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नई दुनिया, 16 फरवरी 2012
कोरसीना बांध के पूरा होने के एक वर्ष बाद ही इससे लगभग 50 कुओं का जल स्तर ऊपर उठ गया। अनेक हैंडपंपों व तालाबों को भी लाभ मिला। कोरसीना के एक मुख्य कुएं से पाइपलाइन अन्य गांवों तक पहुंचती है जिससे पेयजल लाभ अनेक अन्य गांवों तक भी पहुंचता है।यदि यह परियोजना अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर पाई तो इसका लाभ 20 गांवों के लोगों, किसानों को मिल सकता है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव-जंतुओं, पक्षियों की जो प्यास बुझेगी वह अलग है।
जहां किसी महानगर के पॉश इलाकों में मात्र एक फ्लैट की कीमत एक करोड़ रुपए तक पहुंच रही है, वहां इससे भी कम धन राशि में पेयजल संकट झेल रहे 40 गांवों के लगभग 50,000 लोगों व 1,50,000 पशुओं का संकट दूर किया जा सकता है, पर इसके लिए जरूरी है स्थानीय गांववासियों की भागेदारी से काम करना। यह अनुकरणीय उदाहरण राजस्थान के जयपुर व अजमेर जिलों में तीन स्वैच्छिक संस्थाओं ने प्रस्तुत किया है। कोरसीना पंचायत व आसपास के कुछ गांवों में पेयजल का संकट इतना बढ़ गया था कि कुछ वर्षों में इन गांवों के अस्तित्व पर ही संकट उत्पन्न होने वाला था। दरअसल, राजस्थान के जयपुर जिले (दुधू ब्लॉक) में स्थित यह गांव सांभर झील के पास स्थित होने के कारण खारे पानी के असर से बहुत प्रभावित हो रहे थे। इसका प्रतिकूल असर आसपास के गांवों में खारे पानी की बढ़ती समस्या के रूप में सामने आता रहा है।गांववासियों व वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण ने खोजबीन कर पता लगाया कि पंचायत के पास के पहाड़ों के ऊपरी क्षेत्र में एक जगह बहुत पहले एक जल-संग्रहण प्रयास किया गया था। इस ऊंचे पहाड़ी स्थान पर जल-ग्रहण क्षेत्र काफी अच्छा है व कम स्थान में काफी पानी एकत्र हो जाता है। अधिक ऊंचाई के कारण यहां सांभर झील के नमक का असर भी नहीं पहुंचता है। सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण व गांववासियों ने काफी प्रयास किया कि यहां नए सिरे से पानी रोकने के लिए जरूरी निर्माण कार्य किया जाए। पर काफी प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिली। इस बीच एक सड़क दुर्घटना में लक्ष्मीनारायण जी का देहांत हो गया।
इस स्थिति में बेयरफुट कॉलेज ने यह निर्णय लिया कि लक्ष्मी नारायण के इस अधूरे कार्य को जैसे भी हो पूरा करना है। यह सपना पूरा होता नजर आया जब बेलू वाटर नामक संस्थान ने इस कोरसीना बांध परियोजना के लिए 18 लाख रुपए का अनुदान देना स्वीकार कर लिया। कोरसीना बांध के पूरा होने के एक वर्ष बाद ही इससे लगभग 50 कुओं का जल स्तर ऊपर उठ गया। अनेक हैंडपंपों व तालाबों को भी लाभ मिला। कोरसीना के एक मुख्य कुएं से पाइपलाइन अन्य गांवों तक पहुंचती है जिससे पेयजल लाभ अनेक अन्य गांवों तक भी पहुंचता है।
यदि यह परियोजना अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर पाई तो इसका लाभ 20 गांवों को मिल सकता है। इसके अतिरिक्त वन्य जीव-जंतुओं, पक्षियों की जो प्यास बुझेगी वह अलग है। गांववासियों की भागेदारी से ऐसी छोटी परियोजनाएं बिना विस्थापन व पर्यावरण क्षति के बेहतर लाभ दे सकती हैं। इसी तरह मंडावरिया व पालोना गांवों (जिला अजमेर) में भी कम बजट में बहुत से गांववासियों व पशुओं की प्यास बुझानेवाली परियोजनाएं हाल ही में कार्यान्वित हुईं हैं।