जनभागीदारी से होगा जल संरक्षण

Submitted by Hindi on Wed, 05/09/2012 - 11:29
Source
दैनिक भास्कर ईपेपर, 07 मई 2012
नदियों की सामाजिक व पर्यावरणीय भूमिका निभाने के लिए व आसपास के रिचार्ज के लिए जितना जल जरूरी है, कम से कम उतना जल नदियों में बहाना ही होगा। यही हमारे देश के भूजल संकट को दूर करने का मुख्य आधार है। हमारे देश के कानून में नदियों, झीलों व अन्य सब जल स्रोतों की रक्षा को भी शामिल करना चाहिए। इन्हीं जल संग्रहण व सरंक्षण के जनभागीदारी के बारे में बताते भारत डोगरा

भविष्य में ऐसी नई परियोजनाओं में धन व्यर्थ करने के स्थान पर जरूरी यह है कि पहले की परियोजनाओं की जिस सिंचाई क्षमता का सही उपयोग नहीं हो पाया है, उस क्षमता को अधिकतम प्राप्त किया जाए। इन बांध परियोजनाओं के जलाशयों के सही संचालन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को जोड़ते हुए समितियां गठित की जानी चाहिए। इन समितियों का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य यह होना चाहिए कि नदियों की सामाजिक व पर्यावरणीय भूमिका निभाने के लिए व आसपास के रिचार्ज के लिए जितना जल जरूरी है, कम से कम उतना जल नदियों में बहता रहे।

इस बारे में तो व्यापक सहमति है कि जल-संकट बहुत गंभीर हो चुका है और जलवायु बदलाव के दौर में यह समस्या लगातार विकट होने वाली है। स्थिति की गंभीरता के बारे में एक राय होते हुए भी इस बारे में बहुत विवाद है कि इस संकट का समाधान क्या है। एक ओर तो इस विकट होती समस्या के समाधान के लिए बहुत बड़े बांधों व नहरों का इतने बड़े स्तर पर निर्माण जरूरी बताया जा रहा है, जितना पहले कभी नहीं हुआ। इसके निर्माण की आसमान छूने वाली लागत बताई जाती है। इतना पैसा खर्च करने के साथ विस्थापन व पर्यावरण की जो समस्याएं झेलनी पड़ेंगी वे अलग से हैं। कई विशेषज्ञ यह सवालिया निशान भी लगाते हैं कि इतनी कीमत चुकाने के बाद भी जरूरी नहीं है कि जल संकट का समाधान हो ही जाए, क्योंकि बड़े बांधों से नदियों को जो स्थाई क्षति होती है उसकी भरपाई करना बहुत कठिन है। दूसरे शब्दों में एक समस्या के संदिग्ध समाधान के लिए बहुत सी नई समस्याओं को उत्पन्न करने जैसा मामला यहां नजर आता है।

दूसरी विचारधारा यह कहती है कि इतनी विशाल व महंगी परियोजनाओं के बिना भी जल संकट का समाधान हो सकता है। इसके लिए मूल रूप से हमें पर्यावरण सुधारने के कदम जगह-जगह पर, गांव-गांव में उठाने होंगे, जिससे अनेक अन्य लाभ भी मिलेंगे। यह राह टिकाऊ व सस्ते समाधान की राह है व इसे ही हमारा समर्थन मिलना चाहिए। इस दूसरी राह को भरपूर समर्थन देने वाला एक अध्ययन हाल ही में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन जाने-माने जल-विशेषज्ञ हिमांशु ठक्कर ने किया है जो इंजीनियर व पर्यावरणविद होने के साथ 'नदी, बांध व जन के दक्षिण एशिया के नेटवर्क' के संस्थापक भी हैं। यह अध्ययन बांध व नहरों की विशालकाय परियोजनाओं के शोध के आधार पर कहता है कि इनकी उपयोगिता संदिग्ध है। हाल के वर्षों में अरबों रुपए खर्च होने पर भी राष्ट्रीय स्तर पर इनसे सिंचाई क्षमता में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है।

अत: भविष्य में ऐसी नई परियोजनाओं में धन व्यर्थ करने के स्थान पर जरूरी यह है कि पहले की परियोजनाओं की जिस सिंचाई क्षमता का सही उपयोग नहीं हो पाया है, उस क्षमता को अधिकतम प्राप्त किया जाए। इन बांध परियोजनाओं के जलाशयों के सही संचालन में स्थानीय समुदायों की भागीदारी को जोड़ते हुए समितियां गठित की जानी चाहिए। इन समितियों का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य यह होना चाहिए कि नदियों की सामाजिक व पर्यावरणीय भूमिका निभाने के लिए व आसपास के रिचार्ज के लिए जितना जल जरूरी है, कम से कम उतना जल नदियों में बहता रहे। देश का भूजल इस संकट को दूर करने का मुख्य आधार है। इसके उपयोग को जन-भागीदारी से नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके साथ जल संग्रहण व संरक्षण का हर संभव प्रयास करना चाहिए। इसके लिए जहां पहले से बने तालाबों व अन्य परंपरागत जल-स्रोतों की रक्षा व जीर्णोद्धार जरूरी है, वहीं नए अच्छी गुणवत्ता के जल संग्रहण कार्य भी बड़े स्तर पर होने चाहिए।

इस अध्ययन में एक ऐसे नए जल-अधिकार अधिनियम की मांग की गई है, जिससे पीने व अन्य जरूरी कार्यों के लिए बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों को जल प्राप्ति का अधिकार दिया जाए। इसी कानून में नदियों, झीलों व अन्य सब जल स्रोतों की रक्षा को भी शामिल करना चाहिए। कृषि को सिंचाई के लिए उद्योगों से ऊपर प्राथमिकता तो अवश्य मिलनी चाहिए, पर साथ ही सिंचाई में पानी की बर्बादी को रोकने का पूरा प्रयास भी साथ-साथ होना चाहिए। इन सुझावों में बहुत दम हैं, क्योंकि यह सस्ते भी हैं और टिकाऊ भी। इनसे एक ओर पैसे की बचत होगी व दूसरी ओर विस्थापन जैसी समस्याओं से भी हम बचेंगे। यदि बहुत महंगी विशालकाय परियोजनाओं से धन बचाकर इसी बजट को गांव-गांव में हरियाली बढ़ाने, तालाब व छोटे चेक डैम बनाने, परंपरागत जल-स्रोतों का जीर्णोद्धार करने के कार्यों में लगा दिया जाए तो इससे जल-संकट दूर करने में सहायता मिलेगी व गांव-गांव में बहुत रोजगार का भी सृजन होगा।