उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
i. जल संरक्षण की आवश्यकता व महत्ता का वर्णन कर पाएँगे;
ii. जल संचयन (संग्रहण) की आवश्यकता का वर्णन कर पाएँगे;
iii. पारंपरिक जल संचयन (संग्रहण) की विभिन्न विधियों का विवरण दे पाएँगे तथा उनका वर्गीकरण कर सकेंगे;
iv. आधुनिक जल संचयन के विभिन्न तरीकों का विवरण व वर्गीकरण कर पाएँगे।
30.1 जल संरक्षण की आवश्यकता
जल, जीवन के लिये सबसे अहम प्राकृतिक संसाधन है। आगामी दशकों में यह विश्व के कई क्षेत्रों में एक गंभीर अभाव की स्थिति में चला जायेगा। यद्यपि जल पृथ्वी में सबसे प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला पदार्थ है, फिर भी यह समान रूप से वितरित नहीं है। अक्षांश में परिवर्तन, वर्षा के तरीके (पैटर्न), स्थलाकृति इत्यादि इसकी उपलब्धता को प्रभावित करते हैं।
जल एक ऐसी संपदा है जिसका किसी तकनीकी प्रक्रिया के माध्यम से, जब जी चाहे, तब उत्पादन या संचयन नहीं हो सकता। मूल रूप से, पृथ्वी पर कुल मिलाकर, अलवण जल और समुद्री जल की मात्रा स्थायी रूप से तय है।
जो अलवण जल हमारे जीवन के लिये इतना जरूरी है, उसकी मात्रा पृथ्वी पर पाए जाने वाले पानी की कुल मात्रा की केवल 2.7% है। इस दो प्रतिशत का लगभग सारा भाग बर्फ की टोपियों, हिमनदियों (ग्लेशियरों) और बादलों के रूप में पाया जाता है। अलवण जल का शेष बचा हुआ थोड़ा सा भाग झीलों और भूमिगत स्रोतों में सदियों से एकत्रित है। आश्चर्य की बात तो यह है कि समुद्रों में पाया जाने वाला खारा पानी, जो कि इस पृथ्वी पर अलवण जल का परम स्रोत है। वर्षा का लगभग 85% जल प्रत्यक्ष रूप से समुद्र में गिरता है और भूमि में कभी नहीं पहुँच पाता है। वर्षा का जो शेष भाग भूमि पर गिरता है, वह झीलों और कुओं को भर देता है और नदियों के प्रवाह को बढ़ाता रहता है। समुद्री जल के प्रत्येक 50,000 ग्राम के सामने सिर्फ एक ग्राम अलवण जल मानव जाति को उपलब्ध है। इस कारण जल एक दुर्लभ और अनमोल संसाधन के रूप में सामने आता है।
भारत में स्थिति अभी भी अत्यंत खराब है। यद्यपि भारत विश्व के सबसे आर्द्र देशों में से एक है, इसमें जल का वितरण समय और स्थान के आधार पर बहुत असमान है। हमारे देश में औसतन 1150 मिमी वार्षिक वर्षा होती है, जो यह संसार में किसी भी समान आकार के देश के मुकाबले में सबसे अधिक है। परन्तु इस बड़ी मात्रा की वर्षा का वितरण असमान है। उदाहरण के लिये एक वर्ष में औसतन वर्षा के दिनों की संख्या केवल 40 है। अतः वर्ष का शेष लम्बा भाग सूखा रहता है। इसके अलावा, जहाँ उत्तर-पूर्व के कुछ क्षेत्रों में वर्षा तेरह मीटर तक होती है, वहीं राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में 20 से.मी. से अधिक वर्षा नहीं होती। वर्षा के इस असमान वितरण के कारण, देश के कई भागों में पानी का भीषण अभाव है।
बढ़ती हुई घरेलू, औद्योगिक और कृषि से संबंधित कार्यों की मांग की पूर्ति के कारण, पानी की उपलब्ध मात्रा में कमी हो रही है और यह स्थिति भविष्य में और गंभीर हो सकती है। ऊपर से, पिछले कुछ दशकों में देश में सिंचाई का विस्तार करने का प्रयास किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि हमारी जल संपदा का अत्यधिक दोहन हुआ है। हमारे बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण ने पानी की मांग को बढ़ा दिया है। उपरोक्त दिये गये इन कारणों की वजह से देश के कई भागों में जल का भारी अभाव हो गया है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि हम जल को संरक्षित रखें और उसका दुरुपयोग होने से बचायें। हमारी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये हमें अधिक खाद्य सामग्री की आवश्यकता है। खाद्य-उत्पादन को बढ़ाने के लिये, हमें सिंचाई के लिये, और अधिक जल की आवश्यकता है। अतः पानी के संरक्षण की तत्काल जरूरत है।
प्राचीन काल में, जल को एक अनमोल संपदा के रूप में देखा और समझा जाता था। वास्तव में हर प्राचीन संस्कृति पानी को पवित्र संसाधन के रूप में देखती थी। परन्तु बीसवीं सदी में औद्योगिक क्रांति के उदय और उसके फलस्वरूप पश्चिमी भौतिकवाद के आगमन ने प्राकृतिक साधनों को देखने का दृष्टिकोण ही गैर पारंपरिक बना दिया है।
ठीक उसी प्रकार जैसे बीसवीं सदी तेल के चारों ओर घूमती थी, वैसी ही इक्कीसवीं सदी स्वच्छ और पेयजल के मुद्दों के ऊपर फोकस करेगी। पानी और पर्यावरणीय संरक्षण से संबंधित मुद्दों का हल ढूंढने की दिशा में सबसे महत्त्वपूर्ण कदम लोगों के दृष्टिकोण और आदतों में परिवर्तन लाना होगा। यदि दुनिया भर के लोग ही पानी को एक ऐसे सस्ते साधन के रूप में देखेंगे, जिसको जितना ज्यादा बर्बाद किया जा सकता हो तब उस स्थिति में, संसार की बेहतरीन नीतियाँ और तकनीकें भी पानी के अभाव को कम नहीं कर सकतीं।
भारत की बढ़ती जनसंख्या की वर्तमान दर को देखते हुए, और उपलब्ध जल संपदा की बढ़ती मांग की पूर्ति के प्रयास में भारत, आगामी पच्चीस वर्षों में सबसे अधिक प्यासे लोगों की जनसंख्या के रूप में एक नकारात्मक छवि बनाने में सफल हो जाएगा। ऐसी स्थिति को रोका नहीं जा सकता। यदि उपलब्ध संसाधनों का ध्यानपूर्वक, बुद्धिमत्ता के साथ प्रयोग नहीं होता है। शहरीकरण, तेज गति से होता औद्योगीकरण और एक लगातार बढ़ती जनसंख्या ने अधिकतर सतही जलाशयों को प्रदूषित करके, उनको मानवीय प्रयोग के लिये अनुपयुक्त बना दिया है। बढ़ती हुई जरूरतों के साथ-साथ, इनकी भूमिगत जल पर निर्भरता बढ़ गयी है। असंख्य बोर-छिद्रों द्वारा भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन, जल तालिका में गिरावट कर दी है। ऐसा अनुमान है कि सन 2050 तक भारत की आधी जनसंख्या शहरी होगी और यह पानी के गंभीर अभाव की समस्या को झेलेगी। इसके अतिरिक्त, जल के वितरण में गंभीर असमानताएँ हैं।
दुनियाभर में पानी की कमी निम्नलिखित कारणों से बढ़ रही हैः-
i. सूखे
ii. सिंचाई की बढ़ती मांग
iii. औद्योगिक मांग
iv. प्रदूषण, जल संसाधनों के प्रयोग में कमी, और
v. जल की व्यर्थ बर्बादी और गैर जिम्मेदाराना रवैया।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, हमारे देश में सूखे का मौसम का काल काफी लंबा होता है। सूखे मौसम के दौरान हमारी पानी की मांगों को झीलों, भूमिगत जल व जलाशयों में संग्रहित पानी द्वारा पूरी होती है। पानी की लगातार बढ़ती मांग के साथ-साथ, पानी के ये स्रोत अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं, अतः उन प्रयासों पर जोर देने की आवश्यकता है जो कि सूखे के मौसम में, अधिक से अधिक वर्षाजल को संग्रहित कर सके। स्थानीय स्तर पर वर्षा के पानी का संचयन या संग्रहण को या तो जलाशयों, टैंकों या झीलों में जल को संग्रहित करके रखने के माध्यम से हो सकता है अथवा भूमिगत जल के पुनर्भरण द्वारा किया जा सकता है। ये पानी की आपूर्ति बढ़ाने के सरल उपाय हैं। आगामी भागों में वर्षा के पानी के संग्रहण की कुछ मुख्य विधियाें का वर्णन किया गया है।
पाठगत प्रश्न 30.1
1. यद्यपि भारत संसार का सबसे आर्द्र देश है, फिर भी उसके कुछ भागों में पानी की भीषण कमी है। इस पानी की कमी का क्या कारण है? (एक कारण)
2. भारत में औसतन सालाना वर्षा के दिनों की कितनी संख्या है?
3. ‘‘जल संचयन जल संरक्षण की दिशा में एक बुद्धिमत्ता से भरा कदम है।’’ कारणों सहित इसकी पुष्टि कीजिए।
4. विश्व में पानी के अभाव के पीछे कोई तीन कारण बताइये।
30.2 जल संग्रहण की पारंपरिक विधियाँ
यद्यपि जल संग्रहण (Water harvesting) आजकल विश्व भर में एक प्रकार का पुनर्जागरण कर रहा है। उसका इतिहास बाइबिल के समय तक जाता है। जल संचयन के उपकरण आज से चार हजार वर्ष पूर्व फिलिस्तीन और ग्रीस में मौजूद थे। प्राचीन रोम में प्रत्येक घरों में पानी संग्रहित करने के लिये हौज निर्मित होते थे और शहर की पानी की नालियों को घरों के आंगनों को जोड़ने की व्यवस्था थी। 3000 ई.पू. वर्ष के आस-पास, बलूचिस्तान और कच्छ के कृषक समाज पानी को संग्रहित करके उसका उपयोग सिंचाई के लिये करते थे।
हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथ और काव्य रचनाएँ उस समय में प्रचलित जल संग्रहण और संरक्षण प्रणालियों का अच्छा दृश्य प्रकट कर देती है। बढ़ती हुई जनसंख्या, बढ़ता औद्योगीकरण और विस्तार करती कृषि ने अब पानी की मांग को और भी बढ़ा दिया है। जल-संग्रहण के प्रयास बांधों, जलाशयों और कुओं के खोदने और निर्माण आदि के द्वारा किया जा रहा है। कुछ देशों ने जल का पुनरावर्तन और उसमें से नमक दूर करने की क्रिया (Desalinate) पर जोर दिया है। जल संरक्षण अब दैनिक दिनचर्या का एक आवश्यक अंग बन गया है। जल संग्रहण के माध्यम से भूमिगत जल के पुनर्भरण का विचार लगभग अब हर समाज में महत्ता हासिल कर रहा है।
वनों में पानी धीरे-धीरे जमीन में रिस जाता है क्योंकि वन के पेड़-पौधे वर्षा को तितर-बितर कर देते हैं। तब यह भूमिगत जल कुओं, झीलों और नदियों में जाता है। वनों के संरक्षण का दूसरा अर्थ है जल का संग्रहण के क्षेत्रों में जल का संरक्षण करना। प्राचीन भारत में लोगों का मत था कि वन ‘‘नदियों की माताएँ’’ हैं एवं इसीलिये वे इन जलस्रोतों की आराधना करते थे।
30.2.1 प्राचीन भारत में जल संग्रहण की विधियाँ
पानी का संग्रहण भारत में बहुत प्राचीन काल से होता आ रहा है, हमारे पूर्वजों ने इस जल प्रबंधन की कला में प्रवीणता प्राप्त कर ली थी। विभिन्न संस्कृतियों की आवश्यकताओं के हिसाब से कई प्रकार की उपयुक्त जल-संचयन प्रणालियों का निर्माण किया गया था। लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व, सिंधु नदी के किनारे पनपती सिंधु घाटी सभ्यता एवं अन्य भागों जैसे भारत के पश्चिमी एवं उत्तरी भागों ने पानी की आपूर्ति की अत्यन्त सुलभ व्यवस्था एवं वाहित मल प्रणाली दुनिया को दी थी। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों की सड़कों के नीचे जिस विधि से नालियों को ढका गया था, उससे यह स्पष्ट होता है कि इस संस्कृति के लोग साफ-सफाई और स्वच्छता से कितने परिचित थे।
इसका एक और बहुत अच्छा उदाहरण ढोलावीरास नामक एक सुनियोजित नगर है जो गुजरात के रण क्षेत्र में खादीर बेट नामक एक उथले पठार पर स्थित है। सबसे प्राचीन जल-संचयन व्यवस्थाओं में से एक पश्चिमी घाट के निकट नानेघाट के निकट पाया जाता है, जो कि पुणे से 130 कि.मी. की दूरी पर है। इन पहाड़ों के पत्थरों में कई जलाशय खोदे गये थे, जो कि इस प्राचीन व्यापार के मार्ग पर यात्रा करते समय व्यापारियों को पेयजल प्रदान करने के काम आते थे। हर क्षेत्र में प्रत्येक किले की अपनी जल संग्रहण व संचयन की व्यवस्था होती थी, जिनको हौजों, तालाबों और कुओं के रूप मे पत्थर तोड़ कर बनाये जाते थे। ये अभी तक उपयोग में हैं। रायगढ़ जैसे कई किलों में पानी की आपूर्ति करने के जलाशय थे।
1. प्राचीन समय में, पश्चिमी राजस्थान के कुछ भागों में कई घर ऐसे बनाये जाते थे जिनमें प्रत्येक घर की छत पर जल-संग्रहण व्यवस्था होती थी। इन छतों से वर्षाजल को भूमिगत टैंकों में भेजा जाता था। यह व्यवस्था अभी भी सब किलों में, महलों और इस क्षेत्र के घरों में देखी जा सकती है।
2. भूमिगत पकी (सेंकी) हुई मिट्टी की पाइपें और नहरों का प्रयोग पानी के प्रवाह को नियमित रखने और दूर के स्थानों तक पहुँचाने के लिये होता था। ऐसी पाइपें अभी भी मध्य प्रदेश के बुरहानपुर, कर्नाटक के गोलकुंडा और बीजापुर एवं महाराष्ट्र के औरंगाबाद में प्रयोग में लायी जाती हैं।
3. वे वर्षाजल का सीधे रूप से संग्रहण करते थे। घर की छतों से, पानी को संग्रहित करके, अपने-अपने आँगनों में बने जलाशयों में बचा कर रखते थे। इसके अतिरिक्त वे वर्षा के पानी को खुले मैदानों से एकत्रित करके कृत्रिम कुओं में संग्रहित करके रखते थे।
4. बाढ़ की स्थिति में आई नदियों व झरनों के जल को एकत्रित करके, वे मानसून के व्यर्थ जाते पानी का संचयन करते थे और उसे गैर मानसूनी मौसम के कई प्रकार के जलाशयों में संग्रहित करते थे।
पाठगत प्रश्न 30.2
1. किन्हीं दो उदाहरणों को देकर यह सिद्ध कीजिए कि प्राचीन भारत में जल संचयन की प्रणाली मौजूद थी।
2. भूमिगत पानी को पुनर्भरण करने में वन किस प्रकार सहायक थे?
3. इस बात को बताइये कि प्राचीन समय में पश्चिमी राजस्थान के घरों में किस प्रकार जल संरक्षण होता था।
30.3 जल संग्रहण की आधुनिक विधियां
वर्षाजल के संचयन की तकनीकें : वर्षाजल के संचयन की दो मुख्य तकनीकें हैं:
1. भूमि की सतह पर भविष्य में प्रयोग के उद्देश्य से किया गया वर्षा जल का संग्रहण।
2. भूमिगत जल का ही पुनःभरण करना।
वर्षा के पानी को सतह पर ही संग्रहित कर लेना एक पारंपरिक तकनीक है और इसके लिये टैंकों, तालाबों, चैक-बांध, बैयरो जैसे जल कोषों का प्रयोग किया जाता था। भूमिगत जल का पुनःभरण वर्षा के पानी के संचयन की एक नयी संकल्पना है और प्रायः इसके लिये निम्नलिखित प्रकार के संरचनाओं (ढांचों) का प्रयोग किया जाता हैः
1. गड्ढेः पुनःभरणगड्ढे या पिट्स को उथले जलभृत के पुनर्भरण के लिये बनाया जाता है।
2. जलभृत (Aqifer) : यह रेत, पथरीली या चट्टानों की बनी मिट्टी की छिद्रनीय परतें हैं जिनसे प्रचुर मात्रा में जल को उपयोग करने के लिये निकाला जा सकता है। इनका निर्माण एक से दो मीटर की चौड़ाई में और एक से 1.5 मीटर की गहराई में किया जाता है और जिनको रेत, मिट्टी, कंकड़ों से भी भर दिया जाता है।
3. खाइयाँ (Trenches) : इनका तब निर्माण होता है, जब पारगम्य (भेद्य) चट्टानें उथली गहराई पर उपलब्ध होती है। खाई 0.5 से 1 मीटर चौड़ी, 1 से 1.5 मीटर गहरी और, 10 से 20 मीटर की लम्बी हो सकती है। इसकी चौड़ाई, लंबाई और गहराई जल की उपलब्धता पर निर्भर है। इनको पाटने के लिये फिल्टर सामग्री का प्रयोग होता है।
4. खुदे हुए कुएँ : मौजूदा कुओं का पुनःभरण ढाँचे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह आवश्यक है कि पानी को कुएँ में डालने से पहले उसको फिल्टर मीडिया (छानने वाले यंत्रों) से गुजारना चाहिये।
5. हाथ से संचलित पंप (हैंडपंप) : यदि जल की उपलब्धता सीमित हो, तो मौजूदा हैंडपंपों को उथले/गहरे जलभृतों को पुनर्भरित करने के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। जल को छानने के यंत्रों द्वारा प्रवाहित करना जरूरी है। इससे पुनःभरण के काम आने वाले कुओं में अवरोधन नहीं होगा।
6. पुनःभरण कुएँ : अधिक गहरे जलकोषों के पुनःभरण के लिये 100 से 300 मि. मी. व्यास के पुनःभरण कुओं का प्रायः निर्माण होता है। इनमें जल को फिल्टर उपकरणों से अवरोधन को रोकने की दृष्टि से पारित किया जाता है।
7. पुनःभरण शाफ्टः उथले जलकोषों के पुनःभरण के लिये इनका निर्माण होता है। (ये मिट्टी की गीली सतह से नीचे स्थित है)। इन पुनःभरण शाफ्टों का 0.5 से 3 मीटर का व्यास है और ये 10 से 25 मीटर गहराई के हैं। ये शाफ्ट पत्थरों और मोटी रेत से भरा होता है।
8. बोर कुओं के पार्श्व शाफ्टः उथले एवं गहरे जलभृतों के पुनःभरण के उद्देश्य से, पानी की उपलब्धता से संबंधित, 1.5 मीटर से 2 मीटर चौड़े और 10 से 30 मीटर लम्बे पार्श्व शाफ्टों का एक या दो बोर कुओं के संग निर्माण होता है। पार्श्व शाफ्ट के पीछे पत्थर और मोटी रेत बिछी होती है।
30.3.1 तत्काल प्रयोग न होने वाले जल का मौजूदा सतही जलाशयों में परिवर्तन और उसके लाभ
शहरों के अंदर और आस-पास होती निर्माण क्रियाओं के कारणवश जलाशय लगभग सूख गये हैं तथा इनका घरों के प्लाटों के रूप में परिवर्तन हो रहा है। तत्काल प्रयोग में न आने वाले पानी को इन टैंकों व जलाशयों से मुक्त प्रवाह हो सकता है, जिसको जल-संचयन व्यवस्था के रूप में ढाला जा सकता है। इस पानी को निकटतम जलाशयों या टैंकों में परिवर्तित किया जा सकता है, जो कि अतिरिक्त पुनःभरण का निर्माण करता है।
शहरी क्षेत्रों में घरों, फुटपाथों और सड़कों के निर्माण ने खुली मिट्टी की मात्रा इतनी कम कर दी है कि पानी के रिस जाने की संभावना ही बहुत कम हो गई है। भारत के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में, बाढ़ का पानी शीघ्रता से नदियों में समा जाता है जो वर्षा रुकने के बाद बहुत जल्दी सूख जाती है। यदि इस पानी को संग्रहित करके भूमि को सींचने दिया जाये, तो वह भूमिगत आपूर्ति का पुनःभरण कर देगी।
यह शहरी क्षेत्रों में विशेषकर- जल संरक्षण की एक अत्यन्त लोकप्रिय विधि बन जाती है। वर्षाजल का संचयन मूल रूप से इमारत की छत पर वर्षा के पानी का संग्रहण और फिर आगामी प्रयोग के लिये उसका भूमिगत संग्रहण और संरक्षण है। ऐसा करना न केवल भूमिगत जल की कमी को रोक देता है, बल्कि वह घटती जल तालिका के स्तर को बढ़ा देता है। इस तरह पानी की आपूर्ति में सहायक सिद्ध होता है। वर्षा के जल का संचयन और उसका कृत्रिम पुनःभरणअत्यंत महत्त्वपूर्ण मुद्दों के रूप में सामने आ रहे हैं। यह आवश्यक है कि वर्षा के मौसम में सतही पानी का संरक्षण किया जाये व भूमिगत जल के स्तर में कमी होने पर रोक लगाई जाये। समुद्री पानी के तटीय क्षेत्रों में प्रवेश को भी रोकना चाहिये अर्थात एक सीमा से अधिक जब समुद्री जल तटों की ओर आ जाता है, तब यह तटीय भूमिगत जल की संपदा को खारा बनाकर खराब कर देता है।
आप सभी को एक जल संचयन व्यवस्था के लिये पानी की आवश्यकता है और उसके संग्रहण के लिये एक स्थल की। प्रायः वर्षाजल को इमारतों की छतों पर संग्रहित किया जाता है, जहाँ या तो उसका संग्रहण हो सके या उसका तत्काल प्रयोग हो सके। इस सतह से आप व्यर्थ जाते जल को पौधों, पेड़ों, बागों या जलभृतों तक पहुँचाकर कर सकते हैं।
भूमिगत जल के पुनःभरण की महत्ता को पहचान कर, भारत सरकार, कई राज्य सरकारें, गैर-सरकारी संगठन व अन्य संस्थान देश में वर्षा के जल का संचयन करने को प्रोत्साहन दे रहे हैं। कई सरकारी कार्यालयों को यह निर्देश है कि दिल्ली में और भारत के कुछ अन्य शहरों में जल संचयन करें।
नगर योजनाकर्ता और शहरी अधिकारीगण ऐसे अधिनियमों को पारित कर रहे हैं, जो सब नई इमारतों में जल संचयन को अनिवार्य कर देंगे। यदि एक नयी इमारत में वर्षा के पानी के संचयन की व्यवस्था नहीं है, तो उसे कोई पानी या सीवेज का कनेक्शन नहीं दिया जायेगा। भूमिगत जल के स्तर की बढ़ोतरी के लिये सब अन्य शहरों में ऐसे नियमों के लागूकरण की आवश्यकता है।
वर्षाजल के संचयन के लाभ कुछ इस प्रकार हैं :
i. जल की उपलब्धता में वृद्धि।
ii. घटती हुई जल तालिका पर नियंत्रण।
iii. यह पर्यावरण के पक्ष (मित्र) में हैं।
iv. फ्लोराइड, नाइट्रेट और खारेपन के तनुकरण के माध्यम से भूमिगत जल के स्तर में बढ़ोत्तरी।
v. विशेषकर शहरी क्षेत्रों में भूमि के कटाव और बाढ़ों से बचाव।
वर्षाजल का संचयन- एक सफलतम की कहानीः राजस्थान के रूपारेल नदी के आस-पास का क्षेत्र जल संचयन का एक सटीक उदाहरण है। यद्यपि इस स्थान पर बहुत कम वर्षा होती है, फिर भी संतुलित संचालन और संरक्षण की प्रणालियों के कारण यहाँ बड़े पैमाने पर वनों के काटे जाने पर और कृषि-क्रियाओं के कारणवश नदी के जल स्तर में कमी होने लगी और 1980 के दशक के दौरान सूखे-जैसी स्थिति उत्पन्न होने लगी। स्थानीय जनता के निर्देशन में क्षेत्र की महिलाओं को जोहड़ (गोलाकार तालाब) और बांध बनाने के लिये प्रेरित किया गया। जिससे वर्षाजल का संग्रहण हो सके। धीरे-धीरे संरक्षण और जल संचयन की सही विधियों के अनुसरण के कारण, पानी वापिस आने लगा। नदी का पुनर्जागरण इस स्थल के पर्यावरण को और उसके तटों पर बसते लोगों के जीवन को परिवर्तित कर गया। उनका अपने प्राकृतिक वातावरण के साथ संबंध दृढ़ हो गया है। इस बात से यह प्रमाणित हो गया है कि मानव-जाति पर्यावरण की मालिक नहीं, बल्कि उसका अंश है। यदि मानव जाति प्रयास करे, तो हमारे द्वारा ही किये गये क्षय को कम किया जा सकता है। |
30.3.2 कृषि में वर्षाजल का संचयन और जल संरक्षण
जल पौधों एवं फसलों के विकास के लिये अति आवश्यक है। इसीलिये कृषि के क्षेत्र में जल का संरक्षण भी बहुत आवश्यक है। एक घटती हुई जल तालिका और सिंचाई के कारण से खारेपन में वृद्धि होना एक गंभीर विषय बन गया है। संसार भर में इस समस्या से निपटने के लिये जल संचयन और पुनःभरण की कई विधियों को प्रयोग में लाया जा रहा है। उन क्षेत्रों में जहाँ वर्षा कम है तथा पानी का अभाव है, वहाँ स्थानीय लोगों ने अपने क्षेत्र के अनुरूप सरल तकनीकों का प्रयोग कर, जल की मांग को घटा दिया है।
1. भारत के मरुस्थल अथवा अर्ध-मरुस्थल क्षेत्रों में, टैंक प्रणाली की व्यवस्था पारंपरिक रूप से कृषि उत्पादन का आधार है। टैंकों का निर्माण भूमि में खुदाई करके, वर्षा जल का संग्रहण करके किया जाता है।
2. विशाल भारतीय मरुस्थल में स्थित राजस्थान प्रदेश में थोड़ी सी ही वर्षा होती है, परन्तु यहाँ के लोगों ने इधर की जटिल परिस्थितियों में भी वर्षाजल एकत्रित करने का प्रयास किया। बड़े-बड़े जलाशय जिन्हें खादीन (Khadin) कहते हैं, बांध जिन्हें जोहड़, टैंक कहते हैं एवं अन्य विधियों का प्रयोग जल प्रवाह को रोकने एवं एकत्रित जल प्रवाह के लिये प्रयोग किया जाता है। मानसून मौसम के अंत में, इन जलाशयों का पानी पौधों को सींचने के काम के प्रयोग में लाया गया। देश के अन्य भागों में समान प्रणालियों का प्रयोग हुआ। इनको विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है। - उत्तर प्रदेश में जल तलाइयों के नाम से, मध्य प्रदेश में हवेली व्यवस्था के नाम से, बिहार में अटर के नाम से एवं और भी।
पाठगत प्रश्न 30.3
1. किन्हीं तीन ढांचों का नाम लीजिए जिन्हें भूमिगत पानी को पुनःभरण करने के लिये निर्मित किया जा सकता है।
2. जल संग्रहण करने के लिये, उन नये अधिनियमों की चर्चा कीजिये जो नागरिक अधिकारियों द्वारा कई नगरों में प्रस्तावित हो रहे हैं।
3. किसी भी राज्य में वर्षाजल के संचयन के चार लाभों का जिक्र कीजिये।
4. राजस्थान, यू.पी. और मध्य प्रदेश राज्यों के कुछ ऐसे ढांचों का नाम लीजिए, जिन्हें सूखे मौसम में पौधों के लिये वर्षाजल को संग्रहित करने का प्रयोग होता है।
30.4 घरेलू स्तर पर वर्षाजल का संचयन
जल संचयन की परिभाषा बहुत सरल है। यह अपनी संपत्ति पर गिरते वर्षा के पानी का संग्रहण है, जिसको बाद में अपने ही घर या उसके आँगन में किसी उपयोग में लाया जाता है। हमारे देश के कई घरों के मालिक वर्षा के पानी का पेड़ों, बागों इत्यादि को सिंचित करने में प्रयोग करते हैं। अपने ही घर के चारों ओर जल संचयन से संबंधित विचारों को इन उद्देश्यों के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है और अपनी संपत्ति के रख-रखाव के खर्च को कम किया जा सकता है। एक नये निवास स्थान को कई प्लॉटों के स्थान पर एक ही प्लॉट पर निर्मित करने, एक मुख्य उपविभाग का ढांचा तैयार करना, या कुछ वर्तमान स्थितियों में ही कुछ विकास करना- इस सब घरेलू योजनाओं में जल-संचयन प्रणालियों को आसानी से सम्मिलित किया जा सकता है।
क्षेत्र, आवश्यकता और बजट के अनुरूप, जल संचयन व्यवस्थाएँ सरल या जटिल रूप की हो सकती हैं। वर्षाजल के संचयन व्यवस्था को उसके चार मुख्य भागों की ओर ध्यान देकर भी समझा जा सकता है।
(क) वर्षाजल को एकत्रित करना
वर्षाजल को घर की छत से पेतियो (Patio) या गाड़ी पार्क करने के स्थान से या किसी भी अपारगम्य सतह से इकट्ठा कर संग्रहित किया जा सकता है। केवल ध्यान में यह बात रखें कि संग्रहित पानी आपकी घर की नींव से कम से कम तीन फीट की दूरी पर हो। संचयित होने वाले जल की मात्रा उसके इकट्ठा किये जाने वाले क्षेत्र पर निर्भर है। संग्रहित जल की मात्रा के आकलन के लिये, आप अपने घर की छत (कैचमेंट) के क्षेत्र को प्रति वर्ग (मीटर में) वर्षा की दर से गुणा कर दें। (भारत की औसतन वर्षा 1.17 मीटर है।) इसके पश्चात उस मूल्य को 0.909 से गुणा कर लें। यह वाष्पीकरण व अन्य क्षयों का हिसाब है और फिर इस निष्कर्ष को 1000 से गुणा कर लें- लीटरों की संख्या को 1000 से गुणा कर लें- लीटरों की संख्या को निर्धारित करने के लिये। उदाहरणार्थ- एक वर्ग मीटर पानी एकत्रित करने का स्थान प्रतिवर्ष लगभग 105300 लीटर पानी को प्रदान करेगा। (1.17×100×0.90×1000=105300)
(ख) संग्रहण
संग्रहण-व्यवस्थाओं की सरलता-जटिलता हमारी आवश्यकताओं से संबंधित है। एक प्रभावशाली व्यवस्था में इमारत की छत पर स्थित ‘गटर’ और ‘अधस्टोंटी’ (Downspout) द्वारा संभारित एक 250 लीटर का ड्रम (बड़े आकार का डिब्बा) शामिल है। एक अधिक समग्रित प्रणाली में अंतर्हित हौज, (buried cisterns) समयानुसार संचालित है। पानी को गटर या अधस्टोंटी की स्क्रीन के ऊपर संचालित करने से पहले पत्तों और गंदगी इत्यादि को छानने की जरूरत है। शैवाल वृद्धि और मच्छरों के लगातार पैदा होने की संभावना को कम करने के लिये टैंकों और हौजों में रखे पानी को ढकना भी जरूरी है। संग्रहणों के टैंकों पर तैरते हुए ढक्कनों को लगाना एक प्रभावशाली हल है।
(ग) वितरण
गटर (एक पतली नहर जो कि इमारत की छत से वर्षाजल का संग्रहण करके उसे इमारत से दूर भेजने का काम करती है, प्रायः एक नाली में) और ‘अधस्टोंटी’ (जो कि वर्षा के पानी को गटर से समतल भूमि तक ले जाने की एक सीधी पाइप है) या ‘बर्म’ (Berms) (जो कि दो क्षेत्रों को विभाजित करता हुआ एक उठा हुआ इलाका) और ‘स्वेल’ (Swales) (जो कि एक नम या दलदली निचली सतह की जमीन) है, इनको वर्षाजल को इकट्ठा करके सीधे भूमि में या बागों/पार्कों के पौधे तक में वितरित किया जा सकता है। बहुत से लोग पहले वर्षाजल को संचयित करते हैं और उसके पश्चात उसे नियमित ‘डिंप’ सिंचाई व्यवस्था (Drip irrigation system) के माध्यम से वितरित कर देते हैं।
(घ) व्यवस्था का रख-रखाव
जल-संचयन व्यवस्थाओं को कभी-कभी रख-रखाव की आवश्यकता पड़ती है और यह कार्य सफलता से पूरा हो जाता है। ‘गटरों’ पर रखी गई छननियों की नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिये और इसी प्रकार संग्रहण में काम आने वाले टैंकों को भी समय-समय पर साफ कर देना चाहिये।
30.4.1 वर्षाजल के संचयन के लाभ
यद्यपि अधिकतर लोग इसे महसूस नहीं कर पाते हैं, परन्तु वे कुछ इंचों की ही वार्षिक वर्षा जो हमारे देश में होती है, वह एक अनमोल संसाधन है। जल संचयन न केवल बाढ़ों की संभावना को घटाता है, बल्कि वह समुदाय की भूमिगत जल पर निर्भरता को भी कम करता है, परन्तु भूमिगत जल के विपरीत, वर्षा का पानी अत्यन्त स्वच्छ है, जिसमें किसी भी प्रकार का खारापन या कृत्रिम तत्व नहीं पाये जाते हैं। इस कारण वर्षाजल सिंचाई, वाष्पीकरण, कूलरों, कपड़े धोने व अन्य कई कार्यों के लिये उपयुक्त हैं। इससे सख्त तत्वों की गंदगी जमा नहीं होती और साबुन के प्रयोग में भी कोई कठिनाई नहीं आती। कल्पना कीजिये कि आपको अपने वाष्पीकरण कूलर को हर वर्ष साफ न करना पड़े। पानी के बहने को कम करने एवं वर्षाजल का प्रयोग जो कि आपके वाष्पीकरण कूलर पर प्रतिवर्ष गिरता है। आपकी संपत्ति पर जो वर्षा का पानी गिरता है, उस बहुमूल्य संसाधन का आप तत्काल प्रयोग अपने घर और उसके आँगन पर कई प्रकार से कर सकते हैं।
i. अनमोल भूमिगत जल को संरक्षित करना है और अपने महीने भर के पानी के बिल का व्यय कम करता है।
ii. स्थानीय बाढ़ें और सीवेज व्यवस्था इत्यादि से संबंधित समस्याओं को कम करता है।
iii. भूमि में नमक पदार्थों की वृद्धि को बहा देता है और इसका प्रभाव आपके पौधों के बेहतर स्वास्थ्य पर दिखता है।
iv. भूमि के प्रयोग और संपत्ति के रखरखाव की आवश्यकताओं को कम करता है।
v. विभिन्न कार्यों के लिये अत्यंत उच्चतम स्तर के पानी को प्रदान करता है।
शिक्षार्थियों के लिये कुछ क्रिया कलाप
क्रियाकलाप 1: अपने घर/कार्यस्थल का ऑडिट (मुआइना) कीजिये। क्या आप निम्नलिखित में से कोई भी देख सकते हैं?
i. लीक और पानी का टपकना।
ii. शौचालय या मूत्रालय में जहाँ कोई जल संरक्षण का यंत्र प्रयोग में न हो।
iii. घर के बगीचों में प्रयोग होती पाइपों के खुले मुँह, जिससे पानी लगातार बहता हो।
iv. दाँत साफ करते समय या बर्तन धोते समय, कोई ऐसे नलके जिन्हें खुला छोड़ दिया जाता हो।
एक विषय को चुनिये और उससे बचाव की कुछ युक्तियाँ खोजिये। यहाँ पर कुछ ऐसी ही कार्य-योजनाओं के उदाहरण दिये गये हैं, जो पानी के क्षय को कम करने में मदद करते हैं।
क्रियाकलाप 2: कार्ययोजनाओं के लिये कुछ विचार
(क) पानी का सुप्रयोग करने से संबंधित कुछ विज्ञप्तियों का प्रारूप तैयार कीजिए। इन विज्ञप्तियों को अधिक से अधिक संख्या में अपने स्थानीय समुदाय में बाँट दीजिए। यह जानकारी पहुँचाने का एक सरल और प्रभावशाली तरीका है।
(ख) अपने स्कूल के शौचालय के अनुरूपान्तर (Retrofit) के लिये एक सस्ती, हल्की तकनीक के हल का प्रयोजन कीजिये। शौचालय के हौज में फ्लश के लिये एक लीटर प्लास्टिक की बोतल को पानी से भरकर रखिये। इससे 1 लीटर पानी (फ्लश से) की बचत होती है। यह स्कूलों जैसे स्थानों में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है, जहाँ पर शौचालय बार-बार प्रयोग होता है।
(ग) एक तकनीकी योजना के रूप में, आपकी कक्षा एक ऐसी तकनीक या प्रणाली का आविष्कार कर सकती है, जो छत से वर्षा के पानी को इकट्ठा कर, स्कूल के बगीचों में प्रयोग की जा सकती है। नीचे जाती पाइप से जरूरत से अधिक पानी (बहते) को इस काम के लिये एक बाल्टी में संग्रहित किया जा सकता है।
या तो आप एक घर में निर्मित छिड़काव के यंत्र का आविष्कार कर, घर के बगीचे के विशेष भागों में पानी दे सकते हैं। इस तरह आप पानी को बेकार प्रयोग कर उसे व्यर्थ जाने से बचा सकते हैं। एक ऐसी सशक्त हौज़पाइप का प्रयोग कीजिए। जिसमें उपयुक्त स्थानों पर छोड़े गये छेद हों तो यह युक्ति अच्छी काम आती है।
(घ) अपने अध्ययन केन्द्र/कार्य स्थल पर जल बुद्धिमत्ता सप्ताह का आयोजन कीजिये। आप यह जानने के लिये कि आपका स्कूल प्रति सप्ताह कितना पानी प्रयोग में लाता है, आप स्वयं पानी के मीटर को पढ़ सकते हैं। फिर आप इस पानी की मात्रा को एक-चौथाई कम करने की कोशिश कर सकते हैं। (औसतन, इन स्थानों पर आप अपने पानी के उपभोग को लगभग एक तिहाई की दर तक कम कर सकते हैं। प्रतिदिन एक घटना को संयोजित कर, एक पूरे संगठन को हम अपने प्रयासों में सम्मिलित कर सकते हैं। यह दर्शाने के लिये कि पानी के क्षय को कैसे कम किया जाये।
(ड.) विदेशज पौधों के स्थान पर स्थानीय पौधों को उगाइयेः (स्थानीय पौधे, विदेशज पौधों से कम पानी लेते हैं) माली से कहिये कि वह पौधों को पानी दिन की ठंडक में दें (प्रातःकाल या उससे भी बेहतर, देर दोपहर को) आप स्वयं संचालित जल संरक्षण का बागवानी का अपना क्लब भी शुरू कर सकते हैं। कुछ स्थानों पर बहुत सफल बागवानी के क्लब हैं। और वे अपने पौधों की इस तरह देख-रेख करते हैं कि पानी का बचाव हो।
पाठगत प्रश्न 30.4
1. घरेलू स्तर पर जल संचयन के लिये उपयोग में लाये जाने वाले चार मुख्य घटकों की सूची दीजिये।
2. हौजों/टैंकों में वर्षा के संचयित जल के संग्रहण को करते समय किन्हीं दो बचावी प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
3. घरेलू स्तर पर जल संचयन से हमें कैसे लाभ पहुँचता है? (कोई भी तीन)
आपने क्या सीखा
i. यद्यपि पृथ्वी पर बहुत पानी है, फिर भी अलवण जल की मात्रा उसका एकमात्र छोटा अंश है।
ii. पानी की बढ़ती मांग के कारण, यह संसाधन अत्यधिक दोहन किया गया है।
iii. यद्यपि भारत में काफी वर्षा होती है, उसके समय और स्थान के अनुरूप असमान वितरण के कारण, उसके कई भागों में पानी का गंभीर अभाव है।
iv. अपनी बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये भोजन-आहार प्रदान करने के लिये, भारत को अधिक खाद्यानों को उगाने की अत्यंत आवश्यकता है।
v. क्योंकि वर्षा ऋतु छोटी होती है, इसलिये कृषि-क्रियायें सिंचाई पर निर्भर हैं।
vi. भारत में कुल प्रयोग होते पानी की मात्रा का लगभग 85% अंश सिंचाई में जाता है।
vi. कृषि और अन्य विकास संबंधी गतिविधियाें की बढ़ती मांग के साथ-साथ जल संसाधन अत्यधिक दोहित है।
vii. इस गंभीर स्थिति को शहरीकरण और औद्योगीकरण, जल संसाधनों के अत्यधिक प्रयोग व प्रदूषित करने के कारण और अधिक गंभीर बना देते हैं।
viii. इस प्रकार संरक्षण, जल के बचाव की सबसे मुख्य और सरल विधियों में से एक है।
ix. वर्षाजल का संचयन वर्षाजल को संग्रहित करके, उसके सीधे प्रयोग के लिये उसका संरक्षण है या उसे कृत्रिम विधि से भूमिगत जल को पुनःभरण करने की प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है।
x. परंपरानुसार, वर्षाजल का संचयन, संसार भर में विभिन्न विधियों द्वारा होता है।
xi. वर्षाजल के संचयन का सबूत सिंधु घाटी, फिलस्तीनी, यूनानी और रोमन सभ्यताओं में पाया जाता है।
xii. इन सभ्यताओं में जल संरक्षण की बुद्धिमत्ता थी।
xiii. वर्षाजल के संचयन को हाल में काफी महत्ता मिल रही है क्योंकि भारत जैसे कई देश पानी के गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।
xiv. देश में वर्षा के पानी के संचयन को प्रोत्साहन देने के लिये, भारत की केन्द्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने पहल की है।
xv. कई स्थानीय संस्थान निवास-स्थलों, बड़ी इमारतों और दफ्तरों में वर्षाजल संचयन प्रणालियों की स्थापना को अनिवार्य बना देने के विषय में विचार कर रहे हैं।
पाठान्त प्रश्न
1. हमें वर्षा के पानी के संचयन के पीछे क्यों करना चाहिए?
2. वर्षा जल संचयन की पारंपरिक विधियों का वर्णन कीजिये।
3. प्राचीन भारत में वर्षा के पानी के संचयन की कौन सी विधियाँ प्रयोग में थीं?
4. वर्षाजल का संचयन किस प्रकार जल के अभाव की पूर्ति करने में सहायक होता है?
5. छतों के ऊपर की गई वर्षा के पानी के संचयन का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
6. भूमिगत जल का कृत्रिम पुनःभरण कैसे होता है?
7. भारत में वर्षा के पानी के संचयन की सफलता भरी कहानी का विवरण दीजिये।
8. वर्षाजल के संचयन के मुख्य लाभों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
9. वर्षाजल के संचयन में काम आये चरणों का वर्णन दीजिये।
10. भारत में वर्षा के पानी के संचयन पर सरकार द्वारा की गई पहल का संक्षिप्त विवरण कीजिये।
पाठगत प्रश्नों के उत्तर
30.1
1. समय और स्थान के अंतरालों में वर्षा का असमान वितरण।
2. 40 दिन।
3. अलवण जल का अभाव और बढ़ती हुई जनसंख्या, हमारे देशों के कुछ क्षेत्रों में वर्षा का असमान वितरण, बढ़ता हुआ औद्योगीकरण और शहरीकरण- परन्तु इस कम मात्रा में उपलब्ध संसाधन की अत्यधिक मांग। अतः वर्षा के पानी का संचयन और उसको सूखे मौसमों में संचित रखने की आवश्यकता।
4. अकाल (सूखा), बढ़ती जनसंख्या, सिंचाई की बढ़ती मांग, प्रदूषण जो कि पानी की पेयता और उपयोगिता को कम कर रहा है, उपलब्ध पानी का दुरुपयोग (कोई भी तीन)
30.2
1. सबसे पुरानी जल संचयन व्यवस्थाओं में एक हमारे ही देश के पश्चिमी घाटों के निकट स्थित पुणे शहर के पास पायी जाती है यहाँ पर पहाड़ी के पत्थरों में पेयजल प्रदान करने के लिये कई जलाशयों को खोद लिया गया था। रायगढ़ जैसे किलों में पानी के संरक्षण व संचयन के लिये टैंकों, तालाबों, इत्यादि का निर्माण हुआ था। ये जलाशय और कुएँ अभी भी प्रयोग में लाये जाते हैं, सिंधु घाटी सभ्यता की मोहनजोदड़ो और हड़प्पा नगरों के खंडहर शहरी पानी की आपूर्ति और नालियों की एक सुनियोजित व्यवस्था को दर्शाती है। (कोई भी दो) या कोई अन्य।
2. वनों के पेड़-पौधे (वनस्पति) पानी को भूमि में रिस जाने में सहायक हैं। इस प्रकार वे जल तालिका का पुनःभरण करते हैं।
3. इस क्षेत्र के हर एक निवास स्थल का निर्माण इस प्रकार हुआ था कि वह वर्षा जल का संचयन कर सके और इस वर्षा जल को भूमिगत जलाशयों में संरक्षित रखा जाता था। इस व्यवस्था को अभी भी देखा जा सकता है।
30.3
1. कुओं की धुरियों (शाफ्ट) का पुनःभरण करना, खाई, गड्ढे, बांधों या बण्ड पर नियंत्रण रखना। बोर कुंओं के साथ पृष्ठीय शाफ्ट (कोई भी तीन)।
2. यदि किसी नयी इमारत के पास वर्षा के पानी के संचयन की व्यवस्था नहीं है, तो उसे पानी या सीवेज का कनेक्शन नहीं दिया जायेगा।
3. पानी की उपलब्धता में वृद्धि करती है, घटती जल तालिका पर नियंत्रण करती है, नमक इत्यादि के तनुकरण द्वारा भूमिगत जल स्तर में बढ़ोत्तरी करती है, भूमि को अपरदन से बचाती है- इसको और बाढ़ को खासकर शहरी क्षेत्रों में नियंत्रण में लाती है।
4. खादीन, जोहाड़, तलाई, हवेली (कोई भी तीन)
30.4
1. स्थान/क्षेत्र जहाँ पर वर्षा का पानी इकट्ठा किया जा सकता है, संरक्षण का कोष, वितरण का भाग, व्यवस्था को कायम रखना।
2. संरक्षण के काम में लाये जाने वाले जलकोषों को ढक कर रखना, ताकि वहाँ मच्छर इत्यादि पनप न पाएँ और- शैवाल वृद्धि भी न्यूनतम हो।
3. (क) भूमि में पाये जाने वाले जल का संरक्षण व महीने भर में आने वाले पानी के बिल की दर में कमी।
(ख) स्थानीय बाढ़ों और नालों के बह जाने की समस्याओं में कमी।
(ग) भूमि से नमक (लवणों) को बहा देता है।
(घ) बागवानी के लिये उत्तम स्तर के पानी को जल कोड प्रदान करता है। (कोई तीन)
TAGS |
How can we conserve water? in hindi, What are 10 ways to save water? in hindi, What are the methods of conserving water resources? in hindi, What is water conservation in simple words? in hindi, modern methods of water conservation in hindi, 10 ways to conserve water in hindi, water conservation methods Wikipedia in hindi, water conservation methods in india in hindi, 100 ways to conserve water in hindi, conservation of water essay in hindi, ways to conserve water for kids in hindi, water conservation project in hindi, What is the use of water harvesting? in hindi, What is rainwater harvesting and how is it done? in hindi, Why is water harvesting needed? in hindi, What is need of rainwater harvesting? in hindi, types of rainwater harvesting in hindi, uses of rainwater harvesting in hindi, water harvesting in hindi in hindi, importance of rainwater harvesting in hindi, water harvesting essay in hindi, water harvesting project in hindi, what is rainwater harvesting and how is it done in hindi, water harvesting model in hindi, Why Desalination is not a feasible process? in hindi, What countries desalinate water? in hindi, How much does it cost to desalinate water? in hindi, What are the pros and cons of desalination? in hindi, desalination methods in hindi, desalination process in hindi, desalination plant in hindi, desalination technology in hindi, water desalination plant in hindi, desalination process steps in hindi, desalination cost in hindi, how does desalination work in hindi, patios designs in hindi, patio pronunciation in hindi, patio synonym in hindi, patio design in hindi, patio images in hindi, patio meaning in hindi, covered patio in hindi, patio restaurant in hindi, How much does it cost to replace a downspout? in hindi, How many downspouts do you need? in hindi, What is downspout disconnection? in hindi, How far off the ground should a downspout be? in hindi, downspout pipe in hindi, downspout home depot in hindi, downspout gutter in hindi, downspout extension in hindi, downspout drain in hindi, downspout sizes in hindi, gutter downspout parts in hindi, downspout diverter in hindi, How do you treat a cistern? in hindi, How deep are old cisterns? in hindi, What are cisterns made of? in hindi, Is it safe to drink water from a cistern? in hindi, underground water cistern in hindi, rainwater cistern in hindi, cistern for sale in hindi, how to build a cistern system in hindi, drinking water cistern systems in hindi, cistern water system in hindi, underground water storage system in hindi, underground cistern in hindi, types of rainwater harvesting in hindi, rainwater harvesting in india in hindi, uses of rainwater harvesting in hindi, importance of rainwater harvesting in hindi, rainwater harvesting advantages in hindi, rainwater harvesting project in hindi, what is rainwater harvesting answer in hindi, rainwater harvesting essay in hindi, |