जम्मू क्षेत्र की तवी नदी बेहद प्रदूषित हो चुकी है, लेकिन यहाँ के निवासियों की उदासीनता का आलम ये है कि 15वीं लोकसभा के चुनाव में नदी का प्रदूषण कोई मुद्दा ही नहीं बना। शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीने की कथा का मिथक रखने वाली तवी नदी आज की तारीख में सबसे प्रदूषित जलस्रोत बन चुकी है। इस नदी में उद्योगों का अपशिष्ट, सीवर लाईनों की गन्दगी, पोलिथीन की थैलियाँ और लाशें सरेआम बहती हुई देखी जा सकती हैं। कई दशकों से पीने के पानी के रूप में उपयोग की जाने वाली यह नदी अब साधारण उपयोग के लायक भी नहीं रह गई है।
भले ही नदी का प्रदूषण कोई चुनावी मुद्दा नहीं बना हो, लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि किसी भी पार्टी के प्रत्याशी ने इस नदी की सफ़ाई के बारे में एक भी घोषणा तक नहीं की है। जो नेता इलाके के साथ भेदभाव के आरोप लगाते नहीं थकते, नदी के प्रदूषण के बारे में बात तक नहीं करते। लगता है कि “साफ़ पानी” किसी भी व्यक्ति की प्राथमिकता में नहीं आता। सामाजिक कार्यकर्ता अजय शर्मा, जिस नदी के किनारे जम्मू शहर पनपा और फ़ला-फ़ूला उसकी इस उपेक्षा और दुर्दशा से बेहद दुखी हैं। वे कहते हैं “नदी के प्रदूषण को लेकर कई योजनायें बनीं लेकिन एक भी योजना लागू नहीं हो पाई, न्यायालयों में विभिन्न केस लगाये गये, न्यायालय ने कई निर्णय भी दिये, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया। जो भी नेता संसद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्हें तवी नदी के बारे में प्राथमिकता से सोचना चाहिये, लेकिन एक भी प्रत्याशी ने पूरे चुनाव के दौरान कभी भी इस नदी की सफ़ाई के बारे में कोई बात नहीं कही, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है…”।
रोज़ाना लगभग 300 टन कचरा
जम्मू नगर निगम रोज़ाना लगभग 300 टन कचरा आदि इस नदी में डालता है। इसके अलावा आसपास रहने वाले, नदी में और नदी के साथ-साथ चलने वाली लम्बी सड़क के यात्री और ट्रांसपोर्ट वाले भी आते-जाते नदी को प्रदूषित करते जाते हैं। प्लास्टिक थैलियाँ, बोतलें, जानवरों का अपशिष्ट आदि नदी में लगातार पाये जाते हैं। सिर्फ़ यही नहीं पर जम्मू शहर की सीवर लाईनें भी सीधे नदी में जोड़ दी गई हैं, शहर में लगभग एक दर्जन स्थान ऐसे हैं जहाँ से सीवर सीधे नदी में मिलता है, जबकि गन्दे नालों और नालियों की संख्या अनगिनत है। विभिन्न धार्मिक क्रियाकर्मों से भी नदी प्रदूषित हो रही है। एक सक्रिय पर्यावरणवादी नरेन्द्र सिंह, जो कि “ग्लोबल वार्मिंग” पर एक संस्था भी चलाते हैं, कहते हैं कि संवेदनाहीन राजनेता तवी नदी के प्रदूषण पर सोचना तो दूर, कुछ कहने को भी तैयार नहीं हैं। चुनाव में जनता से जुड़े कई बेकार से मुद्दे सुर्खियाँ बटोर रहे हैं, लेकिन “तवी नदी का प्रदूषण” चुनाव के शोरगुल, वादो-इरादों से अभी भी दूर है।
मूल रिपोर्ट – जुपिन्दरजीत सिंह (ट्रिब्यून)
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