Source
पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (मध्य प्रदेश) 492010, शोध-प्रबंध 1999
मत्स्य पालन :
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और मानव आहार में मछली का अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीनकाल से ही मछली पालना एवं मछली पकड़ना एक महत्त्वपूर्ण उद्योग रहा है। मछली मनुष्य के भोजन का न केवल महत्त्वपूर्ण पदार्थ है अपितु यह सबसे सस्ता एवं सुगम खाद्य है। विभिन्न भागों में मछली की खपत मुख्यत: स्थानीय परम्परा रीति-रिवाज, धर्म एवं मछली पकड़ने की सुविधा पर निर्भर करती है।
मत्स्य उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसका आधार जल है। बेसिन में नदी, तालाब तथा जलाशय पर्याप्त हैं, और इसमें पाई जाने वाली मछलियाँ प्रकृति की देन है। वर्तमान में वैज्ञानिक ढंग से मछलियों का विकास किया जा रहा है। एवं इनकी प्रजातियाँ बढ़ाई जा रही हैं।
ऊपरी महानदी बेसिन में मत्स्य पालन कार्य हतु विभिन्न प्रकार के जल संसाधन उपलब्ध हैं परंतु मुख्य रूप से तीन जलस्रोतों पर ही मत्स्यपालन कार्य अधिक विकसित हुआ है - नदियाँ, सिंचाई विभाग के जलाशय और तालाब।
नदियाँ :
इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी महानदी और इसकी प्रमुख सहायक नदी शिवनाथ है। अन्य सहायक नदियों में मनियारी, खास, पैरी हसदेव, तांदुला, जौंक, सूखा, खोरसी, सोंदूर, तेल, सुरही, खरखरा, मनिहारी, आमनेर एवं ढोंटू मुख्य है।
ऊपरी महानदी बेसिन में इन नदियों से 35290.10 हेक्टेयर जल क्षेत्र मत्स्य पालन हेतु उपलब्ध है, इसमें 537.51 मिट्रिक टन मत्स्योत्पादन किया जाता है।
सिंचाई विभाग के जलाशय :
ऊपरी महानदी बेसिन में मुख्य रूप से मनियारी, खारंग, दुल्हेरा, हसदेव, बागों एप्पा, नकटा, मनोहर सागर, कोडार, मुरूम सिल्ली, गंगरेल, सोंदूर, मरोदा, गंदुला, दुधावा, मनियारी एवं खम्हारपाकुट जलाशय में मत्स्य पालन किया जाता है।
मुरूम सिल्ली जलाशय :
रायपुर जिले के धमतरी तहसील में मुरूम सिल्ली जलाशय का निर्माण किया गया है। इस जिले में कृषि एवं मत्स्य पालन को विकसित करने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यहाँ 1971.50 हेक्टेयर जलक्षेत्र में 21.50 मिट्रिक टन मत्स्योत्पादन होता है। जिसमें 3.5 लाख रुपये की आय प्राप्त होती है।
रविशंकर सागर जलाशय (गंगरेल) :
यह जलाशय धमतरी से 10 किलो मीटर दूर गंगरेल नामक स्थान पर महानदी परियोजना के अंतर्गत है। इसका औसत जल क्षेत्र 695 हेक्टेयर है, इसमें प्रतिवर्ष 37.677 मिट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है।
तांदुला जलाशय :
तांदुला जलाशय का निर्माण बालोद तहसील में हुआ है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 2275.00 हेक्टेयर है जहाँ 16.743 मिट्रिक टन मत्स्योत्पादन किया जाता है।
दुधावा जलाशय :
दुधावा जलाशय का निर्माण बस्तर (कांकेर) जिला में हुआ है। इसका जलग्रहण क्षेत्र 2510.69 हेक्टेयर है जहाँ 197.36 मिट्रिक टन मत्स्य उत्पादन होता है।
हसदेव बांगो जलाशय :
बिलासपुर जिले में हसदेव बांगो जलाशय से 17.392 मिट्रिक टन मत्स्य उत्पादन होता है। इसका औसत जल क्षेत्र 1700 हेक्टेयर है।
ग्रामीण तालाब :
नदियों एवं जलाशय के अतिरिक्त मत्स्यपालन के लिये ग्रामीण तालाब महत्त्वपूर्ण है। दूसरी महानदी बेसिन में ग्रामीण तालाबों में से कुछ तालाब सिंचाई विभाग के पास हैं जिनमें मत्स्य पालन का कार्य राज्य के मत्स्य विकास निगम द्वारा किया जाता है। कुछ ग्रामीण तालाब पंचायतों के पास हैं जिनमें ग्राम पंचायत अपनी आय बढ़ाने के लिये मत्स्यपालन का कार्य कर रही है।
ऊपरी महानदी बेसिन में 1352 तालाब सिंचाई विभाग के अंतर्गत है इसका 74,173.05 हेक्टेयर क्षेत्र है। इसमें 68,642.317 मिट्रिक टन मत्स्योत्पादन किया जाता है।
ऊपरी महानदी बेसिन में उपलब्ध ग्रामीण तालाबों में से कुछ ग्राम पंचायत, जनपद, जिला पंचायत, नगर पालिका या नगर निगम एवं निजी तालाब हैं। इनमें क्रमश: 46,108.23, 1,325.07 एवं 12,432.69 हेक्टेयर जलक्षेत्र पर 61,273.58 मिट्रिक मत्स्योत्पादन होता है। इन तालाबों की संख्या 44,630 है।
मत्स्य उद्योग के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखते हुए ऊपरी महानदी बेसिन में मत्स्योद्योग का विकास किया जा रहा है। शासन भी इस क्षेत्र में मछुआरों के आर्थिक उत्थान के लिये प्रयत्नशील है। प्रशासन का मुख्य उद्देश्य आय प्राप्त करना नहीं बल्कि मछुआरों को मत्स्य उद्योग के माध्यम से आर्थिक सहायता प्रदान करना है। इनके विकास हेतु स्थानीय मछुआ सहकारी समितियों का भी निर्माण किया गया है। बेसिन में वर्षा की पर्याप्तता के कारण छोटे-छोटे गड्ढों में पानी भरकर मत्स्य पालन किया गया है। एवं तालाबों की अधिकता से भी मत्स्यपालन क्षेत्र का विकास किया जा रहा है।
मत्स्यपालन विकास हेतु सुझाव :
ऊपरी महानदी बेसिन में 1,69,571.65 हेक्टेयर जल क्षेत्र में मत्स्यपालन किया जाता है जिसमें उत्पादन 1,28190.49 मिट्रिक टन प्रतिवर्ष उत्पादन होता है। बेसिन में मत्स्य विकास के लिये जल क्षेत्र को बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसमें नये मत्स्य क्षेत्रों का विकास हो सके। अधिक लाभ प्राप्त करने हेतु राज्य शासन द्वारा अनेक प्रयास किये गये हैं। प्रशासन द्वारा लोगों को इस उद्योग के लिये प्रोत्साहित किया गया है। जल क्षेत्र का विस्तार, उत्तम मत्स्य बीजों का वितरण, कम मूल्यों पर मत्स्य बीजों का वितरण जल की गंदगी की सफाई, मछली के भोज्य पदार्थ का वितरण, एवं मछुआरों के रहने एवं नाव की व्यवस्था आदि विकास हेतु प्रयास किये गये है। इन प्रयासों के अच्छे परिणाम आ रहे हैं, और निश्चित रूप से भविष्य में मत्स्य उद्योग का तीव्र विकास संभव है।
बेसिन में स्वामित्ववार मत्स्योत्पादन में सिंचाई तालाबों के माध्यम से सर्वाधिक मत्स्योत्पादन होता है, लेकिन मछली उत्पादन से प्राप्त आय की अधिकता को देखते हुए निजी व्यक्तियों एवं संस्थाओं द्वारा निजी तालाब निर्माण कर उत्पादन किया जा रहा है। इसके अलावा जलाशयों, ग्रामीण पंचायतों एवं नगर निकायों में भी मत्स्योत्पादन का कार्य किया जाता है।
ऊपरी महानदी बेसिन में सर्वाधिक बिलासपुर जिले (18,882.97 हेक्टेयर) जलक्षेत्र में मत्स्योत्पादन किया जाता है क्योंकि वहीं तालाबों की संख्या अधिक है और मछुआरे भी अपने आय का माध्यम मत्स्यपालन को मानते हैं। वर्तमान में खाद्य पदार्थ के रूप में एवं अनेक औद्योगिक पदार्थ बनाने के लिये इसकी उपयोगिता बढ़ गई है। मत्स्योत्पादन में यह वृद्धि भोज्य आपूर्ति हेतु एवं राजस्व प्राप्ति के कारण हुआ है। यहाँ जिलेवार मत्स्य जलक्षेत्र 64,088.62 हेक्टेयर में से 64,930.14 मिट्रिक टन मत्स्योत्पादन होता है। जिसमें 76.32 लाख रुपये की आय की प्राप्ति होती है।
ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास, शोध-प्रबंध 1999 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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11 | सारांश एवं निष्कर्ष : ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास |