जलाक्रांत क्षेत्रों में जायद धान – उत्पादन की सम्भावनाएं एवं लाभ

Submitted by Hindi on Fri, 01/06/2012 - 16:29
Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
उत्तर प्रदेश में सतही जल एवं भू-गर्भ जल के अनियोजित एवं असंतुलित उपयोग से पर्यावरण एवं कृषि उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जलाक्रांत एवं अर्धजलाक्रांत क्षेत्रों में ऊसर/परती भूमि में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। खाद्यान्न उत्पादन एवं उत्पादकता गंभीर रुप से प्रभावित हुआ है। दलहन एवं तिलहन का उत्पादन घटा है। भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण हुई है। जलाक्रांत प्रभावी कुछ विकास खंडों में फसल सघनता प्रदेश औसत से भी कम है। जायद की फसल सघनता बहुत ही निराशाजनक है। जलाक्रांत एवं अर्धजलाक्रांत क्षेत्रों के स्थाई सुधार के लिए बड़े पैमाने पर प्रदेश भर में ड्रेनेज कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, परंतु समस्या वर्ष प्रतिवर्ष बढ़ती ही जा रही है। यह तथ्य प्रमाणित हो चुका है कि कम सतही ढलाव वाले क्षेत्रों में सतह अपवाह प्रणाली से भू-जल स्तर में वांछित गिरावट सम्भव नहीं है। साथ ही यह भी सुनिश्चित हो चुका है कि खाद्यान्न उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए भू-जल स्तर का सुरक्षित सीमा में होना नितांत आवश्यक है। इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए जायद धान उत्पादन का प्रयोग बहुत ही प्रभावी हुआ है।

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