जहाँ पानी की तलाश ही है इकलौता काम

Submitted by Hindi on Fri, 12/25/2015 - 10:58
Source
उत्तराखंड आज-ई पेपर, 12 दिसम्बर 2012

उत्तराखण्ड के नौलेपिथौरागढ़। राज्य सरकार भले ही राज्य में पानी की किल्लत से जुड़ी समस्याओं को सिरे से नकार रही हो, लेकिन जनपद के जल महकमे की पानी की टंकियाँ खाली पड़ी हैं। नलों में दो बूँद पानी तक नहीं टपक रहा है। कई मोहल्लों में तो कई दिनों तक पानी के दीदार को लोग तरस जाते हैं। पौ फटते ही शहर की अधिकांश आबादी पानी की तलाश में भटकती देखी जा सकती है।

शहर में पानी की किल्लत का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोग पानी की तलाश में तीन-तीन किलोमीटर दूर स्थित महादेव धारे तक दौड़ लगाते हैं। वहाँ पर भी पानी को लेकर सुबह से शाम तक मारामारी ही चलती है।

पानी की मारामारी को देखते हुए हुडैती के ग्रामवासियों को जिनकी सीमा पर यह धारा स्थित है, बाक़ायदा लिखना पड़ा कि ‘यह स्रोत हुडैती वालों का है। यहाँ से पानी भरने की कोशिश न करें।’ वैसे ऐसा नहीं है कि हुडैती के ग्रामीणों को अन्य लोगों के पानी लेने पर कोई ऐतराज हो, लेकिन उनका कहना है कि हुडैती के ग्रामीणों के लिये ही यह पानी पर्याप्त नहीं हो पा रहा है। ऐसे में अन्य लोगों को यहाँ से पानी ले जाने देना अपने परिवार को खाई में धकेलने जैसा होगा।

यह हाल है उस हरी-भरी सौरघाटी का, जहाँ पहले कुछ फुट पर ही पानी निकल जाता था। हैण्डपम्प व नौले लबालब भरे रहते थे। लेकिन जनसंख्या बढ़ने से हरी-भरी सौरघाटी कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुकी है। अब हजारों फीट खुदाली में भी पानी नहीं निकल रहा। अब कपड़े धोने हों या फिर नहाना हो, सब पानी के मैनेजमेंट में माहिर हो गए हैं। यही नहीं, पेयजल उपलब्ध न होने से भी नगरवासियों को गन्दा व घटिया पानी पीने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है।

लोग पीलिया व चर्म रोग की चपेट में आ रहे हैं। शहरवासियों के हालत ऐसे हैं कि यहाँ सुबह उठने के बाद हाथ-मुँह धोने के लिये लोगों के पास पानी नहीं होता। पहली प्राथमिकता में पानी आने से इसकी प्राप्ति के लिये जद्दोजहद बढ़ गई है।

पिथौरागढ़ नगर को 10.10 एमएलडी पानी की जरूरत है लेकिन 4.5 एमएलडी पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है। ढुलीगाढ़ से 1.50, घाट से 2 व रई गाढ़ से 0.50 एमएलडी पानी की ही आपूर्ति हो पा रही है। कहने को नगर के लिये ढुलीगाड़, घाट रईगाँढ़, भलोट, नैनीपातल योजनाओं से पानी की आपूर्ति की जाती है, लेकिन ये योजनाएँ लोगों की प्यास बुझाने में असमर्थ साबित हो रही हैं। इन योजनाओं के मेंटीनेस के नाम पर अब तक लाखों रुपए खर्च हो गए हैं।

दूसरी ओर नगर की आबादी तेजी से बढ़ रही है। पानी की माँग बढ़ रही है लेकिन आपूर्ति बढ़ाने के प्रयास नहीं के बराबर हो रहे हैं। पानी की समस्या अब सिर्फ गर्मियों की समस्या न रहकर यह बारहमासी हो गई है।