Source
जल स्रोत अभयारण्य विकास हेतु मार्गदर्शिका

जल चक्र का चित्रीय वर्णन चित्र - 1 में दिखाया गया है। सूर्य की ऊर्जा से पृथ्वी पर के जल का वाष्पीकरण व पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन होता है जो कि वायुमण्डल में वायु आद्रता के रूप में पानी के छोटे-छोटे कणों के रूप में जमा होता है। ये कण वायुमण्डल में ठण्डा होने पर बादलों के रूप में परिवर्तित होते हैं और पुनः पानी या बर्फ आदि के रूप में पृथ्वी पर बरस जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार कुल बरसात का लगभग 77 प्रतिशत भाग समुद्र में गिरता है जबकि पृथ्वी पर केवल 23 प्रतिशत भाग गिरता है।
पृथ्वी पर हुई कुल बरसात का वितरण निम्न तीन प्रकार से होता है :
1. भूमि द्वारा अवशोषण
2. वाष्पोत्सर्जन व वाष्पीकरण
3. नदी-नालों द्वारा बहाव
हिमालयी क्षेत्र जल चक्र को संचालित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हर साल जून और सितम्बर के बीच तेज हवायें समुद्र से बादल लाते हैं व इनसे हुई बरसात को मानसून कहते हैं। ये बादल जब भारत के मैदानी क्षेत्रों को पार करके हिमालय के उच्च शिखरों से टकराते हैं तो बरसने लगते हैं। जैसे-जैसे ये बादल पहाड़ों को पार करके आगे बढ़ते हैं, इनका आकार छोटा होता जाता है इसलिए उत्तरांचल के बाहरी ढलानों में भीतरी ढलानों की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है।
