(1) धारा 44 के अधीन अनुज्ञप्ति दिये जाने या उसका नवीकरण करने से इनकार करने वाले या धारा 45 के अधीन अनुज्ञप्ति को निलम्बित या रद्द करने वाले आदेश से अपील-
(क) यदि आदेश, प्राधिकृत अधिकारी द्वारा किया गया है तो मुख्य वन्य जीव संरक्षक को; या
(ख) यदि आदेश, मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा किया गया है तो राज्य सरकार को, होगी।
(2) उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन अपील में मुख्य वन्य जीव संरक्षक द्वारा पारित आदेश की दशा में द्वित्तीय अपील राज्य सरकार को होगी।
(3) पूर्वोक्त बातों के अधीन रहते हुए इस धारा के अधीन की गई अपील में पारित प्रत्येक आदेश अन्तिम होगा।
(4) इस धारा के अधीन अपील उस आदेश की, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, आवेदक की संसूचना की तारीख से तीस दिन के भीतर की जाएगी:
परन्तु यदि अपील प्राधिकारी का यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी के पास समय से अपील न करने का पर्याप्त हेतुक था तो वह पूर्वोक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात की गई किसी अपील को ग्रहण कर सकेगा।
47. अभिलेखों का रखा जाना
इस अध्याय के अधीन अनुज्ञप्तिधारी-
(क) अभिलेख रखेगा और अपने व्यवहार की ऐसी विवरणियाँ निम्नलिखित को देगा जो विहित की जाएँ,-
(i) निदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी, और
(ii) मुख्य वन जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी, और
(ख) ऐसे अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के लिये माँग किये जाने पर ऐसे अभिलेख उपलब्ध करेगा।
48. अनुज्ञप्तिधारी द्वारा प्राणी आदि का क्रय
इस अध्याय के अधीन कोई भी अनुज्ञप्तिधारी ऐसे नियमों के, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए जाएँ, अनुसार ही-
(क) अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में,-
(i) किसी ऐसे प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी की, जिसके बारे में धारा 44 की उपधारा (2) के उपबन्धों के अधीन घोषणा की जानी है किन्तु घोषणा की नहीं गई है,
(ii) किसी ऐसे प्राणी या प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधित ट्राफी या मांस को, जो इस अधिनियम के या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के उपबन्धों के अधीन, विधिपूर्वक अर्जित नहीं किया गया है,रखेगा;
(ख) (i) किसी वन्य प्राणी को पकड़ेगा, या
(ii) अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट किसी बन्दी प्राणी या उससे व्युत्पन्न किसी प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधित ट्राफी या मांस को अर्जित करेगा, प्राप्त करेगा, अपने नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में रखेगा, या उसका विक्रय करेगा, उसके विक्रय की प्रस्थापना करेगा या उसका परिवहन करेगा, या ऐसे मांस को परोसेगा या उस पर चर्मपूरण की प्रक्रिया करेगा या उससे कोई प्राणी-वस्तु जिसमें ऐसा पूरा प्राणी या उसका कोई भाग हो, बनाएगा,अन्यथा नहीं:
परन्तु जहाँ ऐसे प्राणी या प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी का अर्जन या कब्जा, नियंत्रण या अभिरक्षा एक राज्य से दूसरे राज्य को उसका अन्तरण या परिवहन आवश्यक बना देती है वहाँ ऐसा अन्तरण या परिवहन निदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी की पूर्व लिखित अनुज्ञा से ही किया जाएगा, अन्यथा नहीं:
परन्तु यह और कि पूर्वगामी परन्तुक के अधीन कोई भी ऐसी अनुज्ञा तक तब नहीं दी जाएगी जब तक कि निदेशक या उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी का यह समाधान नहीं हो जाता है कि पूर्वोक्त प्राणी या प्राणी-वस्तु विधिपूर्वक अर्जित की गई है।
1{48क. वन्य जीव के परिवहन पर निर्बन्धन
कोई व्यक्ति (पीड़क-जन्तु से भिन्न) कोई वन्य जीव प्राणी या कोई प्राणी-वस्तु या कोई विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी, परिवहन के लिये, यह अभिनिश्चित करने के लिये सम्यक सावधानी बरतने के पश्चात ही कि मुख्य वन्य जीव संरक्षक या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य अधिकारी से ऐसे परिवहन के लिये अनुज्ञा प्राप्त कर ली गई है, स्वीकार करेगा, अन्यथा नहीं।}
49. अनुज्ञप्तिधारी से भिन्न किसी व्यक्ति द्वारा बन्दी प्राणी का क्रय
कोई भी व्यक्ति, पीड़क जन्तु से भिन्न, किसी बन्दी प्राणी, वन्य प्राणी या उससे व्युत्पन्न प्राणी-वस्तु, ट्राफी, असंसाधित ट्राफी या मांस को इस अधिनियम के अधीन उसे विक्रय या अन्यथा अन्तरण करने के लिये प्राधिकृत किसी व्यौहारी या व्यक्ति से भिन्न किसी व्यक्ति से क्रय या अर्जित नहीं करेगा:
2{परन्तु इस धारा की कोई बात धारा 38झ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए किसी मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर को या किसी लोक संग्रहालय को लागू नहीं होगी।}
3{अध्याय 5क
कुछ प्राणियों से व्युत्पन्न ट्राफी, प्राणी-वस्तुओं आदि में व्यापार या वाणिज्य का प्रतिषेध
49क. परिभाषाएँ
इस अध्याय में,-
(क) “अनुसूचित प्राणी” से अनुसूची 1 में या अनुसूची 2 के भाग 2 में तत्समय विनिर्दिष्ट कोई प्राणी अभिप्रेत है;
(ख) “अनुसूचित प्राणी-वस्तु” से किसी अनुसूचित प्राणी से बनाई गई कोई वस्तु अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत कोई ऐसी वस्तु या पदार्थ है, जिसमें ऐसे पूरे प्राणी या 1{उसके किसी भाग का उपयोग किया गया है किन्तु इसके अन्तर्गत मोर का पूँछ वाला पंख, उससे बनी हुई वस्तु या ट्राफी और सर्प विष या उसका व्युत्पन्नी नहीं है};
(ग) “विनिर्दिष्ट तारीख” से अभिप्रेत है,-
(i) वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1986 के प्रारम्भ पर किसी अनुसूचित प्राणी के सम्बन्ध में, ऐसे प्रारम्भ से दो मास की समाप्ति की तारीख;2***
(ii) ऐसे प्रारम्भ के पश्चात किसी समय अनुसूची 1 में या अनुसूची 2 के भाग 2 में जोड़े गए या उसको अन्तरित किये गए किसी प्राणी के सम्बन्ध में, ऐसे जोड़े जाने या अन्तरित किये जाने से दो मास की समाप्ति की तारीख;
3{(iii) भारत में आयातित हाथी दाँत या ऐसे हाथी दाँत से बनी किसी वस्तु के सम्बन्ध में वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ में छह मास की समाप्ति की तारीख ।}
(1) इस धारा के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, विनिर्दिष्ट तारीख को और उसके पश्चात कोई व्यक्ति-
(क) (i) अनुसूचित प्राणी-वस्तुओं के विनिर्माता या उसके व्यौहारी; या
4{(iक) भारत में आयातित हाथी दाँत या उससे बनी वस्तुओं के व्यौहारी या ऐसी वस्तुओं का विनिर्माता; या}
(ii) किसी अनुसूचित प्राणी या ऐसे प्राणी के किसी भाग के सम्बन्ध में चर्मपूरक; या
(iii) किसी अनुसूचित प्राणी से व्युत्पन्न ट्राफी या असंसाधित ट्राफी के व्यौहारी; या
(iv) किसी ऐसे बन्दी प्राणी के, जो अनुसूचित प्राणी है, व्यौहारी; या
(v) किसी अनुसूचित प्राणी से व्युत्पन्न मांस के व्यौहारी,के रूप में कारबार शुरू नहीं करेगा या नहीं चलाएगा; या
(ख) किसी भोजनालय में किसी अनुसूचित प्राणी से व्युत्पन्न मांस नहीं पकाएगा या नहीं परोसेगा।
स्पष्टीकरण
इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये, “भोजनालय” का वही अर्थ है जो धारा 44 की उपधारा (1) के नीचे के स्पष्टीकरण में है।
(2) इस धारा के अन्य उपबन्धों के अधीन रहते हुए, विनिर्दिष्ट तारीख के पूर्व धारा 44 के अधीन दी गई या नवीकृत कोई अनुज्ञप्ति, उसके धारक को या किसी अन्य व्यक्ति को इस धारा की उपधारा (1) के खण्ड (क) में निर्दिष्ट किसी कारबार को या उस उपधारा के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट उपजीविका को ऐसी तारीख के पश्चात शुरू करने या चलाने का हकदार नहीं बनाएगी।
(3) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, जहाँ केन्द्रीय सरकार का यह समाधान हो जाता है कि लोक हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है वहाँ वह, राजपत्र में प्रकाशित साधारण या विशेष आदेश द्वारा, निर्यात के प्रयोजनों के लिये, केन्द्रीय सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण में के किसी निगम को {जिसके अन्तर्गत कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 के अर्थ में कोई सरकारी कम्पनी है, अथवा सोसाइटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 (1860 का 21) या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन रजिस्ट्रीकरण किसी सोसाइटी को, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा पूर्णरूप से या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित है, उपधारा (1) और उपधारा (2) के उपबन्धों से छूट दे सकेगी।
(4) उपधारा (1) या उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु किन्हीं ऐसे नियमों के अधीन रहते हुए, जो इस निमित्त बनाए जाएँ, चर्मपूरक के रूप में कारबार चलाने के लिये धारा 44 के अधीन अनुज्ञप्ति धारण करने वाला कोई व्यक्ति, किसी अनुसूचित प्राणी या उसके किसी भाग पर,-
(क) सरकार या उपधारा (3) के अधीन छूट प्राप्त किसी निगम या सोसाइटी के लिये या उसकी ओर से; अथवा
(ख) शैक्षिक या वैज्ञानिक प्रयोजनों के लिये किसी व्यक्ति के लिये या उसकी ओर से मुख्य वन्य जीव संरक्षक के लिखित पूर्व प्राधिकार से,चर्मपूरण की प्रक्रिया कर सकेगा।
49ग. व्यौहारी द्वारा घोषणा
(1) धारा 49ख की उपधारा (1) में निर्दिष्ट कारबार या उपजीविका चलाने वाला प्रत्येक व्यक्ति, विनिर्दिष्ट तारीख से तीस दिन के भीतर,-
(क) (i) अनुसूचित प्राणी-वस्तुओं;
(ii) अनुसूचित प्राणियों और उनके भागों;
(iii) अनुसूचित प्राणियों से व्युत्पन्न ट्राफियों और असंसाधित ट्राफियों;
(iv) बन्दी प्राणियों, जो अनुसूचित प्राणी हैं,
1{(v) भारत में आयातित हाथी दाँत या उससे बनी वस्तुओं;}
के अपने ऐसे स्टाक को, यदि कोई हो, जो विनिर्दिष्ट तारीख के अन्त में है;
(ख) उस स्थान या उन स्थानों को, जहाँ घोषणा में उल्लिखित स्टाक रखे गए हैं; और
(ग) घोषणा में उल्लिखित स्टाक की ऐसी मदों के, यदि कोई हों, वर्णन को, जो वह अपने सद्भाविक व्यैक्तिक उपयोग के लिये अपने पास रखना चाहता है,
मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को घोषित करेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन घोषणा के प्राप्त होने पर मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी धारा 41 में विनिर्दिष्ट सभी या कोई उपाय करेगा और इस प्रयोजन के लिये धारा 41 के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, लागू होंगे।
(3) जहाँ, उपधारा (1) के अधीन की गई घोषणा में, घोषणा करने वाला व्यक्ति घोषणा में विनिर्दिष्ट स्टाक में से किसी मद को अपने सद्भाविक व्यैक्तिक उपयोग के लिये अपने पास रखना चाहता है वहाँ मुख्य वन्य जीव संरक्षक, निदेशक के पूर्व अनुमोदन से, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि उस व्यक्ति के पास ऐसी मद का विधिपूर्ण कब्जा है तो, यथास्थिति, ऐसी मद या ऐसी सभी मदों के सम्बन्ध में, जो मुख्य वन्य जीव संरक्षक की राय में ऐसे व्यक्ति के सद्भाविक व्यैक्तिक उपयोग के लिये अपेक्षित हैं, ऐसे व्यक्ति के पक्ष में स्वामित्व का प्रमाणपत्र जारी कर सकेगा और ऐसी मदों पर पहचान चिन्ह ऐसी रीति से लगा सकेगा, जो विहित की जाएँ:
परन्तु कोई ऐसी मद किसी वाणिज्यिक परिसर में नहीं रखी जाएगी।
(4) कोई व्यक्ति उपधारा (3) में निर्दिष्ट किसी पहचान चिन्ह को नहीं मिटाएगा या उसका कूटकरण नहीं करेगा।
(5) उपधारा (3) के अधीन स्वामित्व का प्रमाणपत्र देने से किसी इनकार के विरुद्ध अपील होगी और धारा 46 की उपधारा (2), उपधारा (3) और उपधारा (4) के उपबन्ध, जहाँ तक हो सके, इस उपधारा के अधीन अपीलों के सम्बन्ध में लागू होंगे।
(6) जहाँ कोई ऐसी व्यक्ति जिसे उपधारा (3) के अधीन किसी मद के सम्बन्ध में स्वामित्व का प्रमाणपत्र जारी किया गया है,-
(क) दान, विक्रय के रूप में या अन्यथा किसी व्यक्ति को ऐसी मद का अन्तरण करता है; या
(ख) उस राज्य से, जिसमें यह निवास करता है, अन्य राज्य को किसी ऐसी मद का अन्तरण का परिवहन करता है,
वहाँ वह ऐसे अन्तरण या परिवहन के तीस दिन के भीतर ऐसे अन्तरण या परिवहन की रिपोर्ट उस मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी को देगा, जिसकी अधिकारिता के भीतर ऐसा अन्तरण या परिवहन किया जाता है।
(7) ऐसे व्यक्ति से, जिसे उपधारा (3) के अधीन स्वामित्व का प्रमाणपत्र जारी किया गया है, भिन्न कोई व्यक्ति, विनिर्दिष्ट तारीख को और उसके पश्चात 2{किसी अनुसूचित प्राणी, किसी अनुसूचित प्राणी-वस्तु या भारत में आयातित हाथी दाँत या उससे बनी किसी वस्तु को,} अपने नियंत्रण के अधीन नहीं रखेगा, उसका किसी व्यक्ति को विक्रय नहीं करेगा अन्यथा विक्रय के लिये प्रस्थापना नहीं करेगा या अन्तरण नहीं करेगा।
अध्याय 6
अपराधों का निवारण और पता लगाना
50. प्रवेश, तलाशी, गिरफ्तारी और निरुद्ध करने की शक्ति
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी यदि निदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी अन्य प्राधिकारी या मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी या किसी वन अधिकारी या किसी पुलिस अधिकारी के जो उप-निरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, पास यह विश्वास करने का युक्तियुक्त आधार है कि किसी व्यक्ति ने इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध किया है तो वह-
(क) ऐसे व्यक्ति से उसके नियंत्रण, अभिरक्षा या कब्जे में किसी बन्दी प्राणी, वन्य प्राणी, प्राणी-वस्तु, मांस 1{ट्राफी, असंसाधित ट्राफी, विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, अथवा इस अधिनियम के अधीन दी गई या उसके द्वारा रखे जाने के लिये अपेक्षित किसी अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र या अन्य दस्तावेजों को निरीक्षण के लिये पेश करने की अपेक्षा कर सकेगा;
(ख) किसी यान या जलयान की तलाशी लेने या जाँच करने के लिये उसे रोक सकेगा या ऐसे व्यक्ति के अधिभोग में किसी परिसर, भूमि, यान या जलयान में प्रवेश कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा तथा उसके कब्जे में सामान या अन्य वस्तुओं को खोल सकेगा और उनकी तलाशी ले सकेगा;
2{(ग) किसी व्यक्ति के कब्जे में किसी बन्दी प्राणी, वन्य प्राणी, प्राणी-वस्तु, मांस, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी या किसी विनिर्दिष्ट पादप या उसके भाग या व्युत्पन्नी को, जिनकी बाबत इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किया गया प्रतीत होता है, किसी ऐसे अपराध को किये जाने के लिये प्रयुक्त किसी फाँसे, औजार, यान, जलयान या आयुध के सहित अभिगृहित कर सकेगा, और जब तक कि उसका यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा व्यक्ति हाजिर होगा और किसी ऐसे आरोप का उत्तर देगा जो उसके विरुद्ध लगाया जाये, वह उसे बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकेगा और निरुद्ध कर सकेगा:
परन्तु जहाँ कोई मछुआरा, जो किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन के दस किलोमीटर के भीतर निवास करता है, किसी ऐसी नौका से, जिसका उपयोग वाणिज्यिक मत्स्य उद्योग के लिये नहीं किया जाता है, उस अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन के राज्यक्षेत्रीय सागरखण्ड में अनवधानता से प्रवेश करता है, वहाँ ऐसी नौका पर मछली पकड़ने के टेकल या जाल को अभिगृहीत नहीं किया जाएगा।}
(3) उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी भी अधिकारी के लिये यह विधिपूर्ण होगा कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे वह कोई ऐसा कार्य करते देखता है जिसके लिये इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र अपेक्षित है, इस प्रयोजन से रोक सकेगा और निरुद्ध कर सकेगा कि वह अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र पेश करे और यदि ऐसा व्यक्ति, यथास्थिति, अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र पेश करने में असफल रहता है तो वह बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकेगा जब तक कि वह अपना नाम और पता नहीं दे देता है और उसको गिरफ्तार करने वाले अधिकारी का अन्यथा यह समाधान नहीं करा देता है कि वह किसी समन या अन्य कार्यवाहियों का, जो उसके विरुद्ध की जाएँ सम्यक रूप से पालन करेगा।
4{(3क) ऐसा अधिकारी, जो वन्य जीव संरक्षण सहायक निदेशक या 5{सहायक वनपाल} की पंक्ति से नीचे का न हो, जिसने या जिसके अधीनस्थ ने उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अधीन किसी बन्दी प्राणी या वन्य प्राणी को अभिगृहीत किया है, किसी व्यक्ति द्वारा उस मजिस्ट्रेट के समक्ष जिसको उस अपराध का विचारण करने की अधिकारिता है, जिसके कारण ऐसा अभिग्रहण किया गया है, ऐसे प्राणी के, जब कभी ऐसी अपेक्षा हो, पेश किये जाने सम्बन्धी बन्धपत्र के निष्पादन पर, उसे अभिरक्षा के लिये दे सकेगा।}
(4) पूर्वोक्त शक्ति के अधीन निरूद्ध किया गया कोई व्यक्ति या अभिगृहीत की गई कोई वस्तुएँ, विधि के अनुसार कार्यवाही किये जाने के लिये 6{मुख्य वन्य जीव संरक्षक या इस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी को सूचित करते हुए} मजिस्ट्रेट के समक्ष तुरन्त ले जाई जाएँगी।
(5) कोई व्यक्ति जो युक्तियुक्त हेतुक के बिना कोई ऐसी वस्तु पेश करने में असफल रहता है जिसे इस धारा के अधीन पेश करने के लिये वह अपेक्षित है, इस अधिनियम के अधीन अपराध का दोषी होगा।
7{(6) जहाँ इस धारा के उपबन्धों के अधीन कोई मांस, अपरिष्कृत ट्रॉफी, विनिर्दिष्ट पादप या उसका कोई भाग या व्युत्पन्न अभिगृहीत किया जाता है वहाँ वन्य जीव परिरक्षण सहायक निदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत राजपत्रित पंक्ति का कोई अन्य अधिकारी या मुख्य वन्य जीव संरक्षक या प्राधिकृत अधिकारी उनके व्ययन के लिये ऐसी रीति से, जो विहित की जाये व्यवस्था कर सकेगा।}
(7) जब कभी किसी व्यक्ति से उपधारा (1) में निर्दिष्ट कोई अधिकारी, इस अधिनियम के अधीन अपराध के निवारण या पता लगाने में या ऐसे व्यक्तियों को, जिस पर इस अधिनियम का उल्लंघन करने का आरोप है, पकड़ने में या उपधारा (1) के खण्ड (ग) के अनुसरण में अभिग्रहण के लिये सहायता करने के लिये अनुरोध करे तब ऐसे व्यक्तियों या व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वे ऐसी सहायता करें।
4{(8) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, किसी ऐसे अधिकारी को, जो वन्य जीव संरक्षण सहायक निदेशक 5{की पंक्ति से नीचे का न हो या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत ऐसे अधिकारी को जो सहायक वनपाल की पंक्ति से नीचे का न हो, इस अधिनियम के किसी उपबन्ध के विरुद्ध किसी अपराध का अन्वेषण करने के प्रयोजनों के लिये निम्नलिखित शक्तियाँ होंगी:-
(क) तलाशी वारंट जारी करना;
(ख) साक्षियों को हाजिर कराना;
(ग) दस्तावेजों और तात्विक पदार्थों के प्रकटीकरण और उनके पेश किये जाने के लिये विवश करना; और
(घ) साक्ष्य ग्रहण करना और अभिलिखित कराना।
(9) उपधारा (8) के खण्ड (घ) के अधीन अभिलिखित कोई साक्ष्य किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष किसी पश्चातवर्ती विचारण मेंग्राह्य होगा, परन्तु यह तब जब कि उसे अभियुक्त व्यक्ति की उपस्थिति में लिया गया हो।}
51. शास्तियाँ
(1) कोई व्यक्ति जो 1{इस अधिनियम के 2{अध्याय 5क और धारा 38ञ को छोड़कर} या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश के किसी उपबन्ध का उल्लंघन करेगा} या जो इस अधिनियम के अधीन दी गई किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र की शर्तों में से किसी का भंग करेगा, वह इस अधिनियम के विरुद्ध अपराध का दोषी होगा और दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि 2{तीन वर्ष} तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो 2{पच्चीस हजार रुपए} तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा:
3{परन्तु यदि किया गया अपराध अनुसूची 1 में या अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट किसी प्राणी या किसी ऐसे प्राणी के मांस या ऐसे प्राणी से व्युत्पन्न प्राणी-वस्तु, ट्राफी या असंसाधित ट्राफी के सम्बन्ध में है या यदि अपराध किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन में आखेट से सम्बन्धित है या किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन की सीमाओं में परिवर्तन करने से सम्बन्धित है तो ऐसा अपराध ऐसे कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी जो दस हजार रुपए से कम नहीं होगा, दण्डनीय होगा:-
परन्तु यह और कि इस उपधारा में वर्णित प्रकृति के किसी द्वितीय या पश्चातवर्ती अपराध की दशा में, कारावास की अवधि तीन वर्ष से कम की न होगी किन्तु सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माना भी होगा, जो पच्चीस हजार रुपए से कम नहीं होगा।}
4{(1क) कोई व्यक्ति, जो अध्याय 5क के किसी उपबन्ध का उल्लंघन करेगा, कारावास से, जिसकी अवधि 5{तीन वर्ष} से कम की नहीं होगी किन्तु सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो 5{दस हजार रुपए} से कम का नहीं होगा, दण्डनीय होगा।}
6{(1ख) कोई व्यक्ति, जो धारा 38ज के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी या जुर्माने से, जो दो हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डनीय होगा:
परन्तु किसी द्वितीय या पश्चातवर्ती अपराध की दशा में, कारावास की अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माना पाँच हजार रुपए तक का हो सकेगा।}
6{(1ग) कोई व्यक्ति जो व्याघ्र आरक्षिति के आन्तरिक क्षेत्र के सम्बन्ध में अपराध करेगा या जहाँ अपराध किसी व्याघ्र आरक्षिति में आखेट या व्याघ्र आरक्षिति की सीमाओं में परिवर्तन करने से सम्बन्धित है वहाँ ऐसा अपराध प्रथम दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अविध तीन वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो सात वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी, जो पचास हजार रुपए से कम नहीं होगा किन्तुु जो दो लाख रुपए तक का हो सकेगा; और द्वितीय या पश्चातवर्ती दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से जिसकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी और जुर्माने से भी जो पाँच लाख रुपए से कम नहीं होगा किन्तु जो पचास लाख रुपए तक का हो सकेगा, दण्डनीय होगा।
(1घ) जो कोई उपधारा (1ग) के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का दुष्प्रेरण करेगा, यदि दुष्प्रेरित कार्य उस दुष्प्रेरण के परिणामस्वरूप किया जाता है, तो वह उस अपराध के लिये उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा।}
(2) जब कोई व्यक्ति इस अधिनियम के विरुद्ध किसी अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराया जाता है तो अपराध का विचारण करने वाला न्यायालय आदेश दे सकेगा कि कोई बन्दी प्राणी, वन्य प्राणी, प्राणी-वस्तु, ट्राफी, 7{असंसाधित ट्राफी, मांस, भारत में आयातित हाथी दाँत या ऐसे हाथी दाँत से बनी वस्तु, कोई विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी, जिसके बारे में अपराध किया गया है और उक्त अपराध के करने में प्रयुक्त कोई फाँसा, औजार, यान, जलयान या आयुध राज्य सरकार को समपहृत हो जाएगा और यह कि ऐसे व्यक्ति द्वारा इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन धारित कोई अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र रद्द कर दिया जाएगा।
(3) अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र का ऐसे रद्दकरण या ऐसा समपहरण किसी ऐसे अन्य दण्ड के अतिरिक्त होगा जो ऐसे अपराध के लिये दिया जाये।
(4) जहाँ कोई व्यक्ति इस अधिनियम के विरुद्ध अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराया जाता है, वहाँ न्यायालय निदेश दे सकेगा कि वह अनुज्ञप्ति, यदि कोई हो, जो आयुध अधिनियम, 1959 (1959 का 54) के अधीन ऐसे व्यक्ति को किसी ऐसे आयुध का कब्जा रखने के लिये दी गई है जिससे इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध किया जाता है रद्द कर दी जाएगी और ऐसा व्यक्ति आयुध अधिनियम, 1959 के अधीन दोषसिद्धि की तारीख से पाँच वर्ष के लिये, अनुज्ञप्ति का पात्र नहीं होगा।
1{(5) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) की धारा 360 या अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 (1958 का 20) की कोई बात, किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन में आखेट करने से सम्बन्धित किसी अपराध या अध्याय 5क के किसी उपबन्ध के विरुद्ध किसी अपराध के लिये सिद्धदोष ठहराए गए व्यक्ति को तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि ऐसा व्यक्ति अठारह वर्ष की आयु के कम का न हो।
2{51क. जमानत मंजूर करते समय कतिपय शर्तों का लागू होना
जहाँ कोई व्यक्ति, जो अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 से सम्बन्धित अपराध या राष्ट्रीय उपवन या वन्य जीव अभयारण्य की सीमाओं के अन्दर आखेट से सम्बन्धित कोई अपराध या ऐसे उपवनों और अभयारण्य की सीमाओं में परिवर्तन करने सम्बन्धी कोई अपराध करने का अभियुक्त है, अधिनियम के उपबन्धों के अधीन गिरफ्तार किया जाता है वहाँ दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में किसी बात के होते हुए भी, ऐसे व्यक्ति को, जिसे इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिये पहले से ही सिद्धदोष ठहराया गया था, तब तक जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा जब तक-
(क) लोक अभियोजक को निर्मुक्ति का विरोध करने का अवसर नहीं दिया गया हो; और
(ख) जहाँ लोक अभियोजक आवेदन का विरोध करता है, वहाँ न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार हैं कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं हैं और यह कि जमानत पर छोड़े जाने पर उसके द्वारा कोई अपराध किये जाने की सम्भावना नहीं है।}
52. प्रयत्न और दुष्प्रेरण
जो कोई इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का या इसके अधीन बनाए गए किसी नियम या आदेश का उल्लंघन करने का प्रयत्न या दुष्प्रेरणा करेगा उसके बारे में यह समझा जाएगा कि उसने, यथास्थिति, उस उपबन्ध या नियम या आदेश का उल्लंघन किया है।
53. सदोष अभिग्रहण के लिये दण्ड
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति, धारा 50 में वर्णित कारणों से अभिगृहीत करने के बहाने से, उसे तंग करने के लिये और अनावश्यक रूप से, अभिगृहीत करेगा तो वह दोषसिद्धि पर कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पाँच सौ रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डनीय होगा।
3{54. अपराधों का शमन करने की शक्ति
(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा, वन्य जीव संरक्षण निदेशक या किसी अन्य अधिकारी को जो वन्य जीव परिरक्षण सहायक निदेशक से नीचे की पंक्ति का नहीं है और राज्य सरकार के मामले में, इसी प्रकार की रीति से मुख्य वन्य जीव संरक्षक को या किसी अन्य अधिकारी को जो उप वनपाल से नीचे की पंक्ति का न हो, किसी व्यक्ति से जिसके विरुद्ध यह युक्तियुक्त सन्देह है कि उसने इस अधिनियम के विरुद्ध कोई अपराध किया है, उस अपराध के शमन के रूप में जिसकी बाबत यह सन्देह है कि वह ऐसे व्यक्ति ने किया है, किसी धन राशि के सन्दाय को स्वीकार करने के लिये सशक्त कर सकेगी।
(2) ऐसे अधिकारी को ऐसी धन की राशि के सन्दाय पर, सन्दिग्ध व्यक्ति को, यदि वह अभिरक्षा में है, उन्मोचित कर दिया जाएगा और अपराध के सम्बन्ध में ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कोई और कार्यवाही नहीं की जाएगी।
(3) किसी अपराध का शमन करने वाला अधिकारी, अपराधी को इस अधिनियम के अधीन दी गई किसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र के रद्दकरण का आदेश कर सकेगा या यदि ऐसा करने के लिये वह स्वयं सशक्त नहीं है तो ऐसा करने के लिये सशक्त अधिकारी से ऐसी अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र को रद्द करने के लिये अनुरोध कर सकेगा।
(4) उपधारा (1) के अधीन स्वीकार की गई या स्वीकार किये जाने के लिये करार पाई गई धनराशि, किसी भी दशा में, पच्चीस हजार रुपए से अधिक नहीं होगी:
परन्तु किसी ऐसे अपराध का, जिसके लिये धारा 51 में कारावास की न्यूनतम अवधि विहित की गई है, शमन नहीं किया जाएगा।}
4{55. अपराधों का संज्ञान
कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के विरुद्ध किसी अपराध का संज्ञान निम्नलिखित से भिन्न किसी व्यक्ति के परिवाद पर नहीं करेगा-
(क) वन्य जीव संरक्षण निदेशक या केन्द्रीय सरकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारी; या
5{(कक) अध्याय 4क के उपबन्धों के अतिक्रमण से सम्बन्धित मामलों से सदस्य-सचिव, केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण।}
1{(कख) सदस्य-सचिव, व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण; या
(कग) सम्बन्धित व्याघ्र आरक्षिति का निदेशक; या}
(ख) मुख्य वन्य जीव संरक्षक या राज्य सरकार द्वारा 1{ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो उस सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाये} इस निमित्त प्राधिकृत कोई अन्य अधिकारीय या
2{(खख) धारा 38ञ के उपबन्धों के अतिक्रमण के सम्बन्ध में चिड़ियाघर का भारसाधक अधिकारीय या}
(ग) कोई व्यक्ति, जिसने विहित रीति से केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या पूर्वोक्त रूप से प्राधिकृत अधिकारी को अभिकथित अपराध की और परिवार करने के अपने आशय की अन्यून साठ दिन की सूचना दी है।}
56. अन्य विधियों के प्रवर्तन का वर्जित न होना
इस अधिनियम की कोई भी बात किसी व्यक्ति को, किसी ऐसे कार्य या लोप के लिये जो इस अधिनियम के अधीन अपराध गठित करता है, तत्समय प्रवृत्त किसी अन्यविधि के अधीन अभियोजित होने से या ऐसी अन्य विधि के अधीन किसी ऐसे दण्ड या शास्ति के, जो इस अधिनियम में उपबिन्धत दण्ड या शास्ति से अधिक है, दायित्वाधीन होने से निवारित करने वाली नहीं समझी जाएगी:
परन्तु कोई भी व्यक्ति एक ही अपराध के लिये दो बार दण्डित नहीं किया जाएगा।
57. कतिपय मामलों में उपधारणा का किया जाना
जहाँ इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के लिये किसी अभियोजन में यह सिद्ध हो जाता है कि किसी व्यक्ति के कब्जे, अभिरक्षा या नियंत्रण में कोई बन्दी प्राणी, प्राणी-वस्तु, मांस, 3{ट्राफी, असंसाधित ट्राफी, विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी} है, वहाँ जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित नहीं हो जाता है, और जिसे साबित करने का भार अभियुक्त पर होगा, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसा व्यक्ति ऐसे बन्दी प्राणी-वस्तु, मांस, 3{ट्राफी, असंसाधित ट्राफी, विनिर्दिष्ट पादप या उसका भाग या व्युत्पन्नी} का विधि-विरुद्ध कब्जा, अभिरक्षा या नियंत्रण रखता है।
58. कम्पनियों द्वारा अपराध
(1) जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है, वहाँ प्रत्येक व्यक्ति जो उस अपराध के किये जाने के समय कम्पनी के कारबार के संचालन के लिये कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था और साथ ही वह कम्पनी भी उस अपराध के दोषी समझे जाएँगे और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने के लिये भागी होंगे:
परन्तु इस उपधारा की कोई भी बात किसी ऐसे व्यक्ति को दण्ड का भागी नहीं बनाएगी, यदि वह यह साबित कर देता है कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था या उसने ऐसे अपराध के निवारण के लिये सब सम्यक तत्परता बरती थी।
(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी जहाँ इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है और यह साबित होता है कि वह अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबन्धक, सचिव, या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है या उसके अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहाँ ऐसा निदेशक, प्रबन्धक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किये जाने और दण्डित किये जाने का भागी होगा।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये-
(क) “कम्पनी” से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है;
(ख) फर्म के सम्बन्ध में “निदेशक” से उस फर्म का “भागीदार” अभिप्रेत है।
4{अध्याय 6क
अवैध आखेट और व्यापार से व्युत्पन्न सम्पत्ति का समपहरण
58क. लागू होना
इस अध्याय के उपबन्ध केवल निम्नलिखित व्यक्तियों को लागू होंगे, अर्थात:-
(क) ऐसा प्रत्येक व्यक्ति जिसे किसी ऐसे अपराध का जो इस अधिनियम के अधीन तीन वर्ष या उससे अधिक की अवधि के कारावास से दण्डनीय है, सिद्धदोष ठहराया गया है;
(ख) खण्ड (क) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति का प्रत्येक सहयुक्त;
(ग) किसी ऐसी सम्पत्ति का, जो खण्ड (क) अथवा खण्ड (ख) में निर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा पहले किसी समय धारित की गई थी कोई धारा (जिसे इसमें इसके पश्चात वर्तमान धारक कहा गया है); जब तक कि, यथास्थिति, वर्तमान धारक या ऐसा व्यक्ति, जिसने ऐसे व्यक्ति के पश्चात और वर्तमान धारक के पूर्व ऐसी सम्पत्ति धारण की हो, पर्याप्त प्रतिफल के लिये सद्भाविक रूप से अन्तरिती नहीं है या नहीं थी।
58ख. परिभाषाएँ
इस अध्याय में जब तक कि सन्दर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) “अपील अधिकरण” से धारा 58ढ के अधीन गठित समहृत सम्पत्ति के लिये अपील अधिकरण अभिप्रेत है;
(ख) ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में जिसकी सम्पत्ति इस अध्याय के अधीन समपहृत की जा सकती है, “सहयुक्त” के अन्तर्गत निम्नलिखित है:-
(i) कोई व्यक्ति, जो ऐसे व्यक्ति के कार्यों का प्रबन्ध या उसके हिसाब का रख-रखाव कर रहा था या कर रहा है;
(ii) कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) के अर्थान्तर्गत व्यक्तियों का कोई संगम, व्यष्टियों का निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कम्पनी, जिसका ऐसा व्यक्ति, सदस्य, भागीदार या निदेशक रहा था या है;
(iii) कोई व्यक्ति, जो उपखण्ड (ii) में निर्दिष्ट व्यक्तियों के किसी संगम, व्यष्टियों के निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कम्पनी का किसी ऐसे समय सदस्य, भागीदार या निदेशक रहा था या है, जब ऐसा व्यक्ति, ऐसे संगम, निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कम्पनी का सदस्य, भागीदार या निदेशक रहा था या है;
(iv) कोई व्यक्ति, जो उपखण्ड (iii) में निर्दिष्ट किसी व्यक्तियों के संगम, व्यष्टियों के निकाय, भागीदारी फर्म या प्राइवेट कम्पनी के कार्यों के प्रबन्ध या हिसाब का रख-रखाव कर रहा था या कर रहा है;
(v) किसी न्यास की न्यासी, जहाँ-
(1) वह न्यास ऐसे व्यक्ति द्वारा सृजित किया गया है; या
(2) न्यास राशियों में ऐसे व्यक्ति द्वारा अभिदाय की गई आस्तियों का मूल्य (जिसमें उसके द्वारा पहले से अभिदाय की गई आस्तियों, यदि कोई हों, का मूल्य भी सम्मिलित है) उस तारीख को जिसको अभिदाय किया जाता है, न्यास की आस्तियों के मूल्य के बीस प्रतिशत से उस तारीख को कम न हो;
(6) जहाँ सक्षम प्राधिकारी, ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किये जाएँगे, यह विचार करता है कि ऐसे व्यक्ति की कोई सम्पत्ति उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति के पास धारित है, वहाँ ऐसा अन्य व्यक्ति;
(ग) “सक्षम प्राधिकारी” से धारा 58घ के अधीन प्राधिकृत कोई अधिकारी अभिप्रेत है;
(घ) “छिपाया जाना” से सम्पत्ति के स्वरूप, स्रोत, व्ययन, संचलन या स्वामित्व को छिपाना या बदलना अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक पारेषण द्वारा या किन्हीं अन्य साधनों से ऐसी सम्पत्ति का संचलन या सम्परिवर्तन करना भी है;
(ङ) “रोक लगाने” से धारा 58च के अधीन जारी किये गए आदेश द्वारा सम्पत्ति के अन्तरण, सम्परिवर्तन, व्ययन द्वारा संचलन को अस्थायी तौर पर प्रतिषिद्ध करना अभिप्रेत है;
(च) “पहचान करना” में सम्मिलित है इस बात का सबूत स्थापित करना कि वह सम्पत्ति वन्य जीव और उसके उत्पादों के अवैध आखेटन और व्यापार से व्युत्पन्न थी या उसमें प्रयोग की गई थी;
(छ) ऐसे व्यक्ति जिसे यह अध्याय लागू होता है, के सम्बन्ध में “अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति” से अभिप्रेत है,-
(i) ऐसे व्यक्ति द्वारा, अवैध आखेटन और वन्य जीव और उसके उत्पादों तथा उनके व्युत्पन्नों के व्यापार से व्युत्पन्न या उनसे अभिप्राप्त या उनके कारण हुई किसी आय, उपार्जनों या आस्तियों से या उनके माध्यम से पूर्णतः या भागतः अर्जित कोई सम्पत्ति;
(ii) ऐसे व्यक्ति द्वारा, किसी प्रतिफल के लिये या किन्हीं साधनों द्वारा अर्जित कोई सम्पत्ति, जो पूर्णतः या भागतः उपखण्ड (1) में निर्दिष्ट किसी सपत्ति से आय अथवा उपार्जन से सम्बन्धित हो, और इसमें सम्मिलित हैं-
(अ) ऐसे व्यक्ति द्वारा धारित कोई सम्पत्ति जो उसके किसी पूर्ववर्ती धारक के सम्बन्ध में इस खण्ड के अधीन अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति होती यदि उक्त पूर्ववर्ती धारक उसे धारण करना छोड़े नहीं। जब तक कि ऐसे व्यक्ति यदि कोई अन्य व्यक्ति जिसने उक्त पूर्ववर्ती धारक के पश्चात किसी समय सम्पत्ति धारित न की हो या जहाँ दो या अधिक ऐसे पूर्ववर्ती धारक हों, वहाँ ऐसे पूर्ववर्ती धारकों में से अन्तिम धारक सद्भावपूर्वक पर्याप्त प्रतिफल के लिये अन्तरिती है या था;
(आ) ऐसे व्यक्ति द्वारा प्रतिफल के लिये या किन्हीं साधनों द्वारा अर्जित ऐसी सम्पत्ति जो पूर्णतः या भागतः मद (क) के अधीन आने वाली अन्य किसी सम्पत्ति से या उसकी आय या उपार्जनों से सम्बन्धित है।
(ज) “सम्पत्ति” से अभिप्रेत है प्रत्येक वर्णन की सम्पत्ति और आस्तियाँ, चाहे मूर्त हो या अमूर्त, स्थावर हो या जंगम, साकार हो या निराकार और वन्य जीव तथा उसके उत्पादों के अवैध आखेट और व्यापार से व्युत्पन्न ऐसी सम्पत्ति या आस्तियों में हित या उस पर हक के साक्षी विलेख और लिखतें;
(झ) “सम्बन्धी” से अभिप्रेत है,-
(1) व्यक्ति का पति या की पत्नी;
(2) व्यक्ति का भाई या की बहन;
(3) व्यक्ति के पति या की पत्नी का भाई या बहन;
(4) व्यक्ति का कोई पारम्परिक पूर्व पुरुष या वंशागत वंशज;
(5) व्यक्ति के पति या पत्नी का कोई पारम्परिक पूर्वपुरुष या पारम्परिक वंशज;
(6) उपखण्ड (2), उपखण्ड (3), उपखण्ड (4) या उपखण्ड (5) में निर्दिष्ट व्यक्ति का पति या की पत्नी;(7) उपखण्ड (2) या उपखण्ड (3) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति का पारम्परिक वंशज;
(ञ) “पता लगाने” से अभिप्रेत है सम्पत्ति के स्वरूप, स्रोत, व्ययन, संचलन, हक या स्वामित्व का अवधारण करना;
(ट) “न्यास” से कोई अन्य विधिक बाध्यता भी सम्मिलित है।
58ग. अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति के धारण का प्रतिषेध
(1) इस अध्याय के प्रारम्भ की तारीख से, ऐसे किसी व्यक्ति के लिये, जिसे यह अध्याय लागू होता है यह विधिपूर्ण नहीं होगा कि वह स्वयं या उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति किसी अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति को धारण करे।
(2) जहाँ कोई व्यक्ति, उपधारा (1) के उपबन्धों के उल्लंघन में ऐसी सम्पत्ति धारण करेगा, वहाँ ऐसी सम्पत्ति, इस अध्याय के उपबन्धों के अनुसार सम्बद्ध राज्य सरकार को समपहृत होने के लिये दायी होगी:
परन्तु इस अध्याय के अधीन कोई सम्पत्ति समपहृत नहीं की जाएगी यदि ऐसी सम्पत्ति ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसे यह अधिनियम लागू होता है, अवैध आखेट और वन्य जीव और उसके उत्पादों के व्यापार से सम्बन्धित किसी अपराध से आरोपित होने की तारीख से छह वर्ष की अवधि के पूर्व अर्जित की जाती है।
58घ. सक्षम प्राधिकारी
राज्य सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा किसी अधिकारी को जो मुख्य वन संरक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो, ऐसे व्यक्तियों या व्यक्तियों के प्रवर्गों के सम्बन्ध में, जिनका राज्य सरकार निदेश दे, इस अध्याय के अधीन समक्ष प्राधिकारी के कृत्यों का निर्वहन करने के लिये प्राधिकृत कर सकेगी।
58ङ. अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति की पहचान करना
(1) कोई अधिकारी जो पुलिस उप महानिरीक्षक की पंक्ति से नीचे का न हो जिसे, यथास्थिति, केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा सम्यक रूप से प्राधिकृत किया गया हो, सक्षम प्राधिकारी से यह शिकायत प्राप्त होने पर कि किसी व्यक्ति के पास अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति है, ऐसे व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से अर्जित किसी सम्पत्ति की खोज करने और उसकी पहचान करने के लिये सभी आवश्यक उपाय करेगा।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट उपायों में किसी, व्यक्ति, स्थान, सम्पत्ति, आस्तियों, दस्तावेजों, किसी बैंक या वित्तीय संस्था, लेखा पुस्तकों या किन्हीं अन्य सुसंगत उपायोें के सम्बन्ध में, जो आवश्यक हों, कोई जाँच, अन्वेषण या सर्वेक्षण सम्मिलित हो सकेंगे।
(3) उपधारा (2) में निर्दिष्ट कोई जाँच, अन्वेषण या सर्वेक्षण, उपधारा (1) में वर्णित किसी अधिकारी द्वारा इस निमित्त समक्ष प्राधिकारी द्वारा दिये गए या जारी किये गए किन्हीं निदेशों या मार्गदर्शी सिद्धान्तों के अनुसार किया जाएगा।
58च. अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति का अभिग्रहण या उस पर रोक लगाना
(1) जहाँ धारा 58ङ के अधीन कोई जाँच या अन्वेषण करने वाले किसी अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि कोई सम्पत्ति जिसके सम्बन्ध में ऐसी जाँच या अन्वेषण किया जा रहा है, अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति है और यह सम्भावना है कि ऐसी सम्पत्ति छिपा ली जाएगी, अन्तरित कर दी जाएगी या ऐसी रीति से व्यवहृत की जाएगी जिससे इस अध्याय के अधीन ऐसी सम्पत्ति के समपहरण से सम्बन्धित कोई कार्यवाही व्यर्थ हो जाएगी, तो वह, ऐसी सम्पत्ति के अभिग्रहण के लिये आदेश कर सकेगा और जहाँ ऐसी सम्पत्ति को अभिग्रहीत करना व्यवहार्य नहीं है वहाँ वह, ऐसा आदेश कर सकेगा कि ऐसी सम्पत्ति, ऐसा आदेश करने वाले अधिकारी या सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना अन्तरित नहीं की जाएगी या अन्यथा व्यहृत नहीं की जाएगी और ऐसे आदेश की एक प्रति किसी सम्बन्धित व्यक्ति पर तामील की जाएगी:
परन्तु ऐसे आदेश की एक प्रति आदेश किये जाने के अड़तालीस घंटे के भीतर सक्षम प्राधिकारी को भेजी जाएगी।
(2) उपधारा (1) के अधीन किये गए किसी आदेश का तब तक कोई प्रभाव नहीं होगा जब तक कि उस आदेश के अधीन किये जाने से तीस दिन की अवधि के भीतर सक्षम प्राधिकारी के आदेश द्वारा उसकी पुष्टि नहीं कर दी जाती है।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये, “सम्पत्ति का अन्तरण” से अभिप्रेत है सम्पत्ति का कोई व्ययन, हस्तान्तरण, समनुदेशन, व्यवस्थापन, परिदान, सन्दाय या अन्य-संक्रामण और पूर्वगामी की व्यापकता को सीमित किये बिना इसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं:-
(क) सम्पत्ति में किसी न्यास का सृजन;
(ख) सम्पत्ति में किसी पट्टे, बन्धक प्रभार, सुखाचार, अनुज्ञप्ति, शक्ति, भागीदारी या हित का अनुदान या सृजन;
(ग) किसी व्यक्ति में, जो सम्पत्ति का स्वामी नहीं है विनिहित सम्पत्ति का, शक्ति के आदाता से भिन्न किसी व्यक्ति के पक्ष में उसका व्ययन अवधारित करने के लिये चयन करने की शक्ति का प्रयोग;
(घ) अपनी स्वयं की सम्पत्ति का मूल्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम करने और किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति का मूल्य बढ़ाने के आशय से किसी व्यक्ति द्वारा किया गया कोई संव्यवहार।
58छ. इस अध्याय के अधीन अभिगृहीत या समपहृत सम्पत्ति का प्रबन्ध
(1) राज्य सरकार, राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा, प्रशासक के कृत्यों का निर्वहन करने के लिये अपने ऐसे अधिकारियों को (जो वन संरक्षक की पंक्ति से नीचे के न हों) उतनी संख्या में नियुक्त कर सकेगी जो वह ठीक समझे।
(2) उपधारा (1) के अधीन नियुक्त किया गया प्रशासक, उस सम्पत्ति को जिसके सम्बन्ध में धारा 58च की उपधारा (1) या धारा 58झ के अधीन आदेश किया गया है, ऐसी रीति से और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जो विहित की जाएँ, प्राप्त करेगा और उसका प्रबन्ध करेगा।
(3) प्रशासक, राज्य सरकार को समपहृत सम्पत्ति के व्ययन के लिये ऐसे उपाय भी करेगा जो राज्य सरकार निदेश दे।
58ज. सम्पत्ति के समपहरण की सूचना
(1) यदि किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं या उसकी ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भारित ऐसी सम्पत्ति के, जिसे यह अध्याय लागू होता है, मूल्य, उसकी आय, उपार्जनों या आस्तियों के ज्ञात स्रोतों और किसी अन्य सूचना या सामग्री को, जो धारा 58ङ के अधीन किसी अन्वेषण करने वाले किसी अधिकारी से प्राप्त किसी रिपोर्ट के परिणामस्वरूप या अन्यथा उपलब्ध हो, ध्यान में रखते हुए, यदि सक्षम प्राधिकारी ऐसे कारणों से जो अभिलिखित किये जाएँगे, यह विश्वास करता है कि ऐसी कोई या सभी सम्पत्ति अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति है, तो वह ऐसे व्यक्ति पर (जिसे इसमें इसके पश्चात प्रभावी व्यक्ति कहा गया है) सूचना की तामील कर सकेगा और उससे सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर यह कारण दर्शित करने की अपेक्षा कर सकेगा कि, यथास्थिति, ऐसी कोई या सभी सम्पत्ति अवैध रूप से अर्जित क्यों नहीं घोषित की जानी चाहिए और इस अध्याय के अधीन राज्य सरकार को समपहृत की जानी चाहिए और यह कि वह अपने मामले के समर्थन में अपनी ऐसी आय, उपार्जनों या आस्तियों के स्रोतों को, जिनसे या जिनके माध्यम से उसने ऐसी सम्पत्ति अर्जित की है, वह साक्ष्य जिस पर वह निर्भर करता है और अन्य सुसंगत सूचना और विशिष्टियाँ दर्शित करे।
(2) जहाँ उपधारा (1) के अधीन किसी व्यक्ति को दी गई सूचना में किसी सम्पत्ति का किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उस व्यक्ति के निमित्त धारित किया जाना विनिर्दिष्ट है, वहाँ इस सूचना की एक प्रति की उस अन्य व्यक्ति पर भी तामील की जाएगी।
58झ. कतिपय दशाओं में सम्पत्ति का समपहरण
(1) सक्षम प्राधिकारी, धारा 58ज के अधीन जारी की गई कारण बताओ सूचना के स्पष्टीकरण, यदि कोई हों, और अपने समक्ष उपलब्ध सामग्री पर विचार करने के पश्चात तथा प्रभावित व्यक्ति को, ऐसी दशा में जहाँ प्रभावित व्यक्ति, सूचना में विनिर्दिष्ट कोई सम्पत्ति किसी अन्य के माध्यम से धारित करता है, वहाँ ऐसे व्यक्ति को भी सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात आदेश द्वारा, अपना निष्कर्ष लेखबद्ध करेगा कि क्या प्रश्नगत सभी या कोई सम्पत्ति अवैध रूप में अर्जित सम्पत्ति है;
परन्तु यदि प्रभावित व्यक्ति (और ऐसी दशा में जहाँ प्रभावित व्यक्ति सूचना में विनिर्दिष्ट कोई सम्पत्ति किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से धारण करता हो, वहाँ ऐसा अन्य व्यक्ति भी) सक्षम प्राधिकारी के समक्ष हाजिर नहीं होता है या कारण बताओ सूचना में विनिर्दिष्ट तीस दिन की अवधि के भीतर अपना पक्ष-कथन प्रस्तुत नहीं करता है वहाँ सक्षम प्राधिकारी, अपने समक्ष उपलभ्य साक्ष्य के आधार पर एकपक्षीय रूप से इस उपधारा के अधीन अपना निष्कर्ष लेखबद्ध करने के लिये अग्रसर हो सकेगा।
(2) जहाँ सक्षम प्राधिकारी का यह समाधान हो कि कारण बताओ सूचना में निर्दिष्ट कुछ सम्पत्तियाँ अवैध रूप से अर्जित सम्पत्तियाँ हैं किन्तु विनिर्दिष्टतः ऐसी सम्पत्तियों की पहचान करने में समर्थ न हो, वहाँ समक्ष प्राधिकारी के लिये यह विधिपूर्ण होगा कि वह उन सम्पत्तियों को विनिर्दिष्ट करे जो उसके सर्वोत्तम निर्णय के अनुसार अवैध रूप से अर्जित सम्पत्तियाँ हैं और नब्बे दिन की अवधि के भीतर उपधारा (1) के अधीन तद्नुसार निष्कर्ष लेखबद्ध करे।
(3) जहाँ सक्षम प्राधिकारी इस धारा के अधीन इस आशय का निष्कर्ष लेखबद्ध करता है कि कोई सम्पत्ति अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति है, तो वह घोषित करेगा कि ऐसी सम्पत्ति, इस अध्याय के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, सभी विल्लंगमों से मुक्त राज्य सरकार को समपहृत हो जाएगी।
(4) यदि प्रभावित व्यक्ति यह सिद्ध कर देता है कि धारा 58ज के अधीन जारी सूचना में विनिर्दिष्ट सम्पत्ति अवैध रूप में अर्जित सम्पत्ति नहीं है और इसलिये इस अधिनियम के अधीन समपहृत किये जाने के लिये दायी नहीं है, तो उक्त सूचना वापस ले ली जाएगी और सम्पत्ति को तुरन्त निर्मुक्त कर दिया जाएगा।
(5) जहाँ किसी कम्पनी के कोई शेयर इस अध्याय के अधीन राज्य सरकार को समपहृत हो जाते हैं वहाँ कम्पनी, कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) या कम्पनी के संगम-अनुच्छेदों में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार को ऐसे शेयरों के अन्तरिती के रूप में तुरन्त रजिस्टर करेगी।
58ञ. सबूत का भार
इस अध्याय के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों में यह साबित करने का भार कि धारा 58ज के अधीन तामील की गई सूचना में विनिर्दिष्ट कोई सम्पत्ति अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति नहीं है, प्रभावित व्यक्ति पर होगा।
58ट. समपहरण के बदले जुर्माना
(1) जहाँ सक्षम प्राधिकारी यह घोषणा करता है कि कोई सम्पत्ति धारा 58झ के अधीन राज्य सरकार को समपहृत हो गई है और यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति के केवल एक भाग का स्रोत सक्षम प्राधिकारी के समाधानप्रद रूप से साबित नहीं किया गया है तो वह, प्रभावित व्यक्ति को, समपहरण के बदले, उस भाग के बाजार मूल्य के बराबर जुर्माने का सन्दाय करने का विकल्प देते हुए, आदेश करेगा।
(2) उपधारा (1) के अधीन जुर्माना अधिरोपित करने से पूर्व प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जाएगा।
(3) जहाँ प्रभावित व्यक्ति, उपधारा (1) के अधीन शोध्य जुर्माने का उस निमित्त अनुज्ञात समय के भीतर सन्दाय कर देता है, वहाँ सक्षम प्राधिकारी, धारा 58झ के अधीन समपहरण की घोषणा, आदेश द्वारा प्रतिसंहृत कर सकेगा और तदुपरि ऐसी सम्पत्ति निर्मुक्त हो जाएगी।
58ठ. कतिपय न्यास सम्पत्तियों के सम्बन्ध में प्रक्रिया
यदि सक्षम प्राधिकारी के पास धारा 58ख के खण्ड (ख) के उपखण्ड (vi) में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति की दशा में, उसे उपलब्ध जानकारी और सामग्री के आधार पर, लेखबद्ध किये जाने वाले कारणों से, यह विश्वास करने का कारण है कि न्यास में धृत कोई सम्पत्ति अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति है, तो वह, यथास्थिति, न्यासकर्ता या उन आस्तियों के अभिदायकर्ता, जिनसे या जिनके साधनों से न्यास या न्यासियों द्वारा ऐसी सम्पत्ति अर्जित की गई थी यह अपेक्षा करते हुए एक सूचना की तामील कर सकेगा कि वे सूचना में विनिर्दिष्ट तीन दिन की अवधि के भीतर उस धन या उन्य आस्तियों के स्रोत को, जिनसे या जिनके साधनों से, यथास्थिति, ऐसी सम्पत्ति अर्जित की गई थी या, यथास्थिति, उस धन या उन अन्य आस्तियों के स्रोत को, जिनका ऐसी सम्पत्ति को अर्जित करने के लिये न्यास में अभिदाय किया गया था स्पष्ट करे और तदुपरि ऐसी सूचना धारा 58ज के अधीन तामील की गई सूचना समझी जाएगी और इस अध्याय के अन्य सभी उपबन्ध तद्नुसार लागू होंगे।
स्पष्टीकरण
इस धारा के प्रयोजनों के लिये, न्यास में धृत किसी सम्पत्ति के सम्बन्ध में “अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति” के अन्तर्गत निम्नलिखित हैं,-
(i) ऐसी सम्पत्ति जो यदि न्यासकर्ता या न्यास में ऐसी सम्पत्ति के अभिदायकर्ता द्वारा धारित की जाती रही होती तो वह ऐसे न्यासकर्ता या अभिदायकर्ता के सम्बन्ध में अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति होती;
(ii) ऐसी सम्पत्ति जो न्यास द्वारा ऐसे किसी व्यक्ति द्वारा किये गए किसी अभिदाय से अर्जित की गई है, जो ऐसे व्यक्ति के सम्बन्ध में अवैध रूप से अर्जित सम्पत्ति होती यदि ऐसे व्यक्ति ने ऐसी सम्पत्ति ऐसे अभिदायों से अर्जित की होती।
58ड. कतिपय अन्तरणों का अकृत और शून्य होना
धारा 58च की उपधारा (1) के अधीन किसी आदेश के किये जाने या धारा 58ज या 58ठ के अधीन किसी सूचना के जारी किये जाने के पश्चात उक्त आदेश या सूचना में निर्दिष्ट कोई सम्पत्ति, किसी भी ढंग से अन्तरित की जाती है तो ऐसे अन्तरण पर इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिये ध्यान नहीं दिया जाएगा और यदि ऐसी सम्पत्ति तत्पश्चात धारा 58झ के अधीन राज्य सरकार को समपहृत हो जाती है तो ऐसी सम्पत्ति का अन्तरण अकृत या शून्य समझा जाएगा।
58ढ. अपील प्राधिकरण का गठन
(1) राज्य सरकार, धारा 58च, धारा 58झ, धारा 58ट की उपधारा (1) या धारा 58ठ के अधीन किये गए आदेशों के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्वारा समपहृत सम्पत्ति के लिये अपील प्राधिकरण नामक एक अपील प्राधिकरण का गठन कर सकेगी जिसमें एक अध्यक्ष और उतनी संख्या में अन्य सदस्य होंगे, और (जो राज्य सरकार के ऐसे अधिकारी होंगे, जो प्रधान सचिव की पंक्ति से नीचे के न हों), जिन्हें राज्य सरकार नियुक्त करना ठीक समझे।
(2) अपील प्राधिकरण का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है या होने के लिये अर्हित है।
(3) अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्तें वे होंगी जो विहित की जाएँ।
58ण. अपीलें
(1) सक्षम प्राधिकारी के धारा 58च, धारा 58झ, धारा 58ट की उपधारा (1) या धारा 58ठ के अधीन किये गए किसी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति, उस तारीख से जिसको आदेश की उस पर तामील की जाती है, पैंतालीस दिन के भीतर अपील प्राधिकरण को अपील कर सकेगा:
परन्तु अपील प्राधिकरण, यदि उसका यह समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी समय के भीतर अपील फाइल करने से पर्याप्त कारण से निवारित हुआ था तो पैंतालीस दिन की उक्त अवधि के पश्चात किन्तु पूर्वोक्त तारीख से साठ दिन के अपश्चात कोई अपील ग्रहण कर सकेगा।
(2) अपील प्राधिकरण, उपधारा (1) के अधीन कोई अपील प्राप्त होने पर, अपीलार्थी को यदि वह ऐसी वांछा करे तो, सुनवाई का अवसर देने के पश्चात और ऐसी जाँच करने के पश्चात, जो वह ठीक समझे, उस आदेश को, जिसके विरुद्ध अपील की गई है, पुष्ट, उपान्तरित या अपास्त कर सकेगा।
(3) अपील प्राधिकरण अपनी स्वयं की प्रक्रिया का विनियमन कर सकेगा।
(4) अपील प्राधिकरण, अपील प्राधिकरण को आवेदन किये जाने पर और विहित फीस के सन्दाय पर, अपील के किसी पक्षकार को या ऐसे पक्षकार द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति को, कार्यालय समय के दौरान किसी समय, अपील प्राधिकरण के सुसंगत अभिलेखों और रजिस्टरों का निरीक्षण करने के लिये और उसकी या उसके किसी भाग की प्रमाणित प्रति अभिप्राप्त करने के लिये अनुज्ञात कर सकेगा।
58त. सूचना या आदेश का वर्णन में त्रुटि के कारण अविधिमान्य न होना
इस अध्याय के अधीन जारी की गई या तामील की गई कोई सूचना, की गई कोई घोषणा और पारित किया गया कोई आदेश, सम्पत्ति के वर्णन या उसमें वर्णित व्यक्ति के सम्बन्ध में किसी त्रुटि के कारण अविधिमान्य नहीं समझा जाएगा यदि वह सम्पत्ति या व्यक्ति इस प्रकार उल्लिखित वर्णन से पहचानने योग्य है।
58थ. अधिकारिता का वर्जन
इस अध्याय के अधीन पारित किया गया कोई आदेश या की गई कोई घोषणा उसमें यथा उपबन्धित के सिवाय अपीलनीय नहीं होगी और किसी सिविल न्यायालय को ऐसे किसी मामले के सम्बन्ध में अधिकारिता नहीं होगी जिसका अपील अधिकरण या कोई सक्षम प्राधिकारी इस अध्याय द्वारा या उसके अधीन अवधारण करने के लिये सशक्त है और इस अध्याय द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई के सम्बन्ध में कोई व्यादेश किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी द्वारा अनुदत्त नहीं किया जाएगा।
58द. सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण के पास सिविल न्यायालय की शक्तियों का होना
सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण के पास सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी वाद का विचारण करते समय निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में सिविल न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी, अर्थात:-
(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना और शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और पेश किये जाने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथ पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना;
(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिये कमीशन निकालना;
(च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाये।
58ध. सक्षम प्राधिकारी को सूचना
(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, सक्षम प्राधिकारी को केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकरण के किसी अधिकारी या प्राधिकारी से ऐसे व्यक्तियों, मुद्दों या विषयों के सम्बन्ध में जो सक्षम प्राधिकारी की राय में इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये लाभदायक या सुसंगत होंगे, जानकारी प्रस्तुत करने की अपेक्षा करने की शक्ति होगी।
(2) धारा 58न में निर्दिष्ट प्रत्येक अधिकारी, अपने पास उपलब्ध किसी जानकारी को स्वप्रेरणा से सक्षम प्राधिकारी के पास प्रस्तुत कर सकेगा यदि अधिकारी की राय में ऐसी जानकारी इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये सक्षम प्राधिकारी के लिये उपयोगी होगी।
58न. कतिपय अधिकारियों का प्रशासक, सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण की सहायता करना
इस अध्याय के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिये, निम्नलिखित अधिकारी, धारा 58छ के अधीन नियुक्त किये गए प्रशासक, सक्षम प्राधिकारी और अपील अधिकरण को यथावश्यक सहायता देंगे, अर्थात:-
(क) पुलिस अधिकारी;
(ख) राज्य वन विभागों के अधिकारी;
(ग) केन्द्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो के अधिकारी;
(घ) राजस्व आसूचना निदेशालय के अधिकारी;
(ङ) ऐसे अन्य अधिकारी जो राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किये जाएँ।
58प. कब्जा लेने की शक्ति
(1) जहाँ इस अध्याय के अधीन कोई सम्पत्ति राज्य सरकार को समपहृत की जाने वाली घोषित की गई है या जहाँ प्रभावित व्यक्ति, धारा 58ट की उपधारा (1) के अधीन शोध्य जुर्माने का सन्दाय उक्त धारा की उपधारा (3) के अधीन उसके लिये अनुज्ञात समय के भीतर करने में असफल रहता है वहाँ, सक्षम प्राधिकारी, प्रभावित व्यक्ति और किसी अन्य व्यक्ति को भी, जिसके कब्जे में उक्त सम्पत्ति है, उसका कब्जा धारा 58छ के अधीन नियुक्त किये गए प्रशासक को या इस निमित्त उसके द्वारा सम्यक्तः प्राधिकृत किसी व्यक्ति को उक्त आदेश की तामील के 30 दिन के भीतर अभ्यर्पित या परिदत्त करने का आदेश कर सकेगा।
(2) यदि कोई व्यक्ति, उपधारा (1) के अधीन किये गए किसी आदेश का पालन करने से इनकार करता है या असफल रहता है तो प्रशासक, उक्त सम्पत्ति का कब्जा ले सकता है और उस प्रयोजन के लिये उतने बल का प्रयोग कर सकता है जो आवश्यक हो।
(3) उपधारा (2) में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, प्रशासक, उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी सम्पत्ति का कब्जा लेने के प्रयोजनार्थ, अपनी सहायता के लिये पुलिस अधिकारी की सेवाओं की अपेक्षा कर सकेगा और उस अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसी अपेक्षा का पालन करे।
58फ. त्रुटियों की परिशुद्धि
अभिलेख से प्रकट किसी त्रुटि की परिशुद्धि करने की दृष्टि से, यथास्थिति, सक्षम प्राधिकारी या अपील अधिकरण, अपने द्वारा किये गए किसी आदेश को, आदेश की तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर संशोधित कर सकेगा:
परन्तु यदि ऐसे किसी संशोधन से किसी व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना है और वह लेखन की प्रकृति की त्रुटि नहीं है तो संशोधन, ऐसे व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिये बिना नहीं किया जाएगा।
58ब. इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियों के लिये अन्य विधियों के अधीन निष्कर्षों का निर्णायक न होना-
किसी अन्य विधि के अधीन किसी अधिकारी या प्राधिकारी का कोई निष्कर्ष, इस अध्याय के अधीन किन्हीं कार्यवाहियों के प्रयोजनों के लिये निर्णायक नहीं होगा।
58भ. सूचना और आदेशों की तामील
इस अध्याय के अधीन जारी की गई सूचना या किये गए आदेश की तामील,-
(क) उस व्यक्ति को, जिसके लिये वह आशयित है या उसके अभिकर्ता को सूचना या आदेश निविदत्त करके या रजिस्ट्रीकृत डाक द्वारा भेजकर की जाएगी;
(ख) यदि सूचना या आदेश की, खण्ड (क) में उपबन्धित रीति से तामील नहीं की जा सकती है तो उस सम्पत्ति के, जिसके सम्बन्ध में सूचना जारी की गई है या आदेश किया गया है, किसी सहज दृश्य स्थान पर या उस परिसर के, जिसके बारे में यह ज्ञात है कि वह उस व्यक्ति के, जिसके लिये यह आशयित है, वहाँ अन्तिम रूप से रहा है या जहाँ उसने अपना कारबार किया है या व्यैक्तिक रूप से अभिलाभ के लिये कार्य किया है, किसी सहज दृश्य भाग पर चिपका कर की जाएगी।
58म. ऐसी सम्पत्ति के अर्जन के लिये दण्ड जिसके सम्बन्ध में इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियाँ की गई हैं
ऐसा कोई व्यक्ति जो जान बूझकर, किसी भी ढंग से, ऐसी कोई सम्पत्ति अर्जित करता है जिसके सम्बन्ध में इस अध्याय के अधीन कार्यवाहियाँ लम्बित हैं, ऐसी अवधि के कारावास से जो पाँच वर्ष तक का हो सकेगा और जुर्माने से जो पचास हजार रुपए तक का हो सकेगा दण्डनीय होगा।}
अध्याय 7
प्रकीर्ण
59. अधिकारियों का लोक सेवक होना
1{अध्याय 2 में निर्दिष्ट प्रत्येक अधिकारी तथा} अध्याय 4क 2{, अध्याय 4ख} में निर्दिष्ट अध्यक्ष, सदस्य, सदस्य-सचिव और अन्य अधिकारी तथा कर्मचारी इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त शक्तियों में से किसी का प्रयोग करने वाला प्रत्येक अन्य अधिकारी भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा।
60. सद्भावपूर्वक की गई कार्यवाही के लिये संरक्षण
(1) इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के बारे में कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के किसी भी अधिकारी या अन्य कर्मचारी के विरुद्ध न होगी।
(2) इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात से हुए या सम्भाव्यतः होने वाले किसी नुकसान के लिये कोई भी वाद या अन्य विधिक कार्यवाही केन्द्रीय सरकार का राज्य सरकार या उसके अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों में से किसी के विरुद्ध न होगी।
3{(3) इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिये आशयित किसी बात के लिये कोई वाद या अन्य विधिक कार्यवाही अध्याय 4क 2{, अध्याय 4ख} में निर्दिष्ट प्राधिकरण और उसके अध्यक्ष, सदस्यों, सदस्य-सचिव, अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों के विरुद्ध नहीं होगी।}
4{60क. व्यक्तियों को पुरस्कार
(1) जब कोई न्यायालय जुर्माने का दण्ड या ऐसा दण्ड जिसका, जुर्माना भागरूप हो, अधिरोपित करता है तो वह न्यायालय, निर्णय देते समय, यह आदेश कर सकेगा कि ऐसे व्यक्ति को जो अपराध का पता लगाने में या अपराधियों को पकड़वाने में सहायता करता है, जुर्माने के आगमों में से, 5{ऐसे जुर्माने के पचास प्रतिशत} से अनधिक का पुरस्कार दिया जाये।
(2) जब किसी मामले का धारा 54 के अधीन शमन किया जाता है तो शमन करने वाला अधिकारी ऐसे व्यक्ति को जो अपराध का पता लगाने या अपराधियों को पकड़वाने में सहायता करता है, शमन के रूप में स्वीकार की गई धनराशि में से, 1{ऐसी धनराशि के पचास प्रतिशत} से अनधिक का पुरस्कार दिये जाने का आदेश कर सकेगा।}
2{60ख. राज्य सरकार द्वारा पुरस्कार
राज्य सरकार, मुख्य वन्य जीव संरक्षक को, ऐसे व्यक्ति को, जो अपराध का पता लगाने या अपराधी को पकड़वाने में सहायता करता है, विहित की जाने वाली निधि से और रीति से दस हजार रुपए से अनधिक का पुरस्कार सन्दत्त किये जाने का आदेश करने के लिये सशक्त कर सकती है।}
61. अनुसूचियों की प्रविष्टियों में परिवर्तन करने की शक्ति
(1) यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि ऐसा करना समीचीन है तो वह अधिसूचना द्वारा 3{किसी अनुसूची में कोई प्रविष्टि जोड़ सकेगी या उसमें से हटा सकेगी, या किसी अनुसूची के एक भाग से किसी प्रविष्टि को उसी अनुसूची के किसी अन्य भाग में या एक अनुसूची से किसी अन्य अनुसूची में अन्तरित कर सकेगी।
(3) उपधारा (1)5*** के अधीन अधिसूचना जारी किये जाने पर सुसंगत अनुसूची को तद्नुसार परिवर्तित समझा जाएगा, परन्तु प्रत्येक ऐसा परिवर्तन ऐसे परिवर्तन से पूर्व की गई या न की गई किसी बात पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा।
62. कुछ वन्य प्राणियों का पीड़क जन्तु घोषित किया जाना
7{केन्द्रीय सरकार} अधिसूचना द्वारा, अनुसूची 1 या अनुसूची 2 के भाग 2 में विनिर्दिष्ट वन्य प्राणियों से भिन्न किसी वन्य प्राणी के, किसी क्षेत्र के लिये और ऐसी अवधि के लिये जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाये, पीड़क जन्तु घोषित कर सकेगी और जब तक ऐसी अधिसूचना प्रवृत्त रहती है ऐसे वन्य प्राणी के बारे में यह समझा जाएगा कि वह अनुसूची 5 में सम्मिलित कर लिया गया है।
63. केन्द्रीय सरकार की नियम बनाने की शक्ति
8{(1) केन्द्रीय सरकार, अधिसूचना द्वारा निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिये नियम बना सकेगी, अर्थात:-(क) वे शर्तें और अन्य बातें जिनके अधीन कोई अनुज्ञप्तिधारी धारा 17च के अधीन किसी विनिर्दिष्ट पादप को अपनी अभिरक्षा या कब्जे में रख सकेगा}
9{(कi) उन सदस्यों से, जो पदेन सदस्य हैं, भिन्न सदस्यों की पदावधि, रिक्तियों को भरने की रीति, धारा 5क की उपधारा (2) के अधीन सदस्यों राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया और धारा 5क की उपधारा (3) के अधीन उन सदस्यों के भत्ते;}
(ख) धारा 38ख की उपधारा (5) के अधीन अध्यक्ष, सदस्यों और सदस्य-सचिव के वेतन और भत्ते तथा उनकी नियुक्ति की अन्य शर्तें;
(ग) धारा 38ख की उपधारा (7) के अधीन केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें;
(घ) वह प्रारूप जिसमें केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण के लेखाओं का वार्षिक विवरण धारा 38ङ की उपधारा (4) के अधीन तैयार किया जाएगा;
(ङ) वह प्रारूप जिसमें और वह समय जब केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट धारा 38च के अधीन तैयार की जाएगी;
(च) वह प्रारूप जिसमें और वह फीस जो धारा 38ज की उपधारा (2) के अधीन किसी चिड़ियाघर की मान्यता के लिये आवेदन के साथ सन्दत्त की जानी अपेक्षित है;
(छ) वे मानक, मापदण्ड और अन्य बातें जो धारा 38ज की उपधारा (4) के अधीन मान्यता प्रदान करने के लिये विचारणीय है;
10{(छi) धारा 38झ की उपधारा (2) के खण्ड (घ) के अधीन विशेषज्ञों या वृत्तिकों की अर्हताएँ और अनुभव;
(छii) धारा 38ड की उपधारा (4) के अधीन सदस्यों के वेतन और भत्ते तथा नियुक्ति की अन्य शर्तें;
(छiii) धारा 38ढ की उपधारा (2) के अधीन व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन और शर्तें;
(छiv) वह प्रारूप जिसमें धारा 38द की उपधारा (1) के अधीन व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण का वार्षिक लेखा विवरण तैयार किया जाएगा;
(छv) वह प्रारूप और वह समय जिसमें धारा 38घ के अधीन व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की वार्षिक रिपोर्ट तैयार की जाएगी;
(छvi) धारा 38य की उपधारा (2) के खण्ड (ii) के अधीन वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की अन्य शक्तियाँ;}
(ज) वह प्रारूप जिसमें धारा 44 की उपधारा (2) के अधीन घोषणा की जाएगी;
(झ) धारा 44 की उपधारा (4) के खण्ड (ख) के अधीन विहित किये जाने वाले विषय;
(ञ) वे निबन्धन और शर्तें जो धारा 48 के खण्ड (ख) में निर्दिष्ट संव्यवहारों को शासित करेंगी;
(ट) वह रीति जिसे धारा 55 के खण्ड (ग) के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा सूचना दी जा सकेगी;
(ठ) धारा 64 की उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट विषय, जहाँ तक उनका सम्बन्ध केन्द्रीय सरकार द्वारा घोषित अभयारण्यों और राष्ट्रीय उपवनों से है।}
(2) इस धारा के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात यथाशीघ्र, संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष जब वह सत्र में हो, तीस दिन की अवधि के लिये रखा जाएगा। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी। यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व, दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाएँ तो तत्पश्चात, वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा। यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएँ कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात, वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।
64. राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति
(1) राज्य सरकार उन विषयों की बाबत जो धारा 63 के क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं है, इस अधिनियम के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये नियम, अधिसूचना द्वारा बना सकती है।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी या किसी विषय के लिये उपबन्ध कर सकेंगे, अर्थात:-
1{(क) धारा 6 की उपधारा (2) के अधीन उन सदस्यों से, जो पदेन सदस्य हैं, भिन्न सदस्यों की पदावधि, रिक्तियों को भरने की रीति और बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया;
(ख) धारा 6 की उपधारा (3) में निर्दिष्ट भत्ते;}
(ग) इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन किये गए, दिये गए या निवेदित आवेदन, प्रमाणपत्र, दावे, घोषणा, अनुज्ञप्ति, अनुज्ञापत्र, रजिस्ट्रीकरण, विवरणी या अन्य दस्तावेज के लिये प्रयुक्त किये जाने वाले प्रारूप और उनके लिये फीस, यदि कोई हो;
(घ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए इस अधिनियम के अधीन कोई अनुज्ञप्ति या अनुज्ञापत्र दिया जा सकता है;}
2{(घघ) वे शर्तें जिनके अधीन रहते हुए न्यायालय में मामले में फाइल करने के लिये अधिकारियों को प्राधिकृत किया जाये
(ङ) अनुज्ञप्तिधारी द्वारा वन्य प्राणियों की बाबत रखे जाने वाले या भेजे जाने वाले अभिलेख की विशिष्टियाँ;
3{(ङङ) वह रीति जिससे पशुधन के असंक्रमणीकरण के लिये उपाय किये जाएँगे;}
(च) बन्दी प्राणियों, मांस, प्राणी-वस्तुओं, ट्राफियों और असंसाधित ट्राफियों के कब्जे, अन्तरण और विक्रय का विनियमन;
(छ) चर्मपूरण का विनियमन;
1{(छक) वह रीति और शर्तें जिनके अधीन रहते हुए प्रशासक धारा 58छ की उपधारा (2) के अधीन सम्पत्ति को प्राप्त करेगा और उसका प्रबन्ध करेगा;
(छख) धारा 58ठ की उपधारा (3) के अधीन अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्तें;
(छग) वह निधि जिसमें से और वह रीति जिससे धारा 60ख के अधीन पुरस्कार का सन्दाय किया जाएगा;}
(ज) कोई अन्य विषय जो इस अधिनियम के अधीन विहित किया जाना है या विहित किया जा सकता है।
65. अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण
इस अधिनियम की कोई बात अंडमान और निकोबार गजट तारीख 28 अप्रैल, 1967 के असाधारण अंक के पृष्ठ 1 से 5 में प्रकाशित अंडमान और निकोबार शासन की अधिसूचना सं० 40/67/ एफ० नं० जी 635, खण्ड 3, तारीख 28 अप्रैल, 1967 द्वारा अंडमान और निकोबार द्वीप संघ राज्यक्षेत्र में निकोबार द्वीपों की अनुसूचित जनजातियों को आखेट सम्बन्धी प्रदत्त अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं डालेगी।
66. निरसन और व्यावृतियाँ
(1) इस अधिनियम के प्रारम्भ से ही इस अधिनियम में अन्तर्विष्ट किसी विषय से सम्बद्ध प्रत्येक अन्य अधिनियम जो किसी राज्य में प्रवृत्त है वहाँ तक जहाँ तक कि वह अधिनियम या उसका कोई उपबन्ध इस अधिनियम या इस अधिनियम के किसी उपबन्ध का तत्स्थानी या उसके विरुद्ध है, निरसित हो जाएगा:
परन्तु ऐसा निरसन-
(i) इस प्रकार निरसित किसी अधिनियम के पूर्व-प्रवर्तन पर अथवा इसके अधीन सम्यक रूप से की गई या सहन की गई किसी भी बात पर प्रभाव नहीं डालेगा;
(ii) इस प्रकार निरसित किसी अधिनियम के अधीन अर्जित, प्रोद्भूत या उपगत किसी अधिकार, विशेषाधिकार, बाध्यता या दायित्व पर प्रभाव नहीं डालेगा;
(iii) इस प्रकार निरसित अधिनियम के विरुद्ध किये गए किसी अपराध की बाबत किसी शास्ति, समपहरण या दण्ड पर प्रभाव नहीं डालेगा; अथवा
(iv) यथा पूर्वोक्त किसी ऐसे अधिकार, विशेषाधिकार, बाध्यता, दायित्व, शास्ति, समपहरण या दण्ड के बारे में किसी अन्वेषण, विधिक कार्यवाही या उपचार पर प्रभाव नहीं डालेगा; तथा ऐसा कोई अन्वेषण, विधिक कार्यवाही या उपचार ऐसे संस्थित किया जा सकेगा, चालू रखा जा सकेगा या प्रवर्तित किया जा सकेगा और ऐसी कोई शास्ति, समपहरण और दण्ड ऐसे अधिरोपित किया जा सकेगा, मानो पूर्वोक्त अधिनियम निरसित नहीं किया गया है।
(2) ऐसे निरसन के होते हुए भी,-
(क) इस प्रकार निरसित अधिनियम के अधीन की गई कोई बात या कार्रवाई जिसके अन्तर्गत जारी की कोई अधिसूचना, आदेश, प्रमाणपत्र, सूचना, रसीद, किया गया आवेदन या दी गई अनुज्ञा भी है, जो इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत नहीं हैं, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन वैसे ही की गई समझी जाएगी, मानो यह अधिनियम उस समय प्रवृत्त था जब ऐसी बात का कार्रवाई की गई थी, तथा वह तब तक प्रवृत्त रहेगी जब तक कि वह इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात या कार्रवाई द्वारा अतिष्ठित नहीं कर दी जाती;
(ख) इस प्रकार निरसित तथा इस अधिनियम के प्रारम्भ के ठीक पूर्व प्रवृत्त किसी अधिनियम के अधीन दी गई प्रत्येक अनुज्ञप्ति, इस अधिनियम के तत्स्थानी उपबन्धों के अधीन दी गई समझी जाएगी, तथा इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, उस अवधि के अनवसित भाग के लिये जिसके लिये अनुज्ञप्ति दी गई थी, प्रवृत्त बनी रहेगी।
(3) शंकाओं को दूर करने के लिये इसके द्वारा घोषित किया जाता है कि उपधारा (1) के अधीन निरसित किसी अधिनियम के अधीन किसी राज्य सरकार द्वारा घोषित किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन की बाबत यह समझा जाएगा कि वह इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार द्वारा घोषित, यथास्थिति, अभयारण्य या राष्ट्रीय उपवन है, तथा जहाँ किसी ऐसे राष्ट्रीय उपवन में किसी भूमि में या उस पर कोई अधिकार इस अधिनियम के प्रारम्भ पर या उसके पूर्व उक्त अधिनियम के अधीन निर्वापित नहीं हुआ था वहाँ ऐसे अधिकारों का निर्वापन इस अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार किया जाएगा।
1{(4) शंकाओं के निवारण के लिये यह और घोषित किया जाता है कि जहाँ वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 1991 के प्रारम्भ की तारीख को धारा 19 से धारा 25 के (जिसमें ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित हैं) किसी उपबन्ध के अधीन कोई कार्यवाही लम्बित है, वहाँ ऐसे प्रारम्भ की तारीख से पूर्व अभयारण्य के रूप में धारा 18 के अधीन घोषित किसी अभयारण्य के भीतर समाविष्ट किसी आरक्षिति वन या राज्यक्षेत्रीय सागरखण्ड के बारे में यह समझा जाएगा कि वह धारा 26क के अधीन घोषित अभयारण्य है।}
अनुसूची 1
(धारा 2, धारा 8, धारा 9, धारा 11, धारा 40, धारा 41, धारा 43, धारा 48, धारा 51, धारा 61 और धारा 62 देखिए)
भाग 1-स्तनपायी
1{1. अंडमान वन्य सुअर (सर अण्डेमानेन्सिस)}
2{1क. भरल (ओविस नबूरा)}
3{1ख. बिंटुरोंग (आर्कटिकटिस बिंटुरोंग)}
2. कृष्ण सार हीरन (एण्टीलोप सर्वीकेपरा)
3{2क.***} 3. भूश्रंगी हिरन या थामिन (सर्वस एल्डाई)
3{3क हिमालयी लाल भालू (अर्सर्स आर्कटास)}
4{3ख टोप लंगूर (प्रेसबाइटिस पिलियेटक)}
4. कैराकल (फैलिस कैराकल)
3{4क कैटेशियन एस०पी०पी०}
5. चीता (एकीनानिक्स जुबाटुस)
4{5क चीनी पेंगोलिन (मेनिस पेण्टाडाक्टाइला)}
2{5ख चिंकारा या भारतीय कुरंग (गजेल गजेल बैनेटी)}
6. मेघी तेंदुआ (न्युफेलिसनेबुलोसा)
3{6क केकड़ा भक्षी लंगूर (मैकाका आइरस अम्बरोसा)}
3{6ख मरु बिल्ली (फैलिस लाईंबाईका)}
4{6ग मरु लोमड़ी (वल्पेस ब्यूकोपस)}
7. ड्यूगोंग ( ड्यूगोंग ड्यूगान )
3{7 अर्मिन (मस्टेला अर्मीनिया)}
8. मछियारी बिल्ली (फैलिस विवराईना)
2{8ग चार सींग वाला बारहसिंगा (टैट्रासेरोज क्वाडरी कोर्निस)}
3{8क ****}
4{8ग****}
5{8घ गैजेटिक डालफिन (प्लैटनिस्टा गौजिटिका)}
5{8ङ बाइसन गौर (बोस गोरस)}
9. सुनहरी बिल्ली (फैलिस टेम्मिनकाई)
10. सुनहरा लंगूर (प्रेसबाइटिस गाई)
5{10क बड़ी गिलहरी (रतूफा मैकूर)}
5{10ख हिमालयी आइबेक्स (कैपरा आइबेक्स)}
5{10ग हिमालयी थेर (हैमीट्रेगस हाइलोक्रिअस)}
11. लोमशश (केपरोलेगस हिस्पिडस)
1{11क भालू सूअर (आर्कटोनाइक्स कौलेरीज)}
12. हुलाक (हाइलोबेट्स हुलाक)
1{12क.***}2{12ख. भारतीय हाथी (एलिफास मेक्सीमस)}
13. शेर (पेंथेरा लिओ पर्सिका)
14. घोर खर (ईक्वस हेमिओनस खर)
3{15. भारतीय भेडि़या (कैनिस लूपस पैलीपेस)
16. हंगल (सर्वस इलेफस हंगलू)
1{16क. पर्णाभ बन्दर (प्रेसवाईटिस फैईरेई)}
1{16ख. चीता या बाघ (पैन्थेरा पारडस)}
17. चीता बिल्ली (कैलिस बैंगालेसिस)
18. लेसर या लाल पंडा (एत्यूरस फ्लूजेन्स)
19. शिया बन्दर (मैकाका साइलेनस)
20. लोरिस (लोरिस टाडिग्रेडस)
2{20क. छोटा भारतीय सूंस (नियोमेरिस फोकेनोइड्स)}
21. वनविडाल (फैलिस लिक्स ईसाबेलाइनस)
22. मालाबार सिवेट (विवेर्रा मैगास्पाईला)
4{22क मेले या सन बीयर (हैलार्कटोस मेलेयानस)}
23. संगमर्मरी बिल्ली (फैलिस मार्मेरटा)
24. मारखोर (कैप्रा फैलकोनेराई)
4{24क. मातृका मृग (ट्रेगुलस मैमीना)}
25. कस्तूरी मृग (मासकस मास्कीफेरस)
2{25क. नीलगिरि लंगूर (प्रेसबाइटिस जोनी)}
2{25ख. नीलगिरि थेर (हैमिट्रेगस हाईलोक्रियस)}
26. ओविस एमान या न्यान (ओविस एमान हाजसनाई)
27. पैलास बिल्ली (फैलिस मैनल)
28. पेंगोलिन (मेनिस क्रेसीकाडेटा)
29. पिग्मी हाग (सस सलवेनियस)
1{29क. रटैल (मैलीवोरा केपैन्सिस)}
30. गैंडा (राइनोसोर्स यूनिकार्निस)
31. भूरी चितली बिल्ली (फैलिसरूबिजिनोसा)
2{31क. सैरो (कैपरीकोमिस सुमात्रइनसिस)}
2{31ख. ऊदबिलाव (एओनिक्स सिनेरिया)}
1{31ग. रीछ (मेलरसस अर्साइनस)}
32. शर्मीली बिल्ली (निक्टीसेबस कोवैंग)
1{32क. छोटी त्रावनकोर उड़न गिलहरी (पेटीनोमाइस फस्कोपेपीलस)}
33.हिम तेंदुआ (पेन्थेरा कुअंसिया)
1{33क. स्नबफिन डालफिन (आरकेला ब्रेवीरोस्ट्रिस),
34. सीलू (प्रायनोडान पर्डिकलर)
35. दलदली हिरन (सर्वस डुवासेलाई की सभी नस्लें)
36. टकिन या मिशनी टकिन (बुर्डेकस टैक्सीकलर)
2{36क. तिब्बती बारहसिंगा या चीरू (पैन्थेलोप्स होड्गसोनी)}
1{36ख. तिब्बती लोमड़ी (वत्पेस फेरीलेटस)}
37. तिब्बती गजेल (प्रोकैप्रा पिक्टीकाडाटा)
38. तिब्बती जंगली गधा (ऐक्वस हेनिओनस कियेंग)
39. व्याघ्र (पेन्थेरा टिग्रिस)
40. उरियल या शापो (ओविस विगनेई)
41. जंगली भैंसा (बुबैलस बुबेलिस)
2{41क. जंगली याक (बोस ग्रुन्नीयंस)}
1{41ख. तिब्बती भेड़िया (कैनिस लुपुसचांको)}
भाग 2 जल-स्थलचर और सरीसृप
2{1.*****}
3{1क. ****}
1{1ख. आडिथिया टर्टल (पेलिकिलिस बिबरोनी)}
1{1ग. दण्ड, अंडाकार या पीली मानिटर छिपकली (वरानस फ्लावेसकेन्स)}
1{1घ. मगर (जिसके अन्तर्गत खाड़ी या समुद्र के मगर भी हैं) (क्रोकोडाइलस पोरोसस और क्रोकोडाइलस पालुस्ट्रिस)}
1{1ङ. बाटागुर वारिकूर्म (बाटागुर बसका)}
1च. पूर्वी पहाड़ी कूर्म (मेलैनोचिलाइस ट्रिकेरिनाटा)}
2. घड़ियाल (गेवियलिस गगटिकस)
2{3. गंग मृदु क्वची कूर्म (ट्रायोनिक्स गेजेंटिक्स)}
1{3क. सुनहरी छिपकली (केलोडक्टीलाइडस आरियस)}
4. हरित समुद्री कूर्म(चैलोनिया माइडासा)
5. श्येनक चंचू कूर्म (इरैटमोकैलीस इम्ब्रीकाटा इम्ब्रीकाटा)
2{6.***}
7. भारतीय अण्डाद सर्प (ईलैचिसटोडोम वेस्टरमेन्नी)
8. भारतीय मृदु क्वची कूर्म (लिस्सेमाइस पंकटाटा)
9. भारतीय टेण्ट कूर्म (कचुगा टेक्टा टेक्टा)
9क. केरल वन कूर्म (हियोसेमिस हैमिल्टोनी)
1{10.***}
11. चर्मल कूर्म (डेर्मोचेलाइज कोरियासिया)
12. राजक्श्यप कूर्म (केरैटा केरैटा)
13. आलिवबैक राजक्श्चप कूर्म (लैपिडोचैलाइस आलिवेशिया)
14. मयूरनामी मृदु क्वची कूर्म (ट्रायोनिक्स हुरुम)
2{14क. अजगर (जीनस पाइथान)}
2{14ख. सेल कूर्म (कचुगा कचुगा)}
14ग. चितकबरा काला कूर्म (जिओक्लिमिस हैमिल्टोनी)
3{15.*****}
3{16.*****}
3{17.*****}
4{17क.*****}
5{भाग 2क
मत्स्य
1. ह्वेल शार्क (रिनकोडोन टाइपस)}
भाग 3-पक्षी
4{1. अंडमान हंसक (एनैस जिब्बेरीफ्रोंस एल्बोगुलेरिस)}
1क. असम बैम्बू तीतर (बैम्बूसीकोला फिटचाई)}
4{1ख. बाज (एविसेडा जेरडोनी और एविसेडा ल्यूफोटेस)}0
4{1ग. बंगाल फ्लोरीकेन (यूपोडोटिस बेंगालेनसिस)}
1घ. सारस (ग्रुस निग्रीकोलिस)
1ङ. रूधिर चकोर (इथैजीनिस क्रियूनटस)
3{1च.****}
2. चीड़ फेजेण्ट (क्रेटीयस वेल्लिकाई)}
3{2क. पूर्वी श्वेत वलाक (सिकोनिया सिकोनिया बोयसियाना)}
4{2ख. गहन चित्तीदार उलूकक (एथीन ब्लीविटी)}4{2ग. फ्रागमाउथ (जीनस बटराकोसटमस)}
3. महान भारतीय सारंग (कोरिओटिस नाइग्रीसेप्स)
4. महान भारतीय धनेश (ब्यूसेरास बाइकार्निस)
3{4क. बाज (फैम, एक्सीपी ट्राइडेई)}
4{4ख. फणदार सारस (ग्रुस मोनैचा)}
4{4ग. धनेश (टिलोइएमस टिकेली आस्टेनी, ऐसेरोज निपैलेनसिस, राइटीसेरस अनडुलेटस टिसेहर्टसी)}
4{4घ. होउबरै सारंग (क्लैमाइडोटिस अंडुलैटा)}
1{4ङ. ह्यूम्स बारबैक्ड फैजेण्ड (सिटमेटिक्स ह्युमेई)}
1{4च. भारतीय चितकबरा धनेश (एंथ्रेकोसेरोज मैलाबेरिकस)}
5. जर्डनी क्षिप्रचला (करसोरियस बोईटोर्कटस)
6. लमरगाइयर (गाईपीटसबोर्बेटस)
7. महाश्येन (फालको पैराग्राईनस, फालको बाईआर्मिक्स और फालको चिकेरा)
1{7क. महाशरालि (डेण्ड्रोसाइगना बाईकलर)}
2{7ख. लघु तृण मयूर (सिफोटाइडस इंडिका)}
2{7ग. मोनल फीजैण्ट (लोफोफोरस इम्पेजानस, एल० स्कलेटेरी)}
8. पहाड़ी बटेर (ओफ्रिसिया सुपरसिलिओसा)
9. नारकांडमी धनेश (राइटेसेरस) अनडुलेटस (नारकांडमी)
2{9क.*****}
10. निकोबार मेगापोड (मेगापोडियस फ्रेसाइनेट)
1{10क. निकोबार कपोत (कैलोईनास निकोबारिका पेलेवेन्सिस)}
3{10ख. मत्स्य कुररी या मत्स्यभक्षी महाश्येन (पेण्डीओन हेलियेटस)}
3{10ग. मयूर फेजेण्ड (पोलीप्लैक्ट्रोन बाइकलकेरेटम)}
11. मयूर (पैवो क्रिसटैटस)
12. गुलाबी सिर बतख (रोडोनेसा कैरिओफिलेसिआ)
13. स्कलेटर मोनाल (लोफोफोरेस स्क्लैटराई)
14. साईबेरिआई सफेद सारस (ग्रुस ल्यूकाजेरनस)
3{14क. **** }
2{14ख तिब्बती हिम मुर्गा (टेट्राओगेलस टिबेटनस)}
15. ट्रैगोपेन फेजेण्ट (ट्रैगोपेन मैलैनोसिफेलस, ट्रैगोपेन ब्लिथाई, ट्रैगोपेन सटीरा, ट्रैगोपेन टमिकाई)
16. श्वेतोदर समुद्री उकाव (हैलियेटस ल्युकोगैस्टर)
17. श्वेतकर्ण फेजेण्ट (क्रासोप्टिलन क्रासोप्टिलन )
2{17क. श्वेत चमस चंचु (प्लैटेलिया ल्यूकोरोडीया)}
18. श्वेतपंख वन बतख (कैरिना स्कूअेलेटा)
भाग 4- क्रस्टेशिआ और कीट
2{1. तितलियाँ और शलभ (मोथ)
एमथ्यस्लिडा परिवार | सामान्य आंग्ल नाम |
डिस्कोफोरा डियोडिपो | डफर, वेंडेड |
डिस्कोफोरा सोनडैका म्युसीना | डफर, सामान्य |
फैनिस फीनला फोनुलोइडस | पैलिड फोना |
डौनैडा परिवार | |
डैनाम गोटमा गोटोमोइडस | टाइगर्स |
युप्लोइया मिडामस रोएप्सटारफी | क्रो नीला चित्तीदार |
लिकैनिडे परिवार | |
अलाटिनस ड्रमीला | डार्की, सूक्ष्म/बड़ी |
अलाटिनस फेवियस पैनारमिस | ऐंग्लड, डार्की |
ऐम्बलोपाला एविडिना | हेयर स्ट्रीक, चीनी |
ऐम्बली पांडिया ऐस एराटा | लीफ ब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया आलिया कान्स्टन्सिया | रोजी ओक ब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया अम्मोनारियल | मलायन बुश ब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया आरबीमा आर्डिया | नीलारुण पुच्छरहित ओकब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया ऐसोपिया | प्लेन पुच्छरहित ओकब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया कामिका | कामिका ओकब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया ओपालिया | ओपल ओकब्ल्यू |
ऐम्बली पोडिया सेटा | अंडमान पुच्छरहित ओकब्ल्यू |
बिडौन्डा भेलिसा सियारा | ब्ल्यूपोजी |
कैलोफिरस लीची | हेयर स्ट्रीक फेरुजिनस |
कास्टेलियस रोजिमन एलारबस | सामान्य पिरो |
बराना सेफिस्स | मंडारिन ब्ल्यू कचार |
क्लियोरिया ओथोना | टिट आरचिड |
डिडडोरिक्स एपिनाखस एमेटियस | कारलेनियल, स्केअर्स |
एवीयर्स मूरी | क्युपिड, मूर्स |
जेर्डस बिग्सी | बिगरम ब्राउनी |
जेरीडम सिमेथस डाओपीथस | ग्रेट ब्राउनी |
हाइब्रीडा | सैफायर |
होरगां यल्बीमा क्यूला | ओनिवसेज |
जेमिड्स फेरारी | कैरा लियन्स |
लीफीरा ब्रासोलिस | तिली, शलम |
लिस्टेरिया डडजीनी | लिस्टर्स होयरस्ट्रीक |
लोगानिया वाटलोनियान सब फासियाटा | वाटसन का माटल |
लीफैनोप्सिस हैराल्डस अनांगा | हेज ब्ल्यू, फील्डर्स |
लीकैनोप्सिस पुष्प प्रोमोनेस | सामान्य हेज ब्ल्यू |
लोफैनाप्सिस क्बाड्रीप्लागा डोहरटी | नागा हेज ब्ल्यू |
नासा डयूबा नारिया हैम्पसोनी | लाईन ब्ल्यू व्हाइट, टिप्ड |
पोलिमेटरा और विटुलस लीला | हरा माउंटेन ब्लू |
प्रटापा आईस आईस टैस मिश्मिया | रायल, डार्क ब्लू |
सिमिस्किना फालेना हटिर्टी | ब्रिलियन्ट ब्राडलेंडेड |
सिन्थूसा वरगो | पेल स्पार्क |
स्पिन्डासिस एलवेसी | सिलवरला ईन, एल्वेलका |
स्पिन्डासिस रुक्मिनी | सिल्वर लाईन खाकी |
स्ट्राईमन मैकबूडी | मैकवुड का हेयर स्ट्रीक |
ताजूरिया वाईस्टर | रायल, अनिश्चित |
ताजूरिया लुकुलेन्टस नेला | रायल, चीनी |
ताजूरिया यज्ञ यज्ञ | रायल, चेस्टनट और ब्लैक |
थेस्टना बटैक्सस जुला | बंडरफुल हेयर स्ट्रीक |
थैस्ला बी टी मेन्डेरा | इण्डियन नीलारुण हेयर स्ट्रीक |
थैस्ला लेथा | वाटसंस हेयर स्ट्रीक |
थैस्ला पाओना | पाओना हेयर स्ट्रीक |
थैस्ला पैवो | पीकाक हेयर स्ट्रीक |
विराकोला स्माइलिस | गावा ब्लूज |
निफैलिडा परिवारा | |
अपाटयूरा उलूपी उलूपी | इम्पेरर, टाउनी |
आर्जारनिस हेगमोन | सिल्वर वाश्ड क्रिटील्लारी |
कालिनागा वूडा | फ्रीक |
कैरेक्सेज डर्नफोर्डी निकोलाईड | वेस्टनट, राजा |
सिरोकोआ फैसियाटा | इयोमेन |
डायगोरा नाइसेविल्लेई | साइरन, स्केअर्स |
डाइलीचा मारजियाना | गोल्डन एम्परर |
डोल्स कालिया विसस्टाइड अंडमान | आटम लीक |
सेरी बोइया मूरी सैन्डाकानस | मलायन नवाब |
ऐरी बोइया स्क्रीबेरी | ब्लू नवाव |
ड्यूलासियरा मैनिप्यूरेन्सिस | टाइटलर्स इम्परर |
यूथेलिया डर्गा स्पेलैडैन्स | बेरन/काउन्टस/डचेस |
यूथेलिया आइवा | नान्ड ड्यूक |
यूथेलिया खामा र्क्वो फासिया | नागा, ड्यूक |
यूवोलिया टैल्सिनिया | ब्लूवैरन |
हेलिरा हेमिना | व्हाईट एम्परर |
हिपोलिम्नास मिल्सीपन | एगफलाइ डानैडा |
लाइमैनीटीस आस्टिनिया परपुरा सेन्स | ग्रेकोमोडोर |
लाइमेनीटीज जुलेमा | एडमिरल्स |
मैलीटिया शान्डुरा | फिटिलरोज/सिल्वर स्ट्राप्स |
नेप्टीस ऐन्टीलोप | वेरीगेटेड सेलर |
नेटीसे अस्पासिया | ग्रेट हाकीस्टिक सेलर |
नेप्टीस काल्यूमेला काकना | शार्टवैन्डेड सेलर |
नेप्टीस सिप्प करवरीसिस | चाइनीज येलो सेलर |
नेप्टीस एबुसा एबुसा | सेलर/लस्कर |
नेप्टीस जम्बा विधानी | चेस्टनस स्ट्रीक वाला सेलर |
नेप्टीस मनासा | वेल हाकीस्टिक सेलर |
नेप्टीस पूना | टाइटलर्स लस्कर |
नेप्टीस शंकरनार | ब्राडवेन्डेड सेलर |
पेल्टोपोरिया जीनाजीना | भूटान सार्जेन्ट |
पेंटोपोरिया रेटो मूरी | मलय स्टाफ सार्जेन्ट |
प्रोयोफैन्की रिगालिस | ब्लू बेगम |
सासाकिया फ्यूनब्रिस | एम्प्रैस |
सेफीसा चन्द्रा | इस्टर्न कोटियर |
सिम्बैन्थिया सिलाना | स्केअर्स जस्टर |
बैनेसा ऐन्टिओपा येड्न्नला | एडमिरेवल्स |
पपोलायनीडा परिवारा | |
चाइलासा क्लाइटीया क्लाइटीया एफ कामिकस्टस | कामन माइस |
पैपीलियो एलोफेनोर | येलोक्रेस्टेड सपेंग्ल |
पैपीलियो लायोमेडन | मालावार बैन्डेड स्वैलोटेल |
पारनासियस ऐकोजेमीनाइफर | अपोलो |
पारनासियस डेल्फियस | वैन्टेड अपोलो |
पारनासियस हैनिस्टोनी | हैनिंगटनस अपोलो |
पारनासियस इम्परेटर आगस्टस | इम्पीरियर आपोलो |
परीनासियस स्टोलाइजेनस | लैडक बैन्डेड अपोलो |
पालिडोरम कून साबिलेगा | कामन क्लवटेल |
पालिटोरम कैसीप्स | ब्लैक विडमिन |
पालिडोरस हैल्टर | क्रिमसन रोज |
पालिडोरस नेविली | नेविल्स विडमिल |
पालिडोरस प्लूटोनियस पेम्बरटोनी | चाइनीज विडमिल |
पालिडोरसपोला | डेनिसिविल विडमिल |
परिवार पिरिडे | |
एपोरिया हेरिटे | ब्लैक वेन्स |
बाल्टीया बुटलेरी सिकिकमा | श्वेत तितली |
कोलिअस कोलिउस थासिबुलस | कुपीत तितली |
कोलियस डुबिया | वामन कुपीत तितली |
डेलिअस सानाका | पेल जैक्सेवल |
पिपेरिन कुएपेरी डेवटा | बंद गोभी तितली/श्वेत-II |
परिवार सेटिरिटे | |
कोइलिटिस मोथिम एडमसोनी | स्केअर्स केंटसआई |
सिलोगेन्स जेनेटा | स्केअर्स इवानिंग ब्राउन |
ऐलिमनियम पेली | पील की ताड़ मक्खी |
एलिमनियस पेनांग चीनसीस | चित्रित/ताड़ मक्खी |
ऐरेबिया ऐनाडा ऐनाडा | बलयित आर्गस |
ऐरेबिया नरसिंगा नरसिंगा | चितकबरा आर्गस |
लेथे डिसटेन्स | स्केअर्स लाल कीट (वनचर) |
लेथेडूरा गेंगी | स्केअर्स लाइलैक फोर्क |
लेथे यूरोपा टामुना | बैम्बू ट्री ब्राउन |
लेये जोमिना गफरी | टाइटलरर्स ट्री ब्राउन |
लेये गुलुनिहाल गुलुनिहाल | मंद कीट (वनचर) |
लेये मारगेरिटे | भुटान ट्री ब्राउन |
लेये ओसिलेटा लिकस | डिसमल मिस्टिक |
लेये रेमाडेवा | एकल सिलवर स्ट्राइप |
लेये सत्यावती | पांडु कीट (वनचर) |
माइकालेसिस आरसीस नाटिलस | नीलारुण बुश ब्राउन |
पारारगे मिनावा मेरोडिस | वाल डार्क |
इपथिमा डोहरटी परसिमिलिस | पचवलय महान |
1{1क. नारियेल या रबर कर्कट (विरगस लेटरो)}
1{2ख. ब्याघपलंग (ऐपियोप्लेविया लैडलावी)}
अनुसूची 2
(धारा 2, धारा 8, धारा 9, 1*** धारा 11, धारा 40, धारा 41 धारा 43, धारा 48, धारा 51, धारा 61 और धारा 62 देखिए)
भाग 1
1.***
2{1क. असमी बानर (मैकाका असमेनसिस)}
3{2. वंगाल सेही (अथेरुरस मैकरुरम (असामैसिस))}
3. ***
2{3क टोपी बानर (मैकाका रैडिऐटा)}
2{3ख.***
4{3ग. उन तिमिगणीय जातियों से भिन्न जो अनुसूची 1 और अनुसची 2, भाग 2 में सूचीबद्ध हैं}
3{4.***}
2{4क. साधारण लंगूर (प्रेजबाईटिस एनटेलस)}
5{5.***}
1{6.***}
7. फेरेट बैजर (मैलोगेल मास्केटा तथा मैलोगोस पर्सेनेटा)
1{8.***}
1{9.***}
1{10.***}
11. हिमालयी अकिरीटी सेही (हिस्ट्रीक्स हाजसनाई)
2{11क. हिमालयी न्यूट या सैलामैण्डर (टाइलेटोट्रोसन बेरूकोसस)}
5{12.***}
5{13.***}
5{14.***}
15.***
16. सूअर पूंछ मैकाक (मैकाका नमेस्ट्राईना)
1{17.***}
5{18.***}
19 ठूंठदार पूँछ वाला बन्दर (मैकाका स्पैसियास)
5{20.***}
21. ***
22 जंगली कुत्ता या ढोल (क्यूअन अल्पाइन)
5{23.***}
2{24. गिरगिट (कमीलियो कैलकेरेटस)}
25. शूली सपुच्छ छिपकली या सैण्डा (यूरोमैस्टिक्स हार्डविक्की)
भार 2
<sup>1</sup>[1. बीटल फेमिली कराबाइडी अगोनोट्रेचस एण्ड्रयूएसी अमर फूसी अमर एलिगनफुला ब्रचिनस एक्ट्रिपोनिस ब्रोस्कोसीमा ग्रेसाइल ब्रोस्कस विपिलाइफर ब्रोटर ओविकोलिस केलाथस अमरोइडस कैलिस्टोमिनस वैली क्लीनिअस चैम्पिओनी क्लीनिअस कनारी क्लीनिअस मसौनी क्लीनिअस नीलगिरीयस फेमिली क्राइसोनेलिडे एक्रोक्रिष्टा रोठुन्डाटा बिमाला इन्डिका क्लाइटी इन्डिका गोपाला पिठा ग्रीवा साइनिपेन्निस नाइसोटा कार डोनी नाइसोटा माडुरेन्निस नाइसोटा निगीपेन्निस नाइसोटा सेमीकोरलिआ नाइसोटा सट्रेटीपेन्निस स्टीकोथथाल्मा नूरमहल थारिया एलिरिस एम्पलीफेसिया फेमिली डेन्वायडे यूप्लोए एमेलानाल्यूका यूप्लोए मिडामस रोजेन्होफेरी फेमिली इराइसिनिडे अवीसारा कोसम्बी डोडोना एडोनीरा डोडोना डाइपोर डोडोना एगेअन लिबीथिया लेपिटा फेमिली लाइकेनिडे अलाटिनस सबवायोलेसियस मेनिकस एम्बलीपोडिआ ओटन्स एम्बलीपोडिया एनिआ एम्बलीपोडिया एगावाओरेलिवा एम्बलीपोडिआ एगराटा एम्बलीपोडिआ एलेसिया एम्बलीपोडिआ एपीडियानस अहामस एम्बलीपोडिआ एरेस्टे एरेस्टे एम्बलीपोडिआ वजाल्वायडेस एम्बलीपोडिआ कामडीओ एम्बलीपोडिआ एल्लीसी एम्बलीपोडिया पुल्ला इगनारा एम्बलीपोडिया जैनेसा वाटसोनी एम्बलीपोडिया पैरागनेसा जैफायरीटा एम्बलीपोडिया पैराले एम्बलीपोडिया सिलहेटेन्सिस एम्बलीपोडिया सफ्यूसा सफ्यूसा एम्बलीपोडिया एन्डावा एफाराइटिस लिलेसिनस एरोट्स लेपिथिस आर्टिपे एरिक्स विन्धरा फोसाइड्स बोथाइनिया चेन्नेलिया केस्टेलियस रोक्सस मेन्ल्युएनां केटाप्वैलिल्पा एलीगन्स मायोसाइटीना चारना जातिन्द्रा पोरिशिया प्लसराटा गेटा प्रतापा मोट्स प्रतापा ब्लेन्का प्रतापा डेबा प्रतापा आइसटास रापला बक्सेरिया रापला चन्द्राना चन्द्राना रापला नेसाफा रापला रिफ्ल्जेन्स रापला रुविडा रापला सिन्टिल्ला रापला स्फिन्कस स्फिन्कस रापला वरूना स्पिन्डेसिस एलिमा एलिमा स्पिन्डेसिस लोहिटा स्पिन्डेसिस नाइपेलिन्स सुआसा लाइसाइज्स सुरेन्द्रा टोडरा ताजुरिया एल्बीप्लागा ताजुरिया सिप्पस सिप्पस ताजुरिया कल्टा ताजुरिया डायसस ताजुरिया इलुर्जिओसाइड्स ताजुरिया इलुर्जिस ताजुरिया जंगला अण्डामनका ताजुरिया मिलस्टिगमा ताजुरिया सिबोन्गा ताचरिया थइआ ताजुरिया यजना इस्ट्राआइड्स तरूकस कल्लीनारा तरुकस धर्ता थाडुका मलटीकोडाटा मल्कनारा थेकला अटाक्सस अटाक्सस थेकला विटाई थेकला आइकना थेकला अकसिन्सिस थेकला कव्रीआ थेकला खासिआ थेकला किरवारिएन्सिस थेकला सुरोइआ थेकला साइला असामिका इउथालिया गरुदा एकोन्टिअस इउथालिया लेपिडी इउथालिया मेरता इरिफाइल इउथालिया नरा नरा इउथालिया पतला ताउअना इउथालिया तेउता हेरोना नराथस अण्डमाना हाइमोलिबनस मिस्सिपस हाइपोलिमनस पोलीनाइस बिरमाना कालिमा अल्बोफेस्सिएटा कालिमा अलोम्प्रा कालिमा फिलारचस हार्सफील्डी हाइमनिटिस ओस्तोरिया आस्तेनिया लाइमनिटिस दमावा लाइमनिटिस डुडु मेलिटी रोबर्टसी लुटको नेप्टिस अनन्त नेप्टिस अंजना नेशोना नेप्टिस औरेलिआ नेप्टिस मगर्थ खसिआना नेप्टिस नन्दिना हस्सोनी नेप्टिस नरायना नेप्टिस राधा राधा नेप्टिस सोमा नेप्टिस जैदा निउरोसिगमा दौबलेदेयी दौबलेदेयी पन्टोपोरिआ असुरा असुरा पन्टोपोरिआ कनवा फोर्कीज पन्टोपोरिआ लेरीमना सिआमोन्सिस पन्टोपोरिआ प्रवर अक्यूटाइपेनिस पन्टोपोरिआ रंगा परथनास साइलविआ पेन्थेमा लिसारदा साइब्रेन्थिआ निफण्डा बनेसा एगी अग्निकुला बेनेसा लालवन बेनेसा पोलीक्लोरस फरविडा वनेसा प्रारसोआइडस डोहर्टी वनेसा उर्टिकोड रिजमा फेमिली पेपेलिओनाइडी मटानिटिस लाइडरदलाली पोटिआ क्लोरीडाइस इलिपिना सलेतरा पण्डा क्रिसाई क्लेरिया अवतार अवतार फेमिली स्त्यराइडी अनलोसेटा ब्राहमिनस साइलोजेनस सुरादेव इलाइमनिअस मलिलस मिल्म्बा इलाइमनिअस वसुदेव अरेबिया आनन्द सुरोइआ अरेबिआ हाइग्रिवा अरेबिआ कालिन्दा कालिन्दा अरेबिआ सीन्दा ओपिमा इराइट्स फाल्सी पेनिस हिप्परचिस हेडाराइची शन्दुरा लेथे अटकिनसोनी लेथे बालदेव लेथे ब्रिसन्दा लेथे गोलपरा गोलपरा लेथे इनसाना इनसाना लेथे जलोरिडा लेथे कब्रुआ लेथे लटिआरिस लटिआरिस लेथे मोइल्लेरी मोइल्लेरी लेथे नागा नागा लेथे नाइसतेल्ला लेथे पुलरहा लेथे स्कण्डा लेथे सरबोनिस लेथे साइडर्का | नोनाथरा घटेकइया साइल्लिओइस प्लाना साइल्लिओडास शिरा सैवैथे सरवीना सैबधे पटकेइया स्फरोडर्मा कूब्रेवीकोने फैमिली ककूजिडे कारिनोफ्लोकस रफराइयी कुकूजस बाई कलर कुकूजस ब्रविल्ले कुकूजस इम्पीरियालिस हेटेरोजीनस सेमी लेटिनिअस लायमोफ्लोएस वेल्ली लायमोफ्लोएस इलसर्टस पीडिआकस स्फीप्स फेमिली आइनोपेप्लाइडे आइनोपेप्लस अल्वोनोटाकस फैमिली असाथ्युडे एमोना अमाथूसिया अमाथूसिया अमाथूसिया फिडिप्पस एन्डोपेनिकस अमाथूक्सिडा अमीर्थाव अमीर्याव डिस्कोफोरा डेव डेवडवायडेस डिस्कोफोरा लेपिडा लेपिडा डिकोफोरा टाइमोरा एनिथामैनेन्सिस इनिस्पे साइक्नस फानिस सुमेस अस्सामा चेरीट्रेल्ला ट्रन्सीपेन्निस क्वाथरिया फाइना डूसडोराइक्स हाइपरगीरिया भेटुलिया एन्क्राइसोप्स बनेजस एवेरेस डिपोरायडस एवेरेस काला हेलियोफोरस इन्डीक्सेस यूरे होरगा आनिक्स होरगा वायोला हाइपोलाइसीना नीलगिरिका हाइपोला इसीनाथेकलायडस नाइकोबारिका इरावटा रोचना वोसवेल्लियाना जमिडस अलेक्टोकन्डूलाना जामाइडस सलोओडसपूरा जामाइडस कन्कना लेम्पाइडस ब्वायटिकस लीलेसिया अल्वोकारुलिया लीकेसिया अट्रोगुट्टाटा लीलेसिया लीलेसिया लीलेसिया मेलीना लीलेसिया मिनिम्स लोगानिया मस्सातिया लाइकेनेस्थेस लाइकेनीना महाथाला अमेरिया महाथाला अटेकिवन्सोनी मेनिस्य मसाया प्रैसवाइटर नेकाडूबा अलूटा कोयलिस्टिस नेकाडूबा अकाइरा एवेरिन्स नेकाडूबा अकाइरा अकाइरा नेकाडूबा डूबीओसा फल्व नकाडूबा हेलिफन नेकाडूबा हरमस मेजर नेकाडूबा पेक्टोलस न्यूकेरिटा फेबरोनिया नाइफ्रन्डा सिम्बिया आर्थामील्ला पोन्टिस पाइथेकोप्सम्पत्ति फूल्गेन्स पोलिम्मेटस डेवानिका डेवानिका पोलिम्मेटस मेटल्लिका मेटल्लिका पोलिम्मेटस योर्धुस्बांडी पोरिशिया एरीसाइन्वायडस एल्सटेड पोरिशिया हेविटसोनी थेकला विट्टाटा थकला जिबा थेकना जोआ डना डस्ता यसोदा ट्रिपुन्कतबा फेमिली नाइफेलाइडी अडोलियस स्यानीपरडस अडोनियम डिर्टी अडोलियस खसियाना अपतुरा चेवना अपतुरा पर्वत अपतुरा सोर्डिडा आपातुरा उलपी फुलोन्सी अर्गाइनिस अडाइप्पे पल्लिडा अर्गाइनिस अल्टीसिमा अर्गाइनिस क्लारा क्लारा अर्गाइनिस पेल्स होर्ला अतेतला लेसिप्पे कालीनाग बुद्धा ब्रहमण चरावसेस अरिस्टोजिटन चराक्सेस फंबियस सल्फुरियस चराक्सेस कहरुबा चराक्सेस मरमेक्स चराक्सेस पोलाइक्सना हेमना चिरसोनेसिया रहरिया रहरिओआइड्स साइरेस्टिस कोकलस डिओगोरा परसीमिलिस डोलेस्वालिया बिसालटाइड मालबिरिका एरिबोई अथामस अन्डमनिकस एरिबोई डल्फिस एरिबाई डोलोन एरिबाई नरकोई लिसैनी इउरिपस कांसिमिलिस इउरिपस हलियेरसस इउथालिया अनोसिआ इउथालिया कोसाइटस इउथालिया डूडा इउथालिया दुर्गा दुर्गा इउथालिया इवालिना लैण्डरबिलिस इउथालिया फ्रांसिई चिलसा इपाइसाइडस इपाइसाइडस चिलसा पराडोक्सा टेलीअर्नस चिलसा स्लेतेरी स्लेतेरी ग्राफिअम अरिस्टिअस एन्टीक्रेनस ग्राफिअम अराइकल अराइकल ग्राफिअम इउराइफाइलस मेक्रोनिअस ग्राफिअम एवमोन एल्बोसिलियेठस ग्राफिअम ग्यास ग्यास ग्राफिअम मेगरस मेगरस पपिलिओबूटूस फेमिली पथिलिओनएडी एपिलिओ बुद्धा पपिलिओ फसकस अण्डमानिकस पपिलिओ मकोन वरिटयी पपिलिओ मायो परनासिअस चार्लटोनिअस चार्लटोनिअस परनासिअस इपापस हिलेन्सिस परनासिअस जक्यूमोन्ती जक्यूमोन्ती पोलीडोरस लेट्रीली कबरूआ पोलीडोरस प्लूटोनिअस टाइटलेरी तेनोपल्पस इम्पेरिअलिस इम्पेरिअलिस फेमिली पीराइडी अपोरिआ नेबेलिका एपिअस अल्बिना डराडा एपिअस इन्द्र शिवा एपिअस लाइन्सिडा लेटिफासिआटा एपिअस वार्डिका बल्तिआ बटलेरी बटलेरी सिपोरा नेडिअन रेम्बा सिपोरा नेरिस्सा डफा कोलिअस इओकण्डिई हिन्दूकुविका कोलिअस इओगेनी कोलिअस लदकेन्सिस कोलिअस स्टोलिक्जकना मिरण्डा डेलिअस लतिविता डिरकस लाइकोरिअस इउक्लोई चार्ललोनिआ लुसिला इउरेमा एण्डरसोनी ओभिस्तोनी मेतापोरिआ अगोथोन पीरिस केवता लेथे सिनोरिक्स लेथे ट्रिस्टिगमाता लेथे वाइलासिओडिक्ता कंजूपकुला लेथे विसरावा लेंथेयोमा मनिओला दबेन्द्र दवेन्द्र मिलानिटिस जिटेनिअस माइकालेसिस आदमसोनी माइकालेसिस अनाक्सिअस माइकालेसिस बोतमा चम्बा माइकालेसिस हेरी माइकालेसिस लोंचा बेथामी माइकालेसिस मालसारिडा माइकालेसिस मिसेनस माइकालेसिस मेस्त्रा माइकालेसिस माइस्टेंस माइकालेसिस सोबोलेन्स निओरिना हिल्डा निओरिना पत्रिआ वेस्टवुडी ओइनेइस बुद्धा गढवालिका परिन्टिरोई मार्शली पराजें एवरस्मानी कश्मीर एन्सिस पराजें माइरूला माइरूला रगाडिआ क्रिसिल्डा क्रिटो रपाइसेरा स्टारिकस कब्रंआ यप्थिमा बोलानिका यप्थिमा लाइकस लाइकस यप्थिमा मथोरा मथोरा यप्थिमा सिमिलस अफेक्टेटा जिपोइटिस सेटिस] |
1{1क. सिवेट (मालाबार सिवेट को छोड़कर विवेरिडे की सभी जातियाँ)}
1{1ख. सामान्य लोमड़ी (वल्पेस बेंगालेनसिस)}
1{1ग. उड़न गिलहरी (ब्रुलोपीटस, पैटौरिस्टा, पिलामिस और यूपिटोरस वंश की सभी जातियाँ)}
1{1घ. वृहदाकार गिलहरी (रतूफ मेकूर, रतूफा इण्डिका और बाईकलर रन्तूफा)}
1{2.****}
2{2क. हिमालयी काला भालू (सेलेंनार क्रेटस लिबैतेनस)}
1{2ख. श्रृगाल (गीदड़)}
1{2ग. जंगली बिल्ली (फेलिस) चौस}
1{2घ. शैल-मूषक (मारमोटा बोधक हिमालयाना, मारमोटा कोडाटा)}
1{2ङ. वशोका (मारटेस फोईना इंटरमीडिया, मारटेस फलेविगुला, मारटैस वाटकिनसी)}
1{3.****}
1{4.****}
1{4क. मार्जारिका (वर्मेला पेरेगुसना, मुसटेला पुटोरियस)}
4ख. लाल लोमड़ी (वलपेस वलपेस, वलपेस मोनटाना वलपेस ग्रिफ्फीथी)}
2{5. रीछ (मेलर्सस अर्साइनस)}
1{5क. वसातिमि (फिसटर मैक्रो-सीफालुस)}
2{6. तिब्बती भेड़िया (कैनिस लूपस चन्को)}
1{7. वीजल (मुस्टेला सिबिरिका, मुसटेला काथियन, मुसटेला अलर्टाइका)}
1{8. चैकदार कीलबैक सर्प (जेनो क्रोफिस पिसकेटर)}
9. धामन या मूषाद सर्प (टियास मुकोसिस)}
10. श्वानमुखी जल सर्प (सिबेरस रिनचोपी)}
11. भारतीय नाग (नाजा वंश की सभी उप-जातियाँ)}
12. नागराज (औफियोफागुस हन्नाह)
13. जैतूनी कीलबैक सर्प (आरट्रीटियम स्किसटोसम)}
14. रसल घोणस (वाईपेरा रुसेली)}
15. वेरेनस जातियाँ (जिसके अन्तर्गत पीत मानिटर छिपकली नहीं है)}
अनुसूची 3
(धारा 2, धारा 8, 3*** धारा 11 और धारा 61 देखिए)
1{1****}
2. भौंकू हिरन या मण्टजैक (मण्टिएकस मण्टजैक)
2{3.****}
4{4.****}
5. चीतल (एक्सिस एक्सिस)4{6.****}
7. गोरल (नेमाईडिस गोरल, नेमाईडिस होजसनाई)
4{8.****}
2{9.****}
4{10.****}
11. शूकर हिरन (एक्सिस पोर्सिनस)
12. लकड़बग्घा (हायना हायना)
4{13.****}
14. नीलगाय (बोसेलफस ट्रेगोकेमेलस)
1{15.****}
16. सांबर (सर्वस यूनिकलर)
1{17.****}
2{18.****}
19. जंगली सूअर (सस स्क्रोफा)
अनुसूची 4
(धारा 2, धारा 8, धारा 9, धारा 11 और धारा 61 देखिए)
4{1.****}
4{1क.****}
4{2.****}
3{3.****}
{3क. पाँच धारीवाली करतल गिलहरी (फ्युन्म्बुलस पेन्नैटी)}
4. शश (कृष्ण कंधराई, सधाराण भारतीय, मरुस्थली, हिमालयी मूषक शश)}
5{4क. जाहक (हेमीवीनस ओरीटस)}
4{4ख.****}
4{4ग.****}
4{4घ.****}
4{4ङ. भारतीय से ही (हिस्ट्रिक्स इन्डिका)}
4{5.****}
4{6.****}
5{6क. नेवला (सभी प्रजाति के जेनस हेरपेस्टेस)}
2{6ख.****}
2{7.****}
1{7क. मार्जारिका (बोरमोला पेरेगुसना, मुस्टेला पुटोरिअस)}
2{7ख.****}
1{8क.****}
4{9.****}
4{9क.****}
10.****
2{11. पक्षी 4{उनसे भिन्न जो अन्य अनुसूचियों में है}
1. अवदवाट (इस्ट्रिल्डिना)
2. अवोसेट (रिकर्वीरोस्ट्रिडी)
3. बबलर्स (तिमालिइनी)
4. बसन्तगौरी (केपिटोनिडी)
5. करेल (टाइटोनिनी)
6. बिटरन्स (आर्डेआइडी)
7. ब्रोन हेडेड गुल (लारुस बुनाइसफालस)
8. बुलबुल (पिक्नोनोटाइडी)
9. बंटिंग (इम्बोरिजिडी)
10. सारंग (आतिडिडी)
11. सारंग बटेर (सिडी)
12. क्लोरोपिसस (इरेनाइडी)
13. काम्ब डक (सरकिडि ओर निस मेलानोटस)
14. पनडुब्बी (रेल्लीड)
15. कारमोरेन्टस (फालाक्रोकोरासाइडी)
16. सारस (ग्रुइडेइ)
17. कोयल (कुकलाइडी)
17क. पनमुर्गी (स्कोलो पैसिनेई)
18. डारटर्स (फेलाक्रोकोरासाइडी)
19. एमराल्ड डव सहित डव (कोलम्बिडी)
20. डून्गोज (डिकूराइड)
21. बतख (एनाटाइडी)
22. एग्रेंटस (अरडीडी)
23. फेंरी बल वर्ड (आइरेनाइडी)
24. शहीम तथा पेरेग्राइने श्येन, फाल्से पेरी ग्रिनस, शंकर अथवा चोरग शंघार तथा लगार श्यन, फार्स्सम्पत्तिवायरमाइकस तथा रेडहेडड मर्लिन, एक चिक्वेरा को छोड़कर श्येन (फाल्को निडी)
25. चाफिन्च सहित फिन्च (प्रिन्जील्लाइडे)
26. फ्लेभिन्गा (फोनी कोबटेरिडी)
27. फ्लावर पेकर्स (डिकाइडे)
28. मक्षिग्राही (मस्सिकेपिडी)
29. राजहंस (एनाटिडी)
30. गोल्डफिन्च और उसके संवर्गी (कार्ड एलिनी)
31. ग्रेन्स (पुइसी पेडाइदे)
32. जेरोन्स (अरडिडे)
33. इबीसेस (थेरेसकिओरनिथाइडे)
34. आइओर (आइरेविडी)
35. जेज (कोरवाइडे)
36. जेकानस (जेकानाइडे)
36क. वन कुक्कुट (फैसिएनो र्डई)
37. किंगफिशर्स (अल्सेडीनाइडे)
38. लवा (अलाउदीदे)
39. लोरीकिट्स (सिट्टासाइडे)
40. हन्ट्रिग मेगपी सहित मैगपीज (कोरवाइडे)
41. मन्नी किन्स (एस्ट्रिलडाइने)
42. मेगापोड्स (मेगापोडाइडे)
43. मिनीवेट्स (कैम्पेफगाइडे)
44. मुनिया (एस्ट्रिलडाइने)
45. मैना (स्टरनाइडे)
46. नप्तूका (कैप्रीमेलगाइडे)
47. ओरिओलेज (ओरिसोरसाइडे)
48. उल्लू (स्ट्रीगाइडे)
49. सीपरवोर शुक्तिग्राही (हीमैटोपोडिडी)
50. सुग्गा (सिट्टासाइडे)
51. तीतर (फैसिएनिडी)
52. पेलिकन्स (पैजिकैनिडी)
53. फेजेन्ट्स (फैसिएनिडी)
54. ब्लू राक कबूतर (कोलम्बा लिथिया) को छोड़कर कपोत (कोलम्बीइडाई)
55. फिपिट्ज (मैटेसेल्लाइडे)
56. प्लावर्स (चारा ड्रिने)
57. बटेर (फैसिएनिडी)
58. रेल्स (रल्ली डे)
59. लोटन कबूतर अथवा नीलकंठ (कोरासाइडे)
60. सैन्ड्राउसेज (टेरोक्लाइडाइडे)
61. टिटहरी (स्कोलोपेसाइने)
62. चहा (स्कोलोपेसाइने)
63. स्परफाउल्ज (फेसियानाइडे)
64. मैना (स्टरनाइडे)
65. स्टोन करल्यू (वर हिनाइडे)
66. घनेश (सिकोनाइडे)
67. स्टिस्ट (रिकरवाइरोस्ट्राइडे)
68. शकरखोरा (नेक्टेरिनाइडी)
69. हंस (एनाटिडी)
70. पनमुर्गी (एनाटाइडे)
71. शरालि (ट्रराडाइने)
72. टिट्ज (पेरिडे)
73. ट्री-पाइज (कोरवाइडे)
74. ट्रोग्गेन (ट्रोगोनिडी)
75. गिद्ध (एक्सी पी ट्राइडे)
76. वैक्सबिल्ज (एरिट्रल्डाइने)
77. बीवर बर्ड अथवा बया (प्लोसीडे)
78. व्हाइट आईज (जास्टेरोपाइडेसा)
79. कठफोड़ा (पिसाइडे)
80. रेन्स (ट्रग्लोडाइटाइडे)
1{12. सर्प 2{उन जातियों से भिन्न जो अनुसूची 1, भाग 2, और अनुसूची 2, भाग 2 में सूचीबद्ध हैं}:
1. एम्बलिकेफ्लाइडे
2. एमीलाइडे
3. ब्वायडे
4. कोलम्बाइडे
5. डेसीपेप्टाइडे (अण्डा पक्षी सांप)
6. एलापाइडे (कोबरा, क्रेटज तथा कोरल सांप)
7. ग्लाकोन्नीडे
8. हाइड्रोफिलाइडे (मीठे पानी तथा समुद्र में रहने वाले सांप)
9. इलिसीडे
10. लेप्टोटाइफ्लोपोडे
11. टाइफ्लोपाइडे
12. यूरोफ्लेटाइडे
13. वाइपेयाइडे
14. जीनोपेलटाइडे}
1{13. फ्रेश वाटर फ्राग (राना नस्ल)}
1{14. तीन कील्ड टर्टल (जियोइनाइडा ट्रिफेरीनाटा)}
1{15. टोरटोइज (टेस्टयुडीनाइडे, ट्राइयोजाइचिदे)}
1{16. विविपोराऊज टोइस (नेक्टोफिराइनोयडस एस पी पी)}
1{17. वोल्स }
1{18.तितलियाँ और शलभः
फेमिली डेनाइये
युपलोका कोर साइमलाट्रिक्स
युपलोका क्रेसा
युपलोका डायोक्लकटियानस रामसाई
युपलोका मलकीबर फैमिली
हेरनपेरीदे
बोयोरिस फेरी
हसोरा वीटा
हियारोटिस एट्रासटस
ओरियन्स कोनसिना
पेलोपाइदस असाभेनसिस
पेलोपाइदस साइनेनासिसपोलीट्रेमा डिस्क्रेटा
पोलीट्रेमा रुबरीकेन्स
थोरेस्सा होरियोरे
फेमिली लाइसेनाइदे
तरुकस अनन्दा
फेमिली निकपेलीदे
युथालिया लुबन्टिना
फैमिली पाइरीदे
अपोरिया अयाथोब एरियाका
अपियाज लिबिथिया
अतियाज नेरो गाल्बा
प्रियोजेटिस सोता}
अनुसूची 5
(धारा 2, धारा 8, धारा 61 और धारा 62 देखिए)
पीड़क जन्तु
1. सामान्य कौवा
1{2.****}
3. यादुर
1{4.****}
5. मूषक
6. चूहा
2{7.****}
3{अनुसूची 6
(धारा 2 देखिए)
1. बैडोम्स साइकंड (साइकैस बैड्डोमेल)
2. वल्यू बैडा (बंडा कोयरुलिया)
3. कुथ (साउस्सरिया लप्या)
4. लेडीज स्लीपर आरचिड्स (पफिओपैडिलम एस पी पी)
5. घट पर्णी (नैपैनथस खासियाना)
6. रैड वैंडा (राननथैरा इम्सकुटियाना)
सन्दर्भ
1. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 2 द्वारा वृहत्त नाम से स्थान पर प्रतिस्थापित।
2. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 3 द्वारा लोप किया गया।
3. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 4 द्वारा उपधारा (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 4 द्वारा लोप किया गया।
5. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड (1), (4) और (9) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 “उपयोग किया गया है” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
7. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया।
8. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा अन्तःस्थापित।
9. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड 8 का लोप किया गया।
10. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड (1), (4) और (9) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
11. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड 11, 12क, 16(क) और (ख), 18क, 19, 20 और 25ख के स्थान पर प्रतिस्थापित।
12. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा लोप किया गया।
13. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा अन्तःस्थापित।
14. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा “तथा इसके अन्तर्गत बोल्डर और चट्टानें भी हैं” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
15. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा अन्तःस्थापित।
16. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा अन्तःस्थापित।
17. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा प्रतिस्थापित।
18. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा खण्ड 27 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
19. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड (28) का लोप किया गया।
20. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड 26, 30, 31(ख), 36 और 37 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
21. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा “उसके अन्तर्गत ताजा मारा गया वन्य प्राणी है” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
22. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा खण्ड 26, 30, 31(ख), 36 और 37 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
23. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 5 द्वारा अन्तःस्थापित।
24. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 3 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
25. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 4 द्वारा खण्ड (ख) का लोप किया गया।
26. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 4 द्वारा उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
27. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 6 द्वारा “और” शब्द का लोप किया गया।
28. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 5 द्वारा खण्ड (खख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
29. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 6 द्वारा “वन्य जीव संरक्षक” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
30. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 6 द्वारा अन्तःस्थापित।
31. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 7 द्वारा धारा 6 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
32. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 8 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
33. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 8 द्वारा खण्ड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
34. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 8 द्वारा खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
35. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 8 द्वारा लोप किया गया।
36. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 8 द्वारा अन्तःस्थापित।
37. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 9 द्वारा धारा 9 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
38. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 10 द्वारा लोप किया गया।
39. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 9 द्वारा अन्तःस्थापित।
40. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 9 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
41. 1982 के अधिनियम सं० 23 की धारा 2 द्वारा कतिपय शब्दों का लोप किया गया।
42. 1982 के अधिनियम सं० 23 की धारा 2 द्वारा खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
43. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 11 द्वारा खण्ड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
44. 1982 के अधिनियम सं० 23 की धारा 2 द्वारा अन्तःस्थापित।
45. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 12 द्वारा लोप किया गया।
46. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 13 द्वारा अन्तःस्थापित।
47. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 10 द्वारा शीर्षक के स्थान पर प्रतिस्थापित।
48. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 15 द्वारा उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
49. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 11 द्वारा अन्तःस्थापित।
50. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 16 द्वारा कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
51. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 12 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
52. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 17 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
53. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 13 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
54. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 18 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
55. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 14 द्वारा (1-4-2003 से) उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
56. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 19 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
57. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 15 द्वारा (1-4-2003 से) धारा 29 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
58. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 16 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
59. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 21 द्वारा (2-10-1991 से) “पशुओं” शब्द के स्थान पर प्रतिस्थापित।
60. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 21 द्वारा (2-10-1991 से) खण्ड (ङ) का लोप किया गया।
61. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 2 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अन्तःस्थापित।
62. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 17 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
63. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 22क द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
64. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 18 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
65. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 23 द्वारा (2-10-1991 से) जोड़ा गया।
66. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 23 द्वारा (2-10-1991 से) “धारा 19 से धारा 26 के (जिसमें ये दोनों धाराएँ भी सम्मिलित है)” शब्दों, अंकों, और कोष्ठकों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
67. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 19 द्वारा (1-4-2003 से) उपधारा (5) और उपधारा (6) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
68. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 23 द्वारा (2-10-1991 से) “पशु” शब्द के स्थान पर प्रतिस्थापित।
69. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 23 द्वारा (2-10-1991 से) “धारा 33” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
70. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 19 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
71. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 20 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
72. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 25 द्वारा (2-10-1991 से) “धारा 19 से धारा 35” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
73. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 26 द्वारा (4-2-1992 से) अन्तःस्थापित।
74. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 22 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
75. 1993 के अधिनियम सं० 26 की धारा 2 द्वारा (4-8-1992 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
76. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 23 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
77. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 24 द्वारा (1-4-2003 से) धारा 38झ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
78. 2006 के अधिनियम सं० 39 द्वारा अन्तःस्थापित।
79. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 27 द्वारा (2-10-1991 से) “बन्दी स्थिति में रखा जाता है या पैदा होता है” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
80. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 27 द्वारा (2-10-1991 से) “अनुज्ञप्ति के बिना या” शब्दों का लोप किया गया।
81. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 27 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
82. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 25 द्वारा (1-4-2003 से) “कोई असंसाधित ट्राफी” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
83. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 25 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
84. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 28 द्वारा (2-10-1991 से) उपधारा (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
85. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 25 द्वारा (1-4-2003 से) “किसी प्राणी-वस्तु” के स्थान पर प्रतिस्थापित।
86. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 26 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
87. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 27 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
88. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 28 द्वारा (1-4-2003 से) धारा 43 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
89. 1986 के अधिनियम सं० 28 की धारा 2 द्वारा (25-11-1986 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
90. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 30 द्वारा (2-10-1991 से) उपखण्ड (iक) का लोप किया गया।
91. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 30 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अन्तःस्थापित।
92. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 30 द्वारा (2-10-1991 से) दूसरे परन्तुक के स्थान पर प्रतिस्थापित।
93. 1982 के अधिनियम सं० 23 की धारा 3 द्वारा कतिपय शब्दों का लोप किया गया।
94. 1982 के अधिनियम सं० 23 की धारा 3 द्वारा खण्ड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
95. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 31 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
96. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 32 द्वारा (2-10-1991 से) परन्तुक के स्थान पर प्रतिस्थापित।
97. 1986 के अधिनियम सं० 28 की धारा 3 द्वारा (25-11-1986 से) अन्तःस्थापित।
98. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 33 द्वारा (2-10-1991 से) “उसके किसी भाग का उपयोग किया गया है” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
99. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 33 द्वारा (2-10-1991 से) लोप किया गया।
100. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 33 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
101. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 34 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
102. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 35 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
103. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 35 द्वारा (2-10-1991 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
104. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 36 द्वारा (2-10-1991) “ट्राफी या असंसाधित ट्राफी” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
105. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 36 द्वारा (2-10-1991 से) खण्ड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
106. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 36 द्वारा (2-10-1991 से) उपधारा (2) का लोप किया गया।
107. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 36 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
108. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 29 द्वारा (1-4-2003 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
109. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 29 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
110. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 29 द्वारा (1-4-2003 से) उपधारा (6) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
111. 1986 के अधिनियम सं० 28 की धारा 44 द्वारा (25-11-1986 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
112. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 37 द्वारा (2-10-1991 से) कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
113. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 30 द्वारा (1-4-2003 से) पहले और दूसरे परन्तुकों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
114. 1986 के अधिनियम सं० 28 की धारा 4 द्वारा (25-11-1986 से) अन्तःस्थापित।
115. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 30 द्वारा (1-4-2003) “एक वर्ष” और “पाँच हजार रुपए” के स्थान पर प्रतिस्थापित।.116. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 37 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
117. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 37 द्वारा (2-10-1991 से) “असंसाधित ट्राफी या मांस” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
118. 1991 के अधिनियम सं. 44 की धारा 37 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
119. 2003 के अधिनियम संख्या 16 की धारा 31 द्वारा (1-04-2003 से) अन्तःस्थापित।120. 2003 के अधिनियम संख्या 16 की धारा 32 द्वारा (1-04-2003 से) धारा 54 के स्थान पर प्रतिस्थापित।121. 1991 के अधिनियम सं. 44 की धारा 39 द्वारा (2-04-1995 से) धारा 55 के स्थान पर प्रतिस्थापित।122. 2003 के अधिनियम संख्या 16 की धारा 33 द्वारा (1-04-2003 से) अन्तः स्थापित
123. 2006 के अधिनियम सं० 39 की धारा 4 द्वारा (20-4-1995 से) अन्तःस्थापित।
124. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 33 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
125. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 40 द्वारा (2-10-1995 से) “ट्राफी या असंसाधित ट्राफी” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
126. 2003 के अधिनियम सं०16 की धारा 34 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
127. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 41 द्वारा (2-10-1991 से) “अध्याय 2 में निर्दिष्ट प्रत्येक अधिकारी और” शब्दों और अंक के स्थान पर प्रतिस्थापित।
128. 2006 के अधिनिमय सं० 39 की धारा 5 द्वारा (4-9-2006 से) अन्तःस्थापित।
129. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 42 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
130. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 43 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
131. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 35 द्वारा (1-4-2003 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
132. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 35 द्वारा (1-4-2003 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
133. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 36 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
134. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 44 द्वारा (2-10-1991 से) “किसी अनुसूची में कोई प्रविष्टि जोड़ सकेगी” शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
135. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 44 द्वारा (2-10-1991 से) उपधारा (2) का लोप किया गया।
136. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 44 द्वारा (2-10-1991 से) “या उपधारा (2)” शब्दों, कोष्ठकों और अंक का लोप किया गया।
137. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 44 द्वारा (2-10-1991 से) उपधारा (4) का लोप किया गया।
138. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 45 द्वारा (2-10-1991 से) कतिपय शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
139. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 46 द्वारा (2-10-1991 से) उपधारा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
140. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 37 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
141. 2006 के अधिनियम सं० 39 की धारा 7 द्वारा (4-9-2006 से) अन्तःस्थापित।
142. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 38 द्वारा (1-4-2003 से) खण्ड (क) और (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
143. 2003 के अधिनियम सं० 16 की धारा 38 द्वारा (1-4-2003 से) अन्तःस्थापित।
144. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 47 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
145. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 48 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
146. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1997, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना।
147. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
148. देखिए, का०आ० 859 (अ) तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3(ii) में प्रकाशित।
149. भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 3, खण्ड 1, पृष्ठ 333 में प्रकाशित अधिसूचना द्वारा अन्तःस्थापित।
150. देखिए, का०आ० 859 (अ) तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3(ii) में प्रकाशित।
151. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
152. देखिए, का०आ० 859 (अ) तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
153. भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 3, खण्ड 1, पृष्ठ 333 में प्रकाशित अधिसूचना द्वारा अन्तःस्थापित।
154. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना।
155. देखिए, का०आ० 859 (अ) तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
156. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना।
157. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
158. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना।
159. देखिए, का०आ० 859 (अ) तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
160. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
161. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 333 में प्रकाशित अधिसूचना।
162. देखिए, का०आ० 474 (अ) तारीख 28-5-2001 द्वारा अन्तःस्थापित।
163. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 333 में प्रकाशित अधिसूचना।
164. देखिए, का०आ० 859 (अ), तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
165. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
166. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
167. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 49 द्वारा (2-10-1991 से) लोप किया गया।
168. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 333 में प्रकाशित अधिसूचना।
169. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385, 5 अक्टूबर, 1977 में प्रकाशित अधिसूचना।
170. देखिए, का०आ० 859 (अ), तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
171. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
172. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
173 देखिए, का०आ० 859 (अ), तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
174. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
175. देखिए, का०आ० 859 (अ), तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
176. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
177. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 50 द्वारा (2-10-1991 से) “धारा 10” और “बड़े शिकार” अंकों और शब्दों का लोप किया गया।
177. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 50 द्वारा (2-10-1991 से) “धारा 10” और “बड़े शिकार” अंकों और शब्दों का लोप किया गया।
178. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना।
179. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना।
180. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
181. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 51 द्वारा (2-10-1991 से) “छोटे शिकार” शब्दों का लोप किया गया।
182. देखिए, का०आ० 859 (अ), तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
183. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 333 में प्रकाशित अधिसूचना द्वारा अन्तःस्थापित।
184. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
185. देखिए, का०आ० 859 (अ), तारीख 24 नवम्बर, 1986, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खण्ड 3 (ii) में प्रकाशित।
186. देखिए भारत का राजपत्र, असाधारण, 1977 भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 385 में प्रकाशित अधिसूचना ।
187. देखिए, भारत का राजपत्र, असाधारण, 1980, भाग 2, खण्ड 1, पृष्ठ 431 में प्रकाशित अधिसूचना।
188. 1991 के अधिनियम सं० 44 की धारा 52 द्वारा (2-10-1991 से) अन्तःस्थापित।
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