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राजस्थान पत्रिका, 15 सितम्बर, 2016
नदी के जल के बँटवारे के न्यायसंगत समाधान के साथ ही नदी की रक्षा के लिये भी विभिन्न राज्यों का सहयोग जरूरी है। अब फोकस को दोहन से रक्षा की ओर ले जाया जाये तभी हमारी नदियों की रक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।
कावेरी नदी के जल में हिस्सेदारी को लेकर कर्नाटक व तमिलनाडु का लम्बे समय से चल रहा जल-विवाद के हाल ही में उग्र होने से हिंसा और आगजनी की कई वारदातें हुई हैं। वर्षा कम होने के वर्षों में जल-संकट बढ़ता है तो प्रायः यह विवाद भी विकट हो जाता है।इस विवाद में इन दो राज्यों के अतिरिक्त कुछ हद तक केरल व पुदुचेरी भी उलझे हुए हैं। बेहतर होगा कि इन चारों राज्यों के प्रतिनिधि मिलकर इस विवाद का सर्वमान्य हल खोजें। देश के कई राज्यों में ऐसे कई विवाद पहले से चल रहे हैं और नदियों को जोड़ने की योजना को आगे बढ़ाया गया तो ये विवाद भविष्य में बहुत तेजी से बढ़ सकते हैं।
कावेरी नदी का जल-ग्रहण क्षेत्र पश्चिम घाट के पहाड़ों में केरल व कर्नाटक में है। इस जल-ग्रहण क्षेत्र में हाल के दशकों में बहुत वन-विनाश हुआ। इससे वनों के झरनों व जलस्रोतों से जो पानी नदी की ओर बहता था, वह कम हो गया। समुद्र की ओर बहते हुए नदी कर्नाटक से तमिलनाडु में प्रवेश करती है। यहाँ नदी के जल का उपयोग करने वाली जो फसलें उगाई जा रही हैं वे बहुत अधिक पानी माँगती हैं।
इस अति जल-सघन खेती के कारण अधिक जल प्राप्त करने के लिये तनाव उत्पन्न होता रहता है। यदि धीरे-धीरे कम पानी वाली फसलों की ओर बदलाव किया जाये तो ऐसे तनाव कम हो सकते हैं। डेल्टा क्षेत्र में नदी में पानी की पर्याप्त मात्रा जरूरी होती है। अन्यथा समुद्र का खारा पानी धरती पर आ जाएगा जिससे पेयजल व सिंचाई की समस्या गम्भीर हो सकती है। अतः पश्चिम घाट के पहाड़ों से लेकर समुद्र तक की यात्रा में नदी स्वयं भी कई संकटों से जूझ रही है।
यदि आसपास के लोगों को नदी की कल्याणकारी भूमिका को टिकाऊ तौर पर सुनिश्चित करना है, तो उन्हें भी नदी की रक्षा के लिये आगे आना होगा। अतः मुद्दा केवल नदी के पानी का दोहन नहीं है, अपितु इससे भी बड़ा मुद्दा तो नदी की रक्षा का है। नदी के जल के बँटवारे के न्यायसंगत समाधान के साथ ही नदी की रक्षा के लिये भी विभिन्न राज्यों का सहयोग जरूरी है। अब फोकस को दोहन से रक्षा की ओर ले जाया जाये तभी हमारी नदियों की रक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।
नर्मदा की जल के जल बंटवारे पर विभिन्न राज्यों ने बहुत विस्तार से निर्णय लिये पर नर्मदा नदी की रक्षा की चिन्ता नहीं की गई। किसी माँ के पास अपने बच्चों को देने के लिये बहुत कुछ होता है तो बच्चे इस झगड़े में इतना उलझ जाते हैं कि किसे कितना मिलना है पर माँ का भली-भाँति ध्यान कौन रखेगा इसे वे उपेक्षित कर देते हैं। अब समय आ गया है यह समझने का कि मुख्य मुद्दा अब नदियों की रक्षा का बनना चाहिए।