जब जागो, तभी सवेरा

Submitted by Hindi on Sun, 12/18/2011 - 13:05

आज नदी की धारा खुल चुकी है और लोगों के मन भी। बकुलाही संसद के निर्माण के लिए बकुलाही पुत्रों के चयन तथा बकुलाही ग्रामपचायतों की बैठकों का काम शुरु हो चुका है। ग्रामवासी अब नदी के अलावा कृषि मंत्री भी साझी पहल कर चुके हैं। यहां करीब 200 किसानों का समूह टाटा कंसलटेंसी व इरादा संस्थान की पहल पर विकसित खेती के तौर तरीके से जुड़ रहा है। संकट में साझा अब नूतन रचना पर्व के संदेश दे रहा है। कह रहा है कि प्रकृति विपरीत होना ठीक नहीं।

प्रदेश-उत्तर प्रदेश, जिला- प्रतापगढ़, ब्लॉक- मानधाता, नदी बकुलाही। 10 वर्ग किमी. लंबे वलयाकार नदी मार्ग के बीच आने वाले गांवों का पानी लगातार उतर रहा था। कुंओं की जगह हैंडपंप और ट्यूबवेल ले रहे थे। यह सब होते हुए भी समाज सिर्फ देख रहा था। वह जैसे भूल गया था कि बाढ़ के दिनों में बांध बनाकर वलय में पानी आने से रोकने की जो गलती हुई है, उसे सुधारने से ही लौटेगा धरती का भूजल स्तर। इसी बीच आया वर्ष-2003, जब राजेंद्र सिंह सरीखे पानी कार्यकर्ता ने बकुलाही नदी के प्रतापगढ़ के इस इलाके में आकर आगे और बढ़ने वाले संकट के प्रति लोगों को आगाह किया। इसके बाद भी सात वर्ष तक सामाजिक स्तर पर कोई पहल नहीं हुई। पीने को पानी मिल रहा था। खेती के ट्यूबवेल लग ही गये थे। अतः बहुत संभव है कि समाज नेता या प्रशासन की ओर निहारता बैठा हो। किंतु किसी स्तर पर कुछ नहीं हुआ।

फिर आया वर्ष- 2010, जब हैंडपम्प सूखने से पीने के पानी का संकट चीख-चीखकर चुनौती देने लगा। एक छोटी सी बेसमझी ने बड़ा संकट खड़ा कर दिया। जहां कभी बाढ़ का संकट था, वहीं अब सूखे का सन्नाटा पसरा गया था। तब समाज पहली बार गंभीर रूप से चिंतित हुआ। इस बीच भयहरणनाथ धाम क्षेत्रीय विकास संस्थान के कार्यकर्ता समाजशेखर के नेतृत्व में शिवगंगा तालाब की कब्जा मुक्ति का एक सफल प्रयास कर चुके थे। सातवीं कक्षा की हिंदी की पुस्तक में “एक संसद नदी की” के पाठ को सभी ने पढ़ा था। यह पाठ राजस्थान के जिला अलवर की नदी अरवरी के 72 गांवों के संगठन की कहानी है। अरवरी संसद की गाथा अनुशासन व साझे से हासिल न्याय व समद्धि की अनोखी मिसाल है। भयहरणनाथ के कई स्थानीय कार्यकर्ताओं को तो अलवर जाकर अरवरी नदी का प्रवाह व संसद... दोनों को देखने का भी मौका मिला था। कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद थे।

कार्यकर्ताओं ने सूखा संकट के समाधान के लिए सरकार या प्रशासन से गुहार लगाने की बजाय संकटग्रस्त दो दर्जन गांवों की ग्रामसभाओं की ओर रुख किया। संकट साझा था। अतः समाधान में भी सभी का साझा जरूरी था। पक्ष-विपक्ष का भेदभाव किए बगैर सभी को जोड़ा। समझदारी यह दिखाई कि नेतृत्व किसी संगठन को न देते हुए ग्रामसभाओं को सौंपा गया। ग्रामसभाओं की संयुक्त बैठक में साझे श्रमदान से वलय क्षेत्र का रास्ता खोलने का निर्णय हुआ। 28 अगस्त, 2011 का शुभ दिन आया। फावड़े-कुदाल-तसले टनकने लगे। जेसीबी भी लगी। एक उत्सव का श्रीगणेश हुआ। 12 दिन तक चला यह एक उत्सव ही था। ऐसा उत्सव इस इलाके ने पहले कभी नहीं देखा था। यह उत्सव कई आंखों को खटक गया। पुलिस-प्रशासन पहले ही दिन काम रोकने पहुंच गया। जेसीबी सीज करने की धमकी तक दे डाली।

समाज भौंचक था कि जो काम प्रशासन को करना चाहिए था, अपना उत्तरदायित्व निभाने की बजाय प्रशासन उल्टे उसमें बाधा क्यों उत्पन्न कर रहा है? अगले ही दिन ग्रामवासियों ने कटरा गुलाब सिंह में शांतिमय धरना दिया। पहुंचे प्रशासन व पुलिस अधिकारियों ने जनदबाव देखते हुए काम शुरु कराने के लिए मौखिक अनुमति तो दे दी; लेकिन साथ ही 19 लोगों पर नामजद और 60 अज्ञात पर मुकदमा दर्ज कर डाला। उधर पूरे वैष्णव गांव के पास नदी मार्ग में ही डाल दी गई गैसपाइप लाइन की सुरक्षा का प्रश्न खड़ाकर गेल इंडिया लिमिटेड के अधिकारी भी बाधा बनकर खड़े हो गये। यूं खुदाई के बाद भी गैस पाइप लाइन डेढ़ मीटर पर थी। कंपनी का दायित्व था कि वह आवश्यक निर्माण कर उसे सुरक्षित करती। खैर! कंपनी ने मौके की नजाकत को समझा और कार्य को बाधामुक्त किया। सुखद यह रहा कि ग्रामवासियों ने न अपना संयम खोया और न ही घबराये, बल्कि और मुस्तैदी के साथ जुट गये। बकुलाही की सतत् रक्षा के लिए अरवरी संसद की तर्ज पर बकुलाही नदी संसद निर्माण की घोषणा कर डाली।

आज नदी की धारा खुल चुकी है और लोगों के मन भी। बकुलाही संसद के निर्माण के लिए बकुलाही पुत्रों के चयन तथा बकुलाही ग्रामपचायतों की बैठकों का काम शुरु हो चुका है। ग्रामवासी अब नदी के अलावा कृषि मंत्री भी साझी पहल कर चुके हैं। यहां करीब 200 किसानों का समूह टाटा कंसलटेंसी व इरादा संस्थान की पहल पर विकसित खेती के तौर तरीके से जुड़ रहा है। संकट में साझा अब नूतन रचना पर्व के संदेश दे रहा है। कह रहा है कि प्रकृति विपरीत होना ठीक नहीं। जब जागो तभी सवेरा।