जल संसाधन के आयोजन एवं प्रंबधन मे जलविज्ञानीय अन्वेषण का योगदान

Submitted by Hindi on Thu, 01/19/2012 - 17:04
Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
भारत की जल-संसाधन परियोजनाएं कम आंकड़ें व पुरानी पद्धतियों के आधार पर बनी है, फलस्वरूप इनकी वास्तविक क्षमता आंकलित क्षमता से भिन्न है। तदर्थ आधार पर जल संसाधनों का विकास नियंत्रण और उपयोग लम्बे समय तक नहीं चल सकता। इसके लिए समकेतिक योजना समग्र दृष्टि के रूप में तैयार की जाए। जल के अधिकतम उपयोग, अधिकतम काम एवं नियंत्रण के लिए परियोजना में संबंधित सभी पक्षों एवं कारणों पर विचार जरूरी है। सभी संभावित योजनाओं से संबंधित कार्यों के विकल्प और उनकी विस्तृत पड़ताल आवश्यक है।

इन सबका समावेश परियोजना में हो इसके लिए ठोस आधार की आवश्यकता है जो भावी अनुसंधानों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। अन्वेषण तो बहुआयामी है, परन्तु यहां तो मुख्यतः जलविज्ञानीय तथा कुछ प्रमुख मौसम विज्ञानीय आंकड़ो के प्रेक्षण की ही चर्चा की गई है। इस आधार पर बनी हुई योजना कम लागत की एवं अधिक सक्षम होगी। प्रकृति के बदलते हुए परिवेश में यह आवश्यक हो गया है कि संगणक के जलविज्ञानीय प्रोग्राम के सापेक्ष में आंकड़ों का अधिक से अधिक प्रेक्षण, संकलन एवं विश्लेषण तथा अनुप्रयोग हो। इसके लिए जरूरत है प्रेक्षण में सरल, सस्ती एवं नयी तकनीक अपनाने की जिससे नवीन निर्देशों के विकास को बल मिल सके।

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