कोरोना वायरस के संकट के बीच दुनिया के अधिकांश देशों में लाॅकडाउन है। भारत में भी 22 मार्च से लाॅकडाउन हैं। उद्योग बंद हैं। मानवीय आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ट्रेनों और हवाई सेवाओं का संचालन बंद है। सड़को पर परिवहन न्यूनतम है। परिवहन को लगभग शून्य भी कहा जा सकता है, क्योंकि केवल आपातकालीन सेवाओं के लिए सड़कों पर वाहन चलाने की अनुमति है। ऐसे में इंसानों को काफी परेशानी हो रही है, लेकिन पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से काफी सुखद है।
लाॅकडाउन के कारण उद्योगों से होने वाला कार्बन उत्सर्जन समाप्त हो गया है। बंद होने के कारण उद्योगों से किसी भी प्रकार को कैमिकल वेस्ट नहीं निकल रहा है, जिस कारण नदियों व अन्य जलस्रोतों का पानी स्वच्छ हो रहा है। परिवहन सीमित होने से भी वायु प्रदूषण में काफी कमी आई है। ऐसें में आंखों से प्रत्यक्ष तौर पर देखने पर तो प्रदूषण कम दिख रहा है, लेकिन यदि प्रदूषण के आंकड़े आते तो, यह स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता कि वायु प्रदूषण में वाहनों व कारखानों के धुएं की स्थिति कितनी है, लेकिन ऐसा कुछ कर पाना फिलहाल उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में संभव नहीं है, क्योंकि लाॅकडाउन के दौरान राजधानी देहरादून में प्रदूषण की स्थिति को जानने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास 14 मार्च तक के आंकड़ें हैं। तब कोरोना के कारण वाहनों की आवाजाही काफी हद तक अंकुश लग चुका था। जिस कारण आइएसबीटी स्टेशन पर पीएम 2.5 का औसतन स्तर 97.69 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था, जबकि मानकों के अनुसार वायु प्रदूषण 60 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक होना चाहिए था। इसके बाद 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगा और फिर अगले दिन से लाॅकडाउन हो गया। ऐसे में यदि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषण के आंकड़े जुटाता रहता, तो वायु प्रदूषण में वाहनों के धुएं की हिस्सेदारी का स्पष्ट तौर पर पता लगाया जा सकता था। यही आंकड़ें निकट भविष्य में वायु प्रदूषण की रोकथाम में काम आते और इनके आधार पर प्रदूषण को कम करने के उपाए भी किए जा सकते, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण के अधिकारी कोरोना के डर से प्रदूषण तक की रीडिंग लेने से कतरा रहे हैं, जबकि रीडिंग लेने में किसी प्रकार को खतरा नहीं हैं। ऐसे में भविष्य की जरूरतों को देखते हुए दिल्ली की ही तरह प्रदेश में भी वायु प्रदूषण को मापने की ऑनलाइन माॅनिटरिंग की जाए।
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