जहाँ मीठा पानी एक सपना है

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प्रतिलिपि त्रैमासिक द्विभाषी पत्रिका
चेतावनी जारी हो गई है। पता नहीं हम कहाँ जाएंगे। वह मंदिर जहाँ छह महीने पहले तक घंटियां गूंजा करती थी, वह चाय की छोटी दूकान जहाँ लोग चाय पर अपनी सुबहे, शामें बांटा करते थे...सब डूबने के इंतजार में हैं। बांध नंगे हो चुके हैं। तूफानी हवा, और खारे पानी को रोकने वाले मैन्ग्रूव जंगल गायब है। उसकी जड़े जो मजबूती से जमीन को पकड़ कर रखती थी वे उजड़ चुकी हैं। पानी को आना है, द्वीप को उसी तरह डूबना है जैसे कुछ साल पहले सागर आईलैंड के पास का एक द्वीप लोहाछाड़ा डूब गया था।अनादि राय दरार पड़े खेत की तरफ फटी फटी आंखों से देख रहा है। वहाँ से उसकी निगाहें खारे पानी के तालाब की तरफ जाती है और उसकी आंख में तालाब का खारा पानी भर जाता है।

डूबते द्वीप के साथ उसका दिल भी डूब रहा है। ना फटी जमीन का कोई रफूगर है ना उसकी फूटी किस्मत का।

गीली आंखों से देखता है, दूर से उसकी माँ गैलन में मीठा पानी लेकर चली आ रही है। चाची छवि राय अपनी बेटी को पुकार रही है...वह जिस द्वीप पर है वहाँ कुछ भी अनुकूल नहीं है...जीवन हर पल खतरे में। छह महीने पहले आए समुद्री चक्रवात आइला ने उनके समेत पूरे द्वीप के लोगो का जीवन तबाह कर दिया है। खेतों में खारा पानी क्या घुसा, किस्मत में दरारे पड़ गई। अब तीन साल तक गाँव में कोई खेती नहीं हो पाएगी। जमीन फटी रहेगी। कोई फसल नहीं उग सकती। तालाब ना जाने कब अपने खारेपन से उबरेगा। मीठा पानी एक सपना है। घर अब भी वैसे ही टूटे हैं, किसी भी रात गाँव का कोई एक सदस्य गायब हो सकता है। उसे कौन ले जाएगा, ये सबको पता है। गाँव से ना उठा पाया तो जंगल के उस छोर से बाघ उठा लेगा जब वे शहद की खोज में नाव से पार उतरेंगे। कागमारी द्वीप का रहने वाले दीपक ने जैसे ही अपनी माँ को किनारे पर उतारा, देखते ही देखते बाघ ने घसीट लिया। दीपक की चीखें घुट गईं। मंजर आंखो के सामने अब भी घूम रहा है। यहाँ जिसे देखो वही खौफ़जदा है। क्योंकि यहाँ कुछ भी नहीं अच्छा घट रहा। सुंदरवन के तीन द्वीपो कुलतली, वासंती, गोसाबा और सज्जलिया और अन्नपुर के दौरे में यहीं सूरते हाल दिखेगा। वैज्ञानिक, प्रोफेसर, पर्यावरणविदो की टोली मौसम के मिज़ाज पर शोध करने के लिए आए दिन यहाँ आ रही है। तपते सुंदरवन के घाव नही भर रहे क्योंकि सरकार ने उन्हें धोखा दिया है। आईला के कारण जिनका घर उजड़ा उन्हें आज तक एक पैसा घर बनाने के लिए मयस्सर नहीं हुआ। जबकि सरकार ने प्रति परिवार दस हजार रुपये देने का वादा किया था। आप मिलेंगे तो वहाँ के निवासी लगभग विलाप करते हुए मिलेंगे। युवा भवतेश वैष्णव गुहार करेंगे – जीना मुश्किल है यहाँ। यहाँ घर-द्वार नहीं है। यहाँ स्वंयसेवी संगठन जो काम कर रहे हैं वह अर्पाप्त है। वे सिर्फ तालाब बनवान में मदद कर रहे हैं। हमारे पास पहनने को कपड़ा नहीं है। जो राहत में फटे पुराने मिले थे हम उन्हीं से काम चला रहे हैं। भवतेश के साथ खड़ा गाँव का पंचायत प्रतिनिधि भी सन्न है। वह हाथ उठा कर बांध की तरफ इशारा करता है, वो देखिए, पानी बढ रहा है। जमीन दल दल में बदल रही है। जगंल नष्ट हो रहे हैं। हम एक साल के भीतर डूब जाएंगे। चेतावनी जारी हो गई है। पता नहीं हम कहाँ जाएंगे। वह मंदिर जहाँ छह महीने पहले तक घंटियां गूंजा करती थी, वह चाय की छोटी दूकान जहाँ लोग चाय पर अपनी सुबहे, शामें बांटा करते थे...सब डूबने के इंतजार में हैं। बांध नंगे हो चुके हैं। तूफानी हवा, और खारे पानी को रोकने वाले मैन्ग्रूव जंगल गायब है। उसकी जड़े जो मजबूती से जमीन को पकड़ कर रखती थी वे उजड़ चुकी हैं। पानी को आना है, द्वीप को उसी तरह डूबना है जैसे कुछ साल पहले सागर आईलैंड के पास का एक द्वीप लोहाछाड़ा डूब गया था। वहाँ के लोग सागर आइलैंड पर क्लाइमेट के रिफ्यूजी के रुप में जिंदगी के दिन काट रहे हैं।

अब कागमारी भी डूब जाएगा। तब तक शंकर हाल्दार रेडियो पर पुरानी हिंदी के गाने जोर जोर से बजाता द्वीप की कच्ची सड़को पर मस्ती में घूम रहा है। शहर की नई पीढी मोहम्मद रफी और मुकेश को नहीं जानती। शंकर इन दोनों महान गायको का फैन है। उनके दर्द भरे नगमों में अपनी जिंदगी का रिश्ता जोड़ता और मस्त रहता है। कुछ कुछ वह अपर्णा सेन की फिल्म माई जैपनीज वाइफ के नायक सरीखा दिखाई देता है। जिसकी अपनी दुनिया है और जहाँ वह चंद चिठ्ठियों के साथ रोमाँस में डूबा रहता है।

गोसाबा से कागमारी तक की यात्रा बेहद कष्टदायी होती है। जब गोसाबा गए तो मेरे स्थानीय गाइड शंकर से मैने कहा, यार द्वीप में घूमने के लिए कोई गाड़ी वाड़ी है या नहीं। उसने कहा, है ना। भान है। मैं खुश हुई कि यहाँ मारुति वैन चलती है और जिसे बिहारियो की तर्ज पर यहाँ के लोग भान बोलते हैं।

सवारी से ठूंसी हुई नाव (फेरी) से उतर कर जब सड़क पर आए तो मेरी नजरें भान तलाशने लगीं। एक ठेले वाले के पास जाकर शंकर रुका। सामान रखा और उछल कर बैठ गया। मैं अचकचा गई। भान कहाँ है। यही तो है।।इसे ही भान कहते हैं, यहाँ अंदर यही चलता है। बैठ जाओ, थोड़ा कष्ट तो होगा मगर कोई और गाड़ी सवारी नहीं मिलेगी।

मैंने देखा, स्थानीय लोग ठूंसे हुए चले जा रहे हैं। शंकर हंसा, मैडम, आगे ठेलेनुमा मोटर साइकिल मिलेगी। उसमें जल्दी तो पहुंच जाएंगे मगर हड्डी चरमरा जाएगी। सुंदरबन इतना सुंदर भी नहीं।।

वही हुआ। तरह तरह की गाड़ियों में बैठते उतरते रहे...पथरीली राहो पर उछलते रहे, द्वीप दर द्वीप पार करते रहे, हिचकोले खाते रहे।।शंकर मेरे संकट को देख मजे लेता रहा मगर सहारा देता रहा। बीच बीच में बाजार में रुक रुक कर छोटा सा टार्च खरीदा, पानी की बोतलें, चिप्स के पैकेट। खाने पीने की दिक्कत होगी, सो ले लेता हूँ। टार्च क्यों, बिजली नहीं है ना। दिन भर जेनरेटर के भरोसे रहते हैं लोग बाग। शाम को वही दिया बाती।।लालटेन युग। अपर्ना सेन का नायक, दीए की टिंमटिमाती रोसनी में पत्र पढता और लिखता है। बिजली नहीं है, इसलिए फैक्स चाह कर भी नहीं भेज पाता। फोन काम नहीं कर रहा। आंधी तुफान में भड़भड़ा कर दरवाजे सांकल खुलते हैं, जैसे उसके भीतर कुछ चल रहा हो। फिल्म के किरदार आईला के पहले के हैं। इसलिए फिल्म उन दुश्वरियो पर बात नहीं करती जो मैं साक्षात वहाँ जाकर झेल रही थी। पानी का संकट कितना बड़ा हो सकता है वहाँ यह अंदाजा इस बात पर लगाया जा सकता है कि डर सो कोई तीन दिन तक नहाए ना, कि कहीं त्वचा रोग ना हो जाए। शंकर डराने का काम अच्छा करता है। खारे पानी की वजह से नमकीन चाय पीते हुए उबकाई आए तो क्या करे। आईला के बाद ऐसी ही चाय वहाँ नसीब हो रही है।

जलवायु परिवर्तन, तापमान बढने और समुद्र का जलस्तर बढने की सबसे अधिक मार सुंदरवन के निवासियों को झेलना पड़ रही है। दुनिया के सबसे बड़े संरक्षित नदी डेल्टा वन क्षेत्र सुंदरवन शायद प्रकृति और मानव के अनवरत संघर्ष का सबसे बड़ा उदाहरण भी है। इस संघर्ष में प्रकृति और वन संपदा के पहुंच रही क्षति की चिंता कौन करे, जब खुद के अस्तित्व पर बन आए। कड़ी मेहनत कर जीने वाले यहाँ लोग जीवन-यापन के लिए वहीं कुछ कर रहे हैं जो सैकड़ो साल से उनके पूर्वज करते आए है- मछली पकडऩा, कुछ बो-उगा लेना, जंगल में शिकार और मधु की तलाश और जरूरत पड़े तो स्थानीय सूदखोरों से कर्ज लेना। बाघ और समुद्र से बचने और लडऩे की जुगाड़ सोचने में दिन गुजर रहे हैं।

सुंदरवन के लगभग 110 छोटे-बड़े द्वीपों (56 रिहाइशी और 54 संरक्षित) पर रह रही आबादी के लिए कभी कुछ भी नहीं बदला। बदली हैं तो परिस्थितियां, जो दिन बीतने के साथ-साथ संघर्ष बढ़ाती चली गई हैं। यहाँ आदमजात जंगल में रहने वाली पांच सौ अन्य प्रजातियों के साथ अस्तित्व के लिए संघर्ष में जुटी रहती है। लोग किसी तरह जी रहे हैं।

सुंदरवन के द्वीपों पर मोबाइल फोन कंपनियां पहुंच गई हैं। लेकिन बिजली विभाग नहीं। लोगों के एक हाथ में अगर मोबाइल है तो दूसरे में टार्च। क्योंकि, गांवों में भीतर तक बिजली के पोल नहीं पहुंचे हैं। लोग बैटरी की दुकानों में मोबाइल चार्ज करा लेते हैं। मछली और केकड़ा पकडऩे में बाघ के शिकार हुए परिजनों की कहानी हर घर में है। क्योंकि, जीविका का दूसरा कोई साधन नहीं है। बेनीपहेली गाँव के पालेन नैया को याद है कि कैसे उनकी पत्नी को बाघ उठा ले गया उनकी आंखों के सामने। उसने एक और केकड़ा पकडऩे का लालच किया था। वे कहते है, मछली और केकड़ा पकडऩे के लिए इस द्वीप से उस द्वीप नाव लेकर घूमने के अलावा जीविका की कोई वैकल्पिक व्यवस्था ही नहीं है। यहाँ के विभिनन द्वीपों पर बाघ के द्वारा मार डाले गए लोगों की विधवाओं की संख्या 22 हजार आंकी गई है। बासंती का जेलेपाड़ा गाँव तो विधवाओं का ही गाँव है। इनके बारे में 1990 में पता चला, जब पत्रकारों के साथ गई पुलिस के एक गश्ती टीम ने बड़ी सी नाव में सफेद साड़ी पहले कई महिलाओं को जाते देखा था। ऐसी महिलाओं की मदद के लिए काम करने वाली संस्था ऐक्यतान संघ के सचिव दिनेश दास के अनुसार, राज्य सरकार ने इन्हें ढाई सौ रुपये की मदद मिलती है। लेकिन वह भी तब, जब मारे गए व्यक्ति के शव की फोटो जमा कराई जाती है। जिनके घरवालों को बाघ जंगल में खींच ले गया, उन्हें तो यह भी नसीब नहीं।

इसके अलावा शहद इकठ्टा करने का काम है, जिसके लिए घने जंगलों में घुसना ही पड़ता है। एक बार कोई बाघ की चपेट में आ जाए तो वह लड़ाई कर सकता है, लेकिन अगर मधु संचय के लिए एक बार कोई सूदखोरों के चंगुल में आए जा तो भगवान ही मालिक।

रिहाइशी इलाकों में खेती की जमीन खारा पानी के चलते चौपट हो रही है। इस कारण वन क्षेत्र को काटने की समस्या बढ़ी है। जहाँ खारा पानी की समस्या नहीं है, वहाँ समुद्री और डेल्टा का पानी जमीन लील रहा है। यादवपुर के अशीनोग्राफर सुगत हाजरा द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में सुंदरवन इलाके की 31 वर्ग मील जमीन समुद्र में लुप्त हो गई है। मौसम परिवर्तन के चलते पारिस्थिति पर यह संकट है। छह सौ परिवार विस्थापित हुए हैं। बढ़ता समुद्र और जंगल की अंधाधुंध कटाई पर अंकुश न होने के चलते यह नौबत आई है। पर्यावरण से जुड़े ये सवाल स्थानीय लोगों की जीविका से जुड़े हैं।

परिस्थितिकी में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। जंगल की हरियाली कम हो रही है। और सुंदरवन को नाम देने वाले सुंदरी के वृक्ष काटे जा रहे हैं। हेताल (एलीफैंट ग्रास) काटे जा रहे हैं, जिनके बीच रॉयल बंगाल टाइगर घर की तरह महसूस करता है। एलीफैंट ग्रास (स्थानीय बोलचाल की भाषा में होगला) के पत्ते ठीक बाघ की पीठ पर बने धारियों की तरह होते हैं। वहाँ छुपना बाघ के लिए मुफीद रहता है। दूसरे, खेती-बारी, मछली-झींगा पालन और मधु संचय के लिए जमीन चाहिए, जो सरंक्षित घोषित वन से छीने जा रहे है। वन विभाग के शूटर सुब्रत पाल चौधरी के अनुसार, अपनी रक्षा के लिए बाघ लोगों पर हमला करता है। आबादी का अतिक्रमण अघोषित रूप से वन क्षेत्र में हो रहा है। ऐसे में जब डेल्टा क्षेत्र में बाढ़ आती है, बाघ और बच्चे बहकर किनारे आ जाते हैं और फिर आसपास के गांवों में जा छुपते हैं। दूसरी वजह, स्थानीय लोगों द्वारा शिकार के कारण जंगल में बाघ का भोजन कम हो रहा है। हिरण और जंगली सूअर काफी कम हो गए हैं। वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2006 के बाद से बाघों के घुस आने की कुल 32 घटनाएं रिकॉर्ड की गई हैं, जिनमें 30 बाघों की वापस जंगल में छोड़ दिया गया। खासकर गंगा के डेल्टा सुंदरवन के पश्चिम बंगाल वाले हिस्से में। बांग्लादेश का हिस्सा भी ऐसी घटनाओं से अछूता नहीं। बांग्लादेश में तो हर साल लगभग 20 लोग रॉयल बंगाल टाइगर का शिकार बनते हैं।

क्या बच पाएगा सुंदरवन


पृथ्वी हर व्यक्ति की जरूरत पूरा करने का सामर्थ्य रखती है पर उसके लालच का नहीं
यह बात भले ही गांधी ने किसी दूसरे संदर्भ में कही हो, सुंदरवन पर सौ फीसदी फिट बैठती है। सुंदरवन से उठती भयावह सच्चाईयों की लहरें कैसे फन पटक रही है यह देश में किसी को दिखे ना दिखे, दुनिया को जरुर दिख रही है। कोपेनहेगन से उठी दुश्चिंता की लहरें अभी थमी नहीं। यह देखने और कुछ करने का वक्त है। शायद इसलिए कुछ खलबली मची है।

सुदंरबन के बारे में बात करते हुए जादवपुर यूनिवर्सिटी, ओसियनोग्राफी स्टडीज के निदेशक सुगाता हाजरा बेहद संवेदनशील बयान देते है, सुंदरवन अपनी तरह का वो विशिष्ट इलाका है जहाँ देश की सबसे ज्यादा सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर जनता, सबसे अधिक कमजोर और संवेदनशील जमीन पर रह रही है। हाजरा और उनकी टीम ने वर्षो तक यहाँ के जलवायु का अध्ययन किया है और चौंकाने वाले नतीजो के प्रति प्रशासन को बहुत पहले ही आगाह कर दिया था।

इतना होने के बाद भी अब तक हमारी चिंताओं से कटा हुआ है। समय रहते चेतने की आदत नहीं हमारी शायद इसीलिए धीरे-धीरे सुंदरवन के द्वीपों के चारो तरफ फैले मैनग्रोव जंगल मनुष्यों के लालच की भेंट चढ़ गए। अपढ़, गरीब और वंचित लोग समझ नहीं पाए कि यह अपने आप उगा-फैला जंगल उनकी रक्षा के लिए है। उन्हें काट डाला और बेच डाला। जब आंख खुली तो द्वीप नंगे खड़े थे, दरिया अब दुस्वप्न की तरह लीलने को तैयार है। जंगल कटते रहे, तटबंध छीजते रहे। भाटा आता रहा, द्वीप की जमीन को दलदल मे बदलता रहा।

वैसे भी तटबंध कभी स्थाई नहीं होते। पानी की धार उनका कटाव करती रहती है निरंतर। आइला ने समूचे द्वीप के पानी को खारे पानी में बदल दिया।

मीठा पानी के तालाब या तो सूख गए या खारे पानी में बदल गए। वहाँ की चीनी तक नमकीन हो गई। खारे पानी ने द्वीप के साथ साथ उनके चेहरे का भूगोल तक बदल दिया। खारे पानी की वजह ले लोग काले हो रहे हैं और त्वचा संबंधी बिमारियां। सुंदरवन का घना जंगल भी दरिया के खारे पानी का शिकार होता रहा। अवैध शिकारी, स्थानीय लोगो के सहयोग से हिरण मारकर ले जाते रहें। आइला के कारण छोटे छोटे जानवर भी खत्म हो गए। रॉयल टाइगर को न पीने के लिए मीठा पानी मिला न खाने को अपना शिकार। यहाँ तक कि बाघों की सीमाओं के निशान तक मिट गए। वे दलदली जगंल से बाहर आने लगे, पानी में तैरने लगे। पानी में तैरती हुई मौतें द्वीप के मछुआरों ने देखी। जब तक चप्पू तेज चलाते, नाव से खींच लिए गए। अब तो आए दिन बाघ किसी न किसी गाँव में घुस आते हैं। और किसी न किसी को उठा ले जाते हैं। इन गाँवों का दौरा करें तो कई पीडि़त मिल जाएंगे।

अभी भी वे दहशत में जी रहे हैं। एक संकट हो तो सामना करें।
पहले आइला संकट, फिर बाघ का खौफ, रोजगार की कमी और अब नया संकट मीठा पानी और तपती धरती। ठंड के मौसम में भी दिन में पसीना आए तो खतरा कहीं पास ही में सूंघा जा सकता है।

नरेगा (राष्ट्रीय रोजगार योजना) के नाम पर लूट अलग मची है। द्वीप को डूब से बचाने के लिए वहाँ अस्थायी तटबंध बनाए जा रहे हैं। रोजगार के नाम पर छोटे छोटे बच्चे ईंट-पत्थर फोड़ते हैं। पैसा परिवार के एक सदस्य को मिलता है वो भी तय राशि से एक चौथाई कम। तहकीकात करने पर मामला साफ़ हो जाता है। भोले भाले लोग फरियाद कहाँ करे, किससे करें। जब अपना हाकिम ही जुल्मी हो। बात करे तो वे फूट पड़ते हैं। भवतेश रुआंसा होकर बताता है, यहाँ जीना मुश्किल है। यहाँ किसी के पास घर द्वार नहीं है। जीएं को कैसे जीएं। बाघ के लिए हमारा शिकार बनाना आसान है। घर जब चारो तरफ से खुले हो तो कैसी सुरक्षा?

हालांकि वन विभाग ने सुंदरवन में इनसानी बस्तियों में बाघों को आने से रोकने के लिए लगभग 64 कि।मी। के दायरे में नायलॉन रस्सी की बाड़ भी लगाई है। बावजूद इसके घटनाओं पर अंकुश नहीं लगाया जा सका है। नुकीले दांतो से बाड़ काट कर जंगल से बाहर निकल आते हैं। वन विभाग के अधिकारी अब स्वीकारने लगे है कि तेजी से घटते जंगल ही बाघों के बाहर निकलने की एक बड़ी वजह है।

कागमारी द्वीप का सरपंच दीपक सरदार के अनुसार सभी संकटो से बचने के लिए प्रशासन की तरफ से कई कदम उठाए जा रहे हैं। जिनमें अस्थाई तटबंध भी शामिल है। यूनीसेफ लोगो को घर बनवाने में मदद कर रहा है। भवतेश की नजर में यह काम भी अपर्याप्त है। वहाँ की एक स्थानीय स्वंय सेवी संगठन है, सुंदरवन शांडिल्य आश्रम, वह भी गावों में तालाब खुदवा रहा है। जो लोग तालाब बनावाना चाह रहे हैं उनकी मदद कर रहा है। यहाँ तक कि मैन्ग्रूव जंगल लगाने लगाने की भी बात हो रही है। बाते तो बहुत हो रही हैं, धरातल पर कुछ ही काम दिखाई दे रहे हैं, जो दे रहे हैं वे अपर्याप्त हैं। अभी एक ताजा खबर आई है कि बाघो की गतिविधियो पर नजर रखने के लिए प्रशासन ने बाघो पर रेडियो कॉलर लगाने का फैसला किया है। सुंदरबन बायोस्फीयर रिर्जव के निदेशक प्रदीप व्यास के अनुसार हाल ही में दक्षिणी 24 परगना जिले के गोसाबा इलाके में एक बाघिन पर कॉलर लगाया गया है। कुछ और बाघो पर रेडियो कॉलर लगाना है। जिससे उनके व्यवहार का पता लगाया जा सके। उनके अनुसार अभी तक सुंदरबन के बाघों के आचरण और व्यवहार पर कोई वैज्ञानिक शोध नहीं किया गया है। सभी सूचनाएं अवलोकन पर आधारित थीं। इसके लिए एक प्रामाणिक शोध की जरुरत महसूस की गई जो बाघो के व्यवहार के विषय में सटीक सूचनाएं मुहैय्या कराएगा।

ये शायद इसलिए भी जरुरी था कि एक ही बाघिन एक ही मुहल्ले में छह महीने के दौरान दो बार घुसी और लोगो को अपना शिकार बनाया। वो बाघिन जब शांत हुई तो उसे रेडियो कॉलर लगाया गया। यह प्रयोग सफल रहा। रेडियो कॉलर से प्राप्त संकेतो से पता चला कि बाघिन किस दायरे में घूमती रहती है।

शायद इससे गाँव वालो की जान बच सकेगी। बाकी संकट को तब भी मुंह बाए खड़े रहेंगे।