पर्यावरण प्रदूषित करने की मानो होड़ लगी है। इंसान ने पतित पावनी को गन्दे नालों से, वायुमण्डल को वाहनों से उत्सर्जित धुएँ से और वातावरण को ध्वनि प्रदूषण से इतना विषाक्त कर दिया है कि जिन्दा रहना ही दिनोंदिन दुष्कर होता जा रहा है…
सांसों के अनमोल खजाने को प्रदूषण और मिलावट की लूट से बचाएँ तो कैसे? बार-बार यह प्रश्न मिश्रा जी के दिल की गहराइयों से अवतरित होता था पर कोई सकारात्मक उत्तर न पाकर पुनः वहीं लुप्त हो जाता था।
भोर होने को थी, तिमिर विदा लेकर अरुण को धरती पर विस्तृत होने का आह्वान कर चुका था। दूर मन्दिर की घंटी की आवाज कानों में पड़ते ही रोज की भाँति मिश्रा जी चौंक कर बैठ गए। लेटी हुई पत्नी ने पूछा, ‘कहा जा रहे हो?’ उठते-उठते मिश्रा जी ने कहा, ‘गंगा नहाने जा रहा हूँ। रोज ही जाता हूँ, कोई नई बात है क्या, क्यों पूछ रही हो?’
रोज-रोज जाते हैं और गन्दे पानी में नहाकर सोचते हैं कि पुण्य कमा लिया…, मिश्रा जी की पत्नी दबी जबान से बुदबुदाते हुए चादर तानकर सोने का प्रयास करने लगी।
लौटकर मिश्रा जी पत्नी से बोले, “भई कल से मैं तुम्हारी नींद नहीं खराब करूँगा और न ही पुण्य कमाने का झूठा दम्भ भरूँगा। आज गंगा के किनारे टहलते-टहलते थोड़ा आगे निकल गया था। वहाँ जो नजारा देखा, मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए। एक बड़ा सा पत्थर पानी की अन्दर पड़ा था। उसी के आस-पास दो तीन लाशें, खूब सारा कचरा इत्यादि फंसा था तथा पास में ही प्रदूषित काला पानी गंगा जी में गिर रहा था। मैं तो उलटे पाँव लौट आया। यह बात वाकई सच है कि गंगाजल के प्रदूषित होने के कारण घर में नहाना ज्यादा सुरक्षित है। इतनी गन्दगी देखकर तो गंगाजल से जुड़ी धार्मिक भावना ही डगमगाने लगी है।”
‘चलो बात तुम्हारी समझ में तो आई, जब जागो तभी सवेरा।’ पत्नी ने व्यंग्यात्मक मुस्कान मिश्रा जी की ओर फेंकी। मिश्रा जी घर में नहाकर प्रसन्न मुद्रा में गुनगुनाते हुए नाश्ते की मेज के पास जैसे ही आए तो उनका गुस्सा भड़क उठा, “सुनती हो, कितनी बार कहा है कि सुबह-सुबह भारी नाश्ता मत दिया करो, केवल ब्रेड या दलिया दिया करो पर तुम अपनी जबान की तहर मेरी जबान खराब करना चाहती हो।”
पत्नी सब काम छोड़कर मेज तक आई और मिश्रा जी के चुप होते ही उन पर बरस पड़ी, “मैं क्या करूँ, घर में तो ब्रेड बनाऊँगी नहीं और न ही मेरे भाई की ब्रेड की फैक्ट्री लगी है। अरे, कल जो तुम ब्रेड लाए थे, पूरी ही खराब निकल गई। सुबह ही गाय को डाला है।” मिश्रा जी मन-ही-मन ब्रेड बनाने वालों को कोसने लगे पर कर भी क्या सकते थे, प्रेम-पूर्वक पूड़ी-सब्जी खाकर उठ गए। बगल के कमरे से गुजरे तो तेज आवाज में बजते टेप पर थिरकते घर के बच्चों पर नजर पड़ी। कुछ कहने को दिल हुआ पर न जाने क्यों कुछ कहना उस समय उचित नहीं लगा। इतना शोर और तेज आवाज कानों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, अभी कुछ दिन पहले ही टेलीविजन पर इसके बारे में बताया गया था। अच्छा, बाजार से लौटकर आऊँ तो इन बच्चों को समझाऊँगा। मिश्रा जी बुदबुदाते हुए स्कूटर निकालने लगे।
मिश्रा जी स्कूटर स्टार्ट कर कहीं जाने को हुए ही थे कि एक पड़ोसी ने हँसते हुए कहा, “अरे भाई मिश्रा जी स्कूटर से इतना काला धुँआ निकल रहा है, प्रदूषण फैलाने के जुर्म में पकड़े जाओगे। दहेज में मिली 20-25 साल पुरानी स्कूटर से कब तक दिल लगाए रहोगे? हमारी मानो तो इसे बेच दो और नई ले लो।” मिश्रा जी का मन तो हुआ कि पड़ोसी का मुँह नोच लें पर सच्चाई तो कड़वी होती है इसलिये मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।
रास्ते में जाम लगा हुआ था। पुलिस वालों को देखकर मिश्रा जी का माथा ठनका कि कहीं पुरानी गाड़ी की पकड़-धकड़ तो नहीं चल रही है, हिम्मत जुटा आगे बढ़े तो पता चला कि पास ही के किसी बड़े नर्सिंग होम में नकली दवा देने से दो बच्चों की एक साथ मौत हो गई है। उन बच्चों के सम्बन्धी तथा अन्य लोगों ने मिलकर नर्सिंग होम के बड़े डॉक्टर का घेराव किया है तथा इसी सिलसिले में पुलिस भी तैनात है।
क्या जमाना आ गया है। अस्पताल या नर्सिंग होम में भी अब व्यक्ति का जीवन सुरक्षित नहीं है, लोग बीमारी से अपनी मौत मरें तो एक बार सहन हो जाता है पर जहाँ लोग अपनी जान बचाने जाते हैं वहीं पर चन्द सिक्कों के लिये नकली दवाओं का प्रयोग कर जान ले लेना इंसानियत के नाम पर कलंक है। रक्षक ही भक्षक बन जाए तो कोई क्या करे यही बात सोचते-सोचते मिश्रा जी आगे न बढ़कर स्कूटर से पुनः घर लौट आए। अपने कमरे में बैठकर जैसे ही सिगरेट जलाने जा रहे थे, पत्नी ने जो पहले से ही वहाँ मौजूद थी- हाथ से सिगरेट छीन ली और पास पड़े एेश ट्रे में जोर से दबाकर बुझा दी।
रोज विज्ञापन देखते-सुनते हो कि सिगरेट पीने से कैंसर होता है और स्वास्थ्य के लिये अत्यधिक हानिकारक है फिर भी पीना नहीं छोड़ते हो। पत्नी उलाहना भरे शब्दों में बड़बड़ाई।
पत्नी की टोका-टोकी से परेशान मिश्रा जी ने झुंझालकर पैंट की पॉकेट से पान मसाले का पाउच निकाल लिया और उसे खोलने लगे। पत्नी ने विद्युत गति से बढ़कर पाउच छीन लिया और सारा मसाला जमीन पर फैला दिया। मिश्रा जी ने आग्नेय नेत्रों से पत्नी को घूरा पर पत्नी की आँखों से निरन्तर बहते मोती समान आँसुओं को देखकर सहम गए। पत्नी ही बोली, “हमारी बात न मानने की जैसे तुमने कसम खा ली है, अभी हफ्ते भर पहले ही तुम्हारे दोस्त की पान-मसाला खाने से गालों के कैंसर से मृत्यु हुई है पर तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। देख रहे हो शीला भाभी और उनके बच्चों की क्या दुर्दशा हो रही है।” दोस्त की पत्नी और बच्चों की दशा का स्मरण करते ही मिश्रा जी ने पान मसाले के दूसरे पाउच को निकालकर हाथ ही में मसलकर जमीन पर फेंक दिया और दूसरे कमरे में चले गए।
पत्नी को चैन कहाँ था, सात फेरों का बन्धन, छोटी-मोटी झड़पों से भला टूटता है क्या? थोड़ी देर में पत्नी ने ट्रे लिये कमरे में प्रवेश किया। चलो उठो गर्मी बहुत है लस्सी पी लो शरीर में थोड़ी ठंडक आएगी। तुम हर समय ही हम सबका ध्यान दिया करते हो, कभी अपने स्वास्थ्य पर भी नजर डाला करो। तुम स्वस्थ रहोगे तो ही हम सब जी सकेंगे। मिश्रा जी की आँखे प्यार भरे वाक्यों से नम हो चली थीं। उन्होंने लस्सी का गिलास मुँह से लगाया कि घर की घंटी बज उठी। दरवाजा खोलने पर पता चला कि बगल वाले अवस्थी जी हैं। अवस्थी जी मिश्रा जी के पास ही आ गए और बोले, “अरे मिश्रा जी क्या कर रहे हो? भाई शाम को घर पर ही छोटी सी पार्टी है। पीने-पिलाने का भी प्रोग्राम बना है, इसी बहाने साथ बैठना हो जाएगा, आना जरूर।” इतना सुनना था कि मिश्रा जी की पत्नी पास आकर बोली, “अवस्थी भाई साहब बिना पिए पार्टी का खाना हजम नहीं होता है क्या? मिश्रा जी को आप माफी दे दीजिए।”
मिश्रा जी कुछ कहते, इसके पहले ही अवस्थी जी नाराज होकर चले गए। फिर क्या था, पुरुष अहंकार ने सिर उठाया। वातावरण में विष घुल गया। “माना तुम मेरे लिये ही चिन्तित हो पर घर आए मेहमान का इस तरह अपमान किया जाता है क्या? मोहल्ले में बदनामी करवा दोगी।”
मिश्रा जी लगातार पत्नी पर चिल्लाए जा रहे थे। “जीना मुश्किल कर दिया है तुमने, शराब न पियो, गुर्दा खराब हो जाएगा, गंगा में मत नहाओ पानी प्रदूषित है, सड़क पर चलो तो वाहनों के धुएँ में सांस लेने से कैंसर का खतरा है। अस्पताल और नर्सिंग होम जाने में नकली दवाओं के प्रयोग से मौत की आशंका है तो फिर तुम्हीं बताओ धर्मपत्नी जी जिस युग में हम पैदा हुए हैं और पल-बढ़ रहे हैं, जहाँ हर तरफ मौत का खौफ और दमघोंटू वातावरण है, आखिर हम सब, जिएँ तो जिएँ कैसे?”
पत्नी तनिक पास आकर बोली, “समाधान है इंसान के वश में। सभी सामाजिक कुरीतियाँ दूर करने की क्षमता तो नहीं है पर सावधानियाँ तो बरत सकता है। पूरा तो नहीं, जीवन कुछ तो आसान हो जाएगा।” मिश्रा जी ने कहा, ‘सच तुम्हारी बातों में दम है।’
Source
दैनिक जागरण, 29 अक्टूबर, 2018