जेपी कंपनी : अलकनंदा की हत्या बंद करो

Submitted by admin on Tue, 12/10/2013 - 16:15
Source
माटू जनसंगठन

हरित प्राधिकरण का आदेश अगली सुनवाई में पर्यावरण मंत्रालय के सह-सचिव स्वयं आए


जेपी कंपनी तेजी से पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करते हुए मलबे को नदी समेत सब जगह फेंक रही है। ऐसा लगता है कि एक लाख रुपए देकर उन्होंने पर्यावरण मानकों के उल्लंघन का लाईसेंस ले लिया हो। 29 नवंबर से आज तक जिला वन अधिकारी श्री राजीव धीमान की ओर से इस पूर्ण रूप से गलत कार्य को रोकने की कोई कार्यवाही नहीं हुई है। जेपी कंपनी द्वारा उत्तराखंड में अलकनंदा नदी पर विष्णुगाड बांध परियोजना में पर्यावरण मानकों का उल्लंघन जारी है। अलकनंदा नदी पर कार्यरत विष्णुगाड बांध परियोजना में 16-17 जून, 2013 में परियोजना प्रायोक्ता जेपी कंपनी के द्वारा बांध के गेट ना खोले जाने के कारण बांध जलाशय में पत्थर और मिट्टी आदि भर गए थे और फिर लगभग 1.5 किलोमीटर लंबी झील बनी और फिर टूटी जिसके कारण बांध के नीचे के गाँवों में बहुत क्षति हुई थी। साथ ही इसमें बहुत बड़े स्तर पर पर्यावरणीय क्षति भी हुई। जिसकी भरपाई की भी कोई योजना नहीं है।

लोगों द्वारा लगातार धरना प्रदर्शन और सरकार को बताने के बाद भी जेपी कंपनी के द्वारा बांध खाली करने की जल्दी में मलबे को आस-पास के क्षेत्र बिना किसी भी तरह के पर्यावरण मानकों का ध्यान रखा जा रहा है। बांध के नीचे के क्षेत्र की भविष्य के लिए सुरक्षा को भी नहीं देखा जा रहा है।

विष्णुप्रयाग बांध आपदा प्रभावित संघ ने इस बारे में मुख्य वन संरक्षक, उत्तराखंड और चमोली जिला वन अधिकारी श्री राजीव धीमान जी को पर्यावरण मानकों के उल्लंघनों पर पत्र लिखा है। जिसमें यह मांग की गई है कि ‘‘तुरंत कार्यवाही के तहत कदम उठाने की मांग करते हैं वरना हमें मजबूर होकर स्वयं यह गलत काम रोकना होगा। ‘‘पत्र पर नवीन चौहान, किशोर पंवार, गोविंद पंवार, अखिल पंवार व अन्य के हस्ताक्षर है।”

उन्होंने पत्र में लिखा है कि यह उल्लंघन कई बार विभिन्न दैनिक अखबारों और टी. वी. चैनलों पर भी दिखाए जा चुके हैं। 29 नवंबर, 2013 को जिला वन अधिकारी श्री राजीव धीमान जी स्वयं मौके पर गए। बातचीत में उन्होंने बताया की अक्तूबर में वन विभाग ने जेपी कंपनी पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। जुर्माने का आधार स्वयं जिला वन अधिकारी पर निर्भर करता है ऐसा उन्होंने बताया।

किंतु अक्टूबर से आज तक परिस्थिति में कोई अंतर नहीं आया है। बल्कि जेपी कंपनी तेजी से पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करते हुए मलबे को नदी समेत सब जगह फेंक रही है। ऐसा लगता है कि एक लाख रुपए देकर उन्होंने पर्यावरण मानकों के उल्लंघन का लाईसेंस ले लिया हो। 29 नवंबर से आज तक जिला वन अधिकारी श्री राजीव धीमान की ओर से इस पूर्ण रूप से गलत कार्य को रोकने की कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और उत्तराखंड शासन-प्रशासन का इस पर कोई कार्यवाही ना करना बड़े आश्चर्य विषय है। माटू जनसंगठन ने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में जेपी कंपनी द्वारा किए जा रहे पर्यावरण मानकों के उल्लंघन पर केस दायर किया है। 20 नवंबर को सुनवाई के बाद अपने अंतरिम आदेश में न्यायाधीश स्वतंत्र कुमार जी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा की अलकनंदा नदी में मलबा डालने जैसे गंभीर विषय पर भी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की ओर से किसी वकील के ना आना आश्चर्य है। अगली तारिख पर उन्होंने मंत्रालय के राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण संबंधी सह-सचिव श्री सुरजीत सिंह को इस केस से संबंधित रिकार्ड के साथ हाजिर रहने का आदेश दिया।

जेपी कंपनी ने भी इस केस में कोई जवाब दाखिल नहीं किया वो जवाब में जानबूझ कर देरी कर रहे हैं। दूसरी तरफ झील खाली करने का काम तेजी से चालू है। यह प्रश्न लोगों व क्षेत्र के भविष्य से सीधा जुड़ा है। हम न्याय मिलने तक ज़मीन से लेकर न्यायालय तक लड़ेंगे।