पीने के पानी की जाँच में कुछ गाँवों में फ्लोराईडयुक्त पानी मिला था, वहाँ प्रशासन ने साफ़ पानी मुहैया करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी। करोड़ों रूपये खर्च कर योजना कागजों से उतारकर गाँवों में आ भी गई लेकिन जिन गाँवों के आदिवासियों को साफ़ पानी पिलाने के लिए यह योजना शुरू की गई थी, उन्हें आज तक इसका कोई फायदा नहीं मिल पा रहा है। गाँव के लोग अब भी दूर-दूर से पीने का पानी लाने को मजबूर हैं। कई परिवारों में तो पानी लाने की जिम्मेदारी बच्चे उठा रहे हैं, इस वजह से वे समय पर स्कूल भी नहीं पहुँच पा रहे हैं।
यह मामला मध्यप्रदेश के धार जिले के आदिवासी गाँवों का है। यहाँ जिला मुख्यालय से लगभग सटे हुए तिरला विकासखंड के कुछ गाँवों में पीने के पानी की जाँच में प्रति लिटर 1.5 पीपीएम यानी 1.5 पार्ट पर मिलियन फ्लोराइड की मात्रा मिली थी। यह मात्रा सामान्य से कहीं अधिक है और इसे पीने से विकलांगता भी आ सकती है। इस खुलासे के बाद प्रशासन ने ग्रामीणों को इनका पानी पीने से रोक दिया गया था। इनकी जगह पीने के पानी की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए तब प्रशासन ने शासन को एक प्रस्ताव बनाकर भेजा था। शासन ने इसे तत्काल मंजूर कर लिया और इसके लिए आवश्यक धनराशि भी स्वीकृत कर दी। आनन–फानन में काम भी शुरू हो गया लेकिन आज इसकी जमीनी हकीकत यह है कि करोड़ों रूपये से बनी ये जल संरचनाएँ उपेक्षित हैं तो दूसरी तरफ यहाँ के लोगों को बरसात के दिनों में भी पीने के पानी के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है। यहाँ ग्रामीण दूर–दूर से अपनी जरूरत का पानी लाने को मजबूर हैं।
धार जिला मुख्यालय से करीब 5 कि.मी. की दूरी पर तिरला के पास बसा है गाँव मोहनपुरा। मोहनपुरा और उसके आस-पास के करीब दर्जन भर गाँव इसमें शामिल थे। बीते दिनों जब इन गाँवों में जाकर फ्लोराइड की स्थिति जानने की कोशिश की तो गाँववालों ने जो जानकारी दी वह आँखें खोल देने वाली है। यहाँ मिले ग्रामीणों ने बताया कि स्वच्छ पानी मुहैया कराने के लिए प्रशासन ने नए कुएँ बनाकर इनके लिए बिजली की मोटर, पम्प तथा अलग से बिजली डीपी की भी व्यवस्था की गई थी। लेकिन आज तक एक बार भी लोगों को इस कुएँ का पानी नसीब नहीं हो सका है। कुएँ में पर्याप्त पानी है पर उसे जालियों से ढँक दिया गया है और तब से अब तक महीनों गुजर गए पर कभी इसे नहीं खोला गया और न ही अब तक मोटरपम्प ही शुरू किये गए हैं। कुएँ पर लगी जालियाँ भी अब जंग खा चुकी है। टंकियाँ भी दयनीय स्थिति में हैं। करोड़ों खर्च कर बनाई गई ये संरचनाएँ अनुपयोगी होकर कबाड़ में तब्दील हो रही है।
उधर पानी नहीं मिलने की स्थिति में इन गाँवों की औरतों और बच्चों को दूर–दूर से पानी लाना पड़ रहा है। कई बार तो पानी की जुगाड़ में देर हो जाने से बच्चे स्कूल भी नहीं जा पा रहे हैं। पीने के पानी की तो यहाँ बड़ी बुरी हालत है। इन लोगों ने बताया कि कई बार उन्होंने अपनी इस समस्या को लेकर तिरला और धार मुख्यालय पर अधिकारियों को स्थिति से रूबरू कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। गर्मियों में तो इतनी परेशानी थी कि बयान करना भी मुश्किल है। कोसों दूर से पानी लाना पड़ता था और हमें आज भी भरी बारिश में पानी ढूँढना पड़ रहा है। लोगों को जहाँ पानी मिल जाता है, वहीं से पानी भरना शुरू कर देते हैं। कुछ जगह तो फ्लोराइडयुक्त स्थानों के पास से भी लोग पानी भर रहे हैं। ऐसे में दूषित पानी से कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
इसे लेकर जब प्रशासन के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है पर आपने बताया है तो हम दिखाते हैं। अब यह बात समझ से परे है कि इतने पास की उन्हें खबर नहीं तो दूर की क्या खबर होगी।