सारांश:
प्राकृतिक जल संसाधन के स्रोत दिन-प्रतिदिन नष्ट होते चले जा रहे हैं। आज मनुष्य के सामने जल संकट एक विकराल समस्या के रूप में प्रकट हुई है। हमारे देश में शुद्ध पेयजल की गम्भीर समस्या उत्पन्न हुई है। नदियों का देश होने के बावजूद भी हमारे देश के कई भागों में आज शुद्ध पेयजल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। यह समस्या सरकार के साथ-साथ सम्पूर्ण मानव जाति के लिये एक चुनौती साबित हो रही है बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, मृदा, अपरदन तेजी से हो रहे वन विनाश ने जल संकट को बढ़ावा दिया है। वर्तमान अध्ययन शिवपुरी जिले खनियाधाना एवं कोलारस जनपद में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के तहत किया गया। जिले में यह योजना वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक चली। इसमें जल संरक्षण एवं संवर्धन के कार्यों की संख्या 974 थी। जिसमें तालाब, चेक डेम, नाला बंधान, स्ट्रैच, सिंचाई कूप एवं पेयजल कूप (कपिल धारा) आदि सम्मिलित थे। इन कार्यों से जहाँ एक ओर जल संरक्षण की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कार्य हुआ, वहीं इस जल संरक्षण से 5281 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई क्षमता में वृद्धि भी हुई है। दूसरी ओर खेत तालाबों की संख्या 2422 है। इसमें 9934 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई है। वहीं महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के द्वारा पेयजल की विकराल समस्या से काफी हद तक निजात मिली है। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा भी इस दिशा में कई महत्त्वपूर्ण परियोजनायें चलाई जा रही हैं जो जल संरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं जिनसे काफी हद तक कई क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है कृषि के क्षेत्र में भी इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं।
Abstract
Source of Natural water resource are diminishing day by day. Today the water crisis has manifested itself as a very big problem. In our country the potable water is not a available in many part of the country despite India being a land of rivers. This problem is a great challenge not only for the Government but for the entire mankind growing population, industrialization soil erosion and loss of forests cover has aggravated the problem manifold. In the present study, in the blocks of Khaniadhana and Kolaras in Shivpuri district in Madhya Pradesh it was found that under MGNREGA. 974 works have been undertaken for water conservation and enrichment since the inception of the programme in the years 2006 to 2010. This includes ponds, check dams, stop dams, water conservation structures, irrigation wells, drinking water wells etc. These water conservation efforts have resulted in growth of irrigation facilities in 5281 ha. of land and the number of khet talab is 2422, which have helped in the irrigation of 9934 ha of land. MGNREGA programme have eased the problem of drinking water to a large extent. If we see the MGNREGA programme in the environmental perspective it seems that MGNREGA has not only beautified the villages but it is also a positive effort in the direction of water conservation.
प्रस्तवाना
जल सृष्टि के पाँच तत्वों में से एक है। जीवन के लिये अनिवार्य तीन पदार्थों में प्राण एवं वायु के बाद पानी का दूसरा स्थान है। प्रचुर मात्रा में जल का होना हमारी पृथ्वी की विशेषता है यही कारण है कि पृथ्वी पर जीवन सम्भव है। हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग जल मग्न है जबकि पेयजल के रूप में केवल इस पूरे जल का केवल 1 प्रतिशत भाग ही उपयोग हो पाता है बाकी 97 प्रतिशत जल महासागरों एवं सागरों में खारे जल के रूप में और 2 प्रतिशत जल बर्फ के रूप में पाया जाता है। प्रकृति में जल के प्रमुख स्रोत के रूप में वर्षाजल ही है। पृथ्वी पर उपस्थित जल को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- पृष्ठीय जलस्रोत एवं भौमिक जलस्रोत लेकिन सामान्यतः पृष्ठीय जल का उपयोग किया जाता है। भारत विश्व का सबसे बड़ा कृषि प्रधान देश है। देश के 80 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करते हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनमें से एक समस्या शुद्ध पेयजल की है। हमारे देश की 16 प्रतिशत आबादी को पीने योग्य शुद्ध पेयजल नहीं मिलता है। इससे देश की जनता का स्वास्थ्य ही नहीं समूची आर्थिक उत्पादकता पर भी बुरा असर पड़ता है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़ और देश के कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ गर्मियों के समय में शुद्ध पेयजल के लिये मीलों दूर से व्यवस्था करनी होती है वहीं देश के कई राज्यों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में पेयजल में आर्सेनिक एवं फ्लोराइड की मात्रा मानव स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। पर्यावरणीय संरक्षण और निरन्तर आर्थिक विकास के लिये जल प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है।
उद्देश्य
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी योजना के अंतर्गत किये गये जल संरक्षण के कार्यों का आर्थिक विश्लेषण, जल संरक्षण में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी परियोजना की प्रबन्ध की भूमिका को अधिक प्रभावी बनाना, महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के अंतर्गत किये गये कार्यों से भूमि संरक्षण का प्रभावी आकलन करना, ग्रामीण विकास में जल संसाधनों की भूमिका का विश्लेषण।
सामग्री एवं विधि
वर्तमान अध्ययन शिवपुरी जिले के खनियाधाना एवं कोलारस जनपद में किया गया है। शिवपुरी जिला 260 05’’ 240 40’’ पूर्वी देशान्तर तथा 770 01’’ 780 29’’ उ. अक्षांश पर स्थित है। जिले में कुल आबादी 14,41,950 (2001 की जनगणना के अनुसार) तथा जिले को भौगोलिक दृष्टि से 7 तहसील, 8 ब्लॉक एवं 1326 गाँवों में बाँटा गया है। वर्तमान अध्ययन दिसम्बर 2010 से जून 2011 तक किया गया था। जिसे पूर्ण करने के लिये एक प्रश्नोतरी तैयार की गई। तैयार प्रश्नोतरी के आधार पर वर्तमान अध्ययन करने के लिये खनियाधाना एवं कोलारस जनपद की 16 ग्राम पंचायतों को चुना गया। चुनी गई ग्राम पंचायतों का अध्ययन प्रश्नोत्तरी द्वारा कार्य स्थल पर जाकर किया गया।
परिणाम एवं विवेचना
शिवपुरी जिले में महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजागार गारण्टी योजना के अन्तर्गत यह अध्ययन वर्ष 2006 से वर्ष 2010 तक किया गया। जल संरक्षण एवं संवर्धन के कार्यों की संख्या 974 है। जिसमें तालाब, चेक डेम, सिंचाई कूप, आदि सम्मिलित हैं। जहाँ एक ओर जल संरक्षण की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम था वहीं इस जल संरक्षण से 5281 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई। दूसरी ओर खेत तालाबों की संख्या 2422 थी। इसमें 1934 हेक्टेयर भूमि में सिंचाई क्षमता में वृद्धि हुई। जिले में मनरेगा के तहत जल संरक्षण की दिशा मे अनेक कार्य सम्पन्न हुये जिनमें से खनियाधाना जनपद के 11 ग्राम पंचायतों के 11 गाँवों में मनरेगा के तहत जल संरक्षण की दिशा में निर्मित 13 तालाब, 24 चेकडेम, 19 सिंचाई कूप (सिंचाई के लिये कुएँ), 27 पेयजल कूप एवं 4950 स्ट्रैच (जल संरक्षण के लिये गड्ढे) बनाये गये (सारणी 1)। वहीं कोलारस जनपद में 05 ग्राम पंचायतों के 05 गाँवों में 05 तालाब, 06 चेकडेम, 20 सिंचाई कूप (सिंचाई के लिये कुएँ) 04 पेयजल कूप एवं 1000 स्ट्रैच (जल संरक्षण के लिये गड्ढे) एवं 19 खेत तालाबों का निर्माण किया गया (सारणी 2)।
सारणी 1- मनरेगा के तहत खनियाधाना जनपद में सम्पन्न विभिन्न जल संरक्षण स्रोत का विवरण | ||||||
क्र.सं. | ग्राम पंचायत का नाम | तालाब | चेकडैम/स्टोक डेम | सिंचाई कूप | पेयजल कूप (कपिल धारा) | स्ट्रैच (जल संरक्षण के लिये गड्ढे) |
1 | बुधौन राजापुर | 03 | 03 | - | - | - |
2 | वीरपुर | 04 | 03 | 03 | 02 | 700 |
3 | काली पहाड़ी चदेरी | 01 | 03 | - | 02 | - |
4 | पडरा | - | 02 | - | 03 | 1000 |
5 | श्राही | - | 03 | 05 | 01 | - |
6 | नगरेला | - | 05 | - | - | - |
7 | जुन्गीपुर | - | 02 | 02 | 02 | 750 |
8 | देवखो | 02 | - | 06 | 01 | - |
9 | मसूरी | 01 | 03 | - | - | - |
10 | विशनपुरा | - | - | 01 | 09 | 500 |
11 | कमालपुर | 02 | - | 02 | 07 | 2000 |
सारणी 2- मनरेगा के तहत कोलारस जनपद में सम्पन्न विभिन्न जल संरक्षण स्रोत का विवरण | |||||||
क्र.सं. | ग्राम पंचायत का नाम | तालाब | चेकडैम/स्टोक डेम | सिंचाई कूप | पेयजल कूप (कपिल धारा) | स्ट्रैच | खेत तालाब (जल संरक्षण के लिये गड्ढे) |
1 | भाटी | 01 | - | - | - | - | 07 |
2 | वेहटा | 01 | - | - | 01 | - | 03 |
3 | कायज्ञ | - | 02 | - | 01 | - | 02 |
4 | राजगढ़ | 01 | 02 | 20 | 01 | 1000 | 02 |
5 | भडोता | 02 | 02 | - | 01 | - | 05 |
मृदा जलस्तर में वृद्धि करने में मनरेगा योजना मूल रूप से आधारभूत ढाँचा निरंतर तैयार कर रही है। जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में कारगर साबित हो रही है जिससे काफी हद तक पेयजल समस्या का समाधान हुआ है।
मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में पेयजल की एक विकराल समस्या थी। शिवपुरी जिले की 200 से अधिक ग्राम पंचायतों में अप्रैल, मई जून महीने में पेयजल समस्या एक विकराल रूप धारण कर लेती है। इसी के साथ जिले में वर्षा औसत से कम होने के कारण जिले में सिंचाई के लिये पर्याप्त पानी न मिलने के कारण तथा जिले के कई हिस्सों में फसलों से पर्याप्त मात्रा में अनाज का उत्पादन न होने के कारण जिले में भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो जाती थी जिससे जिले की 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी पलायन कर जाती थी। लेकिन आज महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के कारण जिले में काफी हद तक पेयजल एवं सिंचाई की समस्या हल हुई है। वहीं वर्षाजल पर निर्भर खेती द्वारा कपिल धारा कूपों के प्रयास से खेतों में सिंचाई की जा रही है। वहीं कुओं के जल स्तर में भी वृद्धि हुई है।
निष्कर्ष
बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण प्राकृतिक संसाधनों का दिन-प्रतिदिन ह्रास होता चला जा रहा है। जल संसाधन मानव जीवन के लिये एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जल की कमी के कारण आज विश्व का प्रत्येक देश चिंतित है। इस दिशा में प्रत्येक देश के द्वारा अपने-अपने स्तर पर जल संरक्षण के प्रयास किये जा रहे हैं। भारत सरकार एवं राज्य सरकारों के द्वारा भी इस दिशा में कई महत्त्वपूर्ण परियोजनाएं चलाई जा रही है जो जल संरक्षण की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं जिससे काफी हद तक कई क्षेत्रों में पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। वहीं कृषि के क्षेत्र में भी इसके सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। अगर हम मनरेगा योजना के इस प्रयास पर पर्यावरण को केन्द्रित करके देखें तो यह प्रतीत होता है कि गाँव के लोगों को रोजगार के साथ-साथ ताल पोखरों के सुन्दरीकरण के संरक्षण की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। भूमिगत जल दोहन को रोकने, वर्षाजल का तालाबों, पोखरों एवं बाँध बनाकर भूमिगत जल ह्रास को रोका जा रहा है। मध्य प्रदेश के प्रत्येक जिले में सरकार के साथ-साथ आमजन भी सरकार के साथ जल संरक्षण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।
संदर्भ
1. निशीथ राकेश शर्मा, जल संसाधन उपयोग समस्या एवं समाधान, प्रतियोगिता दर्पण, (2001) 2161-2166.
2. त्रिपाठी केपी एवं कुमार पंकज, मनरेगा-कृषि पर्यावरण एवं लघु कृषकों के लिये वरदान, वसुन्धरा 19 (3) (2010) 1-2.
3. परती भूमि, धधकती धरती, परती भूमि विकास समिति, (3) 1 (2003) 42.
4. सेंगर आरएस एवं राव वी पी, धरती पर पानी बचाने की चुनौती, कुरुक्षेत्र. 58(7) (2010) 3-8.
5. गौतम नीरज कुमार, जल प्रबंधनः वर्तमान सदी की आवश्यकता, कुरुक्षेत्र 58 (7) (2010) 13-18.
6. त्रिपाठी कन्हैया, पानी के लिये संघर्ष कितना कारगर, कुरुक्षेत्र 58(7)(2010) (26-29).
7. बिष्ट राजेन्द्र सिंह, स्वच्छ पर्यावरण में स्वच्छ जीवन का विकास, कुरुक्षेत्र 58(7) (2006) 26-29.
8. नरवरिया यश्पाल सिंह, मनरेगा और पंचायत की भूमिका, एकता टुडे 1(10) (2011) 9-10.
सम्पर्क
यशपाल सिंह नरवरिया, Yashpal Singh Narwaria
जलीय जीव प्रयोगशाला, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर 474 001 (म.प्र.), Aquatic Biology Laboratory, Jiwaji University, Gwalior 474 001 (M.P.)