भारत इस समय जल संकट के भयावह दौर से गुजर रहा है जो आने वाले सालों में और ज्यादा गहराता जायेगा। भारत वो देश है जिसे जल-समृद्ध देश कहा जाता है उसी देश के 21 बड़े शहरों का भूमिगत जल 2021 तक पूरी तरह खत्म हो जाएगा। नदियां-तालाब सूख चुके हैं, किसी दौर में नदियां ही नदियां दिखने वाले इस देश की 4,500 नदियां सूख चुकी हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 40 प्रतिशत लोगों तक पानी की पहुंच नहीं होगी।
जामक गांव की तरह ही जखोल गांव की 50 महिलाओं ने भी जल संरक्षण किया। ये योजना जामक गांव की तुलना में छोटी है, लेकिन इस गांव के लिए पर्याप्त है। इस गांव के लोग भी पानी की कमी से जूझ रहे थे। उत्तरकाशी से 60 किलोमीटर दूर बसा जखोल गांव में पानी के संकट से निपटने के लिए योजना जनवरी 2019 में बनाई। इस गांव की महिलाओं ने पानी के संकट को हल करने वाली इस योजना में खूब मेहनत की। महिलाओं ने काम को संचालित करने के लिए ‘मां दुर्गा ग्राम कृषक समिति’ का गठन किया।
इस जल संकट से बचने का एक ही तरीका है जल संरक्षण। फिर से नदियों, तालाबों और पोखरों को पुनर्जीवित करना होगा। इस दिशा में कई लोग काम भी कर रहे हैं। जहां पूरा देश जल संकट से त्राहि-त्राहि कर रहा है, वहीं उत्तराखंड के उत्तरकाशी के दो गांव जामक और जखोल में महिलाओं ने स्वयं ही जल प्रबंधन का तरीका ढूंढ़ लिया है। अब इन गांवों के परिवारों को देश की बाकी हिस्सों की तरह पानी के लिए सरकार से गुहार लगाने की जरूरत नहीं है।
जामक गांव
उत्तरकाशी के जामक और जखोल गांव की महिलाओं ने सामूहिक परिश्रम से जल संरक्षण कर एक मिसाल कायम की है। इस सराहनीय काम से सिर्फ इन दोनों गांव के परिवारों की प्यास ही नहीं बुझ रही है बल्कि उस क्षेत्र के जल स्रोत भी रिचार्ज हो रहा है। जल संरक्षण के इस प्रबंधन में इन गांवों की मदद और जानकारी रिलायंश फाउंडेशन ने की। 1991 में उत्तराखंड विनाशकारी भूकंप आया था, जिससे पहाड़ों में कई जगहों पर भारी जान-माल का नुकसान हुआ था। तब पहली बार जामक चर्चाओं में आया था।
उत्तरकाशी से 16 किमी. दूर जामक गांव में भूकंप की वजह से काफी नुकसान हुआ था। उस भूकंप ने कई घरों को तो तबाह किया था, साथ ही 76 लोगों की जान भी ले ली थी। भूकंप की वजह से इस गांव में पानी का संकट बढ़ गया था, उस संकट को पेयजल निगम ने सुलझाया। पेयजल निगम ने इस गांव में पाइप लाइन से पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर दी, लेकिन वो कुछ ही साल तक कारगर रही। 2006 के बाद बारिश के हर मौसम में गदेरे के उफान आते और पाइप लाइन को उखाड़ फेंकते। उसके बाद गांव के लोग फिर से जल संकट में घिर जाते।
साल 2016 तक गांव वाले ऐसे ही पानी की कमी से जूझते रहे। 2016-17 में रिलायंस फाउंडेशन ने गांव वालों की समस्याएं जानी, तब उनको सबसे बड़ी समस्या पानी की मिली। गांव की महिलाओं ने फाउंडेशन के सामने गांव से ढाई किलोमीटर दूर स्थित प्राकृतिक स्रोत से पानी की समुचित व्यवस्था करने की गुजारिश की, रिलायंस फाउंडेशन पानी की व्यवस्था के लिए मदद के लिए तैयार हो गया। गांव की महिलाएं ने इस योजना को पूरा करने का जिम्मा खुद ही उठा लिया। गांव की महिलाओं ने ‘मां राजराजेश्वरी ग्राम कृषक समिति’ का गठन किया। इस समिति की अध्यक्ष अमरा देवी बताती हैं कि इस पानी के प्रबंधन को पूरा करने में छह महीने लगे।
जखोल गांव का जल संरक्षण
छह महीने तक गांव की हर महिला ने मेहनत की और तब ये जाकर ये योजना पूरी हुई। आज उस मेहनत का फल इस गांव को मिल रहा है। रोजना 70 लीटर से अधिक पानी यहीं से लेते हैं, अब उन्हें पानी के लिए भटकना नहीं पड़ता है। जामक गांव की तरह ही जखोल गांव की 50 महिलाओं ने भी जल संरक्षण किया। रिलायंस फाउंडेशन ने इस गांव में भी पानी की व्यवस्था के लिए मदद की। ये योजना जामक गांव की तुलना में छोटी है, लेकिन इस गांव के लिए पर्याप्त है। इस गांव के लोग भी पानी की कमी से जूझ रहे थे। उत्तरकाशी से 60 किलोमीटर दूर बसा जखोल गांव में पानी के संकट से निपटने के लिए योजना जनवरी 2019 में बनाई। इस गांव की महिलाओं ने पानी के संकट को हल करने वाली इस योजना में खूब मेहनत की। महिलाओं ने काम को संचालित करने के लिए ‘मां दुर्गा ग्राम कृषक समिति’ का गठन किया।
इस समिति का अध्यक्ष बनाई गई कुसुमलता रमोला। वे कहती हैं ये योजना गांव की महिलाओं की मेहनत से ही पूरी हो पाई है। इस योजना में महिलाओं ने दस हजार रुपए की लगाये हैं। इन दोनों गांव की महिलाओं ने जल संरक्षण की मिसाल पेश की है। इस योजना ने उनके जल संकट को ही दूर नहीं किया बल्कि अब उनको फायदा भी हो रहा है। इस योजना से उनके घर में पानी आता है और उस पानी से गांव की महिलाएं अपने घर के आस-पास सब्जियां उगाती हैं। उन सब्जियों को बाजार में बेचकर कुछ आमदनी भी हो जाती है। इन गांव की महिलाओं की तारीफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 31 जून 2019 को ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम में की।
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