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नवोदय टाइम्स, 4 अक्टूबर 2015
शहर में प्रति व्यक्ति पानी की दैनिक खपत 446 लीटर है जो जर्मनी की 120 लीटर खपत से तीन गुणा अधिक है जबकि शहर में प्रति वर्ष 11 सेंटीमीटर वर्षा होती है जो जर्मनी में 70 सेंटीमीटर होती है। ज्यादातर खपत बगीचों को दिए जाने वाले पानी से ही होती है। यहीं ‘वाटर कॉप’ का काम शुरू होता है। इनकी स्थापना से लेकर अब तक वे 50 हजार जुर्माना करके 13 लाख डॉलर वसूल चुके हैं।
लास वेगास की चिलचिलाती गर्मी के बीच पिकअप वैन में रॉबर्ट कैल्विन उपनगरीय गलियों में गश्त लगा रहा है। उसका लक्ष्य अपराधियों पर नजर रखना नहीं बल्कि शहर के सबसे बड़े दुश्मन यानी बर्बाद हो रहे पानी की तलाश है।अमरीका के इस सर्वाधिक सूखे शहर में गत 14 वर्ष से ऐतिहासिक अकाल पड़ रहा है। वहीं इसकी लगातार बढ़ती जनसंख्या से शहर के जल स्रोतों पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
पहले से ही लास वेगास शहर बाथरूम व टॉयलेट्स के पानी को रिसाइकिल करके प्रयोग करता है। यहाँ कुल खपत के आधे पानी को दोबारा इस्तेमाल किया जाता है। जैसे-जैसे शहर बढ़ रहा है वैसे पानी की आपूर्ति कम होती जा रही है। प्रशासन अब घर के बाहर इस्तेमाल होने वाले पानी की बर्बादी रोकने पर ध्यान देने लगा है।
एक दशक पहले इसने घर के बाहर पानी बर्बाद करने वाले खराब लॉन स्प्रिंकलर्स, ड्रिपिंग फव्वारे तथा खराब प्लम्बिंग पर लगाम कसने के लिए ‘जल क्षति जाँचकर्ताओं’ यानी ‘वाटर कॉप्स’ (विशेष पुलिस बल) की स्थापना की थी। इनका काम शहर में कहीं भी हो रही पानी की बर्बादी की रोकथाम है।
28 वर्षीय रॉबर्ट कैल्विन भी ऐसे ही एक पुलिसवाले हैं। गश्त के दौरान अचानक उन्हें कहीं से रिस कर सड़क पर बहता पानी दिखाई देता है और वह तुरन्त दोषी का पता लगाने के लिए अपनी कार उस ओर बढ़ा देते हैं। कुछ दूर जाने पर उन्हें एक घर के बगीचे को पानी देने वाले खराब हो चुके स्प्रिंकलर से पानी यहाँ-वहाँ गिरता दिखाई देता है। वह इसका वीडियो बनाते हैं तथा घर के मालिक को इस सम्बन्ध में चेतावनी देते हैं। उसके घर पर इस सम्बन्ध में एक नोटिस भी चिपका दिया जाता है कि जल्द ठीक नहीं करवाने पर उन पर भारी जुर्माना किया जाएगा।
लास वेगास का अर्थ है ‘चरागाह’ आस-पास फैले रेगिस्तान के बीच यह किसी कुदरती नखलिस्तान जैसा है जिसने 19वीं सदी में लोगों को यहाँ बसने को प्रेरित किया। 20 लाख नागरिकों वाले इस शहर ने अपने प्राकृतिक जल स्रोतों को बहुत पहले ही खत्म कर दिया है और अब अपनी 90 प्रतिशत पानी की जरूरत के लिए यह कोलोरेडो नदी पर निर्भर है।
हमेशा से पानी की कमी से जूझने वाले इस शहर के पास अब अधिक से अधिक पानी को बचाने तथा इसकी बर्बादी रोकने के प्रति सख्त होने के सिवा और कोई विकल्प नहीं था।
गत 20 वर्षों के दौरान दुनिया भर में अपने शानदार जुआघरों के लिए मशहूर इस शहर ने अपनी पानी की खपत में एक-तिहाई कमी करने में सफलता पाई है, जबकि जनसंख्या में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है। पानी बचाने के लिए लोगों को भारी छूट दी गई है जिसकी वजह से कई लोगों ने अपने बगीचों में लगी हरी-भरी घास तक खत्म कर दी जिससे पानी में भारी बचत हुई। आज शहर में अधिकतर रेगिस्तानी झाड़ियाँ या रद्दी धातु से बने ताड़ के पेड़ दिखाई देते हैं क्योंकि उन्हें पानी देने की जरूरत ही नहीं होती। रेस्तराओं में तब तक पानी नहीं परोसा जाता जब तक ग्राहक इसकी माँग न करें।
परन्तु अभी भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। शहर में प्रति व्यक्ति पानी की दैनिक खपत 446 लीटर है जो जर्मनी की 120 लीटर खपत से तीन गुणा अधिक है जबकि शहर में प्रति वर्ष 11 सेंटीमीटर वर्षा होती है जो जर्मनी में 70 सेंटीमीटर होती है।
ज्यादातर खपत बगीचों को दिए जाने वाले पानी से ही होती है। यहीं ‘वाटर कॉप’ का काम शुरू होता है। इनकी स्थापना से लेकर अब तक वे 50 हजार जुर्माना करके 13 लाख डॉलर वसूल चुके हैं।