सारांश
यूगांडा के जीका जंगल में पाये जाने वाले बंदरों में जीका वायरस पाया गया है। जीका तथा इबोला वायरस दोनों ही घातक हैं। जीका वायरस, एडीज मच्छर द्वारा फैलता है। जीका वायरस को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपातकालीन जन स्वास्थ्य घोषित कर दिया है। जीका वायरस को सर्वप्रथम 1947 में पृथक किया गया था। जीका वायरस के कारण बुखार और दर्द को दूर करने के लिये एसिटामिनोफेन दवा दी जाती है। जीका वायरस से माइक्रोसेफैली रोग हो जाता है।
Abstract : Zika virus was found in monkey of Zika forest of Uganda. Zika and Ebola viruses are fatal. Zika virus is spread through Aedes mosquitoes. The World Health Organization (WHO) has declared a public health emergency for Zika virus. Zika virus was first of all isolated in 1947. Fever and pain caused by Zika virus is cured by Acetaminophane medicine. Zika virus causes microcephali disease.
जीका वायरस धीरे-धीरे पूरी दुनिया में इस प्रकार फैल रहा है कि आने वाले समय में मानव जाति का अस्तित्व खतरे में होगा। अगर इस पर रोकथाम न की गई तो गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। इबोला वायरस के बाद यह वायरस अपनी तबाही अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में मचा रहा है। इस बीमारी को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर जनरल माग्रेटचान ने 02 फरवरी 2016 की शुरुआत में वैश्विक आपात स्थिति घोषित कर दिया है डब्ल्यू.एच.ओ. ने अनुमान लगाया है कि अगले साल अमेरिका में जीका वायरस सम्बन्धित लगभग 50 लाख लोग प्रभावित होंगे। यह मच्छर से फैलने वाला वायरस बहुत खतरनाक है और ब्राजील, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका के साथ-साथ लगभग 25 देशों में फैल चुका है। ब्राजील में अब तक करीब 6 हजार बच्चे और युवा इस खतरनाक वायरस का शिकार हो चुके हैं।
पश्चिमी अफ्रीका में इस वायरस के कारण लगभग 11435 से ज्यादा लोगों की जीवन-लीला समाप्त हो गई है। ब्राजील में मई 2015 में जीका वायरस बहुत तेजी से पैर पसार रहा है। डब्ल्यू.एच.ओ. का अनुमान है कि यह वायरस इस वर्ष के अंत तक संपूर्ण विश्व को अपने आगोश में ले लेगा। इसके लिये पूरी मानव जाति को सचेत रहने की आवश्यकता है। भारत वर्ष में अब तक लगभग 50 से अधिक लोगों की मृत्यु इस वायरस के कारण हो चुकी है। जीका वायरस की पहचान सबसे पहले अफ्रीका के युगांडा में सन 1947 में की गई थी। अफ्रीका के जीका जंगल में पाये जाने वाले रीसस मकाक बंदरों में इसके लक्षण देखे गये थे। इसलिये इस वायरस का नाम जीका रख दिया गया। इस वायरस के लक्षण 1952 में युगांडा और तंजानिया के देशों के लोगों में भी पाये गये।
जीका वायरस से बचने के लिये विश्व में अब तक किसी भी प्रकार की दवा व टीका विकसित नहीं हो पाया है। जीका वायरस एडीज एजिप्टी मच्छर द्वारा फैलता है। इसका संक्रमण जीका वायरस से ग्रसित व्यक्ति को अगर यह मच्छर काटता है और वही मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति में जीका वायरस होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जीका वायरस का अधिकतम खतरा गर्भवती महिलाओं को होता है। इस वायरस के कारण बच्चे छोटे सिर के साथ पैदा होते हैं। इस प्रकार विकृति को माइक्रोसेफैली के नाम से जाना जाता है जो एक न्युरोलॉजिकल बीमारी है इसमें बच्चे का दिमाग पूरी तरह विकसित नहीं होने पाता है। अक्टूबर 2015 से अब तक 3546 से ज्यादा छोटे सिर और अधिकतर अविकसित दिमाग वाले बच्चों का जन्म हुआ है।
जीका वायरस से उत्पन्न होने वाले लक्षण निम्न प्रकार के होते हैं। पीलिया (पीला बुखार), जोड़ों का दर्द, लाल आँखें और शरीर पर लाल चकत्ते उत्पन्न होते हैं। वर्ष 2007 में माइक्रोनेशिया के द्वीप याप में इस वायरस ने बड़ी तेजी से पैर पसारे और फिर यह वायरस कैरीबियाई देशों और लैटिन अमेरिका के देशों में फैल गया। हाल ही में अल-सेलवाडोर, कोलंबिया और इक्वाडोर जैसे देशों ने अपने देश की महिलाओं को साल 2016 तक गर्भवती होने से परहेज करने की सलाह दी है। यह विश्व के जानलेवा वायरसों में से एक है।
विश्व के प्रमुख जानलेवा वायरस निम्न हैं-
वायरस |
देश |
खोज |
डेंगू |
चीन |
265-420 |
एच.आई.वी. |
कांगो गणराज्य |
1959 |
मरबर्ग |
जर्मनी |
1967 |
इबोला |
कांगो गणराज्य |
1976 |
बर्ड फ्लू |
चीन |
1996 |
स्वाइन फ्लू |
मैक्सिको |
4008 |
पश्चिमी अफ्रीका में फैले वायरस (इबोला) से 11 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी। डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार इस वर्ष के अंत तक जीका वायरस पूरी दुनिया में फैला सकता है। इसके लिये विश्व के सभी लोगों को इस वायरस की जानकारी तथा सचेत रहने के लिये प्रयासरत रहना चाहिए।
गिलैने बारे सिंड्रोम - यह जीका वायरस के द्वारा होने वाला एक रोग है इसमें इस प्रकार की विकृति उत्पन्न होती है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्रिका तंत्र के कुछ भाग पर विपरीत प्रभाव उत्पन्न हो जाता है इस विकृति में कम या ज्यादा कमजोरी, पैरों में झुनझुनाहट इन लक्षणों की तीव्रता शनैः-शनैः बढ़ते-बढ़ते व्यक्ति की मांसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। इस दृष्टि से वह गम्भीर हालत का शिकार हो जाता है। प्रायः इसके लक्षण संक्रमित मरीज में कुछ सप्ताह के बाद दिखाई पड़ते हैं। इसके लिये इम्यूनोग्लोब्यूलिन की खुराक दी जाती है। अमेरिका के बहुत से देशों में गिलैने बारे सिन्ड्रोम के मामले धीरे-धीरे बढ़ते जा रहे हैं। दिसम्बर 2015 तक इसके 76 मरीज सामने आये इसमें 48 मरीज जीका द्वारा ग्रसित पाये गये। वेनेजुएला में जनवरी 2016 तक 257 मामले सामने आये फ्रांस व न्यूजीलैण्ड देशों में जीका वायरस ने अपना प्रकोप फैलाया।
जीका वायरस का संक्रमण यौन संबन्धों के द्वारा भी होता है। अमेरिका के एक प्रमुख स्वास्थ्य अधिकारी ने टेक्सास में यौन सम्बन्धों के कारण संक्रमण की पुष्टि की है। अमेरिका रेडक्रास ने जीका प्रभावित देशों से लौटे लोगों को 28 दिनों तक रक्त दान न करने की सलाह दी है। जीका में स्पष्ट तौर पर 25600 से अधिक कोलंबियाई नागरिकों को प्रभावित किया है। डॉक्टरों के अनुसार इस जीका वायरस के कारण उत्पन्न बुखार और दर्द दूर करने के लिये एसिटामिनोफेन दवा लेने की सलाह दी जाती है। जीका की जाँच के लिये व्यक्ति के सीरम द्वारा वायरल न्यूक्लिक अम्ल या एन्टीबॉडी आईजीएम तथा निष्क्रिय एन्टीबॉडी की जाँच की जाती है। जीका के लक्षणों के प्रकट होने के बाद 5 से 7 दिनों के बीच में आण्विक जाँच (RT-PCR) होनी आवश्यक है।
यह जाँच केवल जीका वायरस के लिये ही होती है। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में एक प्रकार के जी.एम. मच्छर तैयार किये हैं। ब्राजील के पिरसियाकाबा में स्थित एक कम्पनी ने इसकी तैयारी की थी जहाँ इस प्रकार के लाखों मच्छर तैयार किये गये। और नेशनल बायोसेफ्टी कमेटी से अनुमति लेकर वर्ष 2012 में विभिन्न शहरों और देशों में छोड़ा गया। कम्पनी के अनुसार इससे एडीज मच्छरों की संख्या में 90 प्रतिशत तक कमी हो जाती है। इस नर मच्छर का नाम 513 रखा गया। यह मच्छर सुनिश्चित करेगा कि संतार व्यस्क (2-5 दिन) होने से पहले खत्म हो जाए। इस प्रकार मच्छरों की बढ़ती संख्या पर रोक लगाई जा सकती है।
अब भारत में जी.एम. मच्छरों को तैयार करने का कार्य चल रहा है। महाराष्ट्र की एक कम्पनी नर जी.एम. मच्छरों पर कार्य भी कर रही है।
संदर्भ
1. विज्ञान प्रगति (मार्च 2016) मु.पृ. 8-13।
2. अमर उजाला (17 फरवरी 2016) उड़ान, पृ. 11।
3. चीन राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन आयोग रिपोर्ट, जनवरी 2016।
4. विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट, दिसम्बर 2015।
5. राष्ट्रीय रोग नियन्त्रण केन्द्र रिपोर्ट, जनवरी 2016।
6. राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान रिपोर्ट, 2015।
7. आई.सी.एम.आर. रिपोर्ट-2015, जनवरी 2016।
लेखक परिचय
डी.के. अवस्थी एवं सरिता चौहान
एसोसिएट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग, श्री जय नारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लखनऊ-226001 उ.प्र. भारत, dkawasthi5@gmail.com
प्राप्त तिथि-13.04.2016 स्वीकृत तिथि-14.09.2016