जलप्रपात परिभाषा (Waterfall Definition in Hindi)

Submitted by Hindi on Fri, 08/12/2011 - 11:38

जलप्रपात परिभाषा (Waterfall Definition in Hindi) - (पुं.) (तत्.) - शा.अर्थ नदी के पानी का पहाड़ की ऊँचाई से गहरे खड्ड या समतल जमीन पर नीचे गिरना।

जलप्रपात परिभाषा (Waterfall Definition in Hindi)

जलप्रपात शब्द से साधारणतया पानी के संकलित रूप से गिरने का बोध होता है। जलप्रपातों की उत्पत्ति प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार की होती है।

प्राकृतिक जलप्रपात बहुधा पर्वतीय क्षेत्रों में होते हैं, क्योंकि वहाँ भूतल का उतार चढ़ाव अधिक होता है। वर्षा ऋतु में तो छोटे बड़े जल-प्रपात प्राय: सभी पहाड़ी क्षेत्रों में देखने को मिलते हैं, किंतु कुछ क्षेत्रों में, भूस्तर तुलनात्मक तौर पर कठोर और नरम होने के कारण, बहते पानी से कटाव द्वारा भूतल में एक ही स्थल पर गिराव पैदा हो जाता है और कहीं कहीं सामान्य समतल क्षेत्रों में भी जलप्रपात प्राकृतिक रूप से बन जाते हैं। पृथ्वी के गुरुत्व द्वारा प्रेरित होकर पानी का वेग ज्यों ज्यों बढ़ता है, त्यों-त्यों उसके भूस्तर के कटाव की क्षमता बढ़ती जाती है और प्रपात बड़ा होता जाता है। यह क्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि कुछ प्राकृतिक संतुलन न हो जाए, और प्रपात के विस्तार में स्थिरता न आ जाए।

संसार के सबसे बड़े प्रपातों में अमरीका और कैनाडा के मध्य स्थित नायगरा प्रपात तथा अफ्रीका में ज़ैंबेज़ी नदी पर विक्टोरिया प्रपात की गणना की जाती है। भारत में सबसे विख्यात प्रपात पश्चिमी घाट में मैसूर प्रदेश का जोग प्रपात है। इसके अतिरिक्त छोटे बड़े प्रपात देश के भिन्न भिन्न भागों में स्थित हैं, जैसे उत्तर प्रदेश में मंसूरी के समीप कैंपटी प्रपात, मिर्जापुर के समीप सिरसी प्रपात और राँची जिले का हुंडरु प्रपात है।

कृत्रिम प्रपात बहुधा नहरों पर बनाए जाते हैं। जहाँ नहरें यातायात के लिए बनी होती हैं, वहाँ पानी के वेग को कम करने के लिये प्रपात बनाए जाते हैं और नावों का आवागमन लॉकों (locks) द्वारा हुआ करता है। कभी कभी नदियों में भी ऐसे लॉक बनाए जाते हैं। भूसिंचन के हेतु बनाई गई नहरों में भी जलप्रपात इसीलिए बनाए जाते हैं कि पानी का वेग कम किया जा सके। ऐसे बहुत से प्रपात उत्तर प्रदेश की गंगा तथा शारदा नहरों पर बनाए गए हैं। प्राय: अन्य प्रदेशों की नहरों पर भी जलप्रपात बनाए जाते हैं।

प्राचीन समय से ही प्रपातों से अनेक लाभ उठाए जा रहे हैं। सर्वप्रथम प्रपातों द्वारा पनचक्की चलाने का प्रचलन हुआ। पर्वतीय प्रदेशों में पनचक्कियाँ विशेषकर जलप्रपातों द्वारा ही चलती हैं और लोग पनचक्कियों द्वारा ही पिसाई कराते हैं। जब नहरों का निर्माण हुआ तब जलप्रपातों पर पहले पनचक्कियाँ ही स्थापित की गईं, जिससे सिंचाई के अतिरिक्त आटा पीसे जाने की सुविधा हो सके। फिर जब पनबिजली का विकास हुआ तब जलप्रपातों पर पनबिजली बनाने के लिये बड़े बड़े यंत्र लगाए जाने लगे।

प्रपात के पानी के परिमाण तथा उसके पतन के ऊपर जलप्रपातों से मिलनेवाली बिजली की मात्रा निर्भर करती है। साधारणत: इसका अनुमान नीचे लिखे सूत्र से किया जाता है:

ह. द. 15 क (H V 15=K)

जिसमें 'ह' (H) पतन की ऊँचाई फुटों में, 'द' (V) प्रति सेकंड निसृत जल का परिमाण घनफुटों में तथा 'क' (K) उत्पन्न पनबिजली के किलोवाट के लिये प्रयुक्त है।

इसी सूत्र के आधार पर बहुत से जलविद्युत बिजलीघर चलाए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा नहर पर स्थित जलप्रपातों पर जो बिजलीघर बने हैं, वे पथरी, मोहम्मदपुर, निर्गाजिनी, सलावा, चिरौरा, सुमेरा और पलड़ा प्रपातों पर स्थित हैं। शारदा नहर पर छोटे बड़े 18 प्रपातों के गिराव को खटीना के समीप 60 फुट के गिराव में संकलित कर लगभग 10 हजार घनफुट प्रति सेकंड पानी के बहाव से जलविद्युत उत्पादन के लिये एक बड़ा बिजलीघर निर्मित किया गया। भारत के अन्य प्रदेशों में बहुत से बिजलीघर जलप्रपातों पर बनाए जा चुके हैं। कहीं कहीं बाँधों द्वारा कृत्रिम जलप्रपात बनाकर बिजली उत्पादन की योजनाएँ संपन्न की गई हैं।

प्राकृतिक या कृत्रिम जलप्रपात संसार के प्राय: सभी देशों में हैं। भिन्न भिन्न देशों में इनका भिन्न भिन्न उपयोग होता है। जलप्रपात प्राकृतिक शक्ति के महान्‌ स्त्रोत हैं; जिनको मनुष्य अपनी संपन्नता एवं सुविधा, उद्योगों तथा कृत्रिम साधनों के लिये उपयोग में लाता है। इस प्रकार जलप्रपात मनुष्य के लिये प्रकृति की बहुत बड़ी देन है। ( बालेवर नाथ)
 

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संदर्भ

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