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शनिवार की दोपहर पीपल्याहाना तालाब का नीला पानी हवा के झोंकों के साथ हिलोरें ले रहा है। इस पर मँडराते खतरे के बादल अब छँटने लगे हैं। आधे से ज्यादा तालाब को पाटकर यहाँ निर्माण करने से एक चौथाई तालाब पोखर की तरह का ही रह जाता लेकिन लोगों के आन्दोलन ने आखिरकार अपना तालाब बचा ही लिया। देश में बड़ी तादाद में खत्म हो रही परम्परागत जल संरचनाओं की किस्मत भी काश पीपल्याहाना तालाब की तरह हो और वहाँ का समाज भी इतना चेते कि अपना तालाब और जल संरचनाएँ बचा सके। इन्दौर के सौ साल पुराने पीपल्याहाना तालाब को बचाने की जनता की साझा मुहिम काफी हद तक सफल होती नजर आ रही है। अब मुख्यमंत्री ने भी इस बात का एलान कर दिया है कि पीपल्याहाना तालाब की जमीन पर नया कोर्ट भवन नहीं बनाया जाएगा। इस तरह जनता के आन्दोलन की जीत होती नजर आ रही है।
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद जल सत्याग्रह निरस्त कर इसे सत्याग्रह में बदल दिया गया है। हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता अब भी सरकार के लिखित आदेश या एनजीटी में शपथपूर्वक जवाब प्रस्तुत करने की माँग पर अड़े हैं।
शनिवार की दोपहर पीपल्याहाना तालाब का नीला पानी हवा के झोंकों के साथ हिलोरें ले रहा है। इस पर मँडराते खतरे के बादल अब छँटने लगे हैं। आधे से ज्यादा तालाब को पाटकर यहाँ निर्माण करने से एक चौथाई तालाब पोखर की तरह का ही रह जाता लेकिन लोगों के आन्दोलन ने आखिरकार अपना तालाब बचा ही लिया। देश में बड़ी तादाद में खत्म हो रही परम्परागत जल संरचनाओं की किस्मत भी काश पीपल्याहाना तालाब की तरह हो और वहाँ का समाज भी इतना चेते कि अपना तालाब और जल संरचनाएँ बचा सके।
इससे पहले शुक्रवार को दोपहर बाद से ही पीपल्याहाना तालाब पर जल सत्याग्रह की स्थिति को लेकर लगातार बदलाव होते रहे, इन्दौर में रियासतकालीन पीपल्याहाना तालाब की आधी से ज्यादा जमीन को पाटकर यहाँ नया हाईटेक कोर्ट भवन बनाए जाने के सरकार के फैसले के खिलाफ स्थानीय लोगों ने बीते 6 दिनों से जल सत्याग्रह शुरू कर दिया था। इसमें 61 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता और शहर के पर्यावरण की लगातार लड़ाई लड़ने वाले किशोर कोडवानी सहित सैकड़ों लोग भागीदारी कर रहे थे।
यह धीरे-धीरे एक बड़े जन आन्दोलन में बदल गया और कांग्रेस व भाजपा दोनों के ही नेता इससे जुड़ने लगे। शहर के इस तालाब को बचाने के लिये शहर के लोगों का जन-समर्थन और मुद्दे की गम्भीरता को समझते हुए नेताओं ने भी अपनी दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर सहयोग किया। लोकसभा अध्यक्ष और इन्दौर की सांसद सुमित्रा महाजन सहित भाजपा विधायकों ने भी लगातार मुख्यमंत्री से इस बारे में चर्चा की और उन्हें जन-भावना से अवगत कराया।
शुक्रवार की दोपहर कैबिनेट की बैठक के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में पत्रकारों को जानकारी दी कि पीपल्याहाना तालाब की जमीन पर कोई निर्माण नहीं होगा। कोर्ट भवन अन्यत्र बनाए जाने को लेकर भी एक समिति गठित की जा रही है। इसमें हाईकोर्ट के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे तथा हाईकोर्ट की सहमति से उचित स्थान पर इसे स्थानान्तरित किया जाएगा।
इससे पहले ही मुख्यमंत्री पीपल्याहाना तालाब पर चल रहे निर्माण कार्य को रोकने का आदेश दे चुके थे। उन्होंने इस बारे में ट्विटर पर भी ट्वीट किया। उन्होंने अपने पहले ट्वीट में लिखा कि जिला न्यायालय भवन के लिये वैकल्पिक स्थान का चयन माननीय उच्च न्यायालय की सहमति से होगा, तब तक पूर्व निर्धारित स्थान पर कोई निर्माण नहीं होगा। इसके बाद दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा कि राज्य सरकार ने पीपल्याहाना इन्दौर में जिला न्यायालय का भवन बनाए जाने के प्रस्ताव पर पुनर्विचार के लिये समिति गठित करने का निर्णय लिया है।
राज्य सरकार के इस निर्णय के बाद उत्साहित लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इसे जनता की जीत बताते हुए कहा कि धन्यवाद इन्दौर की जनता कि जिसने पीपल्याहाना तालाब के लिये जन-आन्दोलन को देखते हुए सरकार को कदम पीछे खींचना पड़े। इसके लिये पूरे इन्दौर ने एकजुट होकर जिस तरह से लड़ाई लड़ी, वह राजनीति से अलग है। तालाब को बचाने का श्रेय जनता की एकजुटता को है। इसका पूरा श्रेय इन्दौर के लोगों को है, किसी राजनैतिक दल को नहीं। इसकी शुरुआत भी जनता ने की थी और पूरी ताकत से लड़ाई भी लड़ी।
कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी ने कहा कि हमने सकारात्मक तरीके से लड़ाई लड़ी। खुशी इस बात की है कि देर से ही सही सरकार सही मुकाम पर पहुँची।
लगातार छह दिनों तक जल सत्याग्रह करने वाले 61 साल के सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कोडवानी सरकार के इस ताजा एलान से खुश तो हैं पर उनका मानना है कि जब तक उन्हें इस आशय का लिखित आदेश या एनजीटी में सरकार का शपथपूर्वक जवाब नहीं प्रस्तुत कर दिया जाता, उनका आन्दोलन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि सरकार की बात का सम्मान करते हुए हम फिलहाल जल सत्याग्रह को निरस्त कर रहे हैं लेकिन जब तक लिखित में आदेश नहीं देगी तब तक हम यहीं तालाब के किनारे सत्याग्रह करते रहेंगे। उन्होंने बताया कि 17 जुलाई को शहर भर की जनता यहाँ जुटेगी। उनसे बात कर ही आगे का निर्णय ले लिया जाएगा। यदि तब तक आदेश आ गया तो सत्याग्रह समाप्त कर धन्यवाद सभा की जाएगी और आदेश नहीं आया तो शहर के लोग सत्याग्रह में शामिल होंगे।
कोडवानी ने बताया कि वे लम्बे समय से पीपल्याहाना तालाब की लड़ाई न्यायालय में लड़ते रहे हैं। 2009 से उनकी कानूनी लड़ाई चल रही है। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय हरित अधिकरण में याचिका दायर की। 18 मार्च 2016 को एनजीटी ने निर्माण कार्यों में निर्देशों के पालन की बात कही। लेकिन जब निर्माण करने वाली एजेंसी के ठेकेदार ने इन निर्देशों की अवहेलना शुरू की तो इसके खिलाफ उन्होंने जिला कलेक्टर को चिट्ठी लिखी।
इसी दौरान एक दिन उन्होंने देखा कि रातोंरात ठेकेदार के लोगों ने बीच तालाब में सड़क बनाना शुरू कर दिया है तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। कुछ समय के लिये उन्हें लगा कि वे धनबल के खिलाफ इस लड़ाई में हारते जा रहे हैं, उनकी आँखें भीग गई पर दूसरे ही पल विचार आया कि उनके साथ सच है और प्रकृति भी तो क्यों न लड़ाई जारी रखी जाये। उन्होंने इस बार अपनी लड़ाई में लोगों का साथ लिया और अन्ततः अब सरकार को भी बैकफुट पर आना पड़ा।
गौरतलब है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण में भी पर्यावरण को बचाने और एक जिन्दा तालाब की हत्या से बचाने की तमाम कोशिशें सरकारी रिकॉर्ड के दस्तावेजों के तले दबती गई और तालाब पर ही नया कोर्ट भवन बनाने के आदेश दे दिये गए।
आनन–फानन में अधिकरण के आदेश मिलते ही निर्माण करने वाली कम्पनी के ठेकेदार ने तालाब की छाती पर एक बड़ी रिटेनिंग वाल बनाने के लिये जोर-शोर से काम शुरू कर दिया। लोहे के सरियों का जाल बिछा दिया गया। इसी दौरान बारिश हुई और दीवाल का काम रोकना पड़ा। लोगों ने भी बरसते पानी में तालाब को बचाने की मुहिम छेड़ दी।
लोग तालाब के आसपास जुटने लगे। पहले तो कम्पनी के लोगों को लगा कि यह सब कुछ दिनों का ड्रामा भर होगा लेकिन लोगों की एकजुटता और उनके जज्बे को देखकर धीरे–धीरे वे भी पीछे हटने लगे। जमकर बारिश हुई और बारिश ने अपनी छाती पर बनाई दीवाल को डुबो दिया। हाँ कुछ सरिए जरूर बाहर निकले रहे पर जब बारिश में पूरा तालाब भर गया तो आन्दोलन करने वाले भी उत्साह से भर गए।
आन्दोलन को लोगों का अभूतपूर्व सहयोग मिला और जन-प्रतिनिधि भी इससे जुड़ते गए। सांसद, विधायक महापौर, नगर निगम, पार्षद, बुद्धिजीवी, पर्यावरण प्रेमी, कर्मचारी, किसान हर कोई तालाब बचाने के लिये सामने आया।
इनका कहना है कि
जब तक सरकार यहाँ काम रोकने और तालाब परिसर छोड़कर कोर्ट भवन निर्माण अन्यत्र करने का लिखित आदेश नहीं दे देती, तब तक आन्दोलन लगातार चलता रहेगा... किशोर कोडवानी, सत्याग्रही
यह ऐसा तालाब है, जिससे शहर के पूर्वी भाग का जलस्तर बना रहता है। यदि यह खत्म हो गया तो पानी की कमी हो जाएगी। होलकर राजाओं ने शहर के चारों हिस्से में चार बड़े तालाब बनवाए थे, लेकिन अब सरकार इन्हें उजाड़ने पर तुली थी। हम शहर के पर्यावरण को नुकसान नहीं होने देंगे।
इस भरे–पूरे तालाब को नाला बनाने पर सरकार अड़ी थी। आधे से ज्यादा तालाब को पाटना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। इस बात की खुशी है कि अन्ततः सरकार ने हमारी बात को सुना और जन भावना का आदर किया... महेंद्र सांघी, सामाजिक कार्यकर्ता