जहर उगल रहे स्कूल के ट्यूबवेल

Submitted by RuralWater on Tue, 02/20/2018 - 13:53


आर्सेनिकयुक्त पानी पीने को मजबूर बच्चेआर्सेनिकयुक्त पानी पीने को मजबूर बच्चे6 साल की पूर्णिमा वैरागी पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना जिलान्तर्गत बशीरहाट के मेरूदंडी गाँव में रहती है और पास के ही स्कूल में नियमित पढ़ने जाती है।

खुशमिजाज पूर्णिमा इस बात से पूरी तरह अनजान है कि उसके शरीर में आर्सेनिक नाम का जानलेवा तत्व प्रवेश कर चुका है और अगर अभी से एहतियात नहीं बरती गई, तो वह आर्सेनिक से होने वाले कैंसर की चपेट में आ सकती है।

वह यह भी नहीं जानती है कि जो पानी वह घर व स्कूल में पीती है और जो खाना वह स्कूल व घर में खाती है, उन्हीं की वजह से जहरीले आर्सेनिक ने उसके शरीर में ठिकाना बना लिया है।

उसके यूरिन में प्रति लीटर 250 माइक्रोग्राम आर्सेनिक है। वहीं, उसके बालों में 2.6 माइक्रोग्राम आर्सेनिक पाया गया है। उसके घर में जो चावल खाने में इस्तेमाल होता है उसमें भी भारी मात्रा में आर्सेनिक मिला है। चावल में प्रति किलोग्राम 240 माइक्रोग्राम आर्सेनिक पाया गया है।

पूर्णिमा वैरागी जिस स्कूल में पढ़ती है उसी स्कूल में 8 साल की के. खातून भी पढ़ाई कर रही है और उसके शरीर में भी आर्सेनिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। उसके यूरिन में प्रति लीटर 827 माइक्रोग्राम आर्सेनिक मिला है। उसे भी नहीं पता है कि आर्सेनिक क्या है और उसके शरीर में आर्सेनिक है भी कि नहीं? अगर है तो उसके शरीर में वह कैसे गया?

दोनों संग्रामपुर मेरूदंडी स्विसगेट शिशु शिक्षा केन्द्र में पढ़ती हैं। यह स्कूल कोलकाता से करीब 75 किलोमीटर दूर स्थित है और इसमें 5 से 10 साल के 75 बच्चे पढ़ते हैं।

जादवपुर विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ एनवायरन्मेंट स्टडीज की ओर से इस स्कूल में पढ़ने वाले कुछ बच्चों के नाखून व बालों में आर्सेनिक की मौजूदगी को लेकर शोध किया गया है। यही नहीं स्कूल में बने दो चापाकल व स्कूली बच्चों के घरों के जलस्रोत व घर में इस्तेमाल होने वाले चावल को भी शोध में शामिल किया गया। शोध में जो परिणाम सामने आये हैं, वे बेहद चिन्ताजनक हैं।

शोध से सम्बद्ध विशेषज्ञों ने बताया कि करीब 50 बच्चों के नाखून व यूरिन के नमूने जाँच के लिये संग्रह किये गए थे और उनकी जाँच में पाया गया कि आर्सेनिक उनके शरीर में प्रवेश कर चुका है और जल्द ही कुछ नहीं किया गया, तो उनमें इसका असर दिखने लगेगा।

यूरिन के नमूनों की जाँच में पता चला है कि इन बच्चों में सामान्य से कई गुना ज्यादा आर्सेनिक है। एक आदमी के यूरिन में प्रति लीटर 3 से 26 माइक्रोग्राम आर्सेनिक सामान्य है, लेकिन शोध में बच्चों के यूरिन में 39 से 827 माइक्रोग्राम आर्सेनिक मिला है।

यूरिन में आर्सेनिक की मात्रा सामान्य से कई गुना अधिक होना चिन्ताजनक है क्योंकि एक व्यक्ति के शरीर में जितना आर्सेनिक प्रवेश करता है, उसका 70 प्रतिशत हिस्सा यूरिन के साथ बाहर निकल जाता है। आँकड़ों से साफ है कि इन बच्चों के शरीर में भारी मात्रा में आर्सेनिक प्रवेश कर रहा है। इसका 30 फीसदी हिस्सा भी अगर शरीर में जमा हो रहा है, तो वह बच्चों के लिये खतरनाक है। इसी तरह सिर के बालों के नमूनों में भी आर्सेनिक की मौजूदगी मिली है।

अन्तरराष्ट्रीय मानक के अनुसार एक व्यक्ति के शरीर में प्रति ग्राम 0.08 से 0.25 माइक्रोग्राम आर्सेनिक सामान्य है। शोध में बच्चों के बालों में 0.003 माइक्रोग्राम से 8.13 माइक्रोग्राम तक आर्सेनिक मिला है।

जादवपुर यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एनवायरमेंट स्टडीज के डायरेक्टर प्रो. तरित रायचौधरी के अनुसार, बालों में आर्सेनिक की सामान्य से अधिक उपस्थिति इस बात की तरफ इशारा करती है कि बच्चों के शरीर में लम्बे समय से आर्सेनिक प्रवेश कर रहा है।

प्रो. रायचौधरी इस पर और रोशनी डालते हुए कहते हैं, ‘मानव शरीर में आर्सेनिक नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता है। सिर के बाल शरीर के सबसे ऊपर होते हैं, इसलिये बालों में आर्सेनिक सबसे बाद में पहुँचता है। शोध में जो तथ्य सामने आये हैं, उससे साफ है कि बालों में सामान्य से कई गुना ज्यादा आर्सेनिक है और लम्बे समय से आर्सेनिक उनके शरीर में जा रहा है।’

वहीं, नाखूनों के 17 नमूने संग्रह किये गए थे। इन नमूनों की जाँच में पता चला है कि इसमें प्रति ग्राम 1.65 से 6.77 माइक्रोग्राम आर्सेनिक है। अन्तरराष्ट्रीय मानक के अनुसार नाखूनों में प्रति ग्राम 0.43 माइक्रोग्राम से 1.08 माइक्रोग्राम तक आर्सेनिक सामान्य है।

अगर घरों में मौजूद चावल की जाँच रिपोर्ट की बात करें, तो चावल में भी सामान्य से बहुत अधिक आर्सेनिक मिला है। चावल में प्रति ग्राम 60 से 450 माइक्रोग्राम आर्सेनिक पाया गया है।

प्रो. तरित रायचौधरी ने कहा, ‘आर्सेनिकयुक्त चावल का सेवन बेहद खतरनाक है। चावल में आर्सेनिक अपने मूल रूप में पहुँचता है क्योंकि चावल में सीधे पानी से रॉ आर्सेनिक पहुँचता है। यह आर्सेनिक जैविक नहीं होता है।’

उन्होंने बताया, ‘पौधों में आर्सेनिक सबसे पहले जड़ों में पहुँचता है। जड़ों से तने में और फिर ऊपर की तरफ बढ़ते हुए फलों में पहुँचता है। धान की जड़ें काफी दूर तक फैली हुई होती हैं। ऐसे में अगर पानी में आर्सेनिक की मात्रा कम हो, तो वह जड़ों तक ही रह जाता है। यहाँ के चावल में सामान्य से अधिक आर्सेनिक इस बात का प्रमाण है कि यहाँ के पानी में आर्सेनिक की मौजूदगी खतरनाक स्थिति में है।’

धान के पौधे चूँकि ज्यादा समय तक पानी में रहते हैं और साथ ही धान को दो बार उबाला भी जाता है। आर्सेनिक के प्रभाव वाले क्षेत्रों में आर्सेनिकयुक्त पानी में ही धान को उबाला जाता है। इन वजहों से भी धान में अधिक आर्सेनिक पहुँचता है।

पिछले कुछ सालों में हुए शोधों में भी पता चला है कि आर्सेनिकयुक्त पानी से सिंचाई करने से अन्न में भी आर्सेनिक पहुँचता है।

संग्रामपुर मेरूदंडी स्विसगेट शिशु शिक्षा केन्द्र में दो ट्यूबवेल हैं और स्कूली बच्चे इन्हीं ट्यूबवेल से पानी का सेवन करते हैं। यही नहीं, स्कूल में जो मिड डे मील बनता है, वह भी इसी पानी से तैयार किया जाता है। शोध के लिये इन ट्यूबवेल से भी पानी के नमूने लिये गए थे।

शोध में एक ट्यूबवेल के पानी में प्रति लीटर 600 माइक्रोग्राम व दूसरे ट्यूबवेल के पानी में प्रति लीटर 275 माइक्रोग्राम आर्सेनिक मिला है।

शोध के परिणाम को बेहद चिन्ताजनक बताते हुए यादवपुर यूनिवर्सिटी की तरफ स्कूल के टीचर-इन-चार्ज को पत्र लिखकर एहतियाती कदम उठाने को कहा गया है। पत्र में कहा गया है, ‘जाँच के परिणाम संकेत देते हैं कि पानी के नमूने में भारी मात्रा में आर्सेनिक है।’

प्रो. तरित रायचौधरी ने कहा, ‘हमने स्कूल प्रबन्धन को बच्चों को आर्सेनिक मुक्त पानी देने की सलाह दी है। साथ ही डीप ट्यूबवेल/पानी के वैकल्पिक स्रोत/आर्सेनिक रिमूवल प्लांट स्थापित करने की भी अनुशंसा की है।’

जाँच रिपोर्ट पर हैरानी जताते हुए स्कूल की टीचर-इन-चार्ज सुचित्रा सरकार ने कहा, ‘स्कूल के ट्यूबवेल के पानी में आयरन व टीडीएस अधिक है, यह तो हमें पता था, लेकिन आर्सेनिक इतना अधिक है यह हम नहीं जानते थे।’

उन्होंने कहा, ‘स्कूल के इन्हीं दो ट्यूबवेल से बच्चे पानी पीते हैं। इसी पानी से मिड डे मिल भी बनाया जाता है। हमारे पास कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है। जाँच रिपोर्ट के बाद कुछ बच्चे अपने घर से पानी लाते हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चे बिना पानी के ही आते हैं और ट्यूबवेल का ही पानी पीते हैं।’

सुचित्रा सरकार ने कहा कि उन्होंने वाटर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करने के लिये स्थानीय प्रशासन से अपील की है, लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

उल्लेखनीय है कि इससे पहले बशीरहाट ब्लॉक-1 स्थित चक कमारडांगा गाँव के चक कमारडांगा फ्री प्राइमरी स्कूल में मौजूद दो ट्यूबवेल के पानी की जाँच की गई थी। इन ट्यूबवेल के पानी में भी सामान्य से अधिक आर्सेनिक मिला था। इस तथ्य के सामने आने के बाद उस स्कूल के बच्चों के घरों के जलस्रोत और बच्चों के नाखून, सिर के बाल और यूरिन की भी जाँच की गई थी।

बच्चों की यूरिन में औसतन 160 माइक्रोग्राम (प्रति लीटर) आर्सेनिक मिला था। वहीं, बालों में औसतन 3.4 माइक्रोग्राम आर्सेनिक (प्रति ग्राम) पाया गया था। बच्चों के बालों में अधिकतम आर्सेनिक 17 माइक्रोग्राम व न्यूनतम आर्सेनिक 0.76 माइक्रो ग्राम मिला था। इसी तरह, नाखून के सैम्पल में बच्चों में औसतन 6.5 माइक्रोग्राम (प्रति ग्राम) आर्सेनिक मिला था।

जाँच रिपोर्ट के बाद गुजरात के सेंट्रल साल्ट एंड मरीन केमिकल्स रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से स्कूल में एक प्लांट स्थापित किया गया। फिलहाल चक कमारडांगा स्कूल के बच्चे प्लांट के पानी का सेवन कर रहे हैं।

चक कमारडांगा स्कूल के टीचर-इन-चार्ज सुजीत विश्वास ने कहा, ‘उक्त प्लांट में भूजल को साफ कर पीने लायक बनाया जाता है और स्कूल के बच्चों को निःशुल्क मुहैया कराया जाता है। प्लांट के रख-रखाव पर सलाना दो से तीन हजार रुपए खर्च होते हैं। हम लोग खुद यह खर्च वहन करते हैं। इसके अलावा राज्य के जन-स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग की ओर से हाल ही में सोलर प्लांट स्थापित किया गया है।’

विश्वास ने बताया कि सेंट्रल साल्ट एंड मरीन केमिकल्स रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा स्थापित वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में फिटकिरी, क्लोरिन और रेडियोएक्टिव पद्धति से पानी को साफ किया जाता है।

संग्रामपुर मेरूदंडी स्विसगेट स्कूल के बच्चों के शरीर में आर्सेनिक की जो मात्रा मिली है, अगर जल्द ही उन्हें साफ पानी मुहैया कराना शुरू नहीं किया गया, तो वे कैंसर जैसी महामारी की जद में आ सकते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार चूँकि अभी उनकी उम्र कम है और आर्सेनिक का असर दिखना शुरू भी नहीं हुआ है, तो उनके शरीर से आर्सेनिक को बाहर किया जा सकता है।

प्रो. तरित रायचौधरी ने कहा, ‘अभी इन बच्चों के शरीर के बाहर के हिस्से में आर्सेनिक का कोई असर नहीं दिख रहा है। अगर वे इसी तरह आर्सेनिकयुक्त पानी का सेवन करते रहे तो 12 साल की उम्र के बाद धीरे-धीरे उनके शरीर में इसका असर दिखने लगेगा। अगर उन्हें अभी से साफ पानी देना शुरू किया जाये, तो उनके रिकवर कर जाने की 90 प्रतिशत तक सम्भावना है।’

उन्होंने कहा कि साफ पानी मुहैया कराकर 2-3 सालों में इन बच्चों के शरीर से आर्सेनिक निकाला जा सकता है।

पिछले साल लोकसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट के अनुसार 21 राज्यों के 153 जिलों के पेयजल में सामान्य से अधिक आर्सेनिक है। उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक लोग आर्सेनिकयुक्त पानी का सेवन कर रहे हैं। वहीं, असम की 65 फीसदी आबादी आर्सेनिकयुक्त पानी पीने को मजबूर है। बिहार की 60 प्रतिशत आबादी आर्सेनिकयुक्त पानी पी रही है।

उक्त रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक से ग्रस्त लोगों की संख्या 1.04 करोड़ है। राज्य के आठ जिले बर्दवान, मालदह, हुगली, हावड़ा, मुर्शिदाबाद, नदिया, उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना के 83 ब्लॉक के पानी में आर्सेनिक है।

वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र जारी किया था। इसमें दावा किया गया था कि राज्य सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर सूबे के 91 प्रतिशत लोगों को आर्सेनिकमुक्त पानी मुहैया कराया जा रहा है। लेकिन, मेरूदंडी स्कूल की ताजा रिपोर्ट कुछ और ही कहानी कह रही है।

जादवपुर यूनिवर्सिटी की ओर से स्कूल प्रबन्धन को भेजे गए पत्र को पढ़ने के लिये अटैचमेंट देखें।