भारत के नियंत्रक और लेखा महापरीक्षक की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी योजनाएं प्रतिदिन प्रति व्यक्ति चार बाल्टी स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य का आधा भी आपूर्ति करने में सफल नहीं हो पाई है। ऐसी स्थिति तब है जब स्वच्छ जल उपलब्ध कराने पर आधारित परियोजना की कुल धनराशि का 90 प्रतिशत भाग खर्च किया जा चुका है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि घटिया प्रबंधन के चलते सही निष्पादन के अभाव में सभी योजनाएं निर्धारित लक्ष्य से दूर होती जा रही हैं। योजनाओं की उचित क्रियान्वयन के अभाव में आज भी देश के लगभग 75 प्रतिशत घरों में पीने के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं है।
देश में लगभग छह करोड़ साठ लोग जरूरत से ज्यादा फ्लोराइड वाला पानी पीने और लगभग तीन करोड़ सत्तर लाख लोग प्रति वर्ष दूषित जल के उपयोग से बीमार पड़ जाते हैं। इनमें से लगभग दो लाख लोगों की मौत हो हो जाती है, देश के ग्रामीण क्षेत्रों में दूषित जल के उपयोग से लगभग 15 लाख बच्चे आंत्रशोध के कारण मर जाते हैं। विभिन्न सर्वेक्षणों से ये बात सामने आई है कि दूषित जल से बीमार होने के कारण लगभग साढ़े सात करोड़ कार्य-दिवस बर्बाद हो जाते हैं। जिससे देश की लगभग 39 अरब रुपए की आर्थिक हानि होती है। देश में सरकारी और प्रशासनिक लापरवाही की एक तस्वीर ये भी है कि देश में 70 लाख में से 78 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में भी मुश्किल से जरूरत के लायक जल पहुंच पाता है। इस तरह देखें तो देश के लगभग 45 हजार गांवों को ही नल या हैंडपंप के माध्यम से जल उपलब्ध कराया जा सकस है, जबकि उन्नीस हजार से ज्यादा गांव ऐसे हैं जहां जल का कोई स्रोत नहीं है।
नदियों के के प्रदूषण के मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है। जहां 43 नदियां लुप्त होने की कगार पर हैं। इसके बाद असम की 28, गुजरात की 17, बंगाल की 17, कर्नाटक की 15, केरल और उत्तर प्रदेश की 13-13, मणिपुर और ओडिशा की 12-12, मेघालय की 10, जम्मू-कश्मीर की 9 नदियां लगातार सूखती जा रही हैं। नदियों के नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के प्रयास किए जाने चाहिए।
उचित जल प्रबंधन न होने और जल-प्रबंधन की तकनीक के विकसति न होने से बर्बाद होते जल को बचाना हमेशा से मुश्किल रहा है। जल-प्रबंधन को लेकर कोई ठोस नीति न होने से स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। देश में कई स्तरों पर बरती गई लापरवाहियों से यहां कभी सही समझ नहीं बनाई जा सकी, जिससे इस दिशा में सरकारी स्तर पर यथोचित प्रयास नहीं किए गए। जल-संचयन को लेकर बरती जा रही लापरवाही से ही देश में वर्षा के रूप में भारी मात्रा में प्राप्त चला व्यर्थ चला जाता है। देश में औसतन प्रतिवर्ष 1,170 मिलीमीटर वर्षा होती है, जिससे कुल चार हजार जिससे कुल 4000 घन मीटर जल उपलब्धता होता है। वर्षा की यह मात्रा वर्षा की दृष्टि से कहीं ज्यादा है। चिंता तो इस बात की है कि देश में इस वर्षा जल का 15 प्रतिशत भाग ही उपयोग हो पाता है और बाकी 85 फीसदी जल या तो बर्बाद हो जाता है या फिर समुद्र में चला जाता है। जबकि शेष आपूर्ति के लिए 1,869 घन किलोमीटर भू-जलराशि पर निर्भर रहना पड़ता है। जिसका मात्र 1,122 घन किलोमीटर जल उपयोग में आता है। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या भूजल पर निर्भर है, जबकि जल पर आधारित दुनिया की विभिन्न संस्थाओं ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भूगर्भ में अब जल नाममात्र ही रह गया है।
इस बात के महत्त्व को भी समझा जाना चाहिए कि देश की नदियों में बहने वाले लगभग 1,913 अरब साठ करोड घनमीटर जल की मात्रा का विस्तार देश के कुल बत्तीस लाख सत्तर हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर है। जबकि यहां का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32 लाख 80 हजार वर्ग किलोमीटर है। देश की नदियों में बहने वाला जल दुनिया की सभी नदियां बहने वाले जल का 4.5 प्रतिशत है। उचित जल प्रबंधन से इस अथाह जलराशि की ज्यादा से ज्यादा मात्रा को उपयोग में लाया जा सकता है। नदियों के संरक्षण की कोई व्यवस्था ही नहीं है। उचित देखरेख के अभाव में बहुत-सी नदियों में जल की मात्रा या तो लगातार कम होती जा रही है या फिर सूख रही है। एक शोध के अनुसार बिहार की 90 प्रतिशत नदियों में जल ही नहीं है। पिछले तीन दशक में कमला, घागरा और बलान जैसी बड़ी नदियों सहित यहां की 250 नदियां लुप्त हो चुकी हैं। यही झारखंड स्थिति झारखंड की भी है। जहां पिछले कुछ दशकों में 141 नदियां लुप्त हो चुकी हैं। इसका एक बड़ा कारण इनमें लगातार बढ़ता प्रदूषण है। देश की ज्यादातर नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है, इस पर सरकार और प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश की ऐसी प्रदूषित नदियों का आंकड़ा तीन सौ को भी पार कर हो गया है। जिनमें से 225 नदियों के पानी की स्थिति काफी खराब है। इनमें दिल्ली में दिल्ली की यमुना नदी का पहला स्थान है।
नदियों के के प्रदूषण के मामले में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है। जहां 43 नदियां लुप्त होने की कगार पर हैं। इसके बाद असम की 28, गुजरात की 17, बंगाल की 17, कर्नाटक की 15, केरल और उत्तर प्रदेश की 13-13, मणिपुर और ओडिशा की 12-12, मेघालय की 10, जम्मू-कश्मीर की 9 नदियां लगातार सूखती जा रही हैं। नदियों के नदियों को प्रदूषित होने से बचाने के प्रयास किए जाने चाहिए। देश में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जल का अभाव है। इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि एक जल-समृद्ध देश होने के बावजूद सरकारी और प्रशासनिक स्तर की लापरवाहियों सेे यहां की एक बड़ी जनसंख्या जल से वंचित है। सरकार और प्रशासन की तरफ से न तो कभी जल प्रबंधन को महत्व दिया गया है, न ही जल संचयन और जल बर्बाद होने से बचाने के लिए लोगों में जागरूकता लाने के प्रयास किए। जिससे देश में बहुत सारा जल या तो व्यर्थ चला जाता है या फिर बर्बाद कर दिया जाता है। इस देश के सभी भागों में एक जैसी है। देश के महानगरों, दूसरे शहरों में 17 से 44 प्रतिशत जल पानी की टंकी में लगे वाॅल्व के खराब होने के कारण बर्बाद हो जाता है। इसी तरह विभिन्न पाइप लाइन क्षतिग्रस्त होने के कारण भी भारी मात्रा में जल व्यर्थ जला जाता है। इसी तरह दिनचर्या की विभिन्न जरूरतों को पूरा करने के लिए भी जरूरत से कहीं ज्यादा जल का इस्तेमाल करके जल की बर्बादी की जाती है।
ये विडंबना है कि दुनिया का एक जल-समृद्ध देश होने के बावजूद भारत में उचित जल प्रबंधन और योजनाओं के सही निष्पादन के अभाव में देश की एक बड़ी जनसंख्या जल से वंचित है। वास्तविकता यह है कि देश में जल का अभाव किसी मौसम विशेष में ही नहीं होता, बल्कि ये तो अब हर रोज की बात है। ये बात जरूर है कि गर्मियों में जल के अभाव की मार कुछ ज्यादा पड़ती है। गर्मी के मौसम में भू-जल का स्तर गिरने से जल की कमी सामान्य सी बात है। इस कमी को पूरा करना सरकार और प्रशासन का काम है, जो उचित जल प्रबंधन से निश्चित ही किया जा सकता है। सरकार के सामने जहां देश में जलापूर्ति करना एक बड़ी चुनौती है वहीं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना भी एक बड़ी जिम्मेदारी है। जल की कमी को दूर करने के लिए सरकार को जल प्रबंधन को लेकर कोई ठोस नीति बनाकर उसको प्रभावी ढंग से लागू करना होगा। उचित जल प्रबंधन से ही देश में उपलब्ध कुल जलराशि की ज्यादा से ज्यादा मात्रा को उपयोग में लाकर जल संकट जैसी स्थिति से बचा जा सकता है।
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