प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, सूखा, जल सैलाब, चक्रवात और भूकम्प आदि से काफी क्षति होती रही है। हमारे देश में भी प्राकृतिक आपदा की पहले से सूचना के लिए बेहतर तकनीक विकसित नहीं हो पाई है जिसके कारण प्राकृतिक आपदा से बचने के लिये नहीं बल्कि आपदा के बाद की स्थिति से निपटने पर ज्यादा ध्यान देते है लेकिन कुछ वर्षों से इन चुनौतियों से निपटने के लिये हमारे देश के नौजवान कई ऐसी नई तकनीकों का अविष्कार कर रहे जो आपदा आने से पहले लोगों को अलर्ट कर सकेगी।
पिछले महीने आईआईटी रुड़की के छात्रों ने भूकंप अलर्ट को लेकर एक मोबाइल ऐप बनाया था जो लोगों को भूकंप से पूर्व चेतावनी अलर्ट देगा । साथ ही भूकंप के दौरान लोग कहीं फंसे हैं तो उनकी लोकेशन भी ट्रैक की जा सकेगी। दूसरी ओर, आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्रों ने नदी के जलस्तर बढ़ने पर मोबाइल पर मैसेज के जरिये अलर्ट करने के एक 'मोबाइल फ्लड अलर्ट सिस्टम' को बनाया है।
सबसे अधिक आपदाओं की मार झेलने वाले उत्तराखंड के 8 जगहों में यह उपकरण लगाए गए है। जिनकी निगरानी केंद्रीय जल आयोग द्वारा की जा रही है। आईआईटी से वाटर रिसोर्सेज ब्रांच से एमटेक करने वाले छात्र श्रीहर्षा ने 2 साल की रिसर्च के बाद अपने 15 साथियों के टीम के साथ इस नई तकनीक को तैयार किया है।आईआईटी कानपुर से पास होने के बाद श्रीहर्षा ने कृत्सनम टेक्नोलॉजी नाम से 2017 में एक कंपनी बनाई इसमें जल सैलाब या बाढ़ आने से पहले तुरंत उस स्थिति का डाटा रिकॉर्ड किया जा सकता है।
कैसे करता है काम
फ्लड मॉनिटरिंग टेक्नोलॉजी पर बनाया गया इस सिस्टम में वाटर लेवल सेंसर का प्रयोग किया जाता है। इस सेंसर को किसी भी नदी व तालाब के ऊपर फिट किया जाता है उसके बाद उस का जलस्तर नाप कर हर 10 मिनट में इसकी रिपोर्ट भेजने का काम करता हैं यह 40 मीटर तक जलस्तर की घटक और बढ़त के बारे में बता सकता है सेल्यूलर नेटवर्क व सेटेलाइट के माध्यम से यह मॉनिटरिंग केंद्र में ऑनलाइन डाटा भेजता है साथ ही नदी की स्थिति का ब्यौरा एकत्रित करने के बाद उसे सर्वर में भेजा जाता है । यह उपकरण जलस्तर का जो डाटा भेजा गया है उसका आकलन करता है उसके बाद सर्वर से कई मोबाइल जोड़े जाते है फिर मोबाइल में इसका अलर्ट आता है।
कैसे अलर्ट करता है ये सिस्टम
नदी का बाढ़ वाले क्षेत्रों में सेंसर लगाए जाते हैं और उन्हें सर्वर जोड़ा जाता है फिर सर्वर के माध्यम से ईमेल व्हाट्सएप एसएमएस से जल स्तर बढ़ने की सूचना देता है। अगर जलस्तर सामान्य से अधिक बढ़ता है तो यह 2 मिनट में मैसेज भेजकर अलर्ट करता है। इसमें 1 से अधिक मेल आईडी और मोबाइल नंबर को जोड़ा जा सकता है।
उपकरण लगाने में कितनी लागत आती है
इस उपकरण को लागने में लगभग 1.50 लाख रुपए का खर्चा आता है। और यह उपकरण अभी तक उत्तराखंड के आठ जगह उत्तरकाशी चमियाला,चिनका,नंदप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग और करणप्रयाग में लगाया गया है। अब इसे उत्तर प्रदेश की नदियों के जलस्तर नापने के लिए भी लगाने की योजना की जा रही है
चमोली में रहा सफल प्रयोग
इस उपकरण का उपयोग उत्तराखंड के चमोली जिले में किया गया था जहां पर इसने बेहतर परिणाम दिए हैं यह समय-समय पर केंद्र जल आयोग को अपडेट देता रहा और इससे पाए गए डाटा को केंद्र जल आयोग ने टि्वटर पर अपलोड करने के साथ सबंधित अधिकारियों को अलर्ट भी किया ।
उत्तराखण्ड में क्यों किया गया पहला प्रयोग
साल 2013 में केदारनाथ में मंदाकिनी नदी में आये जल सैलाब के कारण कई लोगों की मौत हो गई थी और आज भी उस दिल दहलाने वाले मंजर को लोग भूले नही पाए है । यह आपदा भारत के इतिहास में सबसे बड़ी आपदाओं में से एक थी । जिसने पहली बार लोगों को नदी के रौद्र रूप से रूबरू कराया।
कुछ इसी तरह का मंजर 7 फरवरी 2021 को सामने आया था। उत्तराखंड के ही चमोली जिले के जोशीमठ के पास रेणी गाँव में भयानक आपदा आई थी। जिसमें 1 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। रेणी गाँव के पास बहने वाली ऋषि-गंगा नदी का जल स्तर बढ़ गया और नदी ने रौद्र रूप ले लिया जिसमें ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट पर काम रहे सभी कर्मचारी इसकी चपेट आये और उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इसलिए इस सिस्टम का प्रयोग सबसे पहले उत्तराखंड में किया गया क्योंकि आपदा के मामले में पार्वती राज्य उत्तराखंड सबसे सवेंदनशील जगह बन गया है
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भी बना चुका है फ्लड अर्ली वार्निंग सिस्टम (FEWS)
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने सहयोग से टेरी ने पिछले साल एक ऐसा फ्लड अर्ली वार्निंग सिस्टम बनाया है जो लोगों को उनके क्षेत्र में वर्षा के पूर्वानुमान,किसी शहर की भौगोलिक स्थिति, जलधारण क्षमता के आकलन के साथ बाढ़ की स्थिति के बारे बताएगा। लेकिन यह ' मोबाइल फ्लड अलर्ट सिस्टम' की तरह मोबाइल में मैसेज देकर अलर्ट नही करेगा यह पूरा डटा कलेक्शन केंद्र में भेजेगा। फिर वहां से लोगों को बाढ़ की स्थिति के बारे में बताया जाएगा।
तूफान से पूर्व चेतावनी देने वाला सिस्टम भी बनाया गया
देश मे जिस तरह से गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल ,बंगाल और उड़ीसा जैसे राज्यों में चक्रवात की संख्या बढ़ी है उसे देखते हुए भारत सरकार ने चक्रवात पूर्व चेतावनी प्रणाली को भी बनाया है। पिछले महीनें केंद्र मंत्री जितेंद्र सिंह ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि पश्चिमी तट के साथ पांच राज्यों (गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और केरल), केंद्र शासित प्रदेशों (दमन, दीव, दादरा और नगर हवेली) में चक्रवात पूर्व चेतावनी प्रणाली को लगाया गया है ताकि यह तूफान आने से पहले लोगों को सूचित कर सुरक्षित स्थानों में पहुँचाया जा सकता है
जिस तरह से जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक चुनौतियां बढ़ रही है उसको देखते हुए हमें विज्ञान और तकनीक पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा। ताकि हम इन चुनौतियां का सामान कर सकें ।