अंत में पर्यावरणविद् प्रोफेसर अग्रवाल ने 20 फरवरी, शुक्रवार को उस समय अपना अनशन तोड़ दिया है जब सरकार ने भागीरथी पर 600 मेगावाट क्षमता वाले लोहारीनागा पाला पनबिजली परियोजना को रोके जाने का आश्वासन दिया।
भागीरथी बचाओ संकल्प के प्रतिनिधियों और केंद्रीय ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे के बीच एक लंबी बैठक के बाद यह फैसला लिया गया था। संकल्प के कार्यकर्ता ने पोर्टल को बताया लोहारीनागा पाला पनबिजली परियोजना पर कार्य बंद करने का आश्वासन सरकार ने लिखित में दिया है।
प्रोफेसर अग्रवाल 14 जनवरी के बाद से दिल्ली में आमरण अनशन पर बैठे हुए थे, उनकी मांग थी कि भागीरथी में पानी का प्रवाह बनाए रखा जाए और ऐसा कोई निर्माण कार्य नहीं किया जाए जिससे जल प्रवाह प्रभावित हो।
इस विख्यात पर्यावरणविद् का तर्क था हिमालय में बहने वाली भागीरथी पर प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं और बहुत से बैराजों के निर्माण से गंगा के अस्तित्व को ही खतरा बैदा हो जाएगा।
भारत के अग्रणी पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी प्रोफेसर अग्रवाल का समर्थन किया। 30 जनवरी को देश के विभिन्न गांधीवादियों ने भी इस मांग के समर्थन में सामूहिक उपवास किया था।
अग्रवाल का संकल्प दृढ़ था। उंहोंने साफ कहा कि गंगा के लिए मैं अपनी जान की बाजी लगा दूंगा और शायद मेरी मौत से लोगों की सोई आत्मा जाग जाए और वे इस पवित्र नदी की रक्षा के बारे में सोचें।
डॉ. अग्रवाल देश में पर्यावरण इंजीनियरिंग के अगुआ है और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन में मुख्य सलाहकार माने जाते हैं। आईआईटी कानपुर के भूतपूर्व प्रोफेसर और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के पहले सदस्य सचिव के रूप में उन्होंने, भारत के प्रदूषण नियंत्रण नियामक तंत्र को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
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