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राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
सर्वविदित है कि सभ्यता के साथ-साथ जल की महत्ता की अनिवार्यता को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। सम्पूर्ण भारतवर्ष के जल के नमूनों के विश्लेषण के उपरान्त अध्ययन से ज्ञात होता है कि कुछ संघटक कम मात्रा में पाये जाते हैं। एवं कुछ संघटक अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसी कारण से सभी संघटकों की अनुज्ञेय सीमा निर्धारित की गई है क्योंकि उनके अधिक या कम सीमा में होने से मानव तथा जीवों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार का जल में पाए जाने वाला एक संघटक फ्लोराइड है। पीने के पानी में यदि इसकी मात्रा अनुज्ञेय सीमा से अधिक है तो यह दातों के कुर्बुर होने एवं फ्लोरोसिस के लिए उत्तरादायी होता है। पीने के पानी में इसकी मात्रा अनुज्ञेय सीमा से कम होने पर इसका प्रभाव दंत क्षय एवं दातों के खराब होने के लिए उत्तरदायी होता है।
इस अध्ययन में 39 भूजल नमूनों को एकत्रित कर विश्लेषण के उपरांत यह पाया गया कि इस क्षेत्र में फ्लोराइड संघटक की मात्रा भारतीय मानक संघ (1991) द्वारा निर्धारित अनुज्ञेय सीमा से कम है (1-1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर) अध्ययन क्षेत्र में फ्लोराइड संघटक की अधिकतम मात्रा 0.8 मि.ग्रा. प्रति लीटर ही पाई गई है।
इस प्रकार यह पाया गया है कि अध्ययन क्षेत्र में भूजल को पीने हेतु उपयुक्त बनाने के लिए इस जल का “फ्लोरीडेशन” करना अति आवश्यक है।
इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें
इस अध्ययन में 39 भूजल नमूनों को एकत्रित कर विश्लेषण के उपरांत यह पाया गया कि इस क्षेत्र में फ्लोराइड संघटक की मात्रा भारतीय मानक संघ (1991) द्वारा निर्धारित अनुज्ञेय सीमा से कम है (1-1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर) अध्ययन क्षेत्र में फ्लोराइड संघटक की अधिकतम मात्रा 0.8 मि.ग्रा. प्रति लीटर ही पाई गई है।
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