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जल चेतना तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2012

मालवा के शाह होशंगशाह ने 15वीं सदी में इसे सामरिक कारणों से तुड़वाया तो तीन वर्ष तक पानी निकाले जाने के बाद उसका तल दिखाई दिया। इसके बाद दलदल 30 वर्षों तक बना रहा। जब यह सूख गया, तब इसमें खेती आरम्भ की गई। वर्ष 1335 में महाराज घड़सी ने जैसलमेर में 120 वर्ग मील लम्बा-चौड़ा घड़सीसर खुदवाया था। बंगाल में पोखरों की उज्वल परम्परा हैं। उन पोखरों में मछलियाँ भी पाली जाती हैं। हालाँकि अब वहाँ भी पोखर कम होते जा रहे हैं, जिस कारण मछली उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। एक समय था, जब देश में तालाब बनाने की होड़-सी लगी रहती थी। तालाब की जगह का चुनाव बुलई करते थे। गजधर जमीन की पैमाइश करते थे।
यही कारण है कि तालाब खुदवाने की जगह पाटने की सूचनाएँ ज्यादा मिलती हैं। लोग पीने तथा सिंचाई के लिये ट्यूबवेेल, पम्पसेट, हैण्डपम्प आदि पर जोर देते हैं, लेकिन तालाब का महत्त्व नहीं समझते।
जल स्रोत नष्ट होते जा रहे हैं। इस समय देश में पानी की भारी कमी है। यदि सरकार और जनता तालाब निर्माण की ओर एक बार जागृत हो जाए तो सम्भवतः पानी की कमी दूर की जा सकती है। मत्स्यपुराण में कहा गया है- दस कुओं के बराबर एक बावड़ी, दस बावड़ियों के बराबर एक तालाब, दस तालाबों के बराबर एक पुत्र और दस पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है।

नदियों से निकलने वाली नहरों को न तो चौड़ा किया जा रहा है और न ही उनकी साफ-सफाई हो रही है। नतीजतन उनका वजूद मिटता जा रहा है। इसके अलावा देश में कई राज्य और पहाड़ी क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ नहरें हैं ही नहीं। हैं भी तो अपर्याप्त। वर्षाजल या किसी झरने के पानी को रोकने के लिये बनाए जाने वाले तालाबों का प्रचलन अत्यधिक प्राचीन है। निचली धरती पर पानी भर जाने से कुछ तालाब अपने आप बन जाते रहे हैं। रामायण काल के तालाबों में श्रृंगवेरपुर का तालाब प्रसिद्ध रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के निदेशक डाॅ. बी.वी. लाल ने पुराने साक्ष्य के आधार पर इलाहाबाद से 60 किलोमीटर दूर खुदाई कर इस तालाब को खोजा है। यह तालाब ईसा पूर्व सातवीं सदी का बना हुआ है।
संजय गोस्वामी
डब्ल्यू. आई.पी., बी.ए.आर.सी., मुम्बई-85