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डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट
केन्द्र सरकार माँ गंगा की सफाई के अभियान पर काम कर रही है लेकिन राजधानी से बाराबंकी की धरती को संचित करती आदि गंगा गोमती की स्वच्छ अविरल धारा आज खतरे में है। हवन सामग्री, फूल, मृतकों की लाशें एवं देव-देवी प्रतिमाओं का विसर्जन भी गोमती के आंचल में रहने वाले जलचरों के जीवन पर खतरा बन गया है। दुराह स्थिति एक नहीं अनेक हैं।
जिन्हें देख शायद आज माँ आदि गंगा गोमती अपने श्रद्धालुओं से यही कह रही हैं मुझे गंदगी व विसर्जन से मुक्ति चाहिए। माधव टांडा जिला पीलीभीत गोमद ताल से निकलने वाली माँ गंगा गोमती बनारस के निकट गंगा मइया से जाकर मिलती हैं। स्पष्ट है कि इस दौरान लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर जैसे कई जिले व सैकड़ों गाँवों, कस्बों के लोगों को इनका जल जीवन देता है लेकिन सोचनीय तथ्य वर्तमान में आज यह है कि यह जीवनदायनी नदी आज हमसे स्वयं ही अपनी सेवाओं का हिसाब मांग रही है।
यदि संत महात्माओं की मानें तो 70 के दशक में राजधानी व इसके किनारे बसने वाले तमाम लोग गोमती जल लाकर उससे भोजन बनाते थे और पेयजल में इस जल का प्रयोग करते थे लेकिन आज स्थितियाँ भिन्न हैं। अलग की छोड़ें यदि बाराबंकी को ले तो यहाँ भी कई नालों का व कस्बों का गंदा पानी किसी न किसी प्रकार से जाकर गोमती के आंचल को दूषित करता है।
यही नहीं हम धर्म भीरू बनकर वह सब करते हैं जो कहीं न कहीं गोमती के जल को आचमन के लायक तक नहीं छोड़ता। पूजा व हवन की सामग्री मंदिरों पर चढ़ाए जा चुके फूल एवं अन्य सामान जो हमारी धार्मिक प्रक्रिया से कहीं न कहीं जुड़ा होता है। हम उसका प्रवाह गोमती के जल में ही करना अपना सबसे बड़ा धर्म समझते हैं। जबकि यह बिल्कुल गलत है। नए शोधों के मुताबिक यदि इसे हम गड्ढा खोदकर उसमें गाड़ दें तो यह खाद का काम करेगा। यह प्रक्रिया गोमती के किनारे भी आत्मसात की जा सकती है। मुर्दों का पानी में प्रवाह करना, गोमती में साबुन से नहाना व कपड़े धोना प्रत्येक गंदगी को ऐन-केन-प्रकारेण इसके जल में डालना यह स्थिति इतनी भयानक हो चुकी है कि आज गोमती के जल में ऑक्सीजन कम हो गया है।
जिसका दुष्परिणाम यह है कि गोमती जल में निवास करने वाले कई जलचर अब गायब हो चले हैं। कभी-कभी यह भी देखने में आता है कि इसकी कमी के चलते हजारों मछलियों का जीवन भी मौत के मुँह में आ जाता है। अब कछुए कम नजर आते हैं, मछलियों की भी बानगी कम ही दिखाई देती है। साफ है कि कहीं न कहीं मानव समाज कुछ गलत कर रहा है। भगवान व प्रकृति की अनुपम कृति माँ गंगा गोमती इन कारणों से तो मैली हो ही रही हैं अलबत्ता देव-देवी प्रतिमाओं के विसर्जन से भी स्थिति भयावह होती जा रही है। वैसे पूर्व में माननीय न्यायालय के द्वारा इस विसर्जन पर रोक लगाए जाने के निर्देश भी हुए हैं।
हाल ही में प्रदेश के मुख्य सचिव ने भी इस सम्बन्ध में ताजा आदेश दिए हैं लेकिन सवाल है कि यह काम कानून से नहीं सोच बदलने से होगी। यदि गोमती में विसर्जन की बजाय हम प्रतिमाओं का विसर्जन भू-विसर्जन के रूप में करें तो हम आदिगंगा के सच्चे लाल साबित हो सकते हैं। क्योंकि प्रतिमाओं का आकर्षक बनाने में जिन रंगों का प्रयोग किया जाता है उसका प्रभाव गोमती के जल पर बुरा पड़ता है। ऐसे में प्रकृति के इशारे को समझना होगा। आज गोमती दुर्दशा का शिकार है। इसमें पानी की कमी है। जब लखनऊ में या फिर बाराबंकी के सद्दरपुर, शेषपुर, इब्राहिमाबाद के पास हम गोमती दर्शन करते हैं तो लगता ही नहीं है कि वर्षों पहले बहने वाली यह माँ गोमती हैं। महसूस होता है कि जैसे कोई बड़ा नाला काले व हरे पानी के साथ बह रहा हो। जिसमें जलकुंभी व गंदगी, घास, काई एवं तट पर रबदा विद्यमान है।
हमें लींक से अलग हटकर काम करना होगा। परम्परा के नाम पर हम माँ गोमती को दुराह स्थिति में छोड़ने के अधिकारी नहीं हो सकते। क्योंकि बचाना है माँ गोमती के स्वरूप को। इनमें रहने वाले हजारों जीवों के जीवन को। आदिगंगा भी शायद चिन्तित हैं। तभी तो गोमती के किनारे खड़े होने पर जैसे एक आवाज आती है मैं आदिगंगा गोमती मुझे गंदगी व विसर्जन से मुक्ति चाहिए।
कई पूजा समितियाँ कर रही हैं मंथन
भू-विसर्जन के मुद्दे पर जब कई गणेश व दुर्गा पूजा समितियों के पदाधिकारियों से वार्ता की गयी तो उन्होंने अभी अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि हमारे यहाँ इस बात पर मंथन चल रहा है कि हम भू-विसर्जन की वर्तमान संस्कृति को आत्मसात करें। यह आदिगंगा की सफाई में हमारा अभिनन्दन होगा। समितियों ने यह भी माना कि फिलहाल सभी सदस्यों को इसके लिए तैयार करने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है लेकिन फिर भी हम इसके लिए मानसिक रूप से तैयार हो रहे हैं। उधर दुर्गा पूजा समितियों ने कहा समय रहते काफी बड़े बदलाव समय की माँग पर किए गए हैं।
युवा संकल्प समिति करती है भू-विसर्जन
हमारी जिम्मेदारी है कि दुर्गा पूजा का आकर्षण व धार्मिक महत्व भी न कम हो और आदिगंगा का जल भी स्वच्छ रहे। फिलहाल चिन्तन व मंथन साथ-साथ हैं, जो होगा आगे अच्छा ही होगा। बाराबंकी। हैदरगढ़ तहसील क्षेत्र के त्रिवेदीगंज विकास खंड की ककरी दुर्गा पूजा को आयोजित करने वाली युवा संकल्प समिति बीते लगभग 6-7 वर्षों से देव-देवी प्रतिमाओं का भू-विसर्जन करती हैं। यहाँ के समिति अध्यक्ष सुनील सिंह प्रमुख व सदस्य गोमती के किनारे गड्ढा खोदवाकर वहीं पर प्रतिमाओं का भू-विसर्जन करते हैं। श्री सिंह का मानना है कि हम एक माँ की पूजा करते हैं तो हमें यह अधिकार कहाँ से मिल जाता है कि हम माँ गोमती को गंदा करें। हमारी समिति के सभी सदस्य इस पर एकजुट हैं। हमारा यह अभियान आगे भी जारी रहेगा। सन्तुष्टि है कि हम दुर्गा पूजा के बाद एक प्रकार से माँ आदिगंगा की भी पूजा को ही श्रद्धा के साथ पूरा करते हैं।
केन्द्रिय प्रदूषण बोर्ड व वन मन्त्रालय की मुहिम हुई धाराशाई
राष्ट्रिय हरित न्यायाधिकरण के निर्देश भी बेकार
पर्यावरण एवं वन मन्त्रालय केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड की गाइड लाइन का अनुपालन जिला प्रशासन की मशीनरी करवा ही नहीं सकी। यही नहीं राष्ट्रीय हरित न्यायाधीकरण नई दिल्ली का आदेश भी नौकरशाहों की लापरवाही की वजह से जिले में पानी माँग गया। जिसमें लोगों को नदी व पर्यावरण की सुरक्षा के लिए उन्हें जागरूक करना था। बीती एक जुलाई वर्ष 2014 में पर्यावरण व वन मन्त्रालय तथा केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के आदेश पर एक गाइड लाइंस दी थी। जिसके अनुपालन की जिम्मेदारी जिलाधिकारी एवं तहसील स्तर पर उपजिलाधिकारियों को थी। इसमें तहसील मुख्यालय पर सात सदस्यीय समिति का गठन किया गया था। जिसमें एसडीएम को अध्यक्ष बनाया गया था। जबकि इस कमेटी ने एक सहायक भू-वैज्ञानिक, अधिशाषी अधिकारी निकाय, सहायक अभियन्ता सिंचाई विभाग तथा सहायक अभियंता जल निगम एवं दुर्गा पूजा कमेटी से जुड़े एक पदाधिकारी को शामिल किया गया था। इस कमेटी की बैठक के भी निर्देश हुए थे जिसमें दुर्गा पूजा से जुड़े लोगों एवं जागरूक नागरिकों से बातचीत करके नदियों को कैसे बचाया जाए, पर्यावरण कैसे शुद्ध रखा जाए, वनों का जीवन में क्या महत्व है आदि मुद्दों पर उनसे चर्चा होनी थी। सबसे महत्त्वपूर्ण यह था कि मूर्तियों के विसर्जन की व्यवस्था या तो नदी के किनारे तालाब खोदकर उसमें पानी की व्यवस्था हो या फिर भू-विसर्जन की परम्परा को आगे बढ़ाया जाए।
लेकिन दु:खद यह है कि कागजी कमेटियाँ जिला मुख्यालय से लेकर तहसील मुख्यालय तक बनायी गयी, उनकी हवा में बैठके भी हो गईं पर यह नेक प्रयास धरातल पर न उतर सके। ऐसी ही गठित कमेटी के सदस्य व केन्द्रीय दुर्गा पूजा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजू भैया ने कहा कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण नई दिल्ली एवं केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड की मंशा पर अधिकारियों ने पानी फेर दिया। मुझे एक बैठक में 19 मई को बुलाया गया था, उसमें उपरोक्त सदस्य शामिल भी हुए लेकिन बैठक न हो सकी। क्योंकि अध्यक्ष व एसडीएम इसके लिए मौका ही न निकाल सके। ऐसे में इस उपरोक्त मुद्दे पर लोगों को तत्काल तो जागरूक नहीं किया जा सकता। राजू भैया ने संकल्प सेवा समिति पूजा कमेटी ककरी के भू-विसर्जन का स्वागत किया जिसके साथ ही इलाहाबाद व बनारस तथा अन्य नदी तटों के किनारे बसे शहर व नगरों में मूर्तियों के भूविसर्जन व स्थानीय नदी के जल तालाब में विसर्जन को उत्साहजनक बताया। उन्होंने कहा कि इस पर सभी को ईमानदारी से सोचना होगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रशासनिक अमले की लापरवाही से एक महत्त्वपूर्ण विषय पर मात्र आगे बढ़ा ही नहीं जा सका।
भू-विसर्जन से धर्म को खतरा नहीं है : तपस्वी महाराज
आदिगंगा गोमती को गंदगी से मुक्ति दिलाने में कई दशकों से जुटे व काम करने वाले महंत रामसेवक दास तपस्वी बाबा महाराज उर्फ गोमती बाबा से हुई बातचीत में साफ तौर पर जल विसर्जन के स्थान पर भू-विसर्जन पर जोर देते हैं। उनका कहना है कि यदि देव-देवी प्रतिमाओं का विसर्जन गोमती के तट पर बड़ा गड्ढा खोद कर किया जाए तो गोमती के जल को दूषित होने से हम बचा सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि परम्परा की लकीर ही पीटना है तो यह किया जा सकता है कि उस गड्ढे में गोमती के जल की व्यवस्था की जाए और फिर भू-विसर्जन की व्यवस्था को पूरा किया जाए। वे कहते हैं कि लोग पूजित निष्प्रयोज सामग्री गोमती में डालते हैं यह भी गलत है। हम उसे गड्ढे में खोदकर खाद बना सकते हैं। इसके गोमती जल में डालने से पानी में ऑक्सीजन कम होता है। उनका मानना है कि धर्म के नाम पर गोमती को लुप्त नहीं होने दिया जा सकता। आज नदियों का अस्तित्व खतरे में है तो यह नहीं भूलना चाहिए कि इससे मानव जीवन सुरक्षित हो जाएगा। नदियाँ हमारी जीवन संस्कृति का मूल आधार हैं। गोमती को बचाने के लिए सभी को आगे आना ही होगा।