पृथ्वी पर मौजूद हर वस्तु, यहां तक कि इंसान, वनस्पति और जीव-जंतुओं को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए जल की जरूरत होती है। तकनीक, निर्माण, कृषि, स्वच्छता, बिजली उत्पादन सहित विभिन्न प्रकार के समस्त उद्योगों को संचालन के लिए पानी की ही आवश्यकता पड़ती है, लेकिन अतिदोहन और इंसानों में जागरुकता के अभाव के कारण धरती से साफ जल लगातार कम होता जा रहा है। प्रकृति के संरक्षण को नजरअंदाज कर किए गए अनियमित विकास ने ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा दिया है। इससे जलवायु परिवर्तन की घटनाएं विश्वभर में तेजी से हो रही हैं। जिसका असर पर्यावरण और मौसम पर तो पड़ ही रहा है, साथ ही जलचक्र भी जलवायु परिवर्तन से वृहद स्तर पर प्रभावित हो रहा है। ऐसे में धरती पर भी जीवनचक्र प्रभावित होना लाजमी है। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हो रही इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष (2020) के लिए विश्व जल दिवस की थीम ‘‘जल और जलवायु परिवर्तन’’ रखी है।
संयुक्त राष्ट्र ने विश्व जल दिवस मनाने का प्रस्ताव वर्ष 1992 में रियो डी जेनेरियो में आयोजित पर्यावरण और विकास का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में अपने ‘एजेंड़ा 21’ में रखा था। सामान्य सभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दी। इसके बाद 22 मार्च 1993 को पहली बार ‘विश्व जल दिवस’ मनाया गया। जल दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य विश्वभर के देशों का ध्यान जल संरक्षण की तरफ केंद्रित करने तथा स्वच्छ और सुरक्षित जल उपलब्ध कराने को महत्व देना है, लेकिन जिस तरह से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, उससे जलचक्र भी बदल रहा है। दरअसल, जलचक्र सीधे तौर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़ा है। जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म दिनों की संख्या में इजाफा हो रहा है, बेमौसम बारिश और बर्फबारी, अतिवृष्टि जैसी घटनाएं हो रही हैं। ऐसे में तापमान बढ़ने से गर्मियां बढ़ रही हैं। ठंड़े दिनों की संख्या पहले की अपेक्षा कम हो रही है। गर्मी बढ़ने से वातावरण में जल के वाष्पीकरण की दर में भी इजाफा हो रहा है। दर बढ़ने से वाष्प के रूप में एकत्र पानी को रोक कर रखने की वातावरण की क्षमता में भी इजाफा हो रहा है, जो कई स्थानों में अतिवृष्टि, तो कई स्थानों पर सूखे का कारण बन रहा है।
धरती पर हर जीव को जीवित रहने या अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए जल की आवश्यकता होती है। जैसे जैसे तापमान बढ़ता है और गर्मियां आती हैं, पानी की आवश्यकता स्वभाविक रूप से बढ़ने लगती है। गर्म दिनों में इंसानों व जानवरों को स्वस्थ रहने के लिए नियमित तौर पर पानी चाहिए होता है। विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों या इकाईयों में भी पानी की मांग में तेजी से इजाफा हो जाता है। गर्मी के कारण वृक्ष अधिक पानी सोखने लगते हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण, जो गर्म दिन बढ़ रहे हैं, उससे वाष्पीकरण भी तेज हो रहा है। वातावरण/बादल लंबे समय तक अधिक मात्रा में वाष्प के रूप पानी एकत्र कर रहे हैं। इससे बारिश के दिन या कहें कि मानसून लंबे समय तक रहता है, लेकिन समय से मानसून आता नही। ऐसे में पोस्ट और प्री मानसून के बीच की अवधि बढ़ गई है। इस प्रक्रिया के गड़बड़ाने से वाष्पीकरण निरंतर धरती से हो ही रहा है, लेकिन समय पर बादल बरस नहीं रहे हैं। बारिश न होने के कारण धरती बंजर होकर कठोर भूमि में तब्दील हो रही है। अब जब बारिश होती भी है, तो काफी तेज और तीव्र हो रही है। इसलिए पानी भूमि पर ठहरने के बजाए, कठारे भूमि से बहता हुआ नदियों और नालों से होता हुआ समुद्र मंे बह जा रहा है। इसके अलावा अधिक, अनियमित व तीव्र बारिश देश दुनिया के विभिन्न राज्यों में बाढ़ का कारण बन रही है। बाढ़ की ये समस्या तो भारत में आम बात है।
मौसम चक्र बिगड़ने से कई स्थानों पर तो समय पर बारिश ही नहीं हो रही है, इसलिए भूमि का बंजर होना लगातार जारी है। काॅप 14 में पेश एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 30 प्रतिशत भूमि मुरुस्थल की चपेट में है, जिसमें झारखंड शीर्ष पर है। झारखंड में जमीन तेजी से बंजर होती जा रही है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। रनऑफ वाटर और गाद में इजाफा हो रहा है। दूसरी तरफ, सर्दियों के मौसम में भी गर्म दिनों विपरीत असर पड़ रहा है। जैसे जैसे सर्दियों के समय गर्मी बढ़ती जा रही है, बर्फबारी की जगह तेज बारिश हो रही है। बारिश के अनुपात में इजाफा हो रहा है। तापमान बढ़ने से इससे सर्दियों में भी बर्फ तेजी से पिघल रही है। इसका ताजा उदाहरण अंटार्कटिका है, जहां अब तक का गर्म दिन रिकाॅर्ड किया गया और ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पानी की खपत बढ़ रही है। साथ ही रनऑफ वाटर में कमी आ रही है। ऐसे में जलवायु परितर्वन जलचक्र के लिए भी समस्या बन गया है। जलवायु से समाधान के लिए हम लोगों ही सोचना होगा कि हमे प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने वाली अपनी जीवनशैली, ऊंचे ऊंचे भवन व विकास चाहिए, या जीवन का आधार ‘जल’। इस वक्त निर्णय हमारे हाथ में ही और यही निर्णय हमारा भविष्य निर्धारित करेगा। वरना हम हर साल केवल ‘विश्व जल दिवस’ ही मनाते रह जाएंगे, लेकिन पानी हमे नसीब नहीं होगा।
लेखक - हिमांशु भट्ट (8057170025)