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पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (मध्य प्रदेश) 492010, शोध-प्रबंध 1999
जल संसाधन का उपयोग कृषि में सिंचाई के अलावा मनुष्यों, पशुओं और अन्य जीवों के पीने के लिये, शक्ति के उत्पादन गंदे पानी को बहाने, सफाई, घोंघा, मछलीपालन, मनोरंजन, औद्योगिक कार्य एवं सौर परिवहन आदि हेतु किया जाता है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्तमान में जल का उपयोग घरेलू, औद्योगिक कार्य, मत्स्यपालन, शक्ति के उत्पादन एवं मनोरंजन हेतु किया जा रहा है।
जल संसाधन का मानव के लिये उपयोग :
जल एवं मानव का गहरा एवं व्यापक सम्बन्ध है। मनुष्य जल को विभिन्न कार्यों में प्रयोग करता है। जैसे इमारतों, नहरों, घाटी, पुलों, जलघरों, जलकुंडों, नालियों एवं शक्तिघरों आदि के निर्माण में। जल का अन्य उपयोग खाना पकाने, सफाई करने, गर्म पदार्थ को ठंडा करने, वाष्प शक्ति, परिवहन, सिंचाई व मत्स्यपालन आदि कार्यों के लिये किया जाता है। ऊपरी महानदी बेसिन में शहरी क्षेत्रों में औसत 70 लीटर प्रति व्यक्ति एवं ग्रामीण क्षेत्रों में 40 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन जल का उपयोग किया जाता है।
जल का उपयोग :
(1) सिंचाई :
बेसिन में जल संसाधन का कुल उपलब्ध जल राशि का 44 प्रतिशत सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त होता है। बेसिन में 41,165 लाख घनमीटर सतही जल एवं 11,132 .93 लाख घन मीटर भूगर्भजल सिंचाई कार्यों में प्रयुक्त होता है।
बेसिन में जल संसाधन विकास की पर्याप्त सम्भावनाएँ हैं। यहाँ उपलब्ध कुल जल राशि का 1,52,277.98 लाख घन मीटर जल सिंचाई कार्यों में उपयोग में लाया जाता है, शेष जल राशि का उपयोग अन्य कार्यों औद्योगिक, मत्स्यपालन आदि में प्रयुक्त होता है। सतही एवं भूगर्भ जल का सर्वाधिक उपयोग रायपुर जिले में होता है।
ऊपरी महानदी बेसिन में नदियों के जल को संग्रहित करने हेतु जलाशयों का निर्माण किया गया है, जिससे नहरें निकालकर सिंचाई की जाती हैं। इन नहरों में महानदी मुख्य नहर- मांढर, अभनपुर, लिफ्ट नहरें, भाटापारा एवं लवन शाना नहर, सोदूर एवं महानदी प्रदायक नहर, पैरी लिंक नहरें, प्रमुख हैं, जो मुरूमसिल्ली, दुधावा, रविशंकर सागर, सोंदूर, सिकासार एवं पैरी हाईडेम तथा रूद्री बैराज (खूबचंद बघेल बैराज) से निकाली गई है। इनसे 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होती है। बेसिन में इनके जल का 26.99 प्रतिशत भाग सिंचाई के लिये प्रयुक्त होता है। इसमें रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग, राजनांदगाँव एवं बस्तर जिले के कांकेर तहसील का क्षेत्र सम्मिलित है। सिंचाई की सुविधा होने से खरीफ एवं रबी फसलों की कृषि की जाती है। यहाँ सिंचाई के अधिक विकास के लिये छोटी-बड़ी सिंचाई परियोजनाएँ निर्मित की गई हैं। इनमें रविशंकर सागर, दुधावा, मुरूमसिल्ली, सिकासार, कोडार, पैरी हाईडेम, हसदेव-बांगो, तादुला-खरखरा एवं सोंदूर बड़ी परियोजना है। केशवनाला, कुम्हारी, पिंड्रावन एवं राजनांदगाँव मध्यम परियोजना एवं रायपुर महासमुंद, सराईपाली, गरियाबंद, बलौदा बाजार, कांकेर छोटी सिंचाई परियोजनाएँ है। इन परियोजनाओं में वास्तविक सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई है।
(2) औद्योगिक कार्य :
औद्योगिक कारखानों के संचालन के लिये जल की खपत होती है। इंजनों, रासायनिक क्रियाओं के लिये, वस्त्र उद्योग में धुलाई, रंगाई-छपाई के लिये, लौह इस्पात उद्योगों में धातु को ठंडा करने के लिये, कोयला उद्योग में कोक को धोने के लिये, रसायन उद्योग में क्षारों और अम्लों के निर्माण तथा चमड़ा उद्योगों में भी अधिक मात्रा में शुद्ध जल का प्रयोग होता है। ऊपरी महानदी बेसिन में कोरबा, चांपा, अकलतरा औद्योगिक क्षेत्र में 210.10 लाख घनमीटर जल मनियारी, खारंग एवं हसदेव-बांगो परियोजना से मिलती है। भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये 41 लाख घनमीटर जल रविशंकर सागर परियोजना से प्राप्त होता है।
(3) शक्ति संसाधन के रूप में जल का उपयोग :
ऊपरी महानदी बेसिन के दो वृह्द जलाशय परियोजना है। इनमें (1) रविशंकर सागर परियोजना (गंगरेल) एवं (2) हसदेव बांगो परियोजना कोरबा (बिलासपुर) है। यहाँ शक्ति के उत्पादन में जल का उपयोग हो रहा है। बेसिन में कोयला से तापीय विद्युत शक्ति गृह केंद्र कोरबा में है। वर्तमान में औद्योगिक कारखानों के लिये, मशीनों को चलाने के लिये, धातु को गलाने एवं परिवहन के साधनों (रेलगाड़ियों आदि) में जल विद्युत शक्ति का प्रयोग होता है। यह सस्ता शक्ति उत्पादन होता है।
ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास, शोध-प्रबंध 1999 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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11 | सारांश एवं निष्कर्ष : ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास |
(4) नौ-परिवहन :
जल संसाधन का उपयोग मनोरंजन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्षा के दिनों में नदियों में नौका विहार आने जाने के लिये एवं मनोरंजन के लिये होता है। महानदी के तट स्थित स्थानों में यह सुविधा उपलब्ध है। रविशंकर सागर जलाशय हसदेव-बांगो जलाशय एवं दुधावा जलाशय में मत्स्य पालन के लिये एवं मनोरंजन के लिये नौ परिवहन का उपयोग किया जाता है। भविष्य में बेसिन के नदियों एवं जलाशयों में जल परिवहन एवं मनोरंजन की दृष्टि से विकास किया जा सकता है क्योंकि यहाँ वर्षाकाल में इनकी संभावनाएँ अधिक होती हैं। वर्तमान में सिर्फ वर्षा ऋतु में पानी अधिक होने से नौका विहार होता है।
बेसिन में जल मनोरंज क्षेत्रों में रविशंकर सागर जलाशय, खुड़िया, खूंटाघाट जलाशय, हसदेव-बांगो जलाशय (कोरबा) प्रमुख है। जहाँ नौका विहार, जल आखेट आदि अनेक जल क्रीड़ाओं का प्रबंध किया जाता है। बेसिन में नौ परिवहन हेतु जल उपयोग नगण्य है। जहाँ वर्षभर जल उपलब्ध होता है वहाँ मनोरंजन केंद्र की स्थापना की गई है।
(5) मत्स्य पालन :
मत्स्य पालन जलसंसाधन संसाधन विकास का महत्त्वपूर्ण पहलू है। बेसिन में उपलब्ध जल संसाधन क्षेत्रों में 1,71,228.45 हेक्टेयर में 1,29,040.86 टन मत्स्योत्पादन होता है। यहाँ स्वच्छ जल की व्यापारिक मछली (कतला, रोहू, मृगल) आदि का पालन किया जाता है। बेसिन में मुख्यत: मत्स्यपालन शासकीय एवं निजी इकाईयों द्वारा किया जाता है। यहाँ दुधावा, गंगरेल, मुरुमसिल्ली, सोंदूर एवं मरौदा जलाशयों में 56,280 मिट्रिक टन मत्स्य उत्पादन किया जाता है जिससे 52.16 लाख रुपये की आय होती है।
जल का उपयोग प्रतिरूप -
ऊपरी महानदी बेसिन में जल का अधिकांश उपयोग नदी, तालाब, कुओं, नलकूपों आदि स्रोतों से बाहर निकालकर घरेलू कार्य, औद्योगिक एवं सिंचाई कार्यों के लिये प्रयुक्त किया जाता है, साथ ही मत्स्यपालन एवं शक्ति एवं मनोरंजन कार्यों के लिये भी आंशिक रूप में प्रयोग होता है। यह कार्य जलाशयों में होता है। वर्तमान में मनोरंजन एक समाजिक एवं आर्थिक आवश्यकता की पूर्ति का माध्यम बन गया है। यह नगरीकरण के साथ बढ़ते जा रहा हैं।
जल के उपयोग की समस्याएँ :
ऊपरी महानदी बेसिन में जल का विभिन्न कार्यों में उपयोग हो रहा है, जिससे जल का उचित एवं सम्यक उपयोग न होना एक समस्या बन गई है। प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं :
कृषि फसलों की सिंचाई के लिये
घरेलू एवं नगर निगम के जल की मांग की पूर्ति हेतु
भोज्य पदार्थ मत्स्य पालन हेतु
औद्योगिक कारखानों के संचालन हेतु
शक्ति उत्पादन हेतु
नौपरिवहन हेतु
वन्य पशुओं के लिये
स्वास्थ्य के विकास में जैसे सीवर एवं निरर्थक चीजों को विसर्जित करने हेतु
घोंघा, मूंगा आदि उत्पन्न करने हेतु एवं
वर्षा से प्राप्त जल का प्रवाह एवं बाढ़ नियंत्रण
इस प्रकार ऊपरी महानदी बेसिन में जल की उपलब्धता के अनुसार उपयोग क्षेत्र अधिक है जिसके कारण समुचित रूप से जल का सभी क्षेत्रों में आनुपातिक उपयोग नहीं हो पा रहा है। इसके लिये उचित जलगृह प्रणाली, जल प्रवाह एवं जल की तीव्रता के अनुसार जलाशय आदि का निर्माण कर जल को रोकने एवं जल की गहराई एवं चौड़ाई के आधार पर मार्ग पर जलप्रपात निर्माण आदि की स्थिति के अनुसार, जल का विवेकपूर्ण संग्रहण कर उपयोग किया जा सकता है।