भारत की कैंसर वैली दिल्ली और पटना के बीच गंगा के किनारे पाई जाती है। यह खबर आपको चौंका जरूर सकती है कि कैंसर का गंगा के किनारे रहने का क्या संबंध, लेकिन यह हकीकत है...अगर आप गंगा के तटीय इलाकों में रहते हैं तो आपके गॉलब्लैडर यानी पित्ताशय का कैंसर के मरीज होने की आशंका बढ़ जाती है।
भारत में गॉलब्लैडर का कैंसर गंगा नदी के आस पास के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों में सबसे ज्यादा पाया गया है। यह नतीजा इंटरनेशनल हेपैटो-पैनक्रिएटो-बिलिअरी एसोसिएशन के एक अध्ययन में सामने आई है।
बिहार में वैशाली और पटना के ग्रामीण इलाकों और उत्तर प्रदेश में वाराणसी में किए गए अध्ययन में पाया गया है कि प्रति एक लाख की आबादी पर औसतन 25 लोग गॉलब्लैडर के कैंसर के मरीज हैं। इन लोगों के टिश्यू और बालों का अध्ययन किया गया तो इनमें कैडमियम, मरकरी और सीसा जैसे भारी तत्वों की मौजूदगी पाई गई। इंसानों में इन खतरनाक तत्वों की मौजूदगी की क्या वजह है? जी हां एक बड़ी वजह तो यही है। गंगा के किनारे कईं शहरों में मौजूद चमड़ा शोधन कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट में इन तत्वों की मौजूदगी होती है।
प्रमुख अध्येताओं में से पी जगन्नाथ के अनुसार, “कैडमियम के इस्तेमाल पर दुनिया के कई देशों में पाबंदी है लेकिन भारत में इसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है।“ उंहोंने बताया कि गॉलब्लैडर में कैंसर होने की दर दक्षिण भारत में प्रति एक लाख पर .05 है जबकि दिल्ली में यह 12 है।
भारत में गॉलब्लैडर का कैंसर गंगा नदी के आस पास के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों में सबसे ज्यादा पाया गया है। यह नतीजा इंटरनेशनल हेपैटो-पैनक्रिएटो-बिलिअरी एसोसिएशन के एक अध्ययन में सामने आई है।
एक लाख पर 25 मरीज
बिहार में वैशाली और पटना के ग्रामीण इलाकों और उत्तर प्रदेश में वाराणसी में किए गए अध्ययन में पाया गया है कि प्रति एक लाख की आबादी पर औसतन 25 लोग गॉलब्लैडर के कैंसर के मरीज हैं। इन लोगों के टिश्यू और बालों का अध्ययन किया गया तो इनमें कैडमियम, मरकरी और सीसा जैसे भारी तत्वों की मौजूदगी पाई गई। इंसानों में इन खतरनाक तत्वों की मौजूदगी की क्या वजह है? जी हां एक बड़ी वजह तो यही है। गंगा के किनारे कईं शहरों में मौजूद चमड़ा शोधन कारखानों से निकलने वाले अपशिष्ट में इन तत्वों की मौजूदगी होती है।
प्रमुख अध्येताओं में से पी जगन्नाथ के अनुसार, “कैडमियम के इस्तेमाल पर दुनिया के कई देशों में पाबंदी है लेकिन भारत में इसका प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है।“ उंहोंने बताया कि गॉलब्लैडर में कैंसर होने की दर दक्षिण भारत में प्रति एक लाख पर .05 है जबकि दिल्ली में यह 12 है।