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जल चेतना तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2012
अंधेरे कमरे के एक कोने में एक ईजी चेयर पड़ी थी और उस पर एक कंकाल जैसा शख्स बैठा खाँस रहा था। बहुत देर तक खाँसता रहा तो मैने सोचा चलो चल कर देखूँ आखिर कौन है यह, और इसे कुछ चाहिए क्या ?
जब मैं उस अंधेरे कमरे में जाने लगी तो मेरे पैरों से कुछ टकराया। मैंने स्विच ढूँढकर वहाँ लाइट जलाई। तभी और जोर से खाँसने की आवाज आई। मैंने देखा कमरे में चारों तरफ पेड़ों की शाखायें टूटी बिखरी पड़ी थीं और कमरे में से एक अजीब सी बदबू भी आ रही थी। मैंने नाक पर रूमाल रक्खा और उस व्यक्ति की ओर बढ़ी। वह मुझे घूर-घूर कर देखने लगा जैसे वह मुझसे बहुत नाराज है। जैसे मैंने उसका कुछ चुरा लिया हो। फिर भी मैंने हिम्मत करके उससे पूछा आप यहाँ क्यूँ बैठें हैं, आपको क्या कष्ट है। क्या मैं, आपके लिये कुछ कर सकती हूँ ? उसने एक घृणित सी दृष्टि मुझ पर डाली और धीरे-धीरे उस कुर्सी से उठने का प्रयत्न करने लगा। मैंने उसे सहारा देने की कोशिष की तो उसने मेरा हाथ झटक दिया और अपने आप उठकर धीरे-धीरे टहलने लगा। मैंने देखा उसकी आँखों में आँसू थे।
मैंने उससे पूछा दोस्त बताओ तो क्या बात है मुझे तुम्हारी तबियत भी सही नहीं लग रही है, अभी तुम जोर-जोर से खाँस भी रहे थे, मुझे बताओ तुम्हें क्या दुःख है। उसने बड़ी मायूसी भरी आवाज में कहा कि तुम इन्सानों पर मैं कैसे भरोसा कर सकता हूँ ? मुझे इस हालत में पहुँचाने के लिये तुम्हीं लोग जिम्मेदार हो। जानना चाहते हो मैं कौन हूँ ? मैं आश्चर्य से उसकी तरफ देखती रही और सोचने लगी कि आखिर यह ऐसा क्यों कह रहा है। मैंने इसको इस हालत में कैसे पहुँचाया है। तभी उसने बड़ी धीमी सी आवाज में कहा मेरा नाम जलवायु है और पता है अब से बीस साल पहले मेरा स्वरूप कैसा था ? बीस साल पहले लोग खूब पेड़ लगा कर मेरी सहायता करते थे जिससे मेरा स्वास्थ्य बिल्कुल अच्छा रहता था। लेकिन अब तुम लोगों ने प्रगति के नाम पर जो कल-कारखाने लगाए हैं उनका प्रदूषित धुआँ तुम लोग वातावरण में छोड़ देते हो जिससे वातावरण दूषित होता जा रहा है।
तुम्हें इस बात का तनिक भी अहसास नहीं है कि मुझ पर इस प्रदूषण का कितना विपरीत प्रभाव पड़ रहा है और अहसास हो भी कैसे! क्योंकि तुम लोग तो प्रगति की राह पर चलते हुए बहुत खुश हो। अरे मैंने कब कहा कि तुम लोग प्रगति मत करो, करो खूब करो! परन्तु अपने पर्यावरण का भी तो ख्याल रखो। अरे क्या तुम्हें पता नहीं है कि कारखानों से निकलने वाली जहरीली गैसें वायुमण्डल के लिये कितनी घातक होती हैं, और इस सब प्रदूषण का हम पर इसका कितना विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। आज मैं यह सब कुछ झेल रहा हूँ मगर कल यही सब तुम लोगों को भी झेलना पड़ेगा। जब तुम्हारे बच्चे साँस की बीमारी, दमा व ब्रोंकाइटिस से पीड़ित होंगे तब तुम्हें इस गलती का एहसास होगा।
तुम तो आज के बहुत पढ़े-लिखे इन्सान हो विकास की सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे हो। तुम्हें तो अच्छे से पता होगा कि साँस लेने के लिये व स्वस्थ रहने के लिये जो आॅक्सीजन की जरूरत पड़ती है वह सिर्फ पेड़ ही तुम्हें दे सकते हैं और तुम उन्हें ही रास्ते का काँटा समझ कर काटते जा रहे हो। क्या तुम्हें मालूम है कि आॅक्सीजन की थोड़ी सी मात्रा प्राप्त करने के लिये ढेरों रूपये का खर्च आता है जबकि यह आॅक्सीजन तुम्हें हमारे पेड़ निःशुल्क देते हैं और तब भी तुम उसका मोल नहीं समझते।
और इसी बीच वह वापस जाकर अपनी उसी कुर्सी पर बैठ गया और जोर-जोर से खाँसने लगा। मैंने उसे पानी पिलाने की कोशिष की लेकिन उसने पानी का गिलास दूर फेंक दिया शायद वह मुझसे बहुत नाराज था। मैंने उसे समझाने की कोशिष की, उसे बताया कि भई देश की आबादी बढ़ रही है सो लोगों को रहने को मकान चाहिए, इसलिये पेड़ काटने पड़ते हैं वरना हमें कोई शौक थोड़े ही है पेड़ काटने का। उसने मेरी तरफ देखा और मन्द सी मुस्कराहट के साथ बोला, मैंने कब मना किया मकान बनाने को, मकान बनाओ, खूब बनाओ लेकिन मकान बनाने के लिये जितने पेड़ काटते हो उतने ही पेड़ दूसरी जगह लगा भी तो सकते हो। अरे अक्ल से काम करो तो सबकुछ सम्भव है बिना अपने वायुमण्डल को दूषित किये, बिना मुझे परेशान किये तुम अपने कार्य कर सकते हो लेकिन पता है तुम मनुष्यों की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है ? तुम सोचते हो कि बस मेरा काम ठीक से हो जाए, मेरा मकान बन जाए, उसके लिये चाहे मुझे अपने रास्ते में आने वाले सभी पेड़ काटने पड़ें, परन्तु मुझे कोई परेशानी न हो, हर व्यक्ति की ऐसी ही विचारधारा है।
यह जो तुम्हारा ‘मैं’ है न, यही तुम लोगों के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक है। तुम लोग सिर्फ अपने बारे में ही सोचते हो, इसीलिये देखना तुम लोगों की अगली पीढ़ी को इसका खामियाजा जरूर भुगतना पड़ेगा। देखना उन्हें मुँह पर मास्क लगाकर आॅक्सीजन लेनी पड़ेगी। तुम्हारा वातावरण इतना गंदा हो जायेगा कि जो हालत आज तुम लोगों ने मेरी कर दी है वही एक दिन तुम्हारी भी होगी और तुम ठीक से साँस तक नहीं ले सकोगे।
पता है मेरी आँखों में आँसू भर जाते थे जब ये कटे हुए पेड़, उनकी शाखाएँ उनके पत्ते मुझसे रोते हुए तुम लोगों की शिकायत करते थे। फिर भी मैं उन्हें यही समझाता था कि चलो कोई बात नहीं किसी जरूरतवश ही इन्सानों ने तुम्हें काटा होगा। लेकिन वह लोग किसी दूसरी जगह जरूर वृक्षारोपण करेंगे और तुमने कुछ जगहों पर किया भी, हम खुश भी हुए, लेकिन धीरे-धीरे पता लगा कि पेड़ काटने और वृक्षारोपण का अनुपात डगमगाने लगा है। और मुझे कटे हुए पेड़ों को दिलासा देना भी निरर्थक सा लगने लगा।
तभी उसके पास उसी तरह के दो कंकाल जैसे शख्स पहुँचे। उन्होंने उस कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को कहा-दादा देख लो ये इन्सान लोग बिल्कुल नहीं समझ रहे हैं। इन्होंने हमारे पास ही एक और कारखाना लगाया है और उससे निकलने वाली जहरीली गैसों को हमारे ऊपर छोड़ दिया है। क्या ये इन्सान कभी नहीं सुधरेंगे? लोग जितने शिक्षित होते जा रहे हैं उतने ही स्वार्थी भी होते जा रहे हैं। क्या ये लोग इन जहरीली गैसों को इकट्ठा करके और उसके जहरीले प्रभाव को निष्क्रिय करके वातावरण में नहीं छोड़ सकते ताकि हमें भी शान्ति रहे और हम (पेड़) इन्हें भरपूर आॅक्सीजन दे सकें और इनके कारखाने भी चलते रहें।
मैं आश्चर्य चकित होकर उन लोगों की बातें सुन रही थी और सोच रही थी कि इन लोगों को वायुमण्डल को दूषित न करने के सभी तरीकों की जानकारी है तो क्या हम मनुष्यों को इसकी जानकारी नहीं है या हम लोग जानबूझकर इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते। हमारी सरकार भी तो इस दिशा में कड़े कदम उठा सकती है और पर्यावरण के कठोर नियम बना सकती है। उन नियमों को न मानने पर उन्हें दण्डित भी कर सकती हैै। अगर हम ठान लें कि हमें अपने वायुमण्डल को स्वच्छ रखना है, पर्यावरण को बचाना है और जलवायु को शुद्ध रखना है तो शायद हम इन्सान ही अपने वायुमण्डल की जलवायु को, पेड़ों को, पर्यावरण को अपनी अगली पीढ़ी के लिये बचा कर रख सकते हैं।
लेकिन नहीं, हम लोग ये सोचते ही नहीं कि हमारे इस कार्य से हमारे वातावरण को कितना नुकसान पहुँच रहा है। मुझे अपने ऊपर शर्म आ रही थी कि वास्तव में हमारी वजह से ही इन लोगों का क्या हाल हो गया है। हमारी वजह से आज देश की जलवायु एक कुर्सी पर निर्जीव अवस्था में पड़ी है और पेड़-पौधे प्रदूषण के कुप्रभाव से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। मैंने अपने मन में एक संकल्प किया कि कोई और करे या न करे लेकिन मैं आज से और अभी से एक पेड़ काटने के बदले एक पेड़ रोपित करने का अभियान जरूर चलाऊँगी और हर भारतवासी को मजबूर करूँगी कि वह इस मुहिम में मेरा साथ दे। ताकि हम अपनी अगली पीढ़ी के लिये वातावरण को प्रदूषित होने से बचा सकें और कल कोई जलवायु पेड़-पौधे एवं पर्यावरण हमें घृणित दृष्टि से न देखें।
गर्विता
ऑडियोलॉजिस्ट, 651/14B, गंगा एन्क्लेव, सैनिक कालोनी, रुड़की