हमने अब तक पिछड़ेपन का आधार सिर्फ जाति को मानकर काम किया था लेकिन केन्द्र सरकार ने सशक्तीकरण के लिये नये मापदंड तैयार किये हैं। प्रधानमंत्री ने अपनी नई कोशिश के तहत जिले को भी एक केन्द्र माना है। अगर जिला ही पिछड़ा होगा, कनेक्टेड नहीं होगा तो वहाँ रहने वाला हर नागरिक दूसरों की तुलना में पिछड़ जाएगा। इसलिये प्रधानमंत्री के निर्देश पर देश के 115 जिलों को चुना गया है और उनके विकास की अलग से योजना तैयार की गई है। इन पिछड़े जिलों में अब नई सोच के साथ काम हो रहा है।
2014 में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ तौर पर कहा था कि यह गरीबों और वंचितों की सरकार है और जो उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को बेहतर बनाने के लिये हर सम्भव प्रयास करेगी। अगर हम देखें तो केन्द्र सरकार की तमाम योजनाएँ और कार्यक्रम इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाये गये और बनाये जा रहे हैं। पिछले चार साल में जो योजनाएँ बनीं और कार्यान्वित हुईं उनका लाभ अब तक नीचे तक पहुँचने लगा है और साफ तौर पर दिखने भी लगा है।सामाजिक सशक्तीकरण की नई सोच
हमारे देश में सामाजिक आर्थिक विकास और सशक्तीकरण के लिये समूह आधारित उपागम (ग्रुप बेस्ड अप्रोच) को स्वीकार किया गया। हमने संविधान निर्माण के दौरान ही समूह को लक्षित करके प्रावधान बनाये। समाज के पिछड़े, वंचित दलित और हाशिए के समाज के सामाजिक-आर्थिक उन्नयन और सशक्तीकरण के लिये हमने उन्हें विभिन्न समूहों के रूप में चिन्हित किया और सकारात्मक कार्रवाई के रूप में आरक्षण को अपनाया। हमने माना कि जब शिक्षा और रोजगार में आरक्षण के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक रूप से हाशिए पर पहुँच गये लोगों को बराबरी पर लाया जाएगा तो बाकी समस्याएँ भी खत्म होती जाएँगी। हालांकि ऐसा पूरी तरीके से नहीं हुआ और दूसरे कानून भी बनाने पड़े जिसमें दलित उत्पीड़न पर रोक लगाने वाला कानून प्रमुख है।
1950 में सिर्फ अनुसूचित जाति-जनजाति के लिये लागू किये गये आरक्षण का दायरा बढ़ाना पड़ा। हमने सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये भी जाति को आधार मानकर 27 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी। अब जब लाखों-करोड़ों की संख्या में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े तबके के युवा अच्छी शिक्षा ग्रहण करके नौकरी के लिये प्रयास कर रहे हैं तो नई समस्याएँ सामने आ रही हैं। सरकारी नौकरियों की संख्या तो करीब तीन करोड़ पर सीमित है जबकि सामान्य स्नातक से लेकर आईआईटी, आईआईएम और पीएचडी तक पढ़ाई करने वाले दलित और पिछड़े समाज के युवाओं की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। इसलिये वंचित और हाशिए के समाज के लिये नये तरीके की समझ विकसित कर काम करने की जरूरत थी। अब ऐसा होता दिख रहा है।
14 अप्रैल, 2018 को नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के बीजापुर में आयुष्मान भारत योजना का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “पुराने रास्तों पर चलते हुए आप कभी भी नई मंजिलों तक नहीं पहुँच सकते हैं। पुराने रास्तों से नई चीजें नहीं हासिल होती हैं। इसलिये हमारी सरकार नई अप्रोच के साथ काम कर रही है।”
मोदी सरकार का दर्शन है- सबका साथ, सबका विकास। इसमें प्रयास है कि समाज की उस अन्तिम औरत तक हर वह सुविधा पहुँचाई जाये जिन्होंने आजादी के सत्तर साल बाद भी विकास के सूरज की रोशनी नहीं देखी है।
समावेशीकरण
मौजूदा सरकार के गठन के बाद ही जन-धन योजना शुरू की गई जिससे वित्तीय समावेशीकरण की प्रक्रिया चालू हुई। हर उस व्यक्ति का अकांउट खुला जिसे सरकारी योजना का लाभ मिलता था। करीब तीस करोड़ अकाउंट आज तक खोले जा चुके हैं। ये अकांउट उन लोगों के हैं जिनके अब तक खुले नहीं थे और इनकी उन्हें सबसे ज्यादा जरूरत थी। आज वंचित समाज के इन लोगों को सरकार की विभिन्न योजनाओं से मिलने वाला पैसा सीधे अकांउट में मिल रहा है और उन्हें किसी बिचौलिये को हिस्सा नहीं देना पड़ रहा है। इसी तरह प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत लाखों लोगों को लोन वितरित किये गये, जिनमें दलित, पिछड़े और महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा थी।
उद्यमिता को बढ़ावा
स्टैंड अप योजना में दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के युवाओं को अपने व्यवसाय के लिये आर्थिक मदद की योजना 5 अप्रैल, 2016 को शुरू की गई। इस योजना के तहत देश की एक लाख पच्चीस हजार बैंक शाखाओं के माध्यम से दो उद्यमियों को व्यापार में आर्थिक मदद की बात की गई थी। इस योजना के तहत भी वंचित समाज के बहुत से लोगों को अपना उद्योग शुरू करने में मदद मिली है। हाल ही में इस योजना में कुछ तब्दीलियाँ की गई हैं, जिसके तहत अब बीस लाख रुपए तक भी सहायता मिल रही है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की तरफ से दलित वेंचर कैपिटलिस्ट फंड की स्थापना की गई जिसके तहत दलित समाज के उद्यमियों को व्यापार में पूँजी की मदद का प्रावधान किया गया। इस योजना के तहत भी दलित समाज से आने वाले कई उद्यमियों को लाभ पहुँचा है। दलित चैम्बर्स अॉफ कॉमर्स के अध्यक्ष मिलिंद काम्बले ने साफ किया है कि हर शिक्षित दलित को नौकरी नहीं मुहैया कराई जा सकती इसलिये सूक्ष्म-उद्यमी बनने का प्रयास सबको करना चाहिए और गैर-सरकारी क्षेत्रों में प्रवेश की कोशिश करनी चाहिए।
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 2018 के अपने बजट भाषण में अनुसूचित जातियों के विकास के लिये 56,619 करोड़ रुपए और जनजातियों के विकास के लिये 39,135 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की है। उन्होंने बताया कि इस वित्त वर्ष में मुद्रा योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपए की राशि लोन के तौर पर देने का लक्ष्य लिया है। ऐसे समय में जब नौकरियाँ सीमित हैं तो उद्यमिता की तरफ ही हमें आगे बढ़ना होगा। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर केन्द्र सरकार ने कई योजनाएँ बनाई जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आये। आज दलित और पिछड़े समाज के हजारों युवा मुद्रा, स्टैंड अप और अन्य योजनाओं के माध्यम से अपना रोजगार शुरू कर चुके हैं और लाखों लोगों को नौकरी देने में भी सफल हुए हैं। राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने स्वच्छता उद्यमी योजना शुरू की है जिसमें स्वच्छता अभियान ने जुड़े व्यवसाय करने वाले उद्यमियों को आर्थिक मदद दी जा रही है।
संवैधानिक प्रावधान
अप्रैल 2016 में दलित उत्पीड़न को रोकने वाले कानून को और भी सख्त बनाते हुए सरकार ने कोशिश की ताकि दलित समाज और भी सुरक्षित महसूस कर सके। सरकार ने ससंद में 123वाँ संविधान संसोधन प्रस्तुत किया है जिसके तहत सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिये एक नये आयोग के गठन की बात कही गई है। इस आयोग के बनने के बाद पिछड़े वर्ग को और भी कई तरीके की सामाजिक सुरक्षा मिलेगी।
अन्य कदम
केन्द्र सरकार ने दलित हितों के लिये लड़ने वाले महान नेता डॉ. अम्बेडकर के जीवन से जुड़े पाँच स्थानों को पंच तीर्थ कहकर सम्बोधित किया और उनके विकास के लिये तेजी से काम आगे बढ़ाया। दिल्ली में अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर की स्थापना की गई है जहाँ रिसर्च और अन्य अकादमिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाएगा। डॉ. अम्बेडकर के दिल्ली स्थित अलीपुर वाले आवास को सौ करोड़ की लागत से एक अत्याधुनिक म्यूजियम के रूप में विकसित किया गया है। लंदन में जहाँ डॉ. अम्बेडकर रहे थे उस घर को भी खरीदा गया है। भारत सरकार ने 14 अप्रैल को राष्ट्रीय समरसता दिवस घोषित किया है। भारत सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की तरफ से सौ विद्यार्थियों को अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय और इंग्लैंड के लंदन स्कूल अॉफ इकोनॉमिक्स की सैर कराई जाती है जिससे वे अम्बेडकर के विचारों से और प्रेरणा पा सकें।
महिलाओं के लिये
वैसे कुछ हद तक महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में आगे आई हैं और उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ है लेकिन अभी भी बड़ा हिस्सा ऐसा है जिसके लिये काम किया जाना बाकी है। पहले गाँवों में रहने वाली, अनपढ़ महिला वह चाहे किसी भी समाज से आती हो किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं ले पाती थी। मोदी सरकार से पहले ऐसी महिलाओं के लिये कोई कारगर योजना शायद ही बनी हो। मोदी सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना के तहत शुरू की गई सुकन्या समृद्धि स्कीम सफल रही है। इस स्कीम की शुरूआत 2015 में की गई थी। इस स्कीम के तहत दो साल के भीतर ही देश में लड़कियों के नाम पर 1.26 करोड़ खाते खोले गये। जिसमें 19.183 करोड़ रुपए जमा हुए।
गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली हर महिला के लिये मोदी सरकार ने उज्ज्वला योजना शुरू की जिसके तहत उन्हें गैस सिलेंडर और चूल्हा दिये जाने की व्यवस्था की गई है। अब तक चार करोड़ से अधिक महिलाओं को इस योजना का लाभ पहुँच चुका है। इस बजट में आठ करोड़ महिलाओं तक इस योजना का लाभ पहुँचाने का लक्ष्य 2019 तक रखा गया है।
दिव्यांग कल्याण
सरकार ने इन चार वर्षों में दलित आदिवासियों और पिछड़ी जातियों के साथ-साथ ऐसे अन्य वर्गों को भी चिन्हित करने और उनके लिये कारगर योजना बनाने का काम किया है जो विकास की दौड़ में विभिन्न कारणों से साथ नहीं आ सके। शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को प्रधानमंत्री ने एक नया शब्द दिव्यांग कहकर सम्बोधित किया और उनके लिये बड़े-बड़े कैम्प आयोजित किये गये और वहाँ उन्हें मुफ्त में कृत्रिम अंग, हियरिंग एड, ट्राइसाइकिल आदि दिये गये। जहाँ 1992 से 2012 के बीच ऐसे 100 कैम्प आयोजित किये गये थे वहीं 2014 से 2016 के बीच ही 100 से ज्यादा कैम्प आयोजित किये गये। जिन दो कैम्पों में प्रधानमंत्री का खुद रहना हुआ वो गिनीज बुक अॉफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल हुए और उनमें दस हजार से ज्यादा दिव्यांगों को मदद की गई।
सुगम्य भारत कार्यक्रम के तहत हर सरकारी इमारत को दिव्यांगों को सुगम्य बनाने के लिये उसमें रैंप और अन्य व्यवस्थाएँ की गई हैं। डॉ अम्बेडकर के सम्पूर्ण वाङ्मय का ब्रेल लिपि में अनुवाद किया गया है जो केन्द्र सरकार की संवेदनशीलता को दर्शाता है।
वरिष्ठ नागरिक
वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। इसी को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के लिये कई नई योजनाएँ शुरू की हैं और कई योजनाओं के पैसे सत्तर से अस्सी फीसदी तक बढ़ा दिये हैं। इस योजना के तहत 2014-15 और 2015-16 में 42 करोड़ रुपए इकतालीस हजार वरिष्ठ नागरिकों पर खर्च किये गये और 2017 में 29 करोड़ रुपए खर्च किये गये थे। वरिष्ठ नागरिकों पर बनी राष्ट्रीय नीति को बदलती जनसंख्या के हिसाब से बदला गया है जिसमें उनकी सामाजिक-आर्थिक जरूरतों और बदलते सामाजिक मूल्यों का पूरा ध्यान रखा गया है। वरिष्ठ नागरिकों के प्रयासों को सम्मानित करने के लिये हर वर्ष कई लोगों को वयोश्री सम्मान से सम्मानित किया जाता है। एक स्कीम के तहत स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर वरिष्ठ नागरिकों को आधार कार्ड से जुड़े हुए स्मार्ट कार्ड की व्यवस्था की जा रही है, जिसमें उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी बहुत सी सहूलियतें मिलेंगी।
घूमन्तू जातियाँ
घूमन्तू जातियों की समस्याओं के निवारण के लिये उनके लिये एक अलग आयोग का गठन किया गया था। नानाजी देशमुख के नाम से एक योजना शुरू की गई जिसके तहत घूमन्तू जाति के युवाओं के लिये छात्रावास की योजना शुरू की गई।
छात्रवृत्ति
प्रीमैट्रिक में पढ़ने वाले दलित पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर युवाओं को कारगर तरीके से स्कॉलरशिप बाँटी गई है। 2014-15 और 2015-16 में 49 लाख 24 हजार सात सौ दलित छात्रों को 1038.73 करोड़ रुपए और 2016-17 में रुपए 344.28 करोड़ करीब साढ़े 13 लाख से अधिक दलित छात्रों को स्कॉलरशिप के रूप में दिये गये। करीब पचास लाख ओबीसी छात्रों को 230 करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप 2014-15 और 2015-16 में दी गई। 2016-17 के दौरान 106 करोड़ रुपए से ज्यादा की स्कॉलरशिप ओबीसी छात्रों को दी गई। इसी तरह मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक के विद्यार्थियों को जो दलित और पिछड़े वर्ग से आते हैं उन्हें सहयोग किया गया। उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे दलित समाज के 3476 छात्रों को 2014-15 और 2015-16 में करीब 50 करोड़ की धनराशि दी गई और 2016-17 में करीब 1310 छात्रों को 18.41 की राशि बाँटी गई।
आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग-जिसमें अगड़ी जातियों के युवाओं के लिये भी पहली बार 2014-15 में पोस्ट-मैट्रिक लेवल पर डॉ अम्बेडकर के नाम से स्कॉलरशिप शुरू की गई। 2014-15 और 2015-16 में 50,000 विद्यार्थियों के लिये दस करोड़ से ज्यादा की राशि आवंटित की गई और 2016-17 में भी करीब इतनी ही धनराशि बाँटी गई। शोध कर रहे दलित समाज के करीब दो हजार विद्यार्थियों को 2016-17 में 196 करोड़ की राशि दी गई। ओबीसी समाज के छात्रों के लिये पहली बार नेशनल फैलेशिप की शुरुआत की गई है।
विदेश में पढ़ाई करने जाने वाले दलित विद्यार्थियों के लिये भी प्रावधान बनाकर उन्हें आर्थिक मदद की गई। ऐसी ही योजना पिछड़ी जाति के विद्यार्थियों और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के युवाओं के लिये भी पहली बार इस सरकार में बनाई गई है। दलित और पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिये छात्रावास बनाने की योजना को नये तरीके से बनाया गया जिससे उन्हें अधिक से अधिक लाभ पहुँच सके। पिछड़े और दलित विद्यार्थियों की कोचिंग के लिये दी जानी वाली धनराशि में बढ़ोत्तरी की गई है।
वंचितों के लिये बुनियादी सुविधाएँ
गरीब और वंचितों को स्वास्थ्य सुविधा आसानी से मुहैया कराने के लिये दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना आयुष्मान भारत की शुरूआत भारत सरकार द्वारा की गई है। प्रधानमंत्री डॉ अम्बेडकर के जन्म दिवस पर बीजापुर में पहले हेल्थ और वेलनेस सेंटर का उद्घाटन करके इस योजना की शुरुआत की। इस तरह के डेढ़ लाख सेंटर देश में बनाये जाएँगे। इस योजना के तहत देश के दस करोड़ परिवारों यानी करीब पचास करोड़ लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ मुहैया कराई जाएँगी और उनका पाँच लाख तक का बीमा भी किया जाएगा। इससे पहले भी सरकार वंचित समाज की बेहतरी के लिये स्वास्थ्य के क्षेत्र में तीन हजार से ज्यादा जन औषधि केन्द्र स्थापित कर दवाइयाँ कम मूल्य पर बेच रही है। स्टैंट की कीमत नियंत्रित की गई है और वंचितों के लिये मुफ्त डायलिसिस की विशेष योजना शुरू की गई है।
सामान्य रूप से मध्य और उच्च वर्ग के लोगों के यहाँ तो शौचालय होता है लेकिन समाज का वह वर्ग जो अपने लिये दो जून की रोटी की व्यवस्था नहीं कर पाता, वह अपने लिये शौचालय कैसे बनाएगा। सरकार अब तक छह करोड़ शौचालयों का निर्माण करवा चुकी है। इस वित्त वर्ष में दो करोड़ शौचालयों का और निर्माण किये जाने का लक्ष्य है। सरकार ने तय किया है कि 2022 तक देश में हर गरीब का अपना घर हो इसके लिये भी सरकार दिन-रात मेहनत कर रही है। अपने बजट भाषण में वित्तमंत्री ने बताया कि इस वित्त वर्ष में 51 लाख नये मकान बनाये जाएँगे। गाँवों मे आधारभूत ढाँचे को विकसित करने के लिये 2018-19 के बजट में सरकार ने 14 लाख करोड़ से ज्यादा का प्रावधान किया है। बिजली की समस्या से निपटने के लिये प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत 16,000 करोड़ रुपए की लागत से 4 करोड़ परिवारों तक बिजली पहुँचाई जाएगी।
जिले को केन्द्र मानकर काम
हमने अब तक पिछड़ेपन का आधार सिर्फ जाति को मानकर काम किया था लेकिन केन्द्र सरकार ने सशक्तीकरण के लिये नये मापदंड तैयार किये हैं। प्रधानमंत्री ने अपनी नई कोशिश के तहत जिले को भी एक केन्द्र माना है। अगर जिला ही पिछड़ा होगा, कनेक्टेड नहीं होगा तो वहाँ रहने वाला हर नागरिक दूसरों की तुलना में पिछड़ जाएगा। इसलिये प्रधानमंत्री के निर्देश पर देश के 115 जिलों को चुना गया है और उनके विकास की अलग से योजना तैयार की गई है। इन पिछड़े जिलों में अब नई सोच के साथ काम हो रहा है।
केन्द्र सरकार कोशिश कर रही है कि समाज के सभी वर्गों और विशेषकर उन तबकों के लिये जो वंचित और हाशिए पर हैं ईज अॉफ डूइंग बिजनेस की तरह ईज अॉफ लिविंग का वातावरण तैयार किया जाए। इसीलिये इस बार के बजट में कई फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य डेढ़ गुना तक बढ़ा दिया गया है जिससे किसानों को सीधे लाभ पहुँचाया जा सके। किसान की आय को 2022 तक दोगुना करने का लक्ष्य इस सरकार ने लिया है।
केन्द्र सरकार समाज के सभी तबकों को एक स्तर पर लाकर एक समता मूलक समाज के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध है। सामाजिक न्याय के साथ-साथ सामाजिक समरसता के सिद्धान्त को आधार मानकर सरकार ने शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में तमाम प्रावधान बनाकर वंचित, दलित, शोषित समाज को सशक्त बनाने का काम तो किया ही है साथ ही उनके लिये उद्यमिता का वातावरण बनाया है जहाँ वे खुद तो काम शुरू कर ही सकें साथ ही अपने समाज के दूसरे लोगों को भी काम पर लगा सकें। इसमे एक नया जोड़े हुए सरकार ने वंचित समाज के लिये ईज अॉफ लिविंग का विचार भी दिया है जिसके तहत उनके लिये बुनियादी सुविधाएँ फौरी तौर पर सस्ती दर पर उपलब्ध कराई जा रही हैं। प्रधानमंत्री ने 2022 तक एक नये भारत (न्यू इंडिया) बनाने का जो लक्ष्य लिया है उसे पूरा करने के लिये वह भरपूर प्रयास कर रही है। समाज का वो तबका जो ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों से पीछे छूट गया है उनके सशक्तीकरण के लिये विशेष प्रयास केन्द्र सरकार द्वारा किये गये हैं।
सन्दर्भ
1. वार्षिक रिपोर्ट 2017-18 सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार
http://socialjustice.nic.in/ViewData/Details?mid=76658
2.
http://socialjustice.nic.in/SSSU-English/e_book.pdf
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