21वीं सदी के पहले दशक के पूरे विश्व में दृष्टि डालें तो यह सत्य उभरता है कि इस दशक में पूरी मानवता कई प्राकृतिक विपदाओं से जूझ रही है। कभी बर्फबारी, कभी बाढ़, कभी समुद्री तूफान, कभी भूकम्प, कभी महामारी तो कभी जल संकट से पूरी मानवता त्रस्त है। बढ़ती आबादी के सामने सबसे बड़े संकट के रूप में जल की कमी ही उभर रही है। पर्यावरण के साथ निरंतर खिलवाड़ का यह नतीजा है कि आज पूरी जनसंख्या हेतु पर्याप्त स्वच्छ जल के संकट से पूरा विश्व गुजर रहा है।
भारत में उपलब्ध जल संसाधन की दृष्टि से आकलन करें तो यह बात सामने आती है कि 2001 में प्रति व्यक्ति 1800 क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध था जो 2050 ई. में घटकर 1000 क्यूबिक मीटर हो जाएगा। भारत इस समय कृषि उपयोग हेतु तथा पेयजल के गंभीर संकट से गुजर रहा है और यह संकट वैश्विक स्तर पर साफ दिख रहा है। हर विकसित और विकासशील देश इस संकट को दूर करने हेतु हर तरह से उपाय पर विचार कर रहा है। इस संकट के निवारण हेतु हमें तीन स्तरों पर विचार करना होगा-पहला यह कि अब तक हम जल का उपयोग किस तरह से करते थे? दूसरा भविष्य में कैसे करना है? तथा जल संरक्षण हेतु क्या कदम उठाए? पूरी स्थिति पर नजर डालें तो यह तस्वीर उभरती है कि अभी तक हम जल का उपयोग अनुशासित ढंग से नहीं करते थे तथा जरूरत से ज्यादा जल का नुकसान करते थे। संरक्षण की जागरूकता रहने से इस स्थिति में जल संरक्षण हेतु हमें कई कदम उठाने होंगे जो इस प्रकार हैं-
ये भी पढ़े :- जल संरक्षण क्या है
1. हर नागरिक में जल संरक्षण हेतु जागरूकता लानी होगी।
2. हर नागरिक शावर की जगह बाल्टी में पानी भरकर स्नान करें।
3. सेविंग करते समय नल बंद रखें।
4. बर्तन धुलते समय नल के स्थान पर टब का प्रयोग करें।
5. उत्तराखंड जल संसाधन के अनुसार, ‘‘टॉयलेट में लगी फ्लश की टंकी में प्लास्टिक की बोतल में पानी भरकर रख देने से हर बार एक लीटर जल बचाया जा सकता है।
6. गाँव और शहरों में पहले तालाब हुआ करते थे जिनमें जल एकत्र रहता था जो न केवल पानी के स्तर को आस-पास बचाये रखता था बल्कि दैनिक उपयोग के काम आता था। आज गाँवों और शहरों के तालाबों को पाट कर घर बना लिये गए हैं। अतः जरूरी है कि जल संरक्षण हेतु गाँव और शहरों में तालाब फिर से खोदे जाएँ।
7. गंदे जल का सिंचाई में उपयोग करके भी जल संरक्षण किया जा सकता है।
8. वर्षा का जल छत पर संरक्षण कर उसका उपयोग करना। इसलिये छत पर पानी टंकी बनाना होगा।
9. सार्वजनिक स्थल के नल की टोटी अक्सर खराब रहती है उसकी मरम्मत कर तथा लोगों में जागरूकता लाकर हजारों लीटर पानी संरक्षित किया जा सकता है।
10. पर्यावरण के प्रति जागरूकता जरूरी है क्योंकि पर्यावरण संतुलन का सकारात्मक प्रभाव जल संरक्षण पर पड़ता है। कटते वृक्षों के कारण भूमि की नमी लगातार कम हो रही है जिससे भूजल स्तर पर बुरा असर पड़ रहा है। अतः जरूरी है कि वृक्षारोपण कार्यक्रम हेतु जागरूकता लाई जाए।
11. नदियों के जल में गंदा पानी कदापि नहीं छोड़ा जाय जिससे जरूरत पर उस जल का प्रयोग पीने तथा अन्य उपयोगों हेतु किया जा सके।
12. ‘जल संरक्षण’ विषय को व्यापक अभियान की तरह सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तरों पर प्रचारित करने की जरूरत है। जिससे छोटे, बड़े सभी इस विषय की गंभीरता को समझें और इस अभियान में अपनी भूमिका अदा करें।
13. जल संरक्षण हेतु केंद्र और राज्य सरकारें कानून बनाएँ।
14. विद्यालय और महाविद्यालयों में निरंतर प्रचार-प्रसार की जरूरत है। जिससे युवा पीढ़ी समय रहते इसकी गंभीरता को अच्छी तरह से समझ सकें।
15. जल संरक्षण हेतु रेनवाटर हार्वेस्टिंग तकनीक का सहारा लेना चाहिए। यह तकनीक पानी की कमी से निपटने का तरीका भर नहीं है, कई बार तो ऐसा देखने में आया है कि इस तकनीक से इतना जल एकत्र हो जाता है कि दूसरे स्रोत की आवश्यकता ही नहीं पड़ती और यहाँ तक कि दूसरे को पानी उधार देने में सक्षम हो जाते हैं। इस तरह का उदाहरण हमें केरल में जिला पंचायत के कार्यालय में देखने को मिला है। सूत्रों से ज्ञात होता है कि 9 अगस्त, 2005 से केरल के कासरागोड जिला पंचायत का सरकारी भवन न तो बोरवेल पर निर्भर है न तो जलापूर्ति या भूजल पर, पानी की जरूरतों के लिये इसका भरोसा सिर्फ बारिश से मिले पानी पर है। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि अपनी आवश्यकता का सारा पानी यह छत पर एकत्र वर्षा जल से हासिल कर लेता है।
ये भी पढ़े :- कृषि भूमि पर जल संरक्षण
इस परियोजना को देखने पूरे देश से लोग आते हैं। अगर स्वजलधारा कार्यालय या कोई दूसरी संस्था इस संदेश का ठीक से प्रचार-प्रसार करें तो रेनवाटर हार्वेस्टिंग के बारे में जागरूकता फैलाने में ज्यादा मदद मिल सकती है। आज इस तकनीक का उपयोग धीरे-धीरे सभी जागरूक नागरिक करने लगे हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने एक मुकदमें में फैसला देते हुए कहा है कि तालाब, पोखर, गड़ही, नदी, नहर, पर्वत, जंगल और पहाड़ियों आदि सभी जलस्रोत पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं। इसलिये पारिस्थितिकी संकटों से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिये इन प्राकृतिक देनों की सुरक्षा करना आवश्यक है ताकि सभी संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिए गए अधिकारों का आनंद ले सकें। इतना ही नहीं अदालत ने राज्य सरकार को प्रत्येक गाँव में एक विशेष जाँच दल नियुक्त करने का भी आदेश दिया। जलस्रोतों पर हुए अतिक्रमण हटाने का भी निर्देश हाईकोर्ट ने दिया साथ ही निर्णय में यह भी कहा गया है कि प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक स्थानों पर अन्यत्र जमीन आवंटित कर दिया जाए। प्रत्येक झील तालाब या अन्य स्रोत के आस-पास किसी भी प्रकार के सरकारी या निजी निर्माण कार्य की अनुमति तब तक नहीं दी जाए जब तक कि यह सुनिश्चित न हो जाए कि वे निर्माण जल स्रोतों पर अतिक्रमण नहीं करते।
निष्कर्षतः ‘जल संरक्षण’ आज के पूरे विश्व की मुख्य चिंता है। प्रकृति हमें निरंतर वायु, जल, प्रकाश आदि शाश्वत गति से दे रही है लेकिन हम विकास की आंधी में बराबर प्रकृति का नैसर्गिक संतुलन बिगाड़ते जा रहे हैं। जल संरक्षण हेतु समय रहते चेत जाने की जरूरत है क्योंकि-
‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए न उबरे, मोती, मानुस, चून’।
लेखक परिचय
डॉ. तीर्थेश्वर सिंह
विभागाध्यक्ष- हिंदी विभाग, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई नगर (छ.ग.)