जलते मानव बाल बिगड़ती हवा

Submitted by Shivendra on Tue, 07/09/2019 - 10:12
Source
विज्ञान प्रगति

जलते मानव बाल बिगड़ती हवा।जलते मानव बाल बिगड़ती हवा।

‘हाड़ जले ज्यों लकड़ी, केस जले ज्यों घास‘, कबीर दास की उदासी का कारण आज फिर उभर कर सामने आ रहा है। मानव के कटे बाल व्यर्थ माने जाते रहे हैं और उन्हें जला दिया जाता है। मगर इधर वैज्ञानिक विश्लेषण पर आधारित रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि इन बालों का जलाया जाना गंभीर वायु प्रदूषण का कारण बन रहा है। कुछ व्यवसाय ऐसे भी हैं जहां मानव बालों को जलाया जा रहा है। वैज्ञानिक विश्लेषण से पता चला है कि मानव बालों का जलाया जाना प्रदूषणकारी है, जो मानव ही नहीं अन्य जीवों के लिए भी जानलेवा है। मानव बालों को प्रयोगशाला में जलाने के बाद किए गए विश्लेषण से पता चला है कि मात्र 100 ग्राम बाल जलने पर आसपास के वातावरण में इतनी जहरीली गैस पैदा करते हैं कि दम घुटने लगता है और त्वचा में जलन की हालत बन जाती है।

रिपोर्ट बताती है कि मानव वाल जलने पर भारी मात्रा में अमोनिया, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, सल्फाइड आदि प्रदूषणकारी तत्व छोड़ते हैं, जो वातावरण में जा समाते हैं। परीक्षण में पाया गया है कि इनमें मानव त्वचा में एलर्जी, तीखी जलन, घुटन और गंभीर त्वचा रोग पैदा करने की क्षमता होती है। मानव बालों के जलने के बाद निकले जहरीले पदार्थ नथुनी और त्वचा के छोटे-छोटे रंध्रों तक से शरीर में घुसकर रक्त तंत्रिका और पाचन तंत्र, फेफड़ों के अलावा मस्तिष्क तक को प्रभावित करते हैं। गंभीर दशा में मानव मस्तिष्क बिगड़ कर नियंत्रण भी खो बैठता है। इधर विद्युत से जुड़े व्यवसाय में भी मानव बालों का प्रयोग सामने आया है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव बाल विद्युत के सुघड़ सुचालक हैं। यानी इनसे विद्युत सहज ही गुजर जाती है, इसलिए वे सभी विद्युत उपकरण जिनमें विद्युत प्रवाहित करने के लिए अभी तक महंगे तारों का प्रयोग किया जाता रहा है, अब उनकी जगह मानव बालों का प्रयोग किया जा रहा है।

तांबा, लोहा, प्लैटिनम आदि तारों का प्रयोग बिजली के छोटे बड़े उपकरणों में एक लंबे समय से किया जा रहा है। मोटर वाइंडिंग में तो खासे तांबे के तार की जरूरत पड़ती है। इस तरह से विद्युत उपकरणों की असली जान तार ही होते हैं। अब विभिन्न तकनीक को अपनाते हुए उन तारों को हटा मानव बालों का प्रयोग गैरकानूनी तरीके से किया जाने लगा है। माना बाल जहां किसी भी प्रकार के तार की अपेक्षा अधिक हल्के होते हैं, वहीं यह कम जगह में सिमट कर रह जाते हैं। यही नहीं आर्थिक दृष्टि से भी ये कम लागत वाले हैं क्योंकि बेहद सस्ते में मिलते हैं और उपकरण में लगने के बाद तार की कीमत के बराबर हैं। आपके शरीर से मिलने वाले यह बार यूं तो व्यर्थ ही जाते हैं। कहीं काम आ जाए तो हर्ज ही क्या ? मगर वातावरण मानव स्वास्थ्य और कानून की धज्जियां उड़ाने की कीमत पर कतई गवारा नहीं। इससे पहले कि मानव बालों का यह जाल जंजाल और बवाल को जन्म दे हमें चेतना होगा।

 

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