पूरे देश में पानी के लिए हाहाकार मचा है, तब लगातार यह भी कहा जा रहा है कि कुछ ही सालों में देश में पानी की भारी कमी होने वाली है। चेन्नई में लगभग वाटर इमरजेंसी की हालत है। रांची में पानी के लिए चाकू चल रहे हैं, नदी नाले सूख चुके हैं। ऐसे में हमें पानी को बचाने की जरूरत है। पानी को बचाना सिर्फ सरकार का काम नहीं, हमारी जरूरत है। अगर हम आज पानी को नहीं सहेजेंगे तो कल पानी की किल्लत से हमें ही जूझना पड़ेगा। कुछ लोगों को इस संकट का अंदेशा लग गया है और वे जल को सहेजने में लगे हुए हैं।
पूरे देश में अपनी नदियों को उद्योगों के कचरे ने बर्बाद कर दिया है, बाकी की रही कसर कमी हमने प्लास्टिक और दूसरे सामान को पानी में फेंककर पूरी कर दी। इस समय हम सबको चेतने की जरूरत है। बारिश आ रही है, हम सब अपने तरीके से पानी बचाने की कोशिश कर सकते हैं। बहुमंजिली इमारतों में बेहताशा पानी खर्च होता है। इन इमारतों में वर्षा जल संचयन के लिए अभियान चलाए जा सकते हैं।
बुंदेलखंड का जखनी गांव
बुंदेलखंड सूखा और पानी की किल्लत के लिए जाना जाता है। लोगों को पानी के लिए हर रोज जूझना पड़ता है लेकिन इसी बुंदेलखंड का जखनी गांव एक मिसाल बन गया है। बुंदेलखंड के जखनी गांव की चर्चा करना जरूरी है बुंदेलखंड अरसे से पानी की भारी कमी से जूझ रहा है। मगर जखनी के कुंओं में इतना कितना पानी है कि हाथ से बाल्टी डुबोकर पानी भरा जा सकता है। गांव के सभी बत्तीस कुंओं में पानी ही पानी है। यहां के खेतों में लहलहाती फसलें खड़ी हैं। छह तालाब पानी से लबालब हैं। जिस बुंदेलखंड को पानी की कमी के लिए जाना जाता है उसी क्षेत्र में एक गांव पानी से लबालब है आखिर ये हुआ कैसे?
जखनी गांव में लबालब पानी की वजह है कि लोगों ने पानी इकट्ठा करने के लिए सरकार को मुंह नहीं तांका। बल्कि पानी बचाने के लिए अपने पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल किया। इससे लागत भी कम आई और पानी भी खूब इकट्ठा हुआ। यहां के लोगों का कहना है कि यह सब 8 साल पहले शुरू हुआ। लोग पानी की कमी से परेशान थे, पानी न होने से खेतों में भी कुछ नहीं होता था, पशु मर जाते थे। लोग रोजी-रोटी की तलाश में गांव छोड़ रहे थे, गरीबी चरम पर थी। तब गांव के लोगों ने सर्वोदय आदर्श जल ग्राम अभियान समिति बनाई। गांव की सारी नालियों और बारिश के पानी को तालाबों की तरफ मोड़ दिया। इससे तालाब में पानी भी भरा और भूजल स्तर भी सुधरा। इस पानी को खेती और पशुओं को काम में लाया गया। इसके अलावा खेतों में पारंपरिक तरीके से मेड़ें बनाईं गईं।
खेतों में पानी भर जाने से धान की फसल उगाना आसान हो गया। धान की फसल के लिए खेतों में 7-8 महीने पानी भरा रहता है जिससे आसपास का भूजल स्तर भी सुधरा। बारिश के पानी का एक बूंद भी बर्बाद न हो इसके लिए हर घर में व्यवस्था की गई। आज आज हालत यह है कि किसान न केवल खूब फसलें उगा रहे हैं बल्कि भारी मुनाफा भी कमा रहे हैं और खेतों में उगाई गई सब्जी धान आदि को आसपास के बाजार में बेच भी रहे हैं। इस गांव की खुशहाली देखकर आसपास के बाकी गांव के लोग भी ऐसा करने का प्रयास कर रहे हैं। जो लोग गांव से पानी की कमी के कारण नाता तोड़ चुके थे, अब वे लौटने रहे हैं।
महाराष्ट्र का हलगारा गांव
इसी तरह महाराष्ट्र के दत्ता पाटिल अमेरिका के कैलिफोर्निया में रहते थे। पेशे से इंजीनियर हैं, वह हर साल अपने गांव हलगारा आते हैं। उन्होंने सालों तक अपने गांव में पानी की कमी को झेलते लोगों को देखा था, फसलें उजड़ चुकी थीं। ऐसा लगता था कि जैसे हरे-भरे खेतों की जगह दूर तक रेगिस्तान फैला हो, भूजल 800 मीटर नीचे पहुंच गया था। तब उन्होंने अपने गांव की सूरत बदलने की सोची। क्योंकि कैलिफोर्निया जहां वे रहते हैं, वहां भी पानी की कमी है। लेकिन पानी का उपयोग इस तरीके से किया जाता है कि पानी कह कमी महसूस ही नहीं होती। वहां का भूजल स्तर भी पानी की भारी कमी के बावजूद ज्यादा नीचे नहीं है। पाटिल ने पहले खुद दस लाख रूपए दिए और फिर याहू कंपनी से मदद की गुहार लगाई।
याहू कंपनी ने सत्तर लाख रुपए इस गांव की मदद के लिए भेजे। दत्ता जहां भी जाते लोगों से अपील करते कि उनके गांव की मदद करें। वो बताते हैं, कभी अगर वे फिल्म देखने गए तो फिल्म के बाद स्टेज पर चढ़कर लोगों से मदद करने की प्रार्थना करने लगे, उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से मदद मांगी। इसके साथ-साथ वे गांव के लोगों को समझाते कि जीवन में खुशहाली लाने के लिए कैसे ज्यादा से ज्यादा पानी बचाएं। उन्होंने लोगों को समझाया कि जितनी भी बारिश होती है, उस पानी को इकट्ठा किया जाए। इसके लिए बांध बनाये जाएं। तालाब और कुंओं को पुनर्जीवित किया गया। ज्यादा से ज्यादा पर लगाए गए, जिनकी उम्र अधिक होती है। हजारों आम के पेड़ भी रोपे गए, इससे गांव में पानी की कमी तो कम हुई ही, चारों तरफ हरियाली भी बढ़ने लगी। सच तो यह ही है कि पेड़ और पानी एक-दूसरे के पूरक होते हैं। अब हलगारा पानी के मामले में मॉडल गांव कहा जाता है। अब वहां 200 करोड़ लीटर पानी जमा है, सूखे का कहीं नामोनिशान नहीं है और किसान खेती से खूब मुनाफा कमा रहे हैं।
अन्ना हजारे का प्रयास
उत्तराखंड में भी ऐसे प्रयास कई सालों से चल रहे हैं। वहां के दूध टोली गांव में भी पानी बचाने को लेकर पारंपरिक तरीके अपनाकर बिना सरकारी सहायता के पानी की कमी को पूरा कर रहे हैं। अन्ना हजारे ने वर्षों पहले अपने गांव रालेगांव सिद्धि में पानी को बचाने और शुद्ध पानी घर-घर पहुंचाने का प्रयास किया था। इससे गांव के जो लोग बाहर चले गए थे, वे भी वापस लौट आए। दूषित पानी के कारण बड़ी संख्या में बच्चों की मृत्यु होती थी, अब वो भी खत्म हो गई। दुनिया भर में सालों से चेतावनी दी जा रही है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। अपने देश में वो दिखाई भी दे रहा है। नदियां प्रदूषित हैं, गंगा-यमुना जैसी नदियों का पानी पीने लायक तो क्या जानवरों के नहाने लायक भी नहीं बचा है। इन नदियों में ऑक्सीजन ई तक तक जा पहुंचा है।
पूरे देश में अपनी नदियों को उद्योगों के कचरे ने बर्बाद कर दिया है, बाकी की रही कसर कमी हमने प्लास्टिक और दूसरे सामान को पानी में फेंककर पूरी कर दी। इस समय हम सबको चेतने की जरूरत है। बारिश आ रही है, हम सब अपने तरीके से पानी बचाने की कोशिश कर सकते हैं। बहुमंजिली इमारतों में बेहताशा पानी खर्च होता है। इन इमारतों में वर्षा जल संचयन के लिए अभियान चलाए जा सकते हैं। अब जब भी ऐसे बहुमंजिल प्रोजेक्ट्स शुरू किए जाएं तो बिल्डरों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए कि इमारत में पानी साफ करने और वर्षा जल संचयन की व्यवस्था हो। अस्पतालों, होटलों, माॅल्स, रेलवे स्टेशन, बड़ी कंपनियों के दफ्तरों आदि में उपयोग हुए पानी को साफ कर उसे फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाया जा सकता है। बगीचों और पार्कों को सींचने के लिए भी यह पानी काम आ सकता है, इससे भूजल स्तर भी बढ़ सकता है। सोचने से काम चलने वाला नहीं है कि जब होगा तब देखा जाएगा। यह किसी एक व्यक्ति का नहीं, सरकारों का काम है। एक बार नष्ट का पानी हमें दोबारा कभी नहीं मिलेगा। जल के बिना जीवन नहीं है, यह बात मुहावरों या कहावतों में नहीं हमें अपने जीवन में उतारने होगी।