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जहाँ पहले 300 से 400 फीट पर ही पानी मिल जाया करता था, वह अब 800 से एक हजार फीट तक जा पहुँचा है। इससे इलाके के किसान चिन्तित हुए और उन्होंने आपस में राय मशविरा किया कि क्यों नहीं हम इस पानी की होड़ से तौबा करें और कुछ ऐसा करें कि पानी का भूजल भण्डार भी बढ़े और हमारे खेतों को भी पानी मिलता रहे। ध्यान गया परम्परागत तालाब से सिंचाई का। पर तालाब तो अब बहुत उथला हो चुका था और जगह–जगह अतिक्रमण भी। एक तरफ झाड़ियाँ उग आई थी तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस पर खेती करने लगे थे। 45-46 डिग्री सेल्सियस तापमान और चिलचिलाती धूप में भी गाँव–गाँव तालाबों को सहेजने और उन्हें गहरा करने का काम जोर-शोर से चल रहा है। किसान अपने कंधे पर टँगे गमछे से पसीना पोछने के लिये तनिक रुकते हैं और फिर काम शुरू हो जाता है। जेसीबी मशीनों और पोकलेन मशीनों की घर्र–घर्र के बीच किसान अपनी ट्रैक्टर–ट्रालियाँ लिये अपनी बारी का इन्तजार कर रहे हैं। वे तालाब की काली मिट्टी अपने खेतों में डालकर तालाबों के साथ अपने खेत भी सँवार रहे हैं।
यह नजारा है मध्य प्रदेश के दिल कहे जाने वाले मालवा इलाके के इन्दौर जिले के गाँवों का। हमारी गाड़ी जिस भी पक्की–कच्ची सड़क से गुजरी, हर तरफ यही दृश्य था। दूर–दूर तक सूने पड़े खेत और उनके बीच बने तालाबों से गाद और मिट्टी खोदती मशीनें। जैसे गाँवों में कोई उत्सव मनाया जा रहा हो।
दरअसल यहाँ प्रशासन और किसानों ने मिलकर जिले के करीब साढ़े छह सौ पुराने तालाबों के कायाकल्प का बीड़ा उठाया है। इसके लिये प्रशासन ने कोई अतिरिक्त बजट या पैसा खर्च नहीं किया है। बस थोड़ी सी समझदारी और लोगों के समझाने भर से ही यह मुहिम अब रंग लाने लगी है।
जिले में बीते साल औसत बारिश 1030 मिमी से घटकर 952 मिमी पर ही सिमट चुकी है। अनुमान है कि बीते सालों के मुकाबले इस साल यहाँ के तालाबों में 40 फीसदी से ज्यादा बरसाती पानी इकट्ठा हो सकेगा और यह पानी काफी समय तक गाँव के लोगों के उपयोग में आ सकेगा। गाँवों में पुराने और सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज तालाबों को गहरा करने के लिये किसानों को यह छूट दे दी गई है कि इन्हें गहरा करने से जो भी मिट्टी निकलेगी, उसे वे अपने खेतों में डालकर खेतों को और भी उपजाऊ कर सकते हैं।
तालाबों की तली से निकलने वाली काली मिट्टी को खेती के लिहाज से बहुत अच्छा और उपजाऊ माना जाता है। इस छूट का फायदा यह हुआ कि गाँव–गाँव लोग अपने यहाँ के तालाब को सँवारने और गहरा करने में जुट गए। इससे पहले ऐसा करना सम्भव नहीं था। उन्हें अनुमति लेनी होती थी और रायल्टी जमा करनी होती थी।
तालाब से मिट्टी खोदने पर इसकी शुरुआत की कहानी कुछ इस तरह है कि जिले का सबसे बड़ा बनेडिया तालाब करीब एक हजार तीस एकड़ के क्षेत्रफल में फैला हुआ है। गाँव के सरपंच धर्मराज पटेल बताते हैं कि यह करीब सौ साल पुराना तालाब है और हमारे बाप–दादा इसी के पानी से हमारे खेतों को सींचते थे। इसके पानी से आसपास के आधा दर्जन गाँवों के किसान फसल लेते थे लेकिन बीते पच्चीस सालों में धीरे–धीरे तालाब से किसानों की निर्भरता खत्म होती गई और किसान अपने–अपने खेतों में जरूरत के मुताबिक ट्यूबवेल करवाते रहे।
जहाँ पहले 300 से 400 फीट पर ही पानी मिल जाया करता था, वह अब 800 से एक हजार फीट तक जा पहुँचा है। इससे इलाके के किसान चिन्तित हुए और उन्होंने आपस में राय मशविरा किया कि क्यों नहीं हम इस पानी की होड़ से तौबा करें और कुछ ऐसा करें कि पानी का भूजल भण्डार भी बढ़े और हमारे खेतों को भी पानी मिलता रहे। ध्यान गया परम्परागत तालाब से सिंचाई का। पर तालाब तो अब बहुत उथला हो चुका था और जगह–जगह अतिक्रमण भी। एक तरफ झाड़ियाँ उग आई थी तो दूसरी तरफ कुछ लोग इस पर खेती करने लगे थे। हालत यह थी कि कभी पूरे साल पानी से भरा रहने वाला यह तालाब अब दिवाली यानी बारिश के बाद दो महीने भी साथ नहीं दे पाता था, सूखने लगता था।
बात चली तो तय हुआ कि गाँव के तालाब को फिर से जिन्दा करेंगे। इसके लिये सरकार और अधिकारियों से गुहार की पर किसी के पास भी इतना पैसा नहीं था कि उथले हो चुके तालाब को फिर से जिन्दा किया जा सके। प्रशासन ने कहा कि यदि किसान चाहें तो खुद इसकी मिट्टी निकालें और अपने खेतों को सुधारें। ऐसा करने पर उनसे कोई रायल्टी नहीं ली जाएगी। इस तरह किसानों को अपने खेतों के लिये उपजाऊ मिट्टी और बरसाती पानी दोनों मिल सकेगी। किसान इसके लिये राजी हो गए।
पहले बड़े किसान और फिर छोटे किसान भी। अब तो हर कोई अपने खर्च पर तालाब की मिट्टी समेटने के लिये बेताब है। यहाँ दस जेसीबी मशीनें देर शाम तक लगी रहती हैं। इनकी खोदी गई मिट्टी को हर दिन करीब सवा सौ से ज्यादा ट्रालियों के जरिए बाहर खेतों में भेजा जा रहा है। अब तक इस तालाब को करीब 4 से 5 फीट तक गहरा किया जा चुका है। इससे निकली हजारों ट्राली मिट्टी से सैकड़ों खेत भी सुधरे हैं।
ग्रामीणों का दावा है कि इसी तरह पन्द्रह दिन और खुदाई हुई तो यह पूरे साल पानी उपलब्ध कराता रहेगा और इससे इसी साल करीब 1200 हेक्टेयर खेतों में सिंचाई सम्भव हो सकेगी। उधर जिला पंचायत ने भी ग्रामीणों को भरोसा दिलाया है कि काम पूरा होने के बाद इसकी पाल को पक्का बनाया जाएगा। ग्रामीण बताते हैं कि इससे आसपास के नौ गाँवों के करीब ढाई हजार से ज्यादा छोटे–बड़े किसानों को फायदा मिलेगा। वे अब तक पानी की कमी से एक ही फसल ले पाते हैं लेकिन अब वे दो या तीन फसल भी ले सकेंगे। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि पानी धीरे–धीरे जमीन में रिसते हुए यहाँ जल स्तर भी बढ़ेगा।
बनेडिया तालाब की सफलता ने आसपास के गाँवों और वहाँ से और आगे के गाँवों तक फैला दिया है। इससे वहाँ के किसान भी अब आगे आ रहे हैं।
करीब 85 एकड़ में फैले हातोद तालाब में भी यही दृश्य है। यहाँ तालाब छोटा होने के बाद भी किसान पूरे उत्साह से जुटे हैं। यहाँ के किसान जगदीश चंद्र बताते हैं कि इससे पहले ऐसा किसी ने नहीं किया। यहाँ पहली बार जिला पंचायत ने मिट्टी खोदकर ले जाने पर रायल्टी हटाई है। इससे किसान खुश हैं कि उन्हें पानी मिलेगा, जलस्तर बढ़ेगा, उनके खेत भी सुधरेंगे और मिट्टी अच्छी होने से रासायनिक खाद का इस्तेमाल भी कम करना पड़ेगा। इसे बारिश से पहले तीन फीट तक गहरा किया जाएगा। इससे हातोद कस्बे को पीने के लिये पानी भी आसानी से मिल सकेगा। पार्षद नरोत्तम चौधरी बताते हैं कि तालाब सूखने से जलस्तर गिरता है। कस्बे के सारे बोरिंग और कुएँ भी सूखने लगते हैं। तालाब में पानी भरा रहेगा तो कस्बे के लोगों को पीने का पानी मुहैया हो सकेगा। पीपल्दा तालाब को भी गहरा किया जा रहा है।
किसान पोपसिंह कहते हैं कि अब वे बारिश की हर बूँद को थाम लेना चाहते हैं ताकि आने वाले साल में उन्हें और आसपास के गाँव वालों को पानी के लिये मोहताज नहीं होना पड़े। वे कहते हैं कि हमने अपनी तालाबों की विरासत को भूलाकर ट्यूबवेल जैसे तरीकों को अपना लिया था लेकिन अब साल-दर-साल जिस तेजी से भूजल भण्डार नीचे जा रहा है, उससे बारिश के पानी को जमीन तक पहुँचाने और इसके समुचित भण्डारण की जरूरत शिद्दत से महसूसी जाने लगी है।
इंदौर जिला पंचायत के सीईओ वरदमूर्ति मिश्रा बताते हैं कि इससे जिले में पहली बार रायल्टी और अनुमति के नियम को शिथिल किया गया है। जिले के राजस्व रिकार्ड में 639 तालाब दर्ज हैं। इनका कैचमेंट एरिया 3-4 एकड़ से लगाकर सैकड़ों एकड़ तक है। बड़ी तादात में तालाबों से मिट्टी निकालने का काम चल रहा है। इससे इस बार की बारिश में जल संग्रहण क्षमता में रिकॉर्ड तोड़ बढ़ोत्तरी होगी।
इन्दौर के जिला कलेक्टर पी नरहरी बताते हैं कि किसान बड़ी तादाद में आगे आये हैं। जिले की 312 पंचायतों के 639 तालाबों में काम हो रहा है। इसकी सफलता से प्रेरित होकर मुख्यमंत्री अब इसे पूरे प्रदेश में लागू करना चाहते हैं। उन्होंने अभियान की जानकारी से मुख्यमंत्री को अवगत कराया है।
जिले की जेसीबी और पोकलेन मशीनों के बाद अब आसपास के जिलों से भी मशीनें बुलाई जा रही हैं। बारिश से पहले ये किसान अपने इलाके में पानी की मनुहार कर रहे हैं और उसकी अगवानी के स्वागत की तैयारियाँ कर रहे हैं।
यहाँ इलाके के लोग अब अपने तालाबों की कीमत पहचान चुके हैं। तालाबों की अनदेखी से ही उनकी यह हालत हुई है। कभी जमीन को सवा हाथ खोदने पर ही पानी आ जाने वाले इस इलाके ने बीते कुछ सालों से पानी का जो संकट देखा है, वह इससे पहले की पीढ़ी ने कभी नहीं देखा था। उन्हें अब अपनी गलती का अहसास हो चुका है। साल–दर–साल खेती में घाटा और पानी की किल्लत ने अब उनकी आँखें खोल दी है।