क्या आप यकीन कर सकते हैं कि कोई नदी किसी गाँव की प्यास बुझाने के लिए डेढ़ सौ से ज्यादा कि.मी. का रास्ता जंगल–पहाड़ लाँघती हुई पहुँचे। मध्यप्रदेश के धार जिले में यही हुआ है। जब नदी खुद 162 कि.मी. का रास्ता तय करके ऐसे 172 गाँवों में हरियाली का बाना ओढ़ाने पहुँची है, जहाँ अब तक ऊसर धरती के अलावा दूर-दूर तक हरियाली दिखाई ही नहीं देती थी। जब यह खबर गाँव में पहुँची तो गाँव के लोगों की आँखों में ख़ुशी के आँसू छलक पड़े। धार के छोटे से खंडवा गाँव में ऐसा जश्न मना कि आज तक किसी त्यौहार या शादी में भी नहीं हुआ होगा। घर–घर बंटा गुड़–खोपरा और बच्चा–बच्चा हुआ बाग–बाग। आइये, जानते हैं कैसे हुआ यह सब।
दरअसल धार जिले की कुक्षी और निसरपुर तहसील इलाकों में दूर-दूर तक फैली ऊसर जमीन देखते हुए कई पीढियाँ गुजर गई। जमीन तो खूब है पर जमीन में पानी नहीं हो तो जमीन कीस काम की। कुछ बड़े काश्तकारों ने अपनी जमीन में नलकूप भी लगाया पर यहाँ हैं अधिकाँश छोटे–छोटे किसान, जिनके लिये रोजी–रोटी ही मुश्किल है तो फिर नलकूप का खर्च कहाँ से लायें। यही वजह थी कि लोग इन इलाकों से करीब–करीब हर साल बड़ी तादाद में सर्दियाँ शुरू होने के साथ ही पलायन कर जाते थे शहरों या दूसरे इलाकों की ओर काम की तलाश में। हर साल करीब 6–7 महीने परिवार सहित रोजी–रोटी की तलाश में ये लोग बाहर ही खानाबदोश जिन्दगी गुजारने को मजबूर थे यहाँ के लोग। यहाँ बरसात के दिनों में केवल मक्का की खेती ही होती रही है। एक तो जमीन पथरीली और उस पर बरसाती पानी की अनिश्चितता। क्या करें लोग भी, जैसे विधाता इनकी किस्मत लिखना ही भूल गया हो। जैसे इनकी जिन्दगी ही अँधेरे में थी।
पर अब इस इलाके के दर्जनों गाँवों की किस्मत जाग गई है। खंडवा जिले में नर्मदा नदी पर बने ओंकारेश्वर बाँध की नहर से यह सम्भव हुआ है। अब इस नहर के पानी से करीब 50 हजार हेक्टेयर खेतों में पानी मिलेगा तो यह क्षेत्र भी हरियाली का बाना ओढ़ सकेगा। इस परियोजना के मुख्य अभियंता एम.एस अजनारे बताते हैं कि अब इसका काम करीब–करीब पूरा हो गया है। यहाँ इस गाँव से ओंकारेश्वर डेम की दूरी 163 किमी है और वहाँ से यहाँ तक नहर से नर्मदा के पानी आने का टेस्टिंग भी किया जा चुका है। अब अगले रबी मौसम में इलाके के गाँवों में सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल सकेगा। उन्होंने बताया कि खंडवा जिले की सीमा के बाद यह नहर धार जिले में आती है। इस नहर के जरिये हर साल करीब 1 लाख 46 हजार 800 हेक्टेयर जमीन को पानी मिल सकेगा। इसमें 73 हजार क्षेत्र तो सिर्फ धार जिले का ही है। इस इलाके को पानी की बहुत जरूरत थी। बरसों से पानी नहीं मिलने से यहाँ के छोटे किसान मुसीबत में थे। इस नहर के रास्ते में करीब 172 गाँव आ रहे हैं, इन सभी को भी इसके पानी का लाभ मिल सकेगा।
बीते हफ्ते जब पहली बार इस नहर से पानी छोड़ा गया तो लोगों की आँखें बरबस छलक आई। पूरे खंडवा गाँव ने ढोल–ताशे की थाप पर झूमते हुए नर्मदा के पानी को माथे से लगाया। पूरे गाँव में घर–घर ख़ुशी का माहौल था। हर कोई गाँव से नहर की ओर पानी की मनुहार करने पहुँच रहा था। उनके चेहरे की चमक साफ बता रही थी कि अब लोगों के मन में सपने हिलोरें लेने लगे हैं। गाँव के लोग इससे बहुत उत्साहित हैं। महिलाओं ने तो नर्मदा से मनौती भी कर ली कि जैसे ठाठ की खेती मालवा–निमाड़ में होती है, ऐसी ही हमारे यहाँ भी हो। उल्लेखनीय है कि मालवा–निमाड़ में नर्मदा तटों की वजह से ही ये इलाके बहुत अच्छी खेती के लिए पहचाने जाते हैं। इससे ही ये इलाके सम्पन्न किसानों के बन सके हैं।
करीब पौने दो बीघा जमीन के काश्तकार देवक्या बताते हैं कि हाड़तोड़ मेहनत के बाद ही हम बमुश्किल बच्चों के लिए रोटी का इन्तजाम कर पाते थे पर अब नदी ने जैसे हमारी किस्मत का दरवाजा खटखटा दिया है। पास ही खड़ी देवक्या की पत्नी भी कहती है पानी से हम तो निहाल हो गये। किसान नेता गोपाल बर्फा बताते हैं कि नहर का पानी यदि समय से किसानों को मिला तो इनकी जिन्दगी के अब तक के सारे अँधेरे मिट सकेंगे। ये लोग मेहनती हैं पर अब तक सिर्फ पानी की वजह से ही पीछे थे पर अब तो पानी भी आ गया है। अब वो दिन दूर नहीं जब यहाँ की जमीन भी सोना उपजेगी। कमल पाटीदार बताते हैं कि हमारे बाप-दादा की जमीन अब हमारे लिए वरदान बन गई है। इधर के लोग लम्बे समय से इस नहर के पूरे होने की उम्मीद संजोये बैठे थे। आज वो ख़ुशी का मौका हमारे बीच आया है। अब हम भी अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ा–लिखा सकेंगे।