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जल संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार
प्रस्तावना
पानी प्रधान प्राकृतिक संसाधन, मानव की बुनियादी जरूरत और बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा है। संसाधन के लिहाज से पानी को बांटा नहीं जा सकता है; बारिश, नदी के पानी और भूतल पर मौजूद तालाब व झीलों तथा भूगर्भ के पानी एक इकाई हैं जिनके सर्वांगीण व प्रभावी प्रबंधन की जरूरत है ताकि इसकी गुणवत्ता और उपलब्धता लम्बे समय तक सुनिश्चित की जा सके।
भारत की ग्रामीण आबादी का मूल पेशा कृषि है। भारत के कृषि उत्पादन और विकास में सिंचाई ने महती भूमिका निभाई है। राष्ट्रीय व क्षेत्रीय स्तरों पर कृषि का विकास सिंचाई में विकास के पैटर्न से जुड़ा हुआ है। सिंचाई के क्षेत्र में निवेश ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने व ग्रामीण विकास की कुंजी है। लम्बे समय से मानव की सम्पन्नता के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए कृषि उत्पादन में सिंचाई के विभिन्न व्यवस्थाअों के माध्यम से जल संसाधन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। भारत में लघु सिंचाई व्यवस्था के जरिये जल संसाधन का इस्तेमाल उसके प्राकृतिक रूप में किया गया। 2000 हेक्टेयर खेत में जब सिंचाई होती है तो उसे लघु सिंचाई कहा जाता है।
लघु सिंचाई के लिए पाँच तरह के ढांचे की व्यवस्था की जाती है - कुआँ खुदाई, सतही ट्यूबवेल, गहरा ट्यूबवेल, सरफेस लिफ्ट सिस्टम और सरफेस फ्लो सिस्टम।सरफेस फ्लो सिस्टम को छोड़ दें तो सभी सतही जल के ढांचे हैं।
मानव निर्मित हो या प्राकृतिक इन जलाशयों, टैंकों, पोखरों और इसी तरह के दूसरे ढांचों ने भारतीय कृषि को सदियों से पुष्पित व पल्लवित कर रखा है।
जलाशय वह ढांचा है जहाँ बर्फ से पिघला पानी, झरने का पानी, बारिश का पानी और ड्रेनेज का पानी इकट्ठा होता है या नाले अथवा नदी की राह मोड़ पानी को इसमें जमा कर रखा जाता है। पारम्परिक जलाशयों को कई नामों से जाना जाता है । मसलन महाराष्ट्र में इसे भंडरस, उत्तरी पश्चिमी महाराष्ट्र में इसे फाड़ सिंचााई, राजस्थान में खादिन और बाओलिस, गुजरात में बावड़ी, बिहार में अहर पाइन्स, पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में इसे डंग लद्दाख में जिंग नाम से जाना जाता है।
धार्मिक लिहाज से भी जलाशय बहुत महत्वपर्ण हैं। राजस्थान की पुष्कर झील, सिक्किम का गुरुडोंगमर और अन्य विख्यात झील धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है। केरल की वेम्बानाद झील और उत्तराखंड की भीमताल झील की नैसर्गिक खुबसूरती ने इन्हें पर्यटकों के लिए आकर्षक स्पॉट बना दिया है। जिन क्षेत्रों में बहुत कम बारिश होती है और लम्बे समय तक सूखा रहता है वहाँ पानी को स्टोर कर रखने का काम झील करती है।
लघु स्टोरेज टैंक को तालाब कहा जाता है और इनका संचालन मुख्य तौर पर समुदाय करता है। बड़े स्टोरेज टैंक जिनका आकार 20 से 2 हजार हेक्टेयर होता है, उनका निर्माण सरकारी विभाग या स्थानीय निकाय करते हैं।
सिंचाई के अलावा इन टैंकों/तालाबों और झीलों ने पेयजल आपूर्ति, पनबिजली, जैवविविधता, पर्यटन, संस्कृति और घरेलु इस्तेमाल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 1950-51 में कुल सिंचित क्षेत्र 22.60 मिलियन हेक्टेयर और शुद्ध सिंचित क्षेत्र 20.85 मिलियन हेक्टेयर थे। कृषि उत्पादन में इजाफे के लिए इस राष्ट्रीय सम्पदा को समृद्ध की जरूरत को समझते हुए सिंचाई को और विकसित करने को प्राथमिकता दी गयी। इसका परिणाम यह निकला कि सिंचाई की क्षमता 1950-51 में 22.6 मिलियन हेक्टेयर थी जो वर्ष 2010 में बढ़कर 107.2 मिलियन हेक्टेयर पर पहुँच गयी।
चौथी लघु सिंचाई (MI) जनगणना (2006-07) के मुताबिक लघु सिंचाई स्कीम के अंतर्गत लगभग 5 लाख टैंक, पोखर और स्टोरेज की मदद ली गयी और सिंचाई की क्षमता में 5.89 मिलियन हेक्टेयर की बढ़ोतरी गयी। 5 लाख टैंक, पोखर और स्टोरेज में से 0.80 लाख जलाशयों का कम इस्तेमाल या एकदम ही नहीं इस्तेमाल हुआ जिस कारण सिंचाई की क्षमता 1.95 मिलियन हेक्टेयर कम रही।
0.80 लाख जलाशयों में से 0.74 लाख जलाशय अस्थायी तौर पर जबकि 0.24 लाख जलाशय स्थायी तौर पर इस्तेमाल करने के लायक नहीं थे। इंडिया-डब्ल्यूअारअाईएस पोर्टल की ओर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के 0.01 हेक्टेयर में फैले 798908 जलाशय चिंहित किये गये थे। सभी जलाशयों को यूनिक अाइडेंटिफिकेशन नम्बर दिया गया था। वृहत् बांधों से जुड़े जलाशयों के बारे सूचनाएँ उपलब्ध हैं। इंडिया-डब्ल्यूअाईएस प्रोजेक्ट के तहत राज्यवार जलाशयों की सूची अनुबंध-1 में उपलब्ध है।
भारत की जलवायु अलग तरह की है। यहां तीन मानसून और इसके बाद लम्बे समय तक अवर्षा रहती है जिसकी वजह से यहाँ सिंचाई के लिए पानी के प्रबंधन में मानव हस्तक्षेप का लम्बा इतिहास रहा है। सैंकड़ों साल पहले जल को संचित करने के लिए तत्कालीन राजा टैंक बनवाया करते थे। इसका निर्माण मिट्टी को खोदकर किया जाता था। चूंंकि उस वक्त टैंक एक दूसरे से जुड़े होते थे इसलिए हमारा टैंक सिस्टम उन्नत हुअा करता था।
मानव निर्मित और समाज की सार्वजनिक संपत्ति ये टैंक अब भी भारत के अधिकांश हिस्सों में जीवन अवलंबन के तत्वों में शामिल हैं। रखरखाव में कमी और लोगों में घटी दिलचस्पी के कारण पारम्परिक व बेहद जरूरी इन जलाशयों की हालत बदतर होती जा रही है।
कुछ जलाशयों का महत्व इन वजहों से कम हो गया:
1. सामुदायिक टैंक व्यवस्था की जगह लोगों ने व्यक्तिगत लाभ आधारित भूजल व्यवस्था को तवज्जो दिया।
2. पारम्परिक जलाशयों की लगातार अनदेखी।
3. टैंक के तल में मिट्टी व कचरे का जमाव
4. फीडर चैनलों में जमाव
5. जलाशयों के बांधों में रिसाव व कमजोरी
6. टैंक के बाँध और किनारों, पानी के विस्तार स्थल और सप्लाई चैनलों पर अतिक्रमण
7. आवासीय प्रोजेक्ट व शहरीकरण के चलते जलाशयों के वहाव वाले क्षेत्र में जंगलों की कटाई की गयी जिस कारण जलाशयों का अस्तित्व मिटने लगा
8. डम्पिंग यार्ड के रूप में टैंकों का अंधाधुंध इस्तेमाल
इन वजहों ने जलाशयों की हालत को बद से बदतर बनाने में अपना पूरा योगदान दिया।इन पारम्परिक जलाशयों को पुनर्जीवित करने, उन्हें उनके वास्तवित स्वरूप में लाने के लिए भारत सरकार ने जलाशयों की मरम्मत, पुनर्जीवन और नवीकरण स्कीम शुरू किया है। इस स्कीम के बहुआयामी उद्देश्य हैैं मसलन जलाशयों की हालत सुधारना, इनकी क्षमता को बढ़ाना, ग्राउंड वाटर रिचार्ज, पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना, सिंचाई व्यवस्था को सुधारना ताकि कृषि उत्पादन में इजाफा हो, पानी के इस्तेमाल की दक्षता बढ़ाकर पर्यावरण में सुधार, प्रत्येक जलाशय के दीर्घावधि प्रबंधन के लिए स्वयं-सहायता व्यवस्था और समुदायिक भागीदारी, समुदायों की क्षमता बढ़ाना, जल प्रबंधन व पर्यटन का विकास, सांस्कृतिक गतिविधियाँ आदि।
कृषि से जुड़ी पायलट स्कीम के अंतर्गत राज्य सरकार को जनवरी 2005 से दसवीं पंचवर्षीय योजना के बाकी की अवधि के लिए केंद्रीय अनुदान दिया जायेगा। यह महसूस किया गया कि भारत के विभिन्न हिस्सों मेंं पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करवाने में यह प्रोग्राम अहम किरदार निभाएगा। जलाशयों की रक्षा और संरक्षण के लिए शहरी विकास मंत्रालय ने एक सुझाव भी जारी किया है जिसे सभी राज्य सरकारों के पास भेज दिया गया है।
1. पायलट स्कीम - 75 प्रतिशत केंद्रीय मदद और 25 प्रतिशत राज्य सरकार की हिस्सेदारी वाली स्टेट सेक्टर की इस स्कीम के लिए 300 करोड़ रुपये आवंटित किये गये हैं। इस पायलट स्कीम का मुख्य उद्देश्य जलाशयों को पुनर्जीवित करना और इसकी क्षमता बढ़ाना है ताकि सिंचाई की खोयी क्षमता को वापस पाया जा सके। इस पायलट स्कीम के तहत वे जलाशय ही फंडिंग के योग्य होंगे जिनकी सिंचाई क्षमता 40 से 2 हजार हेक्टेयर है। इस स्कीम में 15 राज्यों के 26 जिलों के 1098 जलाशयों को शामिल किया गया और मार्च 2008 तक केंद्र सरकार ने 197.30 करोड़ रुपये दिये। 1098 जलाशयों में से 1085 जलाशयों का काम पूरा कर लिया गया, बाकी 13 जलाशयों का काम संबंधित राज्य सरकारों ने रद्द कर दिया। इस स्कीम की मदद से सिंचाई क्षमता 0.78 लाख हेक्टेयर बढ़ायी गयी। स्कीम में शामिल राज्यवार जलाशयों, केंद्रीय मदद, जिन जलाशयों के काम पपूरे हो गये उनकी सूची अनुबंध-2 में दी गयी है। पायलट प्रोजेक्ट का स्वतंत्र मूल्यांकन कई संगठनों जैसे वाटर टेक्नोलॉजी सेंटर फॉर इस्टर्न रीजन, भुवनेश्वर, वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट एंड ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद; सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट (सीडब्ल्यूअारडीएम), केरल; तमिलनाडु एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी, कोयम्बटूर और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनअारएससी), हैदराबाद ने किया। वाटर टेक्नोलॉजी सेंटर फॉर इस्टर्न रीजन, भुवनेश्वर, वाटर एंड लैंड मैनेजमेंट एंड ट्रेनिंग एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद; सेंटर फॉर वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट (सीडब्ल्यूअारडीएम), केरल; तमिलनाडु एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी, कोयम्बटूर और नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनअारएससी), हैदराबाद से रिपोर्ट ली गयी। इन रिपोर्टों से पता चला कि इस स्कीम के कई सकारात्मक परिणाम निकले जैसे जलाशयों की क्षमता में इजाफा हुअा, सिंचाई में जलाशयों का इस्तेमाल बढ़ा, अनुसूचित जातियों/जनजातियों को इस स्कीम से फायदा मिला इत्यादि।
2. ग्यारहवीं योजना - पायलट स्कीम की सफलता के आधार पर ग्यारहवीं योजना में 1250 करोड़ के घरेलु समर्थन और 1500 करोड़ के बाहरी समर्थन वाली अारअारअार की दो स्कीमें शुरू की गयीं।
दोनों स्कीमों का उद्देश्य था-
(a) जलशयों के बहाव क्षेत्र को मजबूत करना
(b) कमांड क्षेत्र को विकसित करना
(c) जलाशय की क्षमता बढ़ाना
(d) ग्राउंडवाटर रिचार्ज
(e) कृषि व बागवानी उत्पादन बढ़ाना
(f) सांस्कृतिक गतिविधियाँ व पर्यटन को विकसित करना
(g) पेयजल की उपलब्धता बढ़ाना
i) बाहरी मदद वाली स्कीम : इस स्कीम के अंतर्गत विश्व बैंक से मिलने वाले लोन का 25 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार केंद्रीय मदद के रूप में राज्य को देती है और लोन का 75 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार को एक के बाद एक प्रदान करती है।
इस स्कीम के तहत राज्य सरकार ऐसे जलाशयों की मरम्मत, सुंदरीकरण और पुनरोद्धार का काम कर सकती है जिनसे न्यूनतम 20 हेक्टेयर और अधिकतम 2 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती हो। इस स्कीम का लक्ष्य जलाशयों के बहाव क्षेत्रों का सुधार, कमांड एरिया का विकास, जलाशय की क्षमता बढ़ाना, कृषि व बागवानी को बढ़ावा, पर्यटन और सांस्कृतिक गतिविधियों का विकास और पेयजल की उपलब्धता बढ़ाना है। विश्व बैंक के सहयोग से स्कीम पर काम किया गया। स्कीम की मूल्यांकन प्रक्रिया में आर्थिक मामलों के विभाग ने सहयोग किया। 4 लाख हेक्टेयर सिंचाई की क्षमता वाले 5763 जलाशयों की मरम्मत के लिए तमिलनाडु के साथ 485 मिलियन डॉलर के विश्व बैंक ऋण अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गये। 2.5 लाख हेक्टेयर सिंचाई की क्षमता वाले आंध्रप्रदेश के 3 हजार जलाशयों के लिए विश्व बैंक के साथ 189.6 मिलियन डॉलर का लोन एग्रीमेंट हुअा। कर्नाटक की 0.52 लाख हेक्टेयर सिंचाई की क्षमता वाले 1224 जलाशयों के लिए विश्व बैंक के साथ 268. 80 करोड़ रुपये के लोन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किये गये। ओडिशा की 1.2 लाख हेक्टेयर सिंचाई की क्षमता वाले 900 जलाशयों के लिए विश्व बैंक के साथ 112 मिलियन डॉलर के लोन एग्रीमेंट पर साइन किये गये। अतः बाहरी सहयोग से 10887 जलाशयों के मरम्मत का काम हाथ में लिया गया। इन जलाशयों की विस्तृत जानकारियाँ अनुबंध-3 में दी गयी हैं। वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग की ओर से दी गयी इस स्कीम की ताजातरीन स्थिति अनुबंध-4 में दी गयी है।
(ii) घरेलु सहयोग से स्कीम : घरेलु सहयोग की स्कीम में तकनीकी सहलाकार समिति (TAC) की ओर से अनुमोदित प्रोजेक्ट की कुल लागत का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्रीय मदद के रूप में विशेष श्रेणी में पड़ने वाले राज्यों, ओडिशा के कालाहांडी, बालागीर और कोरापुट क्षेत्र (अविभाजित) के जिले और सूखा प्रवण क्षेत्रों, आदिवासी क्षेत्र व नक्सल प्रभावित इलाकों में आने वाले जलशयों जबकि सामान्य राज्यों के जलाशयों के लिए प्रोजेक्ट का 25 प्रतिशत हिस्सा केंद्रीय मदद के रूप में दिया गया। इस स्कीम में 12 राज्यों के कुल 3341 जलाशयों को शामिल किया गया। 31 मार्च 2015 तक इन जलाशयों के लिए कुल 917.259 करोड़ रुपये का केंद्रीय अनुदान जारी किया गया। 3341 में से 2222 जलाशयों का काम पूरा कर लिया गया और सिंचाई की क्षमता में 1.113 लाख हेक्टेयर की बढ़ोतरी गयी। बाकी के 1116 जलाशयों का काम चल रहा है। संबंधित राज्यों से इन जलाशयों के कामकाज की रिपोर्ट आनी बाकी है। ओडिशा की स्कीम का काम समय से पहले पूरा हो जाए, इसके लिए वर्ष 2014-2015 में 27.0 करोड़ रुपये जारी किये गये।
जो भी हो ग्यारहवीं योजना के तहत जिन जलाशयों का काम शुरू किया गया था उन्हें पूरे करने के लिए किसी भी राज्य की ओर से फंड जारी करने के लिए कोई आवेदन नहीं मिला है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड और केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने इस स्कीम की निगरानी की। घरेलु सहयोग से जिन तालाबों के काम किये गये थे उनकी जानकारी औऱ इसके तहत जारी फंड, जलाशयों के काम पूरे किये जाने से संबंधित जानकारियाँ अनुबंध - 5 में दी गयी हैं।
(iii) बारहवीं योजना : जलाशयों की मरम्मत, पुनर्जीवन और नवीकरण स्कीम को बारहवीं योजना में भी जारी रखा गया। 20.9.2013 को केंद्र सरकार ने इस स्कीम को हरी झंडी दी। इस स्कीम के कार्यान्वयन के लिए अक्टूबर 2013 में दिशानिर्देश जारी किया गया। स्कीम का मुख्य उद्देश्य है-
(i) जलाशयों को विकसित और पुनर्जीवित करना और इससे टैंक की स्टोरेज क्षमता बढ़ाना
(ii) ग्राउंड वाटर रिचार्ज
(iii) पेयजल की उपलब्धता को बढ़ाना
(iv) बागवानी और कृषि उत्पादन में इजाफा
(v) टैंक के बहाव क्षेत्र को मजबूत करना
(vi) भूजल और भूगर्भ जल के संयुक्त इस्तेमाल के जरिये पर्यावरणीय लाभ
(vii) सभी जलाशयों के दीर्घावधि प्रबंधन के लिए सामुदायिक सहभागिता और स्वयं-सहायता व्यवस्था
(viii) पानी के बेहतर इस्तेमाल के लिए सामुदायिक दक्षता बढ़ाना
(ix) सांस्कृतिक गतिविधियाँ व पर्यटन का विकास
इस स्कीम पर 10,000 करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है। स्कीम के तहत 10,000 जलाशयों को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार 6235 करोड़ रुपये देगी जबकि राज्यों को 3765 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इस स्कीम से 6.235 लाख हेक्टेयर सिंचाई की क्षमता बढ़ने का अनुमान है। प्रोजेक्ट के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों के 9000 जलाशय और शहरी क्षेत्रों के 1000 जलाशयों का काम होना है।
योग्यता ः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के वे जलाशय इस स्कीम में शामिल होने के योग्य होंगे जिनका फैलाव क्षेत्र न्यूनतम 5 हेक्टेयर है और क्रमशः 2.0 हेक्टेयर से 10 हेक्टेयर का बेनिफिट कॉस्ट अनुपात (इसमें देखा जाता है कि नयी परियोजना में कितनी लागत आयेगी और उस लागत के अनुपात में कितना फायदा होगा) 1.0 हो। इस प्रोजेक्ट में शामिल सभी जलाशयों को एक यूनिक कोड नम्बर दिया जायेगा।
परिकल्पना है कि सभी अारअारअार प्रोजेक्ट को इंटिग्रेटेड वाटर मैनेजमेंट प्रोग्राम के साथ इस तरह मिला दिया जाए कि जलाशयों के बहाव क्षेत्र की मरम्मत के साथ ही साथ जलाशयों की मरम्मत हो जाए और उन्हें पुनर्जीवन भी मिल जाए। इस संबंध में अारअारअार स्कीम में वे जलाशय ही शामिल होंगे जिनमें इंटिग्रेटेड वाटर मैनेजमेंट प्रोग्राम लागू हुअा हो।
प्रोजेक्ट की दूसरी किश्त के लिए प्रस्ताव भेजने से पहले राज्य सरकार को सरकारी आर्डर जारी कर जलशयों की बाउंड्री की घोेषणा करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे और सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि जलाशयों के बहाव क्षेत्र और बाउंड्री से अतिक्रमण हट जाए। सांसद अादर्श ग्राम योजना के तहत आने वाले गाँवों के जलाशयों को प्राथमिकता दी जायेगी।
फंडिंग पैटर्न ः प्रोजेक्ट की लागत का 90 प्रतिशत हिस्सा केंद्रीय सहयोग के रूप में विशेष श्रेणी में आने वाले राज्यों (उत्तर-पूर्वी राज्य, हिमाचल प्रदेश, जम्मु-काश्मीर, उत्तराखंड व ओडिशा के अविभाजित कालाहांडी-बालागीर और कोरापुट क्षेत्र) और सूखा प्रवण क्षेत्रों, आदिवासी इलाकों, रेगिस्तान प्रवण क्षेत्रों और नक्सल प्रभावित इलाकों के जलाशयों के लिए प्रदान किये जाएंगे।
विशेष श्रेणी में नहीं आने वाले राज्यों में लागत का 25 प्रतिशत हिस्सा केंद्रीय सहयोग के रूप में दिया जायेगा।
स्कीम का कार्यान्वयन ः इस संबंध में जलाशयों की विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीअार) और प्रोजेक्ट को लागू करने का काम डिस्ट्रिक्ट लेवल इम्प्लिमेंटिंग एजेंसी (डीएलअाईए) द्वारा चिंहित वाटर यूजर्स एसोसिएशन/स्थानीय पंचायत/ सरकारी एजेंसी करेगी।
प्रोजेक्ट के कार्यान्वयन की योजना ग्राम सभा के समक्ष रखी जायेगी और समय पर काम पूरे करने में इनका सहयोग लिया जायेगा। इससे वाटर यूजर्स एसोसिएशन की भी कमाई होगी क्योंकि वह अपने सदस्यों से सेवा देने के एवज में फीस ले सकता है और जलाशयों के रखरखाव के लिए फंड भी तैयार कर सकता है। राज्य सरकार अगर चाहे तो स्वयंसेवी संगठन भी इस स्कीम की योजना बनाने और क्रियान्वयन में भूमिका निभा सकते है। अन्य सिंचाई कार्यों के सहयोग के लिए सीडब्ल्यूसी फील्ड यूनिट को राज्य सरकारों की तरफ से जलाशयों को लेकर आने वाले प्रस्तावों को देखने का दायित्व दिया गया है।
निगरानी : इस स्कीम के तहत होने वाली गतिविधियों की योजना बनाने, योजना के क्रियान्वयन पर निगरानी करना, कार्य की गुणवत्ता बीअाईएस के मानक के अनुसार हो यह देखना, जिला स्तरीय क्रियान्वयन व निगरानी कमेटी (डीएलअाई एंड एमसी) को दिशानिर्देश देना और प्रोजेक्ट से संबंधित राज्य स्तरीय विभागों/एजेसियों के बीच आपसी सहयोग हो यह सुनिश्चित करने का दायित्व राज्य सरकार का होगा। राज्य सरकार के को-अॉर्डिनेशन सेल के सहयोग से कामकाज की निगरानी की जायेगी औऱ पंचायत की स्थायी समिति प्रोजेक्ट के कामकाज की अग्रगति व खर्च तथा कामकाज के परिणामों पर निगरानी करेगी। सेंट्रल वाटर कमिशन (सीडब्ल्यूसी) का फील्ड अफसर भी नमूमों के आधार पर समय समय पर अारअारअार स्कीम के तहत जलाशयों के कामकाज पर निगरानी रखेंगे। कामकाज का समवर्ती मूल्यांकन राज्य सरकार द्वारा किसी स्वायत्त संस्था मसलन अाअाईएम एंड अाईअाईटी से करवाया जायेगा। स्कीम के पूरे होने पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन सीडब्ल्यू/केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय, अारडी और जीअार करेगी
वर्तमान अवस्था : अब तक जल संसधान मंत्रालय, आरडी एंड जीअार की इम्पावर्ड कमेटी ने अारअारअार स्कीम के तहत 8 राज्यों के 1057 जलाशयों को मंजूरी दी है जिनपर कुल 830.6659 करोड़ रुपये खर्च किये जाने हैं। इन जलाशयों के बारे में विस्तृत जानकारी अनुबंध -VI में दी गयी है।
अारअारअार स्कीम के तहत वर्ष 2014-15 के लिए 4 राज्यों के 898 जलाशयों (ओडिशा के 760 जलाशय, मेघालय के 9 जलाशयों, मणिपुर के 4 जलाशयों और मध्यप्रदेश के 125 जलाशयों) के लिए इन राज्यों को कुल 103.49 करोड़ रुपये की अनुदान राशि जारी की गयी है। इसके अलावा ग्यारहवीं योजना का काम बारहवीं योजना में जारी रखने के लिए 105.406 करोड़ रुपये जारी किये गये। बारहवीं योजना के तहत राज्य सरकारों द्वारा जारी किये गये अनुदान की जानकारी अनुबंध -VII दी गयी है।
अनुबंध -।
इंडिया-डब्ल्यूअारअाईएस प्रोजेक्ट के अंतर्गत राज्य स्तरीय जलाशयों के आंकड़े
दसवीं योजना के पायलट प्रोजेक्ट के अधीन जलाशय
ग्यारहवीं योजना के अंतर्गत बाहरी सहयोग में शामिल जलाशय
विश्व बैंक की मदद से जलाशयों की मरम्मत, पुनर्जीवन व नवीकरण स्कीम के तहत किये गये कामों का विस्तृत ब्यौराप्रोजेक्ट 1 आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के सामुदायिक टैंक प्रबंधन
प्रोजेक्ट का उद्देश्य
चयनित टैंक आधारित उत्पादकों को कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ाने और वाटर यूजर्स एसोसिएशन को टैंक सिस्टम के बेहतर प्रबंधन करने के योग्य बनाना है। इसमें अविभाजित आंध्रप्रदेश के 95000 (आंध्रप्रदेश के 45 हजार और तेलंगाना के 50 हजार टैंक) टैंकों में से 2100 टैंकों का पुनर्वासन किया जायेगा।
इसके साथ ही प्रोजेक्ट द्वारा
1. प्राथमिक तौर पर टैंकों का अाधुनिकीकरण करने और सिंचाई क्षमता को उन्नत करने में मदद।
2. कृषि उत्पादन बढ़ाने और इसमें बहुलता लाने के लिए कृषि तकनीकी का इस्तेमाल
3. कृषि-व्यापार आपूर्ति श्रृंखला और साथ ही मत्स्य विकास में मदद।
4. नहर पुनर्वास का विस्तृत काम हाथ में लेना
प्रोजेक्ट की प्रमुख तिथियाँ
कार्यसाधकता तारीखः 27 जून 2007
असल अंतिम तारीखः 31 दिसम्बर 2012
संशोधित अंतिम तारीखः 31 जुलाई 2016
अवयव
संस्थागत मजबूतीः(खर्च 16.40 मिलियन अमरीकी डॉलर)
लघु सिंचाई व्यवस्था में सुधारः(खर्च150.60 मिलियन अमरीकी डॉलर
कृषि आधारित जीविका समर्थन सेवाः (खर्च 25.20 मिलियन अमरीकी डॉलर)
प्रोजेक्ट प्रबंधनः (खर्च 12.50 मिलियन अमरीकी डॉलर)
लोन वितरण में प्रगति (अमरीकी डॉलर में)
क्रियान्वयन की स्थिति: प्रोजेक्ट बताता है कि टैंक कमांड क्षेत्रों में सिंचाई क्षमता और कृषि उत्पादन में सुधार की प्रक्रिया अच्छी है। राज्य के बंटवारे के कारण पूर्व खर्च (बैंक लोन भी शामिल) और भविष्य में होने वाले खर्च को आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के बीच पुनर्आवंटित किया गया और 5 मार्च 2015 को संशोधित प्रोजेक्ट अनुबंध, विधि अनुबंध और आर्थिक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गये तथा ये दस्तावेज बैंक, दोनों राज्यों और केंद्र सरकार के आर्थिक मामलों के विभागों के साथ साझा किये गये।
प्रगति संकेतक
उत्पादन में बढ़ोतरी के प्रतिशत (गेहूँ, मक्के, मूंगफली और मछली)
प्रोजेक्ट 2: ओडिशा सामुदायिक टैंक प्रबंधन प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट का उद्देश्य
चयनित टैंक आधारित उत्पादकों को कृषि उत्पादन क्षमता बढ़ाने और वाटर यूजर्स एसोसिएशन को टैंक सिस्टम के बेहतर प्रबंधन करने के योग्य बनाना है।
1. प्रोजेक्ट मेें ओडिशा के 4000 में 324 टैंकों का पुनर्वास करवया जायेगा।
2. प्रोजेक्ट में आजीविका के मजबूत अवयव हैं।
3. वाटर यूजर समूह को पानी पंचायत कहा जाता है और उन्हें 115 टैंक हस्तांतरित किया जा चुका है।
4. टैंकों के रखरखाव व संचालन के लिए पानी पंचायत सदस्यों की दक्षता बढ़ाना
प्रोजेक्ट की प्रमुख तिथियाँ
कार्यसाधकता तारीखः17 मार्च 2009
असल अंतिम तारीखः 31 अगस्त 2014
संशोधित अंतिम तारीखः 30 जून 2016
अवयव
संस्थागत मजबूतीः(खर्च 4.6 मिलियन अमरीकी डॉलर)
टैंक व्यवस्था में सुधारः(खर्च 53.70 मिलियन अमरीकी डॉलर)
कृषि आधारित जीविका समर्थन सेवाः (खर्च 9.70 मिलियन अमरीकी डॉलर
)प्रोजेक्ट प्रबंधनः (खर्च 5.10 मिलियन अमरीकी डॉलर)
लोन वितरण में प्रगति (अमरीकी डॉलर में)
क्रियान्वयन की स्थिति
क्रियान्वयन में अग्रगति आयी है और वितरण भी बढ़ा है। वितरण 40 प्रतिशत हुअा है। 60 हजार हेक्टेयर के कार्य क्षेत्र के लिए निकाय संबंधी कामकाज क्रियान्वयन की प्रक्रिया में है। 95 लघु सिंचाई स्कीम का काम पूरा कर लिया गया है।
प्रगति संकेतक
कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी प्रतिशत में (धान, सरसों, मूंगफली, सब्जियाँ)
प्रोजेक्ट-3
तमिलनाडु सिंचाई कृषि आधुनिकीकरण जलाशय पुनर्जीवन प्रबंधन प्रोजेक्ट
प्रोजेक्ट का उद्देश्य
इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य चयनित सब-बेसिन साझेदारों को योग्य बनाना है ताकि वे दीर्घावधि जल संसाधन प्रबंधन ढांचे अंतर्गत सिंचित कृषि उत्पादकता बढ़ा सकें। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 4931 टैंकों, 755 एनिकट (सिंचाई के लिए नदी में बनाया जाने वाला बाँध) औऱ 8613 किलोमीटर के सप्लाई चैनलों के पुनरोद्धार का काम पूरा कर लिया गया।
प्रोजेक्ट की मुख्य तिथियाँ
कार्यसाधकता तारीख: 9 अप्रैल 2007
असल अंतिम तारीख: 31 मार्च 2013
संशोधित अंतिम तारीख: 30 जून 2015
अवयव
(A) सब बेसिन तंत्र में सिंचाई व्यवस्था का आधुनिकीकरणः (खर्च 282.83 मिलियन डॉलर)
(B) कृषि को बढ़ावा और इसमें बहुरूपता लानाः (खर्च 166.23 मिलियन डॉलर
)(C) सिंचित कृषि के लिए संस्थागत आधुनिकीकरणः(खर्च 52.69 मिलियन डॉलर)
(D) प्रोजेक्ट प्रबंधन सहयोगः (खर्च 8.32 मिलियन डॉलर)
(E) जल संसाधन प्रबंधनः(खर्च 5.00 मिलियन डॉलर)
लोन वितरण में अग्रगति (मिलियन डॉलर में)
क्रियान्वयन की स्थिति
संशोधित प्रोजेक्ट क्रियान्वयन प्लान में अंतिम तारीख से 9 महीने की बढ़ोतरी पर सहमति बनी थी, इसी के मुताबिक हुअा।प्रोजेक्ट के तहत अधिकांश सिविल वर्क 31 मार्च 2015 तक पूरे कर लिये गये। अन्य पहलुअों पर काम निर्धारित समयावधि के अनुरूप चल रहा है। कम्पोनेंट बी के तहत जारी राशि का 99.8 प्रतिशत हिस्सा जून 2015 तक इस्तेमाल किया जा चुका है। इस प्रोजेक्ट में बचे लोन फंड से 32 मिलियन डॉलर की बचत का अनुमान है। अधिकांश मामलों में खेती बढ़ाने के लक्ष्य को पूरा करने में प्रोजेक्ट सफल रहा है। प्रोजेक्ट धान के अलावा दूसरी तरह की फसलों की बहुलता में भी मददगार साबित हुअा। साथ ही साथ लगातार तीन बार सूखा पड़ने के कारण टैंक पुनरोद्धार में निवेश नहीं हो सका और बीजारोपण के प्रभावों का आकलन नहीं किया जा सका। इसके चलते प्रोजेक्ट में शामिल सब-बेसिन की कृषिगत आय पर भी असर पड़ा।
प्रगति संकेतकः
लघु सिंचाई क्षेत्र में बढ़ोतरी (हेक्टेयर में)
प्रोजेक्ट 4
कर्नाटक सामुदायिक टैंक प्रबंधन प्रोजेक्ट (पूरा) (सीअार नं.36350 और 36351 और एलएन नंबर 4872)
प्रोजेक्ट का उद्देश्य
प्रोजेक्ट का लक्ष्य चयनित टैंक व्यवस्था के प्रबंधन और सुधार के लिए ग्रामीण जीविका को सुदृढ़ करना और सामुदायिक आधारित पद्धति से गरीबी कम करना था। प्रोजेक्ट का उद्देश्य टैंक व्यवस्था में पानी की उपलब्धता और उसके वितरण में सुधार लाना, कृषि में सुधार और भूूमिहीन किसानों के लिए आय में बढ़ोतरी करना।
प्रोजेक्ट की मुख्य तिथियाँ
कार्यसाधकता तारीखः8 जूलाई 2002
असल अंतिम तारीखः 31 जनवरी 2009
संशोधित अंतिम तारीखः 31 जनवरी 2012
प्रोजेक्ट के अवयव
सामुदायिक टैंक व्यवस्था के लिए प्रोग्रामैटिक अप्रोच अपानाया गया और निम्नलिखित तीन अवयवों से के जरिये लक्ष्य हासिल किया गया।
अवयव 1: टैंक सिस्टम को विकसित करने के लिए समर्थ पर्यावरण स्थापित करना ।
सामुदायिक टैंक के प्रबंधन के लिए सहायक वातावरण व संस्थागत आधार तैयार करना; योजना, संचालन और प्रबंधन के लिए निर्णय समर्थ व्यवस्था विकसित करना; सभी स्तरों पर प्रोजेक्ट में सहयोग औऱ प्रबंधन को मजबूत करना।
अवयव 2: समुदाय विकास को मजबूूत करना।
मानव व संस्थागत संसाधनों को विकसित और स्थानीय संगठनों को मजबूत करना; और प्रोजेक्ट के अंतर्गत विकसित की जाने वाली हर टैंक सिस्टम के लिए सहयोग।
अवयव 3ः टैंक सिस्टम के सुधार का काम शुरू करना।
इस अवयव में (i) लोकल यूजर्स द्वारा चिन्हित 3925 टैंक सिस्टम के अॉपरेशनल परफॉरमेंस को सुधारना (ii) तकनीकी प्रशिक्षण और खेतों में जाकर पानी के प्रबंधन की बारीकियां समझाना, खेती और बागवानी में विकास, मत्स्य, वन और चारा उत्पादन में मदद करना और यह सुनिश्चित करना कि पानी के स्टोरेज में सुधार तथा क्षमता में बढ़ोतरी से घरों की आय में इजाफा हो।
ऋण वितरण में अग्रगति (अमेरिकी डॉलर में)
प्रमुख उपलब्धियाँ
स्वयं प्रबंधित व दीर्घावधि टैंक यूजर्स समूह स्थापित।
1. प्रोजेक्ट ने टैंकों के पुनरोद्धार, संचालन और रखरखाव के लिए सर्वाँगीण दृष्टिकोण अपनाते हुए टैंक यूजर्स ग्रुप (टीयूजी) का निर्माण किया और टैंक यूजर्स ग्रुप को टैंक वितरण के साथ इसका समापन हुअा।
2. वर्ष 2012 तक प्रोजेक्ट ने 3126 टीयूजी गठित करने में मदद की और 3925 टैंकों में से 3710 टैंकों को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया जिनका प्रबंधन 3126 टीयूजी कर रहे हैं और इससे 133695 हेक्टेयर कमांड एऱिया को सेवा दी जा रही है।
3. 207 टैंक में प्रगति कार्य शून्य था अतएव इन्हें रद्द कर दिया गया।
हाशिये के समूहों को मदद
1. प्रोजेक्ट के फायदों में टैंक सिस्टम में जल की उपलब्धता और उसके वितरण में सुधार, कृषि संबंधी गतिविधियों आये सुधार को बढ़ावा देना और टैंक वाले गाँवों की गरीब आबादी भूमिहीन किसानों की आय में बढ़ोतरी की गतिविधियाँ कर उनकी आजीविका में सुधार शामिल है।
2. इस प्रोजेक्ट में शामिल टैंकों के जरिये 5,81,000 घरों को सेवा दी जाती है। टैंक यूजर्स ग्रुप सदस्यता में हाशिये पर रहने वाले समूह जैसे अनुसूचित जाति/जनजाति समूह की भागीदारी 39 प्रतिशत और टैंक कमेटी में 34 प्रतिशत भागीदारी है। टैंक यूजर्स ग्रुप के सदस्यों और कमेटी में महिलाअों की भागीदारी 40 प्रतिशत है।
3. प्रोजेक्ट से 2,13,900 टैंक कमांड एरिया के किसानों को फायदा हुअा जिनमें से 90 प्रतिशत छोटे और हाशिये के किसान थे। औसतन 0.75 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र वालों की कृषि आय में प्रतिवर्ष 8,015 रुपये (वर्ष 2012 की तुलना में) का इजाफा हुअा।
4. टैंकों के पुनरोद्धार के कारण सिंचाई क्षेत्र का दायरा बढ़ा और इसमें सुधार भी आया जिसके परिणाम स्वरूप सिंचित कृषि में बहुलता आयी और इसमें बढ़ोतरी हुई जिससे कृषि के क्षेत्र में हर वर्ष 8,050 लोगों को रोजगार बढ़ा।
टैंको का पुनरोद्धार और इससे कृषि में सुधार
1. टैंकों के पुनरोद्धार से जल बचाने और उसके इस्तेमाल में सुधार आया जिससे 3710 प्रोजेक्ट टैंक के 150000 हेक्टेयर कमांड एरिया की जीविका सुधरी।
2. एक अध्ययन में पता चला कि प्रोजेक्ट के कारण सिंचित क्षेत्र में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी, पानी की मात्रा में 44 प्रतिशत का इजाफा, भूजल स्तर में उछाल आया और भूजल के इस्तेमाल में 42 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
3. जिन टैंक क्षेत्रों में स्कीम लागू की गयी वहाँ के किसानों की आय में 76 प्रतिशत का इजाफा दर्ज किया गया जबकि जिन टैंक क्षेत्रों में यह स्कीम लागू नहीं हुई थी वहाँ किसानों की आय में महज 42 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई।
प्रोजेक्ट की गतिविधियों से बढ़ी आयः
1. प्रोजेक्ट के चलते श्रमिकों खासकर भूमिहीन व कृषि श्रमिकों की आय संबंधी गतिविधियाँ बढ़ी। आय बढ़ाने वाली गतिविधियों के लिए आवंटित राशि का एक बड़ा हिस्सा महिला स्वयंसेवी समूह और एक बड़ा भाग निचली जाति और जनजातियों को मिला। 99453 लोगों को इसका लाभ मिला।
2. प्रोजेक्ट में शामिल स्वयंसेवी समूह की आय में 56 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई जबकि अन्य स्वयंसेवी समूह की आय में 41 प्रतिशत की ही बढ़ोतरी हुई।
3. पुनरोद्धार किये गये 3710 टैंकों के जरिये कृषि में सुधार किया गया जिससे कृषि संबंधी आय और रोजगार का सृजन हुअा और इससे गाँवों के 1,90,000 गरीब लोगों की गरीबी घटी। प्रोजेक्ट क्षेत्र की कुल आबादी का यह 17 प्रतिशत है।
4. 3710 प्रोजेक्ट टैंक के पुनरोद्धार से आय और रोजगार का सृजन हुअा। इसके अंतर्गत 3.2 मिलियन लोगों को दैनिक रोजगार मिला और हर रोजगार को एक वर्ष में 16,200 रुपये की आय हुई।
संस्थागत मजबूती
प्रोजेक्ट ने टैंकों के प्रबंधन पर खासा प्रभाव डाला। टैंकों के मालिकाने को लेकर लोग सक्रिय हुए हैं गाँव में ही स्थानीय नेता उभरे।
1. टैंक यूजर्स ग्रुप की स्थापना प्रबंधन संस्था के रूप में हुई। सहायक संगठन और टैंक यूजर्स ग्रुप के रूप में कई क्षेत्रों में तालुका के स्तर पर सरकारी तालुका कमेटी का गठन किया गया।
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